कुबेर की कहानी - चढ़ौती का रहस्य

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कहानी चढ़ौतरी का रहस्‍य अभी-अभी हमारे गाँव में भागवत-कथायज्ञ संपन्‍न हुआ है। कम से कम मेरी जानकारी में तो ऐसा आयोजन यहाँ पहले नहीं हुआ है।...

कहानी

चढ़ौतरी का रहस्‍य

अभी-अभी हमारे गाँव में भागवत-कथायज्ञ संपन्‍न हुआ है। कम से कम मेरी जानकारी में तो ऐसा आयोजन यहाँ पहले नहीं हुआ है।

गाँव के बुजुर्ग बताते हैं कि चालीस-पैंतालीस साल पहले झाड़ू गौंटिया के पिताजी अंतू गौंटिया ने अपने पिताजी के वार्षिक श्राद्ध के अवसर पर ऐसा ही आयोजन करवाया था। उस यज्ञ से संबंधित बातें आज भी हमारे गाँव और आस-पास के गाँवों में किंवदंती के रूप में कही-सुनी जाती हैं। गाँव में डेरहा बाबा के पास उस यज्ञ से संबंधित किस्‍से-कहानियों का भंडार है। उस यज्ञ की कहानियाँ बताते हुए जैसे वे पुनः उसी काल म लौट जाते हैं। भक्‍ति भाव का अतिरेक होने के कारण वे भावविभोर हो जाते हैं। उस यज्ञ का पूरा दृश्‍य उनकीे नजरों के आगे जैसे पुनः जी उठते हैं। उनके अनुसार, बैसाख का महीना था, ग्रीष्‍म की तपन अपनी जवानी पर थी। ऊपर, आसमान से लू बरस रहा था, और नीचे जमीन तवा के समान तप रही थी। तब बाजार में न तो बड़े पैमाने पर शामियाने ही उपलब्‍ध थे और न ही कूलर आदि की सुविधा थी। वक्‍ता और श्रोताओं को इस मुसीबत से बचाना एक बड़ी चुनौती थी। और इसीलिये, बहुत सोच-विचार के बाद उस आयोजन के लिये सर्वसम्‍मति से आम-बगीचे का चयन किया गया था।

गाँव से कोस भर की दूरी पर कलकल करती हुई यहाँ की जीवनदायिनी नदी शिवनाथ बहती है। गरमी के दिनों में धारा सूख जाती है, परंतु थोड़ी-थोड़ी दूरी पर स्‍थित दहरों में सुंदर काजल के समान निर्मल जल भरे होते हैं जिससे न केवल आदमी ही, समस्‍त पशु-पक्षी भी अपनी प्‍यास बुझाते हैं। नदिया के दोनों किनारों पर नजरों से ओझल होते तक कछार भूमि का सिलसिला है, और इसी कछार में आबाद हैं आम, अमरूद और जामुन जैसे फलदार वृक्षों के बगीचे। कई एकड़ कछार-भूमि में भोलापुर वालों के भी बगीचे आबाद हैं। जेठ की तपती दुपहरी में भी, जब लू के थपेड़े चलते हैं, यहाँ सुंदर ठंडी-ठंडी हवा चलती है। उस समय प्रकृति के इस कूलर के सामने आज के जमाने के सारे कूलर और ए. सी. बेकार थी। इसी बगीचे में व्‍यास-गद्‌दी लगाई गई थी।

इस बगीचे के आसपास आधा दर्जन गाँव बसे हुए हैं। सभी गाँवों के सारे महिला, पुरूष, बच्‍चे, और कथा सुनने के लिए आये हुए मेहमान-रिस्‍तेदार सभी, कथा सुनने के लिए उमड़ पड़ते थे। इन गाँवों में कोई ऐसा घर-परिवार नहीं रहा होगा जिनके यहाँ एक भी मेहमान न आया रहा होगा। साधू-सन्‍यासियों का गाँव-बस्‍ती से क्‍या लेना-देना। दस-बारह दिनों तक दर्जनों साधू-सन्‍यासियों की धूनी बगीचे में ही लगती थी। बगीचे में दस-बारह दिनों तक दिन-रात मेले का माहौल बना हुआ था।

