गैब्रिएल गार्सिया मार्खे़ज़ की कहानी - विशाल पंखों वाला बहुत बूढ़ा आदमी

SHARE:

महान् लातिनी अमेरिकी साहित्यकार गैब्रिएल गार्सिया मार्खे़ज़ को श्रद्धांजलि । ---------------------------------------------------------------...

महान् लातिनी अमेरिकी साहित्यकार गैब्रिएल गार्सिया मार्खे़ज़ को श्रद्धांजलि ।

------------------------------------------------------------------------------------

( अनूदित लातिनी अमेरिकी कहानी )

-----------------------------------------

# विशाल पंखों वाला बहुत बूढ़ा आदमी

-----------------------------------------

--- मूल लेखक : गैब्रिएल गार्सिया मार्खे़ज़

--- अनुवाद : सुशांत सुप्रिय

बारिश के तीसरे दिन उन्होंने घर के भीतर इतने केकड़े मार दिए थे कि पेलायो को अपना भीगा आँगन पार करके उन्हें समुद्र में फेंकना पड़ा । दरअसल नवजात शिशु को सारी रात बुख़ार रहा था और उन्हें लगा कि ऐसा मरे हुए केकड़ों की सड़ाँध की वजह से था । मंगलवार से ही पूरी दुनिया उदास थी । समुद्र और आकाश धूसर राख़ के रंग के हो गए थे और तट पर पड़ी रेत, जो मार्च की रातों में रोशनी के चूरे-सी चमकती थी ,

अब सड़ी हुई मछलियों और कीचड़ का लोंदा बन कर रह गई थी । दोपहर के समय भी रोशनी इतनी कम थी कि जब पेलायो केकड़े फेंक कर वापस घर में घुस रहा था तो वह

ठीक से यह नहीं देख पाया कि आँगन के पिछवाड़े में जो चीज़ हिल-डुल रही और कराह रही थी वह क्या थी । बहुत पास जा कर देखने पर उसने पाया कि दरअसल वह एक बहुत बूढ़ा आदमी था जिसका चेहरा कीचड़ में धँसा था और जो बहुत कोशिश करने के बाद भी उठ नहीं पा रहा था क्योंकि उसकी पीठ पर विशाल पंख उगे हुए थे जो उसके उठने में बाधक थे ।

उस दु:स्वप्न से डर कर पेलायो भाग कर अपनी पत्नी एलिसेंडा के पास पहुँचा । वह बीमार शिशु के माथे पर ठंडे पानी की पट्टियाँ रख रही थी । पेलायो एलिसेंडा को आँगन के पिछवाड़े में ले आया । दोनों ने कीचड़ में गिरे हुए उस बूढ़े को चुपचाप हैरानी से देखा ।बूढ़े ने किसी कबाड़ी जैसे कपड़े पहने हुए थे । उसके गंजे सिर पर केवल कुछ ही सफ़ेद बाल बचे हुए थे और उसके मुँह में उस से भी कम दाँत रह गए थे । किसी बुरी तरह भीगे हुए दादाजी जैसी उसकी दयनीय हालत ने उसकी शान के वे सारे अवशेष ख़त्म कर दिए थे जो कभी उसका हिस्सा रहे होंगे । ऐसा लगता था जैसे उसके गंदे , नुचे हुए , विशाल पंख सदा के लिए कीचड़ में धँस गए थे । पेलायो और एलिसेंडा ने उस बूढ़े को इतनी देर तक और इतने क़रीब से देखा कि जल्दी ही उनकी हैरानी जाती रही और अंत में उन्हें वह बूढ़ा पहचाना-सा लगा । तब उन्होंने उससे बात करने की हिम्मत की लेकिन उसने किसी न समझ आने वाली भाषा में जवाब दिया । उसकी आवाज़ सुन कर उन्हें लगा जैसे वह कोई नाविक था ।इसलिए उन्होंने उसके तकलीफ़देह पंखों की अनदेखी कर दी और बेहद अक़्लमंदी से वे इस नतीजे पर पहुँचे कि ज़रूर वह समुद्री तूफ़ान में डूब गए किसी विदेशी जहाज़ का बचा हुआ भटकता नाविक होगा । फिर भी उन्होंने उसे देखने के लिए एक पड़ोसी महिला को भी बुला लिया जो जीवन और मृत्यु के बारे में सब कुछ जानती थी । उस महिला ने बूढ़े को देखते ही उन्हें उनकी ग़लती का अहसास दिला दिया ।

