चाय कि दूध ? - प्रमोद यादव “देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान् कितना बदल गया इंसान” अच्छा हुआ...कवि प्रदीपजी कूच कर गए..और अनाप-शना...
चाय कि दूध ? - प्रमोद यादव
“देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान् कितना बदल गया इंसान”
अच्छा हुआ...कवि प्रदीपजी कूच कर गए..और अनाप-शनाप दिन देखने से बच गए..वैसे तो यह गीत उन्होनें पूरे संसार को लेकर लिखी पर अपने देश की पतली हालत से वे ज्यादा परिचित थे..उन्हें उम्मीद थी कि आगे हालात सुधरेंगे..इन्सान सुधरेगा..पर उनके जीवन-पर्यंत तो कुछ भी नहीं सुधरा..न देश न इंसान..अलबत्ता सब कुछ और जोरों से बिगड़ा और बदला ..वे होते तो ना जाने और क्या-क्या इंसान की फितरत पर.,.देश पर लिखते..उन्हीं के तर्ज पर किसी ने एक गीत लिखा- “ अम्मा देख..देख..तेरा मुंडा बिगड़ा जाए..अम्मा देख..देख..” इसका अर्थ (मेरे हिसाब से) यूँ है - “माँ भारती..देखो..भारतवासी कैसे बरबाद हो रहे ( सियासत के फेर में)...देखो...लोक-तंत्र नरक-तंत्र हुआ जा रहा.. देखो..वोट और नोट का चक्कर चल रहा.. प्रजा का दुःख-दर्द कोई समझ नहीं रहा...देखो..सब उसे खसोट रहे..लूट रहे... देखो... कोई पिला रहा चुनावी चाय तो कोई पिलाये दूध..माँ...देखो..”
‘ सुनते हो जी....’ पत्नी की तीखी आवाज ने हमेशा की तरह मेरे चिंतन को चिकोट दिया..अच्छा खासा मैं देश-दुनिया और बदलते इन्सान के बवाल पर बालिंग की सोच रहा था कि भूचाल आ गया...इसके पहले कि भूचाल रिपीट हो, मैंने जोर से बिगुल फूंका – ‘ हाँ..सुन रहा हूँ…..बोलो..’
‘ अरे..आज का अखबार तुमने पढ़ा ? ‘ उसने ऐसे पूछा जैसे उसमें उसकी कोई लाटरी फंसी हो.
‘ हाँ..पहले तो मैं ही पढता हूँ ना..तुम्हें तो मालूम है..इसके बगैर मुझे ठीक से हाजमा नहीं होता..अब ऐसा क्या छूट गया जो मैंने नहीं पढ़ा ?’
‘ तुमने पढ़ा न कि चुनाव के चलते पार्टी वाले जगह-जगह लोगों को मुफ्त की चाय पिला रहे हैं..’
मैंने तुरंत बात काटी - ‘ अरे बीबीजी..पुराना न्यूज है ये....अब चुनाव करीब है तो गरीब को लुभाने, वोट -बैंक भुनाने ये सब तो करेंगे ही..तुमने भी तो उस दिन अपनी सखियों के साथ मुफ्त की चाय का लुत्फ़ उठाया ..कैसी थी मुफ्त की चाय ? मैंने पूछा.
‘ अजी मत याद दिलाइये ..हम जिस स्टाल पर गई थी, वहां चाय के पूर्व कईयों ने भाषण पिलाया तब चाय मिली.....पूरे दो घंटे बाद..’
‘ पर मैंने तो सुना है- चाय पहले परोसी जाती है फिर चुस्की के साथ चर्चा..तुम्हारे साथ कैसे उलट हो गया ? ‘
‘ हाँ..हम सब भी यही सोच गए थे जी....चाय का वक्त था..और पीने का मन..पर मुफ्त की चाय बड़ी मंहगी पड़ी....छः भाषणों के उपरांत..दो घंटे बाद मिली..वह भी ठंडी और बेस्वाद..’
‘ पर ऐसी शिकायत तो अखबार में अब तक नहीं छपी..तुम मीडिया में नहीं गई क्या ? ‘मैंने उसे छेड़ा.
‘ दरअसल चाय वाले की गाय कांजीहॉउस में कसरत करने गई थी..दूध के पैकेट कहीं उपलब्ध नहीं थे..तो कैसे पिलाते चाय ?हमने तो “ काली टी” पर भी हामी भरी पर चायपत्ती लेने जो छोकरा गया था उसे पुलिस ले गई..अब खाली शक्कर से तो बनती नहीं न चाय..इसलिए......’ वह झेंप-सी गई.
‘मुफ्त की चाय थोड़ी देर से भी मिले तो क्या बुरा है ? ‘ मैंने चिढाया.
‘ हाँ..पर कोई भाषण पिलाकर पिलाये तो बहुत बुरा है..” वह बौरा गई.
‘ अच्छा छोडो यार..तुम अख़बार के विषय में कुछ बता रही थी न..’ मैंने याद दिलाया.
‘ हाँ..वही तो बता रही थी कि मुफ्त की चुनावी चाय के बाद अब यू.पी.में दूध मिलना शुरू हो गया है.....बिलकुल मुफ्त.....एक पुरानी पार्टी दूध पिलाकर वोट बटोरने के उपक्रम में लगी है..’
