साहित्य जगत में दलित साहित्य विशेष दर्जा प्राप्त कर लिया है क्योंकि दलित साहित्य स्वान्त सुखाय के वशीभूत होकर नहीं लिखा जाता है। दलि...
साहित्य जगत में दलित साहित्य विशेष दर्जा प्राप्त कर लिया है क्योंकि दलित साहित्य स्वान्त सुखाय के वशीभूत होकर नहीं लिखा जाता है। दलित साहित्य में आत्मवत् से पर का सद्भाव होता है । दलित साहित्य भोगा हुआ यथार्थ होता है,जिसमें मानव वेदना और संवेदना के स्वर सुने जा सकते हैं। दलित साहित्य मानव का उत्थान और मानवता को समृद्ध बनाये रखने का माध्यम है। दलित साहित्य सिर्फ कल्पना के उड़नखटोले पर बैठकर नहीं लिखा जा रहा है। यह साहित्य सच्चाई की कसौटी पर खरा उतरता है। दलित साहित्य का उद्देश्य शिक्षा,मानवीय समानता,सामाजिक,आर्थिक सम्पन्नता और राजनीति में भागीदारी सुनिश्चित करने को भी प्रेरित करता है। दलित साहित्य बहुजन हिताय बहुजन सुखाय और विश्वबन्धुव सद्भाव का द्योतक है। संघर्षरत् जीवन,गरीबी, भूमिहीनता का दंश, छुआदूत, शोषण उत्पीड़न वेदना संवेदना ,तिरस्कार एवं समाजिक बुराईयों को दलित साहित्य प्रमुखता से उठा रहा है। दलित साहित्य को किसी न किसी रूप में पेरियार की प्रेरणा से ऊर्जावान है । डां․तुलसीराम, डा․सोहनपाल सुमनाक्षर, डा․पूरन सिंह, कालीचरण प्रेमी, जयप्रकाश कर्दम, डा․रमा पांचाल,अनीता भारती डां․ओमप्रकाश वाल्मिक, कंवल भारती, भगवानदास, मोहनदास नैमिशराय, कौशल्या बैसन्ती, लक्ष्मण गायकवाड, माताप्रसाद, सूरजपाल, डा․डी․आर․जाटव, श्रवण कुमार, श्योराज सिंह बेचैन, राजमल राज, प्रदीप मौर्य,जी․पी․पचोरिया, आचार्य गुरू प्रसाद, आर․जी․कुरील आदि साहित्यकार अपने लेखन को सभ्य समाज के सामने बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के सद्भव के दृढ़ता से रख रहे हैं, रखने का प्रयास कर रहे हैं। दलित लेखल चाहे वह किसी भी विधा-कहानी, लघुकथा, कविता, उपन्यास में सामने आया है वह ब्राह्मणवाद पर वज्रपात ही किया है।
दलित प्रतिबंधेा/ विरोधों के बीच संघर्षरत् जीने का अभ्यस्त रहा है परन्तु उसकी लेखनी के सामने भारतीय जनमानस ही नहीं विश्वसमुदाय भी उद्वेलित हुआ है। दलित विमर्श करते हुए सामाजिक राजनैतिक एवं साहित्यिक संदर्भ तलाशने पर सामने मुख्य धारा से दूर रहने की छटपटाहट उभर कर सामने आती है जिसके लिये ब्राहमण्वाद ही जिम्मेदार है। ब्राहमणवाद ही तो है जो दलित समुदाय को हाशिये पर रखा जिसके परिणाम स्वरूप भारतीय समाज का बहुत बड़ा हिस्सा दलित/ अछूत घोषित कर दिया गया । यह घोषणा ब्राह्मणवाद के चक्करव्यूह से उपजा जहर ही तो है परन्तु दलित साहित्य ने सदियों से तिरस्कृत दलितों को मुख्य धारा से जोड़ने की अहम् भूमिका निभा रहा है। भारतीय दलित साहित्यिक परिदृश्य में पेरियार ई․वी․रामास्वामी को दलित साहित्य का ज्योर्तिपुंज कहा जा सकता है। ब्राह्मणवाद का प्रतिकार और द्रविड़वाद का शंखनाद