तिब्बत बर्मी परिवार की भारतीय भाषाएँ प्रोफेसर महावीर सरन जैन तिब्बत बर्मी भाषा-परिवार की भारत में मातृभाषाओं की संख्या 226 तथा भाषाओं की ...
तिब्बत बर्मी परिवार की भारतीय भाषाएँ
प्रोफेसर महावीर सरन जैन
तिब्बत बर्मी भाषा-परिवार की भारत में मातृभाषाओं की संख्या 226 तथा भाषाओं की संख्या 63 है।
परम्परागत दृष्टि से तिब्बत-बर्मी को सिनो वर्ग की एक शाखा माना जाता है। हमने भी संसार के भाषा-परिवारों की विवेचना करते समय सिनो-तिब्बत / चीनी- तिब्बत भाषा-परिवार की चार शाखाएँ मानीं थी तथा परिवार की भाषाओं का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया थाः
: महावीर सरन जैन का आलेख : संसार के भाषा परिवार (25 अगस्त 2009)http://www.rachanakar.org/2009/08/blog-post_25.html भाषा-परिवार एवं विश्व- भाषाएः (प्रवक्ता, 04 मई, 2013) |
इस परिवार की भाषाओं की शाखाओं अथवा वर्गों एवं उपवर्गों के वर्गीकरण के सम्बंध में बहुत मत-मतांतर हैं, विद्वानों के मतों एवं विवेचनाओं में परस्पर भिन्नताएँ विद्यमान हैं। सबकी विवेचना का यहाँ अवकाश नहीं है। सम्प्रति हम यह अवश्य संकेत करना चाहते हैं कि कुछ विद्वान तिब्बत-बर्मी का सिनो (चाइनीज़) से सम्बंध नहीं मानते। वे सिनो-तिब्बत / चीनी- तिब्बत भाषा-परिवार को अलग अलग दो भाषा-परिवारों में वर्गीकृत करना चाहते हैं –
1. सिनो
2. तिब्बत-बर्मी
इस दृष्टि से जो अध्येता विशेष अध्ययन करना चाहते हैं, वे निम्नलिखित सामग्री का अध्ययन कर सकते हैं –
1. Beckwith, Christopher (2002),"The Sino-Tibetan problem", in Beckwith, Chris; pp. 113–158. Blezer, Henk, Medieval Tibeto-Burman languages, BRILL.
2. Miller, Roy Andrew (1974), "Sino-Tibetan: Inspection of a Conspectus", pp.195 – 209Journal of the American Oriental Society .
यह प्रतिपादित किया जा चुका है कि सिनो-तिब्बती परिवार की ‘स्यामी/थाई/ताई उपपरिवार की अरुणाचल प्रदेश में बोली जाने वाली भाषा ‘खम्प्टी’/‘खम्प्ती’ को छोड़कर भारत में तिब्बत-बर्मी उपपरिवार की भाषाएँ बोली जाती हैं।
इस परिवार की सभी भाषाओं के बोलने वालों की संख्या का प्रतिशत भारत की जनसंख्या में एक प्रतिशत से भी कम है (0.97) ।
वर्गीकरण एवं विशेष अध्ययन के लिए संदर्भः
तिब्बती-बर्मी भाषाओं का वर्गीकरण शेफर, बेनडिक्ट, ब्रेडले एवं वॉन द्रेम आदि अनेक विद्वानों ने किया है मगर उनके वर्गीकरणों में एकरूपता का अभाव है। किसी का वर्गीकरण भाषिक आधार पर है तो किसी का भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक आधार पर।
भारत में इस उपपरिवार अथवा परिवार की बोली जाने वाली भाषाओं की मुख्य रूप से दो प्रमुख शाखाएँ हैं –
1. तिब्बती – हिमालयी
2. बर्मी - असमिया।
इस परिवार की भाषाओं के अन्तर - सम्बन्धों की वास्तविकता को समझना बहुत कठिन है। इस परिवार की भाषाएँ पर्वतीय क्षेत्रों में बोली जाती हैं। इस कारण बोलने वालों को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में आने जाने में तथा सामाजिक सम्पर्क में बाधा होती है। भाषा-विज्ञान का सिद्धांत है कि जिस क्षेत्र में सामाजिक सम्पर्क जिस अनुपात में जितना कम होता है उस क्षेत्र में उसी अनुपात में भाषिक विविधताएँ अथवा भाषिक-भिन्नताएँ अधिक होती हैं। इस परिवार की भाषाओं की विपुल संख्या का यह प्रधान कारण है। जो अध्येता इन भाषाओं के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त सरना चाहते हैं, वे निम्न सामग्री का अध्ययन कर सकते हैं –
1 . Shafer, Robert (1966), Introduction to Sino-Tibetan (Part 1), Wiesbaden: Otto Harrassowitz.
