कीचड़बाजी की कला व्यंग्य कीचड़बाजी एक राष्ट्रीय कर्म है जिसके बारे में कोई बहस नहीं हो सकती । बहस इस बात पर हो सकती है कि कब, कहाँ और किस...
कीचड़बाजी की कला
व्यंग्य
कीचड़बाजी एक राष्ट्रीय कर्म है जिसके बारे में कोई बहस नहीं हो सकती । बहस इस बात पर हो सकती है कि कब, कहाँ और किस प्रकार कीचड़ उछाली जाये । एक कुशल कीचड़बाज में किन-किन गुणों का होना आवश्यक है । सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर कीचड़बाजी को कैसे प्रोत्साहित किया जाये ? क्रिकेट के बाद सबसे लोकप्रिय इस खेल के लिये प्रायोजकों की तलाश कैसे की जाये ? प्रायोजक मिलने के बाद कीचड़बाजी के लिये भी कोई मैच आयोजित की जाये तो उसका निर्णायक मंडल किस प्रकार गठित होगा । निर्णायक मंडल में राजनीति के माहिर खिलाड़ियों को रखा जाये या समाज और साहित्य के उन धुरंधरों को जिन्होंने इस क्षेत्र में काफी ख्याति अर्जित की है । इन तमाम विषयों पर बहस आयोजित की जा सकती है पर पहले कीचड़बाजी के विशेष आयामों पर विचार करना जरुरी है ।
1. राजनीतिक आयम- राजनीति के क्षेत्र में कीचड़ उछालना एक आवश्यक ही नहीं अनिवार्य कर्म है । चुनाव के दिनों में तो इस कला के कुशल कलाकारों की जिम्मवारियां और बढ़ जाती है । विपक्षी दलों के नेताओं पर कीचड़ पोतकर ही एक कुशल नेता राजनीति के पथ पर वीरता पूर्वक अग्रसर हो सकता है । कुशल पोतक वही है जो ये न देखे कि अवसर कौन सा है और आवश्यकता किस बात की है । बस पोतता जाये । संसद का सत्र चल रहा हो । किसी अंतर्राष्ट्रीय विषय पर चर्चा चल रही है मगर उस समय भी व्यक्तिगत और दलगत कीचड़ थपाक से पोत दे। दूसरे दल में भी अनुभवी और दक्ष कीचड़बाज होते हैं । वे भी बाज नहीं आयेंगे । क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होगी ही । न्युटन का तीसरा नियम लागू होगा और बाकी सारे नियम भाड़ की ओर तशरीफ ले जायेंगे । दोनों ओर से कीचड़बाजी का ट्वेन्टी-ट्वेन्टी मैच होगा । निश्चित तौर पर कुछ छींटें देश के दामन पर भी पड़ेंगे लेकिन कुशल कीचड़पोतक इन बाधाओं से घबराता नहीं है । 'एक ही साधे सब सधे सब साधे सब जाये ' । जरुरी नहीं है कि कीचड़बाजी केवल संसद भवन में ही होगी । वहां तो प्रयाप्त मौका नहीं मिलता । नये कीचड़बाज अपनी बारी की ताक में ही रह जाते हैं । सड़क पर भी कीचड़बाजी की जा सकती है । चुनावों तक की प्रतीक्षा करना तो एक किस्म का राष्ट्रीय आलस्य है जिसके बारे में कहा गया है कि 'आलस्य ही मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपु' । यूं तो होली और चुनाव दो ही मौके ऐसे हैं जिनमें कीचड़बाजी अपने उत्कर्ष पर होती है । चौंकन्ना कीचड़बाज कभी मौके की प्रतीक्षा नहीं करता बल्कि मौकों का निर्माण करता है । कबीर साहब कह गये कि कल का काम आज और आज का काम अभी कर गुजरना चाहिये । इसी को गांठ बांध कर राजनीति में कीचड़बाजी की जाती है । अनवरत् घोटालों पर नजर रखी जाये ; नेताओं के व्यक्तिगत जीवन पर स्टींग आप्रेशन कराया जाये ( अब तो सत्तर साल की उम्र में भी तीस साल का पुत्र निकल आता है ) ; प्रेम प्रसंगों पर आलोचनात्मक दृष्टि रखी जाये ; अपने अलावा सबके काले धन की गुप्त जांच कराई जाये । यदि ईमानदारी और निष्ठा पूर्वक सतत् प्रयास किया जाये तो निश्चित तौर पर कीचड़ पोतने के लिये होली तक की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती ।
