गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़ का उपन्यास - उस मौत का रोजनामचा (6)

SHARE:

गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़ के उपन्यास Chronicle of a death foretold  का अनुवाद अनुवादक – सूरज प्रकाश mail@surajprakash.com   पिछली...

गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़

के उपन्यास

Chronicle of a death foretold 

का अनुवाद

अनुवादक – सूरज प्रकाश

mail@surajprakash.com

 

पिछली किश्तें - 

 

  किश्त 1 | किश्त 2 | किश्त 3 | किश्त 4 | किश्त 5 |

 

मेरा भाई लुई एनरिक रसोई के दरवाजे से घर के अंदर गया था। मेरी मां ने वह दरवाजा इसलिए बिन ताला लगाये छोड़ रखा था ताकि हमारे पिता को हमारे आने की आहट न लगे बिस्‍तर पर जाने से पहले वह गुसलखाने में गया, लेकिन टायलेट सीट पर बैठे बैठे ही उसे नींद आ गयी जब मेरा भाई जाइमे स्‍कूल जाने के लिए उठा तो उसने एनरिक को फर्श पर ही औंधे मुंह लेटा पाया वह नींद में ही गुनगुना रहा था मेरी नन बहन, जो बिशप की अगवानी करने के लिए नहीं जा रही थी क्‍योंकि उसमें अभी भी रात की खुमारी बाकी थी, एनरिक को उठा नहीं पायी थी, “जब मैं गुसलखाने में गयी तो उस वक्‍त ठीक पाँच बजे थे।” उसने मुझे बताया था। बाद में मेरी दूसरी बहन मार्गोट घाट पर जाने से पहले नहाने के लिए गुसलखाने में गयी तो वह बड़ी मुश्‍किल से एनरिक को घसीट कर उसके बेडरूम तक ले जा पायी थी। नींद ही नींद में एनरिक ने बिशप की नाव के भोंपू की आवाज़ सुनी थी वह उठा तक नहीं था। वह पीने पिलाने से बुरी तरह से थका हुआ फिर से गहरी नींद में सो गया था। तभी मेरी नन बहन लपकती हुई, जैसी कि उसकी आदत थी, उसके बेडरूम तक गयी थी और पागलों की तरह रोते चिल्लाते हुए उसे जगाने लगी थी - उन्‍होंने सैंतिएगो नासार को मार डाला है

 

4

डॉक्‍टर दिओनिसिओ इगुआरां की अनुपस्थिति में फादर कारमैन एमाडोर को जिस कठिन शव परीक्षा के लिए खुद को प्रस्तुत कर देना पड़ा था, उसमें चाकुओं के गोदने से हुए जख्म तो शुरुआत भर थे,“यह ठीक वैसा ही था जैसे उसके मरने के बाद हमने फिर से उसकी हत्‍या कर दी हो।” बुजुर्ग पादरी ने कैलेफॉल में अपने रिटायरमेंट के दौरान मुझे बताया था,“लेकिन ये मेयर का आदेश था और उस जंगली के आदेश चाहे कितने भी ऊट पटांग हों, मानने ही थे।” यह बात पूरी तरह सच भी नहीं थी। उस मनहूस सोमवार की अफरा तफरी में कर्नल अपोंते ने प्रदेश के गवर्नर के साथ तार संदेश के जरिये तुरंत बात की थी और गवर्नर ने उसे शुरुआती कदम उठाने के लिए अधिकार दे दिये थे। इस बीच वह एक जांचकर्ता मजिस्ट्रेट को रवाना कर रहा था। मेयर एक भूतपूर्व ट्रुप कमांडर था और उसे कानूनी मसलों का जरा भी अनुभव नहीं था। इसके अलावा, वह इतना घमंडी था कि किसी से जा कर यह पूछने का सवाल ही नहीं था कि उसे कहां से शुरुआत करनी चाहिये।

सबसे पहले उसे शव परीक्षा की चिंता लगी। हालांकि क्रिस्‍तो बेदोया चिकित्सा विज्ञान का विद्यार्थी था, लेकिन उसने सैंतिएगो नासार के साथ अपनी अंतरंग दोस्ती का वास्ता दे कर अपना पल्ला छुड़वा लिया था। मेयर को लगा कि डॉक्‍टर दिओनिसिओ इगुआरां के वापिस लौटने तक शव को रेफ्रिजेरेटर में रखा जा सकता है लेकिन उसे मानव के आकार का कोई फ्रीजर ही नहीं मिला। जिस फ्रीजर से काम चल सकता था, वह खराब पड़ा था। शव कमरे के बीचों बीच आम जनता के दर्शनों के लिए लोहे की तंग सी खटिया पर रखा हुआ था और लोग बाग उसके लिए अमीरों जैसा ताबूत तैयार करने में जुटे हुए थे। सोने के कमरों में से और पड़ोसियों के घरों से पंखे ले आये गये थे लेकिन शव को देखने के लिए इतने ज्‍यादा लोग लालायित थे कि फर्नीचर को पीछे धकेलना पड़ा था और परिंदों के पिंजरे और पौधों के गमले उतार कर हटा देने पड़े थे। इसके बावजूद गरमी नाकाबिले बरदाश्त थी। इतना ही नहीं, मौत की गंध से कुत्‍ते बेचैन हो गये थे।