अपने पिता की आत्‍मा की मुक्‍ति के लिए अंतू गौटिया ने कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ा था। सबकी सलाह मानी थी। साधू-सन्‍यासियों की मन लगाकर सेवा किया था। श्रद्धालु श्रोताओं की हर सुख-सुविधा का ध्‍यान रखा था। कथा परायण के लिए काशी के जाने-माने पंडित को बुलाया गया था। अमृत-कथा के एक-एक शब्‍द लोगों तक पहुँचे इसके लिए नांदगाँव से बैटरी पर चलने वाले भोपू मंगाये गए थे। रात में उजाला करने के लिए दर्जनों पेट्रोमेक्‍स जलाई जाती थी। श्रद्धालु श्रोताओं के लिए भण्‍डारा खोला गया था। भण्‍डारे का चूल्‍हा नौ दिनों तक लगातार जलता रहा। लोगों को और क्‍या चाहिए, प्रवचन के समय प्रवचन सुनना और बांकी समय सत्‍संग करना, वहीं रहना और वहीं खाना और खाली समय में अंतू गौटिया की जी भर कर तारीफ करना। लोग भावविभोर होकर कहते - ''अंतू गंउटिया के सात पुरखा तर गे भइया ,संग म हमू मन अउ ये बगीचा के हजारों बेंदरा-भालू , चिरइ-चिरगुन मन घला तर गें।''

डेरहा बाबा आगे बताते हैं कि प्रवचनकर्ता को उस यज्ञ के चढौतरी में चार कोल्‍लर (बैलगाड़ी) धान, दो कोपरा भर के नगदी, दर्जन भर दूध देने वाली गायें मिली थी। पंडित जी महराज बड़े खुश हुए थे। अंतू गौंटिया को जी भर कर आशीष दिया था। उनके पिता जी की आत्‍मा की मुक्‍ति के लिए ढेर सारी प्रार्थनाएँ की थी।

इस वर्ष इसी अंतू गौंटिया के इकलौते वारिस झाड़ू गौंटिया ने वैसा ही यज्ञ रचाकर पुरानी यादों को ताजा कर दिया है। इसके भी किस्‍से कम नहीं हैं।

साल भर पहले अंतू गौटिया परलोक गमन कर गए थे। इस साल उन्‍हीं की बरसी हुई थी और उन्‍हीं की आत्‍मा की मुक्‍ति के लिए इस यज्ञ का विधान किया गया था।

चालीस वर्ष कम नहीं होते हैं। जमाना बदल गया है। लोगों की सोच बदल गई है। परिस्‍थितियाँ बदल गई है। झाड़ू गौंटिया गाँव में कम ही रहते हैं। बेटे-बहु अपने-अपने परिवार के साथ शहर में रहते हैं। एक बेटा डॉक्‍टर है तो दूसरा सरकारी अधिकारी है। झाड़ू गौटिया भी अपने काम में व्‍यस्‍त रहते हैं। इस इलाके के बड़े नेताओं में से वे एक हैं, हमेशा उनका एक पैर रायपुर में रहता है तो दूसरा दिल्‍ली में। गाँव में रहना अब उनके लिय सजा से कम नहीं है।

गौंटिया बगीचा का, जहाँ चालीस साल पहले अंतू गौंटिया ने भागवत ज्ञानयज्ञ करवाया था, अब नामोंनिशान नहीं है। सारे फलदार वृक्ष कट चुके हैं और अब आबाद हो गए हैं वहाँ ईंट भट्‌ठे, जिनके दर्जनों चिमनियों से चौबीसों घंटे निकलते रहते हैं काले-कले धुएँ। इस धुएँ के करण बचेखुचे पेड़ अब अंतिम सांसे ले रहे हैं। ईंट ढुलाई करने वाले ट्रक और ट्रेक्‍टरों के टायरों से बगीचे की ओर जाने वाले धरसे की जगह अब धूल से भरी कच्‍ची सड़क बन गई है जिस पर चलना मुश्‍किल हो गया है। वाहनों की शोरगुल और उड़ने वाले धूल से लोगों का जीना हराम हो गया है। बगीचे में रहने वाले सारे बंदर अब गाँव में बसेरा किए हुए हैं और खपरैलों का दुश्‍मन बने हुए हैं।

