असगर वजाहत की कहानी – सारी तालीमात

SHARE:

सारी तालीमात हर तीन-चार साल के बाद शहर में फसाद हो जाता है, ढाटे बांधे हुए। ‘हरहर महादेव’ का नारा लगाते हिन्दुओं की गिरोह मुसलमानों के मोहल...

सारी तालीमात

हर तीन-चार साल के बाद शहर में फसाद हो जाता है, ढाटे बांधे हुए। ‘हरहर महादेव’ का नारा लगाते हिन्दुओं की गिरोह मुसलमानों के मोहल्लों पर हमला करते हैं और मुसलमान, हिन्दुओं पर जिहाद बोले देते हैं। आग लगायी जाती है। जो होली-ईद मिलन, एकता के सिद्धान्तों और सांप्रदायिकता विरोधी कमेटियों की कागजी दीवार को भस्म कद देती है। दो-चार दिन तक गिरोह सक्रिय रहते हैं। तेजाब, चाकू, लाठियां, बल्लभ और एक-आध बंदूक, देसी कट्टे लिए शत्रु की खोज में केवल एक-आध आदमी, औरत या दूकान ही नजर पड़ती है जिसका तत्काल फैसला कर दिया जाता है। कासिमेपुरे में अफवाहों का बाजार गर्म हो जाता है। ‘आज रात दो हजार हिन्दु हमला करने वाले हैं।’ मोहल्ले के लड़के अपनी अपनी छतों पर ईटें जमा करने लगते हैं। ‘आज पुलिस ने मास्टर रहमत अली का घर जला दिया’ ‘झूठ क्या बकते हो गफूर ने अपनी आंखों से देखा है।’ ‘यही तो गड़बड़ है मियां, पूलिस भी उनका साथ देती है, नहीं तो इन धोती बांधनेवालों को तो एक घंटे में ठीक कर दें। लेकिन सरकार से कौन लड़ सकता है कासिमपुरा, नवाबगंज रहमताबाद में मुसलमानों की सौ फीसदी आबादी है। लेकिन पूरे शहर में फिर भी भी हिन्दू ज्यादा हैं। अगर हमला बोल दिया तो क्या होगा मौत का डर मौहल्ले की रग-रग में चमक जाता है।

सड़के ऊसर की तरह सुनसान हो जाती हैं। पुलिस के जूतों और सीटियों की आवाजों के सिवा नहीं सुनाई देता, कभी-कभी पुलिस जीप की आवाज आती है और सन्नाटा छा जाता है,-‘बड़े पुल के पास मुसलमान की लाश मिली है।’ ‘आज पुलिस की गश्त नहीं हो रही है, जरूर हमला होगा।’ पूरा मोहल्ला एक ठंडे भयानक तनाव और डर में डूब जाता है। चार-पांच दिन के बाद छुटपुट चाकू की वारदातें शुरू हो जाती हैं। पतली तंग गली के कोने पर तीन-चार आदमी मिलकर राशन की तलाश में निकले किसी झल्लीवाले या रिक्शेवाले को चाकू मार देते हैं। घुटी-घुटी सी भयानक चीख, भागते हुए पैरों की आवाजें, खिड़कियां खुलने का शोर शोर और फिर ‘अल्लाह अकबर’ के नारे सुनायी पड़ते हैं।

इस दंगे के बाद हिन्दुओं के मोहल्ले के आसपास रहने वाले मुसलमान किसी मुसलमानी मोहल्ले में आ जाते हैं और मुसलमानों की बस्ती के पास रहने वाले हिन्दू रस्तोगीगंज या रघुबीरपुरा चले जाते हैं।

मुसलमानी मोहल्लों में दाढ़ियों की तादाद बढ़ जाती हैं। मस्जिद में नमाजी अधिक आने लगते हैं। लोग देर तक गिड़-गिड़ाकर दुआएं मांगने लगते हैं। गुंडा पार्टी लूट के माल को इधर-उधर करने में लग जाती है। हथियार जमा करने का चंदा वसूल करती हैं। पता नहीं अगले फसाद से सिर्फ गोलियां ही चले। शहर में कितने हिंदुओं के पास बंदुकें हैं और कितने मुसलमानों के पास दस और एक का भी तो औसत नहीं पड़ता, कारतूस जमा किए जाते हैं। लेकिन पुलिस का ख्याल आते ही सबकी हवा बिगड़ जाती है। जुग्गन, रहमत के होटल के सामने बहती नाली में बलगम थूककर कहता है,‘‘यही तो गड़बड़ है जिगर। पुलिस अगर किसी तरफ से...’’