करने वाले पेरिया का जन्म 17 सितम्बर 1879 हुआ था। जीव का गुण चेतना से होता है जिस देह में यह चेतना प्रबल रूप से प्रकट हो जाती है,वह नर नरोत्तम हो जाता है। ऐसी ही प्रबल चेतना पेरियार ई․वी․रामास्वामी में थी जिसने विषमतावादी अर्थात बाह्मणवादी को चुनौती दे दिया। पेरियार आधुनिक युग के विज्ञान बोध और तार्किकता के एक ऐसे क्रान्तिकारी विचारक,समाजसुधारक थे जिन्होंने सादियों से उपेक्षित दलित समाज को शिखर पर विराजित कर दिया। दलित और पिछड़े समाज को सम्मान से जीने का और भारतीय समाज में बराबर का अधिकार पाने का मार्गप्रशस्त कर दिया। पेरियार ने दक्षिण भारत की राजनीति से ब्राह्मणवाद की जड़े खोद दिये। तमिलनाडु में पेरियार की परिकल्पना साकार हो चुकी है। पेरियार ने कहा है,
मुझे ईश्वर तथा दूसरे देवी-देवताओं में कोई आस्था नहीं है,शास्त्र-पुराण और उनमें दर्ज-देवी-देवताओं में मेरी कोई आस्था नहीं है क्योंकि वे सारे दोषी है और उनको जलाने तथा नष्ट करने के लिये जनता से अपील करता हूं। यह अमृत वचन ब्राह्मणवाद का प्रतिकार ही तो है। पेरियार के वचन सत्य की कसौटी पर खरे भी है,जो धर्मग्रन्थ आदमी को दुखी बनाने का कारण हो, आदमी को कुत्ते बिल्ली से निम्न स्तर का समझता हो,ऐसे धर्म से देश और समाज का क्या भला हो सकता है। जिस धर्मग्रंथ में लिखा हो - शूद्र ढोल गंवार पशु और नारी ये ताड़न के अधिकारी, क्या ऐसे धर्मग्रन्थ और धर्म के अंधभक्त शूद्र और नारी को मानव होने के सुख की अनूभूति करने देंगे नहीं कभी नहीं। यही बा्रह्मणवाद है जिसका प्रतिकार पेरियार ने किया। इसी प्रतिकार का प्रतिफल है कि आधुनिक युग में शूद्र और नारी को तनिक सम्मान मिल रहा है। पेरियार के कार्य और उपलब्धियां अधिक और बहुयामी है,समाज संस्कृति शिक्षा धर्म राजनीति और प्रशासन सहित जीवन के हर क्षेत्र में व्याप्त है। धर्म के पथ पर अग्रसर होने का प्रथम लक्षण प्रफुल्लित होना है। विषादयुक्त विवादयुक्त होना कट्टरवाद, अनावश्यक पाखण्ड युक्त वातावरण निर्मित करना अथवा वैचारिक भेद पैदा करना नहीं । धर्म का रहस्य आचरण से जाना जाता है । मनुष्य में जो स्वाभाविक बल ही है उसकी अभिव्यक्ति ही धर्म है। धर्म का उद्देश्य मनष्य को सुखी बनाये रखना होता है न कि उसे बिखण्डित कर अपना उल्ल्ूा सीधा करना,सत्ता हासिल करना । मनुष्य में पाशविक,मानवीय और दैवी गुण होते हैं। वह गुण जो व्यक्ति में पशुता के भाव का संचार करता है वह पाप है, जो गुण व्यक्ति में समानता का गुण बढ़ाता है वही पुण्य है । व्यक्ति को पाशविक गुणों पर विजय प्राप्त कर मनुष्य बनना ही मनुष्यता के प्रति न्याय है ।