मनहर महराज इस गाँव और गौंटिया खानदान का खानदानी पुरोहित है। इनके पिता जी माधो महराज का बड़ा मान-सम्‍मान था। अंतू गौंटिया के समय बगीचे में काशी वाले पंडित का भागवत ज्ञानयज्ञ इन्‍हीं की पुरोहिती में संपन्‍न हुआ था। बिदाई के समय काशी वाले पंडित जी ने इन्‍हें अपना शिष्‍य बनाया था। यज्ञ में बरन का काम माधो महराज ने ही किया था, अतः चढ़ौतरी में से उन्‍हें उनके हिस्‍से के रूप में खूब सारा सामान और रूपया भी मिला था। माधो महराज अब नहीं रहे। पुरोहिती का काम अब उनका इकलौता पुत्र मनहर महराज करता है। बगीचे में संपन्‍न होने वाले भागवत ज्ञानयज्ञ के समय मनहर महराज की अवस्‍था छोटी थी, फिर भी कुछ धुँधली यादें उनके भी दिमाग में बसी हुई हैं। अब इस साल जब अंतू गौंटिया की बरसी होने वाली है, मनहर महराज की इच्‍छा है कि अंतू गौटिया की आत्‍मा की मुक्‍ति के लिये एक बार फिर वैसा ही भागवत ज्ञानयज्ञ का आयोजन होे। धरम-करम के ऐसे कामों से ही तो नाम चलता है।

छः-सात महीना पहले से ही मनहर महराज छाड़ू गौंटिया को समझाइश देते आ रहे हैं - ''गंउटिया, आप मन के पिताजी ह बड़ धरमी चोला रिहिस हे। पूजा-पाठ अउ दान-धरम बर कोई कमी नइ करय। अपन पुरखा मन ल तारे बर कतका बड़ जग रचाय रिहिस हे। एक ठन कहानी बन गे हे। गाँव-गाँव म आज घला लोगन ये कहानी ल कहिथें अउ नाम लेथें। वइसने पुण्‍य कमाय के, नाम कमाय के अब आपके बारी हे। दिन लकठावत जात हे।''

झाड़ू गौंटिया ठहरा नेता, नेतागिरी से फुरसत मिले तब न सोचे धरम-करम की बात। व्‍यवहारिक व्‍यक्‍ति हैं, हर काम नफा-नुकसान देखकर करते हैं। जिस काम में धेले भर का भी फायदा न हो, उस काम के लिये वे एक पैसा भी खर्च नहीं करते। रह गई आत्‍मा और मोक्ष की बात; उनका विश्‍वास है कि ऐसा कुछ नहीं होता। होता होगा भी तो अपनी बला से, ऐसी बातों में भला कोई अपना मगज क्‍यों खपाए, जिसके होने और न होने से पंडितों के सिवा और किसी को कोई फायदा न हो़ता हो। झाड़ू गौंटिया तो केवल वही काम करता है जिससे नेतागिरी में उनका रुतबा बढ़े और जेब में चार पैसे आएँ। बेटों और नाती-पोतों पर तो अधुनिकता का रंग चढ़ा हुआ है। उनकी नजरों में धार्मिक अनुष्‍ठानों पर खर्च करना निरा बेवकूफी है।

पर कहा गया है - 'समय होत बलवान'। ठीक उसी समय आम चुनाव होने वाला था। झाड़ू गौंटिया टिकिट की जुगाड़ में लगे हुए थे। उसके राजनीतिक बुद्धि में एक आइडिया आया - 'बरसी के महीना भर बाद चुनाव होने वाला है। जनता को लुभाने का इससे बड़ा मौका और कहाँ हाथ लगने वाला है। भागवत ज्ञानयज्ञ के नाम पर जितना अधिक प्रचार हो, जितनी अधिक जनता इकट्‌ठी हो, उतना ही बढ़िया है। पार्टी वालों को भी झाड़ू गौंटिया की लोकप्रियता का अंदाजा हो जायेगा, फिर तो टिकिट पक्‍की समझो। जीत गया तो छोटा-मोटा मंत्री बनना तय ही मानो।'

