पुस्तक समीक्षा एक सार्थक व्यंग्य संग्रह-‘‘कार्यालय तेरी अकथ कहानी ‘‘ व्यंग्यकार – वीरेन्द्र सरल समीक्षक - मुकुंद कौशल व्यंग्य लेखन आज ...
पुस्तक समीक्षा
एक सार्थक व्यंग्य संग्रह-‘‘कार्यालय तेरी अकथ कहानी ‘‘
व्यंग्यकार – वीरेन्द्र सरल
समीक्षक - मुकुंद कौशल
व्यंग्य लेखन आज की सर्वाधिक लोकप्रिय विधा है। ब्यवस्था की संड़ाध सहित राजनैतिक,सामाजिक विद्रुपताओं को बेनकाब करने की कारगार पहल व्यंग्य के माध्यम से हो रही है। वीरेन्द्र सरल का व्यंग्य संग्रह-‘‘कार्यालय तेरी अकथ‘‘ कहानी वर्तमान में घटित हो रही अनेक छोटी बड़ी घटनाओं की शिनाख्त करते हुये अपने उद्देश्यपरक नतीजे तक पहुँचने का उपक्रम है। मुझे लगता है कि उद्देश्य परक व्यंग्य की प्रांसगिकता पहले की अपेक्षा आज अधिक है । साहित्य जब हाशिये पर जाने लगे तब समाज भी पतनोन्मुख हो जाता है। व्यंग्य के नाम पर यूँ तो आज ढेर सारी शब्द रचनायें निरन्तर प्रकाशित हो रही है ,किन्तु विडंबना यह है कि उसमें व्यंग्य ढूंढ़े नहीं मिलता । व्यंग्य रचना वस्तुतः वही सार्थक होती है जो पाठकों सहित उसे भी गुदगुदाए ,जिस पर व्यंग्य किया जा रहा हो। वीरेन्द्र ‘अपनी बात‘ के अन्तर्गत ,पूर्ण विन्रमता के साथ यह घोषित करते हैं कि उनके लेखन का उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं है ,जबकि कतिपय लिख्खाड़ व्यंग्य के नाम पर अपनी अपानवायु रूपी भड़ास ही विसर्जित करते दिखाई पड़ते हैं । वीरेन्द्र सरल कमोबेश इस दुर्भावना से परे दिखायी पड़ते हैं। श्री विनोद शंकर शुक्ल जो स्वयं एक बड़े व्यंग्यकार एवम् प्रबुद्ध समीक्षक हैं, ने लिखा है कि ‘‘वीरेन्द्र सरल पर व्यंग्य के किसी ‘मुगल-ए- आजम‘ की छाप नहीं है ।‘‘ वीरेन्द्र के लिये यह वाक्य किसी प्रमाणपत्र से कमतर नहीं है। ‘‘कार्यालय तेरी अकथ कहानी ‘‘ नामक कुल 32 व्यंग्य रचनाओें के समीक्ष्य व्यंग्य संग्रह में पहला व्यंग्य इसी शीर्षक से है,जिसमें कार्यालयों में खुले आम ली जाने वाली रिश्वत को ही प्रमुख विषय बनाया गया है ।
संग्रह में क्रिकेट खेल का वैचित्र्य , साक्षात्कार की जटिलता , भ्रष्ट आचरण का बाहुल्य, वैवाहिक प्रंसगों की हास्यास्पद विभीषिका, शराबखोरी एवम् ढकोसले बाजियों पर लिखा गया व्यंग्य -‘‘शांति की खोज ‘‘ सहित ‘‘गरीबी रेखा‘‘ आदि में मध्यमवर्गीय समाज और उसके जीवन की जटिलतायें पलकें झपकाती हुई नजर आती हैं । संग्रह में जहाँ ‘‘मूँछ‘‘ और दहेज जैसे व्यैक्तिक चित्र हैं वहीं आज की ज्वंलंत समस्या शिक्षाकर्म और शैक्षणिक संस्थानों की वर्तमान स्थिति पर ‘‘शिक्षक की आत्मकथा जैसे करारा व्यंग्य भी है। नेता भजनावली में जहाँ लम्पट राजनीति बाजो का काला चिट्ठा है वहीं खतरनाक हड़ताल में आमरण अनशन के नाम पर उपवासीय थोथे ढकोसलों की नौटंकी का पर्दाफाश किया गया है । समकालीन परिदृश्य मे जहाँ सम्मानों और पुरूष्कारों का अवमुल्यन होता चला जा रहा है और उन्हें किन्हीं परोक्ष या अपरोक्ष सूत्रों द्वारा संचालित माना जा रहा है, तब सम्मानों-अभिनन्दनों की वास्तविकता उजागर करता व्यंग्य-‘‘सम्मान की चाह‘‘ काफी समीचीन प्रतीत होता है । इस व्यंग्य का संवाद दृष्टब्य है-‘‘अबे सौ दो सौ रूपयों में रेवड़ी की तरह सम्मानपत्र बेचे जा रहे हैं ,ये प्रतिभाओं की हत्या नहीं है क्या?