सीमा ‘असीम‘ सक्‍सेना की कहानी - और वह समझ गई

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पापा के बार-बार आग्रह करने पर आज नीना ने आखिर घर जाने का फैसला ले ही लिया था। बस में बैठाने आई उसकी फ्रैन्‍ड पूजा ने कहा , ‘‘ नीना अब तुम न...

पापा के बार-बार आग्रह करने पर आज नीना ने आखिर घर जाने का फैसला ले ही लिया था। बस में बैठाने आई उसकी फ्रैन्‍ड पूजा ने कहा, ‘‘नीना अब तुम निर्णय लेकर ही आना और वहां पहुंचते ही फोन कर देना''

‘‘अरे बाबा! ठीक है अब तुम जाओ बस पता नहीं कब तक चले, शायद पूरी भर जाने के बाद ही चलेगी, और अभी तो मात्र चार सवारियां ही हैं।''

‘‘क्‍या यार जाओ-जाओ की रट लगाये हुए हो, जा रही हूँ ना और सुन आते में आगरा का पेठा लाना मत भूलना।''

‘‘नहीं भूलूंगी, अगर तू न भी कहती तब भी मैं लेकर ही आती।''

अब बस में धीरे-धीरे सवॉरियॉ भरने लगीं थीं, एकाध सीट ही खाली बची थी तभी बस चल पड़ी। पूजा अब भी नीचे खड़ी हाथ हिला रही थी। एक वही तो है इस अनजान शहर में उसकी अपनी, जहां किसी को किसी की परवाह ही नहीं, सब भाग रहे हैं, दौड़ रहे हैं, अपनी लालसाओं के लिये।

पूजा उसके अॉफिस में ही काम करती है और हॉस्‍टल में भी रूममेट है, पिछले आठ सालों से वह दोनों साथ ही हैं, इस बीच वह एक बार घर भी नहीं गई, हाँ पापा बार-बार फोन करते रहते हैं, स्‍वयं उससे मिलने भी आ जाते हैं, पर उसका तो मन ही नहीं करता था, उस घर में जाने का, जहॉ पर उसकी मॉ की अब कोई निशानी ही नहीं थी। वह मॉ जिसने उसे इतने लाड़-प्‍यार से पाला पोसा, उसकी हर इच्‍छा को पूरा किया अगर वह आधी रात को भी कुछ खाने को मांगती तो मॉ गरम-गरम बनाकर खिलाती। सुबह से लेकर रात तक घर के हर सदस्‍य का ध्‍यान रखतीं। जब भी उनकी आवश्‍यकता होती वह एक आवाज पर उस कार्य को पूरा करने में लग जातीं, किन्‍तु पापा और दादी ने मॉ की कभी अहमियत ही नहीं समझी।

पापा अपनी दुकान में व्‍यस्‍त रहते और दादी हर समय घर में मांॅ पर हुकुम चलाती रहतीं, इतना बड़ा परिवार था दादी, बाबा, चाचा, बुआ और बड़ी दादी जो कभी-कभी गुस्‍से में बड़बड़ाने लगतीं, ‘‘खुद तो कभी कुछ काम किया नहीं, अब बहू को कोल्‍हू के बैल की तरह पेले रहती हैं''

वह अपने घर में एकलौती बच्‍ची थी, सब खूब प्‍यार करते। चाचा, बाबा हर समय गोद में उठाकर घूमते लेकिन दादी उन्‍होंने उसकी तरफ कभी प्‍यार से देखा भी नहीं, न ही कभी मीठे बोल बोले, कभी वह उनके पास जाकर कहती, ‘‘दादी कोई कहानी सुनाओं, रानी की दादी उसे रोज कहानियां सुनाती हैं।''

रानी उसकी सहेली जो पड़ोस में ही रहती थी, तो दादी डॉटते हुए कहतीं, ‘‘चल जा उन्‍हीं से जाकर सुन ले, बड़ी आयी रानी से मुकावला करने वाली, रानी तो दो भाइयों की बहन है और तू,

तू तो अकेली है और वह भी लड़की, तेरी मॉ तो तुझे जनकर ही रह गईं, अब दस बरस की होने को आई तब भी कुछ उम्‍मीद नहीं है।‘‘

यह सुन वह खूब रोती। एक दिन रोते हुए वह मॉ से पूछ बैठी, ‘‘मॉ क्‍या मैं एकलौती बेटी बनकर ही रहूंगी, मेरा भाई नहीं लाओगी‘‘

