नारी की दशा और दिशा पर हम विचार विनमय कर रहे हैं क्या कभी पुरुषों की दशा दिशा पर हमें सोचने के लिये विवश होना पड़ा है नहीं न आधी आबादी और हम ...
नारी की दशा और दिशा पर हम विचार विनमय कर रहे हैं क्या कभी पुरुषों की दशा दिशा पर हमें सोचने के लिये विवश होना पड़ा है नहीं न आधी आबादी और हम कहते ही नहीं मानते हैं श्रेष्ठ आबादी उसके लिये चंद नाम गिनाते हैं। मैत्रेयी गार्गी से प्रारम्भ करके किरण वेदी तक जो चंद पंक्तियों में सिमट जाते हैं। पर क्या महिलाओं की दिशा पाने के लिये ऊँचा और ऊँचा ही आसमान चाहिये। नहीं उन्हें चाहिये समाज में प्रतिष्ठित सम्मान अपना अपना सम्मान सबका सम्मान। नारीत्व ऊँचाइयों पर अपने आप पहुँच जायेगी कभी स्त्रियों को वोट का अधिकार भी नहीं था। 1926 में एक महिला को विधानसभा का सदस्य बनाया गया। लेकिन उसे वोट का अधिकार नहीं था। 1937 में महिलाओं को मताधिकार मिला । 1938 में श्रीमती आर बी सुव्बाराब राज्य परिषद में चुनी गई।
रात नहीं ख्वाव बदलता है ।
मंजिल नहीं कारवां बदलता है।
जज्बा रखो बढ़ने का एक दिन
वक्त भी जरूर बदलता है।
जिंदगी घिसटेगी नहीं हर महिला का अपना वक्त होगा अपना ध्येय होगा अपनी दिशा होगी चंद नामों के साथ जुड़ा नहीं होगा। समाज बदला है दुनिया बदली है यहाँ तक कि अरब देश की महिलाऐं भी पुरुष सत्तात्मकता के खिलाफ उठ खड़ी हुई हैं। उन्होंने भीषण यातनाए सही हैं। प्रताड़ना यौन उत्पीड़न आदि सहन किया। उनका कहना है पितृ सत्रात्मक व्यवस्था हटे बिना महिलाओं को दशा मिलना संभव नहीं । उन्होंने अपने लिये स्थान बनाना प्रारम्भ किया है। महिलाओं के लिये किसी भी क्षेत्र में बंदिश नहीं है। बंदिश लगने की सामर्थ्य पुरुष वर्ग में नहीं है। यह घेरा हर बंदिश स्वयं महिलाऐं लगाती रहीं है । उसके उत्थान पतन दोनो के कारण समाज से पहले उसके अपने घर में मौजूद हैं। उन्हें जीवन मूल्य निर्धारित करने का अधिकार मिलना चाहिये। जागरूकता हो तो कोई बाधा नहीं बन पाता है उसमें संसार बदलने की सामर्थ्य है बस पहचानने की बात है । महिला स्वयं बदल रही है । उसकी स्थिति बदल रही है । एक बच्चे की नीति ने बेटा और बेटी में फर्क न करने का बदलाब आया है । विवाह अब स्वैच्छिक व परिवार सम्मत दोनों होते हैं ।
लेकिन किसलिये दुनिया का कोई भी संविधान आपको आत्मनिर्भर और जबावदेह नहीं बना सकता अपने को दिशा देने के लिये एक दिन भी मनाते है। संयुक्त राष्ट्र संघ प्रतिवर्ष महिलाओं को एक नारा देता है सन् 2014 में नारा मिला है' महिलाओं की बराबरी सबकी तरक्की 'महिला दिवस श्राद्ध की तरह आता और चला जाता है । महिलाओं का तर्पण हो जाता है वे तर जाती है उनका दिवस पूरा विश्व मनाता है।
लेकिन नारी को भारतीय संस्कृति में गौरव सदा ही मिला है उसके दिवस एक नहीं है सभी त्यौहार महिलाओं को लेकर ही बने है। आद्यशक्ति दुर्गा है । हम चार बार नवदुर्गा की पूजा करते है। नौ नौ दिन करके वर्ष में चार बार पूजते हैं इसीलिये न कि महिलाऐं शक्ति हैं दुर्गा का हर दिन का रूप अलग है। उसमें अगर शांति और सौम्यता है तो काली माँ का रूप है। विद्यादायनी है तो शक्तिदायनी भी है । जीवनदायनी है तो संहारक भी है वह मोहिनी है तो छिन्नमस्ता भी है ।और उसे अपनी सब कलाओं सब रूपों को लेकर चला होगा । वास्तव में भारतीय संस्कृति के धार्मिक उत्सव प्रतीकात्मक हैं महिला ही शक्ति है होली हो दीपावली हो चाहे बसंतपंचमी हम पूजते नारी रूप ही हैं महिला ही दाताविधाता है। संसार रचने वाली है। इतिहास उससे बना है भविष्य लिखती है यह महाभारत को देखकर निश्चय किया जा सकता है। महाभारत का मुख्य कारण एक स्त्री का अपमान है नारी के अपमान से उत्पन्न क्रोध की ज्वाला ने पूरा राज्य ध्वस्त कर दिया
