भारत में एक ओर बहुभाषिकता दूसरी ओर भिन्न भाषा-परिवारों की भारतीय भाषाओं की भाषिक समानता तथा भारतीय भाषाओं के विकास का अपेक्षित विकास न होने ...
भारत में एक ओर बहुभाषिकता दूसरी ओर भिन्न भाषा-परिवारों की भारतीय भाषाओं की भाषिक समानता तथा भारतीय भाषाओं के विकास का अपेक्षित विकास न होने के मूल कारण की विवेचना
प्रोफेसर महावीर सरन जैन
भारत में भाषाओं, प्रजातियों, धर्मों, सांस्कृतिक परम्पराओं एवं भौगोलिक स्थितियों का असाधारण एवं अद्वितीय वैविध्य विद्यमान है। विश्व के इस सातवें विशालतम देश को पर्वत तथा समुद्र शेष एशिया से अलग करते हैं जिससे इसकी अपनी अलग पहचान है, अविरल एवं समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है, राष्ट्र की अखंडित मानसिकता है। “अनेकता में एकता” तथा “एकता में अनेकता” की विशिष्टता के कारण भारत को विश्व में अद्वितीय सांस्कृतिक लोक माना जाता है।
भाषिक दृष्टि से भारत बहुभाषी देश है। यहाँ मातृभाषाओं की संख्या 1500 से अधिक है (दे0 जनगणना 1991, रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इण्डिया) । इस जनगणना के अनुसार दस हजार से अधिक लोगो द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं की संख्या 114 है। (जम्मू और कश्मीर की जनगणना न हो पाने के कारण इस रिपोर्ट में लद्दाखी का नाम नहीं है। इसी प्रकार इस जनगणना में मैथिली को हिन्दी के अन्तर्गत स्थान मिला है। अब मैथिली भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची की एक परिगणित भाषा है।) लद्दाखी एवं मैथिली को सम्मिलित करने पर दस हजार से अधिक लोगो द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं की संख्या 116 हो जाती है।
यूरोप एवं एशिया महाद्वीप के भाषा-परिवारों में से “दक्षिण एशिया” में मुख्यतः चार भाषा-परिवारों की भाषायें बोली जाती हैं। भारत में भी सामी भाषा परिवार की “अरबी” के अपवाद के अलावा इन्हीं चार भाषा परिवारों की भाषायें बोली जाती हैं। ये चार भाषा परिवार हैं:
Ⅰ भारोपीय परिवार: (भारत में भारत-ईरानी उपपरिवार की आर्य भाषाएँ तथा दरद शाखा की कश्मीरी बोली जाती हैं। कश्मीरी को अब भाषा वैज्ञानिक भारतीय आर्य भाषाओं के अन्तर्गत ही मानते हैं। भारत की जनसंख्या के 75. 28 प्रतिशत व्यक्ति इस परिवार की भाषाओं के प्रयोक्ता हैं। “जर्मेनिक” उपपरिवार की अंग्रेजी के मातृभाषी भी भारत में निवास करते हैं जिनकी संख्या 178,598 है।)
Ⅱ द्रविड़ परिवार: (भारत की जनसंख्या के 22. 53 प्रतिशत व्यक्ति इस परिवार की भाषाओं के प्रयोक्ता हैं)
Ⅲ आग्नेय परिवार (आस्ट्रिक अथवा आस्ट्रो-एशियाटिक): (इस परिवार की भाषाओं के प्रयोक्ता 1. 13 प्रतिशत है।
Ⅳ सिनो-तिब्बती परिवार: (इस परिवार की स्यामी/थाई/ताई उपपरिवार की अरुणाचल प्रदेश में बोली जाने वाली भाषा खम्प्टी को छोड़कर भारत में तिब्बत-बर्मी उपपरिवार की भाषाएँ बोली जाती हैं। इस परिवार की भाषाओं के प्रयोक्ता 0. 97 प्रतिशत हैं अर्थात भारत की जनसंख्या के एक प्रतिशत से भी कम व्यक्ति इस परिवार की भाषाओं के प्रयोक्ता हैं)
