ज यन्त साहब अपने वसूल, नियमों, स्पष्टता, कर्मठता, इमानदारी के लिए जाने जाते थे। साधारण से स्टोर इन्चार्ज के रूप में कार्यरत होने पर भी ...
जयन्त साहब अपने वसूल, नियमों, स्पष्टता, कर्मठता, इमानदारी के लिए जाने जाते थे। साधारण से स्टोर इन्चार्ज के रूप में कार्यरत होने पर भी अपने सहकर्मियों के बीच में उनकी एक अलग पहिचान थी। वो केवल कपड़ों में ही नहीं बल्कि जीवन जीने की शैली में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती थी। अपने तरीके से ही जीवन जीना पसंद करते थे। जिसके साथ कोई भी समझौता नहीं कर सकते थे जो आत्मसम्मान एवं स्वाभिमान के खिलाफ हो। अपनी आत्मा का सौदा उन्हें दुनिया की दौलत लेकर भी घाटे का सौदा लगता था। अपने मूल्यों पर अपनी जिंदगी का एक लम्हा कठिनाइयों से जूझकर उसके भी आनन्द को महसूस करना भी एक प्रकार का उनके लिए आनन्द का साधन था। वो किसी भी कठिन से कठिन काम को बड़ी सरलता से लेते थे और पूरी ईमानदारी से निभाते थे। आधुनिकता की अंधाधुन्ध भागदौड़ में वो अधिकांशतः पीछे ही रह जाते थे। ये सोचकर की दौड़कर हाफ के मरने से तो अच्छा है सफर का आनन्द भी लिया जाय और रस्ता भी कट जाये। जीवन को चुस्कियों में जीते थे। बिल्कुल चाय की तरह। गर्म चाय का मजा तो चुस्कियों में ही है। वर्ना मुंह, गला, और फेफड़े तक को जला डालती है। जीवन भी इसी गर्म चाय की तरह है। जिसे धीरे धीरे हर एक सिप को अनुभव करते हुए पिया जाये तभी स्वाद, मजा, और स्फूर्ति का एहसास होता है। नहीं तो पिये जा रहे है। जिये जा रहे हैं। सब दौड़ रहे हैं। इसलिए दौड़ना जरूरी है। जिससे चारों तरफ एक भगदड़ सी मची हुई है। अमन, चैन, उत्साह, आनन्द, प्रेम, दुःख, करूणा, किसी भी चीज का अब किसी को कोई एहसास नहीं होता क्योंकि हम इसे दौड़ते हुए देख रहे हैं। महसूस करने के लिए समय नहीं है।
इस अनन्त ब्रहमाण्ड में एक छोटी सी घरती पे कितने सारे निजी लक्ष्य समय के प्रवाह के लिए कुछ भी नहीं है। ये तो व्यक्ति की निजी सोच है। कि हमारी ये उपलब्धि है। हमारा ये परिचय है। जिसका अनादि काल के कोई प्रयोजन नहीं है। अच्छा वही होता है जो प्रकृति के संचालन में जीवन चक्र की प्रक्रिया में पूर्ण सहयोगी बने और प्रकृति के कण कण की मस्ती का आनन्द भी लेता चले। मनुष्य के 60 या 80 साल के औसत जीवन में 8 सौ साल की कल्पनांए और भोगने की आशा उसका वर्तमान और दूसरों का भविष्य हमेशा हमेशा के लिए संकट में डाल देता है। दूसरे पुनः उसी कड़ी से जुड़ जाते है। जिसका भुगतान पृथ्वी के हर एक जीव जन्तु सभी को करना पड़ता है। किसी एक व्यक्ति विशेष की स्वार्थी दृष्टि का प्रभाव पूरे समाज और देश पर शत् प्रतिशत् पड़ता ही है। इस दुनिया की कोई भी चीज बिना किसी चीज को प्रभावित किए नहीं रह सकती। चाहे वो अच्छी हो या बुरी। हमारा आदर्श ही सही समाज का निर्माण करता है। वर्ना एक के बाद एक अनेकों गलतियों की श्रृंखला बन जाती है। समाज कमजोर एवं सड़ी हुई रस्सी की तरह टूट कर बिखर जाता है।
