चीन की अर्थव्यस्था ने जापान को पीछे छोड़ दिया है। अमेरिका के बाद आज वह दूसरे पायदान पर है। उसकी आर्थिक विकास दर पिछले एक दशक से 10 से 1...
चीन की अर्थव्यस्था ने जापान को पीछे छोड़ दिया है। अमेरिका के बाद आज वह दूसरे पायदान पर है। उसकी आर्थिक विकास दर पिछले एक दशक से 10 से 14 फीसदी बनी हुई है। चीन की यह उन्नति केवल औद्योगिक और तकनीकी जंजाल फैलाने तक सीमित नहीं है,बल्कि भ्रष्टाचार के विरूद्ध कानूनी उपायों पर ठोस क्रियान्वयान और तात्कालिक न्याय प्रक्रिया के दंडात्मक फैसले भी आर्थिक विकास को गतिशील बनाए हुए हैं। हाल ही में चीन की सरकारी समाचार एजेंसी ने बीजींग से एक ऐसी खबर दी है,जो दंड के भय को दर्शाती है। चीन में राष्ट्र्रपति शी जिनपिंग ने भ्रष्टाचार के विरोध में देशव्यापी अभियान छेड़ा हुआ है। यहां तक की जांच की जद और सजा के डर से भ्रष्ट अधिकारी आत्महत्या कर रहे हैं। फरवरी 2013 से अप्रैल 2014 तक 54 अधिकारी ऐसे आत्मघाती कदम उठा चुके हैं। तमाम आधिकारियों ने समय पूर्व सेवानिवृत्ति ले ली है। यह मुहीम पिछले 18 महीने से लगातार जारी है।
एजेंसी के मुताबिक इसके सकारात्मक परिणाम निकले हैं। देश का सफेद धन काले धन में नहीं बदल रहा,नतीजतन अर्थव्यस्था मजबूत बनी हुई है। सरकार का जनता पर भारोसा भी बढ़ा है। मंहगाई नियंत्रण में है। चीन की आर्थिकी को आदर्श मानने के बावजूद मोदी सरकार काले धन पर कहीं भी आक्रामक दिखाई नहीं देती।
चीन में भ्रष्टाचार संबंधी कानून इतने सख्त हैं कि आरोप साबित होने पर मौत की सजा के साथ उनकी समस्त चल-अचल संपत्ति जब्त कर ली जाती है। यहां तक की भ्रष्ट्र आधिकारियों की पत्नियों को भी आठ साल तक की बमुशक्कत कैद की सजा का प्रावधान है। चीनी कानून का मानना है कि पत्नी और बच्चे जब इस धन के इस्तेमाल से जुड़ जाते हैं,तो आधिकारी को और-और रिश्वतखोरी के लिए उकसाते हैं। लिहाजा अपराध में इनकी अप्रत्क्ष भागीदारी शुरू हो जाती है,इसलिए इन्हें भी सजा मिलनी चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से भारत में ऐसा नहीं है। नतीजतन करोड़ो-अरबों की अनुपातहीन संपत्ति मिलने के बावजूद आला प्रशानिक आधिकारी एक दिन के लिए भी जेल नहीं जाते। मघ्य प्रदेश में आइर्एएस टीनू आनंद जोशी दंपत्ति के पास से 300 करोड़ और आइर्ए्फएस बीके सिंह के पास से भी 300 करोड़ की काली-कमाई की संपत्ति मिली थी,बावजूद ये दोनों अधिकारी एक दिन के लिए भी जेल नहीं गए ? और न ही तीन साल गुजर जाने के बावजूद इनकी सेवाएं समाप्त हुईं। मध्यप्रदेश में लोकायुक्त पुलीस ने इस प्रकृति के 102 मामलों में जांच के बाद आरोपियों पर मुकदमा चलाने की सिफारिश प्रदेश सरकार से की है। लेकिन मुख्यमंत्री इजाजत नहीं दे रहे। प्रदेश का व्यापम घोटाला भी इस समय सूर्खियों में है। मामले की जांच कर रही एसटीएफ का अनुमान है कि अपात्र अभ्यार्थियों को नौकरी देने में करीब 200 करोड़ का लेन-देन हुआ है।
इन चंद बानगियों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि समानांतर चल रही काले धन की अर्थव्यस्था कितनी मजबूत है कि यदि नया कालाधन उत्सर्जित न हो और विदेशों में जमा कालाधन भी वापस आ जाए तो राजकोषीय घाटा शून्य में तब्दील हो जाएगा। काले धन का गौरतलब पहलू यह भी है कि यही काले कारोबारी जमाखोरी और काला बाजारी के अगुआ है। इन्हीं के दर्जनों भूखंड,आलीशान मकान फ्लैट और कृषि फार्म हैं। तय है,ये भ्रष्टाचारी न केवल पारदर्शी अर्थव्यस्था के प्रमुख रोड़ा हैं,बल्कि मंहगाई बढ़ाने के कारक भी हैं। काली-कमाई खपाने का सबसे आसान माध्यम जमीन-जायदाद और सोना,चांदी व हीरे-मोती की खरीदारी है। भ्रष्टाचारी इन्हें न खरीद पाएं,ऐसी इच्छा शाक्ति सरकार ने अब तक नहीं दिखाई ?