बलात्कार नारी का होता है शोषण नारी का होता है छल उसके साथ पुरूष करता है। फिर क्यों नारी को ही सहना होता है। छल इन्द्र ने किया शापित अहल्या हुई पत्थर अहल्या बनी। उसका क्या दोष था कि पत्थर उसे बनाया गया। परशुराम ने माता की हत्या करने में हिचक नहीं कि माँ को कलंकित करने वाले का संहार करने के स्थान पर माँ को गला काटा पर आज नारी पत्थर बनने के लिये तैयार नहीं है। न वह धरती में समाने के लिये तैयार है। पुरूष रक्षा नहीं कर सकता तो बलहीन पौरुषहीन पुरूष है तब पुरुष उसे बनना चाहिये? लज्जित नारी ही क्यों बहिष्कृत नारी को ही किया जाता है यह निश्चय है जो कमजोर दिखता है उसे ही तोड़ा जाता है । जब पुरुष देखेंगे तुम टूटने वाली नहीं हो तो तुमसे डरने लगेंगे।
आज हम आरक्षण की मांग करते हैं किससे करते हैं पुरुष वर्ग से क्यों करते हैं। जब हम आधी दुनिया हैं तब हम क्यों गिड़गिड़ा रहे हैं स्वयं हम कमजोर हैं । इसलिये हम कहते हैं भई येनकेन प्रकारेण हमें भी बैठाओ बराबर बैठाओ पर यदि आयोग्य होंगे तब कैसे हम उन पर हावी हो पायेंगे क्या सुमित्रा महाजन, सुषमा स्वराज ,वंसुधरा राजे, उमा भारती आदि महिलाओं को पुरुष रोक पाये नहीं न।
हो बुलंद इतना स्वयं ऊँचाइयाँ तुमको पुकारे
तुम न कुछ मांगो किसी से तुम्हीं से मांगे सहारे
कर न पायें तस्वीर मैली धुंध की छाया पड़े न
नैन में ज्वाला धधकती बोल में मीठी फुहारें ।
आरक्षण कमजोर के लिये है। संरक्षण चाहिये महिलाओं केा लेकिन दुर्भावना वाले व्यभचारियों से ,भेदभाव से अधिक काम करके भी कम मेहनताना पाने से बलात्कारियों से, महिलाओं को नीची नजर देखने वालों से जिससे वह सिर उठाकर चल सके और पुरुष यही नहीं चाहता है कि कोई उसके सामने सिर उठाकर चले इसलिये वह उसे दमित करता है। पुरूष पूर्ण क्रूरता से औरत के पंख कुतरना चाहता है। बलात्कार पुरुषों के हाथ में एक ऐसा हथियार है जिसने उसे आतंकित कर रखा है उनकी सांसें भी छीनी हैं उनकी प्रगति में पलने बढ़ने में बाधा बन गया है। इसमें जातिगत दबंगई अधिक काम करती है। जातीयता की राजनीति ने महिलाओं की दषा ष्षोचनीय बना दी है। उसे प्रताड़ित करके मुस्कुराता है और मूँछों पर हाथ फेरता है। महिलाओं के साथ हो रहे अनैतिक अत्याचार उन्हें रोमांचित करते हैं। महिला को किसी का सहारा नहीं मिलता है । उसे अपने अंदर ऊर्जा उत्पन्न करनी पड़ती है। अपने को सशक्त स्वयं करना होगा और आर्थिक और सामाजिक रूप से सबल बनाना होगा । जिससे अपने हक की लड़ाई दया पर नहीं अपनी योग्यता पर प्राप्त करे। महिलाओं में बदलाव की प्रक्रिया जारी है और दिनों दिन जारी रहेगी ,
फिर क्यों हमें नारी का
अश्रुसिक्त चेहरा ही नजर आता है।
अग्नि पुंज हो तुम
फिर भी दहकाई जाती हो
क्यों तुम्हारे लिये गाते हैं तो
शोक गीत गाते हैं
समाज देता है तुम्हें दर्द
मुस्कराकर सुनाता है
तुम्हारे संघर्ष भरे दिन
कहते हैं तुम्हें कोमल डाल
भार उठाती हो
समाज के पास तुम्हें देने को
उपेक्षा तिरस्कार अपमान
बदले में देती हो
तृप्ति, तृप्ति तृप्ति ।
डा०शशि गोयल
3 /28 ए/2 जवाहर नगर रोड
खंदारी आगरा 282002
गोयल जी,नारी की वास्तविक स्थिति का बहुत ही सुंदर चित्रण किया है आपने ! अपने नारित्व का सम्मान करते हुए, अपनी योग्यताओ को पंख देकर अपने बलबूते पर ही नारी अपनी दशा सुधार सकती है ...
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