‘ तो क्या इरादा है ? दूध पीने गोरखपुर जाओगी ?’ मैंने पूछा.
‘ अरे नहीं जी ..वैसे भी चाय पीने भला कहाँ अहमदाबाद गए थे..आज नहीं तो कल यहीं पीयेंगे..अपने शहर में..बस..न्यौता भर आने दो..’
‘ तो देवीजी का मन अभी मुफ्तखोरी से भरा नहीं है..चाय के बाद अब दूध....वे भी अगर भाषण पिलाकर पिलायें तो ? ‘ मैंने मजाक किया.
‘ नहीं..ऐसा तो नहीं होना चाहिए...दूध तो बस गरम करो..सर्व करो..शक्कर,चायपत्ती,पानी मिलाने का कोई झंझट ही नहीं..पहले दूध मिलेगा फिर भाषण..इस बार तो बिलकुल नहीं झेलना है भाषण..’
‘ मतलब कि दूध जरुर पीना है..वो भी पार्लर में..मुफ्त में..? ‘
‘ हाँ..बिलकुल..’ उसने फटाक से जवाब दिया.
‘ अच्छा बताओ...वोट किसे दोगी ? चाय कि दूध को ? मैंने सहज भाव से पूछा.
‘ जिससे ज्यादा फायदा हो ..’ उसने तुरंत जवाब दिया.
‘श्रीमतीजी .फायदे तो दूध के ही ज्यादा हैं..किसी से भी पूछ लो..स्वास्थ्य के लिए हितकारी..इसे धरती का अमृत भी कहते हैं..एक तरह से इसे पूरा भोजन माना जाता है..यह टी.बी.नाशक, बुद्धिवर्धक, पाचक होता है..दूध से चेहरे का सौन्दर्य बढ़ता है..झांई, मुंहासे, दाग-धब्बे सब गरम दूध लगाने से चले जाते हैं..इससे ही मलाई,मक्खन,घी बनता है-चाय से नहीं..दूध किसी का हो- गाय-भैंस, भेड़-बकरी, ऊंटनी-गधी...सबका फायदेमंद होता है..तुम्हें मालूम है न - क्लियोपेट्रा रोज गधी के दूध से नहाती थी..उसकी सुन्दरता का राज – “लक्स” नहीं गधी का दूध था.. गधी का दूध दो हजार रूपये लीटर में बिकता है...पुराने लोग आज भी “दूधो नहाओ-पूतो फलो” का आशीर्वाद देते हैं.’
उसने बीच में टोका- ‘ अब चाय पे भी थोड़ी चम्मच चला दो..इसके भी गुण गिना दो..’
मैंने कहा - ‘ चाय के केवल नुकसान बता सकता हूँ..यह स्वास्थ्य की सबसे बड़ी दुश्मन है..यह लत है..नशा है..इसमें कोई पौष्टिक तत्व नहीं होता..इससे एसीडीटी बढ़ती है..शरीर में खुश्की आती है..पाचन में दिक्कत पैदा करती है..अनिद्रा की बीमारी देती है...अब बताओ..किसे वोट करोगी ? चाय कि दूध ?‘
पत्नी ने जवाब दिया- ‘ अभी तो चुनाव दूर है जी ...तब तक हो सकता है ..कोई मुफ्त में पिला दे जूस या कोई पिला दे सूप ..कोई पिला दे काफी तो कोई पिला दे लस्सी .. तब तक वेट कर लेती हूँ..सब पीने के बाद तय करुँगी - किसको वोट करूँ..’
‘ अरे भागवान..मुफ्त का इतना कुछ पिओगी तो अपचन हो जाएगा..फिर वोटिंग के दिन वोट नहीं कर पाओगी..पूरे दिन टायलेट में रह जाओगी.. ’ मैंने समझाया.
‘ अपचन होगा तो सबका “टोंटा”(गला) दबाने जाउंगी.....ई.वी.एम. में “नोटा” दबाकर आउंगी....’ इतना बोल वह हंसने लगी.
मुझे बेहद ही “फील-गुड” फिल हुआ कि चलो अखबार पढ़ पत्नी “सिलाई-गोटा” से “नोटा” तक तो पहुंची...
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- प्रमोद यादव
गया नगर , दुर्ग, छत्तीसगढ़
कल 27/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
श्री यशवंत जी ...मेरी रचना लिंक करने का शुक्रिया..निश्चित ही अभी देखूंगा..आपका-प्रमोद यादव
जवाब देंहटाएंवाह प्रोमोद जी बहुत सुंदर व्यंग है आज कल की बेशर्म राजनीति और राजनेताओं पर, कि वे चुनाव आने पर
जवाब देंहटाएंकिस नीचता और अनैतिकता पर उतर आतें है और
जनता भी फायदा उठाने में लग जाती है कि अब ये 5 साल बाद ही दिखेंगे उत्तम लेखन पर बहुत बहुत बधाई
बहुत बढ़िया और सार्थक
जवाब देंहटाएंरचना ....धन्यवाद....
श्री अखिलेशजी, सुश्री अदितीजी...आप दोनों का आभार..प्रमोद यादव
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