# ताज़ा रिपोर्ट -------------- --- सुशांत सुप्रिय १. हंगामा हो सकता है, समझे? ----------------------------------- देश के गृह-सचिव बहुत थके ...
# ताज़ा रिपोर्ट
--------------
--- सुशांत सुप्रिय
१. हंगामा हो सकता है, समझे?
-----------------------------------
देश के गृह-सचिव बहुत थके हुए लग रहे थे । आज का दिन काफ़ी व्यस्तताओं से भरा हुआ था ।ऊपर से फ़ोन आ रहे थे । सुबह जो बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ था वह शाम में जा कर ख़त्म हो पाया था । दरअसल पिछले हफ़्ते देश के दूर-दराज़ के हिस्से में जो भूकम्प आया था , वहाँ से अपुष्ट ख़बरें आ रही थीं कि ठंड और राहत-कार्यों की धीमी गति के कारण वहाँ बचे बहुत से लोगों की मौत हो गई थी । कितनी मौतें हो चुकी थीं , इसकी ठीक-ठीक संख्या के बारे में केवल अंदाज़ा ही लगाया जा सकता था क्योंकि भारी बर्फ़बारी के कारण वह इलाक़ा देश के अन्य हिस्सों से कट गया था । दो-तीन दिन बाद देश की राजधानी में संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा था । ऐसे में सरकार विपक्ष के हमलों के कारण मुश्किल में पड़ सकती थी । दरअसल एक ही दल की सरकार केंद्र तथा उस राज्य -- दोनें जगहों पर थी । लिहाज़ा गृह-सचिव पर ऊपर से दबाव पड़ रहा था कि वे मौक़े पर से हालात की
ऐसी ताज़ा रिपोर्ट मंगवाएँ जिससे विपक्ष के हमले की धार कुंद की जा सके ।
गृह-सचिव ने सोफ़े पर बैठ कर जूते उतारे । तब तक नौकर चाय ले कर आ गया था । साथ में क्रीम वाले बिस्किट भी थे । क्रीम वाले बिस्किट गृह-सचिव की कमज़ोरी थी । उन्होंने एक साथ कई बिस्किट प्लेट से उठा लिए । तभी कमरे में उनकी पत्नी ने प्रवेश किया ।
" आज बहुत थक गया हूँ । " गृह-सचिव बोले ।
" लाओ, मैं तुम्हारे कंधे दबा दूँ ।" पत्नी ने प्यार से कहा । वह उनके सोफ़े के पीछे आ कर खड़ी हो गई ।
खिड़की के बाहर पश्चिमी क्षितिज पर आकाश पिघले हुए सोने का समुद्र था । कहीं-कहीं बादलों में आग लगी हुई थी । पर गृह-सचिव के पास क़ुदरत की इस छटा को सराहने की फ़ुर्सत नहीं थी । उनके कहने पर पत्नी ने खिड़की के पर्दे लगा कर कमरे की बत्तियाँ जला दीं और टी. वी. आॅन कर के कोई ग़ैर-सरकारी न्यूज़-चैनल लगा दिया । एक ख़ूबसूरत, युवा महिला संवाददाता मुस्कुराते हुए दर्शकों को सूचित कर रही थी कि विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक़ सरकार की लापरवाही और राहत-कार्यों की कमी की वजह से भूचाल-ग्रस्त इलाक़े में दर्जनों लोग मर रहे थे ! राहत-सामग्री बीच में ही ग़ायब हो रही थी ।
यह सुन कर गृह-सचिव उद्विग्न हो उठे । टी. वी. बंद करके उन्होंने फ़ोन
लगाया । दूसरी ओर गृह-विभाग के वरिष्ठ संयुक्त सचिव लाइन पर थे ।
" अब तक भूचाल-ग्रस्त इलाक़े में कितने गरम कपड़े और कंबल बाँटे गए हैं, हेलिकॉप्टर से वहाँ कितना राशन गिराया गया है, कितने डाॅक्टरों के दल वहाँ गए हैं , कितनी मात्रा में दवाइयाँ वहाँ भेजी गई हैं और कितने तम्बू वहाँ वितरित किए गए हैं --
