1- शीर्षक-महान महान जिसे अंग्रेजी में ग्रेट हिन्दी में बड़ा, विशाल, अधिक बढ़कर, श्रेष्ठ, उच्च कोटी का कहते है। हमारे समाज में सबसे विवाद...
1- शीर्षक-महान
महान जिसे अंग्रेजी में ग्रेट हिन्दी में बड़ा, विशाल, अधिक बढ़कर, श्रेष्ठ, उच्च कोटी का कहते है। हमारे समाज में सबसे विवादास्पद शब्द है जिसे देखो वही अपने वालों को महान की उपाधि देता है और जन सामान्य को भ्रम में डालकर रखता है।
हमारे समाज में महानता की कसौटी क्या है, समाज में नेता प्रथम स्थान पर है उसके बाद साहित्यकार का नम्बर है। जिसमें लेखक, कवि, नाटककार, कहानीकार आदि आते हैं। उसके बाद फिल्मों के अभिनेता, गायक, संगीतकार आदि आते हैं। फिर शास्त्रीय संगीत से संबंधित गायक परिवार खानदान का नम्बर आता है।
हमारे यहां जैसा देश वैसा भेष की तर्ज पर सभी को महान बना दिया जाता है। जनता नेता को महान बताती है नेता जनता को महान बोलता है दोनों अपनी अपनी जगह महान है। जनता इसलिए महान है कि वह इतने दुःख तकलीफ, यंत्रणा, वेदना के बाद भी उसी नेता को चुनती है जो 5 साल उसके साथ लाईट गुल होने की तरह आंख मिचैली करता है। ऐसा नेता जिसने कभी भी किये गये वायदे आश्वासन को पूरा नहीं किया उसे 05 साल सिर्फ अपना पेट दिखाई दिया उसने जनता को पीठ दिखाई थी उसके बाद भी वह चुनकर आते हैं और महान होने के कारण जनता के भाग्य विधाता पालन हार कहलाते हैं।
नेता इसलिए भी महान है कि वह जनता की भलाई के नाम पर चुने जाते हैं और चुनते ही सब कुछ भूल जाते हैं और उसके बाद उसे घोटाला, कोटा, परमिट सौदे ही याद रहते हैं। उसे पानी, बिजली, शिक्षा रोटी के लिये तरसते तड़पती जनता दिखाई नहीं देती है। इसके बाद भी वह हिम्मत करके फिर से मैदान में सीना तानकर पहले से ज्यादा गाड़ी-घोड़े के साथ जनता के बीच वोट मांगने पहुंच जाते हैं। जनता को इतना दुख, तकलीफ देने के बाद भी वही चेहरे फिर से चुनकर आ जाते हैं इसलिए नेता महान हैं।
राजनेताओं में भले ही ‘‘अशोका दी ग्रेट‘‘, अकबर महान, की छवि लेश मात्र भी नजर नहीं आती तब भी हम उन्हें महान कहते हैं क्योंकि हम अपना काम निकलवाने, परमिट प्राप्त करने उसका गुणगान करते हैं। सत्ता का सुख और उसका नशा, वैभव की चमक-धमक देखकर हम लोग दिल से तो नहीं लेकिन उपरी मन से जरूर महान कहते हैं।
साहित्यकारों में तुलसी, सूर, कबीर, जायसी, निराला आदि कई महान कवि हुए हैं। जिनकी कोई तुलना नहीं है। यदि उनकी उंचाई को देखे तो उसकी छाया मात्र वाला कोई कबि नजर नहीं आता है उसके बाद भी साहित्य समारोह में कई महान कबियों के दर्शन स्टेज पर हो जाते हैं। उनके महान होने की माईक में घोषणायें हो जाती हैं।
आचार्य हजारी प्रसाद , रामचंद्र शुक्ल, भारतेंदु हरिशचंद्र, प्रेमचंद, कविवर रविंद्रनाथ टैगौर, शरदचंद, हरिशंकर परसाई आदि कई महानता की सीमा रेखा छूने वाले साहित्यकार हुए है और आगे भी इनकी महानता में वृद्धि होगी क्योंकि इनके शिखर के समक्ष कोई साहित्यकार नहीं पहुंच पा रहा है।
