प्रमोद भार्गव अकसर हमारे देश में ग्रामीण, अशिक्षित और गरीब को टोना-टोटकों का उपाय करने पर अंधविश्वासी ठहरा दिया जाता है। अंधविश्वास के प...
प्रमोद भार्गव
अकसर हमारे देश में ग्रामीण, अशिक्षित और गरीब को टोना-टोटकों का उपाय करने पर अंधविश्वासी ठहरा दिया जाता है। अंधविश्वास के पाखंड से उबारने की दृष्टि से चलाए जाने वाले अभियान भी इन्हीं लोगों तक सीमित रहते हैं। आर्थिक रुप से कमजोर और निरक्षर व्यक्ति के टोनों-टोटकों को इस लिहाज से नजरअंदाज किया जा सकता है कि लाचार के कष्ट से छुटकारे का आसान उपाय दैवीय शक्ति से प्रार्थना ही हो सकता है। लेकिन यह हैरानी में डालने वाली विंडबना ही है कि महाराष्ट विधानसभा में अंधविश्वास के खिलाफ कानून लाने में भागीदारी करने वाला मंत्री ही अंधविश्वास की मिसाल सार्वजनिक रुप से पेश करने लग जाए ? जी हां, कानून का उल्लंघन राष्टवादी कांग्रेस पार्टी के नेता और राज्य के श्रममंत्री हसन मुशरिफ ने किया है। इसी पार्टी के एक नाराज कार्यकर्ता ने उनके चेहरे पर काली स्याही फेंक दी थी। इस कालिख से पोत दिए जाने के कारण मंत्री महोदय कथित रुप से ‘अशुद्ध' हो गए। इस अशुद्धि से शुद्धि का उपाय उनके प्रशंसकों और जानियों ने दूध से स्नान करना सुझाया। फिर क्या था, नागरिकों को दिशा देने वाले हजरत हसन मुशारिफ ने खबरिया चैनलों के कैमरों के सामने सैंकड़ों लीटर दूध से नहाकर देह का शुद्धिकरण कर लिया।
यह वही महाराष्ट है, जहां अंधविश्वास के परिप्रेक्ष्य में मजबूत कानून लाने के लिए, लंबी लड़ाइर् लड़ने वाले अंध-श्रद्धा निर्मूलन समिति' के संस्थापक नरेंद्र दाभोलकर की हत्या अगस्त 2013 में चंद अंधविश्वासियों ने कर दी थी। हालांकि इसी शहादत के परिणामस्वरुप महाराष्ट सरकार अंधविश्वास के खिलाफ कानून बनाने के लिए मजबूर हुइर् और महाराष्ट अंधविश्वास के खिलाफ कानून लाने वाला देश का पहला राज्य बना। लेकिन जब सरकार में शामिल मंत्री ही टोनों टोटकों के भ्रम से न उबरने पाएं तो कानून अपना असर कैसे दिखा पाएगा ? कायदे से तो कानूनी प्रक्रिया को अमल में लाते हुए सरकार को जरुरत थी कि हसन मुशरिफ को तत्काल मंत्री मंडल से बाहर का रास्ता दिखाया जाता और मौजूदा कानून के तहत उन पर एफआइर्आर दर्ज होती ? लेकिन सरकार ने मंत्री के खिलाफ किसी भी तरह से दंडित किए जाने की कोई पहल नहीं की ? जाहिर है, सख्त कानून आ जाने के बावजूद अंधविश्वास की समाज में पसरी जड़ताएं टूटने वाली नहीं हैं ? क्योंकि देश की राज्य सरकारें अवैज्ञानिक सोच और रुढ़िवादी ताकतों से लड़ने का साहस ही नहीं जुटा रहीं हैं।
हालांकि अंध-श्रद्धा निर्मूलन कानून इतना मजबूत है कि यदि महाराष्ट सरकार श्रममंत्री के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति जताती तो उन्हें लेपेटे में ले सकती थी। क्योंकि इस कानून के दायरे में टोनों-टोटकों के जानिया-तांत्रिक जादुइर् चमत्कार, दैवीय शक्ति की सवारी, व्यक्ति में आत्मा का अवतरण और संतों के इर्श्वरीय अवतार का दावा करने वाले सभी पाखंडी आते हैं। साथ ही मानसिक रोगियों पर भूत-प्रेत चढ़ने और प्रेतात्मा से मुक्ति दिलाने के जानिया भी इसके दायरे में हैं। हसन मशरुफ इसलिए इस कानून के दायरे में हैं, क्योंकि उन्हें कालिख पोते जाने के अभिशाप से मुक्ति के लिए दूध से नहलाने का जो टोटका किया गया, उसके दृश्य समाचार चैनलों पर दिखाए गए। अखबारों मंे सचित्र समाचार छपे। इन सब दृश्यावलियों में हसन मशरुफ पूरी तल्लीनता से मनोकामना पूर्ति के लिए मंत्र-सिद्ध करते नजर आए। गोया, राज्य व्यवस्था यदि कानूनी अमल के प्रति दृढ़ संकल्पित होती तो श्रममंत्री बच नहीं पाते ? हालांकि उन्होंने बाद में अपने इस पाखण्ड के लिए माफी मांगी थी।