" यह एक देव-दूत है ," महिला ने उन्हें बताया । " ज़रूर वह शिशु के लिए यहाँ आ रहा होगा लेकिन बेचारा इतना बूढ़ा है कि कि वह तेज़ बारिश के थपेड़े नहीं सह पाया होगा और गिर गया होगा ।"

अगले दिन सब यह बात जान गए कि हाड़-माँस का बना एक देव-दूत पेलायो के मकान में क़ैद था । उस बुद्धिमान पड़ोसी महिला की राय में उस ज़माने में देव-दूत एक खगोलीय षड्यंत्र में शामिल बचे हुए भगोड़े थे और उन्हें दंड दिया जाना चाहिए

था । पर वे दोनों पति-पत्नी उस देव-दूत को पीट-पीट कर मार डालने की क्रूरता नहीं कर सके । हालाँकि पूरी दोपहर पेलायो एक डंडा लिए हुए रसोई में से उस पर नज़र रखे रहा और रात में सोने के लिए जाने से पहले उसने उस देव-दूत को कीचड़ में से घसीट कर बाहर निकाला और उसे मुर्ग़ियों के साथ बाड़े में बंद कर दिया ।बीच रात में जब बारिश रुक गई थी, पेलायो और एलिसेंडा तब भी केकड़े मार रहे थे । कुछ देर बाद शिशु जाग गया । अब उसे बुखार नहीं था और उसे भूख लगी थी । तब उन्हें दरियादिली महसूस हुई और उन्होंने निश्चय किया कि वे उस देव-दूत को बीच समुद्र में एक बेड़े पर तीन दिनों के खाना-पानी के साथ छोड़ देंगे । बाक़ी उसकी क़िस्मत । लेकिन पौ फटने के साथ ही जब वे आँगन में गए तो उन्होंने पाया कि उनके सारे पड़ोसी मुर्ग़ियों के बाड़े के सामने जमा थे । वे सब उस देव-दूत का मज़ाक़ उड़ा रहे थे । उनमें उसके प्रति ज़रा भी सम्मान नहीं था बल्कि वे तो बाड़े के तारों के बीच से उसकी ओर इस तरह खाने के टुकड़े फेंक रहे थे जैसे वह कोई अलौकिक प्राणी न हो , सर्कस का जानवर हो ।

उस अजीब ख़बर से चौंक कर पादरी गौनज़ैगा वहाँ सुबह सात बजे से पहले पहुँच गया । उस समय तक सुबह तड़के मौजूद दर्शकों की तुलना में थोड़े कम छिछोरे

लोग वहाँ पहुँच चुके थे और वे सभी उस बंदी के भविष्य के बारे में तरह-तरह की अटकलें लगा रहे थे ।उन में से सबसे सीधे-सादे लोगों का मानना था कि उस बूढ़े देव-दूत को विश्व का महापौर बना देना चाहिए । उनसे अलग अन्य सख़्त मिज़ाज वाले लोगों ने कहा कि उसे पदोन्नति दे कर सेनापति बना दिया जाए ताकि उसकी कमान में सभी युद्ध जीते जा सकें । कुछ स्वप्नदर्शियों का विचार तो यह था कि उसके माध्यम से पृथ्वी पर पंखों वाली एक अक़्लमंद प्रजाति के मनुष्यों को विकसित किया जा

