प्रापर्टी मीटर और मैं / प्रमोद यादव ‘ पापाजी...दो हजार नौ में आपकी प्रापर्टी कितनी थी ? ‘ ‘ क्यों ? ये वाहियात सवाल क्यों ? ‘ बंटी को डांट...
प्रापर्टी मीटर और मैं / प्रमोद यादव
‘ पापाजी...दो हजार नौ में आपकी प्रापर्टी कितनी थी ? ‘
‘ क्यों ? ये वाहियात सवाल क्यों ? ‘ बंटी को डांटते मैंने प्रतिप्रश्न किया.
‘ यूं ही पापा..इन दिनों टी.वी. में बार-बार “प्रापर्टी मीटर” के अंतर्गत बताया जा रहा है कि अमुक आदमी की प्रापर्टी पांच साल पहले इतनी थी और आज की तारीख में चौगुनी हो गयी है..अमुक नेताजी पांच साल पहले लगभग गरीबनवाज थे जो अब शहंशाह की श्रेणी में शुमार हैं..एक मंत्री ने तो पांच साल पहले अपनी प्रापर्टी मात्र एक मर्सिडीज कार बताया था ..आज वे मर्सिडीज के व्होल्सेल डीलर हैं..’
‘ अच्छा...अच्छा..तो तुम चुनाव की बात कर रहे हो....बेटा.. यह तो चुनाव आयोग का नियम है कि जिसे चुनाव लड़ना है,वह नामांकन के वक्त अपनी पूरी चल-अचल संपत्ति का ब्यौरा दे..’
‘ इससे क्या होता है पापा ? ‘ उसने मासूमियत से पूछा.
‘ इससे दो बातें मालूम होती है बेटा... पहली बात कि चुनाव लड़ने वाला किस तबके का है ? नीचे तबके का कि ऊंचे तबके का ? अमीरी-गरीबी की लड़ाई एक जमाने से बदस्तूर जारी है पर इनके बीच की खाई उतरोत्तर बढती ही जा रही है..अमीर और अमीर हो रहे हैं तथा गरीब और भी गरीब..अमीर लड़ते हैं तो गरीब ही उन्हें जिताकर खाई को और चौड़ा करते हैं..पर नीचे तबके का कोई लड़ता है तो सारे के सारे मिलकर उन्हें और नीचे धकेल देते हैं..बेचारे जमानत तक नहीं बचा पाते....’
‘ तो गरीब लड़ते ही क्यों हैं पापा ? ‘
‘ शायद अमीर बनने के लिए.. राजनीती करके कोई आज तक गरीब नहीं हुआ..यह फलसफा कई गरीबों को बर्बाद कर गया है..’
‘ और दूसरी बात क्या है पापा ? ‘
‘ दूसरी बात पांच साल बाद मालूम होती है कि उसने उसमें ( हरामखोरी और भ्रष्टाचार कर ) कितनी श्रीवृद्धि की..’
‘ ऐसा भी तो होता होगा पापा कि पांच साल में किसी की प्रापर्टी घट जाती हो..’
‘ नहीं बेटा..नेताओं की संपत्ति उतरोत्तर बढती ही है..किसी अमीर सेठ के पेट की तरह..घटती तो केवल हम आम लोगों की है..’ मैंने समझाया.
‘ कैसे पापा ? ‘ उसने उत्सुकता से पूछा.
‘ अब अपने पापा को ही देख..पांच वर्ष पहले भी कुछ न था..आज भी कुछ नहीं है..मेरी संपत्ति तो केवल तुम और तुम्हारी मम्मी हो...अब भला इस संपत्ति में क्या वृद्धि होगी ? इस मंहगाई के दौर में तुम पर दो-तीन और भाई-बहन लाद देता तो तुम्ही कराह उठते..इसलिए इसमे वृद्धि नहीं की..अब रही बात तुम्हारी मम्मी की..तो इस अकेली जान को मैं चाहकर भी दो-तीन नहीं कर सकता..जवानी में किसी ने घास डाली नहीं तो इस उमर में कौन डाले ? वैसे भी एक ही ले-देकर चल रही है..’
‘ क्या कह रहें हैं पापा..मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा....मैं जमीन -जायदाद,, कार-बंगला, सोने-चांदी वाली प्रापर्टी की बातें कर रहा हूँ और आप “अनाप-शनाप” प्रापर्टी की बात कर रहे..’ वह झुंझलाया.
‘ अरे बेटा..मैं सही संपत्ति की बातें कर रहा हूँ जो विपत्ति में भी साथ देता है.. “अनाप-शनाप” संपत्ति की बातें तो नेता करते हैं..’