2. सामाजिक आयाम-कभी कभी किस्मत की बेवफाई से एक कुशल कीचड़बाज भी राजनीति के क्ष्ोत्र में नहीं जा पाता लेकिन ऐसे कर्मठ इन्सानों को निराश होने की जरुरत नहीं है । समाज और परिवार में आपको अपनी प्रतिभा दिखाने के भरपूर अवसर प्राप्त हो सकते हैं । नहीं प्राप्त हों तो अवसर पैदा किये जा सकते हैं । इसके लिये आवश्यक है एक सदैव जागरुक पत्नी की और एक सतत् कर्मठ महरी की । पत्नी तो सदैव जागरुक रहती हैं । महरी भी अगर चालाक और चुस्त हुई तो फिर आपके कानों में बसंत के पहले भी कोकिल की कूक पड़ सकती है कि फलां जी की बेटी अमुक जी के लड़के के साथ भाग गई । बस उसके बाद आप छोड़िये इरान इराक के मसले केा; देश की अर्थव्यवस्था को ; महंगाई को भी थोड़ी देर तक भूल जाइये बस कीचड़ उछालने की कला को आजमाइये । मुंह लटका कर हर जगह चर्चा कीजिये कि फलां जी की बेटी अमुक जी के लड़के के साथ भाग गई । बतौर कीचड़बाज उसमे मिर्च मसाले भी रगड़ते चलना चाहिये। मसलन वह पेट से थी ( किसी को बताना नहीं है, किसी की इज्जत का सवाल है ) । कुछ दिनों के बाद आपकी धर्म पत्नी ने आपको कान में बताया कि घोर कलयुग आ गया है । यह संकेत है कि आपको कीचड़बाजी का एक और मैच खेलना है । तुमुक जी की पत्नी अपने ड्राइवर के साथ तभी बाहर जाती है जब तुमुक जी नहीं रहते । खैर हमें क्या ? परायी आग में हम क्यों जलें । बस यही संकेत है कि अब आपकी बैटिंग है । दूसरे दिन से एक कीचड़बाज की कुशलता इस बात में है कि बताता चले कि ड्राइवर के साथ कहां-कहां गई ( किसी को बताना नहीं है, किसी की इज्जत का सवाल है ) । समाजिक तौर पर कीचड़बाजी की कुछ सावधानियां भी है कीचड़बाज का नाम सरेआम नहीं आना चाहिये । राजनीतिक कीचड़बाजी से इसमें यही एक मौलिक अंतर है। राजनीतिक कीचड़बाजी में नाम जितना आयेगा उतना ही बंदा दूर तक जायेगा ।
3. सांस्कृतिक आयाम- सांस्कृतिक कीचड़बाजी ज़रा उच्चस्तरीय कला है । उपर्युक्त दोनों कलाओं को साधने के बाद ही इसका अभ्यास करना चाहिये । पासा उल्टा पड़ने पर हाथ और लात सीधे पड़ते हैं । एक कुशल राजनीतिक कीचड़बाज ही एक सांस्कृतिक कीचड़बाज बन सकता है सांस्कृतिक कीचड़बाजी की पहली शर्त यह है कि यह मंदिर-मस्जिद की ओट में की जाती है । अफवाहों का भी सक्रिय योगदान होता है । यह कीचड़बाजी खास तौर पर पर्व त्योहारों के मौसम में मुफीद होती है । एक ने दूसरे की मूर्त्ति पर कीचड़ पोत दी । दूसरा भी पूरे जोश में आकर उनकी मूर्त्ति पर कीचड़ डाल आता है । कोई गांधी की मूर्त्ति तोड़ देता है तो कोई अम्बेदकर की । खूब