यह सुन मॉ सुबक पड़ी लेकिन वह उसे कैसे बताती, भाई लाने के लिए वह तेरी कितनी बहनों को इस दुनिया में आने से पहले ही डॉके यहां कटवाकर फेंक आयीं थी, सिर्फ दादी मॉ के कहने पर, क्‍योंकि अब उन्‍हें दूसरी पोती नहीं चाहिए थी, अब उन्‍हें पोता ही चाहिए था।

पिछले तीन बरसों से तो उसका गर्भ भी नहीं ठहरा था। न जाने क्‍या कमी आ गई, इतने गर्भपात कराये, शायद इस वजह से अब कोई उम्‍मीद नहीं बंध रही थी। लेकिन किसी के पास उसके लिए समय ही नहीं था कि एक बार डाक्‍टर को दिखा दें। उससे एक बेटे की चाह तो रखते हैं, किन्‍तु उसे गर्भपात के बाद क्‍या दिक्‍कतें हो गो गई हैं, क्‍या अन्‍दरूनी परेशानियां हैं, उन्‍हें कोई क्‍यों नहीं समझता।

अब वह अपनी इस मासूम सी बच्‍ची को यह कैसे बताती?

क्‍या समझाती?

क्‍या वह समझ पायेगी?

मॉ को दुःखी देखकर नीना भी दुःखी होती, लेकिन वह छोटी सी बच्‍ची क्‍या कर सकती थी और दादी की अवहेलना से तो वह वैसे ही टूट जाती थी। तो उसे सांत्‍वना देते हुए उसने कह दिया था तुम परेशान ना हो अगली राखी तक तेरा भाई जरूर आयेगा।

यह सुन वह खुश होकर रानी के घर भाग गई थी, उसे बताने के लिए, कि अगले साल उसका भाई आ जायेगा, वह उसके राखी बॉधेगी, उसे खूब प्‍यार करेगी, उसके साथ खेलेगी। और उसने उसे यह भी समझा दिया था कि ‘‘रानी तुम बुरा मत मानना, अगर मैं भाई के साथ ज्‍यादा समय बिताऊंॅ तो।''

‘‘नहीं मानूंगी बुरा, लेकिन तुम अपने भाई को लेकर आ जाया करना, वह भी मेरी दादी से कहानी सुनेगा।''

‘‘जब भाई आ जायेगा तो मेरी दादी भी कहानी सुनाने लगेंगी, उन्‍हें तो मुझसे परेशानी होती है न, क्‍योंकि मैं बेटी हूॅ इस वजह से।''

अब नीना अपने भाई के आने के इंतजार में गिन-गिन कर दिन काट रही थी। उधर उसकी मॉ उसकी इस इच्‍छा को पूरी न कर पाने के गम में अंदर ही अंदर घुट रही थी, वह अपनी अन्‍दरूनी कमजोरियों के साथ कैसे भाई ला सकती थीं और उसको राखी बंधवा सकती थी, उन्‍होंने कई बार नीना के पापा से कहा भी किन्‍तु उनके पास समय ही कहॉ था, उसे डॉक्‍टर के पास ले जाने का, वह तो अपनी पुश्‍तैनी किराने की दुकान पर ही व्‍यस्‍त रहते। दादी भी यही कहती, ‘‘तू कौन सी अब भी लड़का ही जनेगी, जब भी अल्‍ट्रासाउण्‍ड कराया बेटी ही निकली, कभी तेरी कोख में बेटा आया जो अब आ जायेगा।'' नीना यह सब नहीं समझ पाती, हॉ इतना पता था कि माँ वादा जरूर पूरा करेंगी। अब दादी के डांटने पर भी वह खुश रहती, क्‍योंकि उसे पता था कि जब तक रक्षा-बन्‍धन आयेगा तब तक तो उसका भाई आ ही जायेगा, फिर उनका डॉटना-डपटना भी छूट जायेगा। रक्षा-बन्‍धन से एक दिन पहले जब वह रात को मॉ के पास लेटी तो उसके पेट पर अपने छोटे-छोटे हाथ फिराते हुए बोली-‘‘मॉ कल रक्षा बन्‍धन है, याद है ना।''

‘‘हॉ बेटा मुझे याद है।'' और वह माँ से चिपटकर अपने भाई से मिलने का ख्‍वाब सजाये सो गई थी। सुबह जब उसकी अॉख खुली तो देखा घर में कोहराम मचा हुआ है। उसकी नानी, मामा, मौसी सब चीख रहे हैं तुमने ही मेरी बेटी को मारा है। वह सहम गई क्‍या हुआ है, कौन बेटी,? वह बाहर आकर देखने लगी तो उसके गले से लगकर मौसी चीत्‍कार कर उठी ‘‘नीना अब तुझे कौन पालेगा।''

नीना को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्‍या हो रहा है, वह अपनी मॉ को खोजने लगी किन्‍तु मॉ कहीं नजर नहीं आ रही थी। उसने जोर से आवाज देते हुए कहा ‘‘मॉ कहां हो तुम?

