सुशील यादव का व्यंग्य - चलो इक बार फिर से वोट दे आएं हम दोनों.......

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  फेसबुक का जमाना है दोस्त....! कहाँ तक अजनबी बनते –बनाते रहेंगे?सो ‘अजनबी बन जाए हम दोनों’ कहने की अब नौबत नहीं आती | जब तक चाहा दोस्त रह...

 

फेसबुक का जमाना है दोस्त....! कहाँ तक अजनबी बनते –बनाते रहेंगे?सो ‘अजनबी बन जाए हम दोनों’ कहने की अब नौबत नहीं आती |

जब तक चाहा दोस्त रहे, अन्यथा “अन्फ्रेंड” कह के अलविदा हो लिए|

पहले किसी से ‘मुंह मोड़ने’ का इतना सीधा-सरल तरीका नहीं हुआ करता था|हफ्तों ,महीनों ,सालों लग जाते थे कुट्टी होने के बाद भूलने –भुलाने के एपिसोड में|सास-बहू सीरीयल सा एक-एक सीन दोनों बिछुड़ने वालों की तरफ, यादों के पर्दे पर बार-बार रिपीट होते रहता था | आज एक दूसरे प्रसंग में, गाने का मुखड़ा, जनाब साहिर जी से क्षमा याचना के साथ ,जहन में कुछ यूँ आ रहा है .....”चलो इक्क बार फिर से ,वोटिंग कर आयें हम दोनों,,,,,,,, |”

“बेटर –हाफ”...... , के साथ वोट डालने जाना,पिछले पच्चीस-तीस सालों से हर पांचवे साल मिलने बाला एक अजब तजुर्बा होता था ?

पहले नई-नई आई थी, तो एक- दो इलेक्शन तक , उम्मीदवारों के बारे में हम ब्रीफ करते थे |

फलां चोर है ,एक जिसे हाथ ठेले का निशान मिला है, कबाड़ी है ,एक पर किडनेपिंग का केस चल रहा है ,वो जो पिछले इलेक्शन में जीता था, उसने दो-चार कोठिया बनवा ली है, सब ठेके अपने भाई –भतीजों को दिलवाता है| बाक़ी सब छुट-भइये नेता हैं|

अब जिसे तुम चाहो ठप्पा लगा देना |वो ‘बीप’ वाला ज़माना नहीं था |

हम उनके द्वारा किये मताधिकार को, जानने की कोई उत्सुकता नहीं रखते थे |कभी दबाव नहीं डाला कि फला उम्मीदवार को ही जिताना है |घर में आपसी समझ के मामले में ,पूरी लोकतन्त्रीय प्रणाली लागू रहा करती थी|

अलबत्ता , रिजल्ट वाले दिन वह स्वयं घोषित कर देती थी कि उनने जिसे व्होट दिया था वही केंडीडेट, जीत गया है |

वो पलट के हमसे पूछती आपने किसे दिया था ?

हम अपनी साख भला कब गिरने देते ? सो खुद भी कह देते उसे ही तो हमने भी अपना मत दिया है, जो जीता घोषित हुआ है |

इस तरह हमारी,घोषित,२८ गुण मिली हुई कुंडली का,‘सक्सेस- रेशो’ ,पिछले तीस सालों से ,ज्योतिष में विश्वास करने का पुख्ता कारण बनता रहा है |

तीन –चार चुनाव हमारे द्वारा, यूँ ही लापरवाही में घटिया लोगों को विधायक –सांसद बनाने में गुजर गए |

वे जिन्हें जिताया ,एक भी काम के नहीं निकले |

अगर अपना उनसे, खून का रिश्ता होता तो बड़े आराम से कह देते सब के सब साले निक्क्म्मे- नालायक निकले |

चुनाव जीतने के बाद वे सब ,”तीन बेर खाती थी वो, तीन बेर खाती है” टाइप उसूलों के लोगो में शामिल हो गए |

जो तीन-चार चक्कर गली के हफ्ते में लगा लिया करते थे वे पांच सालों में एक बार भी पलट के नहीं आये | या तो मोहल्ले की तरफ मुड के देखने का मुहूर्त नहीं निकला या मूड नहीं बना |

वे जिनके घर में खाने के नाम पर ‘फाका - बेर’ हुआ करते थे अब ब्रेक-फास्ट ,लंच-डिनर में आमलेट-मुर्गे की गंध उड़ने लगी |

जिन्होंने कभी कहा था ,मैं समस्याओं से लड़ने आया हूँ ,आपके बीच बसने आया हूँ |आपका हितैषी हूँ |आपका शुभचिंतक हूँ |आप अपनी समस्याएं लेकर मुझसे किसी भी वक्त मिल सकते हैं |मैं नौजवानों का भाई हूँ ,बुजुर्गों का बेटा हूँ ,मुझे चुनकर आप अपने बीच के ही एक आदमी को ऊपर सदन में भेजेंगे |ये सब बातें उनके घोषणा पत्र के अलावा नुक्कड़ सभाओं में भी हुआ करती थी |

उसी शख्श का बदला चेहरा नजर आया ....सब अवाक -दंग रह गए !

शहर का एक-एक मतदाता छला गया महसूस करता रहा |उनका किसी को कोई सहयोग मिल पाता ,पूरे पांच साल ये एक सपना ही रहा |

अब इस शहर के लोगो ने ‘छाछ’ को भी फूंक के पीने की आदत बना ली है |

हमारी ‘बेटर-हाफ’ के तेवर भी इस इलेक्शन में बदले हुए से हैं |अगर भूले से भी कोई उम्मीदवार दरवाजे में दस्तक दे जाता है या किसी नुक्कड़ सभा में घिर जाता है , तो वो सवालों की झड़ी लगा देती है |पांच सालों में कितनी बार जन समस्याएं सुनने इस मोहल्ले में आयेंगे ?आप अपने वादे ,पार्टी के घोषणा पत्र पर अमल करने में कितना वक्त लेंगे ?आप अपने वादे से मुकरे तो हम आप का ‘आचार’ किस गटर में डालें ये अभी से तय करते जाएँ ?

तब से,इस मोहल्ले की तरफ वोट के नाम पर रुख करने वाले नेताओं में एकदम कमी सी आ गई है |वे कतरा के निकल जाते हैं |

मुहल्ले-शहर की जनता ,’बेटर-हाफ’ के बाग़ी तेवर को अपना खूब समर्थन दे रही है |

हो सकता है ,इस सीट का अगला उम्मीदवार वही हो, या यूँ कहूँ कि अगले उम्मीदवार का जन्म हो गया है |

सुशील यादव

न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग)

COMMENTS

BLOGGER: 6
  1. अति सुन्दर व्यंग्य..'बेटर-हाफ' से 'बेटर' प्रत्याशी कोई हो ही नहीं सकता..आने वाले दिनों में ये ही नजारा देखने मिलेगा..हमें अभी से चूल्हा-चक्की की आदत डालनी चाहिए...प्रमोद यादव

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  2. अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव9:08 am

    सुशील जी व्यंग अच्छा लगा

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना मंगलवार 09 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी लिखी रचना मंगलवार 08 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    ......पूर्व सूचना को निरस्त समझें

    जवाब देंहटाएं
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    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
  5. बेटत हाफृृ़ ही हैं उनका हर कदम बेटर ही होगा !

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रचनाकार: सुशील यादव का व्यंग्य - चलो इक बार फिर से वोट दे आएं हम दोनों.......
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