इन 116 भाषाओं में से आठ भाषाओं (08) के बोलने वाले भारत के विभिन्न राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में निवास करते हैं तथा जिनका भारत में अपना भाषा-क्षेत्र नहीं है।
1.संस्कृत प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल की भाषा है। विभिन्न राज्यों के कुछ व्यक्ति एवं परिवार अभी भी संस्कृत का व्यवहार मातृभाषा के रूप में करते हैं।
2. अरबी एवं 3. अंग्रेजीः मुगलों के शासनकाल के कारण अरबी तथा अंग्रेजों के शासन काल के कारण अंग्रेजी के बोलने वाले भारत के विभिन्न भागों में निवास करते हैं। भारत में सामी/सेमेटिक परिवार की अरबी के बोलने वालों की भारत कुल जनसंख्या 21,975 है। भारत के सात राज्यों में इस भाषा के बोलने वालों की संख्या एक हजार से अधिक हैः (1)बिहार (2) कर्नाटक (3) मध्यप्रदेश (4) महाराष्ट्र (5) तमिलनाडु (6) उत्तरप्रदेश (7) पश्चिम बंगाल । भारत-यूरोपीय परिवार की जर्मेनिक उपपरिवार की अंग्रेजी को मातृ-भाषा के रूप में बोलने वालों की भारत में कुल जनसंख्या 178,598 है। तमिलनाडु, कर्नाटक एवं पश्चिम बंगाल में इसके बोलने वालों की संख्या सबसे अधिक है। यह संख्या तमिलनाडु में 22,724, कर्नाटक में 15,675 एवं पश्चिम बंगाल में 15,394 है।
4. सिन्धी एवं 5.लहँदाः इनके भाषा-क्षेत्र पाकिस्तान में हैं। सन् 1947 के विभाजन के बाद पाकिस्तान से आकर इन भाषाओं के बोलने वाले भारत के विभिन्न भागों में बस गए। 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में लहँदा बोलने वालों की संख्या 27,386 है। इस भाषा के बोलने वाले आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली आदि में रहते हैं तथा अपनी पहचान मुल्तानी-भाषी के रूप में अधिक करते हैं। सिन्धी संविधान की परिगणित भाषाओं के अंतर्गत आती है। इस भाषा के बोलने वालों की संख्या 2,122,848 है। इस भाषा के बोलने वाले गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान राज्यों में अपेक्षाकृत अधिक संख्या में निवास करते हैं। ये भारत के 31 राज्यों / केन्द्रशासित प्रदेशों में निवास करते हैं। लहँदा एवं सिन्धी दोनो भाषाओं के बोलने वालों में द्विभाषिता / त्रिभाषिता / बहुभाषिता का प्रसार हो रहा है। जो जहाँ बसा है, वहाँ की भाषा से इनके भाषा रूप में परिवर्तन हो रहा है।
6. नेपालीः इसका भी भारत में कोई भाषाक्षेत्र नहीं है। यह भी परिगणित भाषाओं के अंतर्गत समाहित है। नेपाली भाषी भी भारत के अनेक राज्यों में बसे हुए हैं।। भारत में इनके बोलने वालों की संख्या 2,076,645 है। पश्चिम बंगाल, असम एवं सिक्किम में इनकी संख्या अपेक्षाकृत अधिक है। पश्चिम बंगाल में 860,403, असम में 432,519 तथा सिक्किम में 256,418 नेपाली-भाषी निवास करते हैं। इनके अतिरिक्त पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर एवं मेघालय राज्यों में तथा उत्तर भारत के हिमाचल प्रदेश में इनकी संख्या एक लाख से तो कम है मगर 45 हजार से अधिक है।
