भगवान बुद्ध जयंती पर विशेष चलें बुद्ध के दिखाए रास्ते पर रितिका कमठान भारत की पवित्र भूमि पर कई महापुरूषों ने जन्म लिया है, जिनके ...
भगवान बुद्ध जयंती पर विशेष
चलें बुद्ध के दिखाए रास्ते पर
रितिका कमठान
भारत की पवित्र भूमि पर कई महापुरूषों ने जन्म लिया है, जिनके कारण मानव जीवन के रहस्यों को उजागर किया गया है। उनके कृत्यों और सिद्धांतो के बल पर मानव जीवन को नया रास्ता मिला है। ऐसे महापुरूषों में से एक हैं महात्मा बुद्ध। इन्होंने मनुष्य के रूप में जन्म लेकर आध्यात्म की उस उचांई को छुआ जो आम इन्सान के बस के बाहर है। इस महान पुरूष द्वारा दिखाए गए मार्ग को लोगों ने एक धर्म के रूप में ग्रहण किया। इसका परिणाम यह हुआ की बौद्ध धर्म को भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के कई देशों में धर्म के रूप में स्वीकार किया गया।
महात्मा बुद्ध का असली नाम सिद्धार्थ था, लेकिन गौतमी द्वारा पाले जाने के कारण इन्हें गौतम भी कहा गया। बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद इनके नाम के आगे बुद्ध भी जोड़ दिया गया। ये महात्मा बुद्ध के रूप में प्रसिद्ध हो गए। बुद्ध जयंती गौतम बुद्ध के आदर्शों और बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों के लिए बेहद खास दिन है। कहा जाता है की महात्मा बुद्ध पूर्णिमा के दिन धरती पर आए थे। इसी दिन उन्हें बुद्धत्व के साथ साथ महापरिनिर्वाण की भी प्राप्ति हुई थी।
जीवन पर एक नजर
सिद्धार्थ का जन्म शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलावस्तु के राजा शुद्धोधन के घर हुआ था। दुर्भाग्यवश जन्म के सात दिन भीतर ही सिद्धार्थ की मां का निधन हो गया था। इनका पालन पोषण रानी महाप्रजावती ने किया था। सिद्धार्थ के जन्म के समय ही साधु ने ने यह कहा था की यह बच्चा या तो एक महान राजा बनेगा या फिर एक पव़ित्र मनुष्य के रूप में पहचाना जाएगा। अपने बेटे के बारे में ऐसी भविष्य- वाणी को सुनकर सिद्धार्थ के पिता यानी राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ को हर हद तक दुख से दूर रखने की कोशिश की, लेकिन सिद्धार्थ काफी कम आयु में ही जीवन और मृत्यु का सत्य समझ गए थे। वे जान चुके थे कि जिस प्रकार हमारा जन्म लेना एक सच्चाई है वैसे ही बुढापा और मृत्यु भी जीवन की हकीकत है। इसे सिद्धार्थ टालना किसी के बस की बात नहीं है। यह संसार की सबसे बडी सच्चाई है। इससे रूबरू होने के बाद महात्मा बुद्ध ने सभी सांसारिक खुशियों और विलासिता के जीवन को त्याग दिया।
बुद्धत्व की प्राप्ति
दो अन्य ब्राम्हणों के साथ सिद्धार्थ अपने प्रश्नों के उत्तर ढूंढने निकले, लेकिन बहुत मेहनत और ध्यान लगाने के बाद भी उन्हें अपने प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले। हर बार उन्हें निराशा का ही सामना करना पड रहा था। फिर उन्होने तय किया की अपने कुछ साथियों के साथ वो कठोर तप करेंगे। छः वर्षों के कठोर तप के बाद भी वह अपने उददेश्यों को पूरा नहीं कर पाए थे। इसके बाद इन्होने आष्टांग मार्ग जिसे मध्यम मार्ग भी कहा जाता है ढूंढ निकाला। वह एक पीपल के पेड के नीचे इस निश्चय के साथ बैठ गए की जब तक उन्हें उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं मिलेगा वे वहां से नहीं उठेंगे। करीब 49 दिनों की घोर ध्यान में रहने के बाद उन्होंने ज्ञान को प्राप्त किया। मात्र 35 वर्ष की आयु में ही उन्होंने ज्ञान प्राप्त कर लिया और वे सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध बन गए। ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् महात्मा बुद्ध दो व्यापारियों से मिले जो उनके पहले अनुयायी बने। इन्होंने अपना पहला उपदेश वाराणसी के समीप सारनाथ में दिया।
बुद्ध का महापरिनिर्वाण
बौद्ध धर्म के साहित्य में लिखा गया है की 80 वर्ष की आयु में खुद महात्मा बुद्ध ने यह घोषित कर दिया था की वे जल्द ही महापरिनिर्वाण की अवस्था में पहुंच जाएंगे। इसके बाद महात्मा बुद्ध ने कुंडा नामक लुहार के हाथ से आखिरी निवाला खाया था। इसके बाद उनकी हालत काफी खराब हो गई थी। बुद्ध की ऐसी हालत को देख लुहार को लगा यह सब उसके हाथ से खाए गए निवाले के कारण हुआ है। फिर महात्मा बुद्ध ने अपने एक अनुयायी को लुहार को समझाने भेजा। वै़द्य ने भी यह प्रमाणित कर दिया था की उनका निधन वृद्धावस्था के कारण हुआ था ना की विषैले खाने के कारण।
बौद्ध की शिक्षा
-सम्यक दृष्टि-इसका अर्थ है कि जीवन में हमेशा सुख दुख आते रहते हैं। हमें हमेशा अपने नजरिये को सही रखना चाहिए। अगर आज दुख है तो उसे दुर भी किया जा सकता है।
-सम्यक संकल्प-इसका अर्थ है कि जीवन में जो काम करने योग्य है, जिनको करने से दूसरों का भला होता है, ऐसे कार्य हमें अवश्य करने चाहिए। दूसरों को हानि पहुंचाने वाले कार्य कभी नहीं करने चाहिए।
-सम्यक वचन- इसका अर्थ यह है कि मनुष्य को जीवन में अपनी वाणी का सदुपयोग करना चाहिए। असत्य, निंदा और अनावश्यक बातों से बचना चाहिए।
-सम्यक कर्मांत-मनुष्य को किसी भी प्राणी के प्रति मन, वचन, कर्म से हिंसक व्यवहार नहीं करना चाहिए। बुरे आचरण और भोग विलास से दूर रहना चाहिए।
-सम्यक आजीविका-गलत, अनैतिक और अधार्मिक तरिकों से आजिविका प्राप्त नहीं करनी चाहिए।
-सम्यक व्यायाम-बुरी और अनैतिक आदतों को छोडने का सच्चे मन से प्रयास करना चाहिए। हमेशा अच्छी आदतों को सीखने के लिए तत्पर रहना चाहिए।
-सम्यक स्मृति-इसका अर्थ यह है की हमें कभी भी यह नहीं भूलना चाहिए की सांसारिक जीवन क्षणिक और नाशवान है।
-सम्यक समाधि- इसमें ध्यान करने से मन कीअस्थिरता, चंचलता शांत होती है। अनावश्यक और नकारात्मक विचारों में वृद्धि नहीं होती हैं।
सुंदर आलेख ।
जवाब देंहटाएंAAP NE BOHOT HI SUNDAR LEKH LIKHA HAI MAHATAMA BUDDHA PAR.....AAPKO BADHAI
जवाब देंहटाएंबुद्ध जयंती के पावन अवसर पर यह लेख रुचिकर लगा .
जवाब देंहटाएंइक वास्तविक त्रुटि है, राजकुमार सिद्दार्थ का जन्म अपने पिता राजा शुद्धोदन के राजमहल में नही हुआ था बल्कि उनका जन्म लुम्बिनी वन में हुआ था ।
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