सत्य और असत्य ये भी मनुष्य के मन की उपजी एक परम्परा है। जिससे लोगों को बहुमत मिला वही सत्य माना जाने लगा। कुछ तथ्यों पर खरा उतरा तो सत्य हो गया। हर व्यक्ति का सत्य उसके खुद के दृष्टिकोण से निर्मित हो कर परिभाषित होता है। और यही उसकी मान्यता का अटल सत्य होता है। नहीं तो जिसे हम आज विकाश कहते हैं, विज्ञान का चमत्कार कहते है। उससे ही जीवन की सरलता एवं सत्यता प्रमाणित करते है। प्रकृति के लिए असत्य है गलत है और विनाशकारी है। जिसका परिणाम आज का हर एक व्यक्ति देख रहा है।
इसी तरह जयन्त साहब भी अपने आदर्श को कभी न छोड़ते। स्टोर की नौकरी में सीघे पार्टी को डील करना। लाखों की हेराफेरी का बिना किसी सबूत के उके सामने दस्तक देना। अपनी कठिन एवं अर्थसंकट में फसी नैया को पार करने क लिए कितने सारे प्रलोभन आये लेकिन वो अडिग बने रहे। लोग सामने से बोलते- ''मेरी एक गाड़ी माल बिना किसी लिखा पढ़ी के पास कर दो रातों रात माला माल बन जाओगे किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा। सब कुछ आपके ही तो हाथ में है। समुन्दर से एक गिलास पानी निकल जायेगा तो क्या होगा। आपसे पहले जो साहब थे वो तो बहुत अच्छे थे। कितना सारा पैसा खुद भी कमाया। और हमारा भी भला किया। अभी तो बहुत बड़े आदमी बन गये है। लेकिन आप...........''
''देखिये ठेकेदार जी इस दुनिया में विश्वास नाम की जो चीज है वो यदि बनी रहे तो कहीं ज्यादा अच्छा होगा। हमारे ऊपर कितने लोगों ने विश्वास किया। नीचे से लेकर ऊपर तक सारे अधिकारी। ये तो अप्रत्यक्ष आत्मा का हनन होगा। लेकिन समाज पर इसका प्रत्यक्ष प्रभाव कैसे पड़ेगा। पता है आपको ?''
''साहब आप समाज के चक्कर में काहे को पड़ रहे हो। अपनी सोचो अपनी .......।''
''अपनी सोचने के चक्कर में आज देख रहे हो न आपका बेटा भी आप पर विश्वास नहीं करता होगा। एक व्यक्ति का महल बन गया तो हजारों लोगों का घर उजड़ गया। एक बच्चे को आराम प्रदान करने के लिए सैकड़ों बच्चों की हंसी छीन ली। आज तुम मुझको दोगे, कल कोई मुझसे लेगा, कोई उससे लेगा। ये चक्र चलता जायेगा। एक दिन हर एक आदमी घूसखोर हो जायेगा। फिर कौन किस पर विश्वास करेगा। बाद में सबका भार धरती से जुड़े लोगों पर होगा। अप्रत्यक्ष रूप से जिसके संतुलन के लिए सरकार अपना सारा भार किसानों पर डालेगी। खाओगे तुम मरेंगे वो। लेकिन एक दिन ऐसा आयेगा सब के सब परेशान रहोगे। हर आदमी धोखे में जियेगा।''
''साहब आप काहे को इतना लम्बा खींच रहे हो। काम की बात करो।''
''जी नहीं हमें किसी भी हाल में ये मंजूर नहीं। आप खुश रहें या नाराज।''
''एक बात कहूं साहब जी, आप बहुत ही बेवकूफ हो, दिमाग नहीं है आपके।''
''हां मुझे पता है लेकिन ये तो अपने अपने दृष्टिकोण की बात है कि तुम्हारी नजर में तुम सही हो, हमारी नजर में हम। तुम आधुनिक और स्वार्थवादी हो और हम आदर्शवादी है। अब बेवकूफ कौन है ये अपनी आत्मा से अकेले में पूछो। इस स्वार्थ की दीवार से बाहर निकलकर कि क्या सही है और क्या गलत। धन्यवाद!''
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-उमेश मौर्य
सराय, भाईं, सुलतानपुर
उत्तर प्रदेश,
भारत
achcha bishya hai dhanyabad
जवाब देंहटाएंकमलेश जी | आपका बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंकमलेश जी | आपका बहुत बहुत आभार |
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