कुछ व्यंग्य रचनाएं साहित्य सृजन का उद्देश्य अपनी प्रकाशित कहानियों की प्रशंसा सुनकर लेखक सुखद महसूस कर रहा था․ पाठकों से प्रशंसा मिलन...
कुछ व्यंग्य रचनाएं
साहित्य सृजन का उद्देश्य
अपनी प्रकाशित कहानियों की प्रशंसा सुनकर लेखक सुखद महसूस कर रहा था․ पाठकों से प्रशंसा मिलना सुखद अहसास तो होता ही है․ आत्ममुग्धता में लेखक जी रहा था कि उसे एक पाठक मिला, जो पहले तो उसकी एक कहानी की प्रशंसा किया और सीधा एक प्रश्न लेखक से किया कि किस उद्देश्य से आप साहित्य सृजन करते है ?
लेखक अपनी प्रशंसा से खुश था परंतु हठात प्रश्न सुनकर चौंका․
लेखक ने पूछा, आप कौन है, मुझे बताएगें ?
पाठक ने उतर दिया, मैं आपके कहानियों का एक पाठक हूं इसलिए मुझे यह अधिकार है कि मैं आपके साहित्य सृजन का उद्देश्य जान संकू․
लेखक सोचा अब तो इसके प्रश्न का उतर देना ही पड़ेगा․ लेखक ने कहा, साहित्य सृजन का उद्देश्य मनुष्य को अच्छा बनाना है․
पाठक ने पुनः प्रश्न किया, यह उतर आपको सतही और अधूरी नहीं लगती ?
लेखक को क्रोध आने लगा था․ लेखक ने कहा, इसमें सतही और अधूरा क्या है ? मनुष्य को अच्छा बनाने के लिए ही साहित्य सृजित किया जाता रहा है․
पाठक बिना बिचलित हुए लेखक से पूछा, क्या साहित्य सृजन का उद्देश्य आत्मा को पुनजाग्रित करना नहीं है, जो आज बेजार से हो गए है ?
लेखक को अब महसूस होने लगा था कि उसे पाठक के रूप में एक दूसरा लेखक मिल गया है जो उसके कहानियों के प्रशंसा से प्राप्त सुखद आनंद को मिट्टी में मिला कर रहेगा․ लेखक बड़बड़ाया․ अच्छा अब मैं चलता हॅूं, लेखक ने कहा और चलने को अग्रसर हो गया․
पाठक कहां पीछा छोड़ने वाला था, उसने जाते हुए लेखक को पीछे से पुकारते हुए फिर प्रश्न उछाला, आप क्यों लिखते हैं ?
लेखक से रहा नहीं गया, लेखक ने मुड़कर जवाब दिया, इसलिए कि पाठकों में अच्छी भावनाएं जागृत हों․
पाठक ने पुनः प्रश्न किया कि अच्छी भावनाएं जाग्रत कहां से होगी, आपने तो पाठकों के जीवन के बारे में लिख डाला है․ आपके शब्दों में कल्पना की वह शक्ति कहां है जो जीवन को सुधारने के लिए आवश्यक है ? आपने तो कोई नयी चीज पाठकों को नहीं दिया बल्कि प्राचीन मान्यताओं को भी इतना तोड़-मरोड़ के लिखा कि कोई स्पष्ट तस्वीर सामने नहीं आती․ तब आपकी रचना किस मरज की दवा है और आपके लिखने की क्या सार्थकता रह जाती है ?
आज का एक युवा विद्रोही
वैसे तो आज के युवा में सिर्फ पैसे बनाने और आराम तलब जिंदगी बिताने की ही लालसा नजर आती है फिर भी कॉलेज के दिनों से ही अपने बाल-दाढ़ी बढ़ा कर अपने नाम चंद्रशेखर के आगे ‘विद्राही' लगा कर यह आज का युवा विद्राही बन गया था․ कॉलंज कैंटीन, शहर के नुक्कड़ की पान-चाय की दुकान पर मार्क्स, लेनिन, चेग्वेवारा जिंदाबाद के नारे लगाता रहता था․ लोगों के बीच विद्राही तेवर वाले युवा की छवि बना चुका था चंद्रशेखर विद्राही․ आज के युवाओं में विद्रोही एक अपवाद था․
चंद्रशेखर विद्रोही को एक लकड़ी से प्रेम हो गया, पता करने पर मालूम चला कि शिल्पा का सरनेम पांड़े है, बस क्या था विद्रोह कर बैठा․ प्रेम से विद्रोह, कहने लगा शादी वो शिल्पा पांड़े से नहीं कर सकता․ एक उंची जाति के लड़के को नीची जाति की लड़की से ब्याह करना चाहिए तभी तो बाप-दादा की दकियानूसी परंपरा टूटेगी․ शिल्पा पांड़े ने लाख समझाया कि वह उसके बिना नहीं रह सकती पर विद्रोही तेवर रखने वाला चंद्रशेखर ने एक न सुनी․ प्रेम को भी अपने विद्रोही विचार के बलिवेदी पर कुर्बान कर दिया․ लेनिन जिंदाबाद․