‘ पापा..कल एक बड़ी महिला नेत्री की प्रापर्टी के बारे में टी.वी. ने बताया कि पांच साल में उसकी प्रापर्टी पांच गुनी हो गयी...तेरह करोड़ से सीधे पैंसठ करोड़..बैंक में तो रकम साढ़े सात साल में दुगनी होती है न..फिर पांच साल में पांच गुनी कैसे ? ‘ बंटी ने सवाल किया..
मैं चुप रहा. पर बंटी फिर घूम-फिरकर वहीँ आ गया, पूछने लगा- ‘ सच-सच बताओ न पापा..कितनी प्रापर्टी है आपकी ? ‘
‘ अरे बेटा..हम नौकरी पेशा लोगों के पास कुछ बचता ही क्या है कि प्रापर्टी बने..सारा वेतन तो तीज-त्यौहार और मेहमानों की खातिरदारी में ही ख़त्म हो जाते हैं.. फिर बिजली का बिल , टेलीफोन का बिल , अख़बार का बिल , दूध का बिल, निगम का बिल...इतने बिल तो बिलगेटस भी नहीं पटाते होंगे..इतने पटाने के बाद बचता क्या है कि प्रापर्टी बने ? उलटे हम अक्सर “रिवर्स” में होते हैं..मतलब कि कर्जे में..’
‘ तो ऐसा सब तो नेता और मंत्री-संत्री भी करते हैं..वो हमसे भी बेहतर दिवाली-होली मनाते हैं..नाते-रिश्तेदारों का छप्पन भोगों से स्वागत करते हैं..तो जाहिर है - सारे बिल भी भरते होंगे..’
‘ नहीं बेटा...उनका हर काम फ्री वाला होता है..कहीं भी उन्हें पैसे खरचने की जरुरत नहीं होती..ये सारे काम उनके चमचे, ठेकेदार, और सरकारी अधिकारी-कर्मचारी पूजा-पाठ की तरह प्रेम से कर देते हैं..कहीं धोखे से मजबूरीवश कुछ खर्च करते भी हैं तो त्वरित गति से दुगुना वसूल लेते हैं..इसलिए इनकी संपत्ति में दिन दूनी और रात चौगुनी इजाफा होते रहता है..’ मैंने बंटी को रहस्य बताया तो उसने फिर एक सवाल फेंका- ‘ तो फिर आप नेता क्यों नहीं बने ? ‘
‘ वो इसलिए कि चोखेलाल बन गया..’
‘ कौन चोखेलाल ? और उसके बन जाने से आप क्यों रह गए ? ‘
‘ मेरा सहपाठी था चोखेलाल..हम साथ-साथ पढ़ते थे..निपट गधा और डीठ किस्म का लड़का था...मेट्रिक तक मेरी नक़ल करते-करते सफलता पूर्वक निकल गया.. मेट्रिक के बाद मेरे पिता ने अपनी सरकारी कुर्सी मुझे सौंप सिंचाई विभाग में क्लर्की की नौकरी लगा दी और चोखेलाल निगम चुनाव लड़कर नेता से पार्षद बन गया..फिर धीरे-धीरे महापौर की कुर्सी में काबिज हो रूपये पीटने लगा..फिर एम.एल.ए. बन गया.. आज उसकी गिनती अमीरों में है और मैं तो गिनती भी भूलने लगा हूँ..फक्कड़ जो हो गया हूँ.. ‘
‘ जब इतने साल उसने आपकी नक़ल की तो एक बार आप भी उसकी नक़ल कर लेते तो क्या बिगड़ जाता ? बंटी ने उत्तेजित हो कहा.
‘ किया था बेटा..किया था..एक बार जोश-जोश में एम. एल. ए. के चुनाव में खड़ा हो गया..लोगों ने इस बुरी तरह गिराया कि आज तक उठ नहीं पाया..लाखों के कर्ज हुए सो अलग..अब तक चूका रहा हूँ..संपत्ति बढाने के चक्कर में फक्कड़ हो गया हूँ..’ मैंने अपनी वेदना बताई.तो लड़का कुछ पल के लिए एकदम खामोश हो गया. फिर थोड़े अंतराल के बाद हैरानी जताते पूछा- ‘ तो सचमुच आपकी कोई प्रापर्टी नहीं पापा ? ‘
‘ हाँ बेटा..लेकिन इसमें हैरानी की कोई बात नहीं..इस देश के एट्टी परसेंट लोग मेरे जैसे ही हैं..’
‘ मुझे बाक़ी लोगों से क्या लेना-देना..पर आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी पापा ..’ वह गंभीरता से बोला.
‘ क्या मतलब ? ‘ मैं चौंका.