7. तिब्बतीः तिब्बती लोग भारत के 26 राज्यों में रह रहे हैं। इनकी मातृ भाषा तिब्बती है जिनकी संख्या 69,416 है। कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल में इनकी संख्या अपेक्षाकृत अधिक है।
8. उर्दू जम्मू एवं कश्मीर की राजभाषा है तथा आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार कर्नाटक आदि राज्यों की दूसरी प्रमुख भाषा है। भारतीय संविधान में उर्दू को हिन्दी से भिन्न परिगणित भाषा माना गया है। इसके बोलने वाले भारत के आन्ध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, दिल्ली तथा तमिलनाडु में निवास करते हैं तथा भारत मे इनकी संख्या 43,406,932 है।
भाषिक दृष्टि से हिन्दी एवं उर्दू भिन्न भाषाएँ नहीं हैं तथा इस सम्बंध में आगे विचार किया जाएगा।
परिगणित भाषाएँ -
भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में परिगणित भाषाओं की संख्या अब 22 है। प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल की संस्कृत के अलावा निम्नलिखित 21 आधुनिक भारतीय भाषाएँ परिगणित हैं:-
1.असमिया 2. बंगला 3. बोडो 4. डोगरी 5. गुजराती 6. हिन्दी 7. काश्मीरी 8. कन्नड़ 9.कोंकणी 10. मैथिली 11. मलयालम 12. मणिपुरी 13. मराठी 14. नेपाली 15. ओडि़या 16. पंजाबी 17. तमिल 18. तेलुगु 19. संथाली 20. सिन्धी 21. उर्दू
इन 22 परिगणित भाषाओं में से पन्द्रह भाषाएँ भारतीय आर्य भाषा उप परिवार की, चार भाषाएँ द्रविड़ परिवार की, एक भाषा (संथाली) आग्नेय परिवार की मुंडा उपपरिवार की तथा दो भाषाएँ (बोडो एवं मणिपुरी) तिब्बत-बर्मी उप परिवार की हैं। 1991 की जनगणना के प्रकाशन के समय (सन् 1997) में परिगणित भाषाओं की संख्या 18 हो गई थी। 1991 के बाद कोंकणी, मणिपुरी एवं नेपाली परिगणित भाषाओं में जुड़ गई थी। इस जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 838,583,988 थी। कुल जनसंख्या में से 96. 29 प्रतिशत लोग अर्थात् 807,441,612 व्यक्ति उन 18 परिगणित भाषाओं में से किसी एक भाषा को बोलने वाले थे।
भारत की प्रमुख भाषाएँ
भारत की प्रमुख 20 भाषाएँ निम्न हैं -
क्रम | भाषा का नाम | 2001 की जनगणना के अनुसार वक्ताओं की संख्या | भारत की जनसंख्या में भाषा के वक्ताओं का प्रतिशत | 1991 की जनगणना के अनुसार वक्ताओं की संख्या | भारत की जनसंख्या में भाषा के वक्ताओं का प्रतिशत |
1 | हिन्दी (परिगणित) | 422,048,642 | 41.03 % | 329,518,087 | 39.29 % |
2 | बांग्ला / बंगला (परिगणित) | 83,369,769 | 8.11 % | 69,595,738 | 8.30 % |
3 | तेलुगू (परिगणित) | 74,002,856 | 7.19 % | 66,017,615 | 7.87 % |
4 | मराठी (परिगणित) | 71,936,894 | 6.99 % | 62,481,681 | 7.45 % |
5 | तमिल (परिगणित) | 60,793,814 | 5.91 % | 53,006,368 | 6.32 % |
6 | उर्दू (परिगणित) | 51,536,111 | 5.01 % | 43,406,932 | 5.18 % |
7 | गुजराती (परिगणित) | 46,091,617 | 4.48 % | 40,673,814 | 4.85 % |
8 | कन्नड़ (परिगणित) | 37,924,011 | 3.69 % | 32,753,676 | 3.91 % |
9 | मलयालम (परिगणित) | 33,066,392 | 3.21 % | 28,061,313 | 3.62 % |
