गुणशेखर पर नए साल पर ====== सर्दी के संताप को ,सौ-सौ कोड़े मार. नए साल पर लिखे हैं,दोहे फिर इस बार. मँहगाई के भार को, गाड़ी सकी न झेल. दो...
गुणशेखर
पर नए साल पर
======
सर्दी के संताप को ,सौ-सौ कोड़े मार.
नए साल पर लिखे हैं,दोहे फिर इस बार.
मँहगाई के भार को, गाड़ी सकी न झेल.
दोनों के दोनों हुए,ब्रेक अचानक फेल..
नए साल है 'आपसे',अनुनय और गुहार.
सह न सकेगी कमर अब,मँहगाई की मार..
कोई न भटके ठंड में, बच्चा कहीं उघार.
नए साल का जश्न भी,तब होगा साकार..
नए साल पर 'आपका,'करने को सम्मान.
खड़ी नहाई रश्मियाँ,लेकर कुमकुम,पान..
छाया चरों ओर है , हर्ष, हर्ष ही हर्ष .
शुभ हो आना 'आपका',हे प्यारे नव वर्ष..
निकलें तो निकलें भला, कैसे फर्द उघार.
बैठे सूरज देवता, कम्बल लिए उधार..
सूरज को मस्ती चढी,देख सामने सर्द.
कुहरे के कनटोप में ,भर-भर मारे बर्फ..
-डॉ.गुणशेखर
------------------------------.
राजेश कुमार मिश्र
स्मृतियाँ
प्रियवर, कैसे भूल सकेंगे
साथ बिताए सुखद पलों को,
द्रवित हृदय, भीगे नयनों संग
फिर भी आगे होगा बढ़ना।
जीवन सदा रहे आलोकित
पथ को सुगम प्रभु तुम करना,
बाधाएँ सारी दम तोड़ें
जीवन सदा खुशी से भरना।
तुमसे सीखा है हम सबने
सदा समय की कीमत करना,
ओजस्वी वाणी के दम पर
मन में विश्वासों को भरना।
कर्मठता की खुद मशाल बन
जीवन-पथ आलोकित करना,
शीतलता का मार्ग छोड़कर
रवि का ताप बदन पर सहना।
अडिग, अटल, निर्भीक सदा बन
तूफ़ानों से बढ़ कर लड़ना,
कैसी भी मुश्किल हो आगे
धैर्य सदा रख आगे बढ़ना।
कोई सीख सके तो सीखे
सपनों का सौदागर बनना,
सपनों का फिर महल बनाकर
मेहनत के रंगों से भरना।
हम चाहेंगे सदा बहे यह
ज्ञान-सुधा का अविरल झरना,
सीख तुम्हारी दिल में रखकर
बच्चे सीखें आगे बढ़ना।
हमें मिटाना मत इस दिल से
सदा प्रेम यह कायम रखना,
बनकर अमर ज्ञान की ज्योति
सदा-सदा इस घट में रहना।
रचनाकार – डॉ0 राजेश कुमार मिश्र
हिंदी विभागाध्यक्ष, दि आसाम वैली स्कूल
-------------
विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
" हाइकु "
----------
राजनीति
राह का कीचड़
पत्थर ना मार
नेता
झूठ के पुलिन्दे
शर्मसार बन्दे
सड़क निर्माण
चिपका रहे ठेकेदार
रावड़ी से कान
मिलावट
जन-जन पर गाज
लालच का राज
बढते साधन
सिकुड़ती सड़क
चले बेधड़क
ढूँढे़ प्यार
कसाई की दुकान
पगलाया मन
झर गये पत्ते
ठूँठ सा वृक्ष
आने को बसंत
पिघला झूठ
सच का ताप
सामने 'आप'
झूठ का पहाड़
सच मूषक संगदिल
बनाया बिल
दिखावटी संसार
पैसों की दरकार
रिश्ते बने व्यापार
विद्यालय
शिक्षा से दूर
पोषाहार पास
सरकारी स्कूल
पास का विश्वास
शिक्षा हुई हताश
मन की पीड़ा
करें उजागर
छलके गागर
गीत क्यों गाता
बाद दुख के
सुख जो आता
बचपन दूर
मदरसा पास
कैसी आश ?
