नन्दलाल भारती की 2 कहानियाँ

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डॉ .नन्दलाल भारती   सांस की कीमत गीतू बाई इस महीने बिना बताये तुमने कम से कम पन्द्रह दिन की छुट्टी कर ली है। बेटी तू बता ऐसे छुट्टी मारे...

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डॉ.नन्दलाल भारती

 

सांस की कीमत

गीतू बाई इस महीने बिना बताये तुमने कम से कम पन्द्रह दिन की छुट्टी कर ली है। बेटी तू बता ऐसे छुट्टी मारेगी तो तुम्हारे काम करने से क्या लाभ होगा। तू मेरी तकलीफ देख रही है।कमरे उठने बैठने नही देती । घुठने ारीर का बोझ नही उठा रहे है। दो कदम चलने में सांस टंग जाती है। तू है कि मुझसे झाडू-पोंछा करवा रही है। गीतू तू ही बता तेरी पन्द्रह दिन की तनयवाह काट लूं तो तुझे क्या मिलेगा। हर घर में ऐसे ही काम करती होगी तो तुम्हारे बच्चों को तो फांका करना पड़ जायेगा। क्या हुआ कुछ बोलती क्यों नही। पति से लड़ाई हो गयी थी फिर मारपीट कर तेरी मेहनत की कमाई से रंगरेलिया कर रहा है।छोड़ ऐसे नालायक पति को जो घरवाली की कमाई पर पलता हो। शबाब,शराब और कबाब जिसकी जिन्दगी हो। नशे में रात भर ारीर के पुर्जे-पुर्जे हिला कर रख देता हो फिर भी मन नही भरता हो,ऐसे वैवाहिक जीवन से तो विधवा जीवन अच्छा है। दे दे तलाक। घिसौनी -पिसौनी कर तम कुछ रूपया इक्ट्ठा करती है बेशर्म छिन कर शबाब,शराब और कबाब पर उड़ा देता है।ना बच्चों की फिक्र ना उनकी पढ़ाई लिखाई ना घरवाली की बस फिक्र है तो अपने ऐश की।ऐसे पति के रहने का क्या सुख। क्यों गूंगी बनी खड़ी है जो फ्रिज में दूध है चुटकी भर हल्दी डालकर एक गरम कर पी ले ारीर का दर्द कम हो जायेगा।बहुत मार दिया है मुंह्फुकवना,मुंह तो सूजा लग रहा है।ना जाने किस जन्म का बदला ले रहा है,तुम्हारी हर सांस की जैसे कीमत वसूल रही है।बेचारा बाप तेरे दिल के मरीज है उनसे तू अपना दर्द भी नहीं कह सकती, मां स्वर्ग सिधार चुकी,भाई अपने-अपने पविार में मस्त है सब कुछ एक अबला को सहना पड़ रहा है।पति का दिया दुख तो नरक के दुख के समान होता है बेटी।मैं बोली क्या-क्या बके जा रही हूं तू जा दूध हल्दी गरम कर पी ले। मेरे घर में थोड़ा अराम कर ले। काम कि चिन्ता छोड़ मैं जैसे पन्दह्र दिन से कर रही हूं और कर लूंगी तू पैसे की चिन्ता ना कर तेरी तनख्वाह भी नहीं काटूंगी। बाद में तू इमोशनल ब्लैकमेल करने लगोगी मदद तेरी तो मुझे करनी ही पड़ेगी। ये तो मैं भी जानती हूं और तू भी । अब जा गीतू दूध हल्दी गरम कर पी ले दयावन्ती कड़क आवाज में बोली।

गीतू-मेमसाहब वो बात नही है।

दयावन्ती-फिर क्या मुसीबत है तेरे उपर । तेरे पांव फिर भारी हो गये क्या ? अभी तेरा तीसरा बच्चा बकईया भी नही चल पा रहा है तब तक चौथे की तैयारी हो गयी।अच्छा इसीलिये तेरे मन खट्टा खाने का हो रहा था। तू बाईस साल की उम्र में चौथे बच्चे को जन्म देने जा रही है। ाहर की अट्ठाइस साल तक की लड़किया कह रही है ाादी करने की उम्र नही हुई हैे। गीतू तू हर साल एक बच्चा पैदा करेगी तो क्या होगा तेरा। सूख कर कांटा हो चुकी है,बच्चा पैदा करने का रिकार्ड बनाने पर तूली हुई है।

गीतू-मेमसाहब ऐसी बात नही है।मेरे पांव भारी नहीं हुए है।

दयावन्ती-पावं भारी का नाम सुनकर जबान खुली है।जब तेरे पांव भारी नही है तो असली मुसीबत क्या है जिसकी वजह से तू कसाई के खूटे पर बंधी गाय लग रही हो । क्यो इतनी डरी सहमी हो मुसीबत क्या है।

गीतू-मेमसाहब सासू ।

दयावन्ती-क्या बोला दस मिनट से तो गूंगी बहरी बनी हुई थी,मुह खोली तो आग उगल दी। अरे विपत्ति की मारी सासू तो मां होती है। सास-ससुर धर्म के मां-बाप होते है।मां बाप धरती के भगवान कहे जाते है । तू है कि सासू को मुसीबत कह रही है।

गीतू-सासू बीमार है ।

दयावन्ती-दवा-दारू करो। बुढ़े मां-बाप को मुसीबत नही समझना चाहिये । अपनी हैसियत भर सेवा-सुश्रुाा करने चाहिये। मां -बाप खुश रहेंगे तो औलादों के जीवन में खुशियां ही खुशियां होती है।

गीतू-पांच दिन से भर्ती है।

दयावन्ती-भर्ती है।इतनी तबियत खराब है तो तू आयी क्यों बच्चे से संदेश भेजवा देती। जा सासू की देखरेख कर काम तो हो जायेगा।हुआ क्या है।