जब मैं वहां पहुंचा था और सैंतिएगो नासार रसोई घर में पड़ा तड़प रहा था, तब से कुत्‍ते लगातार किकिया रहे थे। मैंने देखा था कि दिविना फ्लोर खुद जोर जोर की हिचकियां लेते हुए रो रही थी और एक छड़ी की मदद से कुत्‍तों को परे धकेल रही थी।

“जरा मेरी मदद कीजिये,” वह मुझे देख कर चिल्लायी थी, “ये कुत्‍ते उसकी अंतड़ियां ही चबा डालना चाहते हैं।”

हमने कुत्‍तों को अस्तबल में ले जा कर बंद कर दिया था। लिनेरो प्‍लेसिडा ने बाद में हुक्‍म दिया था कि अंतिम संस्कार होने तक कुत्‍तों को कहीं दूर ले जाया जाये। लेकिन दोपहर होने तक पता नहीं कुत्‍ते उस जगह से छूट कर पागलों की तरह घर में घुस आये थे। उन्‍हें देखते ही लिनेरो प्‍लेसिडा अपना आपा खो बैठी थी, “ये जंगली खजैले कुत्‍ते,” वह चिल्लायी थी,“मार डालो इन्‍हें।”

तुरंत ही हुक्‍म की तामील की गयी थी और घर एक बार फिर शांत हो गया था। तब तक शव की हालत को ले कर किसी को चिंता नहीं थी। चेहरा ठीक ठाक बचा रह गया था। चेहरे पर वैसे ही भाव थे जैसे गाते समय होते थे। क्रिस्‍तो बेदोया ने अंतड़ियां समेटी थीं और उन्‍हें उनके ठिकाने पर रख दिया था। उसने शव को एक कपड़े में लपेट दिया था। फिर भी दोपहर के आसपास घावों से सिरप के से रंग का एक द्रव बहने लगा था, जिससे मक्खियां भिनभिनाने लगी थीं। उसके ऊपरी होंठ पर एक गुलाबी सा धब्बा उभरा और हौले हौले पानी पर बादल की परछाईं की मानिंद उसके बालों तक फैलता चला गया। उसका चेहरा जो हमेशा खिला खिला और सहज रहा करता था, जैसे बैर भाव से भर गया था। उसकी मां ने उसका चेहरा ढक दिया। कर्नल अपोंते को अब यह बात समझ में आ गयी कि अब वे और अधिक इंतजार नहीं कर सकते। उन्‍होंने फादर एमाडोर को शव परीक्षा करने का आदेश दिया,“उसे एक हफ्ते बाद कब्र से खोदने से हालत और खराब हो जायेगी।” उन्‍होंने कहा था। पादरी ने चिकित्सा का अध्ययन सालामांका में किया था लेकिन स्नातक होने से पहले ही अपने गुरुकुल में प्रवेश ले लिया था। मेयर इस बात को जानते थे कि फादर द्वारा की गयी शव परीक्षा की कोई कानूनी हैसियत नहीं होगी। इसके बावजूद मेयर ने पादरी को शव परीक्षा करने के लिए कहा था।

यह शव परीक्षा एक कत्‍ल था जो पब्लिक में किया गया था। इसमें एक ड्रगिस्‍ट और फर्स्‍ट ईयर के एक मेडिकल छात्र की मदद ली गयी थी। छात्र छुट्टियों पर घर आया हुआ था। ड्रगिस्‍ट ने नोट्स लिये थे। उनके पास छोटी मोटी सर्जरी के काम आने वाले कुछेक उपकरण उपलब्ध थे। बाकी सामान कारीगरों के औजार वगैरह थे। फिर भी उन्‍होंने शव के साथ जो कुछ बरबादी की, उस सबके बावजूद फादर एमाडोर की रिपोर्ट ठीक ठाक थी और जांचकर्ता अधिकारी ने इसे एक महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में अपनी टिप्पणी में शामिल किया था।

किये गये कई घावों में से सात घाव घातक पाये गये थे। आगे की तरफ से जो गहरे घाव किये गये थे, उनसे जिगर लगभग दो टुकड़ों में कट गया था। उसके पेट में वार किये गये थे जिसमें से एक घाव इतना गहरा था कि बिल्‍कुल आर पार चला गया था और उससे अग्‍नाशय पूरी तरह कट फट गया था। उसकी बड़ी आंत में भी छ: घाव पाये गये थे और छोटी आंत में चाकुओं के वारों की कोई गिनती ही नहीं थी। उसकी पीठ की तरफ से सिर्फ एक ही बार चाकू घुसेड़ा गया था, तीसरी पसली के आसपास जिससे दाहिना गुर्दा छलनी हो गया था। उसके गुदा द्वार में खून के थक्‍के जमे हुए थे। उसके आमाशय के बीचों बीच वर्जिन ऑफ कारमेल का एक मैडल मिला था। इसे सैंतिएगो नासार ने चार बरस की उम्र में निगल लिया था। सीने की तरफ घावों के दो निशान नज़र आये थे। इनमें से एक घाव दायीं तरफ की दूसरी पसली में था और इससे फेफड़ा चिर गया था। दूसरा घाव बायीं कांख के बिलकुल पास था। उसके हाथों और बाजुओं पर भी घावों के निशान पाये गये थे। दो जख्म आड़े थे। एक जांघ पर और दूसरा उदर की मांसपेशियों पर। दायें हाथ में चाकू काफी गहराई तक घोंपा गया था। रिपोर्ट में बताया गया था: सब कुछ सूली पर चढ़ाये गये यीशु मसीह के क्षत विक्षत शव की तरह लग रहा था। उसका मस्तिष्क किसी सामान्य अंग्रेज की तुलना में साठ ग्राम अधिक पाया गया था और फादर एमाडोर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि उसका जिगर बहुत बढ़ा हुआ था। इसकी वजह उसने यकृत शोथ का नीम हकीमी इलाज बतायी थी, “कहने का मतलब यह है,” उसने मुझे बताया था,“वैसे भी उसकी ज़िंदगी के गिने चुने दिन ही बचे थे।”

