असगर वजाहत की 3 लघुकथा श्रृंखला - गुरू चेला संवाद, बेनाम आदमी की कहानियां तथा एक छोटे आदमी की वसीयत

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गुरु-चेला संवाद : एक चेला : गुरु जी, क्या हमारे देश के मुसलमान विदेशी हैं गुरु : हां, शिष्य, वे विदेशी हैं । चेला : वे कहां से आए हैं गुर...

गुरु-चेला संवाद : एक

चेला : गुरु जी, क्या हमारे देश के मुसलमान विदेशी हैं

गुरु : हां, शिष्य, वे विदेशी हैं

चेला : वे कहां से आए हैं

गुरु : वे ईरान, तूरान और अरब से आए हैं

चेला : लेकिन अब वे कहां के नागरिक हैं

गुरु : भारत के।

चेला : वे कहां की भाषाएं बोलते हैं

गुरु : भारत की भाषाएं बोलते हैं।

चेला : उनके रहन-सहन तथा सोच-विचार का तरीका किस देश के लोगों जैसा है

गुरु : भारत के लोगों जैसा है।

चेला : तब वे विदेशी कैसे हुए गुरुजी

गुरु : इसलिए हुए कि उनका धर्म विदेशी है।

चेला : बौद्ध धर्म कहां का है गुरुजी

गुरु : भारतीय है शिष्य

चेला : तो क्या चीनी जपानी, थाई और बर्मी बौद्धों को भारत चले आना चाहिए

गुरु : नहीं...नहीं शिष्य! चीनी, जपानी और थाई का यहां आकर क्या करेंगे

चेला : तो भारतीय मुसलमान ईरान, तूरान और अरब जाकर क्या करेंगे

गुरु-चेला संवाद : दो

गुरु : चेला, हिन्दू-मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते।

चेला : क्यों गुरुदेव

गुरु : दोनों में बड़ा अंतर है

चेला : क्या अंतर है

गुरु : उनकी भाषा अलग है...हमारी अलग है।

चेला : क्या हिंदी, कश्मीरी, सिंधी, गुजराती, मराठी, मलयालम, तमिल, तेलुगु, उड़िया, बंगाली आदि भाषाएं मुसलमान नहीं बोलते...वे सिर्फ उर्दू बोलते है

गुरु : नहीं...नहीं, भाषा का अंतर नहीं है...धर्म का अंतर है।

चेला : मतलब दो अलग-अलग धर्मो के मानने वाले एक देश में नहीं रह सकते

गुरु : हां...भारतवर्ष केवल हिंदुओं का देश है।

चेला : तब तो सिखों, ईसाइयों, जैनियों, बौद्धों पारसियों, यहूदियों को इस देश से निकाल देना चाहिए।

गुरु : हां, निकाल देना चाहिए।

चेला : तब इस देश में कौन बचेगा

गुरु : केवल हिंदू बचेंगे...और प्रेम से रहते हैं।

चेला : उसी तरह जैसे पाकिस्तान में सिर्फ मुसलमान बचे हैं और प्रेम से रहते हैं।

गुरु-चेला संवाद : तीन

गुरु : शिष्य मुसलमानों से घृणा किया करो।

चेला : क्यों गूरुदेव

गुरु : क्योंकि वे गंदे, अनपढ़ और अत्याचारी होते हैं

चेला : समझ गया गुरुदेव, आपका मतलब है, गंदे, अनपढ़ और अत्याचारी लोगों से घृणा करनी चाहिए।

गुरु : नहीं...नहीं। ये नहीं...दरअसल मुसलमानों से इसलिए घृणा करनी चाहिए क्योंकि वे बड़े कट्टर धार्मिक होते हैं।

चेला : मैं कट्टर धार्मिक लोगों से घृणा करता हूं गुरुदेव

गुरु : नहीं...नहीं। तुम समझे नहीं...वास्तव में मुसलमान से घृणा इसलिए करनी चाहिए कि उन्होंने हमारे ऊपर शासन किया था।

चेला : तब तो ईसाईयों से भी घृणा करनी चाहिए।

गुरु :नहीं...नहीं, शिष्य...मुसलमानों से घृणा करने का मुख्य कारण यह है कि उन्होंने देश का बंटवारा कराया था।