मनुष्य में जो स्वाभावकि बल है उसकी अभिव्यक्ति ही धर्म है। आज के युग में जहां चारों ओर चोरी डकैती,लूटपाट,आतंकवाद जातिवाद फैला हुआ हैं । ऐसे वातावरण में बात चाहे जितनी बडी से बडी क्यों न की जाये पर चाहत तो ऐशोआराम की चीजें इक्ट्ठा करने और जल्दी से जल्दी अमीर बनने की चाह ने आम आदमी को झकझोर कर रख दिया है । आज के आदमी को धर्म की अफीम की खुराक को तिलांजलि देकर भगवान भगवान बुद्ध के बताये रास्ते पर चलना होगा । धर्म का उद्देश्य तो जीवन को उत्सव बनाना होता है ।सुखी बनाना होता है,जो धर्म आदमी आदमी के बीच दीवार खीचे ,बिखण्डित समाज की स्थापना को बल दे। स्व-धर्मावलम्बियों के बीच नातेदारी की मनाही करे क्या धर्म का उपहास नहीं।
व्यक्ति की आत्मा परमात्मा का अंश है यदि किसी की आत्मा को धर्म की वजह से अथवा अन्य कारणो से दुख पहुंचता है तो निश्चित रूप से इसका एहसास परमात्मा को होगा । धर्म का रहस्य आचरण से जाना जा सकता है,व्यर्थ के मतवादों अथवा आडम्बरो,रूढियों से नहीं ।सत्य आतंकित आंसू बह रहा है । न्याय विवादित होने लगा है। अनाचार जातिवाद, व्यभिचार साम्प्रदायिकता का आतंक बढने लगा है । गुरू और शिष्य का सम्बन्ध ग्राहक और दुकानदार जैसा हो गया है । आदमी आदमियत को भूलता जा रहा है । क्या कोई धर्म ऐसी शिक्षा कभी दे सकता है ? जो दीन है दलित है,उसकी मदद करना, उसे आत्मबल प्रदान करना,उसके हितार्थ कार्य करना ही धर्म है । धर्म तो सद्भावना,समानता का पोषक होता है। सर्वकल्याणकारी और मंगलकारी होता है । धर्म की छावं आदमी को सुखी बनाने का माध्यम है । वर्तमान समय में मानवीय एकता, समानता,सद्भावना और समृध्दि के लिये प्रयास की जरूरत है। वर्तमान का सबसे बड़ा धर्म आदमियत का दर्द ,इस धर्म को निभाने की अत्यन्त आवश्यकता है। पेरियार का मूल उद्देश्य वर्ण और शोषण से मुक्त समाज की स्थापना था। इसी नेक उद्देश्य के कारण पेरियार को आत्म सम्मान आन्दोलन का जनक कहा जाता है। इतना ही नहीं सामाजिक समानता के इस क्रान्तिकारी सन्त को सुकरात और भारत भाग्य विधाता तक कहा गया है। दलित साहित्य के संदर्भ में भी इस महामानव को देखा जाना चाहिये। यकीनन इस महापुरूष ने दलित साहित्य को स्वर्णिम युग की तरफ मोड दिया है।
रामायण काल में भी मानवीय समानता के उद्देश्य से दबे कुचले शिक्षा से वंचित लोगों को शिक्षित करने का प्रयास शम्भुख ऋषि द्वारा किया गया था परन्तु ब्राहमणवाद ने उनकी हत्या राम के हाथों करवा दी गयी थी। शम्भुख ऋषि का हत्या तो हो गयी पर आज भी उनका नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है । मध्यकाल के सन्तों जैसे तुकाराम, नरसी मेहता, गुरूनानक, कबीर और सन्तशिरोमणि सन्तशिरोमणिा रविदास ने सामाजिक समानता का विगुल बजा दिया था। सन्त रविदास ने मन चंगा कठौती में गंगा का उद्घोघ कर आन्तरिक पवित्रता का मर्मस्पर्शी मन्त्र देकर शोषित वर्ग को ऊपर उठाने में बड़ी भूमिका अदा किया था। रविदास ने आत्मानुभमत सत्य का प्रतिपादन कर भक्ति भावना जागृत किया जिससे आत्म कल्याण और भक्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ। रविदास को जातिवाद अथवा ब्राहमणवाद का विरोधी कहा जा सकता है। रविदास ने सामाजिक भेदभाव और उंच-नीच को समाप्त कर परस्पर प्रेम भाई चारे और सौहार्द का संदेश दिया । आधुनिक युग में भी रविदास का संदेश पथप्रदर्श, उद्बोधक और प्रेरणादायी है।