2. —— (1967), Introduction to Sino-Tibetan (Part 2), Wiesbaden: Otto Harrassowitz.
3. —— (1968), Introduction to Sino-Tibetan (Part 3), Wiesbaden: Otto Harrassowitz.
4. —— (1970), Introduction to Sino-Tibetan (Part 4), Wiesbaden: Otto Harrassowitz.
5. —— (1974), Introduction to Sino-Tibetan (Part 5), Wiesbaden: Otto Harrassowitz.
6. Benedict, Paul K. (1972), Matisoff, J. A., ed., Sino-Tibetan: A conspectus, Cambridge: Cambridge University Press.
7. Bradley, David (1997), "Tibeto-Burman languages and classification", in Bradley, David, Tibeto-Burman languages of the Himalayas, Papers in South East Asian linguistics, 14, Canberra: Pacific Linguistics, pp. 1–71.
8. Burling, Robbins (2003), "The Tibeto-Burman languages of northeast India", in Thurgood, Graham; LaPolla, Randy J., Sino-Tibetan Languages, London: Routledge, pp. 169–191.
9. van Driem, George (2001), Languages of the Himalayas: An Ethnolinguistic Handbook of the Greater Himalayan Region, BRILL.
10. —— (2003), "Tibeto-Burman Phylogeny and Prehistory: Languages, Material Culture and Genes", in Bellwood, Peter; Renfrew, Colin, Examining the farming/language dispersal hypothesis, pp. 233–249.
सन् 1894 से 1928 की अवधि में ग्रियर्सन ने ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’ में तत्कालीन भारत की भाषाओं का सर्वेक्षण किया। आपने अपने ग्रंथ की तीसरी जिल्द में भारतीय तिब्बत-बर्मी भाषाओं का अध्ययन प्रस्तुत किया है। अपने समय को देखते हुए इस अध्ययन का महत्व निर्विवाद है।
Linguistic Survey of India, Vol.III ( Part I Himalayan Dialects, North Assam Groups, Part II Bodo–Naga & Kochin Groups of the Tibeto-Burman Languages, Part III Kuki-Chin & Burma Groups of the Tibeto-Burman Languages).
इसके बाद अनेक विद्वानों ने तत्संबंधित भाषाओं पर कार्य सम्पन्न किए हैं। इन भाषाओं के बारे में संपन्न अध्ययनों में प्रस्तुत मत मतांतरों एवं विवादों के अध्ययन के बाद, हम भारत के विशेष संदर्भ को ध्यान में रखते हुए इस उपपरिवार की प्रमुख भाषाओं को इस प्रकार वर्गीकृत कर सकते हैः
तिब्बत बर्मी परिवार की भारतीय भाषाओं की रूपरेखाः
क․ तिब्बती-हिमालयी
अ․ तिब्बती –
1․ तिब्बती 2․ लददाखी 3. शेर्पा 4․ भोटिया/ भुटिया 5․ मोनपा
आ․ हिमालयी –
1․ लिम्बू, 2․ लाहुली 3․ किन्नौरी 4․ लेप्चा / रोंग
ख․ बर्मी - आसामी
अ․ बोदो वर्ग –
1․ कोछ 2․ गारो 3․ त्रिपुरी / तिपुरी/कॉकबरक 4. दिमासा / डिमासा
5․ देउरी 6․ बोड़ो/बोरो/बड़ो 7․कार्बी / मिकिर 8․ राभा 9․ लालुङ
आ․ नगा अथवा नागा वर्ग –
1․ अंगामी 2․ आओ 3. चखेसांग / चाखेसाङ 4. चकरु/चोकरी 5. चाँग/चाङ 6. खेज़ा
7. खियमङन/खियामनीउंगन 8.कोन्यक 9.लियांगमाई 10.लोथा 11. माओ 12.