राजनीतिकों के अंधविश्वास का यह कोई इकलौता उदाहरण नहीं है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री रहे वीएस येदियुरप्पा अकसर इस भय से भयभीत रहते थे कि उनके विरोधी काला जादू करके उन्हें सत्ता से बेदखल न कर दें ? लेकिन वे सत्ता से बेदखल हुए खनिज घोटालों में भागीदारी के चलते ? इस दौरान उन्होंने दुष्टात्माओं से मुक्ति के लिए कई मर्तबा ऐसे कर्मकांडों को आजमाया, जो उनकी जगहंसाई का कारण बने। वास्तुदोष के भ्रम के चलते येदियुरप्पा ने विधानसभा भवन के कक्ष में तोड़फोड़ करवाया। वसुंधरा राजे सिंधिया, रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान ने अपने मुख्यमंत्रित्व के पहले कार्यकालों में बारिश के लिए सोमयज्ञ कराए। मध्यप्रदेश के पूर्व सपा विधायक किशोर समरीते ने मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने के लिए कामाख्या देवी के मंदिर पर 101 भैंसों की बलि दी, लेकिन मुलायम प्रधानमंत्री नहीं बन पाए ? संत आशाराम बापू, उनका पुत्र सत्य साईं तो अपने को साक्षात ईश्वरीय अवतार मानते थे आज वे दुर्गति के किस हाल में जी रहे हैं, किसी से छिपा नहीं है। यह चिंतनीय है कि देश को दिशा देने वाले राजनेता, वैज्ञानिक चेतना को समाज में स्थापित करने की बजाय, अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए तंत्र-मंत्र और टोनों-टोटकों का सहारा लेते हैं। जाहिर है, ऐसे भयभीत नेताओं से समाज को दिशा नहीं मिल सकती ?
हरेक देश के राजनेताओं को सांस्कृतिक चेतना और रुढ़िवादी जड़ताओं को तोड़ने वाले प्रतिनिधि के रुप में देखा जाता है। इसीलिए उनसे सांस्कृतिक परंपराओं से अंधविश्वासों को दूर करने की अपेक्षा की जाती है। जिससे मानव समुदायों में तार्किकता का विस्तार हो, फलस्वरुप वैज्ञानिक चेतना संपन्न समाज का निर्माण हो। लेकिन हमारे यहां यह विडंबना ही है कि नेता और प्रगतिशील सोच का बुद्धिजीवी मानने वाले लेखक-पत्रकार भी खबरिया चैनलों पर ज्योतिषीय-चमत्कार, तांत्रिक-क्रियाओं, टोनों-टोटकों और पुनर्जन्म की अलौकिक काल्पनिक गाथाएं गढ़कर समाज में अंधविश्वास फैलाने में लगे हैं। पाखंड को बढ़ावा देने वाले इन प्रसारणों पर कानूनी रोक लगाए बिना अंधविश्वास मिटना संभव नहीं है ?
प्रमोद भार्गव
लेखक/पत्रकार
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है।
सुंदर आलेख !
जवाब देंहटाएंsir, what u write it is very correct and i am totally agree with u...........
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जवाब देंहटाएंप्रमोद भार्गव जी ,
बहुत ही सुंदर आलेख एक मार्गदर्शन और विचार को लिए हुए |
आभार ..
जवाब देंहटाएंप्रमोद भार्गव जी ,
बहुत ही सुंदर आलेख एक मार्गदर्शन और विचार को लिए हुए |
आभार ..