डॉक्टर दिओनिसियो इगुआरां, जिसने दरअसल, सैंतिएगो नासार का बारह बरस की उम्र में यकृत शोथ का इलाज किया था, शव परीक्षा को ले कर खासी नाक भौं सिकोड़ रहा था,“कोई पादरी ही इतना जड़ बुद्धि हो सकता है,” उसने मुझे बताया था,“यह बात उसके भेजे में बिठाने का कोई ज़रिया नहीं है कि नौसिखुए इस्‍पानियों की तुलना में हम उष्ण कटिबंध लोगों का जिगर बड़ा होता है।” रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया था कि मृत्‍यु सात भीषण घावों में से किसी एक घाव में से अत्यधिक खून बह जाने के कारण हुई है।

उन्‍होंने हमें एक बिल्‍कुल दूसरा ही शरीर वापिस किया था। आधा कपाल तो चीरफाड़ से ही बरबाद कर दिया गया था और उसका वह मनमोहक चेहरा जो मौत के बाद भी बचा रह गया था, अब अपनी पहचान खो चुका था। इतना ही नहीं, पादरी ने कटी फटी अंतड़ियों को जड़ से ही खींच कर बाहर निकाल दिया था और आखिर में उसे समझ नहीं आया था कि उनका क्‍या करे। कुछ भी नहीं सूझा तो गुस्‍से में बड़बड़ाते हुए उसने उन्‍हें कूड़े के ढेर के हवाले कर दिया था। स्‍कूल की इमारत की खिड़कियों से जो बचे खुचे तमाशबीन ताका झांकी कर रहे थे, उनकी दिलचस्पी बिल्‍कुल खत्‍म हो गयी। पादरी का हैल्‍पर बेहोश हो गया और कर्नल लाजारो अपोंते, जिसने इससे कहीं अधिक वीभत्‍स कत्लेआम देखे और किये भी थे, हमेशा हमेशा के लिए शाकाहारी बन गया। उसका रुझान आध्‍यात्‍मवाद की ओर हो गया।

शरीर का खाली खाली ढांचा जिसमें कटे फटे अंग और चूना ठूंस दिये गये थे, और जिसे बड़ी बेदर्दी से मोटी सुतली और बोरे बंद करने वाली मोटी सुई से किसी तरह से सी दिया गया था, इतनी खस्ता हालत में जा पहुंचा था कि जब हम उसे रेशमी झालरों वाले नये ताबूत में रख रहे थे तो वह शव गिरा पड़ा जा रहा था,“मुझे लगा, इस तरह से इसे अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकेगा।” फादर एमाडोर ने मुझे बताया था।

जो कुछ हुआ था, इसके ठीक विपरीत था। उसे हमें जल्दबाजी में सांझ ढले दफनाना पड़ा था। वह बेहद खराब हालत में था और उसे घर में रख पाना संभव नहीं रहा था।

बादलों भरा दिन शुरू हो चुका था। यह मंगलवार था। उस भीषण वक्‍त के बाद मैं सो पाने की हिम्‍मत नहीं जुटा पा रहा था। मैं सीधे ही मारिया एलेक्‍जंद्रीना सर्वांतीस के घर के दरवाजे पर जा पहुंचा था। शायद उसने अब तक बार बंद न किया हो। पेड़ों से लटकते कद्दू के आकार के लैम्‍प अभी भी जल रहे थे और नाचने गाने वाले आंगन में कई जगह आग जल रही थी। उन पर बड़े बड़े भगौनों में पानी खौल रहा था। मुलैट्टो लड़कियां अपनी पार्टी वाली पोशाकों को मातमी रंग में रंगने का तामझाम करने में लगी हुई थीं। उस प्रभात वेला में मैंने मारिया एलेक्‍जंद्रीना सर्वांतीस को हमेशा की तरह जगा हुआ पाया। वह हमेशा की तरह बिल्‍कुल नंगी थी। जब कोई बाहरी आदमी नहीं होता था तो वह ऐसे ही रहा करती थी। वह अपने राजसी पलंग पर किसी तुर्की परी की मानिंद चौकड़ी भरे बैठी थी। चारों ओर खाने पीने की पचासों चीजें बिखरी हुई थीं। गोमांस के कटलेट्स, उबला हुआ चिकन, सूअर के पेट के हिस्‍से का मांस। इनके अलावा केलों और सब्जियों का इतना बड़ा ढेर कि पाँच आदमी आराम से पेट भर सकते थे। मातम से उबरने का उसके पास एक ही तरीका होता कि भूख से ज्‍यादा खाओ। लेकिन इस तरह सोग मनाते मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा था। मैं कपड़े उतारे बगैर उसकी बगल में जा कर लेट गया। एक भी शब्‍द बोले बिना। अपने तरीके से सोग मनाते हुए। मैं सैंतिएगो नासार की किस्‍मत की भीषणता के बारे में सोच रहा था, जिसने न केवल उसकी मौत से बल्‍कि उसके शरीर के क्षत विक्षत किये जाने से और काट पीट कर बिलकुल ही खत्‍म कर दिये जाने से उसके जीवन के बीस बरस की खुशियों को समेट लिया था।