सकता था जो बाद में पूरे ब्रह्मांड की देख-रेख की ज़िम्मेदारी ले सकते थे । किंतु पादरी बनने से पहले फ़ादर गौनज़ैगा एक लकड़हारे के रूप में कड़ी मेहनत किया करता था ।

बाड़े के तारों के पास खड़े हो कर उसने पल भर में ही अपने धर्मशिक्षण पर पुनर्विचार कर डाला । उसने बाड़े के तार खोलने का आदेश दिया ताकि वह उस बेचारे आदमी को क़रीब से देख सके जो मंत्रमुग्ध मुर्ग़ियों के बीच एक बड़े आकार की कमज़ोर मुर्ग़ी-सा लग रहा था । सुबह तड़के आए लोगों द्वारा फेंके गए फलों के छिलकों और खाने के टुकड़ों के बीच कोने में पड़ा वह बूढ़ा धूप में अपने खुले पंख सुखा रहा था ।

जब पादरी गौनज़ैगा ने मुर्ग़ियों के बाड़े में जा कर लातिनी भाषा में उसका अभिवादन किया तो विश्व की ढिठाई से बेख़बर उसने केवल अपनी प्राचीन आँखों की पलकें उठाईं और फिर वह अपनी ज़बान में कुछ बुदबुदाया । पादरी को पहले-पहल उस बूढ़े के ढोंगी होने की शंका तब हुई जब उसने पाया कि वह न तो ईश्वर की भाषा

( लैटिन ) समझ सकता था , न ही उसे एक पादरी का अभिवादन करने का शिष्टाचार आता था । फिर उसने पाया कि क़रीब से देखने पर वह बूढ़ा बिल्कुल इंसान जैसा लगता था । बाहर पड़े रहने से उसकी देह से एक असहनीय दुर्गन्ध आ रही थी ।उसके पंखों के उल्टे हिस्से परजीवियों से भरे थे । तेज़ हवा ने उसके पंखों को कई जगह नुक़सान पहुँचाया था । देव-दूतों की शानदार गरिमा के अनुरूप उसमें कहीं कुछ नहीं था ।

फिर पादरी मुर्ग़ियों के बाड़े में से बाहर निकल आया और अपने एक संक्षिप्त प्रवचन में उसने जिज्ञासुओं को अधिक भोले और सीधे होने के ख़तरों के बारे में

बताया । उसने उन्हें याद दिलाया कि शैतान धोख़ा देने के लिए कई युक्तियाँ इस्तेमाल करता है ताकि असतर्क लोग भ्रम में पड़ जाएँ । उसने दलील दी कि यदि एक हवाई जहाज़ और एक बाज़ में फ़र्क तय करते समय पंखों को आवश्यक हिस्सा नहीं माना जा सकता तो देव-दूतों को पहचानने में पंखों की भूमिका उससे भी कम है । इसके बावजूद पादरी ने वादा किया कि वह अपने वरिष्ठ पादरी को एक पत्र लिखेगा ताकि वह सर्वोच्च पादरी को एक पत्र लिख कर इस विषय में अंतिम निर्णय प्राप्त कर सके ।

किंतु सावधान रहने के पादरी के उपदेश का लोगों पर कोई असर नहीं हुआ ।बंदी देव-दूत की ख़बर इतनी तेज़ी से फैली कि कुछ ही घंटों में उस आँगन मे बाज़ार जितनी चहल-पहल हो गई और अधिकारियों को संगीन वाली बंदूक़ों से लैस सैनिक बुलाने पड़े ताकि उस बेक़ाबू भीड़ को तितर-बितर किया जा सके जो पूरा मकान गिरा देने पर आमादा थी । भीड़ ने जो गंदगी वहाँ फैलाई थी , उसे झाड़ू से बुहार कर साफ़ करने की वजह से एलिसेंडा की पीठ में दर्द होने लगा । तब उसके मन में यह विचार आ़या कि आँगन में बाड़ लगा कर क्यों न देव-दूत को देखने आने वालों के लिए कुछ रुपयों का प्रवेश-शुल्क लगा दिया जाए ।