गीतू-दिमाग की नस फट गयी है डाक्टर ऐसा बता रहे है।

दयावन्ती-पांच दिन पहले दिमााग की नस फट गयी थी। अभी अस्पताल में भर्ती है।

गीतू-जी मेमसाहब डाक्टर आपरेशन करने को कह रहे है।ढाई लाख रूपया एकमुश्त जमा करवाने को कह रहे है। बोल रहे है आपरेशन नही हुआ तो जान जा सकती है।वेल्टीलेटर पर रखे हुए है,देखने तक नही देते है।

दयावन्ती-कौन से हास्पिटल में भर्ती है।

गीतू-सरबिन्दो बहुत बड़ा अस्पताल है।

दयावन्ती-हास्प्टिल का मालिक डाक्टर विनोद लमपटचारी भी बहुत बड़ा भ्रट्राचारी है।कई महीनों से जेल में है।

गीतू -क्या कह रही हैं मेम साहब।

दयावन्ती-सच कह रही हूं ।डाक्टर क्या कत्ली है पैसा के लिये कुछ भी कर सकता है।मेरा भी जीवन नरक उसी का बनाया हुआ है। प्रदेश का विशालतम अस्पातल भ्रट्राचार की नींव पर ही खड़ा है।

गीतू-क्या आप भी वेल्टीलेटर पर थी।

दयावन्ती-नहीं पर पेट के आपरेशन में अतडियां काट डाला।दिल्ली बम्बई कहां कहां गयी तब जाकर जान बची।केस भी की थी पर डाक्टर विनोद लमपटचारी ने सब को पैसे के बल पर खरीद लिया मैं बेबस देखती रही। बेचारे गुंजन के पापा अकेले क्या -क्या करते।सब धन दौलत सब लूट गया। आज अपाहिजों जैसी जिन्दगी बसर कर रही हूं उसी लमपटचारी की देन है।

गीतू- डाक्टर लमपटचारी आपकी केस के सिलसिले में जेल में क्या ?

दयावन्ती-नही रे मेरी केस तो बीस साल पुरानी है। पी.एम.टी.फर्जीवाड़े में जेल गया है। बहुत सालों के बाद पाप का घड़ा फूटा है।लमपटचारी देश का दुश्मन है,देश की जनता का दुश्मन है,देश के तमाम डाक्टर बनने की उम्मीद लिये रात-दिन एक करने वाले छात्र-छात्राओं और उनके मांता-पिता का दुश्मन है। चालीस -चालीस लाख रूपये लेकर फर्जी तरीके से उन लड़कों को तक को डाक्टर बना रहा था जो पी.एम.टी. की परीक्षा तक नही दिये थे । यह खेल कई सालों से चला रहा था । मेरे गुंजन का भविय मुर्दाखोर डा.लमपटचारी ने अंधकारमय बना दिया है। बेचारा तीन साल से लगातार दिन-रात एक कर पढ़ाई कर रहा है। लाखों तो टयूशन पर खर्च हो गये पर एडमिशन नही हो पाया । होता कैसे मुर्दाखोर उपर तक सांठगांठ कर चालीस-चालीस लाख रूपये लेकर फर्जी तरीके से एडमिशन देने का काला धंधा जा करने लगा था। पी.एम.टी.फर्जीवाड़े में ाामिल मुर्दाखोर डा.विनोद लमपटचारी सहित सभी मुर्दाखोरों को फांसी की सजा होनी चाहिये।

गीतू-मेम साहब क्या हम मुर्दाखोर के जाल में तो नहीं फंस गये है।

दयावन्ती-इंकार तो नहीं किया जा सकता।तुम्हारी सासूं मां को हुआ क्या था ?

गीतू-पेट में दर्द था बस ।

दयावन्ती-इतनी दूर सरबिन्दो अस्पताल चली गयी। यहीं पास चौराहे के पास इतना बढ़िया एम.डी.डाक्टर हैं बस दस रूपया लेते है।हो तो दे दो ना हो तो कभी मांगते भी नही। इतनी अच्छी दवाई देते है दूसरी बार जाने की जरूरत नही नहीं पड़ती। तुम ना जाने कैसे मुर्दाखोर डा.विनोद लमपटचारी के अस्पताल पहुंच गयी।

गीतू-सुनी थी बहुत सस्ता इलाज होता है पर क्या दूसरे दिन आनन फानन में वेल्टीलेटर पर रख दिया।

दयावन्ती- मुर्दाखोर डा.लमपटचारी के अस्पातल में इलाज वह भी सस्ता,अरे वो तो ऐसा डाक्टर है कि तुम्हारे ारीर के पुर्जे तक बेंच दे। तुमको लगता है कि वहां सस्ता इलाज हो जायेगा।सप्ताह भर में पैतृक जमीन बिक गयी।

गीतू-मेमसहब जीमन भी बिक गयी बुढ़िया जमीन पर लात भी नही मार ही है। ना जाने और कब तक वेल्टीलेटर से चिपकी रहेगी।

दयावन्ती-तुम लोग अब सरबिन्दो अस्पताल के डाक्टरों के चंगुल में फंस गये हो। देखो पड़ोस में विधवा बनकर बैठी है। मामूली सा जुकाम बुखार था,ना जाने ऐसी कौन सी दवाई दे दिये कि हालत खराब हो गयी उसे भी वेल्टीलेटर पर रख दिया था। बाद में पता चला कि उसके दिमाग की नस फट गयी। ये लोग तो पैसे वाले थे, राक्षस का मुंह नहीं भर पाये । आखिरकार बड़ी मुश्किल से छुट्टी करवा दूसरे अस्पताल में लगे पर बहुत देर हो चुकी थी,बेचारा भरी जवानी में मर गया।उसकी घरवाली दो बच्चों को लेकर विधवा जीवन जीने का विवश है।

गीतू-मेरी सासू के साथ ऐसा तो नही होगा ना।

दयावन्ती-मैं तुझे डरा नही रही हूं,सच बता रही हूं,पड़ोस में जाकर पूछ ले।

गीतू-मेरी छोटी ननद और देवर है उनका ब्याह तक नही हुआ है। ससुर गांव में बैठे राह देख रहे है कि बुढ़िया आज आयेगी कल आयेगी पर क्या बुढिय़ा तो सरबिन्दो अस्पताल के वेल्टीलेटर में अकड़ी पड़ी है।