मुझे कल सुबह तक यह सारा आँकड़ा चाहिए । यह मामला अर्जेंट है । कल सुबह तक मुझे पूरी रिपोर्ट चाहिए । ये मीडिया वाले जल्दी ही शिकारी कुत्ते की तरह सूँघते हुए वहाँ पहुँच जाएँगे । सरकार के लिए मुसीबत हो जाएगी । संसद का सत्र शुरू हो रहा है । हंगामा हो सकता है, समझे ? " गृह-सचिव उद्विग्न थे ।
" जी , सर । आइ अंडरस्टैंड । " उधर से वरिष्ठ संयुक्त सचिव बोले ।
" एेक्ट फ़ास्ट । क्विक ! " कह कर गृह-सचिव ने फ़ोन रख दिया ।
तभी उनकी पाँच साल की पोती ने कमरे में प्रवेश किया ।
" दादाजी , आपने सुबह प्राॅमिस किया था कि आप मुझे शाम को इंडिया गेट ले चलेंगे और आइसक्रीम खिलाएँगे । चलो न दादाजी, चलो न । " पोती गृह-सचिव का हाथ पकड़ कर खींचने लगी ।
" साॅरी बेटा , आज नहीं, किसी और दिन । आज दादा को बहुत काम है ।" गृह-सचिव थके स्वर में बोले । हालात की ताज़ा रिपोर्ट मँगानी ज़रूरी थी । उन्हें अभी कई और अधिकारियों से फ़ोन पर बात करनी थी ।
" दादा को डिस्टर्ब नहीं करो , बेटा । वो आज बिज़ी हैं । " गृह-सचिव की पत्नी ने पोती से कहा ।
" काम, काम , काम ! जाओ मैं आप लोगों से बात नहीं करती । कट्टी ! " बच्ची ने ग़ुस्से से पैर पटकते हुए कहा और कमरे से बाहर चली गई । गृह-सचिव की पत्नी भी उसके पीछे-पीछे गई ।
गृह-सचिव ने किसी अधिकारी को फ़ोन लगाया और उससे बात करने लगे --
" ...हंगामा हो सकता है , समझे ? "
२. रसमलाई का जवाब नहीं
-------------------------------
स्वास्थ्य-सचिव ने ऊपर से दबाव पड़ने पर रात दस बजे वरिष्ठ अधिकारियों की एक आपात बैठक बुलाई थी । अपुष्ट ख़बरों के अनुसार उस आपदा-ग्रस्त इलाक़े में हैज़ा और अन्य संक्रामक रोगों की चपेट में आ कर कई लोग मर गए थे ।
" मुझे इलाक़े की ताज़ा रिपोर्ट चाहिए । " स्वास्थ्य सचिव ने ज़ोर दे कर
कहा । " डाॅक्टरों का एक दल ज़रूरी दवाइयों के साथ कल सुबह ही वहाँ रवाना कीजिए । "
" सर, सरकारी डाॅक्टर वहाँ जाना नहीं चाहते । वह बड़ा दुर्गम इलाक़ा है । वहाँ मौसम भी बहुत ख़राब है । " उप-सचिव ने कहा ।
" मैं कुछ सुनना नहीं चाहता । कल तक मीडिया वाले वहाँ पहुँच जाएँगे । हमारी मुश्किलें बढ़ जाएँगी । ऊपर से बहुत प्रेशर है । जो डाॅक्टर वहाँ नहीं जाना चाहते उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई कीजिए । दूसरे डाॅक्टरों का बंदोबस्त कीजिए ।कल तक एक और टीम वहाँ रवाना कीजिए । इट्स अर्जेंट । और मुझे कल सुबह तक इलाक़े से ताज़ा रिपोर्ट चाहिए । ।" स्वास्थ्य सचिव ने आधिकारिक स्वर में कहा ।
" राइट , सर ।" उप-सचिव बोले ।
" ये बातें तो चलती रहेंगी । आइए , पहले रसमलाई ली जाए । बांग्ला स्वीट हाउस की रसमलाई का जवाब नहीं ।" स्वास्थ्य-सचिव ने स्वर को मृदु बनाते हुए
कहा ।
" जी, सर । बांग्ला स्वीट हाउस की रसमलाई का जवाब नहीं । " सभी अधिकारी
समवेत स्वर में बोल उठे ।
३. ऊपर से आदेश है
------------------------
राहत-कार्यों की देख-रेख कर रहे संयुक्त सचिव अपने अधीनस्थ अधिकारियों के साथ पिछले एक घंटे से बैठक में थे । मीडिया में भूचाल-पीड़ितों का मामला उछलने के बाद आज सारा दिन वे व्यस्त रहे थे । विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों
