ग़ज़ल तो एक साधना है , आराधना है देवी नागरानी का ग़ज़ल संग्रह " लौ दर्दे-दिल की " रचना साहित्य प्रकाशन से प्रकाशित संग्रह एक मुद...
ग़ज़ल तो एक साधना है , आराधना है
देवी नागरानी का ग़ज़ल संग्रह " लौ दर्दे-दिल की " रचना साहित्य प्रकाशन से प्रकाशित संग्रह एक मुद्दत से मेरे लिखने का इंतज़ार कर रहा है मगर क्योंकि मेरी अपनी सीमाँयें हैं इसलिए कुछ लिखने या कहने की हिम्मत ही नहीं हुयी। कविता की बात हो तो एकदम जो चाहे कह लो मगर ग़ज़ल तो एक साधना है , आराधना है यूं ही नहीं ग़ज़ल कही जाती , ग़ज़ल के अपने नियम हैं , बहार , रदीफ़ , काफ़िया आदि का जब तक उचित मिलान न हो ग़ज़ल सम्पूर्ण नहीं होती और मैं इससे अंजान हूँ इसलिए पढ़ने के बाद भी संग्रह एक साल से कुछ कहने की बाट जोह रहा था। आज हिम्मत करके देवी नागरानी जी के कुछ चुनिंदा शेरों को चुना है और आपके समक्ष रख रही हूँ।
देवी नागरानी के पास भाषा है , बिम्ब हैं, संवाद है तभी वो इतनी असरदार ग़ज़लों का निर्माण कर पाती हैं। तभी तो ग़ज़ल में भी इबादत करने का ख्याल उन जैसी गज़लकारा को ही आ सकता था.
इक इबादत से कम नहीं हरगिज़
बन्दगी सी मुझे लगी है ग़ज़ल
एक आक्रोश , एक दर्द को चंद लफ़्ज़ों में पिरो देने की महारत ही ग़ज़ल को मुकम्मल बनाती है :
चीखती वासनाएं हैं देवी
जंग जब भी हुयी हवाओं में
सांस का ईंधन जलाया तब कहीं वो लौ जली
देखकर जिसको तड़पती रात की बेचैनियाँ
अकेलेपन की त्रासदी और आज के भौतिकवादी युग में खुद से जुदा वजूद की कश्मकश का खाका खींच दिया तो दूसरी तरफ सच और झूठ की सदियों से चली आ रही जद्दोजहद को अपने ही ढंग से बयां किया :
सूनी सूनी राह लम्बी , पर डगर आसाँ नहीं
खुद से मिलने के लिए ये तो बता जाऊँ कहाँ
झूठ के शोले जलाएं सच को देवी जब कभी
दूर रहना वर्ना उनकी आग में जल जाओगे
क्यों निराशाओं में बदलीं सारी उम्मीदें ही मेरी
ये लिखी कैसी कहानी तेरी मेरी हसरतों ने
कितना नटखट है मुकद्दर ये, है कितना चंचल
खेलता आँख मिचौली है सितारों की तरह
मैं सुनसान बस्ती में जैसे ही आई
हुई बात मेरी कई पत्थरों से
तो कहीं प्रेम के बंधों में बंधी इश्क की दास्ताँ चित्रित हुयी :
ख्वाब की चादर पे टाँके यूं फरेबों के गुलाब
उन में अब सच्चाइयों की इक कली पाती नहीं
दौलत तेरे दर्द की रक्खा सहेज कर
पलकों से हमने अश्क गिराए नहीं कभी
उनकी आँखों में तो खुद को ढूंढने निकले थे हम
हम मगर गहराइयों में जाके उनकी खो गए
वक्त के क्रूर हाथ जब उठते हैं तो न धर्म बचता न ईमान क्योंकि भूख एक ऐसी त्रासदी है जिससे कोई अछूता नहीं रह सकता तो दूसरी तरफ धर्मान्धता की लड़ाई हो या ज़िन्दगी की पेट की आग और घर के हालात सब का चित्रण इस तरह किया है कि उसके बाद कहने को शब्द नहीं बचते और पाठक सिर्फ उसी में डूबा रह जाता है :
धर्म ईमान सब जला क्या है
भूख भी आगे , सिवा क्या है ?
ठन्डे चूल्हे रहे थे जिस घर के
उससे पूछा गया , "पका क्या है "
अनगिनत प्रश्न , एक ख़ामोशी
सब सवालों का इक जवाब हुआ
मेरी बिसात नहीं छू लूं आसमां को मगर
कोई तो है जो बढता है हौसला दिल का
ग़ुरबत की तीलियों से तो चूल्हा न जल सका
वो ठंडी ठंडी आग ही भूखें मिटा गयी
ज़िन्दगी के हर पहलू पर कलम चली है और इस तरह चली है कि आप सोचने लगोगे क्या खूब कहा है बिलकुल सही तो कहा है यही तो हो रहा है और जब पाठक का तारतम्य लेखक एक साथ बैठता है तो उसे सब अपने साथ घटित सा ही लगता है कुछ ऐसा ही असर उनकी ग़ज़लों में है जिसका हर शेर दाद के काबिल है :
लोग करते हैं दगा प्यार से प्यारे बनकर
छीन लेते हैं सहारे ही सहारे बनकर
दुश्मनों को भी कभी अपना बनाकर देखो
वर्ना जल जाओगे दोनों ही शरारे बनकर
क्यों जलाते लोग हैं रावण के पुतलों को सदा
हो दिखने की फ़क़त नेकी बदी किस काम की
जिन भरोसों की हों बुनियादें सरासर खोखली
उन फरेबों पर इमारत जो बनी किस काम की
एक जोश का संचार करता शेर कितनी गहरी बात कह गया वो भी बेहद सादगी से यही तो क़लमकार की क़लम का कमाल होता है बिना शोर किये सब कुछ कह जाना और पाठक के हृदय के तारों को झंकृत कर देना :
आपको कहना है कहिये जो बुलंद आवाज़ में
शोर की इन नगरियों में ख़ामुशी किस काम की
अपनी शर्तों पर जिया
हारा वो सब बाजियां
ज़िन्दगी कब सिखा सकी वो ढब
पुरसुकूं जी सकें , उसे यारब
जानूं की चल रही हैं वहाँ साज़िशें भी क्या
दुश्मन से बन के दोस्त भी मिलना पड़ा मुझे
रिश्तों के गणित कब कोई समझ पाया है मगर उसे भी बड़ी संजीदगी से संजोया है :
ये रिश्ता की कोई कागज़ है पढ़ कर फेंक दोगे तुम
तुम्हे ये कैसे समझाए , सजाया दिल में जाता है
बड़े ही प्यार से बोया , बड़े ही प्यार से सींचा
अचानक फूल सा रिश्ता बिखर कर टूट जाता है
धमाकों से दरारें जो ज़मीने दिल पे आई हैं
उन्हें फिर से भरेंगे , करिश्मा कर दिखाएंगे
फासलों से जो पास पास लगी
जाके नज़दीक दूरियां देखीं
आज के वक्त की एक त्रासदी मानो गरीबी अभिशाप हो लेखिका का दिल पिघल उठा और सच्चाई बयाँ कर गया :
आग में जलती बस्तियां देखीं
जो भी देखीं वो झुग्गियां देखीं
लगेगी देर न कुछ उसको शोला बनने में
दबी सी आग जो दिल में छिपाये बैठे हैं
ये जानते हैं कि ज़िन्दगी बड़ी ज़ालिम
उसी को दिल से हम अपने लगाये बैठे हैं
छोटी बहर में भी कमाल करती हैं शब्दों का बेजा इस्तेमाल न कर सिर्फ़ अपने कथ्य को कहना ही एक ग़ज़लकार के लिए ही संभव होता है जिस में लेखिका सिद्धहस्त हैं :
बिम्ब हम कहते हैं जिसको
शब्द शिल्पी की कला है
बोले गूंगा सुन ले बहरा
ये करिश्मा भी हुआ है
मन की मनमानियों की गंगा में
पाप सब खुद ही धो लिए साहब
राजनीती का चेहरा उजागर करता शेर बताता है क़लम कब रुकती है वो तो सच्चाइयों पर, हकीकतों पर प्रहार करती ही है :
वोट लेकर आँख फेरे आज का संसार देखो
बन गयी है ये सियासत अब तो इक व्यापर देखो
उम्मीद की किरण का साथ न छोड़ना ही किसी भी लेखन को सार्थकता प्रदान करता है और यही उम्मीद की किरण आशा का संचार करती है
इक असीम आसमान है सर पर
कि किसी सायबाँ से है वो कम
देवी नागरानी की क़लम हर क्षेत्र पर चली है कौन सा ज़िन्दगी का ऐसा पक्ष है जिसे अनदेखा किया गया हो , सरल शब्दों में गहरी और मारक बात कह जाना ही किसी भी क़लम की , उस लेखक की पहचान होती है। जितना सौम्य और शालीन उनका व्यक्तित्व है उतनी ही सौम्यता और शालीनता उनकी ग़ज़लों में है जहाँ भाव पक्ष बेहद सबल है और जब तक भाव पक्ष न हो तो शब्दों का प्रयोग महज क्रीडांगन बन कर रह जाता है, पाठक के हृदय पर छाप नहीं छोड़ पाता। हर शेर ज़िन्दगी के अनगिनत पहलुओं का ज़खीरा है जहाँ पाठक ख़ुद से मिलता है , ज़िन्दगी की त्रासदियों , घुटन , घटनाओं से रु-ब-रु होता है और उत्साह का संचार करती ग़ज़लें , उनके शेर मस्तिष्क पटल पर गहरी छाप छोड़ जाते हैं जो एक लेखक के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार होता है। सामाजिकता , साम्प्रदायिकता , दर्शन हर पहलू बड़ी से बड़ी बात को सरलता से उजागर करता है और लेखिका की संवेदनशीलता और दृष्टिकोण को इंगित करता है कि लेखिका किसी एक पहलू से बंधी न होकर व्यापक अवलोकन करती है और फिर उन्हें ग़ज़लों में ढाल कर बयां करती है। सिन्धी भाषा की लेखिका का हिंदी भाषा पर भी सामान वर्चस्व है।
ग़ज़ल के प्रति सम्पूर्ण समर्पण उनके उज्जवल भविष्य को इंगित करता है अपनी शुभकामनाओं के साथ देवी नागरानी को उनके संग्रह की बधाई देती हूँ।
समीक्षक:
वंदना गुप्ता
ग़ज़ल संग्रह: लौ दर्दे -दिल की, शायरा: देवी नागरानी, पन्ने:100, मूल्य: 150, प्रकाशक: रचना साहित्य प्रकाशन, कालबादेवी, मुंबई-40002
संग्रह प्राप्त करने के लिए पाठक देवी नागरानी से निम्न इ मेल और फोन पर संपर्क कर सकते हैं :ई मेल : dnagrani@gmail.com, m : 9987928358
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