विद्रोही अपने पिता को बुर्जआ की श्रेणी में रखता और कहता जब मेरे पिता मरेंगे तो श्राद्ध संबंधी सभी परंपराओं को तोड़ दूंगा, पुरानी परंपराओं का नाश कर दूंगा․ मार्क्स जिंदाबाद․
उसके विद्राही तेवर से खुश होकर कई राजनीतिक पार्टियां उसे अपने-अपने यूथविंग में आने का न्यौता दे रहे थे पर ‘विद्रोही' था कि सभी राजनीतिक पार्टियों से विद्रोह कर बैठा था․ उसका कहना था कि वो वैसी पार्टी ज्वायन नहीं कर सकता जिसमें एक भी आपराधिक छवि के नेता है, चेग्वेवारा जिंदाबाद․
अपने पिता को रूढ़िवादी, दकियानूसी कहते-कहते विद्रोही एक ऐसी लड़की से ब्याह कर लिया जिसे समाज नीच जाति का मानता था․ विद्रोही का अपने घर घुसने पर उसके पिता ने पाबंदी लगा दिया, जायदाद से बेदखल कर दिया, विद्रोही को कोई परवाह नहीं थी․ वह अपनी नवब्याहता को लेकर अपने एक मित्र के यहां रहने चला गया और अपने मित्र को कहा, देख आज मैं समाज के उस परंपरा को तोड़ा है जो तथाकथित उंची जाति के लड़के का ब्याह उंची जाति की लड़की से ही करने की इजाजत देता है, कहानी सम्राट प्रेमचंद जिंदाबाद․
लोकतंत्र के रक्षार्थ
नेताजी भाषण देने ग्रामीण इलाके में पहुंचे, गरीबों की दयनीय दशा देखकर पांच वर्ष में पहली बार उनके अंदर दया का सागर हिलोरें मारने लगा․
भाषण शुरू किया नेताजी ने, भाईयों एवं बहनों, हम जानते है कि आपके घरों में खाने का अन्न नहीं है, रहने को मकान नहीं है, पहनने को कपड़े नहीं है, बिजली नहीं है, पानी नहीं है, फिर भी हम वोट मांगने आए है․ आप सभी जानना चाहेंगे, क्यों ? वो इसलिए भाईयों एवं बहनों कि मतदान करके आपको लोकतंत्र की रक्षा करनी ही होगी, यह आपका राजधर्म है जिसे निभाना आपका कर्तव्य है․
भाषण सुनकर एक बेबस मतदाता ने पूछ ही लिया, नेताजी, ऐसा नहीं लगता आपको कि नेताओं की जमात हम मरे हुए लोगों की लाश तक को चील और गिद्धों की तरह नोंच लेना चाहते हैं ?
नेताजी ने गुस्से में काबू पाते हुए एक भद्दी सी मुस्कुराहट के साथ फिर कहना शुरू किया, आपका गुस्सा जायज है पर जैसे चील और गिद्ध अपने जीवन कर्म का निर्वाह करते है उसी तरह हम भी आपके सेवक होने का धर्म निभाने आए है, इसलिए वोट देकर आप भी अपना राजधर्म का निर्वाह कीजिए․
एक बच्चा से सीधा बूढ़ा हो चुका व्यक्ति ने व्यंग्यात्मक ढ़ंग से भाषण के बीच में बोल पड़ा कि माफ कीजिएगा नेताजी मगर हमलोगों की वर्तमान कुस्थिति के आप ही तो जिम्मेदार है ?
नेताजी के मन में तो आया कि इस बामुश्किल आदमी से लगते व्यक्ति के गाल पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद कर दें, पर चुनाव जीतने का ख्याल आ गया और नेताजी अपने आप को संयमित करते हुए कहा कि आप की बात सर आंखों पर, पर बात ऐसी नहीं है․ रोटी, कपड़ा, और मकान के लिए हमारी सरकार क्या कुछ नहीं करती पर योजनाओं को जमीन पर उतारने का काम नौकरशाहों का है जिन्हें आजकल धनकुबेर कहना चाहिए, सभी अपने-अपने रोटी, कपड़ा और मकान पर योजना मद की राशि लगा देते हैं․ फिर भी तरक्की बहुत हुयी है, आप सभी आजकल दाल-भात के साथ सब्जी भी खाते हैं, जो अब तक सिर्फ अमीर लोग ही खाते थे․ इसलिए आप अगर हमें वोट देंगे तो मैं वादा करता हॅूं कि आप लोगों ;की गरीबी को मिटा दूंगा, ऐसा करने में आप मेरा सहयोग करें और लोकतंत्र की रक्षार्थ मुझे वोट दें․
राजीव आनंद
प्रोफसर कॉलोनी, न्यु बरगंड़ा
गिरिडीह-815301 झारखंड़
दूसरा व्यंग्य अच्छा है , लेखन में आधुनिकता का अभाव है,बीस साल पहले की लेखन शैली है .
जवाब देंहटाएंदृष्टिकोण अपडेट करें.
मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं.amazingmanojuniverse.blogspot.com
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