को घटना-स्थल से ताज़ा रिपोर्ट चाहिए थी ।साथ ही एक और राहत-दल को राहत-सामग्री के साथ वहाँ रवाना किया जाना था । यह बैठक उसी सिलसिले में थी ।
बैठक समाप्त हुई ही थी कि एक बुज़ुर्ग स्वतंत्रता-सेनानी कक्ष में ज़बर्दस्ती घुस
आए । पीछे-पीछे चपरासी ' ऐ, चलो बाहर , कहाँ घुसे जा रहे हो ? ' कहते हुए अंदर आ गया । बुज़ुर्ग का ईमानदार बेटा यहाँ क्लर्क था । उसे राहत-सामग्री के वितरण में हो रहे घपले की जानकारी हो गई थी । इसलिए दो दिन पहले इन्हीं संयुक्त सचिव के आदेश पर उसे सस्पेंड कर दिया गया था । उस पर यह झूठा आरोप लगा दिया गया था कि वह एक मीडिया-चैनल की आकर्षक , युवा , महिला संवाददाता को विभाग की गोपनीय आधिकारिक जानकारियाँ लीक कर देता था । उसके बूढ़े स्वतंत्रता-सेनानी पिता पिछले दो दिनों से संयुक्त सचिव से अपने बेटे के लिए न्याय माँगने के लिए मिलना चाह रहे थे । पर चपरासी बार-बार उन्हें बाहर से ही टरका देता था । आज रात उन्होंने मौक़ा देख कर एक बार फिर कोशिश की ।
" साहब, मेरे बेटे पर लगे सारे आरोप ग़लत हैं । उसके साथ काम करने वाले कुछ भ्रष्ट लोगों ने उसे झूठे केस में फँसाया है । उसके ख़िलाफ़ दी गई इन्क्वायरी-रिपोर्ट झूठ का पुलिंदा है । " बुज़ुर्ग स्वतंत्रता-सेनानी ने कहा । वे रोशनी की पैरवी कर रहे थे ।
" देखिए , एन्क्वायरी-रिपोर्ट ने आपके बेटे को दोषी सिद्ध किया है । मैं कुछ नहीं कर सकता । " संयुक्त सचिव ने ऊब कर कहा । वे इतने थक चुके थे कि उस बूढ़े पिता के मुँह से निकला हर शब्द उनके दिमाग़ में हथौड़े की तरह पड़ रहा था ।
बुज़ुर्ग स्वतंत्रता-सेनानी की आँखों में अँधेरा घना हो गया ।
" साहब, मैंने देश की आज़ादी के लिए गोरे साहबों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी थी । क्या इसी दिन के लिए कि आज़ाद भारत में काले साहब मेरे ईमानदार बेटे को झूठे मामले में फँसा कर प्रताड़ित करें? " बुज़ुर्ग स्वतंत्रता-सेनानी आवेश में आ गए थे ।
" ओल्ड मैन, माइंड योग लैंग्वेज ।" वहाँ मौजूद एक और अधिकारी ने उन्हें चेतावनी दी ।
संयुक्त सचिव को ऊपर से आदेश आया था कि वे जल्दी-से-जल्दी घटना-स्थल के लिए राहत-कार्य दल रवाना करें ।
" बाबा, देश के लिए आपकी सेवा के लिए सरकार आपको पेंशन देती है । सरकार ने आपको फ़्री रेलवे-पास दे कर पूरे देश में घूमने की आज़ादी दे रखी है । आपको ताम्र-पत्र और शाल दे कर सम्मानित भी किया गया है । आपको और क्या चाहिए? आपका बेटा दोषी है इसलिए नियम के मुताबिक़ उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई है । " संयुक्त सचिव ने चिढ़ कर कहा । वे किसी तरह इस सनकी बूढ़े से पीछा छुड़ाना चाहते थे । यह बूढ़ा उन्हें ऐसी मक्खी-सा लग रहा था जो ज़बर्दस्ती कहीं घुस आती है और भिनभिना कर लोगों को तंग करती है और वहाँ से भगा दिया जाना ही जिसकी नियति है ।
" साहब, मेरा बेटा निर्दोष है फिर भी उसे दण्ड दिया गया है जबकि गुण्डे, बदमाश, अपराधी और भ्रष्ट लोग यहाँ खुलेआम घूम रहे हैं । वे सारे नियम-क़ानून तोड़ रहे हैं फिर भी उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हो रही । यहाँ ईमानदार सस्पेंड होते जा रहे हैं और बेईमान मलाई खा रहे हैं । यह कैसी अँधेर-नगरी है, साहब? यह कैसा जंगल-राज है ?" बूढ़े ने आहत स्वर में कहा ।