चेहरे पे मुस्कराहट
खुशी की आहट
बरसी मावठ
हंस का जोड़ा
नाले के पार
उत्तम विचार
'कवि' विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
कर्मचारी कालोनी , गंगापुर सिटी,
(स०मा०)322201 राज0
-------------
देवेन्द्र सुथार
दुनिया का सम्राट
दुनिया का सम्राट यहाँ
भारत देश हमारा है।
सब देशोँ का सिर ताज
हमेँ प्राणोँ से भी प्यारा है।
यहां गंगा का पावन प्रवाह
गाय यहां गो माता है।
हे त्रषियोँ की स्वणिम तपोभूमि
यह जग की शांति प्रदाता है।
मिटे आंतक की काली रेखा
बहे एकता की धारा सम्पूण विशव मेँ
जगत हिन्द में अंकुरित है भाई चारा
देवेन्द्र सुथार ,बागरा (जालोर) राज
===============
अमित कुमार गौतम “स्वतंत्र”
बीते हुए बचपन
आओ सुनायें,
बीते हुए कल।
कितने लम्हों को छोड़ा है,
ये आने वाला कल॥
वे छोटी सी झोपड़ी।
अधूरा सा महल॥
वो आती थी आंधी।
बरसता था पानी॥
आती है यादें।
बचपन की कहानी।
सुनाती थी दादी।
एक राजा था एक रानी॥
आओ सुनायें .........................................................॥
वे दिन याद आते हैं।
मुझको अभी भी॥
उन गलियों का मैं।
नन्हा सा सितारा था॥
चलते हुए राही का।
नन्हा सा यारा था॥
आओ सुनायें ..........................................................॥
मिट्टी से खेलता था।
बनाता उन्हीं का गुड्डा॥
करता उन्हीं से।
सातो जन्म निभाने का वादा॥
इस तरह गुजरती थी।
यहां के सारे दिन-रात॥
आओ सुनायें .........................................................॥
अमित कुमार गौतम “स्वतंत्र”
ग्राम- रामगढ़ न. -2. तहसील गोपदबनास जिला सीधी (म0प्र0) 486661
==================
सविता मिश्रा
1...बेटा तू क्या समझेगा
=======================
बेटा तू क्या समझेगा कभी माँ की वेदना
तू बेटा है अभी, कभी बाप बनेगा पर माँ नहीं बन पायेगा |
बिन माँ बने कैसे समझेगा माँ की भावनाएं
कैसे उसके दर्द को महसूस करेगा |
ढ़ेर सारी तकलीफ सह जन्म दिया उसने
हजारों तकलीफों को झेलते किया था बड़ा उसने |
जब वही अकाल ही काल के गर्त में समां जाता है
कितना कष्ट होता है तू क्या समझेगा |
आँख से पानी नहीं खून बहता है
दिल भी पल-पल हर क्षण रोता है |
दिखें तुम्हें अश्रु भले ही ना पर
आँखे भर आती है हर क्षण याद कर वह लम्हां |
शरीर क्या वह लाश बन रह जाती है
तेरे लिए ही बस सब कुछ सह जाती है |
बेटा तू क्या समझेगा कभी माँ की बेदना
माँ को बहुत कुछ पड़ता है सहना ..बहुत ही सहना ....सविता मिश्रा
2....प्यार के बजाय अंगार दिल में है भरा
==============================
प्यार के बजाय अंगार दिल में है भरा हमारे ,
अपने देश के प्रति सम्मान दिल में है भरा हमारे |
आँख उठा कर जो देखे कोई दुश्मन इसकी तरफ ,
आँख में जा पड़े हम उनके शोला बन चौतरफा |
देश के लिए मर मिटने का जूनून था दिल में हमारे ,
देश प्रेम में आ फांसी के फंदे को भी चूम लिया हमने |
पर आज देश की देख यह हालत गर्व के बजाय अफ़सोस है ,
जिसके लिए मर मिटे हम वह हमें ही भूल मोहपाश में है |
जिस देश के लिए हमने हंसते-हंसते खायी थी ,
सीने पर अपने गोलियाँ झूमे थे फांसी के फंदे पर भी |
उसी देश को बेच खा रहे है यहाँ के नेता ,
क्यों देश-भक्ति के बजाय भर गयी है इनमें इतनी अधिक लोलुपता |
प्यार के बजाय अंगार दिल में है भरा हमारे ,
कही ऐसा ना हो कि कब्र से भी उठ जला दे हम तुमको |
3.....वर्ना एक दिन पछताओगे
====================
चैन से जीने के लिए जो सहनशीलता चाहिए
वह तो तुम में है ही नहीं तो कैसे जिओगे
तुम तो चाहते हो कि घर वाली बस
घर में पड़ी रहे एक वस्तु की तरह
ना बोले कुछ भी मूक-बधिर हो जाए
तुम गुलछर्रे उड़ाओ बाहर
पी-पा घर भी लाओ
ना बोले तो वह नाको चने चबवाओ
तुम चाहते हो हर वक्त अपनी मनमानी करो
घर बाहर रासलीला करो
और पत्नियों से कहो तुम मौन रहो
एक कोने में जैसे पड़ी हो बस यु ही पड़ी रहो |
पत्निया व्रत रहती है कि तुम्हारी उम्र बढे
तुम तो वह भी नहीं कर सकते
चाहते हो जल्दी मरे दूजी ला बैठाये
तुम्हे तो ना बच्चों की फिक्र है ना पत्नी की
फिर भी कहते फिरते हो कि चैन से नहीं जीते हो
क्या कहे ................