10 | ओडिया / ओड़िआ (परिगणित) | 33,017,446 | 3.21 % | 28,061,313 | 3.35 % |
11 | पंजाबी (परिगणित) | 29,102,477 | 2.83 % | 23,378,744 | 2.79% |
12 | असमिया /असमीया (परिगणित) | 13,168,484 | 1.28 % | 13,079,696 | 1.56 % |
13 | मैथिली (परिगणित) | 12,179,122 | 1.18 % | हिन्दी के अन्तर्गत परिगणित | |
14 | भीली / भिलोदी | 9,582,957 | 0.93 % | 5,572,308 | |
15 | संताली (परिगणित) | 6,469,600 | 0.63 % | 5,216,325 | 0.622 % |
16 | कश्मीरी / काश्मीरी (परिगणित) | 5,527,698 | 0.54 % | विवरण अनुपलब्ध | |
17 | नेपाली (परिगणित) | 2,871,749 | 0.28 % | 2,076,645 | 0.248 % |
18 | गोंडी | 2,713,790 | 0.26 % | 2,124,852 | |
19 | सिंधी (परिगणित) | 2,535,485 | 0.25 % | 2,122,848 | 0.253 % |
20 | कोंकणी (परिगणित) | 2,489,015 | 0.24 % | 1,760,607 | 0.210 % |
इनमें हिन्दी एवं उर्दू भाषिक दृष्टि से भिन्न भाषाएँ नहीं हैं। मैथिली 1991 की जनगणना में हिन्दी के अन्तर्गत ही समाहित थी। नेपाली एवं सिंधी का भारत में भाषा-क्षेत्र नहीं है।
1. हिन्दी – उर्दू *
यद्यपि भारतीय संविधान के अनुसार हिन्दी और उर्दू अलग अलग भिन्न भाषाएँ हैं मगर भाषिक दृष्टि से दोनों में भेद नहीं है।
इस दृष्टि से विशेष अध्ययन के लिए देखें –
1. प्रोफेसर महावीर सरन जैन: हिन्दी-उर्दू का सवाल तथा पाकिस्तानी राजदूत से मुलाकात, मधुमती (राजस्थान साहित्य अकादमी की शोध पत्रिका), अंक 6, वर्ष 30, पृष्ठ 10-22, उदयपुर (जुलाई, 1991))। 2. प्रोफेसर महावीर सरन जैन: हिन्दी-उर्दू, Linguistics and Linguistics, studies in Honor of Ramesh Chandra Mehrotra, Indian Scholar Publications, Raipur, pp. 311-326 (1994))। 3. प्रोफेसर महावीर सरन जैन: हिन्दी – उर्दू का अद्वैत, संस्कृति (अर्द्ध-वार्षिक पत्रिका) पृष्ठ 21 – 30, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली, (2007))। 4. हिन्दी एवं उर्दू का अद्वैतः (रचनाकार, 06 जुलाई, 2010) http://www.rachanakar.org/2010/07/2.html 1. हिन्दी-उर्दू का अद्वैतः अभिनव इमरोज़, वर्ष – 3, अंक – 17, सभ्या प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ 34 – 43 (जनवरी, 2014) |
2. मैथिली की स्थिति –
भारतीय संविधान में 22 दिसम्बर, 2003 से मैथिली को हिन्दी से अलग परिगणित भाषा का दर्जा मिल गया है। लेखक ने अन्यत्र स्पष्ट किया है कि खड़ी बोली के आधार पर मानक हिन्दी का विकास अवश्य हुआ है किन्तु खड़ी बोली ही हिन्दी नहीं है। ‘हिन्दी भाषा क्षेत्र’ के अन्तर्गत जितने भाषिक रूप बोले जाते हैं उन सबकी समष्टि का नाम हिन्दी है। ‘हिन्दी भाषा क्षेत्र’ के अन्तर्गत ही मैथिली भी आती है।
इस दृष्टि से विशेष अध्ययन के लिए देखें –
