पूनम शुक्ल होली के गीत १. होली आई नव गीत लिए नव मीत लिए लो आई फिर होली । पिचकारी की बौछार लिए ढ़ेरों दिल में प्यार लिए आए सब हमजोली ।...
पूनम शुक्ल
होली के गीत
१. होली आई
नव गीत लिए
नव मीत लिए
लो आई फिर होली ।
पिचकारी की बौछार लिए
ढ़ेरों दिल में प्यार लिए
आए सब हमजोली ।
नव राग लिए
नव थाप लिए
फागुन की सौगात लिए
आई हुरियन की टोली ।
उड़े रंग
क्या राजा क्या रंक
भीजे सबके अंग
भींजे गोरियन की चोली ।
ढ़ेरों गुझिया इतने पूए
खा खा के हम तो हुए पूरे
अब निंदिया की डिबिया खोली ।
२. इस हुकन में गीत भर दें
सूखती सी ये धरा है
इसे रंगों की बौछार दो
है तड़पती कुछ गिला है
इसे थोड़ा सा प्यार दो ।
कुछ अनमनी कुछ बेचैन है
इसे अबीर का गुबार दो
पलकें भी नम हैं ,लग गले
होली मुबारका सौ बार दो ।
प्यार के इस जहाँ में
आज कैसी ये हुकन ,
दो दिलों के मेल में भी
आज कैसी ये जलन !
देखो जहाँ भी कफ़न की
गन्ध ले उड़ता पवन ,
कहीं दफ़न होता सा लगता
आज ये आबो अमन ।
जलती हुई इस आग में
चलाएँ पिचकारियाँ ,
इस हुकन में गीत भर दें
और फाग की किलकारियाँ ।
कफ़न को रंग आज कर दें
दुल्हनों की सारियाँ ,
आबो अमन में आज भर दें
हर रंग की फुलवारियाँ ।
३. रंग पहेलिका
कौन सा रंग है ?
जो नित नया लाए सबेरा
कौन सा रंग है ?
सुर्ख कोना आसमाँ का
नित लिए पैगाम
नयन पंखुड़ियों को खोले
दे विश्राम को विराम
लाल से भागे अँधेरा
वो नित नया लाए सवेरा ।
कौन सा रंग है ?
जो भरे हममें उमंगें
कौन सा रंग है ?
शिथिल तन हुँकार भरता
ऊर्जा का संचार करता
जय घोष का वह नाद करता
स्वराज्य की वह माँग करता
नारंगी से उछलें तरंगें
वो भरे हममें उमंगें ।
कौन सा रंग है ?
जो शांति को आवाज देता
कौन सा रंग है ?
जो सिखाता एक हैं हम
सब रंगों का मेल हैं हम
एक धरती एक आसमां
फिर क्यों लड़ें खेल में हम
श्वेत है एक साज़ देता
वो शांति को आवाज़ देता ।
कौन सा रंग है ?
जो मिलाए उस खुदा से
कौन सा रंग है ?
जो ले चले एक मोड़ पर
आगे बढ़ें सब छोड़ कर
जो भगवान से तुमको मिलाता
वैराग्य की भाषा सिखाता
पीला बचाए आपदा से
वो मिलाए उस खुदा से ।
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राघवेन्द्र मिश्र
होली है
गुलालों की होली
खिली जा रही है,
गले लगके ,
हँसके,
मिली जा रही है.
कोई ढूँढकर ला रहा है किसी को,
सराबोर करने,
झिझक दूर करने,
ये रंगों की चादर बढ़ी जा रही है.
मिठाई लरजती ,
ठसक पापड़ों की,
ये गुझिया की लज्जत,
जुबाँ फिर लपकती,
ये बंदिश की डोरी खुली जा रही है .
ये ठंडाई में कुछ
हरा सा,
हरा सा,
ये शीशे में रंगीन पानी जरा सा,
ये बेबाक मस्ती घुली जा रही है.
ये रिश्ते,
बड़े मीठे लगने लगे हैं,
ये मिश्री की डलियाँ,
ये माखन के नोने,
वो बातें पुरानीं धुली जा रही हैं.
