रामवृक्ष सिंह का आलेख - बाप से बाप

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भारतीय परंपरा (और खास तौर पर हिन्दुओं) में बाप बनना निजी जीवन में एक खास मुकाम हासिल करना माना जाता है। बाप बनकर हम अपने पूर्वजों की वंश-पर...

भारतीय परंपरा (और खास तौर पर हिन्दुओं) में बाप बनना निजी जीवन में एक खास मुकाम हासिल करना माना जाता है। बाप बनकर हम अपने पूर्वजों की वंश-परंपरा को आगे बढ़ाते हैं और पितृ-ऋण चुकाने का दायित्व पूरा करते हैं। सृजन का सुख जीव मात्र के लिए बड़ी अनोखी संकल्पना है। इसके लिए नर और मादा, दोनों ही हर तरह के जतन करते हैं, भाँति-भाँति के कष्ट झेलते हैं और अपनी अगली पीढ़ी को दुनिया में लाते हैं। संतति जनने का श्रेय तो माँ को जाता है, क्योंकि कुदरत ने उसे यह वरदान दिया है। लेकिन पिता इस मामले में बिलकुल निस्पृह रहता है, ऐसा मानना समूची नर-जाति के साथ अन्याय होगा। बारीकी से अन्वीक्षण करने पर हमने यह पाया है कि अकसर पिता भी अपनी आनेवाली संतति के लिए बहुत-सी तैयारियाँ करता है। नर पक्षियो को मादा द्वारा अंडे देने की खातिर घोंसला बनाते तो अकसर ही देखा जाता है। मनुष्य़ों में भी पुरुष-जाति में अपने आनेवाले शिशु को लेकर बड़ा उत्साह दिखता है।

लिहाज़ा हमारे तईं बाप बनना बड़ा प्यारा अनुभव है। सच कहें कि बाप बनने की साध हमारे अंदर इतना अधिक थी कि हम तो जल्दी-जल्दी शादी करके तेईस की उम्र में ही बाप बन गए थे। फिर समझ आया कि बाप बनना तो आसान है, किन्तु बाप की जिम्मेदारियाँ उठाना उतना आसान नहीं है। इसका परिणाम यह हुआ कि उस पहले मौके के बाद भी कई जायज मौके आए, किन्तु एक और मौके को छोड़कर फिर कभी बाप नहीं बने। नाजायज मौके भी बहुत मिल जाते, लेकिन उधर अपना रुझान ही नहीं था, इसलिए उस पद्धति से बाप न बन पाने का कोई मलाल भी नहीं रहा। सारी बातों का लब्बो-लुआब यह कि हम दो बार बाप बने हैं और वह भी जायज।

बाप बनने की साध अनोखी हो और केवल हमीं में रही हो, ऐसा नहीं है। यह साध तो दुनिया के सृजन-कर्ता ब्रह्म को भी थी- एकोहम् बहुस्सामः। मैं एक-अकेला हूँ, बहुत होना चाहता हूँ। सुनते हैं कि ऐसा सोचा था ब्रह्म ने। अपने यहाँ कहते भी हैं- एक से दो भले। बिना किसी जैविक क्रिया के भी एक से अधिक हुआ जा सकता है, जैसे बॉलिवुड में काम करनेवाली आण्टी एंजेलिना जोली। वे बिना जैविक माँ बने, छह-छह बच्चों की माँ हैं। किन्तु अपने शरीर के अंश से बाकायदा योगदान करके श्रम-पूर्वक बाप या माँ बनना और बात है और ऐसे ही चलते-फिरते कहीं से बच्चा गोद ले लेना बहुत गौरव का विषय होकर भी बिलकुल जुदा बात है। ब्रह्म ने भी अपनी चिर-संगिनी माया के सहयोग से अपने संसार का विस्तार किया, कहीं से दूसरे का बच्चा लेकर नहीं। और उस सहयोग में प्रायः सारी भूमिका माया की ही थी, क्योंकि वही अक्रिय ब्रह्म को सक्रिय करती है।

बाप बनने की साध का ही परिणाम है कि जिसे देखो वही अपने से हर छोटे व्यक्ति को बेटा-बेटा कहता फिरता है। हमारे पड़ोस में बल्लू रहते हैं। उम्र बमुश्किल नौ वर्ष। एक दिन देखा कि बल्लू अपने तीन-वर्षीय छोटे भाई से कह रहे हैं- बेटा, चलो खेलते हैं। यानी नौ वर्षीय बल्लू भी बाप बनने की साध रखते हैं। छोटी-छोटी कंपनियों के बड़े-बड़े (आठ-आठ हजार रुपये तनख्वाह लेनेवाले) युवा एमबीए-एग्जीक्यूटिव अपने अधीनस्थ प्रशिक्षुओं आदि को अकसर बेटा कहकर संबोधित करते सुनाई पड़ते हैं। किसी अल्प-वेतन भोगी अथवा बेरोजगार युवक का बाप बनना कितना आसान है, यह देखकर हमें इस देश के शिक्षित बेरोजगारों की दुर्दशा पर रोना आता है।

पत्रकारिता, मनोरंजन, टीवी, फिल्म, संगीत, गायन, वादन, राजनीति और यहाँ तक कि खेल आदि में भी बिना गॉड फादर के किसी का बेड़ा पार हो जाए तो बहुत बड़ा चमत्कार ही समझिए। हजार प्रतिभा हो आपके अंदर, लेकिन किसी का कंधा तो चाहिए, किसी की उँगली तो चाहिए, जिसके सहारे आप इतनी ऊँचाई पर पहुँच जाएँ कि वहाँ से आपको लोग पहचानना शुरू कर दें। यानी इन सभी क्षेत्रों (और उनमें भी जिन्हें हम अपनी अल्पज्ञता के कारण गिना नहीं पा रहे हैं) बिना बाप के गुजारा नहीं।