कीचड़ उछाले जाते हैं । मामला दंगों के आयेाजन तक पहुंच जाता है। अपने देश में जाति और धर्म तो कीचड़ बाजों के ही काम आते हैं । इसी की ओट में लोग एक दूसरे के दामन पर कीचड़ उछालते हैं । एक दूसरे का मुंह काला करते हैं । कभी कभी तो यह इतनी मुफीद साबित हो जाती है कि बंदे को सत्ता तक दिला देती है । देश में दंगे हों तो हों लेकिन सच्चा कीचड़बाज धर्म के नाम पर कीचड़बाजी करके अपनी राजगद्दी पक्की कर लेता है ।
4.आर्थिक आयाम- कीचड़बाजी का चौथा आयाम आर्थिक है अर्थात आमदनी को लेकर कीचड़बाजी । किसी ने नयी गाड़ी ले ली । कीचड़बाज सक्रिय हो जायेंगे ।...... अजी उनका क्या है दो नम्बर की कमायी है जो चाहे ले सकते हैं ।....आजकल भगवान भी उन्हीं लोगों को बरक्कत देता है जो दो नम्बर की कमायी करते हैं । किसी ने मकान बनवाया । यदि औसत हैसियत का आदमी है तो कीचड़बाजी चालू हो जायेगी । .....देखते हैं आजकल बड़े ऊँचे उड़ रहे हैं । बिल्डिंग ठोंक रहे हैं ।......... किसी न किसी दिन इन्कम टैक्स वालों की नजर पड़ गई तो सारी नवाबी हवा हो जायेगी । काठ की हांडी बार बार आग पर नहीं चढ़ती । तो साहब आर्थिक कीचड़बाजी एक अत्यंत आसान सी कला है । इसके लिये किसी विशेष सावधानी की जरुरत नहीं पड़ती । जो चाहे जब चाहे किसी पर कीचड़ उछाल सकता है । उल्टी कीचड़बाजी भी होती है । किसी के यहां लड़की वाले जा रहे हैं । शादी की बात होने वाली है । कीचड़बाजों को हवा लग गई । जा धमकेंगे उनके पास, कीचड़बाजी आरंभ । .....अजी उनके पास क्या है ...हां लड़की वाली बात है ज़रा सावधान रहना ही चाहिये । .....हमें क्या लेकिन लड़की पंच की होती है ....लड़का करता वरता तो कुछ नहीं है । ....हम तो उसे घर पर ही देखते हैं । ...अभी पिछले साल ही तो श्रीमान जी ने एक एकड़ जमीन बेची है । ...हम खरीदना चाहते थे लेकिन समय पर जानकारी ही नहीं मिली। ...भगवान सबका भला करे । ....लड़की तो गाय होती है हम तो सबका भला चाहते हैं । बस साहब लड़की वालों को भागने के लिये इतना मसाला काफी है । यह एक सामान्य कला है जो आम तौर पर हम सब में पाई जाती है लेकिन इसकी जानकारी हमें तब होती है जब हमारे किसी खास आदमी का भला होता है । आग हमारे सीने में लगती हैं । कुशल
कीचड़बाज के गुण ः-
कीचड़बाजी कोई हँसी खेल नहीं है कि कोई भी ऐरा-गैरा कीचड़बाज बन जाये । हां, होली की बात और है , इसमें तो बस मौके पर चौके मारने की आदत होनी चाहिये। नर से अधिक नारियों में होली के अवसरों पर कीचड़बाजी की कला पराकाष्ठा पर जा पहुंचती है। जानकार लोग बताते है कि बरसाने और नंदगाँव की होली के पीछे भी यही मनोविज्ञान काम करता है । ताहम हम आम दिनों की बात कर रहे हैं । एक दिन की कीचड़बाजी तो कोई अनाड़ी भी कर लेगा । तीन सौ पैंसठ दिन कीचड़बाजी करें तो राष्ट्रीय कीचड़बाज माना जाये । कीचड़बाजों के सामान्य गुणों के वैज्ञानिक अध्ययन के बाद निम्नलिखित बातें सामने आती हैं --