पेरियार अर्थात सम्मानित व्यक्ति, बींसवी सदी के तमिलनाडु के प्रमुख राजनेता एवं समाज सुधारक थे। पेरियार ने रूढि़वादी हिन्दुत्व के विरोध के सिद्धान्त पर जस्टिस पार्टी का गठन किया था । भारतीय शोषित समाज खासकर दक्षिण भारत के शोषित समाज के लोगों की स्थिति को सुधारने में पेरियार अर्थात आधुनिक भारत भाग्य विधाता का नाम गर्व के साथ लिया जाता है। पेरियार औपचारिक शिक्षा प्राप्त कर पैतृक व्यवसाय में लग गये थे। उनके घर में पूजापाठ, भजन-कीर्तन,उपदेश चलता रहता था । वे उपदेशों में कही बातों की प्रमाणिकता पर वे सवाल करते रहते थे। हिन्दू महाकाव्य और पुराणों की विरोधी तथा बेतुका बातों का मजाक बनाने से भी नहीं चूकते थे। बाल विवाह देवदासी प्रथा स्त्रियों तथा दलितों के शोषण के घोर विरोधी थे। वे हिन्दू वर्ण व्यवस्था के बहिष्कार की हिम्मत भी कर दिखाये थे। उन्हें झूठ पसन्द नहीं था,जिसके कारण एक बा्रहमण को गिरफतार करवाकर न्यायालय की मदद किये थे परन्तु पेरियार का यह कार्य उनके पिता को नहीं भाया जिसका उन्हें दण्ड मिला था। इससे कुपित होकर वे घर छोड़कर काशी चले गये थे।काशी में निः शुल्क भोजन में जाने के इच्छा उन्हें अपमानित होना पड़ा फिर क्या आधुनिक सुकरात ने हिन्दुत्व के विरोध की ठान लिये थे।पेरियार ने धर्मानान्तरण तो नहीं किया पर वे नास्तिकता की राह पर चल पड़े जिस राह पर वे सदैव चले । ये बात अलग है कि इस नास्तिक सुकरात को एक मंदिर का न्यासी बनाया गया जिसका पदभार भी वे संभाले।इसके बाद वे नगरपालिका के प्रमुख बनाये गये थे। चक्रवर्ती राजगोपालचारी के कहने पर वे कांग्रेस की सदस्यता भी लिये और जल्दी ही कांग्रेस की तमिलनाडु इकाई के प्रमुख बनाये गये। केरल के कांग्रेस नेताओं के अनुरोध पर वे वाईकांम आन्दोलन का नेत्त्व भी स्वीकार कर लिया था। यह आन्दोलन मंदिरों की ओर जाने वाली सड़कों पर अछूतों के चलने की मनाही को हटाने के लिये कार्य कर रहा था।काग्रेस षरा संचालित शिविर में ब्राहमण प्रशिक्षक द्वारा गैर ब्राहमण के साथ भेदभाव को देखकर कांग्रसे से उनका मोह भंग होने लगा। पेरियार कांग्रेस नेताओं के सामने दलितों शोषितों के लिये आरक्षण की मांग कर बैठे थे जिसे पार्टी ने खारिज कर दिया। आखिर में वे कांग्रेस छोड़ने का फैसला कर लिया। सोवियत रूस के दौर पर उन्हें साम्यवाद की सफलता ने बहुत प्रभावित किया वापस आकर वे आर्थिक साम्यवादी नीति बनाने की घोषणा कर दिये। खैर बाद में किन्हीं कारणोंवश उन्हें अपना विचार बदलना पड़ा था पर इस सुकरात ने अपने को सज की राजनीति से अलग रखकर आजीवन दलितों तथा स्त्रियों की दशा सुधारने का कार्य करता रहा। अन्ततः आधुनिक भारत भाग्य विधाता बनकर गैर ब्राहमणों खासकर शोषितो- दलितों की धड़कन बन गया। पेरियार का कृतित्व और व्यक्तित्व गैर ब्राहमणों और दलित साहित्य के संदर्भ में धरोहर बन चुका है।