1. प्रोफेसर महावीर सरन जैन: भाषा एवं भाषा-विज्ञान, अध्याय 4, भाषा के विविध रूप एवं प्रकार, लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद (1985))। 2. प्रोफेसर महावीर सरन जैन: हिन्दी भाषा के विविध रूप, श्री जैन विद्यालय, हीरक जयंती स्मारिका, कलकत्ता, पृष्ठ 2-5 (1994) 3. प्रोफेसर महावीर सरन जैन: हिन्दी भाषा के उपभाषिक रूप, हिन्दी साहित्य परिषद्, बुलन्द शहर, स्वर्ण जयंती स्मारिका (1995) 4. प्रोफेसर महावीर सरन जैन: अलग नहीं हैं भाषा और बोली, अक्षर पर्व, अंक 6, वर्ष 2, देशबंधु प्रकाशन विभाग, रायपुर (1999) 5. प्रोफेसर महावीर सरन जैन: हिन्दी की अंतर-क्षेत्रीय, अंतर्देशीय एवं अंतर्राष्ट्रीय भूमिका, सातवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन स्मारिका, पृष्ठ 13-23, भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद्, नई दिल्ली (2003) 6. प्रोफेसर महावीर सरन जैन: संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाएँ एवं हिन्दी, गगनांचल,पृष्ठ 43 – 46, वर्ष 28, अंक 4, भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद्, नई दिल्ली, (अक्टूबर – दिसम्बर, 2005))। 7.हिन्दी भाषा का क्षेत्र एवं हिन्दी के क्षेत्रगत रूपः (रचनाकार, 05 जुलाई, 2010) http://www.rachanakar.org/2010/07/1.html 8.प्रोफेसर महावीर सरन जैन: हिन्दी, विश्व हिन्दी पत्रिका – 2011, पृष्ठ 17-23, विश्व हिन्दी सचिवालय, मॉरीशस (2011))। 9. हिन्दी भाषा के विविध रूप (रचनाकार, 14 सितम्बर, 2012) www.rachanakar.org/2012/09/blog-post_3077.html 10. http://www.scribd.com/doc/105906549/Hindi-Divas-Ke-Avasa 11. हिन्दी दिवस पर संदेश (रचनाकार, 14 सितम्बर, 2012) www.rachanakar.org/2012/09/blog-post_3077.html 12. हिन्दी भाषा के सम्बन्ध में कुछ विचार (प्रवक्ता, 20 जून, 2013) http://www.pravakta.com/reflections-in-relation-to-hindi-language 13. हिन्दी भाषा के सम्बंध में कुछ विचार (उगता भारत, 26 जून, 2013) 14. हिन्दी देश को जोड़ने वाली भाषा है (रचनाकार, 14 सितम्बर, 2013) http://www.rachanakar.org/2013/09/blog-post_14.html 15. हिन्दी देश को जोड़ने वाली भाषा है; इसे उसके अपने ही घर में न तोड़ें (प्रवक्ता, 14 सितम्बर, 2013) http://www.pravakta.com/hindi-is-the-language-of-hindustan 16. हिन्दी भाषा के सम्बंध में कुछ विचार: विश्व हिन्दी पत्रिका, पाँचवा अंक, विश्व हिन्दी सचिवालय, भारत सरकार व मॉरीशस सरकार की द्विपक्षीय संस्था, मॉरीशस (2013) |
हिन्दी भाषा क्षेत्र के हिन्दी भाषियों की संख्या -
2001 की जनगणना के अनुसार हिन्दी के वक्ताओं की संख्या 422,048,642 है। उर्दू के वक्ताओं की संख्या 51,536,111 है तथा मैथिली के वक्ताओं की संख्या 12,179,122 है। हम अलग अलग आलेखों एवं पुस्तकों में विवेचित कर चुके हैं कि भाषिक दृष्टि से हिन्दी एवं उर्दू में कोई अन्तर नहीं है।इसी प्रकार हम विभिन्न आलेखों में हिन्दी भाषा-क्षेत्र की विवेचना प्रस्तुत कर चुके हैं जिससे यह स्पष्ट है कि मैथिली सहित किस प्रकार हिन्दी भाषा-क्षेत्र के समस्त भाषिक रूपों की समष्टि का नाम हिन्दी है। इस आधार पर हिन्दी-उर्दू के बोलने वालों की संख्या (जिसमें मैथिली की संख्या भी शामिल है) है – 585,763,875 ( अट्ठावन करोड़, सत्तावन लाख, तिरेसठ हज़ार आठ सौ पिचहत्तर) । यह संख्या भाषा के वक्ताओं की है। भारत में द्वितीय एवं तृतीय भाषा के रूप में हिन्दीतर भाषाओं का बहुसंख्यक समुदाय हिन्दी का प्रयोग करता है। इनकी संख्या का योग तथा विदेशों में रहने वाले हिन्दी भाषियों की संख्या का योग सौ करोड़ से कम नहीं है।
