आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में उपलब्ध प्रथम साहित्यिक रचना-कृतिः प्रोफेसर महावीर सरन जैन अपभ्रंश की काल सीमा सन् 1000 तक मानी जाती है। आधु...
आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में उपलब्ध प्रथम साहित्यिक रचना-कृतिः
प्रोफेसर महावीर सरन जैन
अपभ्रंश की काल सीमा सन् 1000 तक मानी जाती है। आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का उद्भव काल सन् 1000 से माना जाता है। हमने अपने एक लेख में अपभ्रंश एवं आधुनिक भारतीय भाषाओं का संक्रमण-काल सन् 800 ईस्वी से लेकर सन् 1150 ईस्वी तक माना है तथा इस संक्रमण काल में रचित साहित्यिक अथवा भाषिक ग्रंथों की चर्चा कर चुके हैं। इस काल का नाम हिन्दी के विद्वानों ने पिछली अपभ्रंश, उत्तरकालीन अपभ्रंश एवं अवहट्ठ भाषा का काल किया है। संक्रमण-काल (सन् 800 ईस्वी से सन् 1150 ईस्वी तक) में रचित रचनाओं अथवा कृतियों के सम्बंध में सूत्र शैली में ही प्रतिपादन किया जा चुका है।
(रचनाकार: महावीर सरन जैन का आलेख - अपभ्रंश एवं आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के संक्रमण-काल की रचनाएँ (हिन्दी के विशेष संदर्भ में)
http://www.rachanakar.org/2014/04/blog-post_6.html#ixzz2y8DUCALI)
इस लेख में हम विभिन्न आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में रचित सर्वप्रथम उपलब्ध साहित्यिक रचना-कृति के सम्बंध में जानकारी प्रस्तुत करेंगे। इस सम्बंध में यह ध्यातव्य है कि आधुनिक भारतीय आर्य भाषा के लक्षणों को व्यक्त करने की दृष्टि से प्राप्त रचनाओं का रचनाकाल समान नहीं है। यदि सिंधी भाषा की प्रथम रचना ग्यारहवीं सदी की प्राप्त होती है तो नेपाली भाषा में प्रथम रचना उन्नीसवीं सदी में ही उपलब्ध है। विभिन्न प्रमुख भाषाओं में प्राप्त सर्वप्रथम रचना-कृति की स्थिति कालक्रमानुसार निम्नानुसार हैः
ग्यारहवीं सदी की सिंधी भाषा की रचना
1. सिंधी
सिंधी के कुछ विद्वान सिंधी की प्रथम रचना-कृति दोदे चनेसर (रचनाकाल 1312 ईस्वी) मानते हैं किन्तु इस्माइली पीर नूरुद्दीन सन् 1079 के लगभग सिंध में आए। इसके बाद इन्होंने जनप्रचलित बोलचाल की सिंधी में सूफी काव्य रचनाएँ कीं। इस कारण सिंधी की प्रथम कृति के रूप में इस्माली पीर नूरुद्दीन की सूफी काव्य- रचनाओं को स्वीकार किया जाना चाहिए।
बारहवीं सदी की हिन्दी, पंजाबी एवं मराठी की रचनाएँ -
2.हिन्दी
मुनि शालिभद्र सूरि कृत ‘भरतेश्वर बाहुबलि रास’ सन् 1184 (विक्रम सम्वत् 1241) में रचा गया। डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त ने इस रचना को पुरानी हिन्दी की प्रथम रचना माना है।
(गणपति चन्द्र गुप्तः हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास, प्रथम खण्ड)
कुछ विद्वान जिन पद सूरि कृत थूलि भद्द फागु को पुरानी हिन्दी की प्रथम रचना मानते हैं।
जिन रचनाकारों अथवा रचनाओं से हिन्दी का आरम्भ माना जाता था जैसे बीसलदेवरास, पृथ्वी राज रासो, गोरखनाथ, अमीर खुसरो, विद्यापति, बाबा फरीद, ख्वाजा बन्दानवाज आदि आदि – ये सब भरतेश्वर बाहुबलि रास एवं थूलि भद्द फागु के बाद की रचनाएँ हैं अथवा बाद के रचनाकार हैं।
3.पंजाबी
फरीउद्दीन मसूद गंजशकर (सन् 1173-1266) की सूफी काव्य रचनाएँ ‘आदि ग्रंथ’ में संकलित हैं। अमृता प्रीतम ने शेख़ फरीद की भाषा को प्राचीन पंजाबी का परिवर्तित रूप माना है।
(देखें – पंजाबी कवितावली, साहित्य अकादमी (2005))
इस दृष्टि से फरीउद्दीन मसूद गंजशकर को पंजाबी भाषा का प्रथम रचनाकार मानना उपयुक्त है।
4. मराठी
भास्कर भट्ट एवं मुकुंदराज को आदि कवियों के रूप में माना जाता है। मुकुंदराज की ‘विवेक सिंधु’ प्राचीनतम कृति के रूप में मान्य है।(विवेकसिंधु (मराठी लेखनभेद: विवेकसिंधू) हा मराठी भाषेतील आद्य काव्यग्रंथांपैकी एक असलेला ग्रंथ, मुकुंदराज या कवीने लिहिला. )
( https://mr.wikipedia.org/wiki/)
तेरहवीं सदी की असमिया एवं काश्मीरी की रचनाएँ