वह अक्‍सर ऐसे ही मॉ को आवाज लगाती थी जब वह किसी काम में व्‍यस्‍त होतीं, स्‍टोर से या दुछत्‍ती से सामान निकाल रही होतीं तो वह वही से बोलतीं, ‘‘आ रही हूूँ बेटा''। लेकिन आज माँ की कोई आवाज नही आयी। वह किसी अनहोनी की आशंका से डर गई, क्‍या हुआ उसकी मॉ को, वह कहांॅ हैं, और यह मौसी, मामा सब सुबह-सुबह कैसे आ गये, उसने पापा की तरफ देखा वह सिर पर हाथ रखकर बैठे थे, बुआ, चाचा कहीं दिख नहीं रहे थे, बड़ी दादी पलंग पर बैठी बड़बड़ा रहीं थी, ‘मैं कहती थी तब कोई नहीं सुनता था अब भरो भुगतो, एक बेचारी भोली-भाली लड़की को मौत को गले लगाने को मजबूर कर दिया, तुम सबसे अच्‍छे तो कसाई होते हैं कम से कम वह चोरी छिपे तो कुछ नहीं करते, उनका तो यह काम ही है।'' वह अपनी धोती के पल्‍लू से अॉसू पोंछती और फिर बड़बड़ाने लगतीं।

‘‘वह भरी जवानी में मौत को गले न लगाती तो क्‍या करती बेचारी, क्‍या जवाब देती अपनी मासूम बच्‍ची को, कि उसका बाप उसे कुछ नहीं समझता, मॉ जो कहती है वह ठीक, लेकिन कभी उसकी भी सुन लेता तो यह दिन देखने को नहीं मिलता'

यह सुन वह चौंक गई थी, कि क्‍या मॉ मर गई हैं?

तभी नाना जी पुलिस को लेकर आ गये थे और पूरा घर छान मारा था। किन्‍तु दादी, बुआ और चाचा कहीं नहीं मिले। तो नाना जी पापा की तरफ उंगली दिखाते हुए बोले कि ‘‘इसने ही कहीं छिपा दिया होगा‘‘

पुलिस ने जमीन पर बैठे पापा को कॉलर पकड़कर उठाया और दो चांटे कसकर दोनो गालों पर मारे। तब उसे वह दिन याद आ गया, जब मॉ बुखार से तप रही थीं और दादी चाय बनाने को कह रही थी, लेकिन मॉ से नहीं उठा गया। तब पापा धड़धड़ाते हुए आये, और मॉ के गाल पर जोरदार तमांचा जड़ते हुए कहा ‘‘क्‍या सुनाई नहीं देता, मॉ आवाज लगा रही हैं‘‘

उसने देखा बुखार से तपता उनका गाल कुछ और लाल हो गया था, वह आंसुओं को पीते हुए कराह उठीं और बाहर जाने लगीं, तो वह आकर बोली ‘‘पापा आपको शर्म नहीं आती, मॉ को बुखार है।''

पापा ने हाथ झिड़कते हुए कहा, ‘‘ बड़ी आयी मॉ की सगी, चल भाग यहां से।''

तब उसके मन में पापा के लिए बहुत तेज गुस्‍सा आया था और आज वही पापा खुद थप्‍पड़ खा रहे हैं। पुलिस पापा का कॉलर खींचते हुए बाहर ले गई, वह भी पीछे-पीछे दौड़ते हुए बाहर चली आयी। बाहर मौहल्‍ले वालों का जमघट लगा हुआ था, सब फुसफुसा रहे थे, उसकी सहेली रानी अपनी दादी के पीछे सहमी खड़ी थी, पुलिस पापा को जीप में बैठाकर ले गई। वह असमंजस में थी, कुछ समझ ही नहीं आ रहा था क्‍या करे, किससे पूछे, रानी भी कुछ नहीं बोल रही थी, तो उसने उसकी दादी से पूछा, ‘दादी, रानी क्‍यों नहीं बोल रही।''

तो वह बोलीं, ‘जाओ बेटा अपने घर जाओ, ऐसे में बाहर नहीं घूमते, न किसी के घर जाते है।''

‘‘क्‍यों, ऐसे में क्‍या कहना चाहती हैं आप दादी''?