महानता का मापदण्ड होना चाहिए उसकी कोई सीमा रेखा निर्धारित की जानी चािहए नहीं तो नौशाद, लता मंगेशकर, भीमसेन जोशी, उस्ताद अलाउद्दीन खां, कपिल देव, सचिन तेंदुलकर आदि की जगह कोई और का नाम आ जायेगा और हम इन महान हस्तियों को महानता की सूची से ईमानदारी की तरह नदारत पायेगें।
--
2 - मंत्री न होने का गम
मंत्री होने के बाद मंत्री न होने की कल्पना मंत्री जी नहीं कर सकते है क्योंकि मंत्री न रहने पर सबसे पहले लाल बत्ती वाली गाड़ी चली जाती है। उसके बाद आस पास ब्रेक डांस करते ब्लैक कैट कमांडो चले जाते हैं। सुरक्षा गार्डों से मंत्री जी के पहुंचने के पहले मंत्री जी का जलवा खिंच जाता था चारों तरफ घेरकर चलते कमांडो पुराने राजा-महाराजाओं की याद दिलाकर मंत्री जी की छवि में चार चांद लगा देते थे। वह रौनक मंत्री न रहने पर गधे के सींग की तरह गायब हो जाती है।
मंत्री न रहने के बाद घर पर मिलने वालों की भीड़ खत्म हो जाती है। इक्का-दुक्का मुलाकाती शुरू में हार का भेद भेदने आते हैं उसके बाद वो भी आना बंद कर देते हैं। सुरक्षा कर्मियों का काफिला घटकर एक दो चौकीदार का रूप ले लेता है। मंत्राईन को खुद खाना बनाना पड़ता है। निवास के लिए मिला महलनुमा आलीशान बंगला एक फ्लेट का रूप ले लेता है। नहाना, खाना, पखाना के उक्त अलग अलग कई कमरे गायब हो जाते है। गाड़ी मारूती 800 का रूप ले लेती है।
देश की गरीब जनता के कल्याण के नाम पर होने वाली बड़ी बड़ी शानदार भव्य पाटियां जिनमें मेहमानों की संख्या से ज्यादा प्रकार की साग सब्जी, तरकारी परोसी जाती है और केवल एक-एक निवाला चखा जाता था सब सपनों की बातें हो जाती है।
मंत्रीत्व के दौरान सरकारी पैसों से देशी बीमारी का इलाज विदेशों में कराया जाता है। मंत्री न रहने के नाम देशी डॉक्टर से ही सैम्पल की दवाएं लेकर काम चलाना पड़ता है। ऐजंडे में देश कल्याण के नाम पर जबरदस्ती विदेश यात्राएं अवलोकनार्थ जोड़ी जाती थी और फिर जनता के पैसों से विदेश के चरण चूमे जाते थे। लेकिन मंत्री बनने के बाद पड़ोस के गांव की यात्रा भी अपने पैसों से करना संभव नहीं होता है। सरकारी पैसे पर गोवा में फाईव स्टार होटल में कुनबे सहित ऐश करना और रूकने की बात हवा हो जाती है।
व्यक्ति मंत्री बनते ही लो प्रोफाईल से एकदम हाई प्रोफाईल हो जाता है और मंत्री पद जाते ही वह किसी प्रोफाईल में फिट नहीं बैठता है। उसका जी हमेशा कुर्सी की तलाश में भटकता रहता है।
इस प्रकार मंत्री पद जाते ही जेड प्लस सुरक्षा, ब्लेक कैट कमांडो, मुलाकातियों की भीड़, लालबत्ती की रौनक, महलनुमा मकान, आलीशान डाईंग रूम, दिल को बाग बाग करता गार्डन आगे पीछे दौड़ता गाडि़यों का काफिला सभी कुछ कपूर की तरह छू हो जाता है।
उमेश जी आपके दोनों व्यंग "महान"व्"मंत्री न
जवाब देंहटाएंहोने का गम"बहुत अच्छे और सटीक लगे हमारी
बधाई और आशीर्वाद