भारतीय भाषाओं की भाषिक समनाता तथा एकता
भाषिक दृष्टि से भी भारत में एक ओर अद्भुत विविधताएँ हैं वहीं दूसरी ओर भिन्न भाषा-परिवारों की भाषाओं के बोलने वालों के बीच तथा एक भाषा परिवार के विभिन्न भाषियों के बीच भाषिक समानता एवं एकता का विकास भी हुआ है। भाषिक एकता विकसित होने के अनेक कारण हैं। कारणों का मूल आधार विभिन्न भाषा-परिवारों तथा एक भाषा-परिवार के विभिन्न भाषा-भाषियों का एक ही भूभाग में शताब्दियों से निवास करना है, उनके आपसी सामाजिक सम्पर्क हैं एवं इसके फलस्वरूप पल्लवित सांस्कृतिक एकता है।
भारत की सामाजिक संरचना एवं बहुभाषिकता को ध्यान में रखकर विद्वानों ने भारत को समाज-भाषा वैज्ञानिक विशाल, असाधारण एवं बृहत भीमकाय (जाइअॅन्ट) की संज्ञा प्रदान की है।
हमने भारतीय भाषाओं की समानता एवं एकता की अपनी अवधारणा एवं संकल्पना की अन्यत्र विस्तार से विवेचना की है। यह पुस्तक का विवेच्य विषय है। सम्प्रति, हम यह कहना चाहते हैं कि भारत में भिन्न भाषा परिवारों की बोली जाने वाली भाषाएँ आपस में अधिक निकट एवं समान हैं बनिस्पत उन भाषा-परिवारों की उन भाषाओं के जो भारतीय महाद्वीप से बाहर के देशों में बोली जाती हैं। उदाहरण के लिए आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ आधुनिक भारतीय द्रविड़ भाषाओं के जितने निकट हैं उतने निकट वे भारोपीय परिवार के अन्य उपपरिवारों की भाषाओं के नहीं हैं जो भारतीय महाद्वीप के बाहर के देशों में बोली जाती
भारतीय भाषाओं के विकास का अपेक्षित विकास न होने का मूल कारण
आने वाले समय में वही भाषायें विकसित हो सकेंगी तथा ज़िन्दा रह पायेंगी जिनमें इन्टरनेट पर न केवल सूचनाएँ अपितु प्रत्येक क्षेत्र से सम्बंधित सारी सामग्री उपलब्ध होगी। भाषा वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इक्कीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक भाषाओं की संख्या में अप्रत्याशित रूप से कमी आएगी।
हमें सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के प्रौद्योगिकी विकास के सम्बंध में विचार करना चाहिए। इसका कारण यह है कि आने वाले युग में, वही भाषाएँ ही टिक पायेंगी जिनका व्यवहार अपेक्षाकृत व्यापक क्षेत्र में होगा तथा जो भाषिक प्रौद्योगिकी की दृष्टि से इतनी विकसित हो जायेंगी जिससे इन्टरनेट पर काम करने वाले प्रयोक्ताओं के लिए उन भाषाओं में उनके प्रयोजन की सामग्री सुलभ होगी।
इस विकास के रास्ते में, भारतीयों का अंग्रेजी के प्रति अंध मोह सबसे बड़ी रुकावट है।