‘‘बेटा तुम्‍हारी मॉ ने आत्‍महत्‍या कर ली है, फांसी का फन्‍दा लगाकर, क्‍या तुम्‍हे नहीं मालूम''?

वह डर गई और वहीं पर जोर-जोर से रोने लगी। लेकिन क्‍यों वह तो रात को उससे भाई लाने का वादा कर रहीं थी, फिर अचानक यह सब क्‍या हो गया? आत्‍महत्‍या क्‍यों कर ली?

मामा राखी के दिन अपनी बहन को खोने से बुरी तरह रो रहे थे, मामा रोते हुए कह रहे थे ‘‘दीदी आज के ही दिन तुम मुझसे रूठ कर क्‍यों चली गई मेरे हाथों में दो राखियां सजती थी, अब एक राखी ही बंधेगी।''

उनकी यह बातें सुनकर नानी और मौसी भी और जोर-जोर से रोने लगीं। तभी किसी का फोन आया। नाना ने बात की और फिर उन लोगों से बोले, ‘‘चलों रश्‍मि को अपने घर लेकर चलेंगे, वहीं अन्‍तिम संस्‍कार करेंगे।''

अपनी मॉ का नाम सुन नीना चौंक पड़ी, ‘‘वह भी मॉ के साथ ही जायेगी।'' उसने कहा।

‘‘हॉ, हॉ तुम भी मेरे साथ ही चलोगी, यहां तुम्‍हें किसके पास छोंड़कर जायेंगे।'' मौसी ने कहा ।

नानी और नाना मॉ को अस्‍पताल से गाड़ी में लेकर सीधे अपने घर चले गये थे और वह मामा, मौसी के साथ नानी के घर आ गई थी। वहॉ मॉ का चेहरा देख वह फफक पड़ी थी, उसे लग रहा था कि उसकी ही गलती है, वह न भाई लाने की जिद करती और न माँ उसे छोड़कर जाती। फिर मामा, नाना और अन्‍य रिश्‍तेदार मॉ को ले गये थे जब मामा लौटकर आये तो वह उनसे चिपटकर बोली ‘‘मामा मॉ को कहां छोड़ आये हो?''

तो उन्‍होने उसे प्‍यार से चुप कराते हुए कहा ‘‘बेटा मॉ तेरे लिए भाई लाने गई हैं, तुम रोओ मत वह जल्‍दी आ जायेगी''

नानी, मौसी, नाना सब बहुत ही दुःखी और परेशान थे, एक मामा ही थे जो उसे हर वक्‍त समझाते रहते और उसे प्‍यार करते। सब एक साथ बैठकर बातें करते कि किस तरह दामाद और उसके परिवार को सजा दिलाई जाये, वह कुछ समझती और कुछ नहीं। एक रात वह ठंड से कांप रही थी । मामा ने उसे रजाई उढ़ाते हुए पूॅछा ‘‘बेटा ठंड लग रही है''

उसे मॉ की याद आ गई थी, वह भी उसे ऐसे ही प्‍यार से रजाई उढ़ाती थीं। वह मामा से बोली ‘‘मामा आज एक कहानी सुना दो‘‘

मामा भी उसी रजाई में लेट गये और कहानी सुनाते-सुनाते उसके अंगों को सहलाने लगे। वह नासमझ कुछ ना समझ सकी थी, और उस ठंड की रात में उन्‍होंनें उसके साथ जो किया था, वह मानवता को शर्मसार करने वाला था। अब अक्‍सर उसके साथ वह सब होने लगा था। वह उसे प्‍यार ही समझती, अपने भोलेपन में नहीं समझ पाई कि उसके साथ ज्‍यादती हो रही है।

एक बार वह यह बातें मौसी को बताने लगी तो उन्‍होंने नानी से बात कर उसे उसके पापा के पास भिजवा दिया। अब वहॉ सबकुछ बदला हुआ था। बुआ रसोई में काम करतीं, दादी भी काम में लगी रहतीं, पापा शान्‍त रहते। दादी बार-बार पापा से शादी के लिये कहतीें किन्‍तु वह मना कर देते।