ऊपर से आदेश था । संयुक्त सचिव को जल्दी-से-जल्दी घटना-स्थल के लिए राहत-कार्य दल रवाना करना था । रात के ग्यारह बज रहे थे । बुज़ुर्ग स्वतंत्रता-सेनानी का भाषण सुन कर उनकी खीझ बढ़ती जा रही थी ।
" देखिए, मेरे हाथ बँधे हैं । ऊपर से आदेश है । मैं इस मामले में आपकी कोई मदद नहीं कर सकता ।" उन्होंने प्रणाम की मुद्रा में हाथ जोड़े और चपरासी से ' बाहर निकालो इसे ' का इशारा किया । चपरासी बुज़ुर्ग स्वतंत्रता-सेनानी को घसीटते हुए बाहर ले जाने लगा । वे चिल्ला रहे थे -- " हमने देश से गोरे अंग्रेज़ों को क्या इसीलिए
भगाया था कि यहाँ काले अंग्रेज़ राज करने लगें? आज बापू होते तो देश की दुर्दशा देख कर ख़ून के आँसू रोते ... ।"
४. बिजली बचाओ
----------------------
राज्य सरकार के गृह-सचिव भूचाल-पीड़ितों की स्थिति के बारे में आपात बैठक कर रहे थे । राज्य के पुलिस महानिदेशक सहित सभी आला अधिकारी इस बैठक में मौजूद थे । राज्य के गृह-सचिव शाम से परेशान थे । केंद्र से मुख्यमंत्री जी को लगातार फ़ोन पर फ़ोन आ रहे थे । मुख्यमंत्री जी बदले में राज्य के गृह-सचिव से स्थिति के बारे में ताज़ा रिपोर्ट चाह रहे थे । अपुष्ट ख़बरों के हवाले से पता चला था कि आज शाम उस इलाक़े में राहत-सामग्री के वितरण में हुई धाँधली को ले कर दंगे भी शुरू हो गए थे ।
लोग रोष में थे । अब वहाँ क़ानून और व्यवस्था की स्थिति भी चिंताजनक हो गई थी ।
" इलाक़े में पुलिस-पेट्रोलिंग बढ़ा दी जाए । यह भी पता लगाया जाए कि आज शाम के उपद्रव के पीछे कोई साज़िश या षड्यंत्र तो नहीं ।" गृह-सचिव फ़रमा रहे थे ।
" यह इलाक़ा अंतरराष्ट्रीय सीमा के बहुत पास है । यहाँ विदेशी एजेंट भी दंगा-फ़साद करवा सकते हैं ।"
पुलिस महानिदेशक ने गृह सचिव की आशंका को नोट किया ।
" हमें कल सुबह तक इलाक़े से ताज़ा रिपोर्ट चाहिए । " गृह-सचिव ने कहा ।
" जी,सर । " कई आला अधिकारी एक साथ बोले ।
" देखिए, राष्ट्र-हित में मैं यह बैठक यहीं समाप्त करता हूँ । मध्य-रात्रि हो चली है और बहुत बिजली ख़र्च हो रही है । हमें बिजली बचानी चाहिए । यह समय की माँग है । "
गृह-सचिव ने लम्बी जम्हाई लेते हुए कहा ।
" जी,सर । आपका आइडिया बहुत बढ़िया है । देश का नारा होना चाहिए -- बिजली बचाओ । " बहुत सारे अधिकारी-गण एक साथ जम्हाई लेते हुए बोल उठे ।
५. अपना ख़ज़ाना लुटाने को आतुर हैं ये ललनाएँ
-----------------------------------------------------
राहत-कार्य प्रकोष्ठ के दफ़्तर में अभी-अभी एक आपात बैठक ख़त्म हुई थी जिसमें निदेशक ( राहत-कार्य ) ने सभी अधीनस्थ अधिकारियों को बताया कि हर प्राइवेट टी.वी. चैनल के संवाददाता राहत-कार्यों की धज्जियाँ उड़ा रहे थे । इसलिए सभी अधिकारियों को कमर कस कर मीडिया के दुष्प्रचार का मुक़ाबला करना था । ऊपर से आदेश था कि घटना-स्थल से ताज़ा रिपोर्ट शीघ्रातिशीघ्र मँगाई जाए । सभी अधिकारी इसी जुगाड़ में लगे थे । लेकिन जैसे-जैसे रात गहरी होने लगी , सभी वरिष्ठ अधिकारी एक-एक करके अपने-अपने घरों के लिए खिसकने लगे । कुछ कनिष्ठ अधिकारियों को सारी रात दफ़्तर में सजग रहने के लिए कहा गया था । यह आपात स्थिति थी । वे आज रात फ़ोन पर स्थिति के पल-पल का जायज़ा लेने वाले थे ।
लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों के जाते ही युवा कनिष्ठ अधिकारियों ने टी.वी. आॅन करके ' एफ़. टी.वी.' चैनल लगा लिया । मध्य-रात्रि का समय था । ' एफ़. टी. वी.' पर
" मिडनाइट हाॅट " कार्यक्रम आ रहा था जिसमें बिकनी पहने ख़ूबसूरत युवतियाँ रैम्प पर कैटवॉक कर रही थीं ।
इस अंग-प्रदर्शन का मज़ा ले रहे कुछ युवा अधिकारियों ने जंगली अंदाज़ में सीटियाँ बजाईं । कुछ ने अश्लील टिप्पणियाँ कीं ।
" अपना ख़ज़ाना लुटाने को आतुर हैं ये ललनाएँ ! " रंगीन तबीयत के एक अधेड़ अधिकारी आँख दबा कर बोले ।
फ़िज़ा में कई सीटियाँ और ठहाके एक साथ गूँजने लगे ।
६. जानेमन, सैलरी देते हैं । जाना तो पड़ेगा ही
--------------------------------------------------
स्थानीय डी.एम. के घर पर फ़ोन की घंटी फिर बज उठी । डी.एम. साहब अभी-अभी सारा मामला फ़िट करके सोने जा रहे थे ।वे कल सुबह प्रभावित इलाक़े का दौरा करने वाले थे ।
फ़ोन पर राज्य के गृह-मंत्री थे ।
मीडिया सारी स्थिति को बढ़ा-चढ़ा कर , तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहा था ।
मीडिया विपक्ष के हाथों का खिलौना बन गया था । केंद्र से दबाव था । विधान-सभा का सत्र भी जल्दी शुरू होने वाला था । आज रात ही कुछ करना ज़रूरी था । ताज़ा रिपोर्ट लाने के लिए डी.एम. को रात में ही घटना-स्थल के लिए निकल जाने का आदेश दिया गया ।
फ़ोन रख कर डी.एम. साहब ने पत्नी को सारी बात बताई । पत्नी नाराज हो
गई ।
" जानेमन, नौकरी करता हूँ । सैलरी देते हैं । जाना तो पड़ेगा ही ।" डी.एम. साहब बोले ।
" सैलरी दे के क्या ख़ून चूस लेंगे ? " पत्नी ने उबलते हुए कहा ।
७. यहाँ स्थिति नियंत्रण में है
-------------------------------
डी. एम. साहब मौक़े पर पहुँचे । सुबह के चार बज रहे थे । जैसे ही लोगों को पता चला , भारी भीड़ ने डी. एम . को घेर लिया । लोग अपनी माँगों के समर्थन में नारे लगाने लगे । राशन की कमी थी । दवाइयों की कमी थी । तम्बुओं की कमी थी । जितने लोग, उतनी शिकायतें । डी. एम . साहब बग़लें झाँकने लगे । जब प्रशासन से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला तो लोग उग्र हो उठे । पथराव शुरू हो गया । डी.एम. की गाड़ी फूँक दी गई । पुलिस को स्थिति नियंत्रण में करने के लिए लाठी-चार्ज करना
पड़ा । पथराव में जब कई पुलिसकर्मी भी घायल हो गए तो पुलिस-वालों ने भीड़ पर फ़ायरिंग कर दी जिसमें कई लोग मारे गए , कई घायल हुए ।
मौक़े पर मौजूद लोगों का आरोप है कि पुलिस-वालों ने लोगों को दौड़ा-दौड़ा कर मारा । लोग बताते हैं कि यह चाँदनी में थरथराता हुआ बड़ा दारुण दृश्य था । इधर-उधर लाशें पड़ी थीं । बीच-बीच में कराहते हुए लहुलुहान घायल लोग पड़े थे । पास के पेड़ों पर बैठे कुछ उल्लू इंसानों की आवाज़ में चीख़ रहे थे ...