आधुनिक युग में मानवतावादी पेरियार ने 1925 आत्मसम्मान आन्दोलन प्रारम्भ कर सत्य साबित कर दिया वे दलितों को उनका हक दिला देंगे। यह आन्दोलन चार दशक से अधिक चला था। इस दौरान दक्षिण भारत में ही नहीं पूरे भारत में समाज सुधार के बड़े कार्य हुए। पेरियार ने अंधविश्वास और रूढि़वादी रीतिरिवाजो अर्थात ब्राहमणवादी रिवाजों के उन्मूलन पर जोर दिया। जाति व्यवस्था पर प्रहार किया। दलितों और स्त्री शिक्षा के लिये आन्दोलित किया। इसी आन्दोलन के दौरान पेरियार कांग्रेस छोड़ जस्टिस पार्टी के नेता बन गये । इसी दौरान उनका मतभेद रामगोपालचारी और अन्ना दुराई से भी हुआ । इसी दौरान पेरियार ने वैकुम सत्याग्रह के माध्यम से वैकुम मंदिर के पट अछूतों के लिये खुलवाने में कामयाब रहे हैं। 1944 में पेरियार ने द्रविड़कड़गम पार्टी की स्थापना किये जो द्रविड़वाद का द्योतक तो था ही इस पार्टी का उद्देश्य ब्रिट्रिश सरकार से देश को आजाद भी करवाकर स्वतन्त्र द्रविड़ राज्य की स्थापना भी था जो द्रविड़वाद की दृष्टि से बड़ी पहल थी।
ब्राहमणवाद के विरूद्ध पेरियार ने सभाओं / गोष्ठियों द्वारा बड़ा जनमत जुटा लिये थे। उनका मानना था कि ब्राहमणवाद ही समाज के लिये खतरा है,उनकी मानना भी सत्य था क्योंकि ब्राह्मणवाद का दिया जख्म तो आज भी शोषित दलित समाज ढो रहा है। इस जख्म के दर्द से चाह कर भी उबर नहीं पा रहा है। जातिवाद,छुआछूत ब्राहमणवाद की विषैली खेती है जो भारतीय समाज में आज भी जहर बो रही है। विज्ञान के युग में भी हैण्ड पाइप से पानी लेने पर शोषित प्रतिबन्धित है। दलितों की बस्ती तक के कुएं का पानी तो अपवित्र था ही। दलित वर्ग के लोगों को आज भी उनका हक नहीं मिल रहा है,दलित आज भी भूमिहीन,गरीब,शोषित पीडि़त है, तरक्की से दूर पड़े बाट जोह रहे हैं, ये पीड़ा कहां से उपजी है यकीनन ब्राहमणवाद से। इन्हीं पीड़ाओं से कराह कर पेरियार ने ब्राहमणवाद को जड़ से खत्म करने का बीड़ा उठाया था। ब्राहमणवाद अर्थात छुआछूत एक बड़े वर्ग को गुलाम बनाये रखने की साजिश जो स्वतन्त्र भारत में भी जीवित है। ब्राहमणवाद तथाकथित उच्च वर्णिक समाज के लिये एक विचारधारा के साथ संस्कृति भी बन चुका है। ब्राहमणवाद की जड़े वेद-पुराणों से होते हुए जातिवाद तक पहुंचती है। यही कारण है कि हिन्दू धर्म जातिवाद का पर्याय बन चुका है। जाति हर वर्ग की पहचान बन चुकी है, हिन्दू ही ऐसा धर्म है जहां आदमी धर्म के नाम से नहीं जाति के नाम से पहचाना जाता है।