जिज्ञासु लोग दूर-दूर से आने लगे । तरह-तरह के खेल-तमाशों से लैस , उत्सव का माहौल लिए एक घुमंतू दल वहाँ आ पहुँचा । उड़ने की कलाबाज़ी दिखाने वाला इस दल का एक कलाकार कई बार भीड़ के ऊपर से गुज़रा , किंतु लोगों ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया क्योंकि उसके पंख किसी देव-दूत के नहीं थे बल्कि किसी चमगादड़ जैसे थे । धरती पर मौजूद सबसे ज़्यादा बीमार लोग भी स्वास्थ्य-लाभ करने की आशा लिए वहाँ पहुँचने लगे । इनमें एक ग़रीब महिला थी जिसने बचपन से अपने दिल की धड़कनों को गिना था और अब उसे गिनती की सही संख्या का अंदाज़ा भी नहीं रहा था । पुर्तगाल का एक आदमी था जिसका कहना था कि सितारों का शोर उसे सोने नहीं देता । इन्हीं में नींद में चलने की बीमारी वाला एक आदमी भी था जो दिन में जागृत अवस्था में किए गए अपने सारे काम रात में उठ कर मिटा देता था । इनके अलावा कई और रोगी भी वहाँ आए जिनकी बीमारियाँ इतनी गम्भीर नहीं थीं । थकान के बावजूद पेलायो और एलिसेंडा ख़ुश थे क्योंकि एक हफ़्ते से भी कम समय में उनके कमरे रुपयों से ठसाठस भर गए थे जबकि भीतर आ कर उस बूढ़े को देखने वाले तीर्थ-यात्रियों की क़तार क्षितिज के भी आगे तक फैली हुई थी ।

वह बूढ़ा देव-दूत ही वहाँ मौजूद एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जो अपने लिए आयोजित उस पूरे तमाशे में कोई भूमिका नहीं निभा रहा था । अपने उधार के रहने की उस जगह में वह किसी तरह आराम से रहने की कोशिश कर रहा था , हालाँकि तार के पास जलाई गई पवित्र मोमबत्तियों और दीयों और लालटेनों में पड़े तेल के जलने से उठती असह्य गर्मी उसे पीड़ित कर रही थी ।

शुरू में लोगों ने उसे नैप्थलीन की गोलियाँ खिलाने की कोशिश की क्योंकि पड़ोस में रहने वाली अक़्लमंद महिला ने बताया कि देव-दूत यही खाते थे । लेकिन बूढ़े ने इसे खाने से इंकार कर दिया । उसने तीर्थ-यात्रियों द्वारा दिया गया पवित्र भोजन भी ठुकरा दिया । अंत में उसने केवल बैगन का गूदा ही खाया । क्या इसकी वजह यह थी कि वह एक देव-दूत था या यह कि वह बूढ़ा था , यह बात लोग कभी नहीं जान पाए । उसकी एकमात्र अलौकिक ख़ूबी यह थी कि वह सहनशील था ।ख़ास करके शुरुआती दिनों में , जब उसके पंखों में मौजूद खगोलीय परजीवियों की तलाश में उद्धत मुर्ग़ियाँ उसे अपने चोंचों से मार रही थीं और किसी चमत्कार की उम्मीद में अपंग और बीमार लोग उसके पंखों को नोच-नोच कर अपने रुग्ण और बेकार अंगों से लगा रहे थे ।यहाँ तक कि उन में से सबसे दयालु लोग भी उसे पत्थरों से मार रहे थे क्योंकि वे देखना चाहते थे कि उठ कर खड़े होने पर वह कैसा दिखता है ।वह केवल एक बार तभी हिला-डुला जब लोगों ने एक गरम सलाख़ से उसे दाग़ दिया ।