‘‘अब साले, हाजीजी से चंदा क्यों नहीं लेते कारखाना चलाते हैं हराम में ’

हाजीजी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहते हैं, ‘‘इस बार तो माशा-अल्लाह तुम लोगों ने भी कुछ किया।’’

‘‘हाजीजी, आप हाथ रख दें तो देखिए क्या नहीं कर दिखाते।’’

हाजीजी एक हजार रुपया चंदा देते हैं और जुग्गन की पार्टी चली जाती है। वैसे हाजी जी को एक हजार चंदा देने की कोई जरुरत नहीं थी, क्योंकि उनका कारखाना कासिमपुरे के बीचोबीच है। कारीगर भी सौ फीसदी मुसलमान हैं। हाजी जी हिंदुओं को रखते ही नहीं। कहते हैं, कौम की खिदमत करने का मौका खुदा ने दिया है तो उसे क्यों छोडूं मुसलमान कारीगर भी हाजी जी के कारखाने में काम करना चाहते हैं। जान प्यारी है, पैसा नहीं।

शहर तीन हिस्सों में बंटा हुआ है। स्टेशन से उत्तर की तरफ चले जाइए तो सिविल लाइन्स का इलाका है। चौड़ी सड़क पर दूर तक कोठियां बनी हुई हैं

। डी.एम. की कोठी से सड़क शुरू होती है और इंजीनियर साहब की कोठी के पास मुड़ जाती है। यहां पर हाजी करीम और वीरेन्द्र बाबू की कोठियां एक-दूसरे से मिली हुई बनी है। रफीक मंजिल, जहां कभी मोहम्मद अली जिन्ना ठहरा करते थे, उनके बराबर में जनसंघ के अध्यक्ष पंडित सोमदत्त गौड़ का बंगला है। नवाब अब्दुल मसीद खां, जो अंग्रेजी राज में बड़े ऊंचे ओहदे पर काम कर चुके थे, की कोठी के बिलकुल सामने जिला कांग्रेस के नेता जी का विशाल ‘स्वराज निवास’ है।

स्टेशन से दक्खिन की तरफ जाइए तो चमकता हुआ साफ बाजार मिलेगा।

सामान भरा हुआ है कि अगर हर एक घर में एक-एक चीज पहुंचा दी जाए तब भी किसी चीज की कमी न पड़े। इस सड़क पर रिक्शों, मोटरों, साइकिलों की भीड़ में चलना मुश्किल हो जाता है। इसी सड़क पर शहर के बड़े रेस्तरां भी हैं और सिनेमा घर भी। शराब की दूकाने भी और जौहरियों की गद्दियां भी। यहां रात में चमचमाती हुई रॉडों की रोशनी होती है और कूल्हे से कूल्हा छिलता है। इस सड़क के दोनों तरफ गलियां हैं। कुछ हद तक साफ सुथरी और पक्की गलियों में पक्के मकान बने हुए हैं जिनमें हिन्दु रहते हैं। इन मोहल्लों में मकान लेने कोई मुसलमान नहीं जाता। जैसे उनको मालूम है कि शहर का यह हिस्सा दूसरी तरह के लोगों के लिए बना है और वे दूसरी तरफ के लोग हैं। दफ्तरों के बाबू, स्कूल के मास्टर, छोटे दूकानदार, अलग-अलग नौकरियां और धधों में लगे हुए वे सब हिन्दू हैं। इसी सड़क पर और बढ़ते चले जाइए तो बड़े चौराहे के बाद चमकीली दूकानें खत्म हो जाएंगी। कुछ फल बेचने वालों की छोटी-छोटी और पुरानी दुकानें हैं जिनमें बैठे दुकानदार सूरत ही से मुसलमान लगते हैं। जवानों के चेहरों पर काली खशखशी दाढ़ी और आंखों में सख्ती दिखाई पड़ती है। बूढ़ों के चेहरों पर सफेद लंबी दाढ़िया माथे पर गट्टे का निशान। वे अपनी दूकानों पर इस तरह बैठते हैं, जैसे घर में आराम से बैठे हों। बैठे-बैठे ‘नहीं’ कह देने में इनका कोई जवाब नहीं है। ग्राहकों को देखकर न हंसते हैं और न मुस्कराते हैं। शायद ग्राहकों का आना इनको अच्छा नहीं लगता। न उनकी पूरी बात सुनने की कोशिश करते हैं और न अपनी पूरी बात उनको बताते हैं।