दयावन्ती-दयावन्ती तुम तो दुआ करो तुम्हारी सासूमां अस्पताल से बाहर आ जाये बस।मुझे तो डर लग रहा है।

गीतू-कैसा डर मेमसाहब

दयावन्ती-हमारे परिचित है,अपनी ही गली में ाुरूवात में 15 नम्बर का मकान है,एक दिन अचानक रात में गैसे होने लगी।उनके यहा रिश्तेदार आये थे,खाना देर से खाये देर से सोये भी।खाना पचा नही रात में चार बजे खूब गैस होने लगी वे भी भले मानुा गाड़ी उठाये छेटे बेटे को लेकर सरबिन्दो अस्पातल पहुंच गये। कहते है ना विनाश काले विपरीत बुद्धि।रात में उन्हें जर्बदस्ती भर्ती कर लिया। दो घण्टे के बाद बोला सुगर लेवल बहुत बढ़ गया है,जबकि उन्हें ाुगर कभी थी ही। दो दिन बोतले चढ़ाते रहें एक लाख का बिल बन गया। तीसरे दिन बोले आंते चिपक गयी है। आपरेशन करना पड़ेंगा। घर वाले पहुंचे उससे पहले चिरफाड़ कर डाले। सप्ताह भर में कई लाख ले लिये पर हुआ कुछ नहीं। आखिरकार फटा हुआ पेट लेकर कहां-कहां भटके खैर कुछ आराम तो है पर जीवन तो नरक बना दिया ना डाक्टर विनोद लमपटचारी,उसका डांक्टर बेटा रोहित और सरबिन्दों अस्पताल के दूसरे डाक्टरों ने ।

गीतू-मेरी सास वेल्टीलेटर से नही उठी तो मेरा तो धन भी गया और सास भी।

दयावन्ती-सांस की कीमत तो नही वसूल रहे सरबिन्दो वाले।

गीतू-सांस की कीमत कैसे वसूल रहे है मैं समझी नही मेमसाहब।

दयावन्ती-कौन सी बीमारी का इलाज चल रही है,वेल्टीलेटर पर डाक्टरों ने बताया कि नही।

गीतू-दिमाग की कोई नस फटने की बात कह रहे थे।

दयावन्ती-दिमाग की नस फट गयी है और सप्ताह भर से वेल्टीलेटर पर। मुझे तो सब कुछ काला ही काला नजर आ रहा है।

गीतू-मेमसाहब क्या कह रही हैं मेरी समझ में तो कुछ नही आ रहा है।

दयावन्ती-तुम डाक्टर लमपटचारी के अस्पताल के चक्रव्यूह में फंस गयी हो ।जल्दी निकलने की कोशिश करो।

गीतू-ससुरजी इंतजार कर रहे थे कि बुढ़िया जल्दी ठीक -ठाक होकर गांव वापस आ जायेगी पर अब उनके भी धैर्य का बांध टूट गया है। गांव का कुछ और खेत बेचकर कल तक वे भी आ रहे है।उनके आने पर ही कुछ हो सकता है।

दयावन्ती- डाक्टर लमपटचारी के अस्पताल के बारे में सभी जान गये है। कितनी ठगी वहां होती है। रही बात तुम्हारी सास को वेल्टीलेटर से उठ खड़ा होने की तो वे लगता नही है।

गीतू-ऐसी क्या बात हो गयी होगी मेम साहब ।

दयावन्ती-तू बता रही है दिमाग की नस फट गया है।पेट के दर्द के इलाज के लिये तुम ले गयी थी तो दिमाग की नस क्यों फटी।अब वेल्टीलेटर पर रखकर आापरेशन करने के नाम ढाई लाख रूपये की मांग कुछ गलत तो हो रहा है।कही वेल्टीलेटर पर रखकर सांस की कीमत तो नहीं वसूली जा रही है।

गीतू-क्या वेल्टीलेटर से नकली सांस आती है।

दयावन्ती-यही मान लो। आजकल अस्पताल में ठगी का नया चलन ाुरू हो गया है। लाश को वेल्टीलेटर पर रखकर परिजनों को कंगाल कर देते है।

गीतू-कही मेरी सांस को तो नही मार दिया अस्पातल वालो ने हाईडोज की दवाई देकर। मेम साहब ठीक कह रही है। मेरी बुढ़िया को तो दिमाग की कोई बीमारी ही नही थी। दिमाग की नस कैसे फट गयी ।

दयावन्ती-यही तो चिन्ता की बात है।इसलिये ाक की सुई घूम रही है कहीं।

गीतू-क्ही क्या क्या मेम साहब में सास मर तो नही गयी है सप्ताह भर पहले। मरी हुई सास को नकली सांस देकर उसकी कीमत के नाम पर आपरेशन का झांसा तो नही दे रहे है।

दयावन्ती-डां.लमपटचारी के झांसे में तो कई सड़क पर आ गये है। कईयों के घर जमीन तक बिक चुके है। रात दिन एक कर डाक्टर बनने का सपना देखेने वाले छात्रों का भविय बर्बाद कर चुका है डां.लमपटचारी।पी.एम.टी. महाघोटाले का सरगना डा.लमपटचारी ही तो है। देखो कल की ही तो बात है डा.लमपटचारी के डाक्टर बेटे ने टीवी एक्टर का आपरेशन किया था,बेचारा वह भी आज मर गया। ना जाने क्यों भगवान कहे जाने वाले डाक्टर को स्वार्थ की दावानल ने ऐसा जकड़ लिया है कि था स्वयं ौतान बन गये है।गीतू तू मेरी बात मान।

गीतू-क्या मेमसाहब ?