इतिहास गवाह है प्राचीन काल से ब्राहमणवाद की ही वर्चस्व रहा है चाहे सामाजिक ठेकेदारी की बात हो या राजनैतिक आर्थिक अथवा शिक्षा पर कब्जा सब कुछ ब्राहमणवाद के अधीनस्थ रहा है। इसी ठेकेदारी को ध्वस्त करने के लिये पेरियार ने महाअभियान छेड़ रखा था और आज भी जारी है पर अभी भी बहुत कुछ ब्राहमणवाद के कब्जे में है। हिन्द धर्म में जातीय विसंगतियां इतने व्यापक स्तर पर पाई जाती है कि पत्थर को दूध पिलाया जाता है और आदमी को अछूत मानकर कुत्ते-बिल्ली जैसा व्यवहार किया जाता है। ब्राहमणवाद ने छुआछूत, जातिवाद को हिन्दू धर्म की पहचान बना दिया है। ब्राहमणवाद ही मनुष्य को मनुष्य में भेद करने को विवश किया है। ब्रहामणवाद ने उलितों का ही नहीं हिन्दुत्व का भी सत्यानाश कर दिया है। ब्राहमणवाद से ग्रसित लोगों ने अपने को सदैव उपर रखने का प्रयास किया निचले तबके के लोगों का आदमी तक भी नहीं समझा। इसी ब्राहमणवाद से उबरने के नेक उद्देश्य ने आधुनिक युग के सुकरात ने ब्राहमणवाद का प्रतिकार किया और देवी देवताओं को जलाने तक की बात किये देश-दुनिया के सामने। ब्राहमणवाद हिन्दू मंदिरों में ही नहीं बौद्ध मंदिरों तक में कब्जा कर रखा है। ये कैसा ढीठ ब्राहमणवाद है कि विज्ञान के युग में भी भ्रमित कर रहा है। इसी भ्रम से बचाकर इंसानियत की राह पर समानता के साथ चलना सीखाना पेरियार के सामाजिक सुधारों और जाति उन्मूलन के आन्दोलनों का मुख्य उद्देश्य था।
पेरियार ने सामाजिक आन्दोलन को और गति प्रदान करने के लिये कड़गम जो कि राजनीतिक पार्टी थी का नाम बदल कर जस्टिस पार्टी रख दिया था। पेरियार का बुद्धिवाद आन्दोलन,स्वाभिमान आन्दोलन ये आन्दोलन सफल भी हुए। पेरियार ने अपने वक्तव्यों में कहा है कि मैंने सब कुछ किया और गणेश आदि सभी ब्राहमण देवी देवताओं की मूर्तियां तोड़ डाली है। राम आदि के चित्र भी जला दिये हैं। मेरे इन कार्यों के बावजूद भी,मेरी सभाओं में मेरे भाषण सुनने के लिये हजारों की गिनती में लोग इक्ट्ठा हो रहे हैं तो यह स्पष्ट है कि स्वाभिमान तथा बुद्धि होना जनता में जागृति का संदेश है। द्रविड़वाद का उद्देश्य भी यही था कि आर्य ब्राहमणवादी वर्णव्यवस्था खत्म हो। वे देवी-देवताओं पर कटाक्ष करते हुए कहते थे देखो ब्राहमण देवी -देवताओं को एक देवता से हाथ में भाला उठाकर खड़ा है और दूसरा धुनष बाण,अन्य दूसरे देवी-देवता कोई खंजर कोई ढाल के साथ सुशोभित हो रहा है। एक देवता अपनी अगुंली पर चक्कर चलाता है ये सब क्यों जबकि ईसाई,मुस्लिम और बुद्ध धर्म के संस्थापक सेवा,दया,करूणा के द्योतक है। हिन्दू देवी-देवताओं के हाथों में अस्त्र शस्त्र बा्रहमणवाद की तस्वीर को जीवन्तता प्रदान कर डर पैदा करने के उद्देश्य ये किरदार रचे गये है। सार में कहा जाये तो ब्राहमणवाद चौथे वर्ण को गुलाम बनाने का प्राचीन से हथियार रहा है। इसी हठधर्मिता को तोड़ने के लिये पेरियार को देवी-देवताओं की मूर्तियां तोड़ने और जलाने का उद्यम करना पड़ा होगा। सच ब्राहमणवाद भारतीय समाज के वर्णिक क्रम में चौथे स्थान के लोगों के लिये धरती पर नरक लोक का दुख की चीखती तस्वीर रहा है। इस चीखती तस्वीर को समानता और मानवीय समरसता की तस्वीर में बदलना पेरियार का सपना था। यह लोक कल्याण के लिये जरूरी भी है।
