वीरेन्द्र सरल का व्यंग्य - घोषणा-पत्र लेखक

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व्‍यंग्‍य घोषणा-पत्र लेखक वीरेन्‍द्र ‘सरल‘ मुझे सत्‍यानाशी ‘निराश‘ कहते हैं। मैं घोपलेस के संस्‍थापक सदस्‍यों में से एक हूँ। संभव है घोपलेस...

व्‍यंग्‍य

घोषणा-पत्र लेखक

वीरेन्‍द्र ‘सरल‘

मुझे सत्‍यानाशी ‘निराश‘ कहते हैं। मैं घोपलेस के संस्‍थापक सदस्‍यों में से एक हूँ। संभव है घोपलेस आपको बड़ा ही अटपटा और अर्थहीन लग रहा हो। इसलिए सबसे पहले मैं आपको इसका अर्थ बता देना अपनी नैतिक जिम्‍मेदारी समझता हूँ ताकि बाद में किसी को ये शिकायत न रहे कि यदि आप इसके संबंध में पहले ही बता देते तो हम भी इस संध के आजीवन सदस्‍य बन गये होते। घोपलेस का फुलफार्म है-‘घोषणा-पत्र लेखक संघ‘। यह एक अपंजीकृत संस्‍था है। चूंकि प्रत्‍येक राजनीतिक पार्टी को चुनावी वैतरणी पार करने के लिये एक आकर्षक और दमदार घोषणा-पत्र की आवश्‍यकता होती है। अतएव इस संस्‍था के सदस्‍यों का उपयोग चुनाव से पहले घोषणा-पत्र लिखवाने के लिए किया जाता है। घोषणा-पत्र लिखने की पहली शर्त है, ऐसा लिखो जिसमें से अधिकांश को कभी भी पूरा न किया जा सके। दूसरी शर्त है, जिसे चुनाव सम्‍पन्‍न होते तक मतदाता सत्‍य ही समझे और तीसरी महत्‍वपूर्ण शर्त है, सत्‍ता में आने के बाद संबंधित दल जिसे भूल जाय। उपरोक्‍त शर्तों के पालन किये बिना लिखा गया घोषणा-पत्र मान्‍य नहीं होता। समीक्षक उसे सिरे से खारिज कर देते हैं। अतएव इस विधा के लेखन में सावधानी बहुत आवश्‍यक है। मुझे यह बताने में कतई संकोच नहीं है कि मैं इस विधा में आजतक सफल लेखन नहीं कर पाया। मगर मेरे समकालीन लेखक इस विधा में लेखन करके नाम और दाम दोनों कमा रहे हैं। आइये अब इस विधा की उपयोगिता पर विस्‍तार से चर्चा करने का प्रयास करते है।

आजकल जैसे-जैसे चुनावी सरगर्मी तेज होती है, वैसे-वैसे घोषणा-पत्र लेखकों की मांग काफी बढ़ जाती है और उनके दाम आसमान छूने लगते हैं। मांग के हिसाब से माल सप्‍लाई कर पाना काफी कठिन होता है। आर्डर लेकर समय पर माल पूर्ति नहीं करने से बदनामी होती है, वह अलग।

इसलिए कुछ जागरूक घोषणा-पत्र लेखक पहले से ही माल तैयार रखते है और मांग के हिसाब से माल बाजार में खपातें हैं। मांग अधिक होने पर ब्‍लैक मार्केटिंग करके अधिक मुनाफा भी कमाते हैं। अब, सभी राजनीतिक दल इतने सक्षम तो है नहीं कि ब्‍लैक में माल खरीद सकें। साथ-ही-साथ ऐसे सभी लेखकों के स्‍टॉक में हमेशा माल उपलब्ध रहे यह भी संभव नहीं है। इसलिए चुनाव से काफी पहले ही एडवांस बुकिंग चालू हो जाती है। यदि मैं अपनी कहूँ तो मैं न तो थोक घोषणा-पत्र लेखक हूँ और न ही चिल्‍हर। मैं तो केवल कमीशन खोर हूँ। मुझे जो आर्डर मिलता है उसे लेखकों को दे देता हूँ और तैयार माल पार्टिर्यों को। पहले मैं इसी तरह अपनी गुजर-बसर की व्‍यवस्‍था कर लेता था पर पिछले कुछ दिनों से मन में इस क्षेत्र में भाग्‍य आजमानें का विचार आ रहा था। रात में मैं आराम फरमाते हुये सोच रहा था कि कब मौका मिले और कब मैं भी अमीर बनूं।