दयावन्ती-तेरा पति कहां है।

गीतू-अस्पताल मां की सेवा में लगे है।

दयावन्ती-मां वेल्टीलेटर पर है तो क्या सेवा कर रहा होगा।

गीतू-अस्पताल की सीढ़ी पी बैठे -बैठे सप्ताह बित गया। ढाई लाख का इन्तजाम हो जाये तो आपरेशन करवायें, इसी उम्मीद में बाप का इन्तजार कर रहे है कि वे खेत बेचकर रूपया लेकर आये और अस्पताल में जमा हो जाये ताकि उनकी मां वेल्टीलेटर से उठ खड़ी हो।

दयावन्ती-उम्मीद मत छोड़ो ।देखो तुम्हारे ससुर आज नही तो कल आ जायेगा। तुम अस्पताल जाओ अपने पति से बोलो रूपये की चिनता ना करे,मां की चिन्ता करें।

गीतू-मेमसाहब सप्ताह भी में सूखकर कांटा हो गये है मां कि चिन्ता में।कभी बच्चों की चिन्ता किये नही पर मां कि चिन्ता में बावले हो रहे है।मुझे भी कई बार लतिया देते है। जितनी बार जाती हूं बस रूपया मांगते रहते है,बताओं कहां से इतना रूपया लाकर दूं।बाप भले ही कहने को दरबार है पर सुबह खाओं तो रात कि चिन्ता रात को ााओ तो सुबह की।

दयावन्ती-तुम अस्पताल जाओं बोलो पसे का इन्तजाम हो गया है,ससुरजी गांव से रूपये लेकर आयेगे तो वापस कर देगे। बस डाक्टर से पूछो आपरेशन के बाद सासूमां पहले जैसे चलने फिरने लगेगी। अगर डाक्टर बोले हां तो कहना मुझे गारण्टी चाहिये वह भी लिखित में।पैसा अभी जमा करती हूं।

गीतू-मेम साहब पास में तो ढाई हजार नहीं है।

दयावन्ती-पैसे की चिन्ता ना कर जैसे बोल रही हूं ठीक वैसा करो।

गीतू सीधे अस्पताल पहुंची,अस्पताल की बाहरी बाउण्ड्री के पास बैठा उका पति चकोदर उठा-उठा कर कंकड़ फेंक रहा था पर कई दिनों से उसका नशा उतरा हुआ तो था पर बिना पीये नशे में।गीतू को देखते ही बोला क्या महरानी रूपये का इन्तजाम हो गया। गीतू बोली हां हो तो गया है पर ससुर जी के गांव से आते ही वापस करना है।वह बोला धततेरी की......

गीतू-धत्तेरी का क्या मतलब ?

चकोदर-हपते भर बाद इन्तजाम भी हुआ तो इधर से लो उधर तो वाली ार्त पर। कुछ मोहल्लत तो ले लेती।

गीतू-वह भी भी मिल जावेगी।चलो डाक्टर रोहित से आपरेशन बात कर लेते हैं।

चकोदर और गीतू डाक्टर के चैम्बर में प्रविट होकर कुछ बोलते इसके पहले डाक्टर ने पूछ लिया क्यों चकोदर मां कब तक तड़पाओगे। क्या कलयुग के लडके है।

गीतू-डाक्टर साहब रूपये का इंतजाम हो गया है,आपरेशन कब होगा।

डाक्टर-आपरेशन तो तुम लोगों के उपर है रूपया जमा कर दो। आपरेशन ाुरू हो जायेगा।बात करते करते डाक्टर ने अस्पताल के और कई डाक्टरों को बुला लिया।आपरेशन का टाइम निर्धारित होने लगा। सम्बे विमर्श के बाद रात दस बजे का टाइम निर्धारित हुआ।इसके पहले चकोदर को ढाई लाख रूपया कैश काउण्टर पर जमा कर रसीद ले लेन का हुक्म भी डाक्टर ने दे दिया।

गीतू भी कहां कच्ची गोलियां खेल रही थी। वह बोली डाक्टर साहब मेरी सास ठीक तो हो जायेगी।

डाक्टर-बिल्कुल ठीक हो जायेगी।राजस्थान के रेगिस्तान में दौउ़ाने का विचार है क्या ?

गीतू एक थैला दिखाते हुए बोली डाक्टर साहब पैसा तो अभी जमा करवा देगे पर मुझे लिखित में चाहिये कि मेरी सास ठीक हो जायेगी आपरेशन के बाद।वह जिद कर बैठी।इतने में डाक्टर ने फोन पर कुछ अंग्रेजी में खुसुर-फुसुर किया और कुछ ही सेकेण्ड में एक नर्स बदहवास सा चेहरा बनाये भागती हुई आयी और बोली डाक्टर साहब मुन्नीबाई की सांस रूक रही है।नर्स के पीछे-पीछे डाक्टरों की टोली चल पड़ी उनके पीछे-पीछे चकोदर और गीतू भी पर दरवाजे पर ही इन दोनो को रोक दिया गया।डाक्टर अन्दर गये और तुरन्त बाहर आ गये।

गीतू पूछी क्या हुआ डाक्टर साहब में सास का ।

डाक्टर-अब आपरेशन की जरूरत नही।

गीतू ने तुरन्त पति चकोदर से 100 नम्बर डायल करवा दिया और पांच मिनट के अन्दर पुलिस आकर लाश को कब्जे में लिया।पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से ज्ञात हुआ कि मुन्नीबाई पांच दिन पहले मर चुकी थी परन्तु सरबिन्दो के अस्पतल वाले कृतिम सांस की कीमत वसूल रहे थे। केस कोर्ट में गया कोर्ट ने डाक्टर रोहित की प्रैक्टिस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। इसके साथ डाक्टर रोहित को तीन माह का सश्रम कारावास और सांस की वसूली गयी कीमत में पांच लाख और जोड़कर वापस करने का आदेश भी कोर्ट ने दे दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा कि डाक्टर को भगवान कहा जाता है परन्तु डाक्टर स्वार्थ में अपने दायित्वों को भूलकर सांस की कीमत वसूलने लगे है,इससे चिकित्सीय पेशा बदनाम हुआ है। डाक्टरों को चाहिये कि वे ईमानदारीपूर्वक वाजिब ाुल्क लेकर सेवा प्रदान कर आम आदमी का विश्वास प्राप्त करें। डाक्टर विनोद लमपटचारी और डाक्टर रोहित लमपटचारी सजा पूरी करने के बाद डाक्टर तो रहे नही उनकी डिग्री छिन गयी । विनोद लमपटचारी और रोहित लमपटचारी ने सास के बदले वसूली गयी कीमत मानव सेवा पर न्यौछावर करने की कसम खा लिये । दोनो बाप बेटे तन मन और धन से परमार्थ के काम में जुट गये। मुन्नीबाई की मूर्ति अस्पातल परिसर में स्थापति हो गयी। अब वही सरबिन्दो अस्पतल जो सांस की कीमत वसूलने के लिये बदनाम था अब गरीबों का अस्पताल बन चुका था ।

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बन्द दरवाजा

एसी कमरे से बन्द दरवाजे के पीछे से रह-रह कर आ रही बेशर्म ठहाके की गूंज रणबीर के कानों को पिघले हुए ाीशे के दिये दर्द एहसास करा रही थी। वही एसी कमरे के दरवाजे के सामने 40 डिग्री तापमान से अधिक में तप रहे रणबीर को ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठे होने का भी। इसके बावजूद भी कर्तव्यनिठ रणबीर पसीने से तरबतर पंखे की खटपट के नीचे दायित्व निर्वहन जिम्मेदारी के साथ कर रहा था।इसी ड्राइवर तोताभाकुर की दस्तक हुई,वह एसी कमरे के बन्द दरवाजे के पास खड़ा होकर चपरासी गोपी से पूछा भइया दरवाजा क्यों बन्द रहने लगा है आजकल।

गोपी-गर्मी बढ़ गया है ।देखो दीवाल पर लगी घड़ी तापमान 40 डिग्री बता रही है।

तोताभाकुर -रणबीर बाबू को क्या गर्मी नही लग रही है ?

गोपी-देख नही रहा है पसीने से तरबतर है,तू आ कहां से रहा है। आते ही सवाल पर सवाल दागे जा रहा है।लगता है इस दफतर के कायदे कानून का तूझे पता नही।

तोताभाकुर-मैं कितने दिन का मेहमान हूं,टैक्सी का अनुबन्ध खत्म होते ही मेरी नौकरी भी यहां से खत्म। जो कुछ मैंने देखा है वह अत्याचार की श्रेणी में ही आता है।

गोपी-तू अत्याचार-भट्राचार पर भााण मत दे, आ कहां से रहा है।

तोताभाकुर-गुलामी करके।

गोपी-मतलब ........?

तोताभाकुर-मतलब में मत उलझ मेरे भाई,तुम्हारे छोटे साहब चम्मचधरबार की सेवा में गया था।कभी मझले साहब लोचाधरबार की सेवा में रहता हूं। मेरी नौकरी तो छोटे-मझले साहबकी टहलगीरी में ज्यादा चल रही है। धरबारों के बीवी बच्चों का जैसे गुलाम हो गया हूं।

गोपी-भाकुर छोटे साहब की सेवा में कहां गया था ?

तोताभाकुर-ये सब मत पूछा कर भाई मेम साहब और बच्चे बाजार करने गये थे एसी कार से।

गोपी-क्या किस्मत है,छोटे-बड़े साहब बन्द कमरे में एसी का आनन्द वैसे ले रहे है जैसे अय्याश राजा हाथ में जाम और दरबार हाल में नर्तकी की नांच का।

तोताभाकुर-रणबीर बाबू तो आइस से दूर फायर से फाइट कर रहे है।

गोपी ठण्डा पानी ही पिला देता।

गोपी-पानी भी घर से ले आते है।

भाकुर-आइस और फायर का द्वन्द।

गोपी-किस आइस और फायर की बात कर रहा है।बन्द दरवाजे के पीछे एसी की हवा और हाल के चालीस डिग्री के अधिक तापमान की या कोई और ..........?

भाकुर-यार गोपी तुम्हारे उपर भी धरबारी हवा का असर पड़ने लगा है।

गोपी-क्या कोई दुश्मनी निकाल रहा है।

भाकुर-तुम्हारा हमारा दर्द तो एक जैसे ही है तुम दैनिक वेतनभोगी चपरासी हो मैं ठेकेदार का ड्राइवर । भला मैं तुमसे क्यों दुश्मनी निकालूंगा। तुमसे दुश्मन की बात कहां से आ गयी।

गोपी-धरबारी रंग का असर हमारे उपर देख रहे हो क्या किसी बददुआ से कम है।

भाकुर-बददुआ कैसी राजपरिवार से नाता जुड़ जायेगा।

गोपी-नहीं जोड़ना कोई नाता रिश्ता बन्द दरवाजे वाली मानसिकता के लोगों से।इसी धरबारी हवस और रूढ़िवादी मानसिकता के मनुमहराज का दिया जख्म देश के टुकड़े-टुकड़े करवा दिया, देश के लोगों में उंच-नीच का इतना जहर भर कर बिखण्डित कर दिया कि एक साथ आज भी नही बैठ रहे है।नीचले तबके के कुएं का पानी अपवित्र तक घोाित कर दिया है रूढ़िवादी मानसिकता ने ।यह रूढिवादी मानसिकता मानसिक बन्द दरवाजे की तरह तो है।

भाकुर-तुम सामने वाले बन्द दरवाजे पर आ गिरे।

गोपी-यही मान लो भाकुर।

भाकुर-मानना क्या वो तो सामने दिख रहा है बन्द दरवाजा। दरवाजे के पीछे एसी की हवा में जश्न है,हाल के चालीस डिग्री तापमान में तन में उबलते लहू से निकलता झराझर पसीना।गोपी अत्याचार तो अत्याचार है।दरवाजे खुला रखते पहले जैसे तनिक रणबीरबाबू तक एसी की हवा आ जाती पर नहीं लगता है रणबीरबाबू साहब लोगों की निगाह में आदमी नहीं।तभी तो दरवाजा बन्द है।

गोपी-बन्द दरवाजे के पीछे जो कुछ होता है यकीनन दूसरों के लिये हितकारी नही होता।वह भी एसी कमरे में ।

भाकुर-मसलन।

गोपी-भाकुर जितनी योजना बनती है सब एसी कमरे के बन्द दरवाजे के पीछे बनती है,बनाने वालों के लिये खूब लाभकारी हो सकती है पर आमआदमी और हाशिये के आदमी के लिये नहीं।

भाकुर-तुम्हारा इशारा बढ़ते भ्रट्राचार की तरफ तो नही है।

गोपी-ठीक समझे।बन्द दराजे के पीछे एसी हवा की लहर कहीं ना कहीं अत्याचार है और भ्रट्राचार भी।

भाकुर-आदमियत का कत्ल कहना भूल गया क्या ....?