मराम 13 मरिङ 14. नोक्ते 15. फौम/ फोम 16. पोचुरी 17. काबुई 18. रेङमा / रोङमय 19. साड.तम 20. सेमा 21. ताङखुल/ तांगखुल/थांगाकुल 22. ताङसा 23. वाङचो /वांचू 24. यिमचुङर /यिमचुङकरु 25. ज़ेलियाङ
इ․ कुकी-चिन वर्ग –
1. एनाल 2. कुकी 3. गाङते 4. हलम / हालाम 5. ह्मार 6. कोम 7. कुकी 8. लखेर/भरा 9. लुशाई /मिज़ो/मिज़ोउ 10. मणिपुरी/मीतैलोन/मैतेई 11.मिश्मी / मीज़ू-मिश्मी 12. पैते 13. पवि 14. थाडो /थडो 15. वाइफ़े/वाइपेई 16. ज़ेमे / ज़िमे 17. ज़ोउ/ज़ो
ई․ बर्मी वर्ग –
1. मोघ / मरमा
उ. तानी वर्ग (मिरी/मिसिङ वर्ग) –
1․ आदी / अबोर 2․ मिरी / मिसिङ 3. निशी / दफ.ला / डफला
टिप्पणियाँ –
1.तिब्बती वर्ग की तिब्बती के सम्बंध में भारत के सम्बंध में उल्लेखनीय है कि तिब्बती लोग भारत के 26 राज्यों मे रह रहे हैं तथा भारत में मातृभाषा के रूप में तिब्बती बोलने वालों की संख्या 69,416 है। लद्दाखी भारत के जम्मू-काश्मीर राज्य में कारोकोरम पर्वत और हिमालय पर्वत के बीच लद्दाख क्षेत्र की भाषा है। भारत में शेर्पा सिक्किम एवं पश्चिम-बंगाल के दार्जलिंग की पहाड़ियों में रहनेवाले शेर्पा जनजाति के लोगों के द्वारा बोली जाती है। ऐतिहासिक दृष्टि से शेर्पा का सम्बंध तिब्बती भाषा से अधिक रहा है मगर भारत में एककालिक दृष्टि से यह नेपाली भाषा से अधिक प्रभावित हो रही है। इसके भाषिक रूप को समझने की दृष्टि से निम्नलिखित सामग्री का अध्ययन किया जा सकता हैः
[Sherpa Conversation & Basic Words by Lhakpa Doma Sherpa, Chhiri Tendi Sherpa (Salaka), Karl-Heinz Krämer (Tsak) in collaboration with Pasang Sherpa (Salaka), Kancha Nurbu Sherpa (Salaka), Phuri Sherpa (Pinasa) and Lhamu Sherpa (Salaka)]
भोटिया जनजाति के लोग भोटिया/ भुटिया बोलते हैं। यह जनजाति उत्तराखण्ड के तिब्बत से लगे सीमान्त क्षेत्र में निवास करती है। अरुणाचल-प्रदेश के मोनपा जनजाति के लोग मोनपा भाषा का प्रयोग करते हैं। अरुणाचल-प्रदेश में जो प्रधान भाषाएँ बोली जाती हैं उनमें मोनपा तिब्बती वर्ग की भाषा है जबकि अन्य प्रधान भाषाएँ तानी वर्ग की भाषाएँ हैं जिनके सम्बंध में आगे टिप्पण किया जाएगा।
2. हिमालयी वर्ग की भाषाएँ प्रधान रूप से हिमाचल-प्रदेश (मुख्य रूप से किन्नौर एवं लाहौल-स्पीति जिले), सिक्किम एवं पश्चिम-बंगाल में रहने वाली जनजातियों के लोगों के द्वारा बोली जाती हैं।
3. बर्मी-आसामी शाखा के बोदो वर्ग के अंतर्गत जो भाषाएँ आती हैं उनके बोलने वालों की संख्या का लगभग 30 प्रतिशत बोड़ो/ बोरो/बड़ो बोलता है। इस प्रकार इस वर्ग की सबसे प्रधान भाषा बोड़ो/बोरो/बड़ो है। बोदो वर्ग की जनजातियों में सबसे प्रमुख जनजाति भी बोड़ो/बोरो/बड़ो ही है। यह जनजाति असम राज्य के भूभाग में अधिक निवास करती है। बोदो वर्ग की भाषाएँ प्रधान रूप से असम, त्रिपुरा और मेघालय में बोली जाती हैं। इस वर्ग की दूसरी प्रधान भाषा त्रिपुरी / तिपुरी/कॉकबरक है जो त्रिपुरा में तथा तीसरी प्रधान भाषा गारो है जो प्रधान रूप से मेघालय में बोली जाती है।