पत्निया ने ही सर आँख चढ़ा रक्खा है
वर्ना सच में नहीं जी पाते चैन से
जैसे नहीं जीने देते पत्नियों को चैन से
खुद भी उसी तरह बेचैन रहते जैसे
पत्निया तुम्हारे लिए रहती है हर वक्त
ना समय से भोजन पाते ना कोई ख्याल रखता
हर चीज तुम्हे तुम्हारे हाथ में ले आ देता प्यार से
तुम्हारे घर लौटने की राह देखता
घर बाहर तुम्हारी लाठी बन तुम्हें
निकम्मा कर दिया है पत्नियों ने ही
पत्नियों के कारण ही सम्मान पाते हो इहलोक और परलोक में भी
फिर भी उन्ही को सरेआम यु कह बदनाम करते हो |
सविता की सुन लो यह आवाज ना यु समझो
नारियो को घर की सज्जा का सामान
वर्ना एक दिन पछताओगे जब नारी
दुर्गा रूप धर तुमसे लेने लगेगी इंतकाम |
+++ सविता मिश्रा +++
4....भय बिन प्रीती कहां
================
कितनी बार बुलाया हमने प्रभु तुम ना आयें
कितनों ने हम पर सितम ढाएं पर तुम ना आयें|
चिखतें-चिल्लातें रहें हम पर प्रभु तुम ना आयें
कैसे द्रोपदी की एक पुकार पर तुम दौड़े आये थे|
इस युग में क्या तुम भी डर गयें जो ना आयें
हर युग में स्त्री का अस्तित्व क्यों हनन करवाएं|
युग दर युग यह अत्याचार क्यों बढ़ता जाता है
पहले था चिरहरण अब वहशी दरिंदा बन जाता है|
उस युग में बस चिरहरण कर दुश्सासन ने लाज लुटा
इस युग में प्रभु देखो मानव गिद्ध बन बैठा|
हमको देखो प्रभु वह नोंच-खसोट रहा
हम बहुत चीखे-चिल्लाएं पर तू बैठा ही रहा|
हमारी यह दशा देख भी तुम क्यों ना अकुलायें
क्यों नहीं दुष्टों पर अपना सुदर्शन चक्र चलायें|
लाज लुटती रही हमारी मानव बहशी हो गया
देखों ना प्रभु हमारी इज्जत को तार-तार कर गया|
अब तो जब तक सांस रहेगी तुझको ही कोसेगें
बेटी क्यों बनाया हमको यही बात बस पूछेगें|
बनाया तो बनाया पर ऐसे कमजोर क्यों बनाया
आठ-दस को मार गिराये ऐसी दुर्गा क्यों नहीं बनाया|
जब तुझे मालुम था तू भी डरकर नहीं आएगा
हमें शक्ति देता जिससे तो अपने रक्षार्थ कर पातें|
वह नारी बहुत किस्मत वाली है जिन पर दरिंदो की नजर नहीं पड़ती
कुछ ऐसी किस्मत सभी को देता तो बता भला तेरा क्या जाता|
तू आ नहीं सकता था डर गया था मालूम है हमें
बस तू हमें ही शक्ति दे दे यही प्रार्थना करतें है तन-मन से|
हमारी शक्ति देख फिर हम क्या-क्या नहीं करतें है
गन्दी नजर से देखने वालों की आँख नहीं निकाल लेतें है|
गलत हरकत पर हाथ काट मुहं काला करतें
कोई नजर उठा ना देखता हमको हम यूँ शान से चलतें|
अदब से नजरें झुक जाती नारी के सम्मान में
भय बिन प्रीती नहीं होती है प्रभु आजकल इस जहां में|...सविता मिश्रा
.5.......गुरूर मत करना .....
