पूनम शुक्ला की कहानी - सच्चा झूठा

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सच्चा झूठा नन्हीं सिमी एक बाल पुस्तक लिए पूरे घर में धमाचौकड़ी मचा रही थी । "पापा मैंने भी स्कूल जाना है। मम्मा मुझे लाल रंग का स्कूल ...



सच्चा झूठा

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नन्हीं सिमी एक बाल पुस्तक लिए पूरे घर में धमाचौकड़ी मचा रही थी ।
"पापा मैंने भी स्कूल जाना है। मम्मा मुझे लाल रंग का स्कूल बैग चाहिए । वाटर बौटल ब्लू कलर की लूँगी बार्बी डाल वाली । "
अभी कुछ दिनों पहले ही तो हमारे घर में एक प्यारी सी परी आई थी । जब से आई थी पूरा घर चहक उठा था । उसकी मीठी बातों में कैसे तीन साल गुजर गए कुछ पता ही नहीं चला । इस साल अब सिमी का किसी न किसी स्कूल में एडमिशन भी करवाना है । एक हमारा वक्त था कि आठ दस साल तो खेलने में ही निकल जाते थे । दस साल के बाद माता-पिता को होश आता था कि बच्चों को पढ़ना भी है । गाँव का माहौल बिल्कुल अलग होता था । झोले में पटरी लिए हम सब नंगे पैर विद्यालय की ओर दौड़ पड़ते थे । थोड़ी भी देर हुई नहीं कि मास्टर साहब छड़ी लिए इंतज़ार करते रहते थे । मास्टर साहब के सवालों के जवाब न देने पर अलग से पिटाई होती थी । भगवान की दुआ से मुझे पढ़ा जल्दी याद हो जाता था जिसके कारण मैं छड़ी की मार से अक्सर बच जाता था पर मास्टर साहब मुझे ही बच्चों की पीठ पर मुक्का मारने का हुक्म दे देते जिनमें लड़कियाँ भी होतीं । मास्टर साहब का हुक्म टालना भी मुश्किल था सो मुझे मुक्का मारना पड़ता । पर उसमें कुछ मेरे नजदीकी मित्र भी होते जिन्हे में धीरे से मारता पर तबतक मास्टर साहब गरज पड़ते


" संजीव जोर से मारो नहीं तो तुम्ही को चार मुक्का लगेगा "
और बेचारा मैं न चाहते हुए भी अपने दोस्तों की पीठ गरम करता रहता । गाँव में हमारे कुछ खेत थे और एक फलों का बगीचा । उसमें जो भी अनाज और फलों की उपज होती उसी में हम अपना जीवन ज्ञापन करते पर फिर भी घर में हमेशा अभाव छाया रहता । रहा सहा कसर मौसम की मार पूरा कर देती । परिवार की ऐसी परिस्थिति देखकर मैंने भी एक दिन ठान लिया कि मैं खूब मन लगा कर पढ़ूँगा और एक बड़ा अफसर बन कर दिखाऊँगा । इस अभाव को मुझे ही खत्म करना होगा । हमेशा इसी अभाव नें मुझमें शक्ति भरी और मुझे कुछ कर दिखाने की भावना से ओत- प्रोत किया । मैंने बहुत मेहनत की और खूब मन लगा कर पढ़ा । दिन में अक्सर खेत का काम भी देखना पड़ता था तब मैं रात में दीए और लालटेन की रोशनी में पढ़ा क्योंकि तबतक गाँव में बिजली नहीं पहुँच पाई थी । दसवीं में मेंरे अच्छे अंक आए । सभी ने मेरी सराहना की जिससे मुझमें और आत्मविश्वास जागा । फिर मैंने विज्ञान के विषयों को चुना और पूरे जोर शोर से पढ़ाई में लग गया जिसका यह नतीजा हुआ कि बारहवीं के बाद पहले प्रयास में ही मेरा इंजीनियरिंग में चुनाव हो गया । आज पढ़ लिख कर मैं इंजीनियर हूँ और दिल्लीं में एक अच्छी प्राइवेट कंपनी में कार्यरत हूँ । शादी हुए पाँच वर्ष हो चुके हैं और हमारी एक बच्ची है सिमी । पूरे तीन साल की हो गई है पर अब उसका एडमिशन नर्सरी स्कूल में करवाना है । यहाँ दिल्ली में नर्सरी में एडमिशन इतना आसान नहीं है । पिछले एक महीने से एक स्कूल से दूसरे स्कूल दौड़ रहा हूँ । ढ़ेरों अभिभावक स्कूलों के चक्कर पे चक्कर काट रहे हैं । मैंने भी फार्म भर दिया है और आज वहाँ बुलाया गया है । आज आफिस भी है पर सिमी के ऐडमिशन के लिए आधे दिन की छुट्टी लेनी पड़गी । कहीं इस बार मौका निकल गया तो बेकार में उसका एक साल बर्बाद हो जाएगा ।