‘ मतलब कि आज तक मैं गलतफहमी में रहा ..आपको प्रापर्टीवाला समझता रहा..’ वह हताशा से बोला.
‘सो तो हूँ बेटा..मैंने पहले ही कहा न कि मेरे लिए तुम करोड़ से कम नहीं..और तुम्हारी मम्मी भी करोड़ की है..’
‘ तो क्या आप अगर किसी पार्टी की टिकट से इस बार चुनाव लड़ते तो अपनी संपत्ति का ब्यौरा यूँ ही देते- एक बेटा- एक करोड़..एक मम्मी- एक करोड़..टोटल- दो करोड़..’
मैं चुप रह गया. फिर कुछ अन्तराल के बाद उसे समझाया - ‘ ये नौबत आएगी ही नहीं बेटा....चोखेलाल जब तक इस शहर में काबिज है,कोई दूजा चुनाव लड़ ही नहीं सकता..हर बार दल-बदल वह सत्ता में रहता है..इस दल-बदलू के रहते कोई मुझे क्यों घास डालेगा..टिकट देगा...बड़े दिनों बाद एक साफ़-सुथरे पार्टी से उम्मीद बंधी थी कि शायद इस ईमानदार और आम आदमी को वह परख ले पर फिलहाल तो यह पार्टी खुद परखनली में टेस्टिंग मोड़ में है..इसलिए यह तो तय है कि ना कभी अब मुझे चुनाव लड़ना है ना ही अपनी संपत्ति का ब्यौरा देना है..अतः तुम इन बेकार की बातों को बिंदास होकर भूल जाओ..और बाहर जाकर खेलो-कूदो..अन्यथा तुम भी बन जाओगे मेरी तरह बैठे-ठाले करोंड़ों के मालिक..’
बंटी के पल्ले कुछ न पड़ा. वह मुझे घूरते हुए बाहर खेलने चला गया.
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
- प्रमोद यादव
गया नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़
बेहतर मारक व्यंग है ।बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुशील ..प्रमोद यादव
हटाएंवाह प्रमोदजी कहाँ से लाते हो इतने सुंदर मौलिक
जवाब देंहटाएंविचार अति सुन्दर और सारगर्भित व्यंग जो वर्तमान
व्यवस्थाओं पर सटीक वार करता है और सोंचने पर
मजबूर कर देता है हमारी बधाई
श्री अखिलेशजी, बैठे-ठाले कुछ तो करना है..नौकरी के दिनों में तो व्यस्तता थी..अब तो फुल टाइम आराम है..आपके टिपण्णी का इन्तजार रहता है..लेखन की सराहना के लिए आभार...आपका- प्रमोद यादव
हटाएंमैं भी तो केन्द्रीय सरकार के प्रतिरक्षा उत्पादन
हटाएंसंसथान से करीब 10 वर्ष पाहिले सेवानिवृत
हुवा श्रीमती जी दो साल पाहिले परलोक सिधार
गयीं बच्चे सब सेटल हैं साहित्य खास तौर से कविता में रूचि है बिंदास आदमी हूँ कुछ अच्छा
लगा तो ही अच्छा बोला और नहीं लगा तो मीन
मेख भी नहीं निकलता हाँ यदि कोई स्रजनात्मक
सुझाव है तो अवश्य आजतक कभी किसी को
खुश करने के लिये झूठी तारीफ नहीं की आपकी
रचना और फोटोग्राफी वास्तव में प्रभावित करती है फिर मैं कंजूसी नहीं करता
श्री अखिलेशजी, पुनः आपका आभारी हूँ..आप मुझसे काफी सीनियर हैं..तथा समझदार और अनुभवी भी..साहित्य से लगाव सत्तर के दशक से था..कहानी लिखने का बड़ा शौक था..सौ से अधिक कहानियाँ प्रकाशित हुई..सेवानिवृत्ति के बाद से व्यंग्य शुरू किया..पहले भी छुटपुट लिखता रहा..फोटोग्राफी की तो नौकरी रही इसलिए इस पर क्या कहूँ ?आप टिपण्णी देते हैं तो अच्छा लगता है..झूठी तारीफ़ मैं पसंद भी नहीं करता..मैं भी आपकी तरह ही बिंदास हूँ..आपका- प्रमोद यादव
हटाएंNice
जवाब देंहटाएंश्री सपन जी..धन्यवाद...प्रमोद यादव
जवाब देंहटाएंachaa vyang hay badhai ajaykumar dube
जवाब देंहटाएंश्री दुबे जी , शुक्रिया...आपका- प्रमोद यादव
जवाब देंहटाएंश्री दुबेजी, धन्यवाद...प्रमोद यादव
जवाब देंहटाएं