========================
गुरुर था खुद पर लालाहतें थे पेड़ों की हर शाखाओं पर
देख हमारी सुन्दरता जब मोहित होतें लोग तो खूब इतराते थे
गहरे हरे हलके हरे में थे सुन्दर पर ताम्रपत्र कह जब देखते लोग
तो गर्व से सातवें आसमान पर खुद को पातें थे
सब तब अपने ही साथी क्षुद्र नजर आतें थे
बड़ा घमंड था हमें अपने रंग रूप पर
पानी की बूंदों को भी नहीं ठहरने देते तनिक देर भी
कि भार से कही अपनी कोमलता पर आंच ना आ जाएँ
तेज हवाओं को देख छुप जाते गहरे पत्तों के बीच
हवाएं बंद होतें ही हम उन्हें ही आँख दिखाते थे
पर एक दिन वह भी आया इतराना अपना कम हुआ
हम भी हम गाढे हरे रंग में बदल गए थे
कुछ दिन पहले जो गाढे रंग के पत्ते गिरे थे
उनकी दशा देख अपने पर क्षोभ हो रहा था
खुद पर खूब इतराएँ भाव ना दिए किसी को
आज खुद को भी उसी हाल में सोच भी काँप रहें हैं
जो अब इतरा कर मुहं हम पर बिचका रहें हैं
हम अब उन्ही को शिक्षाप्रद किस्से अब सुना रहें हैं
एक दिन वह भी आ गया हम भी शाखा से गिर पड़े
जमीन की गर्द में मिलतें मिलतें खुश हैं कि किसी को सिख दे गएँ
घमंड में जो चूर अक्सर रहता हैं
उसके चूर चूर होने में देर ही कितनी लगती हैं| सविता मिश्रा
============
चन्द्र कान्त ‘रवि’
वो लड़की
वो जिसके सांसो की खुशबू पुरे गुलशन को महकाती थी
वो जिसकी चहक से हर चिड़िया खुद अपनी चहक चुराती थी
वो जिसकी चाल को देख देख हर हिरनी भी शरमाती थी
वो जिसकी पायल की रुनझुन खुद एक संगीत हो जाती थी
वो जिसके होंठों के मकरंद को भंवरे चोरी को ललचाते थे
वो जब चलती थी सब चलते थे वो थमती सब थम जाते थे
वो जिसकी करधनी की आवाज से सब मदहोश हो जाते थे
वो जिसके नयनो के आंसू पुरे शहर में बारिश लाते थे
वो हंसती थी सब हंसते थे वो जब रोती थी सब रोते थे
वो गुमसुम अगर हुई कभी वो सब अपनी सुधबुध खोते थे
ऐसी अद्भुत लड़की की यह सबसे अलग कहानी है
वो लड़की पागल नहीं है कोई वो लड़की मेरी दीवानी है.
वो जो बचपन से मेरे सामने रही सदा शरमाई सी
कुछ घबराई कुछ सकुचाई और थोड़ा सा लजाई सी
वो जिसको हाथ लगाने पर वो पूरा सिहर सा जाती थी
कानो में मेरी आवाज पड़े तो वो वही ठहर सा जाती थी
वो मेरा हाथ पकड़ के कहना चलो अपने घर ले जाऊं मैं
साथ चलो तुम घर को मेरे अम्मा बाबा से मिलवाऊं मैं
मैं अपनी गरीबी की वजह से कहता रहा हर बार नहीं
एक अमीर और गरीब का मेल करता समाज स्वीकार नहीं
मैं हूँ गलियों का राजा वो महलों की महारानी है
वो लड़की पागल नहीं है कोई वो लड़की मेरी दीवानी है.