1. कीचड़बाज प्रायः ज्ञानी लोग होते हैं जिनको तमाम विषयों की गहरी जानकारी होती है । अपनी जानकरी को व्यक्त करने के लिये उनके पास गज भर की जुबान भी होती है ।
2. एक कुशलबाज कीचड़बाज किसी भी झूठ को अपने आत्मविश्वास और वाग्मिता से सच बनाने की झमता रखता है । वह सुनता कम और बोलता अधिक है । सुनता इसलिये कम है क्योंकि उसे पूरा विश्वास होता है कि उससे बड़ा ज्ञानी कोई है ही नहीं ।
3. वह झूठ में मसाले मिलाने की अद्भुत क्षमता से युक्त होता है । समय और संयोग को देख कर वह मसाले मिला सकता है । साथ ही एक कुशल मसालेबाज की तरह वह सुनने वाले की रुचि का भी पूरा ध्यान रखता है ।
4. एक कुशल कीचड़बाज अपने दामन की ओर कभी नहीं देखता । अपने दामन पर चाहे लाख दाग हों वह उन्हें वरदान बता सकता है । कीचड़ लगने की परवाह न करके वह किसी के दामन की ओर कीचड़ उछालता है । बेशक उसके अपने मुंह पर कीचड़ पुत जाये वह परवाह नहीं करता।
5. किसी की, कोई भी अच्छाई न देखकर हमेशा बुराई पर ही नजर रखना उसका प्रथम और प्रमुख कर्त्तव्य होता है । कबीर दास के शब्दों में वह स्वभावतः ही निंदक होता है लेकिन अब लोग उसे कुटी छवा कर आंगन में नहीं रखना चाहते बल्कि उससे दूर रहने की कामना करते हैं ।
6. सदैव जागरुक कीचड़बाज ही लोक परलोक दोनों में यश का भागी बनता है । कीचड़ उछालने के लिये वह कभी होली की प्रतीक्षा नहीं करता बल्कि दोनों हाथों में सदैव कीचड़ लिये चौकन्ना रहता है । किसी के भी साफ दामन पर कीचड़ उछालने के उत्साह से वह लबालब भरा रहता है।
7. वह पास पड़ोस के प्रति हमेशा जागरुक रहकर सेवा के मौके तलाश करता रहता है ताकि मौका मिलते ही कीचड़ की कला का प्रयोग करे । मौका नहीं मिलने पर मौकों का निर्माण करता हैं।
8. यदि कभी कुशल कीचड़बाज पिट भी जाये तो वह परवाह नहीं करता बल्कि उसे राह में आई सामान्य सी बाधा मानकर आगे बढ़ता है । ऐसे मौकों के लिये उसके पास मुहावरे और दोहे रहते हैं । कबीर ,तुलसी, और रहीम चारों पहर उसकी जुबान पर जी हुजूरी करते रहते हैं ।
9. वह कभी भी अच्छे विचारों को अपने पास नहीं आने देता । सदैव सतर्क रहकर अपने कर्म के ही बारे में सोचता है तथा उसी की योजनाएं बनाता है ।
10. वह कुशल प्रेरक की भांति अपने रंग में सबको रंगता चलता है ताकि समय के साथ यदि उसके कला की धार कुंद पर जाये तो उसकी विरासत संभालने के लिये उसके शिष्यों की एक फौज हमेशा तैयार रहे ।
इस प्रकार उपर्युक्त दस गुणों का पालन करके एक सामान्य व्यक्ति भी एक असामान्य कीचड़बाज बन सकता है । कीचड़बाजी की दुनिया में अपना नाम अमर करके अपना तथा अपने पूर्वजों को सदैव स्मरणीय बना सकता है क्योंकि लोग गाहे बगाहे उसे तथा उसके पूर्वजों को पवित्र नामों से संबोधित करते ही रहते हैं । इस प्रकार वह अपने कुल को गौरवान्वित करता ही रहता है । स्वर्गीय पूर्वजों को भी धरती छोड़ने की पीड़ा नहीं सताती । यदा कदा पंचलत्ती पूजा का भागी बनकर वह चर्चा के केन्द्र में बना ही रहता है । चर्चा में रहना कोई साधारण काम भी नहीं है इसके लिये कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं । एक कुशल कीचड़बाज यह सुख सहज ही प्राप्त कर लेता है । समाज में उसका स्वघोषित भय भी व्याप्त रहता है ।