दरअसल वह बूढ़ा कई घंटों तक बिना हिले-डुले बैठा रहा था और लोगों को लगा था कि वह मर चुका है । गरम सलाख़ से दागे जाने पर उसने तीव्र प्रतिक्रिया दिखाई । वह चौंक कर उठा और अपनी अजनबी भाषा में न जाने क्या प्रलाप करने लगा । उसकी आँखों में आँसू छलक आए । फिर उसने अचानक अपने पंखों को तेज़ी से फड़फड़ाया जिससे मुर्ग़ियों के मल और खगोलीय धूल की उठी आँधी ने चारो ओर भगदड़ मचा दी । हालाँकि कई लोगों को यह लगा कि उसकी प्रतिक्रिया क्रोध से नहीं बल्कि पीड़ा से उपजी थी, फिर भी इस घटना के बाद लोग उससे सावधानी से पेश आने लगे । अधिकांश लोग अब समझ गए कि उसकी निष्क्रियता किसी नायक के आराम की क्रिया नहीं है बल्कि महाप्रलय लाने वाली किसी तबाही का रुका हुआ होना है ।

पादरी गौनज़ैगा ने इधर-उधर की प्रेरक कहानियाँ सुना कर छिछोरेपन पर उतारू भीड़ को किसी तरह रोक रखा था । दरअसल बंदी के साथ आगे क्या किया जाना है , वह इस बारे में धर्माचार्यों के अंतिम फ़ैसले के आने की प्रतीक्षा कर रहा था ।

लेकिन रोम से संदेश आने में देरी होती जा रही थी । वहाँ जमा हुए लोग अब तरह-तरह की बातें करके अपना समय गुज़ार रहे थे।जैसे -- बंदी की नाभि है या नहीं । उसकी बोली किसी ज्ञात भाषा से मिलती-जुलती है या नहीं । वह सुई में धागा डाल सकता है या नहीं । कहीं वह नाॅर्वे का एक ऐसा नागरिक तो नहीं जिसके पंख उग आए हैं ।

वग़ैरह । पादरी को रोम से आने वाले संदेश की प्रतीक्षा शायद अनंतकाल तक करनी पड़ जाती , किंतु सही समय पर घटी एक घटना ने उसे इस मुसीबत से मुक्ति दिला

दी ।

हुआ यह कि उन्हीं दिनों आकर्षित करने वाले दूसरे बहुत सारे खेल-तमाशों के साथ-साथ शहर में एक ऐसा तमाशा दिखाने वाला समूह भी आ पहुँचा जिस में अपने माता-पिता की बात न मानने के कारण मकड़ी बन गई एक युवती भी थी । इस तमाशे को देखने के लिए लगाया गया प्रवेश-शुल्क देव-दूत को देखने के लिए लगाए गए प्रवेश-शुल्क से कम था । न केवल यह बल्कि लोग मकड़ी बन गई युवती से उसकी दुर्दशा के बारे में तरह-तरह के प्रश्न भी पूछ सकते थे और उसकी जाँच-पड़ताल कर सकते थे ताकि किसी को भी उसकी डरावनी हालत के बारे में कोई संदेह न रहे । वह भेड़ के आकार की एक डरावनी टैरेनटुला मकड़ी थी जिसका सिर एक उदास युवती का था । सबसे ज़्यादा हृदय-विदारक बात उसका विचित्र आकार नहीं था बल्कि वह सच्ची वेदना थी जिस में डूब कर वह लोगों को विस्तार से अपने दुर्भाग्य की कथा सुनाती थी ।इस कथा के अनुसार जब वह अभी बच्ची ही थी तब एक दिन वह अपने माता-पिता की आज्ञा के बिना एक नृत्य-समारोह में भाग लेने के लिए अपने घर से निकल भागी थी । वहाँ सारी रात वह नाचती रही थी । बाद में जब वह जंगल के रास्ते घर लौट रही थी तब अचानक बादलों की भीषण गर्जना के साथ आकाश दो हिस्सों में बँट गया , बिजली कड़की और गंधक के साथ हुए उस वज्रपात ने उसे एक मकड़ी में बदल दिया । उसका एकमात्र पौष्टिक आहार मांस के वे टुकड़े थे जो उदार लोग उसके मुँह में डाल दिया करते थे ।