मैंने एक ख्वाब देखा कि एक औरत अपनी बाहों में एक नन्ही सी बच्ची को लिये चली जा रही है और बच्ची सांस लेने के लिए रुके बिना चबर चबर चबाये जा रही है। और भुट्टे के अधखाये दाने औरत की ब्रेजरी में गिरे जा रहे हैं। उस औरत ने मुझसे कहा,“ ये लिजलिजे कठफोड़वे की तरह चबाती चुभलाती है।” अचानक मैंने महसूस किया कि बेचैन उंगलियां मेरी कमीज के बटन से खेल रही थी। मैंने प्रेम की उस हिंसक पुजारिन की खतरनाक गंध को महसूस किया। वह मेरी बगल में लेटी हुई थी। मैंने खुद को कोमलता के रेतीले सागर में धंसते महसूस किया। अचानक ही उसके हाथ थम गये। वह छिटक कर मुझसे दूर हो गयी और मेरे जीवन से बाहर हो गयी,“नहीं, मैं नहीं कर सकती,” उसने कहा था, तुममें उसकी गंध आ रही है।”

सिर्फ मैं ही नहीं था जिससे सैंतिएगो नासार की गंध आती थी। उस रोज़ हर आदमी से सैंतिएगो नासार की गंध आती रही थी। विकारियो बंधु उस जेल में उसकी गंध महसूस करते रहे, जहां मेयर ने उन्‍हें तब तक के लिए सलाखों के पीछे बंद कर रखा था, जब तक वह उनके बारे में कोई फैसला लेने के बारे में सोच सके। “मैंने खुद को साबुन और पुराने कपड़े से रगड़ रगड़ कर धोया, पोंछा, लेकिन मैं उस गंध से मुक्त नहीं हो पाया था।” पैड्रो विकारियो ने मुझे बताया था।

उन्‍होंने तीन रातें बिना नींद के गुज़ारी थीं लेकिन उन्‍हें ज़रा सा भी आराम नहीं मिला था। इसका कारण यह था कि जैसे ही वे नींद में जाने को होते, उन्‍हें लगता, वे बार बार उसी अपराध को दोहरा रहे हैं।

अब, पाब्‍लो विकारियो, जो कमोबेश बूढ़ा हो चला था, बिना प्रयास के उस अंतहीन दिन के बारे में बताने की कोशिश कर रहा था,“यह सब कुछ दोबारा फिर से जागने की तरह था।” इस वाक्यांश ने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया था कि जेल में उनके लिए सबसे असहनीय बात उनकी शांति, सहजता रही होगी।

जेल का कमरा दस फुट लम्बा और दस फुट चौड़ा था। उसकी छत ऊंची थी जिसमें से ऊपर की रौशनी आती थी। छत में लोहे की कड़ियां लगी हुई थीं। कमरे में एक पोर्टेबल पाखाना था और हाथ धोने के लिए एक वाशबेसिन था। साथ ही, सुराही, भूसे की चटाई वाले दो कामचलाऊ बिस्‍तर उसमें लगे थे। कर्नल अपोंते, जिसके आदेश पर यह कमरा बनाया गया था, ने बताया था कि उस इलाके में इससे बेहतर कोई होटल नहीं था जिसमें इन सब मानवीय सुविधाओं का ख्याल रखा गया हो। मेरा भाई लुई एनरिक इससे सहमत था क्‍योंकि एक रात संगीतकारों के बीच झगड़ा फसाद करने के चक्‍कर में उन्‍होंने उसे एक रात के लिए अंदर कर दिया था। मेयर ने उस पर इतनी मेहरबानी ज़रूर की थी कि उसे एक मुलैट्टो लड़की अपने साथ रखने की अनुमति दे दी थी।

