मतदाता महान../ प्रमोद यादव जिस तरह स्कूली बच्चे परीक्षाहॉल से परीक्षा देकर बाहर निकलने पर एक-दूसरे को पूछते हैं – “ कैसे बना पेपर ?” वैसा ...
मतदाता महान../ प्रमोद यादव
जिस तरह स्कूली बच्चे परीक्षाहॉल से परीक्षा देकर बाहर निकलने पर एक-दूसरे को पूछते हैं – “ कैसे बना पेपर ?” वैसा ही कुछ हाल इन दिनों आसपास के उन जिलों का (क्षेत्र का) है जहां लोकतंत्र के महा-पर्व “मतदान” का सफलतापूर्वक समापन हो गया...लोग वोटिंग कर farfarifarigफारिग हो एकदम सहज हो चले.. दो महीनों से पेट खलबला-सा गया था..भाषण और नारों के खट्टी-मीठी डकार से....हवा का रुख पहचानने में हवा निकल गई...वोटिंग के बाद पेट थोडा साफ़ हुआ तो एक-दूजे को पूछ रहे- ‘कैसा रहा मतदान ? किसे दिया वोट ? किसी ने धमकाया तो नहीं ? किसी ने चमकाया तो नहीं ?’ मेरे क्षेत्र के मतदान में अभी सात दिन बाकी है..मेरी बड़ी जिज्ञासा थी कि मतदान से जो मतदाता निपट गए ( या निपटा दिए ) वे अभी कैसा फील करते होंगे .सो जनता-जनार्दन का मन टटोलने मैंने पड़ोस के जिले में दबिश दी..बहुत सारे मान्यवर मित्र रहते हैं इस जिले में..सबसे पहले एक परिचित से पूछा- ‘ कैसा रहा मतदान ? छत्तीस लोगों के बीच से किसी एक को चुनने में काफी कठिनाई हुई होगी ? ‘
‘ कैसी कठिनाई भाई..’ उसने कहा- ‘ हमारी तो हवा का रुख पहचानने में मास्टरी है..हम हवा के साथ-साथ..हवा के संग-संग चलते हैं..जिधर बम-उधर हम..इसलिए कोई परेशानी नहीं हुई..बस..घुसे और बटन दबा दिए..’
‘ पर भैया..मैंने तो अखबार में पढ़ा था कि आपके यहाँ हवा के साथ जो खड़े थे, उनके साथ दस और निर्दलीय हमनाम हवा में तैर रहे थे..आपने कहीं हवा के घोड़े में सवार हो किसी “डमी” को तो नहीं दे दिया ? ‘
‘ अरे क्या बात करते हो मियां.. हमें शिकारपुरवाले समझे क्या.. पढ़े-लिखे हैं भई ..हमने चुनाव-चिन्ह को हृदयंगम कर रखा था.. “जब जरा गदन झुकाई, देख ली तस्वीरे यार “ की तरह बीच-बीच में नजर उस पर भी रखते.. और तब फिर बटन दबाया ..गलती का तो सवाल ही नहीं उठता..’
‘ तो इसका मतलब ये हुआ कि आखिर आपने चौबीसों घंटे हवा में उड़ने वाले को मत दे दिया..’ मैंने खुलासा किया.
‘ नहीं जी..ऐसा हमने कब कहा ? उड़नेवाले की तो सभी “उड़ा” रहे हैं....पर आपको क्यों बताएं कि किसे दिया ? लेकिन इतना जानिये कि सही जनप्रतिनिधि को वोट दिया..जिसके पक्ष में रिजल्ट आएगा, समझिये उसे ही वोट किया..’ और इतना कह वो चलते बने.
अब की बार मैंने एक आम आदमी जैसे दिखने वाले एक व्यक्ति से कहा – ‘ आशा है , आपने सही प्रत्याशी को ही मत दिया होगा..जो आपकी उम्मीदों पर खरा उतरे .. और पांच साल में उन ऊँचाइयों में पहुंचा दे जहां आज वे खुद उड़ रहे..’