‘‘ बड़ी गंभीरता के साथ सम्मान षंड़यंत्रों का पर्दाफाश करता हुआ यह व्यंग्य काफी मौजूं है । इस प्रकार रोजगार की समस्या पर केन्द्रित व्यंग्य-दृष्टिकोण भी ब्यवस्था पर करारी चोंट करता है । मुर्दे की बात,मंगलग्रह की यात्रा,खटमलों का आत्मसमर्पण,रावण की आत्मा, भयानक सौंदर्य ,मेरे-उनके बीच और हाय मेरी तोंद में भी यद्यपि व्यंग्यात्मक शैली का उपयोग किया गया है किन्तु ये सभी शीघ्रता में लिखी गई रचनाएं प्रतीत होती हैं ।व्यंग्यकार ने आब्जेक्ट पर सीधे निशाना लगाने के बदले फंतासी गढ़कर भी अपने काम को अंजाम दिया है जैसे-मृत्युलोक ,यमराज ,उल्लू ,चन्द्रयात्रा,नर्कयात्रा ,जंगल में चुनाव इत्यादि । कुछेक व्यंग्य नितांत काल्पनिक घटनाचक्रों पर भी आधारित हैं जिसमें लेखक की कल्पनाशक्ति के दर्शन होते हैं। यहाँ विशेष ध्यान देने योग्य जो तथ्य है वह यह है कि कल्पना में भले ही वास्तविकता न हो किन्तु विश्वस्नीयता उसका अनिवार्य तत्व है ।वस्तुतः व्यंग्य के नाम पर वर्तमान में बहुत कुछ लिखा जा रहा है और इस बाहुल्य में दुहराव का खतरा निरन्तर बना रहता है । नये व्यंग्यकारों के समक्ष विषय और कथ्य के अतिरिक्त भाषा-शैली और नित नाविन्य भी एक चुनौती है । इस मायने मे वीरेन्द्र सरल की शैली आशा जगाती है । इस संग्रह में गरीबी रेखा ,खटमलो का आत्मसमर्पण बेहतर रचनाएं हैं।
वीरेन्द्र की इन रचनाओं से गुजरते हुये एक विस्तृत फलक में फैले रंग-बिरंगे परिदृश्यों का आभास होता है। अपने समय की तमाम जटिलताओं के बीच उन्होने व्यंग्य की चुनौती को स्वीकारा है ,यह महत्त्वपूर्ण हैं । इस संग्रह की अंतिम रचना-‘‘विकलांग कवि सम्मेलन‘‘ में कवि सम्मेलनीय जोड़-तोड़,उठापटक और मंच लोलुप कवियों की वास्तविक मनःस्थिति पर हास्य मिश्रित व्यंग्य है । रचना के पात्र भी हमारे ही परिवेश के हैं । भाषा का स्तर सरल और बोधगम्य है।
धमतरी जिले के ग्रामीण परिक्षेत्र में रहकर एकाकी साधना करने वाले वीरेन्द्र सरल के अध्ययन ,अभ्यास और सर्वोत्तम के अनुसरण का ही यह सुपरिणाम है कि वे ऐसा व्यंग्य संग्रह प्रस्तुत कर पाए हैं । सामाजिक कुरीतियों एवं देश के रगों में फैले भ्रष्ट्राचार के विरूद्ध व्यंग्य को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करने वाले लेखक की लेखनी हमेशा अपने उद्देश्यों में सफल हो, इन्हीं कामनाओं के साथ संग्रह हेतु बधाई।
मुकुंद कौशल
एम516,‘कौशल विला‘,पद्नाभपुर
दुर्ग (छत्तीसगढ़ )पिन-491001
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