शायद सवेरे आठ बजे विकारियो बंधुओं ने भी इसी तरह की बात के बारे में सोचा होगा। उस वक्‍त वे खुद को अरब लोगों से सुरक्षित महसूस कर रहे थे। तब उन्‍हें यह अहसास सुकून दे रहा था कि उन्‍होंने अपनी ड्यूटी पूरी कर ली है। उन्‍हें सिर्फ एक ही चीज़ लगातार परेशान कर रही थी। वह थी गंध की मौजूदगी। उन्‍होंने ढेर सारा लॉंड्री वाला साबुन, पुराने चीथड़े वगैरह मंगवाये। उन्‍होंने अपनी बाहों और चेहरे से रगड़ रगड़ कर खून के दाग़ पोंछे। उन्‍होंने मल मल कर अपनी रक्‍त सनी कमीजें धोयीं, लेकिन उन्‍हें चैन नहीं आया। पैड्रो विकारियो ने पेशाब लाने वाली अपनी दवाइयां और जीवाणुरहित पट्टियां भी मंगवायीं ताकि वह अपनी पट्टियां बदल सके। वह सवेरे के वक्‍त दो बार ढेर सारा पेशाब करने में सफल रहा। इसके बावजूद, उसके लिए ज़िंदगी इतनी बदतर होती चली जा रही थी कि जैसे जैसे दिन ढलता गया, बदबू दूसरे स्थान पर आ गयी। दोपहर दो बजे के करीब, जब गरमी इतनी अधिक थी कि उन्‍हें पिघला डालती, पैड्रो विकारियो के लिए बिस्‍तर पर लेटे रहना दूभर हो गया और यही बेचैनी उसे खड़ा भी नहीं रहने दे रही थी। दर्द उसके पेढू़ से चढ़ते चढ़ते गले तक आ पहुंचा था। उसका पेशाब रुक गया था और इसे इस भय ने, इतनी मजबूती से, पक्‍के तौर पर जकड़ लिया था कि वह दोबारा पूरी ज़िंदगी कभी सो नहीं पायेगा। “मैं ग्‍यारह महीने तक जागता रहा था,” उसने मुझे बताया था। मैं उसे इतनी अच्‍छी तरह से तो जानता था कि मान सकूं – वह झूठ नहीं बोल रहा था। वह कुछ भी खा नहीं सका था। दूसरी ओर, पाब्‍लो विकारियो ने, जो कुछ भी उसके सामने लाया गया, उसमें से थोड़ा बहुत चख भर लिया। उसे खाना खाये पन्द्रह मिनट भी नहीं बीते थे कि वह घातक हैजे का शिकार हो गया। शाम को छ: बजे, जब वे लोग सैंतिएगो नासार के शव की चीरा फाड़ी में लगे हुए थे, मेयर को बुलावा भेजा गया। पैड्रो विकारियो को पक्‍का यकीन हो चला था कि उसके भाई को ज़हर दिया गया है। “वह मेरी नज़रों के सामने जैसे पानी में बदलता चला जा रहा था।” पैड्रो विकारियो ने मुझे बताया था। “और हम इस ख्याल से मुक्त ही नहीं हो पा रहे थे कि इसके पीछे तुर्कों की कोई चाल हो सकती है।” उस समय तक वह दो बार पोर्टेबल लैट्रिन को पूरी तरह भर चुका था। इतना ही नहीं, जो गार्ड उनकी निगरानी कर रहा था, छः बार उसे टाउन हाल के पाखाने तक ले कर गया था। वहां उसे कर्नल अपोंते ने देखा था। बिना दरवाजे के पाखाने में बैठे हुए उस पाखाने के बाहर गार्ड पहरा दे रहा था। पाब्लो विकारियो के दस्त इतने पतले और पानीदार थे कि उनके लिए भी ज़हर दिये जाने के बारे में सोचना बहुत गलत नहीं लगा था। लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि पाब्लो ने सिर्फ पानी पीया था और पुरा विकारियो द्वारा भिजवाया गया खाना ही खाया था तो उन्होंने ज़हर दिये जाने की बात मन से निकाल दी थी। इसके बावजूद, मेयर इतना अधिक प्रभावित हो गया था कि उन्हें एक विशेष गार्ड की निगरानी में अपने घर लिवा ले गया था और जब जांचकर्ता जज आया तभी उन्हें रियोहाचा की गोलाकार जेल में भिजवाया गया था।

जुड़वा भाइयों का डर गली मुहल्लों के मूड की प्रतिक्रिया की वजह से था। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता था कि अरब बदला लेंगे, लेकिन ज़हर दिये जाने की बात विकारियो बंधुओं के अलावा और किसी के भी दिमाग में नहीं आयी थी। इसके बजाये, यह माना जा रहा था कि वे शायद रात होने का इंतज़ार करें और पैट्रोल छिड़क कर कैदियों को जेल के भीतर ही जला कर मार डालने की तरकीब भिड़ायें। अरब लोगों का समुदाय शांतिप्रिय आप्रवासियों का समुदाय माना जाता था। वे लोग शताब्दी के शुरू शुरू में कैरिबियाई शहरों में, गरीब और दूर दराज के इलाकों में आ कर बस गये थे। वे हमेशा रंगीन कपड़ा और बाजारू खिलौने, गहने वगैरह बेचने के धंधे से ही जुड़े रहे थे। वे फिरका परस्त, मेहनतकश और धर्म भीरु कैथोलिक लोग थे। वे आपस में ही शादी-ब्याह रचा लेते थे, अपनी गेहूँ का निर्यात करते थे, अपने दालानों में भेड़ बकरियां पालते थे और ओर्गेनो तथा बैंगन के पौधे उगाते थे। ताश की बाजियां लगाना ही उनका प्रिय शगल था। बूढ़े बुर्जुग अरब अपने वतन से साथ लायी गवारूं अरबी भाषा ही बोलते आये थे और अपनी भाषा को उन्होंने अपने घर-परिवारों में दूसरी पीढ़ी तक ज्यों का त्यों बचाये रखा था। लेकिन तीसरी पीढ़ी के अरब, सैंतिएगो नासार के अपवाद के साथ, अपने माता-पिता से अरबी भाषा सुनते थे और उन्हें इस्‍पानी भाषा में जवाब देते थे। इसलिए इस बात को मानने का कोई आधार नहीं था कि वे अचानक ही अपनी देहाती भावनाएं बदल देंगे और एक ऐसी मौत का बदला लेंगे, जिसके लिए हम सबको दोषी ठहराया जा सकता था।

