प्रमोद यादव का व्यंग्य - चुनावी-रणनीति के तहत

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चुनावी-रणनीति के तहत / प्रमोद यादव एक दिन एक नेता और एक भिखारी सुबह-सुबह सेक्टर नाईन रोड पर मार्निंग वाक करते टकरा गए. नेता के साथ उसका एक...

चुनावी-रणनीति के तहत / प्रमोद यादव

एक दिन एक नेता और एक भिखारी सुबह-सुबह सेक्टर नाईन रोड पर मार्निंग वाक करते टकरा गए. नेता के साथ उसका एक चमचानुमा पुछल्ला भी था जो अक्सर उनके पीछे जासूसों की तरह चिपका होता...उसे बाडीगार्ड इसलिए नहीं कह सकते क्योंकि उसका ‘बाडी’ ही नहीं था.. किसी घडी-चौक के घडी के बड़े कांटे की तरह ऊपर से नीचे तक एकदम सपाट था वह..उसका सिर भी कांटे के नुकीले सिरे जैसे नुकीला था.. अतः पक्का था कि वह नेताजी का बाडीगार्ड कतई न था. वैसे “ बाडीगार्ड ” फिल्म रिलीज होने के बाद सारे वी.आई.पी. और नेतागण सलमान जैसे ही बाडीगार्ड खोजते फिर रहे हैं...अब सलमान खान तो बालीवुड छोड़कर किसी मुस्टंडे नेता का बाडीगार्ड बनने से रहा..उसे तो केवल करीना-कैटरीना जैसी हीरोइनों के बाडीगार्ड बनने में आनंद है..बौड़म चेहरे वाले बेडौल , तोंदू और उम्रदराज नेता का बाडीगार्ड तो वह सौ करोड़ में भी न बने..

खैर ..छोडिये इन बातों को.. क्या है कि मुझे विषयांतर होने में तनिक भी समय नहीं लगता...शुरुआत कहीं से करता हूँ और पहुँच कहीं और जाता हूँ ..‘ जाना था जापान पहुँच गए चीन ‘ गाने की तरह..तो किस्सा यूं है कि नेताजी पीछे मुड-मुड़कर अपने पुछल्ले से अंताक्षरी खेलते आगे बढ़ रहे थे और उनके सामने-सामने भिखारी लोटा लिए शायद नित्यकर्म निपटाने, मूड बनाते आगे बढ़ रहा था..दोनों के सिर छत्तीस के आंकड़े की तरह थे इसलिए आपस में टकरा गए..भिखारी के लोटे का मटमैला पानी नेताजी के झक सफ़ेद लिबास को तर करते एक माडर्न आर्ट उकेर गया कुरते में..वह बौखला गया- ‘ अंधे कहीं के...देख के नहीं चलते ? ’

भिखारी भी एक नंबर का छंटा था- नेता की तरह ही..उसने पलटवार किया- ‘ अरे..उल्टा चोर कोतवाल को डांटे..बटन है तुम्हारी आँखें और दोष मुझ पर मढ़ते हो..पुछल्ले से इतना ही प्रेम है तो उसे ही आगे कर चलते..कम से कम मुझसे आलिंगन करने से तो बच जाते..और फिर तुम कोई मालगाड़ी का इंजन थोड़े हो कि मुंडी पीछे कर पटरी पर सरपट चल लोगे..ये सड़क है बाबा...सड़क.. मुंडी आगे करके चलना मांगता..नहीं तो यहीच होगा...और फिर टकराए भी तुम्ही हो... मैं नहीं....बार-बार दुम देखोगे तो यहीच होगा... गनीमत समझो कि बाबुराव से टकराए...किसी सांड से टकराते तो पता चलता..’

‘ तुम किसी सांड से कम हो क्या ? सड़क घेरकर चलोगे तो कोई भी शरीफ आदमी टकराएगा..’ नेताजी का पारा चढ़ गया.

‘ देखो नेताजी..सफ़ेद कुरता-पाजामा पहन लेने से कोई सी.एम–पी.एम.नहीं बन जाता..मैं सड़क घेरकर चलूँ या सड़क को लेकर चलूँ.. तुम्हें इससे क्या ? सड़क तुम्हारी जागीर तो नहीं.. बल्कि तुम बटन खोलकर चलना सीखो..आगे मुझसे भी ज्यादा सिरफिरे मिलेंगे..ऐसा न हो कि कोई पीट दे..शुक्र मानों कि जल्दी में हूँ नहीं तो ये कार्यक्रम मैं ही कर देता..’ भिखारी ने गुस्से से कहा.