वो जिसने मेरी खातिर सारे सपने भुला दिए
एक गैर का हाथ जो थामा फिर सारे अपने भुला दिए
वो जिसने मेरी खातिर अपना घर तक छोड़ दिया
काँटों भरी राह चुनी फूलों का बिस्तर छोड़ दिया
वो जिसने मेरी खातिर भाई बहन तक त्याग दिए
सूत जुट के कपडे स्वीकारे रेशमी पैरहन त्याग दिए
वो जिसने मेरी खातिर अपने जीवन को जीवन न माना ‘
मेरे जीवन की हर उलझन को अपनी है उलझन जाना
ऐसी लड़की पर अब कोई भी इलज़ाम लगना बेमानी है
वो लड़की पागल नहीं है कोई वो लड़की मेरी दीवानी है.
चन्द्र कान्त बन्सल (09453729881)
निकट विद्या भवन, कृष्णा नगर कानपूर रोड लखनऊ
=========
चादर
शशांक मिश्र भारती
सर्दी के कठोर मौसम में
झूम रहा है
एक झाड़ी के मध्य
मग्न हुआ मेरा मन,
देख रहा हूं
हिम से ढके उस मैदान को।
मैं-
अकेला दुखियों का प्रिय
शोक-सन्ताप से दूर
इस मैदान में
बहाता नहीं आंसू
व्यर्थ के,
न सोचता हूं आगे की
और -
न बीते अतीत की ,
देख रहा हूं
हिमावरण से निर्मित
उस श्वेत चादर को।
शीतलता का स्पर्श
आज सुबह से
छाया था कुहासा
मेघाच्छन्न आकाश से
छंटने लगी थी धुंध की आशा,
सर-सराती हुई
कंप-कंपाती हुई
कट-कट कर दांत बजवाती
चल रही थी मन्द-मन्द हवा।
शीत का आवेग
शरीर में प्रवेश
करा रहा था एक नूतन अनुभूति
आने वाली नयी ऋतु की प्रतिभूति,
मग्न थे सभी जन
मुग्ध थे मन
मौसम की इस प्रथम भेंट से,
आसमान में छायी
कुहरे की धुन्ध
शीतलता के स्पर्श से।
=================
नीरा सिन्हा
तन्हा नहीं
अकेली तो हॅूं पर तन्हा नहीं
मगरूर आप जैसे के साथ रहना नहीं
गुम रहते है अपने ख्वाब औ दुनिया में आप
क्या करूगीं साथ रहकर जब कुछ कहना नहीं
तकलीफ लाख हो सहलेंगे उफ न करेंगे हम
घरेलू अत्याचार औ उत्पीड़न मगर अब सहना नहीं
आजाद देश में परतंत्र हो गये थे हम
आजादी अजीज है अब इसे खोना नहीं
=============
प्रमोद कुमार सतीश
आओ मिलकर खुशियां बांटे
नई भोर है नया सूर्य है नई किरण है नया उजाला
नई तरंगे नई उमंगे नया जोश है मतवाला
बैर भुला दो, हंस लो गा लो
प्रेम से सबको गले लगा लो
पता नहीं कब बुझ जाएगी
हम सबकी ये जीवन ज्वाला
नई शाम देखी है किसने
कौन हमेशा रहने वाला
आओ मिलकर खुशियां बांटे
सब पहनें समृद्धि माला
प्रमोद कुमार सतीश
109/1 तालपुरा झांसी
==========
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी
- हेप्पी न्यू र्इयर-
कैसे मनाये हम न्यू र्इयर,
हिलने लगी है अपनी चेयर।
पेट्रोल,डीजल बहुत मंहगे हो रहे,
कैसे लगाये गाडी में टाप गियर।
अपनी फिगर की कैसे करे हम केयर,
जब सफेद होने लगे है अपने हेयर।
अर्ज किया है कम्प्यूटर गेलरी से,
दिल है अपना वेरी फेयर।
प्लीज एक बार तो करो लाइक हियर,
ओ मार्इ डियर हेप्पी न्यू र्इयर।।
000
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी
संपादक 'आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी
===========
जगदीश पंकज
अपने को ही पाती लिखकर
खुद ही बैठे बाँच रहे हैं
अपने-अपने रंगमंच पर
कठपुतली से नाच रहे हैं
सम्बोधन के शब्द स्वयं ही
हमने अपने लिए गढ़े हैं
आत्ममुग्धता में औरों के
पत्र अभी तक नहीं पढ़े हैं
अपने ही सब प्रश्न-पत्र हैं
उत्तर भी खुद जांच रहे हैं
सदियों से संतापित भी तो
कुछ अपने ही आस-पास हैं
उनके भी अपने अनुभव हैं
वे भी कुछ तो आम-ख़ास हैं
उनको मिले हाशिये ,उनके
हिस्से टूटे कांच रहे हैं
मात्र आंकड़ों में अंकित है
अपनी-अपनी रामकहानी
पिसते रहे उम्र भर अब तक
पाने को कुछ दाना-पानी
कुछ कर्मों के, कुछ जन्मों के
बंधन झूठी-सांच रहे हैं .