दूसरी तरफ, किसी को भी प्लेसिडा लिनेरो के परिवार की तरफ से बदला लिए जाने का ख्याल नहीं आया था। उनके परिवार में किस्मत के दगा दे जाने से पहले दो पेशेवर कातिल हुए थे, जिन पर परिवार की प्रसिद्धि के कारण कभी किसी ने उंगली नहीं उठायी थी।

अफवाहों की वजह से चिंतातुर हो आये कर्नल अपोंते ने अरबों के एक-एक घर जाकर हाजिरी बजायी और कम से कम, उस वक्त सही निष्कर्ष निकाला। कर्नल ने उन्हें हैरान-परेशान और उदास पाया। उनकी बलि वेदी पर मातम के चिह्न थे। उनमें से कुछेक जमीन पर बैठे स्‍यापा कर रहे थे। किसी के भी मन में बदले जैसी भावना नहीं थी। उस सुबह अपराध की गरमी से जो प्रतिक्रिया उपजी थी, उसके बारे में लीडरों का मानना था कि किसी भी हालत में यह मार-पीट से आगे नहीं जा सकती थी। इसके अलावा सौ बरस की वृद्धा मुखिया सुसान अब्दाला ने कृष्ण कमल और चिरायते का आसव पिला कर पैब्लो विकारियो का मामूली हैजा और उसके भाई का मूत्र रोग ठीक कर दिया था।

इसके बाद, पैड्रो विकारियो अनिद्रा रोगी वाली ऊँघ में उतरता चला गया था और उसका भाई, चंगा हो कर बिना किसी संताप के अपनी पहली नींद ले सका था। मंगलवार की सुबह जब मेयर पुरीसीमा विकारियो को उनके पास अलविदा कहने के लिए लेकर आया था तो उसने उन्हें इसी हालत में देखा था।

कर्नल अपोंते के आग्रह पर पूरा परिवार, यहां तक कि उसकी बड़ी बहनें और उनके पति भी चले गये थे। वे जब गये तो किसी को कानों कान खबर नहीं हुई। यह एक तरह से सार्वजनिक निष्कासन था। जबकि उस अभागे दिन के बाकी बच रहे हम लोग सैंतिएगो नासार को दफनाने के लिए जगे हुए थे। मेयर के फैसले के अनुसार वे लोगों के शांत होने तक के लिए गये थे लेकिन वे फिर कभी वापिस लौट कर नहीं आये। पुरा विकारियो ने अपनी ठुकरायी हुई छोकरी का चेहरा एक दुपट्टे से लपेट कर ढक दिया था ताकि कोई भी उसकी खरोंचों, चोटों के निशानों को न देख सके। पुरा विकारियो ने अपनी लड़की को सुर्ख लाल जोड़ा पहना दिया था ताकि किसी को यह गुमान तक न हो सके कि वह अपने गुप्त प्रेमी का सोग मना रही है। जेल से जाने से पहले पुरा विकारियो ने फादर एमाडोर से कहा था कि जेल में उसके बेटों से अपराध स्वीकार करवा लें लेकिन पैड्रो विकारियो ने इनकार कर दिया और अपने भाई को भी यकीन दिला दिया कि उन्होंने कुछ भी तो ऐसा नहीं किया जिसका पछतावा करें। वे अकेले ही रहे और जिस दिन उन्हें रियोहाचा ले जाया जाना था, वे इतना अधिक उबर चुके थे और उन्हें इतना अधिक यकीन हो चला था कि अपने परिवार की तरह अंधेरी रात में ले जाये जाने के लिए राजी ही नहीं हुए। वे दिन की रौशनी में और सबको अपना चेहरा दिखाते हुए ले जाया जाना चाहते थे। पोंसियो विकारियो, उनका पिता कुछ अरसे बाद गुजर गया था। “उसकी आत्मा का बोझ उसे लिवा ले गया।” एंजेला विकारियो ने मुझे बताया था।

जिस वक्त जुड़वां भाइयों को दोष मुक्त किया गया तो वे रियोहाचा में ही बने रहे। रियोहाचा मनाउरे से सिर्फ एक दिन की दूरी पर था। उनका परिवार उस वक्त वहीं रह रहा था। प्रूडेंसिया कोटेस पाब्लो विकारियो से विवाह करने के लिए वहां गयी थी। उसने वहां पाब्लो विकारियो के पिता की दुकान पर सोने-चांदी का काम सीख लिया था और बेहतरीन सुनार बन गयी थी। पैड्रो विकारियो जिसके हिस्से में न तो प्यार था और न ही काम धंधा, तीन बरस बाद फिर से फौज में जाकर भर्ती हो गया था। उसे वहां पहली बार सार्जेंट का खिताब मिला। एक सुहावनी सुबह उनकी टुकड़ी गुरिल्ला इलाकों में गाती बजाती गयी और फिर उसके बाद उसके बारे में कभी कुछ सुनायी नहीं दिया।

