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एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा, मनोरंजन के लिए घूमना-फिरना, विनोद, विहार, सांध्य व प्रभातकालीन भ्रमण सामान्यतः सैर कहलाता है। युवाओं, बच्चों, बुजुर्गों व महिलाओं सभी के अच्छे स्वास्थ्य हेतु सुबह की सैर एक संजीवनी है। सुबह की सैर अच्छी सेहत का सहज, सरल, सस्ता एवं सुविधाजनक ''रामबाण'' उपाय है। सुबह की सैर का कोई विकल्प नहीं, ऊषाकाल में पैदल चलना, फेफड़ों में भरपूर प्राणवायु- आक्सीजन भराव से रक्त शुद्धि के साथ-साथ विषैले पदार्थों का निष्कासन व अवांछित कॉलेस्ट्राल की मात्रा का घटाव होता है। वहीं पैदल चलने से श्वास गति हृदय, गति तथा रक्त चाप पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है तथा भूख भी बढ़ती है । सैर से स्नायुरोगी, मधुमेह के रोगियों को लाभ होता है व रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है सो अलग। सुबह की सैर प्राकृतिक प्रशांतक है, मार्निंग वॉक से मस्तिष्क में एण्डोर्फिन हार्मोन स्त्रावित होता है जिससे स्वाभाविक परिवर्तन प्रसन्नचित्त रहना, सकारात्मक भावनाओं का प्रस्फुटन होता है। महत्वपूर्ण तथ्य तो यह भी है कि सुबह की सैर के दौरान हुए आत्म-मंथन से दिल, दिमाग, दिशा, दर्शन, दिनचर्या एवं दृष्टिकोण में बदलाव से जीवन-शैली में धनात्मक परिवर्तन आता है। मार्निंग वॉक हो या ईवनिंग वॉक यदि में हमसफर, हमपेशा, सहकर्मी, सहपाठी अथवा सखा-साथियों का साथ हो तो आपमें अंतरंगता बढ़ती है तथा ''मैं'' के स्थान पर ''हम'' की भावना बलवती होती है, साथ ही परस्पर समर्थन, सहयोग व विश्वास के भाव में भी स्थायित्व आने लगता है। इंसान अगर अपनी बायोक्लॉक (जैव घड़ी) का पालन करे जैसे अन्य पशु'पक्षी करते है तो स्वाभाविक तौर पर बहुत सी बीमारियों से बचा जा सकता है। प्रातःकाल की प्राकृतिक छटाएँ, सूर्योदय की लालिमा, सुहावनी व शांतिदायी सर्वोत्तम समय होता है।
यह संदर्भ उक्ति - ''धन'' से सुंदर स्वादिष्ट पकवान, मिठाई, व्यंजन खरीदा जा सकता है किंतु ''भूख'' नहीं, दवाईयाँ खरीदी जा सकती है, किंतु ''स्वास्थ्य'' नहीं,, बेहतर बिस्तर खरीदा जा सकता है, किंतु 'नींद'' नहीं, चश्मा खरीदा जा सकता है, किंतु ''दृष्टि'' नहीं साथियों ठीक ऐसे ही धन से सुविधाएँ खरीदी जा सकती है, किंतु ''सेहत'' नहीं। लाख टके की बात तो यह है कि सैर को अपनी नियमित दिनचर्या में यथोचित स्थान दें।
तीन दशकों का सुबह की सैर व दो दशकों का सांध्य भ्रमण का मेरा तजुर्बा है जिसके कारण उपर्युक्त उल्लेखित सारी बातें कह पाने का मैं साहस कर पा रहा हूँ। सहज, सरल, सहृदय, बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रेरक ब्यतिंव श्री विद्याभूषण जी की प्रेरणा एवं प्रोत्साहन से मैंने यह लिखने की चेष्टा की है। सैर की स्व अनुभूति, प्रारम्भिक दौर ; मेरे मन मस्तिष्क में आज भी चलचित्र की भाँति सामने आ जाती है। नब्बे का दशक जब मैं अध्यापन हेतु शनिवार को प्रातःकालीन विद्यालय अध्यापन हेतु ग्यारह किलोमीटर दूर शालाग्राम खैरबना कलॉ टहलते-दौड़ते शाला समय से पहले पहुँच जाना, स्वामी करपात्री जी शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय खेल मैदान (वर्तमान में स्टेडियम) का गिनकर ग्यारह चक्कर लगाना अथवा क्रॉस सीटी दौड़ की तैयारी में सुबह ग्यारह मिनट में शहर के मुख्य मार्गों को दौड़कर पूरा करने का लक्ष्य प्राप्त करने का जुनून रोमांचकारी होता था। समय के साथ सामर्थ्य के अनुरुप अब भी प्रातः व