इलाक़े में धारा १४४ लागू कर दी गई और वहाँ अनिश्चितकालीन कर्फ़्यू लगा दिया गया । अर्द्ध-सैनिक बलों की कुछ टुकड़ियाँ भी वहाँ तैनात कर दी गईं । नीली वर्दियाँ पहने ' रैपिड ऐक्शन फ़ोर्स ' के जवान इलाक़े में गश्त करने लगे ।
जब डी.एम.साहब इलाक़े का दौरा करने के बाद अपने आवास पर लौटे तो सुबह के छह बज रहे थे । तभी उनके लिए राज्य के गृह-मंत्री का आपात-फ़ोन आया । फ़ोन अटेंड करने के बाद वे सीधे अपने 'स्टडी' में गए । नौकर को चाय वहीं लाने का आदेश दे कर वे हालात की ताज़ा रिपोर्ट कम्प्यूटर पर टाइप करने के लिए बैठ गए । उनकी रिपोर्ट की पंक्तियाँ थीं --
" यहाँ राहत कार्य युद्ध-स्तर पर चल रहा है । प्रशासन ने राशन, दवाइयाँ , तम्बू
आदि सभी आवश्यक वस्तुओं का पूरा इंतज़ाम किया है । यहाँ राहत-सामग्री में हुए घपले की ख़बर बेबुनियाद है । कपोल-कल्पना है । इलाक़े के सभी अधिकारीगण सजग हैं और किसी भी स्थिति से निपटने के लिए रात-रात भर बैठकें कर रहे हैं । वे अपने कर्तव्यों का निष्ठा से निर्वहन कर रहे हैं । यहाँ कुछ लोगों की मृत्यु ज़रूर हुई है पर उनकी मौत की वजह व्यक्तिगत है । ये लोग पहले से ही बीमार चल रहे थे । इन मौतों को राहत-कार्यों से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए । कुछ शरारती तत्व माहौल को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं । इसके पीछे विदेशी एजेंटों का हाथ भी हो सकता है । आज सुबह ही हमारी मुस्तैद पुलिस ने उपद्रव पर उतारू कुछ विदेशी एजेंटों को एन्काउंटर में मार गिराया । उनके पास से बड़ी मात्रा में हथियार तथा गोला -बारूद भी बरामद हुआ है । हम राष्ट्र-विरोधी तत्वों की घिनौनी चालों को कभी सफल नहीं होने देंगे । किसी भी स्थिति से निपटने के लिए प्रशासन सतर्क है । इस संकट की घड़ी में आपसी सद्भाव और एकता बनाए रखने की ज़रूरत है । यहाँ के लोगों में अद्भुत सहनशीलता और जीवट है । उनमें बड़ी-से-बड़ी मुसीबत से उबरने की असीम क्षमता
है । हम उनकी इस क्षमता का अभिनंदन करते हैं । यहाँ स्थिति नियंत्रण में है चिंता की कोई बात नहीं । कृपया अफ़वाहों पर ध्यान न दें । इस संकट की घड़ी में प्रशासन लोगों के साथ है तथा उनकी मदद के लिए कार्यरत है ।"
रिपोर्ट टाइप करके डी.एम. साहब ने उसे सभी सचिवों को मेल कर दिया । अगले आदेश तक इलाक़े में मीडिया के प्रवेश पर रोक लगा दी गई ।
उधर सुबह चार बजे घटना-स्थल पर की गई पुलिस-फ़ायरिंग में मारे गए लोगों की लाशें स्थानीय अस्पताल की मार्चुरी में पड़ी थीं और उन पर मक्खियाँ भिनभिना रही थीं । इधर ऊपर से नीचे तक सभी विभागों के अधिकारी-गण ख़ुश थे कि उन्हें मौक़े पर से हालात की ताज़ा रिपोर्ट मिल गई थी जिसके मुताबिक़ स्थिति नियंत्रण में थी और अब चिंता की कोई बात नहीं थी ।
