सुशील यादव का व्यंग्य - फुरसतिया लोगों की जमघट

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अपने शहर में लोग बड़े फुर्सत में मिलते हैं। उन्हें आप किसी भी काम में लगा सकते हैं । प्रवचन-भाषण,बकवास सुनने के लिए वे हरदम तैय्यार रहते है...

अपने शहर में लोग बड़े फुर्सत में मिलते हैं। उन्हें आप किसी भी काम में लगा सकते हैं ।

प्रवचन-भाषण,बकवास सुनने के लिए वे हरदम तैय्यार रहते हैं ।

बाबा लोगों का लूज केरेक्टर,चोर-उचक्का,उठाईगिरी-टपोरी होने की उनकी पास्ट हिस्ट्री कोई मायने नहीं रखती ।

वे चौरासी-कोसी यात्रा तो क्या भारत-भ्रमण भी कराओ तो अपने-आप को झोंक देते हैं।

आपने राम का नाम लिया नहीं कि वे, भक्त हनुमान की भूमिका में अपने को फिट कर लेते हैं। उन्हें लगता है, ‘प्रभु ने’ किसी बहाने उसे पुकारा है। वो नइ गया तो परलोक में क्या मुंह दिखायेगा?

राम की नैय्या सामने आ रुकी है तो बैठने में हर्जा ही क्या ?यूँ तो अपने बूते, एक ईंट खरीद के दान देना कंटालता है ,अगर चलते-चलते भक्तों की ईंट से प्रभु की इमारत बन जाए तो अहोभाग्य ?

इन्हें पैदल जितना चाहे चलवा लो ,वैसे ये घर के लिए , धनिया लेने के लिए भी न निकलें ।

एक अलग टाइप के सुस्त फुरसतिये आपको जंतर-मंतर ,रामलीला में दिख जाते हैं ,ये अनशन में बैठे हुओं को या सरकार को गाली –गलौज करने वालों को, भीड़ बनके ‘मारल-सपोर्ट’ देने के वास्ते अवतरित हुए होते हैं । इनका बस चले तो डाइपर-स्टेज से जिंदाबाद-मुर्दाबाद बोलने लग जाते ।

ये ऐसी भीड होते हैं, जो किसी का भी दिमाग खराब कर दें । इन्हें थोक में देखकर कोई भी आर्गेनाइजर , एम एल ए या एम् पी बनने या चुनाव जीतने का मुगालता पाल ले । हप्तेभर तक कोई लाख आदमी की आमद हो जाए तो ‘किंग-मेकर’या ‘ला- मेकर’ जैसे ख़्वाब आने लगते हैं । अमिताभ-बच्च्नीय करेक्टर डेवलप हो जाता है ,कि हम जहाँ खड़े है लाइन वहीं से शुरू होती है ।

फुर्सतिया लोग , योगासन की सभा में उसी मुस्तैदी से जाते हैं, जिस मुस्तैदी से सडक जाम के लिए निकले होते हैं ।

प्याज ,पेट्रोल,महंगाई के नाम पर इनका दैनिक कार्यक्रम है कि धरना-प्रदर्शन में भाग लें ।

मिल्खा सिंग ने जितनी तेजी न दिखाई हो , उस गति से तेज,ये दौड़ सकते हैं, बशर्ते इनके पीछे विपक्ष का कोई ‘दिमागदार-चीता’ लगा हो ?

वैसे इस देश को कुछ दिमागदार चीता लोग ही गति दे रहे हैं, वरना चूके हुए घोड़े की तरह, ये कब का बैठ गया होता । कभी आपने घोड़े को बैठे देखा है ?