गौरतलब है,साठ के दशक में पंडित नेहरू सरकार ने ब्रिटिश अर्थशास्त्री कालाडोर से भारतीय अर्थव्यस्था को चुस्त-दुरूस्त व भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए सलाह मांगी थी। तब कालाडोर ने महत्पूर्ण सुझाव दिया था कि भ्रष्टाचारी काला धन के मार्फत जमीन जायदाद और बहूमूल्य जेवरातों की खरीदारी में रिश्वत की नकद कमाई खपा देते हैं। ये हालात उत्पन्न न हों अव्वल तो ऐसे सख्त कानूनी उपाय हों, अथवा इन खरीदों पर ‘व्यय कर‘लगाया जाए। यह वही दौर था,जब सेना में आजादी के बाद जीप खरीदी का पहला घोटाला सामने आया था। लेकिन नेहरू ने इस काले धन को देश का धन, देश में ही रहने की दलील देकर ऐसा पर्दा डाला कि यह धन आज भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए मुसीबत बन हुआ है। अनुमान है 20 से 25 लाख करोड़ का स्वदेशी कालाधन विदेशी बैंकों में जमा है।
याद रहे,कठोर कानूनों के निष्पक्ष अमल के भय के चलते ही चीन ने संतुलित आर्थिक विकास किया। नतीजतन वहां 60 करोड़ लोगों को गरीबी से छुटकारा मिल गया। चीन अपनी अर्थव्यस्था को ऐसा रूप देना चाहता है,जो घरेलू उत्पाद के निर्यात पर आधारित हो। चीन की कुटिल चतुराई देखिए कि चीन हमसे तो लोहा और अन्य कच्चे अयस्क बेहद सस्ती दरों में खरीदता है और बदले में खिलौने,हल्की गुणवत्ता के इलैक्ट्रोनिक उपकरण और साइकलें हम चीन से निर्यात करते हैं। ये सभी वस्तुएं ऐसी हैं,जिनका उत्पाद हमारे यहां होता है और इन्हीं चीजों को निर्यात करके हम अपने घरेलू उद्योग को भ्टटा बैठाने में लगे हैं। आदान-प्रदान की इन विसंगतिपूर्ण शर्तों के चलते भारत और चीन के बीच व्यापार असंतुलन 29 अरब डालर से भी उपर बना हुआ है। ऐसी असमानताओं को दूर करने के इन बजटों में कोई प्रावधान नहीं हैं। लिहाजा हमें केवल चीन की बुलट और हाइर्स्पीड ट्रेनों की ओर ताकने की ही जरूरत नहीं है,बल्कि उसकी अर्थव्यस्था की संरचना का आकलन करके जो भारतीय अर्थव्यस्था की मजबूती के लिए जरूरी हैं,उन आदर्श उपायों को आजमाने की जरूरत है।
प्रमोद भार्गव
लेखक/पत्रकार
शब्दार्थ 49,श्रीराम कालोनी
शिवपुरी म.प्र.
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लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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