बांद वालों की दुकानों के बाद से बाजार की चहल-पहल अपना रंग-ढंग बदल लेती है। अब बायीं तरफ एक लाइन से बिस्कुट बनाने वालों की दूकानें हैं जहां दूकानदार तहमद बांधे, बनियान पहने बिस्कुटों के लिए मैदा फेंटते दिखाई पड़ते हैं। आठ-नौ साल के बच्चे बड़े-बड़े बर्तनों को धोते, गंदी-गंदी गालियां बकते रहते हैं। हर दुकान पर एक-आध आदमी बेकार बैठा दिखाई पड़ता है। बिस्कुट बनाने वाली की गंदी दूकानों के सामने लाइन से दूर तक खाने के होटल हैं कभी-कभी यह सोचकर आश्चर्य हो सकता है कि इस बस्ती में रहने वाले लोगों ने खाने के अतिरिक्त और किसी चीज की दूकान खोलने की बात क्यों नहीं सोची सिर्फ चाय के होटल, बिस्कुट की दुकानें,खाने की होटल कवाब की दूकानें ही दूर तक दिखाई देती हैं। पहला यासीन टी स्टाल है। अदंर सफेद पत्थर की मेजों पर लगातार मक्खियां भिनकती रहती है। उर्दू के-एक दो अखबार, जिन पर काफी चाय गिर चुकी है, बुलंद आवाज में पढ़े जाती हैं। यासीन दूकान के सामने वाले दर में भट्टी के सामने खड़ा चाय बनाता रहता है या ऊपर लगे रेडियों के कान उमेठा करता है, जिस पर जालीदार गिलाफ चढ़ा हुआ है। भट्टी के दाहिनी तरफ शीशे के गंदे मर्तबानों में बिस्कुट भरे रहते हैं जिनसे यासनी बिलकुल तटस्थ दिखाई देता है। इन बिस्कुटों को जब कोई ग्राहक मांगता है तो यासीन बड़ी बेजारी से एक बिस्कुट इस तरह मेज पर रख देता ह, जैसी गाली दे रहा हो। ये पुराने बिस्कुट सिर्फ औंटी हुई चाय में डुबोकर ही खाये जा सकते हैं। यासीन टी स्टाल के बाद एक कवाब वाले की छोटी-सी दूकान है जो भैंस के कीमे की सींक लगाता है। इस दूकान के सामने खड़े होने पर आग की चिंगारियों के साथ भुने गोश्त की खुशबू नाक में घुस जाती है। साथ ही लगा हुआ खाने का एक और होटल है जिसके नाम का बड़ा बोर्ड दसियों बरसातों को न सह पाने की वजह से जंग लगा टीन बन चुका है। एक बहुत बड़े थाल में रखी बिरयानी के पीछे मोटा अब्दुल गफूर बैठा गोश्त निकाला करता है। उसके चारों तरफ बड़ी पतीलियों में कीमा, कलेजी, भेजा, छोटे का और बड़े का गोश्त सजा रहता है। खजहे कुत्ते होटल के अंदर आकर मेज के नीचे से हड्डियां उठा ले जाते हैं। होटल में काम करने वाले लड़के गंदे और चिक्कट कपड़े पहने ग्राहकों के सामने बड़े गोश्त की रकाबियां और रोटियां पटक देते हैं। हड्डी को चबाकर नीचे फर्श पर फेंक देने का या खाना खाने की कुर्सी पर बैठे-ही-बैठे गिलास के अंदर हाथ डालकर हाथ धो लेने पर किसी को एतराज नहीं होता। दीवारों पर इस्लामी कलैंडर या मक्का-मदीने की तस्वीरें या कुरआन की आयतें आने-जाने वालों की देखती हैं। होटल के बैरे, जिन्हें किसी भी तरह आप बैरा नहीं कह सकते, से अगर खाने के बारे में पूछें तो वह एक ही सांस में दस खानों के नाम गिनवाकर आपकी तरफ इस तरह देखेगा जैसे एहसान किया हो। इसके बाद बिस्मिल्ला होटल है जो और भी गंदा और सस्ता है।