सूचना प्रौद्यौगिकी के संदर्भ में हिन्दी एवं सभी भारतीय भाषाओं की प्रगति एवं विकास के संदर्भ में, मैं एक बात की ओर विद्वानों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। व्यापार, तकनीकी और चिकित्सा आदि क्षेत्रों की अधिकांश बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने माल की बिक्री के लिए सम्बंधित सॉफ्टवेयर ग्रीक, अरबी, चीनी सहित संसार की लगभग 30 से अधिक भाषाओं में बनाती हैं मगर वे हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में पैक नहीं बनाती। उनके प्रबंधक इसका कारण यह बताते हैं कि हम यह अनुभव करते हैं कि हमारी कम्पनी को हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के लिए भाषिक पैक बनाने की जरूरत नहीं है। हमारे प्रतिनिधि भारतीय ग्राहकों से अंग्रेजी में आराम से बात कर लेते हैं अथवा हमारे भारतीय ग्राहक अंग्रेजी में ही बात करना पसंद करते हैं। यह स्थिति कुछ उसी प्रकार की है जैसी मैं तब अनुभव करता था जब मैं रोमानिया के बुकारेस्त विश्वविद्यालय में हिन्दी का विजिटिंग प्रोफेसर था। मेरी कक्षा के हिन्दी पढ़ने वाले विद्यार्थी बड़े चाव से भारतीय राजदूतावास जाते थे मगर वहाँ उनको हिन्दी नहीं अपितु अंग्रेजी सुनने को मिलती थी। हमने अंग्रेजी को इतना ओढ़ लिया है जिसके कारण न केवल हिन्दी का अपितु समस्त भारतीय भाषाओं का अपेक्षित विकास नहीं हो पा रहा है। जो कम्पनी ग्रीक एवं अरबी में सॉफ्टवेयर बना रही हैं वे हिन्दी, बांग्ला, मराठी, तेलुगु एवं तमिल आदि भारतीय भाषाओं में सॉफ्टवेयर केवल इस कारण नहीं बनाती क्योंकि उसके प्रबंधकों को पता है कि भारतीय उच्च वर्ग अंग्रेजी मोह से ग्रसित है। इसके कारण भारतीय भाषाओं में जो सॉफ्टवेयर स्वाभाविक ढंग से सहज बन जाते, वे नहीं बन रहे हैं। भारतीय भाषाओं की भाषिक प्रौद्योगिकी पिछड़ रही है। इस मानसिकता में जिस गति से बदलाव आएगा उसी गति से हमारी भारतीय भाषाओं की भाषिक प्रौद्योगिकी का भी विकास होगा। हम हिन्दी, बांग्ला, मराठी, तेलुगु एवं तमिल आदि भारतीय भाषाओं के संदर्भ में, इस बात को दोहराना चाहते हैं कि हिन्दी, बांग्ला, मराठी, तेलुगु एवं तमिल आदि भारतीय भाषाओं में काम करने वालों को अधिक से अधिक सामग्री इन्टरनेट पर डालनी चाहिए। मशीनी अनुवाद को सक्षम बनाने के लिए यह जरूरी है कि इन्टरनेट पर हिन्दी, बांग्ला, मराठी, तेलुगु एवं तमिल आदि भारतीय भाषाओं में में प्रत्येक विषय की सामग्री उपलब्ध हो। जब प्रयोक्ता को हिन्दी, बांग्ला, मराठी, तेलुगु एवं तमिल आदि भारतीय भाषाओं में डॉटा उपलब्ध होगा तो उसकी अंग्रेजी के प्रति निर्भरता में कमी आएगी तथा अंग्रेजी के प्रति हमारे उच्च वर्ग की अंध भक्ति में भी कमी आएगी।
प्रोफेसर महावीर सरन जैन
सेवा निवृत्त निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, भारत सरकार
123, हरि एन्कलेव
बुलन्द शहर
203001
भारत में ग्राहक केवल उच्च वर्ग के नहीं हैं बल्कि मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग के ग्राहकों की विशाल जन संख्या है । हिन्दी में विदेशी कम्पनियाँ विज्ञापन छापती हैं पर इन्टरनेट पर अंग्रेज़ी भक्तों के क़ब्ज़े के कारण हिन्दी पिछड़ रही है ।
जवाब देंहटाएं