अखबारों के अनोखे संग्रहालय के तीस वर्ष प्रमोद भार्गव आमतौर से पुरानी दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह ही संग्रहालयय का पर्याय मना जाता है। पर एक...
अखबारों के अनोखे संग्रहालय के तीस वर्ष
प्रमोद भार्गव
आमतौर से पुरानी दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह ही संग्रहालयय का पर्याय मना जाता है। पर एक संग्रहालय का नाम है-'माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय एवं शेध संस्थान'। यह संग्रहालय जून 2014 में अपने जीवन के 30 साल पूरे कर लिए है। इस संस्थान की नींव 19 जून 1984 में रखी गई थी। इसके संस्थापक प्रसिद्ध पत्रकार विजयदत्त श्रीधर रहे है। इस संस्था ने 25 लाख से भी ज्यादा समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं के पन्ने जुटाने का ऐतिहासिक काम किया है। इस संग्रह में हिन्दी के प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं तो हैं ही,अंग्रेजी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के पत्र भी संग्रहीत हैं। यहां 24,249 शीर्षक समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएं, 40,936 पुस्तकें, 734 पाण्डुलिपियां, 3456 मूर्धन्य संपादकों एवं लेखकों के पत्र, 1934 अन्य दस्तावेज और 809 अभिनंदन ग्रंथ, गजेटियर, विश्वकोश शामिल हैं। अब तक देश-विदेश के 855 शोधकर्ता एमफिल,पीएचडी तथा डीलिट की शोध सामग्री इस संग्रहालय के विपुल ज्ञान राशि से जुटा चुके हैं। ताल-तलईलों के शहर भोपाल में यह संग्रहालय स्थित है। ऐसा देश में दूसरा संग्रहालय नहीं है।
(15 अगस्त 1947 का अखबार)
इस संग्रहालय का सपना लेखक-पत्रकार विजयदत्त श्रीधर ने उस वक्त देखा, जब वे अपनी शोध पुस्तक 'मध्यप्रदेश में पत्रकारिता का इतिहास' के लिए बुनियादी सामग्री एकत्रित कर रहे थे,जो इधर उधर बिखरी पड़ी थी और नष्टप्रायः होने को थी। यहीं से उन्हें बिखरी धरोहर को एक जगह संग्रहीत करने की प्रेरणा मिली। विजयदत्त का देखा सपना साकार हुआ और अब यह सपना पत्रकारिता शोध संस्थान के रूप में सबके सामने है। इस संग्रहालय का नाम माधवराव सप्रे संग्रहालय रखा गया है। सप्रे मध्यप्रदेश की पत्रकारिता को दिशा देने वाले आग्रणी पत्रकारों में से एक थे। लिहाजा उन्हीं की स्मृति में संग्रहालय की नींव उनकी जंयती पर 19 जून 1984 में रखी गई। सप्रे का जन्म 19जून 1871 को हुआ था और मृत्यु 23 अप्रेल 1926 में हुई थी।
संग्रहालाय के रख रखाव व प्रबंधन के लिए एक 11 सदस्यीय संचालक मंडल है। सप्रे संगहालय के पहले चरण में पत्र-पत्रिकाओं के संकलन की योजना बनाई गई। मध्यप्रदेश में शुरूआती सामाचार पत्रों से लेकर अब तक के समाचार पत्रों के संग्रह का काम 1990 तक पूरा कर लिया गया था। प्रदेश के पहले हिन्दी दैनिक 'प्रकाश'के कुछ अंक भी इस संग्रहालय में शामिल हैं। पहले चरण में पांच सालों के भीतर ही संग्रहालय में 2 हजार शीर्ष समाचार-पत्र व पत्रिकाएं संग्रहीत कर ली गई थीं। इनमें से 400 बेहद दुर्लभ व शोध की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं। ये समाचार-पत्र हिन्दी,उर्दू,गुजराती,मराठी व अंग्रेजी के हैं। प्रदेश की पत्रकारिता की इस उपलब्ध ऐतिहासिक सामग्री को सुरक्षित बनाए रखने के उपाए किए जा रहे हैं।