अधिकतर लोगों के लिए वहां केवल एक ही शिकार था। बयार्दो सां रोमां। सभी लोग यह मान कर चल रहे थे कि इस हादसे के दूसरे नायक मान सम्मान के साथ अपने हिस्से के सुख-दुख भोग रहे थे। यहां तक कि उनकी ज़िंदगी ने उन्हें जो किस्मत की रंगीनियां दी थीं, उन्हें वे खास शानो-शौकत के साथ जी रहे थे। सैंतिएगो नासार ने अपमान की कीमत चुका दी थी। विकारियो बंधु मर्द के रूप में अपनी हैसियत सिद्ध कर चुके थे और छोड़ी गयी बहन एक बार फिर से अपने सम्मान की मालकिन थी। एक बेचारा बयार्दो सां रोमां ही था जो अपना सब कुछ गंवा चुका था। उसे बरसों तक “बेचारा बयार्दो” के रूप में ही याद किया जाता रहा। इसके बावजूद अगले शनिवार, जब चन्द्र ग्रहण पड़ा, तब तक किसी को उसका ख्याल ही नहीं आया। उस दिन विधुर जीयस ने मेयर को बताया था कि उसने अपने पुराने घर के ऊपर एक सत रंगी चिड़िया को मंडराते देखा है। हो न हो, यह उसकी मरहूम बीवी की आत्मा रही होगी। वह अपना घर वापिस मांगने के लिए ही मंडरा रही होगी। मेयर ने अपनी भौं खुजलायी। इसका जीयस के देखे सपने से कुछ भी लेना देना नहीं था।

“छी:” वह चिल्लाया, “मैं तो उस गरीब बेचारी को भूल ही चुका था।”

वह अपनी टुकड़ी लेकर पहाड़ी पर गया। वहां फार्म हाउस के आगे कार अभी भी खड़ी हुई थी। उसकी छत हटायी हुई थी। उसने बेडरूम में एकमात्र बत्ती जलती देखी, लेकिन उसके दरवाजा खटखटाने का किसी ने भी जवाब नहीं दिया। मजबूरन, उन्होंने बगल की तरफ का दरवाजा तोड़ डाला और कमरों की तलाशी ली। कमरों में चन्द्र ग्रहण की गुलाबी रोशनी फैली हुई थी।

“ऐसा लग रहा था, सारी चीज़ें पानी के नीचे हैं।” मेयर ने मुझे बताया था। बयार्दो सां रोमां अपने बिस्तर पर बेहोश पड़ा था। वह वैसा ही पड़ा था, जैसा उसे मंगलवार की सुबह देखा था। पैंट और रेशमी कमीज में। सिर्फ उसके पैरो में जूते नहीं थे इस वक्त। फर्श पर चारों तरफ खाली बोतलें बिखरी पड़ी थीं। बिस्तर के पास कुछ बिना खुली बोतलें भी रखी थीं, लेकिन खाने का कहीं नामो-निशान नहीं था। “वह शराब के नशे की आखिरी पायदान पर था।” उसका तत्काल इलाज करने वाले डॉक्टर दिओनिसियो इगुआरां ने मुझे बताया था। लेकिन जैसे ही उसका दिमाग साफ़ हुआ, वह कुछ ही घंटों में एकदम भला चंगा हो गया। जैसे ही उसके दिमाग की धुंध छटी, उसने सबको हाथ जोड़ कर दरवाजे से बाहर कर दिया।

“मुझसे कोई भी पंगे नहीं लेता,” वह गुर्राया था,“यहाँ तक कि मेरा बाप भी, जो लड़ाई के आदिम ज़माने के तमगे लटकाये फिरता है।”

मेयर ने जनरल पेत्रोनियो सां रोमां को एक तार भेज कर पूरे मामले की बारीक से बारीक तफसील यहां तक कि उसका कहा गया आखिरी जुमला भी लिख भेजा था। यह तार चौंकाने वाला था। जनरल पेत्रोनियो सां रोमां ने ज़रूर ही अपने बेटे की इच्छाओं का शब्दशः मान रखा होगा, इसलिए वह अपने बेटे के लिये नहीं आया था। उसने अपनी लड़कियों और अधेड़ सी दिखती दो औरतों, जो निश्‍चय ही उसकी बहनें रही होंगी, के साथ अपनी बीवी को रवाना कर दिया था। वे सामान ढोने वाली एक किश्‍ती में आयी थीं। उन्‍होंने बयार्दो सां रोमां की बदकिस्मती का मातम मनाने के लिये गले गले तक मातमी कपड़े पहने हुए थे। दुख की वजह से उनके बाल अस्‍त-व्‍यस्‍त हुए जा रहे थे। ज़मीन पर पांव रखने से पहले उन्‍होंने अपने अपने जूते उतार दिये और दोपहर की तपती धूप में धूल-धक्‍कड़ से होती हुईं वे नंगे पैर गली से पहाड़ी की तलहटी तक अपने बाल नोचतीं, इतनी ज़ोर से छाती कूटते हुए, स्‍यापा करते हुए गयीं कि उनकी चीखें सुन कर पता नहीं लगाया जा सकता था कि ये गला फाड़ आवाज़ें कहीं खुशी की तो नहीं। मैं माग्‍दालेना ओलिवर की बाल्‍कनी में खड़ा उन्‍हें जाता देखता रहा।

मुझे याद है कि मैं यही सोच रहा था कि इस तरह की व्यथा दूसरी तरह की शर्मिन्‍दगियों को छिपाने के लिये ही प्रदर्शित की जा सकती है।