यह एक ऐसा तमाशा था जो मानवीय सच्चाई और डरावने सबक़ से भरपूर

था । बिना प्रयास के ही यह तमाशा उस तमाशे पर भारी पड़ा जिसमें एक घमंडी देव-दूत लोगों की ओर देखता तक नहीं था । इसके अलावा देव-दूत के नाम पर प्रचारित किए गए थोड़े-से चमत्कार लोगों को किसी मानसिक बीमारी जैसे लगे । जैसे -- बूढ़े देव-दूत की संगति में भी एक अंधे आदमी की आँखों की रोशनी तो वापस नहीं आई लेकिन उसके तीन नए दाँत उग आए । इसी तरह वहाँ आया एक अपाहिज चलने-फिरने में सक्षम तो नहीं हो पाया पर वह लाॅटरी का इनाम लगभग जीत ही गया था । ऐसे ही एक और मामले में वहाँ आए एक कोढ़ी के घावों में से सूरजमुखी के फूल उगने लगे । खिल्ली उड़ाने जैसे इन सांत्वना-चमत्कारों ने पहले ही देव-दूत की ख्याति को धक्का पहुँचाया था । उसकी रही-सही प्रसिद्धि को पूरी तरह नष्ट करने का काम मकड़ी बन गई युवती ने कर दिया । इस तरह पादरी गौनज़ैगा रात भर जगे रहने की अपनी मजबूरी से मुक्त हो गया और पेलायो का आँगन पहले के उस समय की तरह ही ख़ाली हो गया जब तीन दिनों तक लगातार बारिश होती रही थी और केकड़े घर के सोने वाले कमरों में घूमने लगे थे ।

उस घर के मालिकों के लिए शोक मनाने का कोई कारण न था । इस पूरे तमाशे के दौरान उन्होंने बहुत रुपया कमा लिया था जिससे उन्होंने एक भव्य दोमंज़िला मकान बना लिया । इस आलीशान मकान में कई छज्जे और बग़ीचे थे और एक ऊँची बाड़ थी ताकि सर्दियों में केकड़े भीतर न आ सकें । इस मकान की खिड़कियों में लोहे की सलाखें भी थीं ताकि देव-दूत भी अंदर न आ सकें । पेलायो ने ज़मींदार के कारिंदे की नौकरी छोड़ दी और शहर के पास ही ज़मीन ख़रीद कर वहाँ ख़रगोशों को पालने का व्यवसाय शुरू कर दिया । दूसरी ओर एलिसेंडा ने भी साटन कपड़े के ऊँची एड़ी वाले कुछ ऐसे पंप-जूते और रेशम की कुछ ऐसी सतरंगी पोशाकें ख़रीद लीं जैसी उस ज़माने में रविवार के दिन वहाँ की संभ्रांत महिलाएँ पहनती थीं ।

मुर्ग़ियों का बाड़ा ही एकमात्र ऐसी चीज़ थी जिस ओर कोई ध्यान नहीं दिया

गया । यदि वे इसे फ़ेनाइल से साफ़ करते थे और वहाँ धूप-बत्ती जलाते थे तो वह सब देव-दूत के सम्मान में नहीं किया जाता था बल्कि वहाँ इकट्ठा होने वाले कूड़े के ढेर से आने वाली उस दुर्गन्ध से बचने के लिए किया जाता जो किसी प्रेत की तरह हर कोने में घुस जाती और उस नए मकान को किसी पुरानी बदबूदार इमारत में बदल देती ।