----------०----------
# कॉपीराइट : लेखक
----------०----------
प्रेषकः सुशांत सुप्रिय
मार्फ़त श्री एच. बी . सिन्हा
५१७४ श्यामलाल बिल्डिंग ,
बसंत रोड , ( निकट पहाड़गंज ) ,
नई दिल्ली - ११००५५
ई-मेल: sushant1968@gmail.com
सुशान्त सुप्रिय ( परिचय)
------------------------------
मेरा जन्म २८ मार्च, १९६८ में पटना में हुआ तथा मेरी शिक्षा-दीक्षा अमृतसर , पंजाब तथा दिल्ली में हुई । हिन्दी में अब तक मेरे दो कथा-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं:'हत्यारे' (२०१०) तथा 'हे राम' (२०१२)।मेरा पहला काव्य-संग्रह ' एक बूँद यह भी ' 2014 में प्रकाशित हुआ है । अनुवाद की एक पुस्तक ' विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ ' प्रकाशनाधीन है । मेरी सभी पुस्तकें नेशनल पब्लिशिंग हाउस , जयपुर से प्रकाशित हुई हैं ।
मेरी कई कहानियाँ तथा कविताएँ पुरस्कृत तथा अंग्रेज़ी, उर्दू , असमिया , उड़िया, पंजाबी, मराठी, कन्नड़ व मलयालम में अनूदित व प्रकाशित हो चुकी हैं ।पिछले बीस वर्षों में मेरी लगभग 500 रचनाएँ देश की सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं ।
मेरी कविता " इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं " पूना वि. वि. के बी. ए. (द्वितीय वर्ष ) पाठ्यक्रम में शामिल है व विद्यार्थियों को पढ़ाई जा रही है । मेरी दो कहानियाँ , " पिता के नाम " तथा " एक हिला हुआ आदमी " हिन्दी के पाठ्यक्रम के तहत कई राज्यों के स्कूलों में क्रमश: कक्षा सात और कक्षा नौ में पढ़ाई जा रही हैं ।आगरा वि. वि. , कुरुक्षेत्र वि.वि. तथा गुरु नानक देव वि.वि., अमृतसर के हिंदी विभागों में मेरी कहानियों पर शोधार्थियों ने शोध-कार्य किया है ।
'हंस' में 2008 में प्रकाशित मेरी कहानी " मेरा जुर्म क्या है ? " पर short film भी बनी है ।
आकाशवाणी , दिल्ली से कई बार मेरी कविताओं और कहानियों का प्रसारण हुआ है ।
मैं पंजाबी और अंग्रेज़ी में भी लेखन-कार्य करता हूँ । मेरा अंग्रेज़ी काव्य-संग्रह ' इन गाँधीज़ कंट्री ' हाल ही में प्रकाशित हुआ है । मेरा अंग्रेज़ी कथा-संग्रह ' द फ़िफ़्थ डायरेक्शन' प्रेस में है ।
मैंने 1994-1996 तक डी. ए. वी. काॅलेज , जालंधर में अंग्रेज़ी व्याख्याता के रूप में भी कार्य किया है ।
साहित्य के अलावा मेरी रुचि संगीत, शतरंज , टेबल टेनिस और स्केचिंग में भी है ।
पिछले पंद्रह वर्षों से मैं संसदीय सचिवालय में अधिकारी हूँ और दिल्ली में रहता
हूँ ।
COMMENTS