4. नगा अथवा नागा वर्ग की भाषाओं की तीन स्थितियाँ हैं। (1) नगा वर्ग की कुछ प्रधान भाषाएँ जिनका प्रमुख केन्द्र नागालैण्ड ही है। (2) नगा वर्ग की ऐसी भाषाएँ जो नागालैण्ड के अतिरिक्त मणिपुर और अरुणाचल-प्रदेश एवं असम जैसे राज्यों के भागों में भी बोली जाती हैं। (3) नगा वर्ग की लियांगमाई, मराम, मरिङ, नोक्ते, काबुई, ताङसा, एवं वाङचो ऐसी भाषाएँ हैं जो मूलतः अन्य राज्यों के भूभागों में बोली जाती हैं। नागालैण्ड में अनेक जनजातियाँ निवास करती हैं तथा प्रत्येक जनजाति के नाम के आधार पर उसकी भाषा की पहचान की जाती है। नागालैण्ड की प्रधान जनजातियाँ हैं – (1) अंगामी (2) आओ (3)चाखेसाङ (4) चाङ (5) खियमङन/खियामनीउंगन (6) कोन्यक (7) लोथा (8) फोम (9) पोचुरी (10) रेङमा (11) साङतम (12) यिमचुङर (13) ज़ेलियम एवं (14) सेम । इन जनजातियों की भाषाएँ या तो मूल रूप से नागालैण्ड में ही बोली जाती हैं अथवा मणिपुर और अरुणाचल-प्रदेश जैसे राज्यों के भूभागों के साथ-साथ नागालैण्ड में भी बोली जाती हैं। नगा अथवा नागा वर्ग की इन भाषाओं को भौगोलिक दृष्टि से तीन उपवर्गों में बाँटा जाता हैः
(क) पूर्वी उपवर्गः चाङ, कोन्यक आदि।
(ख) केन्द्रीय उपवर्गः आओ, लोथा, फोम आदि।
(ग) पश्चिमी उपवर्गः सेमा, अंगामी, चाखेसाङ, रेङमा आदि।
काबुई जनजाति के लोगों के द्वारा काबुई भाषा बोली जाती है। इसकी भाषिक स्थिति के बारे में विद्वानों में मतभेद हैं। काबुई को कुछ विद्वान नगा वर्ग की भाषा मानते हैं, कुछ बोदो वर्ग की तथा कुछ कुकी-चिन वर्ग की भाषा स्वीकार करते हैं। है।
नागालैण्ड की विभिन्न जनजातियाँ अलग अलग भाषाओं का प्रयोग करती हैं जिनमें पारस्परिक बोधगम्यता नहीं है। सामाजिक संप्रेषण की आवश्यकता के कारण विभिन्न सामाजिक समुदायों के बीच सम्पर्क भाषा के रूप में एक भाषा विकसित हुई है जिसे “नगामीज़” के नाम से पुकारा जाता है। यह एक प्रकार की क्रियोल है जिसमें नगा वर्ग की भाषाओं के अलावा असमिया, बांगला, हिन्दी, अंग्रेजी आदि भाषाओं के तत्व समाहित हैं। धीरे धीरे हिन्दी का प्रयोग बढ़ रहा है जिसके सम्बंध में आगे विचार किया जाएगा।
5. कुकी-चिन वर्ग की भाषाएँ मुख्य रूप से मणिपुर एवं मिज़ोरम में बोली जाती हैं। मणिपुरी/मीतैलोन/मैतेई मणिपुर की प्रधान भाषा है। यह मैतेई जनजाति के लोगों के द्वारा बोली जाती है। मणिपुर की 60 प्रतिशत जनसंख्या मणिपुरी का व्यवहार करती है। जिस प्रकार नागालैण्ड में “नगामीज़” राज्य के लोगों के बीच सम्पर्क भाषा की भूमिका का निर्वाह कर रही है उसी प्रकार मणिपुर में मणिपुरी सम्पर्क भाषा की भूमिका निबाह रही है। कुकी-चिन वर्ग की दूसरी प्रधान भाषा लुशाई /मिज़ो/मिज़ोउ है जो मिज़ोरम की जन-भाषा है।