नीना अब बड़ी हो गई थी और सब समझने लगी थी। उसके मामा ने उसके साथ जो किया, वह सोच उसे उन पर घृणा हो आती। नाना एकाध बार आये भी किन्‍तु वह नाना के घर कभी नहीं गई और न ही पापा ने भेजा। अब पापा उसे बेहद प्‍यार करते, लेकिन उसे कोई भी अच्‍छा नहीं लगता, क्‍योंकि उसकी आंखो के सामने उसकी मॉ का भोला चेहरा घूमता रहता था। 12वीं पास करके उसने पापा से कहा अब उसे बाहर पढ़ने को भेज दो। पापा ने उसे बाहर एडमीशन करा दिया और वह हॉस्‍टल चली गई। दादी और बुआ जाते वक्‍त रो रहे थे, लेकिन उसे उनके आंसू दिखावा लग रहे थे। हॉस्‍टल आकर वह यहां की होकर ही रह गई। चाचा, बुआ की शादी में भी नहीं गई। आठ साल यूॅ ही निकल गए। पढ़ाई के बाद जॉब भी उसी शहर में लग गई।

उसे गैरों में अपनापन लगता था, और अपने गैरों से भी बदतर नजर आते थे, जिन्‍होंनें उसे दर्द, तकलीफ और घुटन के सिवाय कुछ नहीं दिया था। अक्‍सर पापा उसके पास आते और उसे बताते कि, ‘दादी बहुत याद करती हैं और तुम्‍हारी शाादी करके ही मरना चाहती हैं। एक बार आकर उनसे मिल तो लो।'' वह हर बार आते और यही दोहराते।

आखिर उसनें पूजा के बार-बार समझाने पर जाने का निर्णय ले लिया था और आज वह जा रही थी, लेकिन अब वह किसी की बातों में या प्‍यार में नहीं आयेगी।

जब उसे दादी के प्‍यार की जरूरत थी तब वे उसे दुद्‌कारती थीं। उसने सोचा जब वह चाहती थी कि दादी उसे गोद में ले, प्‍यार करें और पास में बैठाकर कहानी सुनायें, तब वह नहीं समझती थीं। अब दादी चाहतीं हैं, तो वह नहीं समझती। आखिर वह भी तो वैसा ही कर रही है। वह दादी जैसी नहीं बनेगी। वह उनसे मिलेगी और उन्‍हें माफ भी कर देगी। फिर उसने खिड़की से बाहर झांकते हुए देखा कितना सुन्‍दर लग रहा था सबकुछ। ठण्‍डी हवा के झोके उसके बालों को सहला रहे थे, दुनिया इतनी बुरी भी नहीं, जितना वह समझती आयी थी। सामने की सीट पर बैठी एक महिला की गोद में दो वषाीर्य बच्‍ची उसे देखकर मुस्‍कुरा दी, तो वह भी मुस्‍कुरा दी थी, एक निर्मल और निःश्‍चल हॅसी।

घर पहुँच कर पता चला था, कि बुआ को उसके ससुराल वालों ने उनके बच्‍चे न होने की सजा दे दी थी। उन्‍हें जला दिया गया था, और दादी मॅां पश्‍चाताप की आग में जलकर आधी रह गयी थीं। ईश्‍वर ने उनकी करनी की सजा उनको दे दी थी। सच ही सब कुछ यहाँ का यहाँ पर ही है। दूसरे जन्‍म का इंतजार नही करना पड़ता।

दादी उस आग में जल रही थीं, जो स्‍वयं उन्‍होने अपने लिए प्रज्‍जवलित कर ली थी। वे अगर समय रहते चेत जातीं, तो अपनी वहू और बेटी को खोने से तो बचती ही, बल्‍कि पोती भी उनसे दूर न जाकर उनके करीब ही होती, उनके दिल के आसपास। खैर होनी तो हो गयी थी, होनी को कौन टाल सका है आजतक। देर से सही वे स्‍त्री शिक्षा और स्‍त्री स्‍वास्‍थ्‍य का महत्‍व जान गयी थीं। पोती को देख कर उन्‍होने उसे गले से लगा लिया था। अब वही तो उनकी सब कुछ थी। दादी माँ के आँसू पोंछते हुए कहा,‘‘ दादी न रोओ, जब जागो तभी सवेरा।''

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव9:53 am

    सीमा जी की एक और सुन्दर मर्मस्पर्शी कहानी

    बधाई

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  2. अच्छी कहानी...बधाई...प्रमोद यादव

    जवाब देंहटाएं
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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: सीमा ‘असीम‘ सक्‍सेना की कहानी - और वह समझ गई
सीमा ‘असीम‘ सक्‍सेना की कहानी - और वह समझ गई
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