5. असमियाः हेम सरस्वती एवं हरिवर विप्र आदि कवियों के रूप में मान्य हैं।“ अद्यतन उपलब्ध सामग्री के आधार पर हेम सस्वती और हरिहर विप्र असमिया के प्रारंभिक कवि माने जा सकते हैं। हेम सरस्वती का “प्रह्लाद चरित्र” असमिया का प्रथम लिखित ग्रंथ माना जाता है”।
(https://hi.wikipedia.org/wiki/”)
6. काश्मीरीः शितिकंठ की ‘महानायक प्रकाश’ (सन् 1250)। “कश्मीरी साहित्य का पहला नमूना शितिकंठ के महानयप्रकाश (13 वीं शती) की सर्वगोचर देशभाषा में मिलता है”।
(https://hi.wikipedia.org/wiki/)
चौदहवीं सदी की बांग्ला की रचना
7. बांग्लाः डॉ. सुकुमार सेन ने साहित्य अकादमी से प्रकाशित बांग्ला साहित्य का इतिहास ग्रंथ में बंगाली विद्वान हर प्रसाद शास्त्री द्वारा बीसवीं सदी के आरम्भ में खोजी गई पाण्डुलिपि में संगृहीत आठवीं से बारहवीं सदी के बीच विभिन्न बौद्ध वज्रयानी सिद्धों के चर्यागीतों से बांग्ला का आरम्भ माना है। यह इसी प्रकार है जिस प्रकार राहुल सांकृत्यायन ने सरहपा सिद्ध के चर्यागीतों से हिन्दी का आरम्भ होना माना है अथवा जिस प्रकार से असमिया एवं ओड़िया के विद्वान इन चर्यागीतों अथवा चर्यापदों से अपनी अपनी भाषा का आरम्भ होना मानते हैं। हम अपने “अपभ्रंश एवं आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के संक्रमण काल की रचनाएँ” शीर्षक लेख में स्पष्ट कर चुके हैं कि सिद्ध साहित्य की भाषा का स्वरूप आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं की प्रकृति का न होकर अपभ्रंश एवं आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के संक्रमण-काल की भाषा का है। इस कारण हम डॉ. सुकुमार सेन के मत से सहमत नहीं हो सकते। बांग्ला के प्रथम कवि बोरु चंडीदास हैं और इनकी रचना-कृति का नाम ‘श्री कृष्ण कीर्तन’ है। चैतन्य-चरितामृत एवं चैतन्यमंगल से यह प्रमाणित होता है कि बोरु चंडीदास चैतन्यदेव के पूर्ववर्ती थे तथा चैतन्य महाप्रभु इनकी रचनाएँ सुनकर प्रसन्न होते थे।
पंद्रहवीं सदी की ओड़िया एवं गुजराती की रचनाएँ
8. ओड़िया / ओड़िशाः सारला दास द्वारा चंडी पुराण, विलंका रामायण की रचना एवं ‘महाभारत’ का अनुवाद।“वस्तुतः सरलादास ही उड़िया के प्रथम जातीय कवि और उड़िया साहित्य के आदिकाल के प्रतिनिधि हैं”।
(https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%93)
9. गुजरातीः गुजराती की सर्वप्रथम रचना-कृति श्रीधर कवि कृत रणमल्लछंद है जिसमें ईडर के राजा रणमल्ल और गुजरात के मुसलमान शासक के युद्ध का वर्णन है। इसका रचनाकाल 1400 ईस्वी के आरम्भ का अनुमानित है। नरसिंह मेहता/ नरसी भगत (सन् 1414-1481) ने लगभग 22,000 कीर्तनों का रचना की। इनकी रचनाओं का मौलिक रूप प्राप्त नहीं है। इनका गायन मौखिक रूप में होता रहा। उपलब्ध पांडुलिपि का रचनाकाल सन् 1612 के लगभग है।
अट्ठारहवी - उन्नीसवीं सदी की नेपाली की रचना
10. नेपालीः भानुभक्त नेपाली के प्रथम रचनाकार के रूप में तीन नाम मिलते हैं। 1. उदयानंद अज्योल 2. शशिधर 3. भानुभक्त आचार्य। उदयानंद अज्योल की जन्म तिथि ज्ञात नहीं है। शशिधर का जन्म विक्रम सम्वत् 1804 अर्थात् सन् 1747 माना जाता है। भानुभक्त आचार्य का जन्म विक्रम सम्वत् 1871 अर्थात् सन् 1814 में हुआ। इनका रचनाकाल सन् 1780 से 1814 के बीच माना जा सकता है। शशिधर ने गद्य में वैराग्यांबर शीर्षक ग्रंथ लिखा जिसमें अध्यात्म साधना का विवरण मिलता है। नेपाली साहित्य के प्रथम उल्लेखनीय रचनाकार भानुभक्त आचार्य ही हैं जिन्होंने संस्कृत की अध्यात्मरामायण का नेपाली भाषा में अनुवाद किया। इसका रचनाकाल सन् 1814 के लगभग माना जाता है।
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प्रोफेसर महावीर सरन जैन
सेवा निवृत्त निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान
123, हरि एन्कलेव, बुलन्द शहर – 203 001
855 DE ANZA COURT
MILPITAS
C A 95035 – 4504
(U. S. A.)
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