इस वर्ग की कुकी की भाषिक स्थिति के बारे में मत-भिन्नता की स्थिति है। असम एवं मणिपुर में रहने वाले कुकी भाषी इसे कुकी-चिन के अन्तर्गत मानते हैं किंतु नगालैंड के कुकी भाषी इसे नगा वर्ग की भाषा मानते हैं। यही स्थिति ज़ेमे / ज़िमे भाषा की है। इसी वर्ग की मिश्मी / मीज़ू-मिश्मी की भाषिक स्थिति के बारे में भी मतभेद हैं। इसके बोलने वाले अरुणाचल-प्रदेश में रहते हैं। कुछ भाषा-वैज्ञानिक इसे अलग से केन्द्रीय तिब्बत-बर्मी वर्ग में रखने के पक्ष में हैं।
6. भारत में सबसे कम लोग बर्मी-वर्ग की भाषाओं के प्रयोक्ता हैं। भारत की 116 भाषाओं में बर्मी-वर्ग की केवल एक भाषा मोघ है जो त्रिपुरा में बोली जाती है।
7. तानी वर्ग की सबसे प्रधान भाषा मिरी / मिसिङ है। इस वर्ग की दूसरी प्रधान भाषा निशी / दफ.ला / डफला तथा तीसरी प्रधान भाषा आदी / अबोर है। ये तीनों भाषाएँ प्रधान रूप से अरुणाचल-प्रदेश की जनजातियों के द्वारा बोली जाती हैं। अरुणाचल-प्रदेश में मिसिङ, दफला एवं अबोर पहाड़ियों के नाम वहाँ बसने वाली जनजातियों तथा उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं के सूचक हैं। अरुणाचल-प्रदेश में जिन जनजातियों को पहले अबोर कहा जाता था, उन्हें अब आदी कहा जाता है। इसी प्रकार जिन जनजातियों को पहले दफ़ला कहा जाता था उन्हें अब निशी कहा जाता है।निशी विभिन्न जनजातियों अथवा कबीलों का समूह है। इनमें आपतानी जनजाति अपने को निशी से भिन्न मानती है। इनकी भाषा आपतानी और नाशी भाषा के सम्बंध को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। मिसिङ भाषा का स्थानीय नाम तानी है जिसे पहले मिरी कहा जाता था। मिसिङ भाषा के दो रूप हैः (1) मैदानी मिसिङ भाषा जो असम राज्य की मिसिङ जनजाति को लोगों के द्वारा बोली जाती है। (2) पहाड़ी मिसिङ भाषा जो अरुणाचल-प्रदेश के मिरी जनजाति के लोगों के द्वारा बोली जाती है। कुछ विद्वान इन्हें भिन्न भाषाएँ मानते हैं। (Moseley, Christopher (2007). Encyclopedia of the world's endangered languages. Routledge. p. 2980)।
इस वर्ग की भाषाओं को पहले मिसिङ अथवा मिरी वर्ग के नाम से अभिहित किया जाता था जिसे अब लेखक ने तानी वर्ग का नाम दिया है।
तिब्बत बर्मी परिवार की भारतीय भाषाओं का विवरणः
(क) परिगणित -
क्रम संख्या | भाषा का नाम | भाषा के बोलने वालों की संख्या | राज्य / राज्यों के नाम | ||
53. | बोड़ो/बोरो/बड़ो | 1,221,881 | असम, पश्चिम बंगाल | ||
54. | मणिपुरी/मीतैलोन/मैतेई | 1,270,216 | मणिपुर, असम | ||
(ख) अपरिगणित | |||||
55. | आदी / अबोर | 158,409 | अरुणाचल प्रदेश | ||
56. | एनाल | 12,156 | मणिपुर | ||
57. | अंगामी | 97,631 | नागालैंड | ||
58. | आओ | 172,449 | नागालैंड | 12]156 | ef.kiqj |
59. | भोटिया/ भुटिया | 55,483 | सिक्किम, हिमाचल प्रदेश | ||
60. | चखेसांग / चाखेसाङ | 30,985 | नागालैंड | ||
61. | चकरु/चोकरी | 48,207 | नागालैंड | ||
62. | चाँग/चाङ | 32,478 | नागालैंड | ||
63. | देउरी | 17,901 | असम | ||
64. | दिमासा / डिमासा | 88,543 | असम | ||
65. | गाङते | 13,695 | मणिपुर | ||
66. | गारो | 675,642 | मेघालय, असम | ||
67. | हलम / हालाम | 29,322 | त्रिपुरा | ||
68. | ह्मार | 65,204 | मणिपुर,असम, मिज़ोरम | ||
69. | काबुई | 68,925 | मणिपुर, असम | ||
70. | कार्बी / मिकिर | 366,229 | असम, मेघालय | ||
71. | खेज़ा | 13,004 | नागालैंड, मणिपुर | ||
72. | खियमङन/खियामनीउंगन | 23,544 | नागालैंड, मणिपुर | ||
73. | किन्नौरी | 61,794 | हिमाचल प्रदेश | ||
74. | कोछ | 61,794 | मेघालय, असम | ||
75. | कोम | 13,548 | मणिपुर | ||
76. | कोन्यक | 137,722 | नागालैंड | ||
77. | कुकी | 58,263 | मणिपुर, असम, नागालैंड | ||
78. | लाहुली | 22,027 | हिमाचल प्रदेश | ||
79. | लखेर/भरा | 22,947 | मिज़ोरम | ||
80. | लददाखी | पूर्ण विवरण अनुपलब्ध | जम्मू और कश्मीर | ||
81. | लालुङ | 33,746 | असम | ||
82. | लेप्चा / रोंग | 39,342 | सिक्किम, पश्चिम-बंगाल | ||
83. | लियांगमाई | 27,478 | मणिपुर | ||
84. | लिम्बू | 28,174 | सिक्किम | ||
85. | लोथा | 85,802 | नागालैंड | ||
86. | लुशाई /मिज़ो/मिज़ोउ | 538,842 | मिज़ोरम, मणिपुर, त्रिपुरा | ||
87. | माओ | 77,810 | मणिपुर, नागालैंड | ||
88. | मराम | 10,144 | मणिपुर, | ||
89. | मरिङ | 15,268 | मणिपुर | ||
90. | मिरी / मिसिङ | 15,268 | असम] अरुणाचल प्रदेश | ||
91. | मिश्मी / मीज़ू-मिश्मी | 29,000 | अरुणाचल प्रदेश | ||
92. | मोघ / मरमा | 28,135 | त्रिपुरा | ||
93. | मोनपा | 43,226 | अरुणाचल प्रदेश | ||
94. | निशी / दफ.ला / डफला | 173,791 | अरुणाचल प्रदेश | ||
95. | नोक्ते | 30,441 | अरुणाचल प्रदेश | ||
96. | पैते | 49,237 | मणिपुर, मिज़ोरम | ||
97. | पवि | 15,346 | मिज़ोरम | ||
98. | फौम/ फोम | 65,350 | नागालैंड | ||
99. | पोचुरी | 11,231 | नागालैंड | ||
100. | राभा | 139,365 | मेघालय, असम, पश्चिम-बंगाल | ||
101. | रेङमा / रोङमय | 37,521 | नागालैंड, असम | ||
102. | साड.तम | 47,461 | नागालैंड | ||
103. | सेमा | 166,157 | नागालैंड, असम | ||
104. | शेर्पा | 16,105 | सिक्किम, पश्चिम-बंगाल | ||
105. | ताङखुल/ तांगखुल/थांगाकुल | 101,841 | मणिपुर, नागालैंड | ||
106. | ताङसा | 28,121 | अरुणाचल प्रदेश, असम | ||
107. | थाडो /थडो | 107,992 | मणिपुर, असम | ||
108. | तिब्बती | 69,416 | विवरण दिया जा चुका है। | ||
109. | त्रिपुरी / तिपुरी/ कॉकबरक | 694,940 | त्रिपुरा, | ||
110. | वाइफ़े/वाइपेई | 26,185 | मणिपुर | ||
111. | वाड.चो/वांचू | 39,600 | अरुणाचल प्रदेश | ||
112. | यिमचुङर /यिमचुङकरु | 47,227 | नागालैंड | ||
113. | ज़ेलियाङ | 35,079 | नागालैंड | ||
114. | ज़ेमे / ज़िमे | 22,634 | असम, मणिपुर, नागालैंड | ||
115. | ज़ोउ/ज़ो | 15,966 | मणिपुर |
प्रोफेसर महावीर सरन जैन
सेवा निवृत्त निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान
123, हरि एन्कलेव, बुलन्द शहर – 203 001
855 DE ANZA COURT
MILPITAS
C A 95035 – 4504
(U. S. A.)
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