इन दूकानों और होटलों से ये तो पता चल जाता है कि इन मोहल्ले में रहने वालों को खाने और विशेष रूप से गोश्त खाने में बड़ी दिलचश्पी हैं। गंदे और फटे चीथड़े लगाए, खांसी से बेतरह पेरशान, छोटे-छोटे लड़के हाथ में कई जगह से चिपटा अल्मुनियम का प्याला लिए आते हैं, ‘‘कीमा दे दो,कीमा, एक प्लेट।’’ और कीमा लेकर गली में भाग जाते हैं। इन गलियों में इतनी जह भी नहीं है कि तीन चार आदमी एक साथ चल सकें। दोनों तरफकी ऊंची दीवारों के कारण गली में हल्का सा अंधेरा और सीलन रहती है। ककई ईंट से बनी दीवारों पर मर्दानगी बढ़ाने वाली दवाओं के इश्तिहार या उर्दू में लगे पोस्टर दिखाई पड़ते हैं। जो किसी ‘मीलाद शरीफ’ या ‘उर्दू के कत्ल और ‘क्रीम पर मुसीबत’ की इत्तिला देते हैं। आमतौर पर घरों के नाबदारन गली में खुलते है जिसके ऊपर लटका टीन गलकर गायब हो चुका होता है। ऊपर कोठी से रेडियो की तेज आवाज या चीख-पुकार सुनाई देती है। टीन के गले पाइपों से ऊपर का गंदा पानी गली में गिरता है तो उसके छींटे पूरी गली में फैल जाते हैं। गली में खुलनेवाले पुराने और बरसाती पानी में गले दरवाजों पर टाट का चिथड़ा पर्दा किसी भी वजह से कभी हट जाता है तो धुर्आया हुआ दालान दिखाई पड़ जाता है। सुबह और शाम कोयले की अंगीठियां जब गली में आ जाती है तो पूरी गली नीचे धुएं से घिर जाती है। किसी पर्दे के पीछे कोई पीले या पतले चेहरे वाली लड़की झांकती है। और दो नंगे बच्चे, जिनके पेट फूले होते हैं, अंदर घुस जाते हैं।

यह शहर का तीसरा हिस्सा है जहां सौ फीसदी मुसलमान रहते हैं। इन मोहल्लों में शायद ही कभी कोई हिन्दू आता हो। आने की जरूरत ही क्या है और मकान लेने या रहने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता। हां, इन मोहल्लों के पीछे कुछ चमार, पासी या कुछ इसी तरह के लोग झोपड़ियों में रहते हैं। ये लोग भी इसी तरह की जलील और भुखमरी वाली जिंदगी जीते हैं, जैसी कि मोहल्ले के दूसरे लोग।

इस मोहल्ले से म्युनिसिपैलिटी में मुसलमान ही इलेक्शन जीतते हैं। हिन्दू खड़े ही नहीं होते। स्कूलों के मास्टर मुसलमान हैं। डाक्टर मुसलमान हैं, दूकानदार मुसलमान हैं, छोटे-मोटे दूसरे काम करनेवाले मुसलमान हैं।

इस नीम के पासवाली गली के अंदर चले जाइए तो आगे चलकर एक बड़ा सा पुराना मकान दिखाई पड़ेगा, जिसके दरवाजे पर छोटी-सी तख्ती में ‘हाजी करीम एंड को’ लिखा दिखाई देगा। यही हाजीजी का कारखाना है।

‘हाजी अब्दुल करीम एंड को’ के ताले ही हिन्दुस्तान के मशहूर ताले हैं। आजकल तो कोई भी ऐरा-गैरा नन्थु-खैरा ताला बनाने का काम शुरू कर देता है, नहीं तो सन् तीस में सिर्फ हाजी का एक कारखाना था।