शायद मेरा स्‍वप्‍न साकार होने वाला था। सुबह होते ही मैंने अखबार में पढ़ा, हमें एक सुयोग्‍य और अनुभवी घोषणा-पत्र लेखक की आवश्‍यकता है, जो हमारी पार्टी के लिए थोक में माल तैयार कर सके। इच्‍छुक लेखक अपने सम्‍पूर्ण बायोडाटा के साथ ‘अपना विकास पराया दल‘ के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अशुभचन्‍द ‘निर्दयी‘ से कार्यालयीन समय रात्रि बारह बजे के बाद सम्‍पर्क करें। पता विनाशक मार्ग , सुनसान गली, भ्रष्‍टभवन, कमरा नम्‍बर-420।

रात्रि बारह बजते ही मैं उस पते पर पहुँच गया। कार्यालय का दरवाजा ढकेलते हुये मैंने शिष्‍टाचार के नाते पूछा-‘‘मे आई कम इन सर।‘‘ अन्‍दर से कोई गुर्राया-‘‘ कमीने जल्‍दी आ जा, क्‍यों टेम खराब करता है।‘‘ मुझे कंपकंपी छूट गयी। दिल धक-धक करने लगा। लेकिन अमीर बनने का स्‍वपन मुझे अन्‍दर ले ही गया।

कुर्सी पर एक खूंखार टाइप का आदमी बैठा था, उसके चेहरे पर चाकू से लगे घाव के निशान थे। बड़ी-बड़ी मूंछे थी। वह अपनी लाल आँखों से मुझे घूरने लगा। मैं डरते-डरते अपनी बात शुरू करने के लिए केवल श्रीमान ही कह पाया था। वह फिर गुर्राया-‘‘ श्रीमान होगा तुम्‍हारा बाप, अपुन तो डॉन हैं। निर्दयी कहते हैं लोग मुझे। मुझ पर मर्डर, डकैती, अपहरण इत्‍यादि के सैकड़ों केश चल रहे हैं। अभी तक मैं अदालत में ही लड़ रहा था, इस बार चुनाव लड़ने की तैयारी में हूँ। बोल तुझे किस क्षेत्र से टिकिट चाहिए। ज्‍यादा बक-बक करने की जरूरत नहीं हैं। हमारी पार्टी तुझे जहाँ से टिकिट देगी, वहीं से लड़ने का, नहीं तो अपुन तुझे टपका डालेगा, क्‍या समझे?‘‘

यह सुनकर मेरी पेंट गीली हो गई। मैं वहाँ से डल्‍टे पांव लौटते हुये मिमयाया-‘‘क्षमा कीजिए माई बाप! मुझे टिकिट-विकिट नहीं चाहिए महाप्रभु! मैं तो एक घोषणा-पत्र लेखक हूँ। अखबार में आपका विज्ञापन देखकर चला आया था। मुझे क्‍या पता था कि मैं शेर की मांद में जा रहा हूँ।‘‘

मेरा इतना ही कहना था कि वह कुर्सी से उछलकर मेरे कदमों पर लोट गया और गिड़गिड़ाया-‘‘मेरे अक्षम्‍य अपराध को क्षमा करें भगवन! कृपया मेरी कुर्सी पर सुशोभित होने की कृपा करें। जब से मैंने अपने इस दल का गठन किया है, तब से मुझे आप जैसे ही किसी महापुरूष की तलाश थी। आप ही मेरे तरणहार हैं।‘‘ यह कहते हुए वह मुझे सचमुच जबरदस्‍ती उठाकर अपनी कुर्सी पर बिठा दिया और कक्ष का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया।