चेला : तो देश का बंटवारा करने वालों से घृणा करनी चाहिए

गुरु : हां...बिलकुल। देश को बांटने वालों से घृणा करनी चाहिए।

चेला : और देशवासियों को बांटने वालों से क्या करना चाहिए,

गुरु-चेला संवाद : चार

चेला : गुरुजी, सांप्रदायिक दंगों में कौन लोग मरते हैं

गुरु : सांप्रदायिक दंगों में बड़े-बड़े पंडित, मौलवी, बड़े-बड़े सेठ-साहूकार और बड़े अधिकारी मरते हैं।

चेला : और कौन लोग कभी नहीं मरते

गुरु : मामूली लोग, कारीगर, दस्तकार, रिक्शे वाले, झल्ली वाले, नौकरी-पेशा आदि नहीं मरते।

चेला : तो गुरुजी, दंगे न रुकने का कारण क्या है

गुरु : साफ है शिष्य...आम लोग दंगे रुकवाने में कोई रुचि नहीं लेते।

चेला : और बड़े-बड़े लोग

गुरु : बड़े-बड़े लोग तो बेचारे दंगे रुकवाने की कोशिशें करते हैं...पंडित-मौलवी दंगे रुकवाने के लिए धर्म की दुहाई देते हैं। राजनीतिक दलों के नता दंगे रोकने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा देते हैं...सेठ-साहूकार दंगे रुकवाने के लिए चंदे देते हैं...सरकारी अधिकारी दंगे रोकने की भरसक कोशिश करते हैं

चेला : इसके बाद भी दंगे क्यों नहीं रुकते

गुरु : यही तो रहस्य है बेटा...इसे समझ जाओगे...और किसी दंगे में मार दिए जाओगे।

गुरु-चेला संवाद : पांच

चेला : गुरुजी, सांप्रदायिक दंगों में हत्याएं आदि करने वालों को कानून कोई सजा क्यों नहीं देता

गुरुः यह हमारे कानून की महानता है शिष्य...

चेला : कैसे गुरुजी

गुरु : हमारी अदालतें दंगों से हत्याएं करने वालों की भावनाओं को समझती हैं।

चेला : क्या समझती है।

गुरु : शिष्य, सांम्प्रदायिक दंगे में जो मरता है वह सीधे स्वर्ग जाता है न

चेला : हां, जाता है।

गुरु : तो उसे स्वर्ग भेजने का उपकार कौन करता है

चेला : हत्या करने वाला।

गुरु : बिलकुल ठीक...तो शिष्य, हमारा कानून इतना बेशर्म तो नहीं है कि उपकार करने वालों को फांसी पर चढ़ा दें।

गुरु-चेला संवाद : छः

चेला : गुरुजी, दंगे कैसे रोके जा सकते हैं

गुरु : शिष्य, इस सवाल का जबाब तो पूरे देश के पास नहीं है। राष्ट्रपति के पास नहीं है, प्रधानमंत्री के पास नहीं है। पूरे मंत्रिमंडल के पास नहीं है। बुद्धिजीवियों के पास नहीं हे।

चेला : गुरुजी...मनुष्य चांद पर पहुंच गया है, प्रकृति पर विजय पा ली है...असंभव संभव हो गया है...वैज्ञानिकों को यह खोजने का काम क्यों नहीं सौपा गया कि दंगे कैसे रोके जा सकते हैं

गुरु : शिष्य, वैज्ञानिकों को इस काम पर लगाया गया था...पर उनका कहना है कि यह धार्मिक मामला है।

चेला : फिर धार्मिक लोगों को इस काम पर लगाया गया

गुरु : हां, धार्मिक लोग कहते हैं यह सामाजिक मामला है।

चेला : समाजशास्त्री क्या कहते हैं

गुरु : उन्होंने कहा कि राजनीतिक मामला है।

चेला : फिर राजनैतिज्ञों ने क्या कहा

गुरु : उन्होंने कहा कि यह कोई मामला ही नहीं है।

गुरु-चेला संवाद : सात

चेला : सांप्रदायिक दंगों की जिम्मेदारी क्या प्रधानमंत्री पर आती है गुरु जी

गुरु : नहीं।

चेला : मुख्यमंत्री पर आती है

गुरु : नहीं।

चेला : गृहमंत्री पर आती है

गुरु : नहीं।

चेला : सांसद या विधायक पर आती है

गुरु : नहीं।

चेला : जिलाधिकारियों, पुलिस अधिकारियों पर आती है

गुरु : नहीं।

चेला : फिर सांप्रदायिक दंगों की जिम्मेदारी किस पर आती है

गुरु : जनता पर।

चेला : मतलब...

गुरु : मतलब हम पर...