उसने बात बीच में ही काट दी- ‘ आज के जमाने में किसी पर क्या उम्मीद करें भाई ? सब एक ही थैले के चट्टे- बट्टे हैं.. कोई सांपनाथ तो कोई नागनाथ...दो ही तो प्रमुख पार्टी हैं यहाँ...पिछली दफा सांप को दिया तो उसने काफी डसा ..मंहगाई..बेरोजगारी..घपले-घोटालों के इतने जहर उगले कि जीना हराम हो गया...”अब की बार-नाग सरकार” पर विश्वास मत जताया है..जो बार-बार टी.वी.में , भाषण, रैली और रोड शो में खुलासा कर रहें कि उनके जहर के दांत टूट चुके..अतः नुक्सान की कतई गुंजाईश नहीं..बेखौफ हमें मत दें..तेज-तर्रार सरकार चुनें..वैसे भी इन्हीं की लहर है तो अपनी भी इस बार यही डगर है.. ’ इतना कह वे लहराते हुए अपनी डगर फुट गए.
पास ही खड़े एक ग्रामीण से पूछा- ‘ आपने मतदान किया ? ‘
तो उसने ऊँगली दिखाते कहा- ‘ वोट देना तो हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है...धर्म है जी ...दुनिया चुके तो चुके पर गरीब कभी न चुके.. हाँ..हमने अपनी मति से मत दिया..’
‘ किस पार्टी को दिया ? किसे वोट किया ? ‘ मैंने पूछा.
‘ हम तो सब साफ़-साफ़ कहते हैं ..उन्हें ही वोट देते हैं जो हम गरीबों को नोट देते है..’
‘ तो किस पार्टी ने आपको नोट दिया ? ‘ मैंने ए.सी.बी..के (एंटी करप्शन ब्यूरो के) अंदाज में पूछा.
‘ ये तो नहीं बताएँगे जी..राज की बातें हैं..वैसे तो सब पार्टी देते हैं..कोई कम तो कोई ज्यादा..आखिर में बड़ी असमंजस की स्थिति बन जाती है कि किसे वोट करें ? ‘
‘ तो फिर आप वोट उसी पार्टी को दिए होंगे जो सबसे ज्यादा नोट उड़ायें हों..’ मैंने संभावना व्यक्त की.
‘ नहीं जी..जो सबसे कम देते हैं..उस गरीब पार्टी को समर्थन देते हैं..अब गरीब ही तो गरीब के काम आएगा न ..पैसे वाले तो वोट लेकर पांच साल के लिए हवा-हवाई हो जाते हैं...‘ उसने फंडा समझाया.
गोलू गुरूजी से मिला तो उसने बताया कि हर बार की तरह इस बार भी मत नहीं दे सका..मतदान दल के साथ ड्यूटी लगने से अक्सर वह इस उत्सव को कभी पूरे मन से भोग नहीं पाता..पर इस बार की ड्यूटी ने उसे जो सुख ( और दुःख ) दिया उसे वह कभी भूलने वाला नहीं ..रोज-रोज नेता-मंत्रियों को विमान और हेलीकाप्टर में उड़ते देख सोचता था कि क्या कभी घूरे के दिन भी फिरेंगे ? और इस बार फिर ही गया..नक्सली क्षेत्र में ड्यूटी लगी तो हेलीकाप्टर में सवार होने का अवसर मिला ..बहुत ही दुर्गम और खतरनाक इलाका था.. हेलीकाप्टर में चढ़ते ही लगा कि उसका कद कुछ बढ़ गया..थोड़ी और उंचाई पर पहुंचा तो नीचे की सारी चीजे छोटी दिखने लगी..सब कीड़े-मकोड़ों की तरह लगने लगे..तब जाना कि बड़े लोग क्यों ज्यादा उड़ते हैं.. क्यों हवाई-सर्वेक्षण करते हैं..उन्हें कीड़े –मकोड़े (हमें) देखने में बहुत आनंद आता होगा ..गुरूजी ने बताया कि शाम चार बजे तक मतदान के दिन बैठे रहे पर कोई परिंदा तक केंद्र की ओर नहीं भटका..पूरे क्षेत्र में मुनादी थी – “जो वोट देगा, उसकी जान लेंगे.”.जब मतदान दल के वापसी का वक्त हुआ तो “जन-मन-गण” की जगह “ठाय – ठाय- ठाय “ फायरिंग शुरू हो गई..फिर क्या हुआ- कुछ नहीं मालुम..होश आया तो सरकारी हास्पिटल के मनहूस बेड में पड़ा था..दोनों हाथों में प्लास्टर चढ़ा था..उँगलियों में इतनी ताकत नहीं बची थी कि इ.वी.एम. का बटन भी दबा सके..हवा में उड़ते ही ऐसा होगा, इसका थोडा भी गुमान न था..भगवान् जाने ये नेता इतना कैसे उड़ लेते हैं..यहाँ तो पहले ही दिन में नानी याद आ गयी..