द्रविडवाद सही मायने में द्रविड़ भारत के मूलनिवासियों को पहचान देना है। जैसाकि तमिल/द्रविड़ अनार्य है दलितों,आदिवासियों,वनवासियों की तरह जो आज भी अपने अधिकार के लिये सदियों से बा्रहमणवाद से संघर्षरत् है। जैसाकि विदित है कि तमिल,दमित और दलित ये शब्द मूल निवासियों के सम्बोधित किये जाते हैं। मूल निवासी अनार्य पहले से ही कुशल कारीगर,हस्तशिल्पी,इंजीनियर रहे हैं,मोहनजोदड़ों हड़प्पा इसके उदाहरण है चाहे वे तमिल,दमित और दलित के नाम से जाने जाते रहे हो । द्रविड़वाद सद्भावना,समानता का संदेश आम आदमी तक पहुंचाने का माध्यम रहा होगा। अंधविश्वास, छूआछूत, कुप्रथाओं, रूढिवादिता जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाना शिक्षा और सामाजिक सुधार के कार्यों को गति प्रदान करना ही द्रविड़वाद का उद्देश्य रहा है। द्रविडवाद दलित साहित्य की लोकप्रियता से जोडकर देखे जाने की आवश्यकता है। दलित साहित्य के संदर्भ में द्रविड़वाद को धार्मिक एवं सामजिक सुधार का आन्दोलन कहा जाना उचित होगा,जिसके प्रेरणास्रोत क्रान्तिकारी आधुनिक विचारक पेरियार ही है।
पेरियार आधुनिक विचारक,साामाजिक सुधारक तो थे ही स्पष्टवादिता के लिये भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि आजादी के सवाल पर एक रूसी पत्रकार से उन्होंने दो टूक कहा था हमारे देश को स्वतन्त्र हुए 17 साल बीत चुके है लेकिन सच यह है कि यह आजादी सिर्फ ब्राहमणों को मिली है। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा था भारत की लगभग 97․25 प्रतिशत आबादी गैर ब्राहमणों की है। सभी धर्मों के अनुयायी परस्पर भाई-बहन माने जाते हैं परन्तु हिन्दू धर्म ही ऐसा है जिसमें सब बराबर नहीं है। उंची-नीची जाति के लोग माने जाते हैं। इस तरह का सामाजिक अपमान कब तक झेलते रहेंगे। ईश्वर की समाप्ति, काग्रेस का बहिष्कार,ब्राहमणें का बहिष्कार पेरियार के सामाजिक सिद्धान्त है जो शोषित समाज की सोच में परिवर्तन और उनके उद्धार में मील के पत्थर साबित हुए है। हां बा्रहमणवाद का वर्चस्व पूर्णतः खत्म तो नहीं हुआ है पर बहुत कम हुआ है दलित समाज सम्मान के साथ जीने का सपना भी सजोने लगे है जिसके प्रेरणास्रेात पेरियार को माना जा सकता है। पेरियार के सिद्धान्त ईश्वर की समाप्ति का ही प्रभाव था कि पहली बार तमिलनाडु की विधान सभा में सदस्यों ने ईश्वर के नाम पर शपथ नहीं लिया था। पेरियार की ही प्रेरणा से तमिलनाडु सरकार ने आदेश जारी किया कि सरकारी दफ्तरों में देवी देवताओं की तस्वीरें न लगायी जाये। पेरियार ने अपने चिन्तन से ईश्वर को चुनौती दे डाला यकीनन इससे बा्रहमणवाद की जड़े हिल चुकी है। ब्राहमणवाद पूर्णतः खत्म करने के लिये एक और पेरियार जैसे आधुनिक चिन्तक की देश को जरूरत है।