गोपी-तुमने कमी को पूरा कर दिया।बन्द दरवाजे ने तो पूरी पोल खोल दी।

भाकुर-कैसी पोल।

गोपी-रणबीर बाबू के खिलाफ साजिश की पोल।

बन्द दरवाजा से साजिश की जालुकात कैसे हो सकता है भाकुर बोला।

भाकुर कम्पनी में ड्राइवरी करते तुझे साल भर हुए है,मुझे चपरासी करते पांच साल,पांच साल में तो सरकार बदल जाती है पर यहां कुछ नही बदलता सब सामन्तवाद और वंशवाद के ढरे पर ढरकता रहता है।कम्पनी में बन्द दरवाजे की यही तासिर है। हम भी भुगत रहे है,सब खून चूसने पर उतावले रहते है।पांच साल में मेरी नौकरी पक्की करवाने के लिये कोई आगे नही आया।रणबीरबाबू ने कोशिश की थी वह भी बन्द दरवाजे के पीछे दफन हो गयी। खैर रणबीरबाबू की चलती कहां है। वे तो खुद संर्घारत् है। सुना है नौकरी ज्वाइन करने के कुछ महीने के बाद ही इनके दमन का चक्र चल पड़ा था जो आज तक चल रहा है। रणबीरबाबू उच्च वेलफयर,प्रबन्धन और कानूनी शिक्षा का हवाला देकर बेचारे प्रमोशन के लिये डायरेक्टर और एम.डी.तक को अपनी पीड़ा सुनाये पर दमन के अलावा कुछ हासिल नही हुआ।सामन्तवादी प्रबन्धन की दमनकारी मंशा को देखते हुए लगता है रणबीरबाबू का दमन आगे भी जारी रहेगा,गोपी कहते हुए उठा और एक गिलास पानी पेट में उतार कर पुनः बैठ गया।

कैसी बात कर रहे हो गोपी भाकुर बोला।

गोपी-सच कह रहा हूं,बन्द दरवाजे को देखकर तुम भी कुछ अंदाजा तो लगा ही रहे होगे।

भाकुर-मैं समझ नही पाया आज तक कि रणबीरबाबू से इतनी दूरी क्यों बनाते हैं कम्पनी के अफसर,जबकि रणबीर बाबू अच्छे इंसान हैं,विभाग के प्रति समर्पित रहते हैं,बिल्कुल समय पर आते हैं,पूरी ईमानदारी से काम करते हैं,देर से जाते भी है।इसके बाद भी कोई लाभ नही मिलता। दूसरी तरफ छोटे साहब बारह बजे आते हैं,खूब उपरी कमाई करते हैं।दफतर की कार का उनके घरपरिवार के लिये चौबीसों घण्टे हाजिर रहता है,वही हाल मझले साहब का भी है।आज तक मैं रणबीरबाबू का घर तक नही देखा और नही तुमको और हमको रणबीरबाबू ने कभी व्यक्तिगत काम के लिये नही बोला होगा । छोटे और मझले साहब तो घर का नौकर हम दोनों को समझते है।क्या कारण हो सकता है गोपी भईया ।

गोपी-जाति।

भाकुर-क्या विश्व की अग्रगणी कम्पनी में जातिवाद।

गोपी-हां,तभी तो रणबीरबाबू एसी कमरे के बन्द दरवाजे के सामने चालीस डिग्री तापमान में तपस्यारत् है।

भाकुर-उच्च पढे लिखे समाज की ये हाल है।उच्च शिक्षित और प्रतिठित आदमी को लू में सूखाया जा रहा है।क्या रणबीरबाबू उंची जाति के नही है। में तो सर्वश्रेठ समझता था।

गोपी-कर्म और शिक्षा से विभाग के सबसे श्रेठ है पर मनु महराज की नीति के अनुसार बहुत छोटे है।दुर्भाग्यवश देश में आज भी मनुमहराज की नीति बेखौफ जारी है,संविधान बदलने की बात तो होती है,जो दुनिया का सर्वश्रेठ संविधन है परन्तु मनुमहराज के अन्यायपूर्ण विधान को बदलने की बात नही होती।मनुमहराज ने तो ाूद्रो और आधी आबादी को इतने नीचे पटक दिया है कि इनके प्रति अत्याचार अन्याय,शोाण,भेदभाव का सिलसिला बेखौफ जारी है।इसी आग में रणबीरबाबू और उनका भविय तबाह हो गया है।

भाकुर-बन्द दरवाजे के रहस्य से परदा उठने लगा है धीरे-धीरे।समझ गया छोटे,मझले और बड़े साहब एक बिरादरी के है इसलिये नेक रणबीर बाबू की उपस्थिति अच्छी नही लगती है।

गोपी-बन्द दरवाजे ने तुम्हारे दिमाग की बत्ती जला दी।

भाकुर-ठीक कह रहे हो गोपी भईया ।

गोपी-रणबीरबाबू बहुत साजिशों के शिकार हुए है। तुम भले ही अपने को बड़ी जाति का मानकर अपने को उंचा समझता हो पर यहां हमारा और तुम्हारा कोई नहीं है बस रणबीरबाबू के सिवाय पर बेचारे रणबीरबाबू खुद बेबस है।यदि इनके साथ न्याय हुआ होता तो छोटे और मझले साहब रणबीरबाबू के सहायक अफसर होते । सामन्तवाद का जहर कम्पनी में ऐसा घुला है कि धरबारों के अलावा और कोई इस काम्पनी में नौकर पाने का हकदार ही नही था।रणबीरबाबू ौक्षणिक योग्यता के भरोसे किसी तरह आ तो गये पर पदोन्नति से दूर एसी कक्ष के बन्द कमरे के सामने लू में झुलस रहे है।