    जैसी कि सूचना प्राप्त हुई थी मैं ठीक दस बजे नर्सरी स्कूल पहुँच गया हूँ । स्कूल में अभिभावकों की भीड़ है और सभी को बातचीत के लिए एक अंक दिया जा रहा है । मैं भी एक अंक ले लेता हूँ पर ये क्या मेरा पैंतालिसवाँ नंबर है । ये तो बहुत लंबा इतजार करना पड़ेगा । आखिर दो घंटे के लंबे इंतजार के बाद मेरा नंबर भी अब आ गया है और अब मुझे आफिस के अंदर प्रवेश करना चाहिए । आफिस न ज्यादा बड़ा है ना ही ज्यादा छोटा ।  सामने एक बड़ा सा टेबल है और दो कुर्सियाँ लगी हैं जिसपर एक महिला और एक पुरुष बड़ी ही गंभीर मुद्रा में बैठे हुए हैं । टेबल की दूसरी तरफ तीन और कुर्सियाँ अभिभावकों के लिए लगी हुई हैं । मेरे भीतर घुसते ही महिला बोलती है -
" हैव योर सीट "
"थैंक्यू मैम "
"आप सिमी के फादर हैं "
"जी मैम "
"पर सिमी का जन्म तो बिहार के एक गाँव में हुआ है"
"हाँ मैम जन्म के समय मेरी वाइफ वहीं थीं पर हमलोग यहीं दिल्ली में रहते हैं । मैं एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर हूँ "
"पर जब बच्ची का जन्म बिहार के गाँव में हुआ है तो उसका एडमिशन यहाँ कैसे हो सकता है "
"पर मैम हमलोग यहाँ रहते हैं तो एडमिशन तो यहीं होगा"
"पर ये हमारे नियम के विरुद्ध है । हमारे स्कूल में उसका एइडमिशन नहीं हो पाएगा । आइ एम सारी मिस्टर संजीव । "


एक पल के लिए तो मेरी आँखों के सामने अँधेरा सा छा गया । पिछले एक महीने से दौड़ धूप में लगा हुआ हूँ कई एक छुट्टियाँ भी लीं और इतना बेरुखा जवाब । भारी कदमों से मैं दफ्तर से बाहर निकल आया हूँ। अगल बगल नज़र दौड़ाई पर अभी अभिभावकों की काफी भीड़ है सभी अपने आप में व्यस्त हैं । किससे पूछूँ क्या पूछूँ कुछ समझ नहीं आ रहा । स्कूल का एक गार्ड मेरी तरफ ही देख रहा है । गार्ड मुझे अपने पास बुला रहा है । लगता है वो मेरी परेशानी जानना चाहता है । तभी गार्ड ने बड़े आराम से पूछा -
"क्या हुआ साब .... एडमिशन नहीं हो पाया क्या "
"अरे नहीं भाई ! कहाँ एडमिशन हो पाया । स्कूल वालों नें मेरा आवेदन ही खारिज़ कर दिया "
"ऐसा क्यों ? जरूर कुछ दिक्कत होगी साहेब । आखिरी में उन्होंने क्या कहा "
"यहीं कि दिल्ली में रहते हैं तो क्या हुआ । आखिर आपकी बच्ची का जन्म बिहार के एक गाँव में हुआ है सो यहाँ एडमिशन नहीं हो पाएगा ।"
"क्या साहेब आप भी ! साहेब बन गए पर अभी भी वही हैं गाँव के सीधे- साधे आदमी । बच्ची का जन्म गाँव में हुआ है तो क्या हुआ । उसका यहीं दिल्ली का जन्म प्रमाण पत्र बनवा लीजिए "


"पर कहाँ कैसे मुझे कुछ पता भी नहीं और कल ही एडमिशन की अंतिम तारीख है । "
"अरे साहेब आप चिन्ता क्यों करते हैं । मैं काहे के लिए हूँ । बस आपको थोड़ा खर्च करना पड़ेगा "
"बताओ भाई अब तुम ही सहारा हो "
"साहेब अगर तीन चार दिन होते तो काम पाँच हजार में ही हो जाता पर अब बस एक दिन बचा है सो पूरे दस हजार लगेंगे । लेकिन कल आपका काम सौ प्रतिशत पूरा हो जाएगा ।"


