( बाल कहानी) हाय री तोंद -राम नरेश उज्ज्वल मोटूमल बहुत मोटे थे। उनका तोंद तो उनसे भी बड़ा। सम्भला न सम्भलता। वह पीछे-पीछे,तोंद आगे...
(बाल कहानी)
हाय री तोंद
-राम नरेश उज्ज्वल
मोटूमल बहुत मोटे थे। उनका तोंद तो उनसे भी बड़ा। सम्भला न सम्भलता। वह पीछे-पीछे,तोंद आगे-आगे। दोनों में कोई मेल न था। चलने पर तो अजीब तरह से ऊपर-नीचे हिचकोले मारता।
मोटूमल अपनी तोंद से बड़ा परेशान हो गये थे। बहुत उपचार कराया। मगर ठीक होने का नाम ही न लेता। इस तोंद के कारण गाँव में उनकी खूब खिल्ली उड़ती। बेचारे बहुत परेशान। क्या करें, क्या न करें?
इसी तोंद की वजह से अभी तक उनकी शादी भी न हुई थी। उन्होंने खाना-पीना भी छोड़ा। कसरत भी की। सौ-सौ दण्ड भी लगाये। शरीर कमजोर हो गया। चक्कर आने लगा। मगर तोंद पर कुछ असर न हुआ।
वह अक्सर अपनी तोंद को दोनों हाथों से दबाते। काफी देर तक इसी स्थिति में बने रहते। मगर जब तोंद हाथ से छूटता। फिर गुब्बारे सा फूल जाता। भगवान जाने क्या था तोंद में ? वह बीमार भी पड़ जाते,तब भी उस पर कुछ फर्क न पड़ता। टनाटन मटके-सा बना रहता।
बच्चे उनसे खूब मजा लेते। कभी-कभी तो नगाड़े की तरह बजाते। क्या बढ़िया धुन निकलती ? धुनक धुन-धुन,धुनक धुन-धुन। और वह चुपचाप पड़े-पड़े संगीत का आनन्द लेते।
एक बार बच्चों से अपनी तोंद पर नाच भी कराया। बच्चे खूब मगन हो-हो कर नाचे। और फिसल-फिसल कर जमीन पर गिरे। उन्हें खूब मजा आया। कई दिनों तक यह खेल भी चलता रहा।
मोटूमल एक दिन जानवर चरा रहे थे। आस-पास कोई न था। अकेले बैठे-बैठे तोंद सहला रहे थे। उधर से एक साधु गुजरा। वह बड़ा ध्यानी-ज्ञानी लग रहा था।
मोटूमल उसके पास गये। अपनी समस्या बताई। निवारण पूछा। उसने बड़ी जोर से तोंद पर एक ठूँसा मारा। फिर बोला-‘‘लेट जा बच्चा तोंद खोल के। अभी निवारण करते हैं।''
मोटूमल फटाक से लेट गये। साधु ने चारों तरफ घूम-घूम कर उनके तोंद का मुआयना किया।
‘‘आँख बन्द कर।'' उसने कहा और एक हड्डी से उसनेे उसका तोंद थपथपाया। मोटूमल ने आँख बन्द कर ली। उसने एक छोटी-सी मोमबत्ती जलाकर तोंद के बीचो-बीच रखी। आँख बन्द करके मंत्र पढ़ने लगा। मोमबत्ती खतम हुई। तोंद जल गया। मोटूमल ‘‘अरे बप्पा रे'' करके दन से उठ बैठे।
साधु बहुत नाराज हुआ। कहने लगा-‘‘तुझे जब तोंद की इतनी फिकर है,तो फिर मुझसे क्यों ठीक करवा रहा है? अघोरी कहीं का। जाता हूँ। जय खप्पर वाले की।''
मोटूमल गिड़गिड़ाने लगे-‘‘नहीं महाराज!ऐसा न करो। बहुत परेशान हूँ। मैं लेटता हूँ। आप उपचार करिए। अबकी ‘उफ्' तक न करूँगा।''
‘‘अच्छा ठीक है।'' साधु बोला-‘‘पहले सारे कपड़े उतार।''
मोटूमल ने कपड़़े उतारे। फिर इधर-उधर ताक-झाँक करके अपनी जाँघिया की ओर देखकर बोले-‘‘महाराज,क्या इसे भी।''
‘‘नहीं! अब लेट जा शंकर जी का नाम लेके।''साधु ने कहा।