एक फुरसतिया कन्छेदी मुझसे जब भी टकराता है ,देश का रोना रोता है । वो मुझे , पहले बकायदा लेखक जी कहता था ,अब लेखू जी कहके काम चलाता है । लेखू जी देख रहे हैं डालर ?मैंने कहा कौन सा?सत्तर वाला ?वे खीज के बोले, शुभ-शुभ बोलिए ,आप तो खामोखां सत्तर पहुंचा दे रहे हैं ?क्या हाल होगा देश का ?पेट्रोल ,डीजल खरीद पायेगा देश ?

वो इकानामिस्ट की तरह गहन सोच की मुद्रा में ध्यान मग्न हो जाता है । मुझे फुरसतिया लोगों का ध्यानस्थ हो जाना ,गहन खोजबीन प्रवित्ति से ‘स्टिंगयाना’,अर्थशास्त्री बनके देश के पाई-पाई का हिसाब लगाना ,जरूरत से कुछ ज्यादा लगता है । मैं इंनसे पीछा छुडाने की तरकीब ढूंढने लग जाता हूँ । मुझे मालूम है कि अगर उनकी बातों के समुंदर में डुबकी लगाने उतर गया, तो ये मुझे बीच मझधार में ले जा के छोड़ देंगे । लेखक जीव, देश के नाम पर घुलता रहेगा बेचारा । रात-भर डालर की चिंता में सो न पायेगा ।

मैंने टालने की गरज से और माहौल को हल्का करने के नाम पे ,कन्छेदी को कहा ,दिल पे मत ले यार । देश का मामला है ,सरकार निपट लेगी । कुछ न कुछ कड़े कदम उठा के रुपय्या को सम्हाल लेगी ।

वो दार्शनिकता की जकड से उबर के ,ज्योतिष-शास्त्रीय तर्क पे उतर आया ,कुछ भी कहो ,जब से हमने रुपये का ‘सेम्बाल’ बदला है, तब से हमारा रुपया लुढ़कते जा रहा है । आर एस(Rs) में क्या परेशानी थी,अच्छा-खासा पैंतालीस पे टिका था ,उठा के बदल दिया । ये मद्रास से ‘चेन्नई’ नाम बदलने जैसा सार्थक होता तो मजा आ जाता । लेखू जी आप क्या समझते हैं अगर डाइरेक्टर ,’मद्रास एक्सप्रेस’ नाम की पिक्चर बनाता तो ,दो –ढाई सौ करोड कमा पाती ?है न सेम्बाल या नाम का कमाल ?

मुझे लगा कि कन्छेदी नाम के, दो-चार जोक नुमा तर्क और हो जाए तो हमारा तो पूरा खून ही निचुड़ जाएगा । क्या-क्या बकवास तर्क लिए फिरता है स्साला ?वैसे टाइम –पास के लिए आदमी बुरा भी नहीं ।

लेखू जी ,प्याज एक्सपोर्ट वालों की तो चांदी है ?डालर में पेमेंट ,अपने यहाँ डालर भुनाओ तो मजे ही मजे ?आपको नहीं लगता ,प्याज वाले लोगों को, शुरू से निर्मल-बाबू टाइप ईंट्युशन हो गया था ,प्याज को बाहर भेजो,कम रहेगा तो इंडिया में दाम बढ़ेंगे ,बाहर भेजो तो बढे डालर से कमाई होगी । प्याज वालों को अपने देहस की अर्थ-व्यवस्था नहीं सौंपी जा सकती क्या ?

मैंने कहा ,कन्छेदी ,आप जल्दी घबरा जाते हो । आपको खाने को मिल रहा है न ?सरकार ने खाने की ग्यारंटी ले रखी है । वे हमारे मिड-डे से लेकर मिड नाईट ‘मील’ को दिल्ली से देख रही है । हमारे चूल्हे के लिए जिसने गैस दे रखा है, उसपे तपेली चढाने का जिम्मा भी उसी का है । आपको ज़रा सा तो भरोसा रखना चाहिए कि नहीं ?