मरता क्या न करता मैंनें तुरंत दस हजार रुपए लाकर गार्ड के हाथों में पकड़ा दिए । अगले ही दिन सिमी के दिल्ली में जन्म के पूरे कागज़ात मुनिसपल कार्पोरेशन से तैयार होकर आ गए । एक बार तो मुझे भी विश्वास नहीं हुआ पर जब मैंने आनलाइन देखा तो वहाँ भी सब कुछ अपडेट हो चुका था । सिमी का नाम जन्मस्थान माता-पिता का नाम सबकुछ साफ-साफ कम्प्यूटर पर दिख रहा था । मुझे आज दस हजा़र की ताकत देख कर बड़ा ही आश्चर्य हो रहा था । बच्ची का एडमिशन अब बिना किसी अवरोध के सम्पन्न हो चुका था । सच्चा प्रमाण पत्र झूठा और झूठा प्रमाण पत्र सच्चा साबित हो गया था । झूठा सच्चे को मुँह चिढ़ा रहा था । गाँव में इतने अभावों में जिन्दगी काटने के बाद आज मेरे पास पैसों की कमी नहीं थी पर उन पैसों का ऐसा इस्तेमाल वो भी माँ सरस्वती के प्रांगण में ऐसा देखकर मुझे अपनी जन्मभूमि की याद आ रही थी । आज मुझे ये समझ नहीं आ रहा था कि मैं अधिक पैसे की कमाई के लिए खुद पर गर्व करूँ या अपनी ज़मीन छूट जाने का मातम मनाऊँ ।


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परिचय
नाम - पूनम शुक्ला
जन्म - ज्येष्ठ पूर्णिमा ,२०२९ विक्रमी ।
26 जून 1972
जन्म स्थान - बलिया , उत्तर प्रदेश
शिक्षा - बी ० एस ० सी० आनर्स ( जीव विज्ञान ), एम ० एस ० सी ० - कम्प्यूटर साइन्स ,एम० सी ० ए ० । चार वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों में कम्प्यूटर शिक्षा प्रदान की । अब कविता,ग़ज़ल,कहानी लेखन मे संलग्न ।
कविता संग्रह " सूरज के बीज " अनुभव प्रकाशन , गाजियाबाद द्वारा प्रकाशित ।
"सुनो समय जो कहता है" ३४ कवियों का संकलन में रचनाएँ - आरोही प्रकाशन
दैनिक जागरण,परिकथा,जनपथ,हरिगंधा,संचेतना,गुफ्तगू,जनसत्ता दिल्ली, चौथी दुनिया,परिंदे,सनद,सिताब दियरा,पुरवाई,अनुभूति,पहली बार,फर्गुदिया,बीईंग पोएट ईपत्रिका ,साहित्य रागिनी,विश्व गाथा,आधुनिक साहित्य,,जन-जन जागरण भोपाल,शब्द प्रवाह,जनसंदेश टाइम्स,नेशनल दुनिया,आज समाज,जनज्वार,सारा सच,लोकसत्य,सर्वप्रथम ,पूर्वकथन,गुड़गाँव मेल,गुड़गाँव टुडे,बिंदिया,दिन प्रतिदिन में रचनाएँ प्रकाशित ।


ई मेल आइडी   poonamashukla60@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 7
  1. बेनामी12:26 am

    मुझे आज दस हजा़र की ताकत देख कर बड़ा ही आश्चर्य हो रहा था । बच्ची का एडमिशन अब बिना किसी अवरोध के सम्पन्न हो चुका था । सच्चा प्रमाण पत्र झूठा और झूठा प्रमाण पत्र सच्चा साबित हो गया था । झूठा सच्चे को मुँह चिढ़ा रहा था । गाँव में इतने अभावों में जिन्दगी काटने के बाद आज मेरे पास पैसों की कमी नहीं थी पर उन पैसों का ऐसा इस्तेमाल वो भी माँ सरस्वती के प्रांगण में ऐसा देखकर मुझे अपनी जन्मभूमि की याद आ रही थी । आज मुझे ये समझ नहीं आ रहा था कि मैं अधिक पैसे की कमाई के लिए खुद पर गर्व करूँ या अपनी ज़मीन छूट जाने का मातम मनाऊँ ।

    आगे पढ़ें: रचनाकार: पूनम शुक्ला की कहानी - सच्चा झूठा http://www.rachanakar.org/2014/06/blog-post_7820.html#ixzz33hLEWh4n

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  2. pahle to hum bade bhai ki chhoti ho gai kameej ko hi apna saubhagya mankar garva se pahan lete the ....ab hamare jeene ka vistar ho chuka hai ...hum parivar ke hi nahi poore samaj aur rashtra ke liye jee rahe hain ,,sabko ab palne ki jawabdari bhi to hamari ho gai hai.....







    shyam pandey

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  3. अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव8:16 am

    पूनम जी की कहानी सच्चा झूठा आज के उस
    सत्य की कहानी है जिसे हम पसंद तो नहो करते
    पर झेलना तो पड़ता ही है सब जगह झूंठ ही जीतता है "असत्यमेव जयते"आज हावी है अच्छी कहानी के लिये मेरी बधाई और आशीर्वाद

    जवाब देंहटाएं
  4. badhaai ho ! aapne bilkul sahi vishay liyaa hai...

    जवाब देंहटाएं
  5. उत्साह बढ़ाने के लिए आप सभी का आभार !

    जवाब देंहटाएं
  6. उत्साह बढ़ाने के लिए आप सभी का आभार !

    जवाब देंहटाएं
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रचनाकार: पूनम शुक्ला की कहानी - सच्चा झूठा
पूनम शुक्ला की कहानी - सच्चा झूठा
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