चेला : मतलब

गुरु : मतलब किसी पर नहीं।

बेनाम आदमी की कहानियां : एक

उसके पास एक पुराना ‘ब्लैक एण्ड ह्वाइट’ टी. वी था। सब लोग उससे कह चुके थे कि ‘ब्लैक एण्ड ह्वाइट’ का जमाना गया। ‘कलर टी.वी.’ ले लो। पर उसने न लिया। उसका सोचना था कि क्या फर्क पड़ता है।

एक दिन पड़ोसी का टी.वी. खराब हो गया। उसके बच्चे इसके घर आये और कहा, ‘‘अंकल आज एक फिल्म आ रही है हमारा टी.वी खराब हो गया है क्या हम आपके टी.वी. पर फिल्म देख सकते हैं’

उसने कहा, ‘क्यों नहीं।’

बच्चे आकर बैठ गये। उसने जैसे ही टी.वी. चलाया ‘ब्लैक एण्ड ह्वाइट’ फिल्म आने लगी। एक बच्चा रोने लगा। दूसरा चिल्लाने लगा। तीसरा अपने कपड़े फाड़ने लगा। चौथा बेहोश हो गया। उसे दिल का दौरा पड़ गया था।

उसने जल्दी ही टी.वी. बंद कर दिया। बेहोश बच्चा अस्पताल ले जाया गया। वह आई.सी.यू. में रखा गया। सुबह होते-होते वह चल बसा। उसे पुलिस ने पकड़ लिया। उस पर मुकदमा चला।

वह मुकदमे की कार्यवाही के सिलसिले में जब अदालत गया तो उसका चेहरा रंगीन था।

बेनाम आदमी की कहानियां : दो

वह दातून से दांत साफ किया करता था। तब उसने एक विज्ञापन देखा कि ‘मोरछाप दंत मंजन’ से ही दांत साफ करना चाहिए। वह ‘मोरछाप दंत मंजन’ खरीद लाया। फिर उसने एक नये टूथपेस्ट का विज्ञापन देखा। विज्ञापन में जोर देकर इस सच्चाई का दावा किया गया था कि ‘नये टूथ पेस्ट’ ही से दांत अच्छी तरह साफ होते हैं। वह ‘नया टूथपेस्ट खरीद लाया। दो साल के बाद उसने ‘गैलेक्सी टूथपेस्ट’ का विज्ञापन देखा जिसमें बताया गया था कि इससे पहले कितने टूथपेस्ट बिकते थे उनकी तुलना में यह सबश्रेष्ठ है। वह ‘गैलेक्सी टूथपेस्ट’ खरीद लाया। तब उसने ‘न्यू स्पेस एज’ और उसके बाद ‘अल्ट्रा सुपर स्पेज एज’ टूथपेस्ट देखे। वह क्रमशः उन पर आ गया।

फिर एक दिन करिश्मा हो गया। उसने टी.वी. पर देखा कि बड़े-बड़े वैज्ञानिक यह सिद्ध कर रहे हैं कि दांत साफ करने के लिए नीम के दातून से बढ़िया कोई चीज नहीं है। उसके प्राकृतिक गुण किसी टूथपेस्ट में नहीं आ सकते।

वह भागा हुआ नीम के पेड़ के पास गया। पर नीम का पेड़ वहां नहीं था। कहीं नहीं था। पर सुपर बाजार में नीम के दातून बहुत अच्छी पैकिंग में और टूथपेस्ट से मंहगे बिक रहे थे। वह दातून खरीद लाया।

लेकिन तब उसने पाया कि दातून करने लायक उसके दांत ही न थे।

बेनाम आदमी की कहानियां : तीन

उसने खूब सोच-विचारकर महानगर छोड़ा था। गांव में पहला सुबह उसकी आंख खुली तो ऐसा लगा कि महाजनी सभ्यता की लानतों से मुक्ति मिल गयी है। उसने एक गहरी सांस ली। लेकिन खांसी का दौरा पड़ गया। तब भी उसके ताऊजी अंदर आ गये और बोले, ‘‘अरे तुमने आक्सीजन का सिलेण्डर नहीं पहना

‘‘क्या यहां भी महानगर की तरह...’’वह खांसते हुए बोला।

‘‘महानगर में तो आक्सीजन के सिलेण्डर आसानी से मिल जाते हैं यहां तो ब्लैक होते हैं।’’ ताऊ ने उसके मुंह पर शीशे की कीप लगा दी। उसकी खांसी रुकी।