मोटूमल लेट गये। साधु बोला-‘‘अबकी मैं मौनी मंत्र पढ़ूँगा। तू भी मौन रहना और आँखें बन्द रखना। अगर आँख खोली तो समझ लो कल्याण। तोंद बम की तरह फट जाएगा। तोंद के साथ तेरी भी चिन्दियाँ उड़ जायेंगी। जय भोलेनाथ।''
मोटूमल लेटे रहे। साधु तोंद को तरह-तरह से दबाता,सहलाता और पीटता रहा। फिर कुछ रखा। यह मोमबत्ती न थी। गुलगुल-गुलगुल लग रहा था।
मोटूमल को गुदगुदी लगने लगी। मगर हँसी बाहर न आने दी। कट्टी साधे पड़े रहे। हिले भी नहीं।
पड़े-पडे़ घण्टों बीत गया। कोई आवाज न हुई। डर के मारे मोटूमल कुछ बोल भी न सकते थे। भला अपनी धज्जियाँ कौन उड़वाना चाहेगा? मगर अब पड़े-पड़े गुजारा भी न था। सो चुपके से एक आँख खोली,फिर दूसरी। उनका शरीर थर-थर काँपने लगा। घिग्घी बँध गयी।
मोटूमल के तोंद पर एक काला विषधर कुण्डली मारे बैठा,जीभ लपलपा रहा था। उनकी जान सूख कर आधी रह गयी।
‘‘हुस्स-हुस्स।'' करने लगे मगर वह न भागा। मोटूमल ने सोचा-‘‘लगता है अंतिम समय आ गया। मेरे तोंद का भी और मेरा भी।''
मगर ऐसे भला जान क्यों देते, हाथ जोड़े काफी देर तक शंकर जी की प्रार्थना करते रहे। तब वह थोड़ा-सा कुलबुलाया। हाथ पर झपटा। मोटूमल झट से हाथ जमीन से चिपका कर सिसियाये।
साँप रेंग कर धीरे-धीरे उनके मुँह की ओर बढ़ने लगा। उनकी जुबान बाहर निकल आई। जैसे-जैसे साँप बढ़ता। मोटूमल की धड़कन तेज होती जाती। अब तो मौत निश्चित थी। साँप रेंगता हुआ गर्दन के पास आ गया। मोटूमल अपनी तोंद को कोस रहे थे।
साँप गर्दन के पास आकर फन फैलाकर खड़ा हो गया। मोटूमल की जुबान अन्दर हो गयी। आँखें बन्द कर लीं। अब तो गये काम से। साँसें भी रोक लीं। साँप ठोढ़ी पर चढ़कर नाक तक पहुँचा। माटूमल की आँखें खुल गयीं। साँप फिर फुँफकार कर खड़ा हो गया। मोटूमल को नगिना फिल्म के सारे सीन याद आ गये। कानों में ‘मैं नागिन तू सँपेरा' का गाना बज उठा।
साँस रोके-रोके जब थक गये। नाक से हवा ‘फुस्स' से निकल गयी। साँप ने एकदम से न में खोपड़ी हिलाई। मोटूमल की तो जान ही उड़ गयी।
‘जब मरना ही है तो कुछ करके मरा जाये। मौत तो पक्की ही है। चाहे चुपचाप पड़े-पड़े मर जायें, चाहे कुछ कर जायें।' यही सोचकर मोटूमल ने धीरे से दहिना हाथ उठाया। पूँछ पकड़ी और ‘सर्र' से साँप को दूर फेंक दिया। अब उनकी जान में जान आई। उन्होंने देखा तो कपड़े गायब। कुर्ते की जेब में पाँच की एक नोट भी पड़ी थी।
मोटूमल जानवर ढूँढने लगे मगर दूर-दूर तक ढ़ूँढ़ने के बाद भी जानवर कहीं न मिले। साधु उन्हें पहले ही हाँक ले गया था। कपड़े भी उठा ले गया था। मोटूमल ठगे जा चुके थे। वह अपना सिर पकड़ कर बैठ गये। फिर रो-रो कर जोर-जोर से अपना तोंद पीटने लगे।
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राम नरेश ‘उज्ज्वल'
मुंशी खेड़ा,
पो0-अमौसी एयरपोर्ट,
लखनऊ-226009.
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