शुरू-शुरू में जब बच्चे ने चलना शुरू किया तो वे बेहद सावधानी से यह सुनिश्चित करने की कोशिश करते कि वह मुर्ग़ियों के बाड़े के ज़्यादा क़रीब न जाए । लेकिन धीरे-धीरे उनका डर जाता रहा और वे बदबू के आदी हो गए । अपना दूसरा दाँत निकलने से पहले बच्चा वहाँ से मुर्ग़ियों के बाड़े में जा कर खेलने लगा था जहाँ बाड़ की तारें उखड़ गई थीं । बच्चे के प्रति भी बूढ़े देव-दूत का रवैया वैसा ही रहा जैसा अन्य लोगों के प्रति था , किंतु वह धीरज के साथ हर प्रकार की नीचता सह लेता था जैसे वह एक कुत्ता हो जिसे अपने बारे में कोई भ्रम न हो । उस बच्चे और बूढ़े देव-दूत -- दोनों को एक ही समय में छोटी माता निकल आई । जिस डाॅक्टर ने बच्चे का इलाज किया वह देव-दूत की छाती पर आला लगा कर सुनने के लोभ से ख़ुद को न रोक

सका । डाॅक्टर को देव-दूत के सीने में ऐसी घड़घड़ाहट सुनाई दी और उसके गुर्दे में से इतनी ज़्यादा आवाज़ें आती हुई सुनाई दीं कि उसे देव-दूत के जीवित बचे होने पर आश्चर्य हुआ । लेकिन उसे सबसे ज़्यादा हैरानी देव-दूत के पंखों की मौजूदगी पर हुई ।किसी भी आम आदमी जैसे लगने वाले उस देव-दूत पर वे पंख इतने सहज लग रहे थे कि डाॅक्टर यह नहीं समझ पाया कि दूसरे इंसानों के शरीर पर भी पंख क्यों नहीं थे ।

आख़िर धूप और बारिश का आघात सहते-सहते एक दिन मुर्ग़ियों का बाड़ा गिर गया । इस घटना के कुछ समय बाद बच्चे ने स्कूल जाना शुरू कर दिया । देव-दूत किसी भटकते हुए मरणासन्न व्यक्ति-सा ख़ुद को घर में इधर-उधर घसीटता फिरता । वे झाड़ू ले कर उसे सोने वाले कमरे से भगाते लेकिन पल भर बाद ही वे उसे रसोईघर में पाते । वह बूढ़ा देव-दूत एक साथ इतनी सारी जगहों पर मौजूद रहता कि वे चकरा जाते और सोचते कि उसने अपने प्रतिरूप तैयार कर लिए हैं । उन्हें संदेह होता कि उसने पूरे घर में अपने जैसे कई और देव-दूत बना लिए हैं और तब खीझी हुई

एलिसेंडा घबरा कर चिल्लाने लगती कि देव-दूतों से भरे उस जहन्नुम में रहना बेहद डरावना था ।

वह बूढ़ा देव-दूत अब बहुत मुश्किल से ही कुछ खा पाता और उसकी प्राचीन आँखों की रोशनी अब इतनी धुँधली हो गई थी कि वह अक्सर चीज़ों से टकराता

रहता । परों के नाम पर अब उसके शरीर पर उसके अंतिम बचे पंखों के नग्न ढाँचे ही रह गए थे । उसकी हालत पर तरस खा कर पेलायो ने उस पर एक कंबल डाल दिया

और उदारता दिखाते हुए उसे अड़ाते में सोने दिया । तब जा कर उन्होंने पाया कि रात में उसे तेज़ बुखार हो गया था , जिस हालत में किए जा रहे अपने प्रलाप में वह नार्वे की भाषा के कठिन शब्द बड़बड़ाता हुआ-सा लग रहा था । ऐसा कभी-कभार ही हुआ था कि वे उस बूढ़े के बारे में भयभीत हुए हों, लेकिन उस बार ऐसा-ही हुआ । दरअसल उन्हें लगा कि वह बूढ़ा देव-दूत मरने वाला था और वह अक़्लमंद पड़ोसी महिला भी उन्हें नहीं बता पाई थी कि मर गए देव-दूतों के साथ क्या किया जाता था ।