भाकुर-बापरे बन्द दरवाजे के पीछे की कहानी इतनी भयावह है।

ये खुदा मनहुसियत को

इतनी तरक्की क्यों बख दिया,

मनहुसों को चाभी सौंप कर

तुमने भी गुनाह कर दिया,

सामन्तवादीवासिन्दे पी रहे लहू

कमजोर नीचले जैसे बेगाने परिन्दे

खेल रहे कर्मवीरों की नसीबों से

खुदा ये गुनाह क्यों कर दिया ।

गोपी-भाकुर बन्द दरवाजे से उपजे दर्द ने तुम्हे भी ाायर बना दिया।

भाकुर-वाकई सामन्तवाद की तासिर भयवाह होती है,ये बन्द दरवाजे ने मौन सब कुछ बयां कर दिया।

गोपी-ये वही लोग है जो अंग्रेजो से मिलकर अपने ही देश और देश के लोगों को गुलाम बनवा दिया,आज भी वही फितूर इनके दिमाग में चल रहा है।इन्हे घाव पर मिर्च लगाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना आता है।वी.पी.जुल्मी डी.पी.जुल्मी,ए.पी.जुल्मी और भी कई जुल्मी तो रिटायर हो गये जो रणबीरबाबू की जड़ में जातिवाद का ऐसा जहर घोला कि विभाग में पनप नही पाये बस नौकरी भर बची है।

भाकुर-बन्द दरवाजे के पीछे तो बड़ा भ्रट्राचार है। ऐसे ही लोग तो ाोाित समाज और देश के विकास के दुश्मन है। देश में दूरसंचसार,बोफोर्स,ताबूत,कोयला और भी अनेक घोटाले स्वार्थियों ही ने तो किये है।इन घोटालेबाजों ने घोटालों की परिकल्पना एसी कमरे के बन्द दरवाजे के पीछे ही किये है।इन घोटालेबाजों ने देश को कई साल पीछे ढकेल दिया है।हाल में जो कोयला घोटाला हुआ है,सुनने में आता है कि एक लाख करोड़ का घोटाला हुआ है। इतनी रकम में तो कई कम्पनी खड़ी हो जाती।हमारे तुम्हारे जैसे रोजगार से हो जाते,ऐसे गुलामी नही करनी पड़ती। भ्रट्राचार बन्द दरवाजे का ही घिनौना खेल है जिसके भार से देश नही उबर सकेगा।मेरी समझ गोपी भईया अपने देश में जातिवाद कई महामारियों की जननी है,उसमें से भ्रट्राचार प्रमुख मुद्दा हो गया है।

गोपी-बात तो तू सही कह रहा है मेरे भाई पर उपर से नीचे सब भांग के कुयें में डूबे पड़े है अपना स्वार्थ सर्वोपरि है देश की किसी को चिन्ता नही,बस बांटो राज करो अंग्रेजो का दिया मूलमन्त्र ये काले अंग्रेज आत्मसात् कर चुके है।चुनावी घोाणापत्र में कोई पार्टी भ्रट्राचारियों की सम्पति को राजसात् करने का ऐलान नहीं करती,जातिवाद समाप्त करने को चुनावी मुद्दा नही बनाती,राट्रभााा हिन्दी हो इसको भी मुद्दा नही बनाती। इसका मतलब क्या हुआ बस यही येनकेनप्रकारेण सत्ता।देश देश का विकास,राट्रभााा,मानवीय समानता,जातीयउन्मूलन से कोई सरोकार नही। उल्टे ये इतने ाातिर होते है कि दंगा तक करवा देते है। लोकतन्त्र की आड़ में सामन्तवाद और वंशवाद फलफूल रहा है।यही सामन्तवाद ाोाितों की नसीब का दुश्मन बना हुआ है। उसका घिनौना रूप प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रहा है नन्हें से दफतर में जहां बस तीन स्टाफ है।बड़े स्तर पर कितना दर्द उपजता होगा बन्द दरवाजे के पीछे से।

भाकुर-गोपी भईया ठीक कह रहे हो। अपने देश का हर ाख्स मुखौटाधारी हो गया है कहता कुछ है करता कुछ है,दिखावा भर बड़ी-बड़ी बातें तो लोग करते हैं,जब बेटे-बेटी के ब्याह की बात आती है तो स्वजाति गोत्र,कुण्डली और ना जाने क्या क्या मिलान करवाते है।जातिवाद बात करने भर से खत्म नही होगा,खत्म करना होगा। स्वजातीय नही स्वधर्मी नातेदारी करनी होगी,लड़के लड़की की योग्यतानुसार दोगलेपन से न कुछ हुआ है ना होगा। हुआ है और होगा जातिवाद भ्रट्राचार,अत्याचार,शोाण और अब तो बलात्कार जैसी घिनौनी प्रवृति बढ़ने लगी हैं जिसकी तह में जातिवाद का जहर जरूर है।

गोपी-जातिवाद का घिनौना रूप तो रोज ना रोज कही न कही देखने और सुनने को मिल जा रहा है। कल ही की बात है गुजरात में दलित महिला को जिन्द जला दिया गया है।कल की ही बात सुनो-छोटे साहब मझले साहब और बड़े साहब यानि बिग बांस सामन्त धरबार चुनाव के मुददे नजर अपनी समर्थित पार्टी को जीताने की बात कर रहे थे।इस चर्चा में पोंगा पण्डित गोपाल,फील्ड अफसरभी ाामिल थे ।इसी बीच चम्मच धरबार को खुराफात सूझी वे बोले अरे रणबीर तुम भी अपनी राय साझा करो किसको जीता रहे हो ।

रणबीरबाबू बोले छोटा मुंह बड़ी बात अभी तक तो सभी पार्टियों ने वोट बैंक समझा है । वोट लेने के अलावा और कुछ नही किया है।