झाड़ू गौंटिया के मन में लड्‌डू फूटने लगे। यह बात बेटों-बहुओं और पोतों को समझाया गया। सबने बाप के सूझबूझ और दूरदर्शिता की तारीफ की। कहा - ''वाह, डैडी वाह! आप तो सचमुच जीनियस हैं। एक तीर से क्‍या दो निशाना साधे हैं। राजनीति तो कोई आप से सीखे।''

अब तो बरसी में केवल महीने भर का समय बचा है, तैयारी में और देरी करना उचित नहीं होगा। खबर भेजकर गाँव से मनहर महराज को बुलाया गया। तैयारी से संबंधित सारी बातों पर गहन चर्चा हुई। मनहर महराज को हिदायत दी गई - ''केवल अपने गाँव वालों को ही नहीं, आस-पास के भी गाँव वालों की इसमें सक्रिय सहभागिता जरूरी है। प्रचार-प्रसार में कोई कोर-कसर नहीं रहना चाहिये, धर्म का मामला है। बाप की आत्‍मा की मुक्‍ति का सवाल है। खर्चे की कोई चिंता नहीं, आयोजन शानदार होना चाहिये।''

उसी दिन गाँव जाकर झाड़ू गौंटिया ने गाँव वालों के साथ मीटिंग किया। बैठक में पंच-सरपंच को बुलया गया, महिला स्‍वसहायता की महिलाओं को बुलाया गया, नवयुवक दल वालों को बुलाया गया, भजनहा मंडली के कलाकारों को बुलाया गया; साम-दाम, की नीति अपनाई गई और सब को साध लिया गया। समझाया गया कि आने वाला काम केवल झाड़ू गौंटिया का काम नहीं है। नाम होगा तो अकेले झाड़ू गौंटिया का ही नाम नहीं होगा, गाँव का भी नाम होगा। धरम का काम है, पुण्‍य अर्जित करने का मौका हाथ लगा है।

सब एकजुट हुए। अलग-अलग काम के लिये अलग-अलग समितियाँ बनाई गई और सबको यथायोग्‍य काम सौंपा गया।

कथावाचन के लिये बिंदावन से बहुत बड़े कथावाचक को आंत्रित किया गया। क्‍विंटल भर पेंफलेट और निमंत्रण कार्ड छपवाया गया, पोस्‍टर छपवाए गए। विधानसभा के अंतर्गत आने वाले सभी गाँवों के सभी परिवारों को निमंत्रण कार्ड भेजा गया।

अखबारों में रोज ही विज्ञापन छपने लगे। विज्ञापन होता था भागवत ज्ञानयज्ञ का लेकिन फोटो छपा होता छाड़ू गौंटिया का, पार्टी के बड़े नेताओं के साथ, अभिवादन की मुद्रा में दोनों हाथ जोड़े, बड़े ही मनमोहक मुद्रा में।

गौंटिया के पाँच एकड़ के बियारा को समतल करके गोबर से लीपा गया, शामियाना लगाया गया, भव्‍य मंच बनाया गया और मंच के आगे श्रोताओं के बैठने के लिये पुआल बिछाये गये। विशिष्‍ट जनों के बैठने लिए विश्‍ोष व्‍यवस्‍था किया गया। शामियाने सहित पूरे गाँव को तोरन-पताकों से सजाया गया, बिजली के झालर और लाउडस्‍पीकर लगाए गए। श्रद्धालु-श्रोताओं को गर्मी से बचाने के लिए कूलर-पंखे लगाए गए और भण्‍डारा खोला गया।

नीयत तिथि में कथा-प्रसंग की शुरुआत हुई। हजारों की भीड़ जुटने लगी। बियारा से लगे हुए बाड़े में पार्टी कार्यालय भी खोला गया। रोज कोई न कोई नेता या मंत्री अपने लाव-लश्‍कर के साथ आने लगे। प्रवचन के समय प्रवचन होता और मध्‍यान्‍तर में नेताओं की सभा होती।

श्रद्धालु-श्रोताओं की भीड़ देखकर कथावाचक महराज बड़े खुश थे, अच्‍छी-खासी चढौतरी मतलब साल भर की कमाई एक ही बार में जो होने वाली थी।