कर्नल अपोंते पहाड़ी पर बने घर तक उनके साथ साथ गये और तब डॉक्‍टर दिओनिसिओ इगुआरां मौके-बे-मौके के लिये रखे गये खच्‍चर पर सवार होकर वहां गये। तब सूरज डूबने को था। नगर परिषद के दो आदमी बयार्दो सां रोमां को एक हिंडोले की रस्सियों में बल्‍ली डालकर डोली सी बनाकर उसमें डाल कर ला रहे थे। उसने गले तक कंबल लपेटा हुआ था। स्‍यापा करती औरतों के हुजूम में उसे लाया गया था। माग्‍दालेना ओलिवर को लगा - वह मर चुका है।

“यह तो शोक का पहाड़ है।” वह चीख चिल्‍ला रही थी,“सब कुछ लुट गया। हम तबाह हो गये।”

वह फिर से शराब की वजह से पस्त था, लेकिन यह यकीन करना मुश्‍किल था कि वे एक ज़िंदा आदमी को लिये जा रहे हैं क्‍योंकि उसकी एक बांह नीचे घिसटती हुई चल रही थी। ज्योंही उसकी मां उसकी बांह को उठाकर हैमाक पर रखती, बांह फिर से नीचे झूल जाती। उसकी झूलती बांह से पहाड़ी लॉन के सिरे से नाव के डेक तक ज़मीन पर एक लकीर सी बनती चली गयी। सिर्फ़ उसकी यही लकीर हमारे लिये बची रह गई थी: एक अभागे भुक्तभोगी की याद।

वे फार्म हाउस को ज्‍यों का त्‍यों छोड़कर चले गये थे। जब भी मेरे भाई और मैं छुट्टियों पर होते तो हम रात के वक्‍त घर की तलाशी लिया करते। हर बार हमें उन छोड़ दिये गये कमरों में और कम कीमती चीज़ें नज़र आतीं। एक बार हमने वह छोटा बटुआ खोज निकाला था जिसे एंजेला विकारियो ने अपनी सुहागरात के लिये मां से मंगवा भेजा था, लेकिन हमने उसकी ओर ज्‍यादा तवज्‍जो नहीं दी। उस बटुए के अंदर सफाई और सौंदर्य के लिये आमतौर पर इस्‍तेमाल की जाने वाली जनाना चीज़ें ही मिली थीं, लेकिन उनका असली इस्‍तेमाल क्‍या था, यह यह मुझे एंजेला विकारियो ने कई साल बाद बताया था। उसने कहा था कि ये वो सारा बुढ़ियाओं वाला तामझाम था जो उसे अपने मरद को उल्‍लू बनाने के लिये इस्‍तेमाल करने की हिदायत के साथ दिया गया था। सिर्फ़ यही वह इकलौती चीज़ थी जो उसने अपने पांच घंटे के विवाहित जीवन वाले घर में अपने पीछे छोड़ी थी।

बरसों बाद जब मैं इस रोजनामचे के वास्ते सच जानने के लिये आख़िरी सूत्र तलाशने के लिये आया था तो योलान्‍डा जीयस की खुशी की आख़िरी चिंगारी भी बाकी नहीं रही थी। कर्नल लाजारो अपोंते की होशियार निगरानी के बावजूद चीज़ें धीरे-धीरे ग़ायब होती चली गयी थीं। यहां तक कि छ: शीशे जड़ी वह अलमारी भी गायब हो गयी थी जिसे मॉमपाक्‍स के बेहतरीन कारीगरों ने घर के भीतर ही इसलिये बनवाया था क्‍योंकि उसे दरवाज़े के रास्‍ते अंदर नहीं लाया जा सकता था। शुरू शुरू में विधुर जीयस बहुत खुश हुआ था कि ये सारी मृत्‍यु के बाद की चालें उसकी बीवी की थीं ताकि जो कुछ उसका था, वह उसे वापिस पा सके। कर्नल लाजारो अपोंते उसका मज़ाक उड़ाया करता। लेकिन एक रात उसे ऐसा लगा कि सारे रहस्‍य से पर्दा उठाने के लिये एक आध्यात्मिक अनुष्ठान किया जाये। योलांडा जीयस की आत्‍मा ने खुद अपनी लिखावट में इस बात की पुष्‍टि कर दी कि वह ही अपनी मौत वाले घर के लिये खुशियों के टीम टाम जुटा रही थी। मकान ढहना शुरू हो गया था। शादी की कार के अंजर-पंजर ढीले होने लगे थे। वक्‍त के साथ साथ मौसमों की मार खाये उसके टूटे-फूटे ढांचे के अलावा कुछ भी बाकी नहीं रहा। फिर कई बरस तक उसके मालिक के बारे में कुछ भी नहीं सुना गया।

 

(क्रमशः अगली किश्तों में जारी…)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़ का उपन्यास - उस मौत का रोजनामचा (6)
गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़ का उपन्यास - उस मौत का रोजनामचा (6)
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0N_e8tD25_eqsydnF0pX24doK4VXZpDye6axdg_0AiDucZQk_c2737-bOvB2uaZMv6aBdKx8wcI2Cmc3MiD_Eml9ZwncK-h-Elr824BPSP3G-oj4-FgXDXSc2oB2-W01DJDoH/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0N_e8tD25_eqsydnF0pX24doK4VXZpDye6axdg_0AiDucZQk_c2737-bOvB2uaZMv6aBdKx8wcI2Cmc3MiD_Eml9ZwncK-h-Elr824BPSP3G-oj4-FgXDXSc2oB2-W01DJDoH/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/07/6.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/07/6.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content