मुझे काटो तो खून नहीं। मैं वहाँ से भागने के चक्‍कर में था पर वह मुझे मौका ही नहीं दे रहा था। मैं डर रहा था, यदि इस सिरफिरे का दिमाग घूम गया तो पता नहीं कब मेरा गला घोंट दे। डर के मारे मैं मौनव्रत धारण कर लिया और आँखें मूंदकर समाधिस्‍थ होने का नाटक किया।

वह मुझे बेहोश समझकर मेरे चेहरे पर पानी के छीटें डालने लगा और मुझे झिझोंड़ते हुये कहने लगा-उठो तात, उठो। हमारी पार्टी के लिए फटाफट एक घोषणा-पत्र तैयार कर दो। सत्‍ता में आते ही हम तुम्‍हें मालामाल कर देंगे।‘‘ माल का नाम सुनते ही मेरी आँखे स्‍वमेव खुल गई। मैंने आँखें मिचमिचाते हुये प्रवचनात्‍मक अदांज में कहा-‘‘ किस तरह का घोषणा-पत्र लिखूं बच्‍चा! गरीबी, भूखमरी, बेकारी मिटाने के जुमले पुराने पड़ गये हैं। आजकल मुफ्‍्‌त य फ्री जैसे फार्मूले आजमाए जा रहे है। क्‍या तुम्‍हारे लिए भी कुछ ऐसा ही लिखूं?‘‘ वह अपने कानों को बंद करके चीखा-‘‘नहीं महाराज नहीं, यह तो हमारे लिए पाप है। दूसरों के द्वारा इस्‍तेमाल की गई चीजों का प्रयोग करना हम जूठन खानें के समान पाप समझते हैं। हमारे लिए तो कुछ ऐसा नया लिखो जो सब पर भारी पड़े। विरोधियों के मुँह पिचक जाय और हम कुर्सी से चिपक जायें।‘‘ मैंने कहा-‘‘मगर मैं क्‍या करूं बालक मेरी बुद्धि की रेंज तो इससे अधिक जा ही नहीं रही है। मैं विवश हूँ। कोई दूसरा लेखक ढूंढ़ लो।‘‘ इतना सुनते ही वह फिर भड़क गया। रिवाल्‍वर निकालकर मेरी कनपटी पर टिका दिया और गुर्राया-‘‘ अक्‍ल नहीं है तो क्‍यों घोषणा-पत्र लेखक बना फिरता है बे। अबे कुछ भी उलूल-जूलूल लिख। जो मन में आता है वही लिख। हमें तो केवल चुनाव जीतना है, घोषणा थोड़े ही पूरी करना है। जल्‍दी लिख नहीं तो तेरी खोपड़ी उड़ा दूंगा, समझे?‘‘ मैं सूखे पत्‍ते की तरह काँपने लगा पर मौत के डर ने मेरे दिमाग में हलचल पैदा की। लेखनी अपने आप चलने लगी, मैं क्‍या लिख रहा था, यह मुझे भी पता नहीं चल पा रहा था। आखिर तीन घंटें की मशक्‍कत के बाद माल तैयार हुआ। जिसे उन्‍होंने तुरन्‍त मुझसे छिन लिया और मुझे लात मार कर कमरे से बाहर कर दिया। मैं वहाँ से ऐसा भागा कि घर पहुँचकर ही दम लिया और दो दिनों तक आराम से हाँफता रहा।