एक हजार रुपये देना हाजीजी को खल गया था। लेकिन और कोई रास्ता नहीं था। यही लोग वक्त पर काम आते हैं। कामरेड थानसिंह ने जिस जमाने में मजदूरों से दोस्ती करनी शुरू की तो हाजीजी ने जुग्गन ही से कहा था। और जुग्गन ने सब ठीक कर दिया था।

हाजीजी ने टोपी उतारी, सिर पर हाथ फेरा और ‘अल्लाह-अल्लाह’ करके तख्त पर लेट गए। अंदर कारखाने में काम हो रहा था। हाजी जी ने लेटे-ही-लेटे एक अंगड़ाई ली और जोर से बोले, ‘‘रहमत, मुझे एक कटोरा पानी पिला दे।’’

अंदर लोहा पीटने और छोटे-बड़े हथौड़े चलने की आवाजों में हाजीजी की आवाज दब गयी। वह फिर जोर से चिल्लाये, ‘‘कहां रहते हो तुम्हें घंटों से बुला रहा था, ‘‘हाजीजी रहमत को देखकर बोले। वह अंदर से निकलकर आया था। ‘‘मुझे एक कटोरा पानी पिला दो। ओर वह आर्डरवाला खत लिखा या नहीं आज स्टेशन से बिल्टी भी छुड़ानी है। और लीवर, कमानी, स्क्रु का काम जो मोहल्ले में बंटा था, वापस हो गया’ वह पांव-तकिये से लगाकर बैठ गए। उनकी बड़ी तोंद एक छोटा-सा टीला लगने लगी। आठवीं पास रहमत हाजीजी का मैनेजर है। दफ्तर में झाडू देने से लेकर लिखा पढ़ी तक का काम करता है। हाजीजी उससे बड़ा खुश रहते हैं, लेकिन कभी जाहिर नहीं होने देते। सौ रुपये में ऐसा मैनेजर आजकल कहां मिलेगा

‘‘रब्बन ही का काम अभी तक नहीं आया है। फसाद में उसका घर जल गया था न! इस वजह से।’’

‘‘कितने का माल था’

‘‘तीन सौ का।’’

‘‘ठीक है। मजदूरी में धीरे-धीरे काट लो। आये तो और माल बनाने को दे देना। अल्लाह-अल्लाह कौम पर क्या मुसीबत आयी है।’’ वह पानी पीकर फिर लेट गये।

लीवर, कमानी, स्क्रू, रिपिट और कवर बनाने का काम हाजीजी मोहल्ले में बंटवा देते हैं, बल्कि औरतें खुद ही आकर ले जाती हैं। ये छोटे-मोटे काम औरतें-बच्चें ..कर लेते हैं। दिन-भर औरतें, लड़कियां और बच्चे काम करके शाम कारखाने में आकर दे जाते हैं और महीने में हिसाब हो जाता है। हाजी जी बड़े फख से कहते हैं, ‘‘इसीलिए तो मैं बड़ी मशीनें नहीं लगाता। गरीबों की रोटी मारी जायेगी। अभी कम-से-कम पेटभर खाना तो मिल जाता है।’’

हाजीजी पढ़े कम लेकिन कढ़े ज्यादा हैं। उन्हें मालूम है कि बड़ी मशींने लगाने से वह मिट सकते हैं। वह घाटे का काम है। अभी तो फैक्ट्री एक्ट ही नहीं लागू होता ‘हाजी करीम एंड को’ पर, जो काम कम-से-कम तीन सौ आदमी करते, मोहल्ले की औरतें कर देती हैं। लेबर इंस्पेक्टर के आने से पहले ही चंदू का लौंडा जो लेबर आफिस में चपरासी है, आकर हाजीजी को बता देता है। हाजी आधे से ज्यादा मजदूरों और कारीगरों को पिछली खिड़की से बाहर कर देते हैं। ऐसी बात नहीं कि लेबर इंसपेक्टर नहीं जानता। हाजी का मुंह बंद करने के तरीके मालूम हैं। अब जब फैक्ट्री एक्ट ही नहीं लागू हो पाता तो छुट्टियां, बोनस ई. एस. आई. का झगड़ा ही खत्म हो जाता है। हाजीजी इतवार की छुट्टी भी नहीं देते। कहते हैं, वही होगा जो होता चला आया है। जिसे न करना हो वह वीरेन्द्र बाबू के कारखाने में चला जाये। वीरेन्द्र बाबू के कारखाने का नाम आते ही सबके चेहरे सुत जाते हैं। सैकड़ों हिन्दुओं के बीच एक-आध मुसलमान कैसे काम कर सकता है, अगर किसी दिन फसाद हो गया तो....