(अखबार जिसमें बापू के निधन की खबर है)
पहले चरण का कार्य चलने के साथ ही इस संगहा्रलय के संचालक इसे राष्ट्र्रीय स्तर का बनाना चाहते थे। इस दिशा में उल्लेखनीय काम शुरू हुआ और देखते-देखते संग्रहालय में सामग्री का विस्तार होता गया। संग्रहालय में कुल 24,249 शीर्षक समाचार पत्र-पत्रिकाएं हैं और इनके कुल संग्रहीत अंक है-करीब छह लाख। संग्रहालय के शोध ग्रंथालय में पत्रकारिता से संबंधित पांच हजार पुस्तकें उपलब्ध हैं। संग्रहालय में भारतेंदु अखबार 'हिदोस्थान सरस्वती'और नागरी प्राचरणी सभा की पत्रिका के दुर्लभ अंक भी सुरक्षि हैं।
संग्रहालय में एक प्रदर्शनी दीर्घा और पांच स्मृति कक्ष स्थापित किए गए हैं। प्रदर्शनी दीर्घा में लाला बल्देव सिंह,मास्टार बाल्देव प्रसाद,पं.माधवराव सप्रे,माखनलाल चतुर्वेद्वी,गणेश शंकर विद्यार्थी,बालकृष्ण शर्मा नवीन,मुल्ला रमूजी,मुहम्मद यूसुफ केसर,शाकिर अली खां,हुकुमचंद्र नारद,पं रामेश्वर गुरू,डॉ हरिहर निवास द्विवेदी,जगन्नथ प्रसाद मिलिंद,भाई अब्दुल गनी पत्रकारों के चित्र शामिल हैं। इन चित्रों के अलावा प्रदेश के प्रतिनिधि समाचार-पत्रों के चित्र भी इस दीर्घा में लगाए गए है। संग्रहालय के स्मृति कक्षों का नामकरण प्रदेश की पत्रकारिर्ता को एक निश्चित दिशा देने वाले समर्पित पत्रकारों के नाम किया गया है। प्रदेश में हिन्दी पत्रकारिता की शुरूआत करने वाले खैराती लाल एवं पं प्रेमनरायण के अलावा प्रदेश के पहले समाार-पत्र का संपादन व प्रकाशन करने वाले बाल्देव प्रसाद,उर्दू पत्रकारिता की महान हस्ती मुल्ला रमुजी और सप्रे संग्रहालय को अपना विपुल दान देने वाले पं.रामेश्वर गुरू की याद कक्षों का नामकरण करके अक्षुण बनाई गई है। इससे इस संग्रहालय की उपयोगिता व अनिवार्यता निरंतर बढ़ रही है।
पत्रकारिता पर शोध करने वाले शोधार्थियों को छात्रवृत्तियां भी दी गई हैं। इस संग्रहालय से अब तक 855 से भी ज्यादा देशी विदेशी शोधार्थी लाभ ले चुकें हैं और अनेक छात्र-छात्राएं शोध कार्य में संलग्न है। इस संस्थान की अनुसंधान के महत्व को देखते हुए मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के अनेक विश्वविद्यालयों ने शोध केंद्र की मान्यता भी दे दी है। इन विवि में बरकतउल्ला विवि, भोपाल, रानी दुर्गावती विवि,जबलपुर,माखनलाल चतुर्वेर्दी राष्ट्र्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि,भोपाल और कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता एवं जन-संचार विवि,रायपुर शामिल हैं।