जगदीश पंकज
सोमसदन, 5/41, सेक्टर-2,
राजेंद्र नगर ,साहिबाबाद,
गाज़ियाबाद-201005.
==========
रवि बगोटी
बरसा है पानी प्यार का ;मुझे भीगने दो!
गजल एक सुहानी आज मुझे कहने दो!
आज मिले थे वोह मुझे बड़े अरसे के बाद!
खामोश निगाहों ने कहा की यह खामोशी रहने दो!
रुत है सर्द ;माथे पर क्यूँ है पसीना!
पोछो मत इनको;कहानी जुदाई की इन को कहने दो!
होंठ मुस्कुराते है ;पर आँखें डबडबाती है!
बंद कर लो इन पलकों को ;इन में आज पानी रहने दो
गालों में उतर आई है जो यह बूँदें ;काजल से घुल मिल कर!
खूबसूरत है यह सुरमयी लकीरें ;पोछो मत इनको रहने दो!
तेरी मेरी खामोश मोहब्बत की यह सुरमयी निशानी रहने दो!
एक दुआ आज मेरी कबूल कर ले ऐ मेरे खुदा
तन मन भीग जाये आज "रवि "का पानी इतना बरसने दो!
निकला है आज सितारों के साथ चंचल चाँद कुछ इस तरह !
रोशन हुयी है फिर यह सर्द रात ;दिल-ऐ-अरमान मचलने दो!
रवि बगोटी स.अ.
रा.उ.मा.वि.चौखाल
मूनाकोट पिथौरागढ़
उत्तराखंड
---------------------
डाक्टर चंद जैन "अंकुर "
मैं पूरब का गीत लिखूं
नव वर्ष कि पूर्व साँझ में मैं पूरब का गीत लिखूं
सूरज की पहली किरणों संग मातृ भूमि को नमन करूँ
जब बारह में वक्त ठहरता अर्ध रात्रि में मैं कुछ कहता
मैं का प्याला ओंठों से बोले , मत डूबो पूरब के लोगों
सुर बाला संग भूल न जाना, पैर थिरकता पर ना बहके
घर में कोई राह निँहरे ,गृहबाला के नव यौवन श्रृंगार करूँ
नव वर्ष की पूर्व साँझ में मैं पूरब का गीत लिखूं
सूरज की पहली किरणों संग मातृ भूमि को नमन करूँ
जब कल मंदिर की घंटी और शिवालय ॐ उचारे
मस्जिद से आज़ान पुकारे और नबी का गीत कहे
चर्च पादरी और गुरुद्वारा से गुरु बानी भी गूंज उठे
मातृ भूमि से बड़ा न कोई सब धर्मों का सार कहूं
नव वर्ष की पूर्व साँझ में मैं पूरब का गीत लिखूं
सूरज की पहली किरणों संग मातृ भूमि को नमन करूँ
जब कल रक्तिम होगा आकाश सुबह का और पखेरू चहकेंगे
मातृ भूमि का कण कण रज स्वर्ण कलश सा दहकेंगे
जब पहली किरणें सूरज की, पलकों को छू कर जायेंगे
नव युग का निर्माण भारती हम सब मिल मन मीत लिखूं
नव वर्ष की पूर्व साँझ में मैं पूरब का गीत लिखूं
सूरज की पहली किरणों संग मातृ भूमि को नमन करूँ
अब बंद करो, बहुत हो गया बारूद और रक्तों का खेल
करो विज्ञान सृजन जो भारत का निर्माण करे
और बाजारी लोगों से अब राष्ट्र को मुक्त करों
मातृ भूमि के मतवालों, ओज़ से माँ का गौरव गान रचो
नव वर्ष की पूर्व साँझ में मैं पूरब का गीत लिखूं
सूरज की पहली किरणों संग मातृ भूमि को नमन करूँ
--------
देवेन्द्रसिंह राठौड़(भिनाय)
शहीदों तुमको नमन बार-बार...,शहीदों तुमको नमन बार-बार..।
देश के खातिर तुमने निछावर,देश के खातिर तुमने निछावर..
