व्यंग्यात्मक लघु कथा माखन चोर इस बार चुनावी भाषण देने जा रहे नेताजी ने धूल झोंकने के लिए धूल की कुछ बोरियां भी बोलेरो में रखवा लिया था․...
व्यंग्यात्मक लघु कथा माखन चोर
इस बार चुनावी भाषण देने जा रहे नेताजी ने धूल झोंकने के लिए धूल की कुछ बोरियां भी बोलेरो में रखवा लिया था․ हकीकत में जनता की आंखों में धूल झोंकने का मन बना लिया था नेताजी ने․
भाषण शुरू किया नेताजी ने कि सज्जनों हमें चुनाव में विजयी बनाइए हम आपकों आजादी देंगे, मेरा मतलब है देश की आजादी नहीं वो तो आपलोगों को साढे छह दशक पहले ही मिल गया था, हम आपकों गरीबी से, भुखमरी से, भ्रष्टाचारी से, घोटालों से आजादी देंगे․
दर्शक-श्रोता दीर्घा में बैठे एक युवा श्रोता से रहा नहीं गया, वह उठा और कहने लगा, नेताजी आपने तो हम गरीबों के विकास की मद की राशि की चोरी की और खुद खा गए, आप हमें गरीबी से, भुखमरी से, भ्रष्टाचारी से, घोटालों से कैसे आजादी दिलाएंगे ?
नेताजी ने कहा, आपने अच्छा प्रश्न किया है, पहले आप अपना नाम बतायें, युवा थोड़ा घबरा सा गया मगर जनता की आवाज बुलंद रहे, यह सोचकर अपना नाम बताया कृष्णा․
हाँ तो कृष्णा जी, नेताजी ने कहा, आपने सुना होगा माखन चोर के बारे में, माखन और स्त्रियों के वस्त्र चोरी करते हुए कृष्ण जी भगवान बने․ जय हो माखन चोर की․ स्त्रियों के वस्त्र चुराने का कार्य अगर कृष्ण भगवान नहीं करते तो क्या आप सभी को लगता है कि ‘‘कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर रे इंसान'' का दर्शन वे गीता में दे पाते ? चोरी हमेश कुकृत्य नहीं होती है, चोरी से भगवान और गीता जैसे दर्शन का जन्म होता है․ इसलिए बंधु हमें आप सिर्फ एक बार चुनाव में विजयी बनावें फिर देखिए हम आपको कैसी-कैसी आजादी देते है․
धूल से भरी बोरियों से नेताजी के साथ आए कार्यकर्ता धूल निकालते जा रहे थे और नेताजी भाषण सुनने वालों के आंखों में झोंके जा रहे थे․
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अनुकम्पा
आपने मेरे लिए किया ही क्या ? आर्यन अपने पिता से हिसाब मांग रहा था․ ठीक है आपने मुझे पोस्ट ग्रेजुएट तक पढ़ाया लेकिन मुझे नौकरी आज तक दिला नहीं सके․ आज पिता का दायित्व सिर्फ पढ़ाना तक ही सीमित नहीं रह गया है बल्कि आपको चढ़ावा भी देना होगा तभी नौकरी मिल सकती है․ सीविल सर्विस, नेट, टेट सभी तो उर्तीर्ण होकर मैंने दिखाया लेकिन आपकी इमानदारी कि रिश्वत देकर नौकरी नहीं करनी, मुझे आज भी बेरोजगार बनाए हुए है․
खेत-बारी जो भी थी, आर्यन कहे जा रहा था, सब कुछ दोनों बहनों के शादी में बेच दिया, मेरे लिए बचा ही क्या है ?
आर्यन के पिता केशव बाबू वन विभाग में बड़ा बाबू के पद पर कार्यरत थे, उनके रिटायर होने में एक वर्ष शेष था․ केशव बाबू ने कहा, बेटे मैंने तुम्हें पढ़ा-लिखा दिया, अब तुम अपनी जिम्मेदारी खुद उठाओ․
क्यों अपनी जिम्मेदारी उठाउं, आर्यन विफर उठा․ आपने बेटियां पैदा की उनको दान-दहेज देकर अपनी दोनों बेटियों को अच्छे घरों में भेज दिया․ मुझे भी सैटल करवाना भी तो आपका ही फर्ज है आखिर आपने क्यों पैदा किया मुझे ?