हिन्दी में मतलब के लिए गधे को बाप बनाने का मुहावरा प्रचलित है। पता नहीं गधे में ऐसी कौन-सी योग्यता होती है, जिसका अवलंब लेकर किसी का मतलब सध सके? और यदि आपका मतलब साधने भर की योग्यता किसी में है तथा आप अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए उस योग्यता-धारी व्यक्ति का सहारा ले रहे हैं, तो वह गधा कहाँ रहा? उसे तो आप अपना उद्धारक कहिए। इस तर्क पर परखें तो यह मुहावरा ही गलत है। लेकिन इसे उद्धृत करने का हमारा उद्देश्य दूसरा है। हम तो केवल यह कहना चाहते हैं कि अपने जैविक पिता के अलावा भी दुनिया में हमें कई-कई बार दूसरे-दूसरे लोगों को बाप जैसा मान-सम्मान देने के लिए विवश होना पड़ता है। हालांकि इस प्रपत्ति में भी दोष है- क्या वाकई हम अपने जैविक माता-पिता को सम्मान देते हैं? खासकर तब जब वे ढलान के बिलकुल आखिरी, निचले सिरे पर होते हैं और हम शिखर पर पहुँचकर नव-अर्जित शक्ति और संपन्नता का भरपूर आनन्द ले रहे होते हैं। मज़े की बात यह कि हमारी यह साध कभी पूरी न हो, यदि वह व्यक्ति (जिसे मुहावरे के अनुसार गधा समझा जाता है) हमारा बाप बनने को तैयार न हो। यह कोई जैविक पितृत्व का मामला तो है नहीं कि डीएनए परीक्षण कराकर किसी को विवश कर दिया जाए। यहाँ तो सारा दारोमदार बाप बनने और बाप बनानेवाली की सदिच्छा पर है। लिहाजा जिस व्यक्ति को आप अपने मतलब के लिए बाप बनाना चाहते हैं, वह यदि इच्छुक होगा, तभी आपकी मनोकामना पूरी हो पाएगी। यहाँ सबसे अच्छी बात यह है कि दुनिया के ज्यादातर पुरुष बाप बनने के लिए तैयार हो जाते हैं, यह बखूबी जानते हुए भी कि वे केवल मतलब निकलने तक के लिए बाप रहेंगे। महिलाओं के मामले में यह बात (यानी माँ बनने वाली बात) बिलकुल लागू नहीं होती। न वहाँ ऐसा कोई मुहावरा रहा है, न होगा। कोई छप्पन इंच के सीनेवाला धनुर्धर सूरमा ऐसा मुहावरा चलाने का जोखिम उठाए तो उठाए, हम तो ऐसा मुहावरा नहीं चलाएँगे, वरना मुफ्त में धर लिए जाएँगे। इस पचड़े में कौन पड़े! पुरुष जाति की कितनी भी भद्द पीटो, वह निरापद है। इसकी विपरीत दिशा में नहीं जाने का- बहुत मार पड़ेगी।

हिन्दी फिल्मों के अग्रणी नायक अमिताभ जी ने किसी फिल्म में एक डायलॉग बोला था- रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप लगते हैं। संवाद तो अच्छा है, लेकिन सच्चाई यह है कि बाप रिश्ते में नहीं हुआ करते। और सब कुछ चलेगा, पर रिश्ते में बाप लगना, रिश्ते में पत्नी लगना, रिश्ते में पति लगना- यह सब न देखा, न सुना। यहाँ हम जैविक संबंधों की बेहत बुनियादी बात कर रहे हैं। बाप जैसा या बेटे-बेटी जैसा तो लगा जा सकता है, निरापद भी है। पर पत्नी व पति के मामले में यह बिलकुल भी निरापद नहीं। अपना समाज अभी इतना प्रोग्रेसिव नहीं है।

अभिप्राय यह कि बाप हो तो पूरा, आधा-अधूरा नहीं। यह नहीं कि बेटा आकर गले लग जाए और बाप असमंजस में पडा इधर-उधर ताकता रहे कि अब क्या करूँ! चाहे जैविक हो अथवा आनुषंगिक, बाप-बेटे या बाप-बेटी का रिश्ता बहुत कॉमन होकर भी बड़ा अनूठा है। यदि यह रिश्ता न हो तो दुनिया जहाँ की तहाँ ठहर जाए, और कुछ समय बाद पूरा संसार निर्जीव हो जाए। तो ऐसा क्यों होता है कि जो लोग इच्छा या अनिच्छा से बाप बन जाते हैं वे इस रिश्ते की गहराई को समझते नहीं और सच्चाई से मुँह मोड़ते है? क्या बाप बनना इतना बुरा है? बाप रे बाप, माई रे माई...ऐसा तो हम सपने में भी नहीं सोच सकते।

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COMMENTS

BLOGGER: 1
  1. akhilesh chandra srivastava12:36 pm

    Bhai Ram Briksh ji ne achhi khansi khoj kar daali hai vastav men yadi baap aakash hai to dharti maa hai aur sari srishti in dono ke beech hi basti hai is mahatvpoorn vishay baap par likhna baap re baap bahut hi mahatv ki baat hai
    uttam lekhan ke liye hamari badhai

    जवाब देंहटाएं
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रचनाकार: रामवृक्ष सिंह का आलेख - बाप से बाप
रामवृक्ष सिंह का आलेख - बाप से बाप
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