बरन के आसन पर काबिज मनहर महराज भी बड़ा खुश था। अंक गणित में कमजोर होने के कारण भले ही वे आठवीं कक्षा से आगे की पढ़ाई नहीं कर पाया था पर यहाँ उनकी अर्थ गणित एकदम ठीकठाक थी - 'नहीं-नहीं में भी लाख रूपय की चढ़ौतरी तो होगी ही। उनके हिस्‍से में कम से कम दस हजार तो जरूर आयेंगे। आने वाली बरसात के पहले घर के छप्‍पर की मरम्‍मत निहायत जरूरी है। और भी बहुतों की देनदारी है, सबका निवारण हो जायेगा।'

झाड़ू गौंटिया के घर के एक हिस्‍से को ही कथावाचक पंडित जी महराज और उनके साथ आये हुए संतजनों और साजिंदों के रहने के लिए सजाया गया था। कथावाचक पंडित जी महराज बड़े ही सरल, मृदुभाषी, और मिलनसार व्‍यक्‍ति थे। यहाँ भी वे भक्‍तजनों से घिरे रहते थे। धर्मग्रंथों में वर्णित कई मिथकों और गूढ़ कथाप्रसंगों के बारे में भक्‍तजन प्रश्‍न करते और पंडित जी महराज कई तरह से उदाहरण दे-देकर उनकी शंकाओं का समाधान करते। सतसंग का सिलसिला रोज ही चलता।

झाड़ू गौंटिया और उनके समधी की जोड़ी राम-लखन की जोड़ी के नाम से प्रसिद्ध है। घाट-घाट का पानी पीने वाला समधी जी आजकल एकाएक धार्मिक हो गए हैं। आमंत्रण मिलते ही पुण्‍य लाभ लेने के लिए वे भी पधारे हुए हैं। वे भी इस सतसंग मंडली में रोज उपस्‍थित रहते है। कथावाचक पंडित जी महराज की हर बात को बड़े ध्‍यान से सुनते हैं। समधी जी केवल सुनते ही नहीं हैं, गुनते भी हैं, पर पाँच दिन गुजर चुके हैं, अब तक उन्‍होंने कथावाचक पंडित जी महराज से एक भी प्रश्‍न नहीं पूछे हैं। समधी जी महराज के व्‍यक्‍तित्‍व को देखकर कथावाचक पंडित जी महराज ने अनुमान लगाया होगा कि इनके साथ संतसंग करने में आनंद आयेगा। पर अब उनको आश्‍चर्य होने लगा है कि ये महाशय कुछ भी क्‍यों नहीं पूछते हैं। आज उनसे रहा नहीं गया, पूछा - ''भगत जी, आप तो रोज ही सतसंग में आते हैं, पूछते कुछ भी नहीं हैं।''

दुनिया को अपनी ही नजरों से देखने वाले घुटे हुए समधी जी ने कहा - ''कुछू संका होही ते जरूर पछूबोन देवता। अभी तो आप मन दू-चार दिन रहिहौच।''

बड़े ही आनंद-मंगल के साथ छः दिन गुजर गये। सातवें दिन से ही कथावाचक पंडित जी महराज ने बातों ही बातों में श्रोताओं को ताकीद करना शुरू कर दिया, - ''प्रिय भक्‍तों, अब तक आपने अमृत रूपी श्रीमद्‌भागवत कथा का पान किया है। कल भगवान के श्री चरणों में श्रध्‍दा-सुमन अर्पित कर पुण्‍य कमाने का दिन है। ऐसा अवसर जीवन में बार-बार नहीं आता, याद रखियेगा।''

और फिर चड़ौतरी का दिन आ ही गया।

चढ़ौतरी देखकर कथावाचक पंडित जी महराज का मन खिन्‍न हो गया। कहाँ तो लाख रूपयों की आस लगाये बैठा था, जबकि बमुश्‍किल चालीस हजार ही जुड़ सके। ऊपर से अपना हिस्‍सा मंगने मनहर महराज छाती पर चढ़े हुए हैं। मनहर महराज के साथ काफी देर तक मोलभाव होता रहा पर सौदा पट नहीं पाया। मनहर महराज ने अपना अंतिम निर्णय सुना दिया, कहा - ''पाँच हजार ले एक पइसा कम नइ हो सकय महराज जी। चरबज्‍जी उठ-उठ के पुरान के बाचन करे हंव। जोत के रात-दिन रखवारी करे हंव।''