फिर भी मैंने सवाल उछाला - ‘ अगर वोट करते तो किसे देते ? किस पार्टी को करते ? ‘
‘ उसे तो कतई नहीं जो हवा से बातें करते देश भर में उड़ रहे..हवाई किले बना रहे..हवा पलटते देर नहीं लगती..मैंने खुद अभी इसे भोगा.. और फिर इतिहास गवाह है -बड़े-बड़े तैराक अक्सर डूबकर ही मरते हैं.. ’
‘ इसका मतलब कि किसी भी ऐरे-गरे नत्थू- खैरे को दे देते..’ मैंने कहा.
‘ नहीं जी..इन्हें भी नहीं..जब कोई नहीं तो “ नोटा ” सही..’ उसने हँसते हुए कहा और चल बसे.( चले गए )
इस जिले में मेरी दूर की एक भाभी भी रहती हैं. उससे मुखातिब हो पूछा तो बोली कि तुम्हारे भैयाजी ने जिसे कहा ..दे दिया. मैं इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुआ. मैंने कहा- ‘ भाभीजी ...आज भी आप किस युग में रहती हैं..पति परमेश्वर तब हुआ करता रहा होगा..आज सब पतितेश्वर हैं..झुठेश्वर हैं.. बंडलेश्वर हैं.. इनकी बातों पर क्यों भरोसा करना..आप खुद भी पढ़ी-लिखी और समाझदार हैं, जानती होंगी कि किसे वोट देना चाहिए और किसे नहीं ? सच-सच बताना..क्या उसे मत दिया जिसे देना चाहती थी..’
भाभीजी कुछ असमंजस में दिखीं...मुझे लगा कि जाने-अनजाने मैंने कहीं कोई “फ्लैशबैक” तो नहीं कुरेद दिया.. क्या है कि अक्सर लड़कियां जवानी में “मत” (दिल) जिसे देना चाहती है , उसे देने के पहले ही ससुराल चली जाती है..और वहां पहुँचने के बाद साजन की प्रापर्टी बन जाती है..फिर वही होता है जो मंजूरे साजन होता है...अपनी मति से कोई मत देने का अधिकार नहीं रहता..शायद ऐसा ही कुछ भाभीजी के साथ हुआ हो...मैंने चुप्पी तोड़ते कहा- ‘ आप कोई क्लू दे दीजिये...मैं समझ जाऊँगा, किसे वोट दिया..’
‘क्या क्लू दूँ देवरजी ..यहाँ तो झाड़ू लगाने से फुर्सत नहीं..’ मामी ने अपनी व्यस्तता जताते दो आम काटकर प्लेट में सजा दी .
मैं समझ गया – भाभीजी ने किस पार्टी को वोट किया..अच्छा लगा कि उसने परिपाटी तोड़ी.
कुल मिलाकर निष्कर्ष ये निकला कि मतदान कर कोई मतदाता ज्यादा खुशहाल नहीं..और हो भी तो कैसे ? खुशहाली का सारा ठेका तो उनके पास होता है जो चुनाव लड़ते हैं.. जीतते हैं.. पांच साल लूट-खसोट कर अगले चुनाव तक मतदाता को और खस्ताहाल कर देते हैं...और बेवकूफ हैं मतदाता कि फिर अगले चुनाव में दो-तीन महीने बेमतलब की गणित करते, माथा-पच्ची करते, टी.वी.पर चुनावी बहस सुनते, रैली और रोड शो ताकते इस प्रक्रिया की रिसायकलिंग देखेंगे.. सचमुच.. मेरा भारत महान .. और मतदाता तो सबसे ज्यादा महान..
मतदाताओं के मन टटोलने का कार्यक्रम स्थगित कर मैं चुपचाप अपने क्षेत्र लौट आया.
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प्रमोद यादव
गया नगर,दुर्ग, छत्तीसगढ़
बेहतरीन रचना है। बधेक
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