सपने किये है हजार,शहीदों तुमको नमन बार-बार।
जख्म लगे है जिस्म पे ऐसे,जैसे सजे है गहने...।
जैसे सजे है गहने ...।
कफन बाँध के ऐसे निकले,जैसे कपड़े पहने...।
जैसे कपड़े पहने...।
फूल लगे बन्दूक की गोली..फूल लगे बन्दूक की गोली,
माला लगे तलवार,शहीदों तुमको नमन बार-बार...।
खुद को खाक किया तुमने जब,रोशन है तब दिवाली...।
रोशन है तब दिवाली...।
खून की होली तुमने खेली, तब है इतनी खुशहाली..।
तब है इतनी खुशहाली...।
वार दी हर-इक बून्द लहू की..,वार दी हर-इक बून्द लहू की..,
सह गये तुम हर वार,शहीदों तुमको नमन बार-बार।
देश के खातिर तुमने निछावर,देश की खातिर तुमने निछावर,
सपने किये है हजार,शहीदों तुमको नमन बार-बार।
===============
राजीव आनंद
गरीबों की भूख से पुश्तैनी प्रीत है
जहां का अधिकांश शासक अपराधी है
उस देश की किस्मत में लिखी बर्बादी है
शासकों ने गरीबों पर स्वार्थ का बोझ इस कदर लदाया है
गरीब फकत रोटी जुटाने में जमीन तक झूक आया है
पसीने की तरह गरीबों ने लहू बहाया है
दो जून की रोटी फिर भी नहीं खा पाया है
कुर्सी के लिए नेताओं ने सामाजिक समरसता मिटाया है
फकत भाई को भाई से दुश्मन की तरह लड़ाया है
भोग-विलास ही फकत सता का मकसद है
पार्षद नोट लुटा रहा बनना जो सांसद है
अमीर बनते शासक बेसूरताल गाते यह गीत है
गरीबों की भूख से पुश्तैनी प्रीत है
===============
अंजली अग्रवाल
मां
वो एक इंसान जो आपको आपसे मिलाती है,
जो आपको आपकी पसंद नापसंद बताती है,
जिसे आपको तकलीफ में देखकर रोना आता है,
जिसके होठों पर आपकी खुशी नजर आती है,
जिसके लिये आप ही जिन्दगी हो,
जो हर दुआ में आपकी खुशी मांगती है,
चाहे पूरी दुनिया आपका साथ छोड़ दे पर वो,
परछाई की तरह आपके साथ चलती है,
वहीं इंसान जिसकी आंखों में ममता और बांहों में जन्नत बसती है,
वही जिसकी जान आप में बसती है,
वो एक इंसान जो आपको इस दुनिया में लाने के लिये इतना दर्द सहती है,
जो आपके बेजुबान होठों को भी समझ जाती है,
जो आपकी बुराईयों को मार कर आपको एक अच्छा इंसान बनाती है,
पहचान गए ना आप
वहीं एक इंसान है - माँ
आप सब जानते है लेकिन
फिर भी हम पूजा उस भगवान की करते हैं,
जो मूर्तियों के रूप में मन्दिर में बसते हैं,
माँ को देवी तो कहते है पर झुकते उस मूर्ति के आगे है,
क्यों हम हमें जिन्दगी देने वाली देवी की जिन्दगी में अन्धेरा कर देते हैं ,
और दिया उस पत्थर के सामने जलाते हैं,
मूर्ख है वो लोग जो अपनी मन्नत मांगने मन्दिर जाते हैं,
एक बार तो अपनी माँ को देवी मानकर देखें इस माँ की ममता में इतनी शक्ति है कि,
आपकी मन्नत पूरी करने के लिये वो देवी भी धरती पर उतर आयेगी,
माँ बरगद की छाँव होती है, एक नयी सुबह होती है,
खुशियों का खजाना होती है, प्यार,ममता,और दया का सागर होती है,
हर घर की नींव होती है, प्यासे के लिये पानी होती है,
जो लोग अपनी माँ को देवी मानते हैं, उन्हें धरती पर ही जन्नत नसीब होती है।
------------------.