और तुम्हारा सिर्फ अधिकार है फर्ज कुछ भी नहीं, केशव बाबू ने जरा तल्ख होते हुए अपने बेटे से पूछा ?
मेरा फर्ज तो अभी स्थगित है और पूरा अधिकार मिल जाने के बाद ही मेरा फर्ज शुरू होगा, जब मैं ब्याह करूंगा, मेरे बच्चे होंगे, उसे पढ़ा-लिखा कर सैटल करूंगा, आर्यन ने अपना तर्क दिया․
तुम्हारा अपने माता-पिता के प्रति कोई फर्ज नहीं है, केशव बाबू ने पूछा ? एक साल बाद मैं रिटायर हो जाउंगा, उसके बाद तुम्हें ही तो सबकुछ देखना और करना है, केशव बाबू ने आर्यन को दुनियादारी समझाने की कोशिश कर रहे थे․
वो तो ठीक है परंतु अगर आपकी रिश्वत देने की मंशा होती, आर्यन कह रहा था, तो मैं कब का नौकरी में लग गया होता․ आप न तो रिश्वत देना चाहते है और न ही आपकी कोई रसूखदार से जान पहचान है, तो कहां से मिलेगी नौकरी, आर्यन ने बड़ी तल्खी से अपने पिता को कहा․
केशव बाबू सीधे-साधे, अपने काम से मतलब रखने वाले, कभी सोचा भी नहीं था कि उनकी अपनी औलाद इतनी बदतमीजी से पेश आ सकती है․ केशव बाबू ने इस किचकिच से पीछा छुड़ाने के ख्याल से कहा कि हाँ ये सच है बेटे कि न तो मैं रिश्वत देकर तुम्हारी जिंदगी की शुरूआत करना चाहता हॅूं और न किसी रसूखदार को मैं जानता हॅूं और अगर मैं किसी रसूखदार को जानता भी तो तुम्हारे नौकरी के लिए कोई पैरवी नहीं करता․ नौकरी के लिए मैं योग्यता को सर्वपरि मानता था और आज भी मानता हॅूं․ मैं तुम्हारे लिए, केशव बाबू ने आगे कहना शुरू किया कि इतना ही कर सकता हॅूं कि मैं अगर मर जाउं तो तुम्हें अनुकम्पा के आधार पर मेरे विभाग में नौकरी मिल सकती है․
केशव बाबू ने सोचा था कि मरने की बात सुनकर उनका बेटा समझ जाएगा कि वे आत्महत्या की बात कर रहे है और ऐसा करने से उन्हें रोकेगा․
पर ये क्या आर्यन क्रोधित होकर बोल पड़ा, हाँ तो मर जाइए और कमरे से बाहर दनदनाते हुए निकल पड़ा․
आर्यन के इस व्यवहार से कौन कह सकता है कि वह सभ्य शिक्षित है․ आत्मकेन्द्रीत बनाती आज की शिक्षा प्रणाली की पैदाइश था आर्यन, जिसे हर हाल में रोजगार चाहिए थी चाहे वह अपने पिता के लाश पर ही चढ़कर क्यों न मिले․
केशव बाबू बड़े सकते में आ गए थे यह सब सुनकर․ उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह वही आर्यन है जो मेरे बिना बचपन में सोता नहीं था, खाता नहीं था और आज मुझे मरने कह रहा है․ उनकी दुनिया कहां से कहां पहुंच गयी और केशव बाबू को पता भी नहीं चला․
सुबह नियत समय में केशव बाबू कार्यालय जाने को निकल पड़े․ रास्ते में सोचते जा रहे थे कि उन्होंने कहां भूल कर दी अपने बेटे के परवरिश में․ रास्ता पार कर अपने कार्यालय पहुंचने में बस दस कदम ही रह गया था कि सामने से आ रही ट्र्क पर उनकी नजर नहीं पड़ी और केशव बाबू ट्र्क के पीछे बंधी लोहे के सिकड़ से टकरा कर गिर पड़े․ माथे से खून बहने लगा, इससे पहले कि वे मदद के लिए किसी को पुकारते वे बेहोश हो गए․ कार्यालय के कर्मचारियों ने जब तक देखा और अस्पताल पहुंचाया, बहुत देर हो चुकी थी, केशव बाबू अस्पताल पहुंचने से पहले ही मर चुके थे