देश के विश्व विद्यालयों में जैसे-जैसे जनसंचार एवं पत्रकारिता से संबंधित पाठ्यक्रमों की पढ़ाई शुरू होने लगी है,वैसे-वैसे इस संग्रहालय में मौजूद सामग्री की उपयोगिता अनुभाव होने लगी है। इसलिए उपलब्ध बहुमूल्य व दुर्लभ शब्द-संपदा को सुरक्षित बनाए रखने के लिए पत्र-पत्रिकाओं के हरेक पन्ने का लेमिनेशन कार्य किया जा रहा है। साथ ही पत्र-पत्रिकाओं की माइक्रोफिल्ंिमग भी की गई है। संस्थान द्वारा पत्रकारिता एवं प्राकृतिक संपदा की सुरक्षा पर केंद्रित एक हिन्दी मासिक 'आंचलिक पत्रकार' का भी प्रकाशन होता है। इस पत्रिका के अब तक 385 अंक निकल चुके हैं। इस पत्रिका ने जनसंचार माध्यमों और विज्ञान संचार की शोध पत्रिका के रूप में एक विशिष्ट पहचान हासिल कर ली है। यह पत्रिका विजयदत्त श्रीधर के कुशल संपादकत्व में नियमित 1981 से प्रकाशित हो रही है।
कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें भी संग्रहालय ने प्रकाश्ति की है। इनमें भारत की पत्रकारिता का सम्रग इतिहास, भारतीय पत्रकारिता कोश, और पहला संपदकीय जैसी पुस्तकें बेहद महत्वपूर्ण हैं। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और उसके बाद स्वतंत्रता प्राप्ति 1947 तक के स्वतंत्रता संधर्ष से जुड़ी सामग्री का भी संस्थान में विपुल भंडार है। इन सामाचारिय दस्तावेजों का घटनावार ब्यौरा भी दिया गया है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की 150 वीं वर्षगांठ पर अखबारों में 1857 शीर्षक से एक संग्रह भी प्रकाशित किया गया था,जिसमें उस दौर की दुर्लभ खबरें भी शामिल हैं।
इस संग्रहालय में समसामयिक विषयों से जुड़ी खबरें पढ़ने पर पता चलता है कि भ्रष्ट्रचार की शुरूआत बहुत पहले से है और इसके विरूद्ध पहली मर्तबा 1780 में अवाज बुलंद की गई थी,जब कलकत्ता के अंग्रेजी अखबार 'हिकिज गजट' में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और उस समय के ब्रिट्रिश न्यायधीशों के विरूद्ध समाचार लिखे गए थे। इस तरह के समाचार छापने पर अखबार के संपादक जेम्स ऑगस्टस हिकी को बतौर सजा भारत छोड़ने का आदेश थमा दिया गया था।
इस संग्रहालय का अवलोकन करने पर हमारे सामने 19वीं शताब्दी के अंमित चरण से शुरूआत होने वाली और 20वीं शताब्दी के भारतीय स्वंतत्रता आंदोलन में भागीदारी करने वाली पत्रकारिता के अनेक पहलू परत दर परत खुलते हैं,जो इस समय की आदर्श पत्रकारिता में विभाजन करते हैं। तब की भाषा-शैली और विषय-वस्तु जानने की जिज्ञासा भी यहां पूरी होती है। किंतु 21वीं सदी के पत्रकारिता से जुड़े अभिलेख देखने पर थोड़ी निराशा होती है। क्योंकि आज की बहुरंगी,बहुपृष्ठीय और विविधता पूर्ण सामग्री से चकाचौंध तो होती है,लेकिन भाषा का स्वरूप, वाक्य और वर्तनी में अंग्रेजी के शब्दों के साथ सि तरह से खिलवाड़ किया जा रहा है,वह अफसोसनाक है। इस साधन संपन्न पत्रकारिता की तुलना में 19वीं एवं 20वीं सदी की पत्रकारिता कहीं बेहतर है,क्योंकि वह साधनहीन होने के बावजूद सत्ता के विरूद्ध आम आदमी की लड़ाई प्रांजल भाषा के साथ लड़ती दिखाई देती है।
प्रमोद भार्गव
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है।
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