दोनों पंडितों में काफी कहासुनी हुई। नौबत कुस्‍ती की आ गई। अंत में झाड़ू गौटिया को ही अपनी ओर से कुछ ले देकर मामला सुलझाना पड़ा।

पंडितों को झगड़ते देख सारे सतसंगी खिसक गये थे, समधी जी कहाँ जाते? फिर मौका जो हाथ आया है। कथावाचक पंडित जी महराज सिर पकड़कर बैठे हुए थे। समधी जी भी पास ही बैठे हुए थे, मौका देखकर उन्‍होंने कथावाचक पंडित जी महराज से अपने मन की शंका के बारे में आखिर पूछ ही लिया - ''पंडित देवता, अभिच मोर मन म एक ठन संका पैेदा होइस हे। आर्डर देतेव ते पूछतेंव।''

कथावाचक पंडित जी महराज ने बनावटी हँसी हँस कर कहा - ''पूछो भइ, ऐसा मौका रोज थोड़े ही आता है।''

समधी जी ने पूछा - ''महराज! काली आप मन परबचन म कहत रेहेव, 'भगवान को दीनबंधु कहते हैं क्‍योंकि वह गरीबों से प्रेम करता है। गरीब ही भगवान के सबसे निकट होता है। धन संपत्‍ति तो ईश्‍वर के मार्ग की बाधाएँ हैं।' फेर आज आपमन विही धन बर काबर अतिका दुखी हव?''

सुन कर कथावाचक पंडित जी महराज अकबका गये। कहा - ''हम तो आपको भक्‍त और ज्ञानी समझ रहे थे, पर तुम तो मूरख निकले। कहीं ऐसा भी प्रश्‍न पूछते हैं।''

समधी जी ने हाथ जोड़कर कहा - ''गलती हो गे महराज, छिमा करव। एक ठन प्रश्‍न अउ पूछत हंव, नराज झन होहू। काली आपे मन केहे हव कि सबले पहिली राजा परीक्षित ह श्रीमद्‌भागवत जग्‍य कराइस। सुकदेव मुनि ह ब्‍यास गद्‌दी म बइठ के कथा सुनाइस। राजा परीक्षित के मोक्ष होइस। अतकी बतातेव महराज, राजा परीक्षित ह वो जग्‍य म कतका धन, कतका रूपिया-पइसा चढ़ाय रिहिस। सुकदेव मुनि ह कतका धन दौलत अपन घर लेगे रिहिस? बरन संग पइसा के बटवारा बर का वहू ह अइसने झगरा होय रिहिस?''

पहले से ही दुखी और क्रोधित कथावाचक पंडित जी महराज समधी जी का प्रश्‍न सुनकर दुर्वासा हो गए, बमकते हुए उन्‍होंने कहा - ''मूरख! पंडित का अपमान करते हो। घोर नरक में जाओगे। पापी, दूर हो जा मेरी नजरों से। जानते नहीं, ब्राह्‌मण जब शिखा खोल लेता है तब वह चाणक्‍य बन जाता है, और क्रोध आने पर दुर्वासा।''

समधी जी अपने जीवन में अब तक न कभी किसी से दबां है और न ही कभी किसी से डरा है। कथावाचक पंडित जी महराज के इस रूप को देखकर वे हँस पड़े और नहले पर दहला मारते हुए कहा - ''आप का-का बन सकथव और अभी का बन गे हव, देखतेच्‌ हंव महराज। आप चाहे कुछू बनव, मोला कुछू फरक नइ पड़य। हाँ, मोर संका के समाधान जरूर हो गे अउ चढौतरी के रहस ल घला जान गेंव।''

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कुबेर

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: कुबेर की कहानी - चढ़ौती का रहस्य
कुबेर की कहानी - चढ़ौती का रहस्य
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