कीचड़बाजी की सावधानियां ः-
कीचड़बाजी एक राष्ट्रीय कर्म है अतः एक कुशल कीचड़बाज बनने के लिये उतावलापन किसी भी स्थिति में स्वास्थ्यवर्द्धक नहीं माना जा सकता । यह अन्य कलाओं की तरह ही साधना और धैर्य की मांग करता है । ज़रा सी असावधानी होने पर कलाकार की पंचलत्ती पूजा सरेआम और सरेशाम सम्भावित होती है । कभी-कभी जेल की शोभा भी बढ़ानी पर सकती है इसलिये कीचड़बाजी की महत्वाकांक्षा जिनके मन हों उन्हें कतिपय सावधानियां बरतनी चाहिये ।
सावधानियां द्रष्टव्य हैंः-
1. कभी भी किसी मजबूत हस्ती पर कीचड़बाजी न करें । मजबूत से यहां तात्पर्य कद-काठी से लेकर आर्थिक मजबूती से है । हां , कमजोर आदमी पर कीचड़बाजी की जा सकती है । सरकार तक यही करती है । सल्फास खाकर यदि किसान को साहूकार ने मरने पर मजबूर किया तो कलेक्टर साहब अपने रिपोर्ट में लिखते हैं कि दस महीनों से दमा से पीड़ित था । मर गया ।
2. तुरंत पलटने से परहेज न करें । बड़े- बड़े नेता भी यही करते हैं । किसी पर कीचड़ उछाला; मात्रा यदि ज्यादा पड़ गई तो तुरंत पलट गये कह दिया सब मीडिया वालों की शरारत है । हमने तो ऐसी नहीं वैसा कहा था । हमारे बयान को तोड़ मरोड़कर पेश किया गया ।
3. तिल का ताड़ बनाने की कला विकसित करने के लिये नियमित रुप से एक घंटा टी वी न्यूज देखें । उससे रस्सी को सांप समझने की समझदारी का विकास होता है और कीचड़बाजी की कला में सुधार होता है ।
4. कभी सामने वाले की बात न मानें । किसी भी तर्क से हमेशा अपनी बात को ही सही साबित करते रहें । इससे आप की तर्कशास्त्री के रुप में धाक जम जायेगी और आप जो भी कहेंगे लोग मानने लगेंगे ।
5. दृष्टांत देने से ने चूकें । आपके द्वारा उड़ायी गई बात यदि सामने वाला न माने तो उसे वेद पुराणों के द्वारा मान्य बातायें । गीता से उदाहरण देने से न चूकें । आपने गीता नहीं पढी तो उसने कौन सी पढ़ी है ।
6. क्षमा और विनय का दामन न छोड़ें । बात लात तक जा पहुंचे तो तुरंत क्षमाप्रार्थी हो जायें । विनीत होकर गाय का पोज भी बनाना पड़े तो शास्त्रसम्मत मानें ।
7. अभ्यास निरंतर करें । अभ्यास के अभाव में कभी-कभी धार कुंद पड़ जाती है । यदि उचित शिकार न मिले तो परिवार के सदस्यों को भी आजमायें ।
नोट ः- महिलाओं के साथ कीचड़बाजी स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है
उपर्युक्त सात सावधानियां बरत कर व्यक्ति स्थानीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा कर एक कुशल राजनेता, लेखक, पत्रकार तथा बाबा बन सकता है । धरती पर नाना प्रकार के सुख भोगता हुआ अंत काल में प्रभु के पास जाकर परम पद को प्राप्त कर सकता है ।
शशिकांत सिंह 'शशि'
जवाहर नवोदय विद्यालय
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