चम्मचा धरबार बोले थे- आरक्षण तो मिला है और क्या चाहिये ।

रणबीर बोले-जिसके खत्म करवाने का भी आन्दोलन चल रहा है। खत्म होना चाहिये,इसके पहले पुराने आरक्षण का खत्म होना जरूरी है होना।रही बात मतदान कि तो मैं तो उसी पार्टी के उम्मीदवार को वोट देना पसन्द करूंगा जो समाजिक समानता स्थापित करने यानि स्वधर्मी जातिविहीन समानता,राट्रहित-जनहित में काम करने का वादा और हिन्दी को राट्र बनानो का वादा करें।इतने में पोंगा पण्डित गोपाल,फील्ड अफसर बोले रणबीर की तो अपनी बहुजन समाज पार्टी है।उसे जीतायेगा।कुछ पल के लिये सन्नाटा छा गया था।भाकुर रणबीरबाबू कितनी भी ईमानदारी,वफादारी दिखा ले पर ये बांटने वाले अपनी चालबाजी से बाज नही आने वाले।यही है सामन्तवादी सोच,जो ाोाितों के पांव की जंजीर बनी हुई आजाद देश में।उन्हें गरीब,भूमिहीन और तरक्की से दूर बनाये रखने में इस सोच की भयावह भूमिका है।सच भाकुर दलित होना किसी दहकते दर्द से कम नही है।इस दफतर में रणबीरबाबू को देखकर तो मुझे यही लगता है।जब उच्च वर्णिक पढ़ा लिखा समाज जो आधुनिक होने का दावा तो करता है परन्तु जातिवाद से तनिक भी उपर नहीं उठ रहा भेदभाव वाली सोच रखता है तो रूढिवादियों के क्या कहने ?मुखौटाधारी देश कहां ले जा रहे है जबकि इस देश में जातीय उन्मूलन की अत्यन्त आवश्यकता है परन्तु धार्मिक सत्ताधाीश,सफेदपोश और सफेदकालर गूंगे बहरे अंधे बन बैठे है,इस एसी कमरे के बन्द दरवाजे के पीछे बैठे लोगों की तरह ।

भाकुर-सच गोपी भईया जातिवाद के रहते देश का विकास असम्भव है।

गोपी-रणबीरबाबू साढ़े छः बज गयी,घर नही जाना है क्या ?

गोपी बेटा काम तो हमें ही करना है ना रणबीर बोला ।

भाकुर-साहब बिना किसी फायदे के क्यो जान दे रहे हो,छोटे और मझले साहब तो हर महीने तनख्वाह के बराबर अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं फिर भी भूखे सियार की तरह मुंह मारते रहते है।छोटे साहब बारह बजे आते है रौब छाड़ते है वैसे ही जैसे कोतवाल चोर को डांटता है।बन्नरभभकी देकर अपनी सत्ता कायम किये हुए है। एक आप हो कि वफादादरी,पूरी ईमानदारी के साथ काम करने के बाद भी हक से वंचित हो।

रणबीर-कैद नसीब का मालिक हूं किसी से क्या प्रतिस्पर्धा वह भी जातीय गुट के दंगल में।

भाकुर-सच साहब अपनी जहां में रूढ़िवाद और सामन्तवाद हाशिये की आदमी की नसीब का असली कातिल है,और यही बन्द दरवाजे का सच भी।

इतने में एसी कक्ष का बन्द दरवाजा खुला,छोटे साहब चम्मचा धरबार दरवाजे के पीछे से तनिक झांके गोपी को डांटते हुए बोली कैसा चपरासी है चाय पानी तो पिला सकता है। गोपी कुछ बोलते उससे पहले छोटे साहब चम्मचा धरबारएकदम अन्दर की ओर भागे जैसे हाल की हवा ना होकर ज्वालामुखी का मुहाना हो। चम्मचा धरबार की उगली आग ने गोपी और भाकुर बर्दाश्त की हदें तोड़ दी। रणबीर कुर्सी से उठा और बोला बन्द दरवाजे की आग ने हाल का तापमान चालीस डिग्री से उपर बढ़ा दिया है,अब बर्दाश्त नही होता । आओ विरोध करें बन्द दरवाजे के खिलाफ दलित-पददलित के हित में।

डॉ.नन्दलाल भारती

आजाददीप,15-एम-वीणा नगर,इंदौर (म.प्र.)-452010

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. ' साँस की कीमत 'कहानी ज्वलंत समस्या पर आधारित है उसे कहानी के माध्यम से कहने का सराहनीय प्रयास किया गया है .

    जवाब देंहटाएं
  2. अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव8:30 am

    डॉक्टर भारती की पहिली कहानी"साँस की कीमत मेडिकल फील्ड में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनैतिकता मरीजों और उनके शारीरिक मानसिक तथा प्रत्यक्ष लूट सच पर आधारित है

    उनकी दूसरी कहानी "बन्द दरवाजा"कुछ पूर्वाग्रह ग्रस्त सोंच पर आधारित लगी इतने
    लम्बे समय करीब60वर्षों से लगातार आरक्षण मिलने और सरकार तथा समाज से सब सहयोग के बाद भी यह वर्ग खुश नहीं तो इसका सीधा
    मतलब है की आरक्षण नीति की पुनर्समीक्षा की आवश्यकता है और यह कि क्या ये नीति आगे जारी रखना चाहिये ?
    वैसे मनुवादियों को गाली देना आजकल फैशन में है

    मेरी जानकारी के अनुसार मनु और शतरूपा की
    संतान होने से सारे मनुष्य ही मनुवादी हैं न कि
    केवल अगड़ी जातियां जैसा कि कुप्रचारित किया
    जाता है


    मेरी टिप्पणियाँ बिना लाग लपेट सत्य पर आधारित हैं और डॉक्टर भारती इससे सहमत
    भी होंगे ऐसी आशा है

    जवाब देंहटाएं
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रचनाकार: नन्दलाल भारती की 2 कहानियाँ
नन्दलाल भारती की 2 कहानियाँ
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