नेताजी को काटो तो खून नहीं..वह कुछ पल के लिए जैसे “ फ्लैशबैक “ में चला गया..वापस लौटा तो बोला- ‘ तुम तो वही भिखारी हो न जो हनुमान मंदिर के बाहर भीख मांगते हो ? ‘

‘ हाँ...वहीच हूँ.. तो...तो इससे क्या ? ‘

‘ भिखारी तो हो ही..बड़े बद्तमीज भी हो...बड़े लोगों से बातें करने का तुम्हें मैनर नहीं..’ नेताजी रुआब के साथ गर्दन ऊंची कर बोले.

‘ सारे मैनर्स जानता हूँ नेताजी.. मुझे मत सिखाओ..चूँकि इस वक्त धंधे में नहीं हूँ इसलिए आम आदमी के लहजे में बोल रहा हूँ..कभी मंदिर की ओर आओ तो देखो कि कितने मैनर वाला हूँ..मेरे मैनर्स के तो भिखारी भी कायल हैं..मैं वो भिखारी हूँ कि भिखारी से भी भीख वसूल लेता हूँ..इतने प्यार और तहजीब से मांगता हूँ....तुम लोग तो वोट भी लठ्ठ मारे जैसे मांगते हो....मैनर्स की दरकार तो तुम नेताओं को ज्यादा है..‘ भिखारी एक सांस में बक गया.

‘ अच्छा..तो अब एक नेता को एक भिखारी से मैनर्स सीखना होगा..’ नेता बुदबुदाया.

‘ अरे काहे का नेता...हो तो तुम भी हमारे ही बिरादरी के....फर्क इतना है कि हम पेट के लिए मांगते है , तुम पीढीयों के लिए..हम रोज मांगते हैं , तुम पांच साल में....हम अल्ला-ताले के नाम से मांगते हैं , तुम पार्टी के नाम से....हम नोट से संतुष्ट हो जाते हैं, तुम वोट से.. हम केवल ख़ास-ख़ास ठिकानों पर मांगते है- जैसे- मंदिर-मस्जिद ,बस-स्टैंड, रेलवे स्टेशन, बाजार, ट्रैफिक सिग्नल्स आदि.. तुम लोग “ सारा जहाँ हमारा “ की तर्ज पर मांगते हो.....तो बताओ..भिखारी तुम भी हुए कि नहीं ? फर्क इतना है कि हम आम भिखारी हैं तो तुम “ नॅशनल “..’

नेताजी इस तुलनात्मक अध्ययन से बौखला गए, बोले- ‘ देखो.. हममें और तुममें उतना ही अंतर है जितना कि राजा भोज और गंगू तेली में....कहाँ हम और कहाँ तुम... जानते नहीं- समाज में हमारी कितनी प्रतिष्ठा, दबदबा, और मान-सम्मान है..हम जहाँ खड़े होते हैं-वहीँ भीड़ लग जाती है.. ‘

‘ हाँ...भीड़ तो लगेगी ही..मदारी जो ठहरे..बचपन में ऐसे तमाशे खूब देखे नेताजी...डमरू के बजते ही भीड़ जुटनी शुरू हो जाती..मदारी तरह –तरह के करतब या सांप-नेवले की लड़ाई दिखा आखिर में मुद्दे पर आ जाते..लोगों को अनाप-शनाप दवाई बेच,पैसे लूट दफा हो जाते...फिर साल भर बाद ही वे दुबारा अवतरित होते ...तुम सब भी इनके चचा ही हो....डमरू की जगह अपने चमचों को बजाते हो..वह भीड़ जुटाता है..फिर शुरू होता है भाषणों का दौर.. आश्वासनों का दौर..भीख मांगने ( वोट मांगने) का दौर..मदारी तो भला खेल-करतब दिखाकर लूटता था..तुम लोग तो सब्जबाग दिखा लूटते हो..और लूटमार के बाद ऐसे गायब होते हो जैसे गधे के सिर से सिंग..रहा सवाल मान-सम्मान और प्रतिष्ठा का तो हम भिखारी भी किसी से कम नहीं..दिन भर में चालीस-पचास लोग ही तुम्हारे चरण छूते होंगे..यहाँ पच्चीस सौ लोगों को मैं निपटा देता हूँ एक दिन में – चरण छूकर.....तुम्हें आशीर्वाद देने में आनंद आता है तो हमें लेने में..अपना-अपना फलसफा है..पर आंकड़े मेरे भारी हैं..समझे ? ‘ भिखारी ने भाषण पिला दी.