हाजीजी कर्रा पड़ने के बाद मुसलमान लहजे में समझाते हैं। ‘‘इस्लाम तुम्हें यहां सिखाता है कि एक मुसलमान के कारखाने में काम छोड़कर थोड़े से लालच में हिंदू के कारखाने में चले जाओ वीरेन्द्र बाबू से तुम्हारा क्या रिश्ता है मैंने माना कि तुमको यहां तकलीफ है थोड़ी, लेकिन आराम भी तो है। ईद-बकरीद की छुट्टी देता हूं। नमाज-रोजे में तुम्हारा साथ हूं। अरे भाई, मैं तो यहां से वहां तक तुम्हारे साथ हूं। कोई ज्यादाती करूं तो अल्लाह के यहा दामन थाम सकते हो। लेकिन वीरेन्द्र बामू के यहां क्या करोगे अगर कभी फसाद हो गया तो मार ही तो दिए जाओगे न इस्लाम की सारी तालीमात को भूल गये हो यही तो कौम में सबसे बड़ी खराबी है कि एक मुसलमान किसी दूसरे भाई का फायदा नहीं देख सकता। जाओ भाई जाओ, जिसे जाना हो जाओ। मैं तो वही करूगां जो करता आया हूैं।’’ वह अपनी लाल आंखों से मजदूरों की तरफ देखते हैं, ‘‘जाओ वीरेन्द्र बाबू के कारखाने ! अपने मुसलमान भाई के मिट जाने की परवाह क्यों करते हो’ उनकी आंखों में आंयू आ जाते हैं, ‘अल्लाह-अल्लाह’। कोई नहीं जाता। सब सच्चे मुसलमान हैं। पावर प्रेस चलने लगती हैं। लोहा गलाया जाने लगता है। और पुराना बड़ा मकान धुएं और उसकी बदबू से भर जाता है। सेठ हाजी करीम बाहरी कमरे यानी ऑफिस में गाव-तकिये से लगाकर लेट जाते हैं। सोचते हैं, ‘अल्लाह की बड़ी मेंहरबानी है उन पर। दूसरे कारखानों में कभी पी.एफ के लिए हड़ताल होती है तो कभी कंपसेशन ग्रेच्युटी के लिए धरना होता है। ले-ऑफ और लॉक आउट के चक्करों में कहीं काम हो सकता है इनकमटैक्स, प्रोफेशनल टैक्स और पता नहीं कैसे-कैसे टैक्स लगे हुए हैं। किसी मजदूर को निकाल नहीं सकते, किसी को रख नहीं सकते तो फिर मालिक काहे के हाजीजी ‘अल्लाह-अल्लाह’ करके फिर लेट गये। कारखाने में काम हो रहा था।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: असगर वजाहत की कहानी – सारी तालीमात
असगर वजाहत की कहानी – सारी तालीमात
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg4NNrgoxlGUIDHPsz4v7xf0jCJommJH5nHIKFOfv8S6OEiFaA5DNqzzjX4P8x4mbvCJsFDuOsvfMUbR-xfzxaF6ByOGTlitd05ZAnlrHTWWyKCTVpJvaCQd59Kt43tLLFXZigz/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg4NNrgoxlGUIDHPsz4v7xf0jCJommJH5nHIKFOfv8S6OEiFaA5DNqzzjX4P8x4mbvCJsFDuOsvfMUbR-xfzxaF6ByOGTlitd05ZAnlrHTWWyKCTVpJvaCQd59Kt43tLLFXZigz/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2014/04/blog-post_3236.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2014/04/blog-post_3236.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content