अनिल उपहार
मैं नहीं जानता
विचारों की गहराई
असीमित भावों का
विशाल शब्द कोष |
पर हाँ
इतना अहसास आज भी
जिन्दा है
अंतर मन में कहीं
कविता
शब्दों के उच्छ्रंखल आँगन
में
नहीं खेलती
वो पल पल निखरती हैं
सँवरती है तहजीब के लहजे में |
बस् सिखाती है
भाषा में आदमी होने की तमीज |
---------
मनोज परसाई
विषय है बड़ा हर्ष का।
श्री ने सोच लिया है- सत्य अहिंसा और प्रेम के साथ मिल जुलकर स्वागत करुंगी नूतन वर्ष का।
नाचूँगी-गाउँगी लोहिड़ी-पोंगल और ईद पर खुशियाँ मनाउँगी।
होली पर मस्त पलाश का, केसरिया रंग लगाउँगी।
घर घर में जन्में राम, इसी कामना के साथ मिल जुलकर रामनवमी पर जन्मोत्सव मनाउँगी।
महावीर जयंती पर सारी दुनिया में सत्य-अहिंसा, प्रेम और शांति का अलख जगाऊँगी।
मस्त होकर इठलाऊँगी और गुडफ्राइडे पर मिलजुलकर जश्न मनाऊँगी।
बुद्धिमान गणेश ने श्री की सोच को भाँप लिया-
और खुश होकर बोला-
वैशाखी पर सारी दुनिया के साथ मिल जुलकर भाँगड़ा नृत्य करेंगे।
फिर रक्षाबंधन पर बंधवायेंगे-कलाई पर धागा बहिनों के प्यार और स्नेह का।
उसके बाद रमजान आयेगा-जो अमन चैन और शाँति का पैगाम लायेगा।
इस पैगाम से रम जायेगा हर इंसान रमजान के महीने में।
इस वर्ष की दीवाली पर सत्य-अहिंसा, प्रेम और शांति के दीपक सारी दुनिया में जलायेंगे।
एक दूसरे के प्रति-त्याग और बलिदान की भावना के साथ, मिल-जुलकर मोहर्रम मनायेंगे।
गुरूनानक के संदेश- गुरूनानक के पर्व पर घरों घर पहुँचायेंगे,
और सान्ताक्लॉज बनकर क्रिसमस की बधाईयाँ, ढेर सारी खुशियाँ दुनिया को उपहार में दिलवायेंगें।
हाँ जी श्री-गणेश इस बार-
साल का पहला दिन नहीं,
पूरा का पूरा नया साल मनायेंगे।
हे खुदा, हे भगवान, हे गुरूनानक, हे यीशु महान
तू ऐसा दे-
वरदान कि श्री गणेश की सोच का हो जाए हर इंसान।
इस बार का नया साल, ऐसा ही मनवा दे।
वर्ष 2014 का हर दिन, इतिहास में दर्ज करवा दे॥
---------
एक से बढ़कर एक रचनाएं...बहुत ही शानदार और दमदार प्रस्तुति...बधाई....
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो
सुभानअल्लाह !
जवाब देंहटाएंhaiku 5-7-5 aksharon ki tripadi ko kahte hai.
जवाब देंहटाएंbahut bahut abhar apka ....namste
जवाब देंहटाएंham soche the aap chunte hoge kai me se aapne to saari prakashit kar
di iske liye dil se shukriya
baut achhi kavitaye hai!
जवाब देंहटाएंये एक सार्थक और सराहनीय प्रयास है आप माँ शारदे के भंडार कों इसी तरह भरते रहें ,आपके लिए अनेक मंगल कामनाये |--------------------------------अनिल उपहार (पिडावा जिला झालावाड )
जवाब देंहटाएंराजस्थान
Sabhi kavitayen bahut achchhi hai anjali agrawal ki rachna man ko chhu gyi
जवाब देंहटाएंसारी कवितायेँ पसंद आयइ। आप नए लेखकों को प्रोत्साहित करतें हैं ये बहुत बढ़ी बात है। बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंविजय अरोड़ा फरीदाबाद