कुछ दिनों के बाद जब मेरा भय दूर हुआ तब मुझे अपने लिखे हुये घोषणा-पत्र के संबंध में जानने की इच्‍छा हुई पर निर्दयी के पास जाना बहुत ही खतरनाक लगा। अचानक एक दिन एक जगह उस पार्टी की आमसभा आयोजित हुई। भारी भीड़ थी। निर्दयी जी के आते ही कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। स्‍वागत के बाद निर्दयी ने सभा को संबोधित करते हुये बड़े ही विन्रमता के साथ कह रहे थे-‘‘देवियों एवं सज्‍जनों! हमारी पार्टी आप सभी की सेवा करने के लिए बड़ी बैचेन है। बस मौका मिलने की देर है फिर हम आपकी ऐसी सेवा करेंगे कि आप जीवन भर नहीं भूल पायेंगें। यदि आपके अमूल्‍य वोटों के बदौलत हम सत्‍ता में आते हैं तो हम घोषणा करते हैं कि यातायात की समस्‍या से निपटने के लिए हम बहुमंजिली सड़कों का निर्माण करेंगें। सड़कों का रेल मार्ग में और रेलमार्ग का वायुमार्ग में परिवर्तन करेंगें। अर्थात सड़कों पर रेलगाडि़यां चलेंगी और पटरियों पर हवाई जहाज। वायु मार्ग को बिना इंजन वाली गाडि़यों के लिए खोल दिया जायेगा। मतलब आप साइकिल, बैलगाड़ी ,तांगा इत्‍यादि से आकाश मार्ग पर सफर कर सकेगें। आपके घर जन्‍म लेने वाले सभी बच्‍चों को जन्‍म से ही वृद्धावस्‍था पेंशन योजना का लाभ दिया जायेगा और साठ से अधिक उम्र के युवक-युवतियों को बेकारी भत्‍ता दिया जायेगा। हम सभी मतदाताओं को सरकारी खर्च पर आगामी चुनाव तक विदेश भ्रमण कराते रहेंगे। कर्मचारियों को केवल रविवार के दिन ही काम करना पड़ेगा बाकी दिनों की छुट्‌टी रहेगी और वेतन में सौ प्रतिशत वृद्धि। हम जहाँ पर नदी नहीं है वहाँ पर भी पुल और बांध बनवायेंगें और उसके बाद पुल के नीचे तथा बांध के सामने नदी बनवायेंगे। सभी को एक-एक मोटर साइकिल और प्रतिमाह दस-दस लीटर प्रेट्रोल मुफ्‍त बाटेंगें। हर घर के सामने एक-एक अस्‍पताल और महाविद्यालय बनवायेंगे। हर गाँव को जिले का दर्जा दिया जायेगा। यदि आपको उपरोक्‍त सभी सुविधाओं का लाभ उठाना है तो हमें एक बार अवश्‍य मौका देवें।‘‘

इसी तरह घोषणा करते हुये निर्दयी जी जगह-जगह सभा-सम्‍मेलन करने लगे। पर्चे बंटवा कर सघन जनसम्‍पर्क के साथ चुनाव प्रचार किया। पर चुनाव के बाद पता चला कि उनकी पार्टी बुरी तरह से हार गई है। उनके प्रत्‍याशी जमानत तक नहीं बचा पाये। तब से वे गुस्‍से में आग-बबूला होकर मुझे ढूंढ़ने लगे।

एक दिन मुझे देखकर वह रिवाल्‍वर लेकर मारने को दौड़ाया। मैं बचाओ-बचाओ कहते हुये भागा और अचानक धड़ाम से पलंग के नीचे गिर पड़ा। मेरी नींद टूट गई थी। चिडि़यों की चहकने की आवाज से मुझे आभास हुआ, शायद सुबह होने वाली है।

 

वीरेन्‍द्र ‘सरल‘

धमतरी ( छत्तीसगढ़)

COMMENTS

BLOGGER: 3
  1. सरल जी,
    आप तो हमेशा पलंग से गिरकर अपनी सुबह करवा लेते हैं; कभी हमारे नेताओं को भी कुर्सी से गिरवाइये, ताकि उनकी भी सुबह हो सके। अच्छा है।
    कुबेर

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  2. अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव9:29 am

    वीरेन्द्र जी घोषणापत्र तो आपने लाजवाब बनाया था
    अब कूढ़ मग्ज जनता को समझ नहीं आया तो आपका
    क्या कुसूर हाँ निर्दयी आपको जरूर मार देता यदि
    चारपाई से गिर कर आप जाग नहीं जाते खैर उत्तम
    व्यंग के लिये हमारी बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. श्री वीरेंद्रजी, सुन्दर सामयिक व्यंग्य के लिए साधुवाद....प्रमोद यादव

    जवाब देंहटाएं
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रचनाकार: वीरेन्द्र सरल का व्यंग्य - घोषणा-पत्र लेखक
वीरेन्द्र सरल का व्यंग्य - घोषणा-पत्र लेखक
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