पुस्तक समीक्षा - औरत की बोली

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  पुस्तक : औरत की बोली लेखिका : गीताश्री प्रकाशक : सामयिक प्रकाशन,  3320-21 जटवाड़ा,  नेताजी सुभाष मार्ग दरियागंज,  नई दिल्‍ली-110002 मू...

 

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पुस्तक : औरत की बोली

लेखिका : गीताश्री

प्रकाशक : सामयिक प्रकाशन,  3320-21

जटवाड़ा,  नेताजी सुभाष मार्ग

दरियागंज,  नई दिल्‍ली-110002

मूल्‍य : 250 रूपए

सुप्रतिष्‍ठित पत्रकार एवं रचनाकार गीताश्री की सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘औरत की बोली : स्‍त्री विमर्श' एक शोध पुस्तक से किसी भी तरह कमतर नहीं है․ यद्यपि लेखिका ने इस पुस्तक को शोध तो नहीं मगर शोध जैसा ही कुछ मानती है․ हिन्‍दी में वर्जित विषय पर यह पुस्तक देश-विदेश में फैले देह व्‍यापार का एक विहंगम सर्वेक्षण है․ राजेन्‍द्र यादव जी ने इस पुस्तक के संदर्भ में ठीक लिखा है कि ‘‘निसंदेह दर्शक-दृष्‍टि के बावजूद गीता ने अपने तथ्‍य, परिश्रम और सूझ-बूझ से जुटाए और सजाए है․ इसके लिए उसे सोनागाछी, कमाठीपुरा, जी․बी․रोड से लेकर छोटे-छोटे शहरों, कस्‍बों की खाक छाननी पड़ी है․ देश ही नहीं, हांगकांग से लेकर स्‍वीडन, जर्मनी और न जाने कहां-कहां वह देह मंडि़यों में गई है․ यही नहीं, उसने घुटन-भरी गलियों से लेकर आधुनिक नाइट क्‍लों, पबों, फ्रेंडशिप क्‍लबों और मसाज पार्लरों के अंधेरों को भी टटोला है․''

लेखिका की दर्शक-दृष्‍टि के बावजूद हर छोटी-बड़ी चीजें को जांचने-परखने की लेखिका की सजग दृष्‍टि और उतने ही जीवंत चित्रण से पाठक अनायास ही पुस्तक के तथ्‍यों से जुड़ जाता है․ ‘औरत की बोली' के माध्‍यम से लेखिका ने देश के भौगोलिक सीमाओं से परे, जाल की तरह स्‍त्रियों को अपनी जद में लिए हुए देह व्‍यापार की यह व्‍यवस्‍था अलग-अलग भाव-विश्‍वों की एक अत्‍यंत दुरूह, अनिश्‍चित मगर निर्णायक सर्वेक्षण का दस्‍तावेज प्रस्‍तुत किया है․ यह पुस्तक लेखिका का लेखन कौशल मात्र नहीं है अपितु नए प्रयोगों-युक्‍तियों, समझौतों-सकल्‍पों और सतेज, निर्भीक एवं गहरी संवेदनशील नजर का परिणाम है․

लेखिका का कहना है, ‘‘दुनिया की नजर में सेक्‍स वर्कर चाहे जो हों, बुरी, अछूत, गंदी लेकिन मेरी नजर में वे दैहिक श्रमिक है․'' लेखिका की नजर दैहिक श्रमिक यानी सेक्‍स वर्करों की विवशता पर है, मजबूत देह व्‍यापार के सामने कानून कितना मजबूर नजर आता है․ लेखिका ने वेश्‍यावृति निरोधी कानूनों की पड़ताल के साथ-साथ तेजी से बदलते जा रहे इस धंधे की नब्‍ज को भी गहराई से परखा है इस पुस्तक में․ लेखिका ने सरल और आम बोल-चाल की भाषा में धर्म की सोहबत में हुए देह के सौदे पर समाज कैसे गर्व करता रहा है तथा खुद को विश्‍व बाजार में आज किस तरह बेच रही हैं लड़कियां और मर्द, जिगोलो भी बेच रहे हैं देह, का शोध परख आख्‍यान प्रस्‍तुत किया है․

आधुनिक सभ्‍यता की आड़ में भाषिक छद्‌म के साथ हो रहा यह व्‍यवसाय कैसे आज सारी दुनिया में फैला हुआ है, कैसे इसकी वजह से सपने टूटते जा रहे हैं और किस तरह सोनागाछी, कमाठीपूरा, जी․बी․रोड जैसी जगहें जिंदा लाशों की कब्रगाह में तब्‍दील होती जा रही है, यह सच्‍चाई ‘औरत की बोली' में पूरी तरह खुलकर सामने आयी है․ वेश्‍यावृति के तानेबाने में मौजूद असुरक्षा, आपसी विश्‍वास, कुंठा और अवसाद जैसी सूक्ष्‍म से सूक्ष्‍म और सघनतम तथ्‍यों की बारीकी से पड़ताल करती है-‘हो सकता है सुधिजनों को मुझसे असहमति हो, उनकी असहमति का स्‍वागत है मगर मैं तवायफों को तब भी कलाकार मानती थी, जिन्‍होंने अपने कोठों पर नाच, गीत, संगीत, शास्‍त्रीय संगीत को जिंदा रखा था․ आज भी वही मानती हूं और उनके धंधे को दैहिक श्रम का दर्जा देती हूं․'

पीढि़यों के अंतराल, संस्‍कृतियों के द्वन्‍द्व, नितांत भिन्‍न वैचारिक-मानसिक धरातल, मूल्‍यों-मान्‍यताओं-प्राथमिकताओं के बीच वेश्‍यावृति की बदलते तेवर को लेखिका ने ‘क्‍या बोलती है दुनिया ?' अघ्‍याय में ठीक लिखा है कि ‘‘वासना की वैश्‍विक मंडी में डिजिटल तकनीक के सहारे देह का सौदा आज भौतिक सुख-साधनों के उन सौदों से कतई अलग नहीं है, जिनमें लोग घर के लिए टीवी, फ्रीज या एसी की मांग करते है․ आज देह अपनी तमात हदों को पार कर सीधे मोबाइल फोन के जरिए भी लोगों तक पहुंच रही है․'' पाठक लेखिका के सटीकबयानी से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है जब वे कहती है कि ‘‘अचरज की बात यह है कि 21वीं सदी के शोर में डूबी दुनिया भी नारी देह के सौदे पर विमर्श करने में झिझकती दिखाई देती है․'

 

पुस्तक में उन प्रश्‍नों की, जिनका समाधान लेखिका के पास नहीं है-शायद किसी के पास भी नहीं-जैसे जब देह ही दुकान बन जाए तो फिर सपनों, उम्‍मीदों और अरमानों के खरीददार कौन होंगे ? अदालत भी तो इस धंधे को वैद्य करना चाहती है, आखिर क्‍यों ?

इस आत्‍मकेन्‍द्रित दुनिया की अलगाव एवं अवसाद भरी जिंदगी की गूंज पुस्तक के अलग-अलग अध्‍यायों में सुनी जा सकती है, विशेषकर लेखिका जब निदा फाजली के एक शेर' को ‘कोट' करती है कि -

 

‘‘इनके अंदर पक रहा है वक्‍त का ज्‍वालामुखी

किन पहाड़ों को ढके है बर्फ जैसी औरतें ''

 

विश्‍वव्‍यापी वेश्‍यावृति के धंधे में निरंतर अकेले पड़ती जा रही स्‍त्री की व्‍यथा को लेखिका ने शिद्दत से महसूस किया है-‘मेरी सहानुभूति उनसे है जो किसी मजबूरी में, अपनी मर्जी के खिलाफ इस धंधे में उतर गई है या उतार दी गई है․'

‘औरत की बोली' की खासियत यह है कि हिन्‍दी के वर्जित विषय पर लिखी गयी यह पुस्तक सभी के पढ़ने योग्‍य है․ ऐसे विषय पर लिखते हुए शालीन भाषा का साथ छूट जाना कोई आश्‍चर्य की बात नहीं पर लेखिका ने इसका खास ध्यान रखा है और भाषा को शालीन बनाए रखा है․ सामयिक प्रकाशन से छप कर आयी पुस्‍तकों की उम्‍दा फ्रूफ रीडि़ंग और उत्‍कृष्‍ट छपाई का क्‍या कहना․

 

राजीव आनंद

प्रोफेसर कॉलोनी, न्‍यू बरगंड़ा

गिरिडीह-815301

झारखंड़

COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. akhilesh chandra srivastava7:14 pm

    ek aurat ke liye aurton se sambandhit goodhh aur kathin vishay par likhna
    sachmuch himmat ka hi kam hai mai lekhika ko iske liye badhai aur
    aasheerwad deta hoon

    जवाब देंहटाएं
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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ 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divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: पुस्तक समीक्षा - औरत की बोली
पुस्तक समीक्षा - औरत की बोली
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रचनाकार
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