वे जरा आश्वस्त हुए।

कन्छेदी का चुप रहना तो बुलबुले की तरह क्षण भर का होता है । उसके पास स्टेनगन माफिक बातों का अनंत कारतूस होता है । ट्रिगर दबाते रहो ,निशाने पे लगा तो ठीक, न लगा तो बात ही तो है खाली गया तो क्या ,कोई राजपूताने की जुबान तो नहीं ?

वे अपना अगला दुःख, सास बहु सीरियल कहने लगे ,लेखू जी हम निरे बुद्धू थे ,मैंने मन में सोचा ,कितनी सहजता से वे, अपनी जग-जाहिर कमजोरी बता रहे हैं । मैंने कहा भला आप, ये क्यूँ सोचते हैं ?वे घूर कर मेरी तरफ देखने लगे । मैंने असहज होते हुए कहा ,वैसी कोई बात नहीं ,हाँ तो आप कह रहे थे आप निरे बुद्धू थे ,क्यूँ ?

कोई दस साल पहले हमें भू-माफियाओं ने यूँ घेरा ,वे अखबारों में पत्रकारों को इंटरव्यू देकर ,बताने लगे कि हमारे खेत और आस-पास की जमीन का सर्वे, रोड बनाने के लिए हुआ है। सरकार,सरकारी-दर पे मुआवजा देके जमीन कब्जा लेगी । वे आये ,लालच दिए ,हमें जमीन बेच दो, वरना सरकार सस्ते में ले जायेगी । हम लोगों ने जमीनें बेच दी । जिस जमीन को हमने दो लाख में बेची थी,उसे उन लोगों ने शापिंग माल वालों को, दो करोड में बेची है । शुद्ध एक करोड़ अनठानबे लाख का घाटा ।

मुझे कन्छेदी के इस बयान के बाद लगाने लगा कि ,एक करोड़ अनठानबे लाख का सदमा उस पर बहुत जोरों से हावी है।

उसे फुर्सत में रहते-रहते ,आने वाले हर खतरे को सूंघ के जान लेने की जबरदस्त प्रेक्टिस सी हो गई है ।

मगर ,डालर के मुकाबले गिरते रूपये को सम्हालने के लिए, उसके जैसे देश के करोड़ों हाथों को लकवा मार गया है ?

मैं मानता हूँ कि ,कोई बीमारी ला-ईलाज नहीं होती । दुआ से, दवा से,धैर्य से ,परहेज से ,मेहनत से ,अभ्यास से मर्ज को काबू किया जा सकता है ।

अगर फुरसतिया लोगों में ज़रा सा भी ,देश के लिए सोच है तो वे नौसिखिया बाबाओं ,आडम्बर वाले योगियों ,झांसा देने वाले ठगों , तम्बू लगाने वाले तान्त्रिकों, लूज करेक्टर के बलात्कारियों ,चोर-उच्चके किस्म के टपोरियों से बचें ।

क्रान्ति अगर आनी है तो जंतर -मंतर ,राम-लीला मैदान की भीड़ नहीं लाएगी ।

क्रांति, पैदल यात्रा ,अनशन ,सायकल ,लेपटाप बांटने से नहीं आयेगी ।

क्रांति ग़रीबों को मुफ्त अनाज देने से नहीं आएगी ।

देश में भाषण ,भाषणबाजों की कमी नहीं । पिछड़े हुओं को प्रलोभन कब तक दिया जा सकेगा ?

देश की तरक्की का सूत्रधार बनना है तो अपना वोट किसी कीमत पर, किसी को मत बेचिये । सूरते-हाल अवश्य बदलेगी ,आपका खालीपन बहलता रहेगा ।

सुशील यादव

न्यू आदर्श नगर ज़ोन १ स्ट्रीट ३

दुर्ग (छ.ग.) ४९१००१

email susyadav444@gmail.com

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रचनाकार: सुशील यादव का व्यंग्य - फुरसतिया लोगों की जमघट
सुशील यादव का व्यंग्य - फुरसतिया लोगों की जमघट
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