अनुकम्पा के आधार पर आर्यन को वन विभाग में नौकरी मिल गयी थी․
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रिश्ते का बंटवारा
शांति ने अततः तंग आकर अपने पति नेहाल के खिलाफ लोकअदालत में शिकायत की कि उसका पति लगभग दस सालों से एक अन्य महिला सुशीला के साथ लिव इन रिलेशन में रह रहा है․ एक ही घर में शांति, सुशीला और नेहाल रहते आ रहे है․
लोक अदालत के न्यायाधीश ने मामले की जांच करवाई तथा जांचोपरांत नेहाल और सुशीला को नोटिस निर्गत किया गया․ नेहाल ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि लिव इन रिलेशन गैरकानूनी नहीं है इसलिए मेरी अदालत से दरख्वास्त है कि हम दोनों को साथ रहने दिया जाए․ जहां तक मेरी पत्नी का प्रश्न है तो मैं उसे भी साथ रखता आया हॅूं और आगे भी साथ रखूंगा․
मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश ने तीनों की दलीलों को सुनने के बाद तीनों के आपसी सहमति से अनोखा समझौता किया कि घर के बीच वाले कमरे में पति रहेगा, वहीं उसके दूसरी ओर के कमरे में पत्नी रहेगी और दूसरे ओर के एक अन्य कमरे में लिव इन पार्टनर रहेगी․ पति पंद्रह दिनों तक अपने कमरे का दरवाजा अपनी पत्नी के लिए खुला रखेगा और अगले पंद्रह दिनों तक अपनी लिव इन पार्टनर के लिए खुला रखेगा यानी पति दोनों महिलाओं के साथ पंद्रह-पंद्रह दिन बिताएगा․
इस तरह अदालत ने रिश्ते और भावना का बंटवारा कर दिया․ शांति न्यायाधीश के समक्ष अपना प्रतिरोध अंकित न कर सकी लेकिन अपने पति को सबक सिखाने के ख्याल से उसने एक विधुर व्यक्ति के साथ उठना-बैठना शुरू कर दिया․ कुछ साल बीत जाने के बाद शांति ने अपने लिव इन पार्टनर को अपने पति के ही घर में बुला लायी और साथ रहने लगी․
नेहाल से रहा नहीं गया․ उसका पुरूषोचित अंह को ठेस पहुंचने लगी․ उसने अपने पत्नी को गैर मर्द के साथ रहने से यह कहते हुए मना किया कि क्या एक भारतीय नारी को पति के रहते किसी गैर मर्द के साथ रहने में सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन नहीं होता है ? पर शांति मानने के लिए तैयार नहीं थी․ शांति ने कहा कि जब आप मेरे अलावे एक अन्य स्त्री को घर लाकर साथ रह सकते है तो मैं क्यों नहीं गैर मर्द के साथ रह सकती हॅूं․ आपके लिए कोई सामाजिक मर्यादा नहीं और मेरे लिए सारी बंदिशें, मैं अब किसी बंदिशों को तब तक नहीं मानने वाली जब तक आप गैर स्त्री के साथ रहना नहीं छोडेंगे․ आप रिश्तों के पंद्रह-पंद्रह दिनों के बंटवारे को जब तक मानकर मेरे साथ पंद्रह दिन और सुशीला के साथ पंद्रह दिनों तक रहेगे तब तक मैं भी पंद्रह दिनों तक अपने लिव इन पार्टनर के साथ रहूँगी․
नेहाल गंभीरता से लिव इन रिलेशन पर सोच रहा था कि अब उसे क्या करना चाहिए․
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राजीव आनंद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरगंड़ा
गिरिडीह-815301
झारखंड़
राजीव आनंद जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना | लव इन रिलेशनशिप ... के बारे में आपने दूर तक सोच दी है .. बहुत बहुत बधाई ...
धन्यवाद