पेरियार आधुनिक क्रान्तिकारी विचारक और दलित,पिछड़ेवर्ग के उत्थान की दूरदृष्टि रखने वाले महामानव थे। पेरियार की दृष्टि विश्व व्यापी थी।वे पूरी दुनिया का भ्रमण कर लिये थे। वे अथक समाजसेवी शोषितवर्ग के दुखाहर्ता थे,सुखकर्ता थे। अपने आन्दोलन के आखिरी चरण में इतने बीमार हो गये थे कि चलने फिरने में दिक्कत आ रही थी इसके बावजूद भी सभाओं,गोष्ठियों ,सम्मेलनों में भाग ले रहे थे। वे चाहते थे कि उनके जीते जी सारे मिशन पूरे हो जाये। आपने जीवन के अन्तिम दिनों में भी बुद्धिवाद,स्वाभिमान,महिलाओं के अधिकार,सामाजिक सुधार,जाति तमिल राष्ट्रवाद और ब्राहमणवाद उन्मूलन आन्दोलन के कार्य करते हुए स्वनामधन्य महानायक क्रान्तिकारी पेरियार ई․वी․रामास्वामी 25 दिसम्बर को दुनिया को अलविदा कह दिये ।
भारतीय समाज के दलित शोषित और पीडि़तों में स्व-मान की भावना जगाने के लिये आधुनिक युग के सुकरात और भारत भाग्य विधाता के कार्य सदैव विश्व के इतिहास में कीर्ति स्तम्भ बने रहेंगे।
पेरियार एक व्यक्ति नहीं अपने आप में एक संस्था थे । अन्ना दुराई आधुनिक युग के सुकरात पेरियार को एक युग मानते थे। अन्ना दुराई ने कहा था पेरियार ने दो सौ वर्षो का काम बीस वर्ष में कर दिखाया। फूले,अम्बेडकर और पेरियार तीनों शोषित समाज के लिये जीये तीनों महामनवों में समानता यह थी कि ये तीनों महामानव दलित पिछड़ी जनता और स्त्रियों के कल्याण के लिये प्रतिबद्ध थे। जातीय असमानता और शोषित समाज की समस्याओं से आजीवन लड़ते रहे। फूले,अम्बेडकर और पेरियार भारतीय दर्शन,राजनीति और सामाजिक जीवन को बहुत गहराई से प्रभावित किये हैं। इन तीनों मसीहाओं का लगाव बौद्ध दर्शन की ओर था। डां अम्बेडकर ने तो बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। पेरियार बौद्ध धर्म सम्मेलनों में भाग लिया करते थे। इस आधुनिक सुकरात ने अर्न्तराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन भी करवाया था जो ब्राहमणवाद के प्रतिकार का द्योतक था। आधुनिक युग के सुकरात के व्यक्तित्व और कृतित्व ने ब्राह्मणवाद का प्रतिकार कर शोषित समाज को सम्मान से जीने की दृष्टि प्रदान की है, द्रविड़वाद को सुदृढ़ता भी। दलित साहित्य के संदर्भ आधुनिक युग के सुकरात पेरियार का व्यक्तित्व और कृतित्व कालजयी उपलब्धि बना रहेगा। दलित रचनाकारों को दायित्वबोध एवं नित नई ऊर्जा प्रदान करता रहेगा और दलित साहित्य को विश्वव्यापी कैनवास ।
डॉ․नन्दलाल भारती
एम․ए․ ।समाजशास्त्र। एल․एल․बी․ । आनर्स ।
पी․जी․डिप्लोमा-एच․आर․डी․
kaafi satik rachana,unme jyada himmat thi ghabara kar dharm pariwartan nahi ker liya.unki nastikta ka vistaar hona jaroori hai.
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