मोहब्बत का रंग हो,
घटें दूरियां भी,
अमन हो ,
अमन हो,
चमन हो,
चमन हो,
यही अब तो दिल में लहर छा रही है.
गुलालों की
होली खिली जा रही है.
संपर्क सूत्र-
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र,
सहायक प्रोफेसर- जनसंचार विभाग,
असम विश्वविद्यालय,
सिलचर, असम, 788011
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धर्मेन्द्र निर्मल
व्यंग्य - दोहे
राजनीति एक राक्षसी, पद अक्षरों के चार।
राजा रहते जकड़ के, नीति करे तिरस्कार॥
रंग रंगीली दुनिया, फैशन रंग दिखाय।
चेहरे सेहरे छिपे, बाकी अंग दिखाय॥
अबला मांसल जीव बस, नर पिशाच है भील।
भीतर चूहे चीथते, बाहर कौंआ चील॥
नौकरी सरकारी में, पांव रखन की देर।
बैठ सो लोटो लूटो, करो फेर पर फेर॥
पेड़़ पूजा योग्य है, मानव रे मत भूल।
दें जल-वायु और दवा, छांव पान-फल-फूल॥
कैसा युग आया गयी, मानवता है सूख।
भाई - भाई भीड़ते, पैसों की है भूख॥
संस्कारों की वाहिनी, जोड़े घर परिवार।
शक्ति का अवतार नारी, जनम लिए संसार॥
धन भी जाये मान भी, तन - मन का हो नाश।
टूटे घर परिवार जग, नशा नरक की फाँस॥
प्रगतिशील इस युग में, नित-नित नव-नव योग।
होते धनी और धनी, निर्धन निर्धन लोग॥
संस्कारों के देश में, यही बड़ा है खेद।
शक्ति पूजा होती जहॉ, लड़का - लड़की भेद॥
बिन मोल सब कुछ ले ले, जो खुद है अनमोल।
हसि सुहागा सोने पे, तोल - तोल कर बोल॥
आना जाना है लगा, सुख-दुख में मत डोल।
जैसे मोती सीप बस, बना खुशी का खोल॥
जगह-जगह मदिरा मिले, पक्ष-विपक्ष मति मौन।
बहक बूढ़ा रहे युवा, जिम्मेदान है कौन॥?॥
छल कपट धोखा फरेब, कलयुग की सौगात।
बेईमान सुखी सदा, सिधवा खाये लात॥
मूक मंदिर भटक-भटक, क्या पाये हैं आप ?
जीव जग सब देवों के, महादेव माँ -बाप॥
धर्मेन्द्र निर्मल
ग्राम पोस्ट कुरूद
भिलाईनगर दुर्ग छ.ग. 490024
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शशांक मिश्र भारती
होली पर हाइकु
01:-
ऋतुराज के
आने का सन्देश
पतझड़ ।
02:-
पत्र लाया है
डाकिया बसन्त में
फाग-राग का।
03:-
कोयल गाती
फाग राग मग्न हो
बसन्त पर।
04:-
वीणा वादिनी
स्वर विमल करे
जन्मदिवस।
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होली की अनन्त शुभकामनाएं
फूली है सरसों, झूम रही अलसी,
मस्त हुए गुलाब रंगों पे छा गए,
लाल,हरे,नीले,पीले मिलके हुए एक
रंग चढ़ा प्रेम का,सभी को भा गए,
राज का रंग नीति पर चढ़ा जब
मौसम चुनावी भाषणों में छा गए,
गुजियों के संग,पापड़,मिठाईयां ले
होली के रंग,फाग के संग आ गए,
टोलियां मस्तानों की इठलाती सी
होलिका जली प्रह्लाद गीत गा गए,
मिलन के रंगों का पर्व मिलाने को
शुभ होली कहने को सब आ गए।
शशांक मिश्र भारती
हिन्दी सदन बड़ागांव शाहजहांपुर उ․प्र․
बहुत सुंदर रचनाऐं ।
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ ।