नन्‍दलाल भारती की कहानी - विष पुरुष

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बिलारी के भाग से शिकहर टूट गयल-यह भोजपुरी कहावत धूरत प्रसाद जंगली पर बिल्‍कुल सही बैठती थी। धूरत प्रसाद जंगली निहायत स्‍वार्थी किस्‍म का आद...

बिलारी के भाग से शिकहर टूट गयल-यह भोजपुरी कहावत धूरत प्रसाद जंगली पर बिल्‍कुल सही बैठती थी। धूरत प्रसाद जंगली निहायत स्‍वार्थी किस्‍म का आदमी था। धूरत प्रसाद जंगली के मां बाप बड़े नेक इंसान थे । धूरत प्रसाद जंगली के मां-बाप पहाड़ी जीवन को त्‍याग कर मैदानी इलाके के शहर में आकर बस गये वही घिसौनी कर बेटे को स्‍नातक तक पढ़ाये। बेटवा की पढ़ाई की चिन्‍ता में वे अपनी बुढ़ौती के लिये कुछ नहीं जोड़ पाये। हां स्‍लम इलाके में एक झुग्‍गी जोड़ लिये थे जो बाद में सरकारी नीतियों के कारण भवन में बदल गयी थी यही उनकी सबसे कीमती पूंजी थी। खैर सबसे बड़ी पूंजी तो वे अपने बेटे धूरत प्रसाद जंगली को मानते थे । धूरत प्रसाद जंगली अच्‍छे समय में स्‍नातक तक की शिक्षा पा लिया था,स्‍नातक होते ही उसे नौकरी मिल गयी। बीकामपास खूबसूरत बेटवा को नौकरी मिलते ही मां-बाप ने सजातीय खूब सूरत लड़की से ब्‍याह कर दिया। नौकरी धूरत प्रसाद जंगली के पुश्‍तैनी घर-आंगन में बसन्‍त गमक उठा पर क्‍या कुछ ही महीनों में मां-बाप का सपना चकनाचूर हो गया। कुछ ही दिनों में वह अपने मां-बाप को बोझ समझने लगा था। मां-बाप बेटवा धूरत प्रसाद जंगली की तरक्‍की अपने श्रम की सार्थकता पर भगवान को मूड़ पटक-पटक कर धन्‍यवाद देते नहीं थकते थे।

मां-बाप की दुआयें असरदार रही कुछ बरसों की नौकरी में उसने ऐसी तरक्‍की की बड़े-पढ़े लिखे फेल हो गये। धूरत प्रसाद जंगली की भूख बढ़ती जा रही थी। साम दाम दण्‍ड और भेद से काम निकालना इतनी चतुराई से सीख गया था कि तरक्‍की की रेस में बहुत आगे निकल गया। इस जंगली मामूली सी बाबूगिरी से नौकरी शुरू किया था। चम्‍मचागीरी के औजार के सहारे धूरत प्रसाद जंगली जोनल मैनजर साहब का खास बन गया था । वह साहब के कुत्‍ते को घुमाने की जिम्‍मेदारी उठा लिया। साहब भी इतने निरकुंश नहीं थे उन्‍होंने इस वफादारी का बड़ा प्रतिफल दिया। मामूली टाइपिस्‍ट मुख्‍य मैनेजर बन गया। अब क्‍या शेर के मुंह खून लग गया,उसने छोटे कर्मचारियों का दमन और बड़े अधिकारियों का जूता सिर पर लेकर चलने लगा। धूरत प्रसाद जंगली साहब लोगों को खुश करने की कला में माहिर था । रोटी-बोटी,शबाब-कबाब के साथ खोखा अथवा कार्टून तक का इन्‍तजाम कर देता था। धूरत प्रसाद जंगली इस करतूत ने उसे नौकरी में सफलता के झण्‍डे गड़वा दिये। धूरत प्रसाद जंगली छोटे कर्मचारियों के लिये खासकर निचले तबके के कर्मचारियों को तो अपना दुश्‍मन समझता था। ना जाने उसे इतनी चिढ़ क्‍यों थी वह कहता छोटे लोगों से दूरी बनाकर रखना चाहिये,इनकी तरफ हाथ बढ़ाया तो सिर पर चढ़कर मूतने लगते हैं। रूढ़िवादी मानसिकता के लोग धूरत प्रसाद जंगली का साथ भी देते थे। धूरत प्रसाद जंगली छोटे कर्मचारियों के साफ-सुथरे अथवा नये कपड़े जूते को इतनी बारीकी से देखता जैसे थानेदार चोर को देखता है। छोटे कर्मचारी का अच्‍छा कपड़ा पहनना उसे पसन्‍द न था वह छोटे कर्मचारी को गुलाम की तरह देखता था। धूरत प्रसाद जंगली का शिकार सेवानन्‍द जो उच्‍चशिक्षित परन्‍तु टाइपिस्‍ट क्‍लर्क था दुर्भाग्‍यवश वह निचले तबके से भी था।

सेवानन्‍द की तरक्‍की धूरत प्रसाद जंगली को तनिक ना पसन्‍द थी।वह सेवानन्‍द के भविष्‍य को घुन की तरह चट करने पर तुला हुआ थी। धूरत प्रसाद जंगली ने सेवानन्‍द की सीआरइतनी खराब कर दी थी उसको कम्‍पनी का हर अधिकारी थानेदार की निगाह से देखता था। सेवानन्‍द के योग्‍यता जातीय तराजू पर तौले जाने की परम्‍परा धूरत प्रसाद जंगली ने शुरू करवा दिया था। सेवानन्‍द की दो बार डीपीसी हुई दोनो बार जातीय निम्‍नता की तुला पर सेवानन्‍द श्रेष्‍ठ साबित नहीं हो सका । अन्‍ततः उसे नौकरी करना था तो टाइपिस्‍ट से उपर सोचना भी अपराध बन गया था। धूरत प्रसाद जंगली स्‍वयं और उच्‍च अधिकारियों से भी कहवा चुका था कि सेवानन्‍द अफसर बनने की तुम्‍हारी इच्‍छा इस कम्‍पनी में पूरी नहीं हो सकती है। बस एक ही तरीका है कम्‍पनी की नौकरी से इस्‍तीफा दे दो या गले में अफसर की पट्‌टी बांध लो। सेवानन्‍द अपने भविष्‍य के दुश्‍मनों की शिनाख्‍त तो कर चुका था परन्‍तु नौकरी छोड़ने के बाद नौकरी नहीं मिली तो परिवार के भूखों मरने और बच्‍चों की पढ़ाई छूटने के डर से उसका कलेजा मुंह को आ जाता था। वह इसी उधेड़-बुन में बूढ़ा हुए जा रहा था। चिन्‍ता की चिता ने उसे कई बीमारियों के चक्रव्‍यूह में उलझा दिया। सेवानन्‍द सेवानन्‍द के रफ को टाइप कर रहा था, इसी बीच एक अजनबी आ गया। सेवानन्‍द से बोला हेलो सेवानन्‍द।

सेवानन्‍द -आप कौन ․․․․․․․?

रसूख खिलवी ।

कहां से आये हो ।

इसी कम्‍पनी की सिस्‍टर कंसर्न कम्‍पनी में काम करता हूं। रहीस मुझे जानता है। कहां है रहीस ।

पोस्‍ट आफिस गया है।

आपके विष पुरुष।

कौन․․․․․․․․․․․?

अरे जनाब आपके बांस डीपीजे

क्‍या․․․․․․․․․․․?

ठीक सुने माई डियर कहां है ।

दौरे पर गये हैं।

हमने इनका नाम रखा था दोगला प्रसाद जंगली एक पुरुष। तनिक बड़ा नाम है ना। चलो छोटा कर देते हैं दोगला एक विष पुरुष। कितने साल की नौकरी हो गयी जनाब । अरे बेसिक बात तो पूछा ही नहीं आपका नाम सेवानन्‍द ही है ना। सोचोगे कैसे जाना सब जानता हूं ।मेरा भी दफ्तर पास में ही है,ये बात अलग है कि मेरी पोस्‍टिंग दूसरे शहर में थी। महीना भर पहले ही ज्‍वाइन किया हुआ । सोचा चलो दोगला एक विष पुरुष के घिनौना चेहरा देख लूं। पुराना घाव ताजा कर लूं।

सेवानन्‍द-कैसी बात कर रहे हो रसूख खिलवी भाई।

दिल टूटने के बाद आह ही निकलती है। मैं समझता हूं जनाब आपका दिल ही नहीं तोड़ा होगा। भविष्‍य भी इस विष पुरुष कुचल दिया होगा ।जानते हैं भविष्‍य कुचलने का दर्द अपने आश्रितों तक को आंसू देता रहता है।

सेवानन्‍द-ऐसा आपके साथ कौन सा गुनाह कर दिया बांस ने ।

रसूख खिलवी-ये गोरा काला अंग्रेज है। हमारे दादाजी कहते कहते मर गये बेटा अंग्रेज आज के इन काले अंग्रेजों से बेहतर थे। गोरों का हौसला किसने बढाया । अपने देश के दुश्‍मनों ने ही ना अपनी रियासत पर कब्‍जा और शोषितों का खून पीने के लिये। ये देश के दुश्‍मन इतने गिर गये कि अपनी बहन बेटियों तक को परोसने लगे थे। आज इन काले अंग्रेजों की काली करतूतें देखकर अपना खून देकर देश को आजादी दिलाने वाले अमर शहीदों की आत्‍मायें विलाप कर रही होगी कि क्‍या सोचा था क्‍या हो गया। कैसी आजादी है,जातिवाद, भूमिहीनता, गरीबी, अशिक्षा, नक्‍सवाद अब तो भ्रष्‍टाचार का ऐसा राक्षसी दौर चल पड़ा है कि आमआदमी के जीवन तबाह होने लगा है और देश बदनाम । क्‍या ये सब देखकर लगता है कि हम आजाद देश में रहते हैं ?इतने में रहीस अन्‍दर आते हुए बोला सच भाई हम आजाद देश के गुलाम हो गये हैं।

रसूख खिलवी-दोगला विष पुरुष साइलेण्‍ट किलर है।

रहीस-कहां की दुश्‍मनी लाकर हमारे बांस के उपर पटक दिये।

रसूख खिलवी-आज मैं भी फुर्सत में हूं । आया तो था विष पुरुष को अपना चेहरा दिखाने ताकि उसका घिनौनी कार्यवाही जीवित हो उठे उसके मन में और मेरा घाव ताजा।

रहीस-किस घाव की बात कर रहे हो रसूख खिलवी।

रसूख खिलवी-इस विष पुरुष ने पांच साल पीछे कर दिया।

सेवानन्‍द-कैसे ․․․․․․․

रसूख खिलवी- जिस सिस्‍टर कम्‍पनी में काम कर रहा हूं। उसी कम्‍पनी में ये विष पुरुष जोनल मैनेजर के पीहुआ करते थे। देखो एक विष पुरुष कुत्‍ता को बिस्‍किट खिला कर बड़ा साहब बन बैठा है जबकि इससे उच्‍च डिग्रीधारी इस कम्‍पनी में चपरासी तक है।

रहीस-दूर कहां जा रहे हो आपके सामने ही बैठे है सेवानन्‍द। एजुकेशन के मामले में हमारे साहब तो सेवानन्‍द के सामने बच्‍चा है पर तरक्‍की देखो आसमान छू रहे हैं। बेचारे सेवानन्‍द की सारी डिग्रियां इस विभाग में बेकार हो गयी है।

सेवानन्‍द-हम तो गांव के ठहरे सीधे-साधे,साफ-सुथरा ईमानदारी-वफादारी से काम करने वाले दोगली नीति का हमसे तो कोसों तक कोई रिश्‍ता नहीं रहा है। चम्‍मचागीरी साहब लोगों का जूता सिर पर कैसे लेकर चल सकता था।

रहीस-झूठ बोल रहे हो सेवानन्‍द।

कैसे मैं झूठा हो गया रहीस․․․․․․․․ सेवानन्‍द बोला ।

रहीस- तुम्‍हारी बस्‍ती के कुएं का पानी जातीय श्रेष्‍ठ लोगों के लिये अपवित्र है तो वे उच्‍च जातीय लोग तुम्‍हारे हाथ का पानी कैसे पी सकते हैं। सेवा-सत्‍कार तो उन्‍हीं का स्‍वीकार्य होता है जो इसके योग्‍य होते हैं। आप तो जातीय अयोग्‍य हो। ये बात अलग है कि मैं आपको चाय-पानी पिला देता हूं। उसी कप-गिलास में जिस में ये उच्‍च जातीय कर्मचारी-अफसर पीते हैं।

रसूख खिलवी-क्‍या शिड्‌यूल्‍ड कास्‍ट के हो ?

रहीस-तभी तो ये हाल है। आपके एक्‍स बास ने ही नहीं जितने अफसर आये सब जातीय दुश्‍मनी निकाल गये हैं। विष पुरुष निकाल रहे हैं।

रसूख खिलवी-चचाजान वो कैसे?

रहीस-सीआर खराब कर दी गयी है। प्रमोशन के सारे रास्‍ते बन्‍द कर दिये गये हैं। बस इतना है कि नौकरी से नहीं निकाले जा सके है। खैर इसके भी बहुत प्रयास हो चुके हैं।

रसूख खिलवी-मतलब सेवानन्‍द अपनी काबिलियत की वजह से टिके हुए है वरना ये मुर्दाखोर किस्‍म के लोग हजम कर गये होते।

रहीस-खिलवी भाई सही कह रहे हो। आपके विष पुरुष तो अपने मां-बा पके नहीं हुए अछूत के बेटा का क्‍या होंगे। मेरा तो डायरेक्‍टर साहब की वजह से कोई अफसर कुछ नहीं बिगाड़ सका।

खिलवी-कौन डायरेक्‍टर साहब ?

रहीस-तुम्‍हारी सिस्‍टर कन्‍सर्न कम्‍पनी में एरिया मैनेजर थे ना डांविषम प्रताप साहब।

खिलवी-अच्‍छा वो शराब,कबाब और शबाब के शौकीन। उनमें तो जमींदारी का भाव भी कूट-कूट कर भरा था। नीची जाति वालों को तो गुलाम समझते थे। अब ना जाने कोई उनमें सुधार हुआ कि नहीं। वे भी विष पुरुष ही थे।

रहीस-रहीस मरे नहीं है।अभी जिन्‍दा है,दौरे पर गये हैं। रही बात विष पुरुष की तो अपने विभाग में एक से बढ़कर एक विष पुरुष है। खिलवी के साथ डीपीजे साहब ने नाइंसाफी की तो वे इनके लिये विष पुरुष है। अब हमारे सेवानन्‍द के लिये तो विभाग में दीया लेकर खोजने पर भी कोई आदमी हितैषी नहीं मिलेगा। सभी अफसर विष पुरुष साबित हुए है। ये बात सभी जानते हैं। सभी अफसर मंदिर के घण्‍टा की तरह सेवानन्‍द को बजाये ही है। कराह निकलने की सजा भी इस उच्‍चशिक्षित अछूत के बेटे को मिली है। परन्‍तु टाइपिस्‍ट से साहब बने डीपीजे साहब से ऐसी उम्‍मीद नहीं थी।

खिलवी-ऐसी क्‍या खासियत सेवानन्‍द में है।

रहीस-डीपीजे साहब भी टाइपिस्‍ट थे और सेवानन्‍द भी परन्‍तु इस विष पुरुष ने ज्‍यादा घाव दिया है।

खिलवी-डीपीजे विष पुरुष अपने मां -बा पके नहीं हुए हैं तो ये सेवानन्‍द किस खेत की मूली है।

रहीस-मां-बाप कैसे नहीं हुए।

खिलवी-तुम तो चचाजान ऐसे पूछ रहे हो जैसे तुमको कोई खबर ही नहीं हो।

रहीस-वाकई खिलवी।

खिलवी-दाई से पेट छिपाने से नहीं छिपता। तुम सब जानते हो। क्‍या तुमको पता नहीं है। विष पुरुष की काली करतूतें। मां-बाप को बेघर कर दिये। उनके जीते जी उनका बनाया घर बेंच दिये। मां-बाप खून के आंसू बहाते रहे। ये विष पुरुष अपने पास में भी उन्‍हें रखने में शरमाते थे,उनके आते ही दूसरे रिश्‍तेदारों के यहां भेजने की बन्‍दोबस्‍त में लग जाता था। चार-चार महलनुमा का मालिक है पर मां-बाप को रहने का ठिकाना नहीं था। मेमसाहब को बूढ़े सास-ससुर की सूरत तक पसन्‍द नहीं थी।

रहीस-सच खिलवी तुम तो बहुत जानते हो साहब के बारे में।

खिलवी-अरे अभी तो बहुत कुछ जानता हूं। ये आदमी सचमुच का विष पुरुष दो परिवारों की इज्‍जत तक को नीलाम कर चुका है,तरक्‍की के लिये। जितनी सूरत से अच्‍छे हैं उतने की दिल के काले हैं ये जनाब जो विष पुरुष। इनकी वजह से साल भर जूनियर हो गया इतना ही नहीं प्रमोशन में पांच साल पिछड़ गया। ना जाने मुझसे इस विष पुरुष को कौन सी दुश्‍मनी थी कि मेरा एप्‍वाइण्‍टमेण्‍ट लेटर दबाकर रख दिया था। इस विष पुरुष का दिया घाव हमेशा हरा रहता है। घाव को और हरा करने के लिये आया था पर विष पुरुष से मुलाकात नहीं हुई। मिलता तो ऐसा बोलता जैसे सगा हो। कहता और क्‍या हाल है भाई। ये ऐसा जहरीला इंसान है काट ले तो अगली पीढ़ी तक जहर पहुंच जाये भोपाल गैस त्रासदी जैसे।?

रहीस-यार हद कर दी तुमने भोपाल गैसे त्रासदी की तुलना विषपुरुष डीपीजे साहब से कर दिये।

खिलवी-मेरा लूटा हुआ भविष्‍य वापस आ सकता है। तुम ही बता रहे थे सेवानन्‍द के भविष्‍य को कब्रस्‍तान बनाने में विष पुरुष का हाथ है। क्‍या इस उच्‍च शिक्षित आदमी को लूटा हुआ भाग्‍य वापस आ सकता है,चार छः साल में टाइपिस्‍ट के पद पर रिटायर हो जायेगा। इसका भविष्‍य क्‍यों तबाह किया गया क्‍योंकि छोटी कौम का बन्‍दा है। मैं तो सामान्‍य था पर गैरधर्मी ये मेरा कसूर तो नही, तो क्‍या ये तुम्‍हारे डीपीजे हमारे लिये विष पुरुष नहीं।

सेवानन्‍द-क्‍यों नहीं। ऐसे ही विष पुरूषों की वजह से आम-आदमी ,शोषित वंचित कमेरी दुनिया और हाशिये के लोग पिछड़ेपन के दलदल में ढ़केले जा रहे हैं। जातिवाद नफरत का जहरीला वातावरण निर्मित कर रहे हैं जो सभ्‍य समाज के लिये उचित तो नहीं कहा जा सकता । इन विष पुरुष और ऐसे लोग का ही षडयन्‍त्र ही कि वे तरक्‍की के शिखर पर चढ़ते जा रहे हैं हाशिये के लोग भय-भूख भेद के शिकार है।

रहीस-यही देखो अपने विभाग में सेवानन्‍द के खिलाफ क्‍या-क्‍या नहीं किया है,प्रमोशन के रास्‍ते बन्‍द कर दिये गये,लाभ के सारे रास्‍ते बन्‍द कर दिये गये। मई से तो स्‍थानीय भत्‍ता और दौरा कार्यक्रम भी बन्‍द करवा दिया गया है जबकि दूसरे विष पुरूषों की राह पर चलने वालों को बिना किये दस-दस हजार रूपये से ज्‍यादा अतिरिक्‍त लाभ दिया जा रहा है। सेवानन्‍द के तनख्‍वाह के अलावा सारे फायदे के रास्‍ते बन्‍द करवा दिये हैं विष पुरूषों ने। इतने में सेवानन्‍द के चलितवार्ता की घण्‍टी बज गयी।

खिलवी-सेवानन्‍द बात कर लो हो सकता है डीपीजे का ही फोन न हो।

सेवानन्‍द-नया नम्‍बर है।

रहीस-बात तो कर लो ।

खिलवी-कौन था ?

सेवानन्‍द-कुलपति।

खिलवी-कुलपति मतलब यूनिवर्सिटी से।

सेवानन्‍द-जी ।

रहीस-देखो क्‍या बिडम्‍बना है विभाग में अछूत माने जाने वाले आदमी को कुलपति फोन कर रहे हैं। चहुंओर से मान-सम्‍मान मिल रहा है और विभाग में दण्‍ड। कैसी है विष पुरूषों की सेवानन्‍द विरोधी नीति ? बढ़ते जा नेककर्म की राह मेरे यार।

खिलवी-तुम्‍हारे सद्‌कर्म को सलाम सेवानन्‍द

 

डॉनन्‍दलाल भारती 08․12․2013

एम।समाजशास्‍त्र। एलएलबी। आनर्स ।

पीजीडिप्‍लोमा-एचआरडी

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: नन्‍दलाल भारती की कहानी - विष पुरुष
नन्‍दलाल भारती की कहानी - विष पुरुष
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