नेता अकबका गया, बोला- ‘देखो..कितनी भी सफाई दे लो..पर हकीकत यही है कि तुम्हारा हमसे रत्ती भर भी मेल नहीं..हमारे पास बंगला है, कार है, बैंक-बैलेंस है, नौकर है,चाकर है.. ‘

नेता की बात पूरी भी नहीं हुई कि भिखारी ने टोका -- ‘ अब ये मत कहना की तुम्हारे पास क्या है ? मैं पहले ही बता दूं कि मेरी माँ सालों पहले ही मर गई..और हाँ.. धन-दौलत का धौंस तो देना ही मत..हम कुछ खरचते नहीं इसका ये मतलब नहीं कि कंगले हैं.. कोठी-कार तो हम भी मेंटेन कर सकते हैं पर ऐसा करना धंधे के ऊसूल के खिलाफ है..तुम लोगों की तो मजबूरी है कि हर चुनाव में अपनी प्रापर्टी का ब्यौरा दो..इसलिए दिन-रात गिनते रहते हो..हमें तो एक पल की भी फुर्सत नहीं कि हिसाब-किताब करें..धंधे में इस कदर बिजी होते हैं..हम भिखारियों को कमतर मत आंको..हममे से कई तो तुम्हें भी खरीद दे..अखबार तो पढ़ते ही होगे..कभी न कभी तो पढ़ा ही होगा कि भिखारी जब मरते हैं तो उनकी पोटली से बेशुमार दौलत निकलता है...कभी लाखों में तो कभी करोड़ों में..मेरी चाची मरी तो शनि मंदिर वाले उसके ठीहे से छब्बीस लाख रूपये निकले..मेरा ममेरा भाई ( अयप्पा मंदिर वाला ) गुजरा तो तो उसकी गाँठ से तिरपन लाख निकले..अभी-अभी कुछ दिनों पहले पढ़ा होगा कि सऊदी अरब के जेद्दा शहर में एक भिखारन ईशा मरी जो पचास सालों से इस व्यवसाय में थी , तो उसके पास साधे छः करोड़ की संपत्ति मिली ..वो हमारी दूर की रिश्तेदार थी..हमारे एक चचा बचपन से दुबई चले गए थे..और वहीँ मांगते-मांगते जम गए थे ..उसी की बीबी थी ईशा..’

इस बार नेता ने न केवल भिखारी की बात काटी बल्कि हाथ जोड़ कहा- ‘ बस भी करो यार..मैं हारा तुम जीते.. चलो..मैं अपने चुनाव –प्रचार का श्रीगणेश तुम्हीं से करता हूँ...तुमसे एक वोट की भीख मांगता हूँ..मुझे चुनाव जीतने का आशीर्वाद दो..’

‘ ऐसे नहीं नेताजी...पहले इस लोटे को भरकर मंगवाओ..मुझे भी जल्दी है..फिर मिलते हैं आपके चुनाव-कार्यालय में..संभव हो तो नाश्ता मंगवाकर रखिये..निपटने के तुरंत बाद मुझे बड़ी भूख लगती है..’

नेता ने चमचे को लोटा दे हैण्ड पम्प से पानी भर लाने कहा..चमचा लौटा तो राम-भरत मिलाप दृश्य देख चकरा गया..नेता चुनावी रणनीति के तहत गधे को बाप बना रहा था...भिखारी के पैर छू आशीर्वाद ले रहा था..

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- प्रमोद यादव

गया नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ

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रचनाकार: प्रमोद यादव का व्यंग्य - चुनावी-रणनीति के तहत
प्रमोद यादव का व्यंग्य - चुनावी-रणनीति के तहत
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