इसके बावजूद वह न केवल भीषण ठंड झेल कर बच गया बल्कि अच्छे मौसम

के शुरू होते ही उसकी हालत में सुधार भी हुआ ।आँगन के दूर के कोने में वह कई दिनों तक बिना हिले-डुले बैठा रहा । वहाँ उसे कोई नहीं देख सकता था । अगले माह के शुरू में उसके पंखों पर कुछ बड़े और खड़े बालों के गुच्छे उगने लगे । ये किसी बिजूका के परों-से थे । जैसे ये दोबारा जर्जरता का दुर्भाग्य ले कर आए हों । लेकिन बूढ़े को शायद इस परिवर्तन का कारण पता था क्योंकि वह पूरी तरह सतर्क था कि कोई इसके बारे में न जान पाए । कभी-कभी वह रात में छिप कर सितारों तले समुद्री गीत गुनगुनाता था । उसने इसकी भनक भी किसी को नहीं लगने दी ।

एक सुबह एलिसेंडा दोपहर के भोजन के लिए प्याज काट रही थी जब बीच समुद्र से बह कर आई हवा रसोईघर में पहुँची । तब वह खिड़की तक गई और उसने देव-दूत को उड़ने का पहला प्रयास करते हुए पाया । वह कोशिश इतनी बेढंगी थी कि उसके नाखूनों ने सब्ज़ियों के खेत में खाँचा डाल दिया । उसके पंखों की अनाड़ियों जैसी भद्दी फड़फड़ाहट ने अहाते को भी लगभग गिरा ही दिया था । उसके पंख हवा का ठीक से जायज़ा नहीं ले पा रहे थे , लेकिन किसी तरह वह हवा में ऊपर उठ गया ।

जब एलिसेंडा ने उसे अंतिम मकानों के ऊपर से उड़ कर जाते हुए देखा तो उसने अपने लिए और उसके लिए चैन की साँस ली । वह किसी बूढ़े गिद्ध की तरह ख़तरनाक ढंग से अपने पंख फड़फड़ाते हुए किसी तरह ख़ुद को हवा में रखे हुए था ।

एलिसेंडा प्याज काट लेने के बाद भी उसे देखती रही । वह तब तक उसे जाता हुआ देखती रही जब तक उसके लिए ऐसा करना संभव नहीं रह गया , क्योंकि तब वह बूढ़ा देव-दूत उसके जीवन में खीझ का कारण नहीं रह गया बल्कि समुद्री क्षितिज पर एक काल्पनिक बिंदु मात्र रह गया था ।

------------०------------

मूल लेखक : मार्खे़ज़

अनुवाद : सुशांत सुप्रिय

------------०------------

पता : सुशांत सुप्रिय

A-5001,

गौड़ ग्रीन सिटी,

वैभव खंड,

इंदिरापुरम,

ग़ाज़ियाबाद - 201010

( उ. प्र . )

 

ई-मेल : sushant1968@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव8:52 am

    इस अजीब सी कहानी जिसके पात्र माहौल और काल
    सभी हमसे बिल्कुल भिन्न हैं एक समाज जो अंधविश्वासों में विश्वास करता है देव दूतों की कल्पना
    को सच मानता है ऐसी कहानी जिसकी शिक्षा या उद्देश्य
    स्पष्ट नहीं रचनाकार में क्या केवल इसलिये है कि वोह
    विदेशी है और हम हर विदेशी वस्तु को श्रेष्ठ मानतेहैं जो
    आख़िरकार हमारी गुलाम मानसिकता का ही परिचायक
    है

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: गैब्रिएल गार्सिया मार्खे़ज़ की कहानी - विशाल पंखों वाला बहुत बूढ़ा आदमी
गैब्रिएल गार्सिया मार्खे़ज़ की कहानी - विशाल पंखों वाला बहुत बूढ़ा आदमी
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/07/blog-post_6.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/07/blog-post_6.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content