सांध्य भ्रमण की नियमितता दिनचर्या में सम्मिलित हुआ है। लालपुर रोपणी तक सुबह की सैर के साथ हल्का व्यायाम के बाद साथियों से वार्तालाप करते सूर्योदय पश्चात् घर वापसी ; वहीं समूह में सांध्य भ्रमण वह भी ऐसा समूह जो हमपेशा चिन्तनशील शिक्षक साथियों का, तो सैर का एक अलग ही मजा होता है। नियमितता ऐसी कि भीषण गर्मी हो या कड़ाके की सर्दी या गहन वर्षा हो प्रतिदिन सांध्य भ्रमण दल के स्थाई सदस्यगण श्री विष्णू मिश्रा, श्री भोलेन्द्र वैष्णव, श्री प्रेमप्रकाश बलभद्र, अशोक देवाँगन, श्री चन्द्रशेखर चौधरी के साथ मैं स्वयं निकल पड़ता हूँ । शहर से दूर जाने वाली निर्धारित मार्ग पर समसामयिक शैक्षिक, सामाजिक, राजनीतिक मुद्दों पर वार्तालाप के साथ-साथ हास-परिहास करते अग्रसर रहते है। समूह के वरिष्ठ सदस्य पं.विष्णु मिश्र जी हमेशा यह पंक्ति उद्यृत करते है -
'' वर्ण कीर्तिं मतिं लक्ष्मी, स्वास्थ्यं आयुश्च विन्दाति।
ब्राह्मे मुहुर्ते संजाग्रतिं, प्रियं वा पंकजं यथा॥ ''
(जिस प्रकार श्रीलक्ष्मी प्रिय कमल के प्रातःकाल विकसित होने से उसके रंग (वर्ण) और कीर्ति फैलाता है। उसी प्रकार ब्रह्म मुहूर्त में (सूर्योदय पूर्व ) उठकर भ्रमण करने पर लक्ष्मी, शारीरिक कांति, यश, बुध्दि, आयु एवं स्वास्थ्य में वृध्दि सहज ही होती है।)
अब लगता है सांध्यकालिन भ्रमण दल का शहर में एक पहचान सी बन गई है तभी तो अपने सुख-दुख में एक आमंत्रण पत्र पर '' सांध्य भ्रमण दल '' या '' इवनिंग स्टार्स ग्रुप '' जैसे संबोधन लिखकर सहज ही अपनी स्वाभाविक अभिब्यक्ति देते हैं।
हमने पढ़ा है विद्वान विलसन विजनर लिखते हैं - '' आगे बढ़ते हुए रास्ते में तुम्हें कई लोग मिलेंगे उन सबके साथ अच्छा ब्यवहार करना क्योंकि वही लोग तुम्हें लौटते समय भी मिलेंगे। '' यही जीवन का ध्येय हो उक्त उक्ति पर अमल का सार्थक प्रयास समूह द्वारा किया जाता है। किसी विद्वान के कहा है - '' दस हजार पुस्तकें पढ़ने से बेहतर है एक यात्रा पर निकल जाओ। '' सांध्य भ्रमण दल के सदस्यों द्वारा विगत वर्षो में विशेष अवसरों एवं अवकाश पर जिले व प्रदेश के ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व के स्थलों के साथ -साथ दर्शनीय पर्यटन स्थल की यात्रा भी समयान्तराल में किया जाता है यथा सरोदा जलाशय, सुतियापाट जलाशय, कर्रानाला बैराज, क्षीरपानी जलाशय, रामचुवां नर्मदा कुण्ड, जुनवानी नमर्दा कुण्ड, झिरना नमर्दा कुण्ड, जलेश्वर महादेव डोंगरिया, चरण तीरथ, जोगी गुफा, शनिदेव करिआआमा, हरमो सतखण्डा महल, रानीदहरा जलप्रपात, सरोदादादर, भोरमदेव, पचराही, बकेलाधाम, अमरकण्टक, कान्हाकिसली काननपेण्डारी जैसे स्थलों का सामूहिक यात्रा दर्शन लाभ प्राप्त किया है, साथ-साथ पर्व-उत्सव आयोजनो पर साथ रहना मिल जुलकर मनाना, मजा लेना स्वाभव में सम्मिलित हो गया है। छोटी-छोटी खुशियों पर परस्पर सहकार बन मेवा-मिष्ठान व मुख शुध्दि केन्द्र पर समूह की उपस्थिति भी यदाकदा दृष्टिगोचर होती है। इक्कीसवीं सदी के इस दौर में मनोदैहिक स्वास्थ्य संचेतना की यह सामाजिकता उल्लेखनीय ही जान पड़ती है
'' सुबह शाम करें नियमित सैर, घूमे फिरे हम पैर-पैर।
करे सब बीमारी से बैर, होगा तभी स्वास्थ्य की खैर॥
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सतीष कुमार यदु (व्याख्याता) कवर्धा
वेब पत्रिका रचनाकार में प्रथम लेख " सैर : स्व अनुभूति " प्रकाशन पर सादर साधुवाद !!!
जवाब देंहटाएंbadhiya likhe hain......badhai..Pramod Yadav
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