‘‘ताऊजी मैं बाग में जाना चाहता हूं।’’

‘‘बाग मतलब पेड़...बेटा हमें तो जब देखने होते हैं तो महानगर के ‘ग्रीन गलास हाउस’ में चले जाते हैं’

‘‘और पहाड़ ताऊजी’

‘‘शहर बन गया बेटा। सारे पहाड़ कंकरीट बनकर चले गये।’’

‘‘पानी’

‘‘पानी न पूछा। महानगर से ही ‘मिनरल वॉटर’ आता है तो पीते हैं पचास रुपये बोतल बिकती है। महानगर में तो सस्ती होगी।’’

‘‘जानवर, चिड़िया’

‘‘वे महानगर के चिड़ियाघर में हैं। यहां कहां है’

वह कुछ क्षण बाद बोला,‘‘ताऊजी महानगर के लिए बस कब मिलती है’

‘‘हर सेकेण्ड पर जाती है बेटा।’’

 

एक छोटे आदमी की वसीयत

(1)

मेरे मरने के बाद मेरी कोई प्रतिमा या मूर्ति न बनाई जाये। पर यदि मरने के बाद, जैसी की परम्परा है, मुझे बड़ा आदमी मान लिया जाय और मेरी प्रतिमा लगाई जाना देश के अत्यंत आवश्यक माना जाये तो प्रतिमा किसी ऐसी जगह लगाई जाये जिसके पीछे लोग आराम से मूत सकें। कारण यह है किमुझे वही महान लोग पसंद हैं जिनकी प्रतिमा के पीछे आराम से मूता जा सकता है।

(2)

मेरे फूंकने के लिए लकड़ी बोधनिगम घाट पर ठेकेदार से न खरीदी जाये। वह ज्यादा पैसे लगाता है। पानी के छींटे देकर लकड़ी का वजन बढ़ा देता है।मैं नहीं चाहता कि अंतिम समय कोई मेरे साथ ‘चिटिंग’ करे।

(3)

मेरे मरने के बाद पत्नी को विधवा न समझा जाये। क्योंकि जब तक मैं जीवित रहा वे रोज ही कहा करती थी कि मुझसे शादी करने से तो अच्छा होता यदि वे किसी मुर्दे से शादी कर लेतीं

(4)

मेरे मरने पर पत्नी को चूड़ियां तोड़ने के लिए इतनी मोहलत दी जाये कि वे कोठरी में जाकर अपनी चूड़ियां उतार कर टूटी हुई चूड़ियां ला सके जो उन्होंने शादी के फौरन बाद ही वहां छिपा कर रख दी थीं

(5)

मेरे शव के साथ हो सकता है कि मेरे तीनों सुपुत्रों में से कोई भी श्मशान तक जाना न पसंद करें। यदि ऐसा हो जिसकी कि मुझे पूरी आशा है तो उन्हें इसके लिए मजबूर न किया जाये।

जहां तक मेरी कपाल क्रिया की बात है। यह काम मेरे आफिस के सहकर्मी लोकेशचन्द्र से लिया जाये क्योंकि उससे अच्छा यह कोई नहीं कर सकता। जब मैं जीवित था तो उससे मेरी खूब लड़ाई हुआ करती थी और वहकहता था कि वह मेरी खोपड़ी तोड़ देगा।

(6)

मेरी एक अंतिम इच्छा यह है कि मेरे मरने पर कोई मेरी ओर से श्री आर.सी.मेहता को उनके मुंह पर खूब गालियां दे क्योंकि मेरा कैरियर बर्बाद करने के जिम्मेदार वही हैं। उन्होंने जीवन भर मुझे नुकसान पहुंचाया है। पर चूंकि जीवनभर वे मेरे बॉस रहे इसलिए मैं उन्हें गालियां नहीं दे सका। रिटायर होने के बाद भी न दे सका क्योंकि वे पेंशन रुकवा सकते थे। मर जाने के बाद मैं उन्हें गालियां दे नहीं सकता। इसलिए यदि कोई मेरी अंतिम इच्छा पूरी कर सकता हो तो कर दे।

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रचनाकार: असगर वजाहत की 3 लघुकथा श्रृंखला - गुरू चेला संवाद, बेनाम आदमी की कहानियां तथा एक छोटे आदमी की वसीयत
असगर वजाहत की 3 लघुकथा श्रृंखला - गुरू चेला संवाद, बेनाम आदमी की कहानियां तथा एक छोटे आदमी की वसीयत
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