जैकपॉट जिंदगी बड़े मजे में चल रही थी संजीत और संगीता की․ दोनों ही कमाते थे․ संजीत वकालत करता था, साग-सब्जी भर पैसे रोज कमा लेता था और संगी...
जैकपॉट
जिंदगी बड़े मजे में चल रही थी संजीत और संगीता की․ दोनों ही कमाते थे․ संजीत वकालत करता था, साग-सब्जी भर पैसे रोज कमा लेता था और संगीता एक स्कूल में पढ़ाती थी․ संजीत के पिता को पेंशन मिलता था, वे भी घर चलाने में संजीत और संगीता की मदद कर देते थे․
संजीत और संगीता खुश थे अपने बेटे पप्पु और बेटी सोनी के साथ․ लेकिन अपने वर्तमान परिस्थिति से कौन संतुष्ट और खुश रहता है सो संजीत और संगीता भी अपने खुशहाल जिंदगी में और खुशी चाहते थे और खुशी आज पैसे के सिवाए किसी और चीज के पाने में नहीं․ आज के युग में खुशी का पर्याय पैसा ही बन चुका है․
संजीत और पैसे कमाने की लालसा में जमीन बेचने का दलाली भी दबे छुपे करता रहता पर जीमन की दलाली का तो आज हाल यह है कि बच्चे तक दलाल बन गए है․ बच्चे से लेकर बूढ़े तक जिसे कुछ समझ में नहीं आता जमीन की दलाली करने लगते है․
दूसरी तरफ संगीता सरकारी स्कूल में किसी तरह भी घुसने की जुगत बैठाती रहती․ एक बार सरकारी स्कूल में नौकरी हो गयी फिर क्या, मासिक वेतन की तो गारंटी हो जाएगी और काम कुछ भी नहीं रह जाएगा पर सात-आठ सालों से संगीता कोशिश ही करती रही है अभी तक उसकी मनोकामना पूरी नहीं हुई थी․
संजीत एक दिन अपने लैपटॉप पर बैठा इंटरनेट पर पैसे कमाने की जुगत भीड़ा रहा था․ अपने मेल चेक करता हुआ जब उसने स्पैम हुए मेल को चेक किया तो उसे लगा जैसे उसकी किस्मत ही खुल गयी․ उसने तुरंत संगीता को आवाज दी और संगीता जब आयी तो संजीत ने उसे एक करोड़ रूपए का जैकपॉट जीतने वाला मेल दिखाया․ दोनों पति-पत्नी खुशी से झूम उठे․ मेल में लिखा था कि आपने डायलिंग कंपनी की ओर से एक करोड़ का जैकपॉट जीता है, कंपनी के डायरेक्टर मिस्टर राबिन्सन से आप निम्न फोन नंबर पर संपर्क कर ईनामी राशि लेने की प्रक्रिया शुरू कर सकते है․
संजीत ने तुंरत मिस्टर राबिन्सन को फोन लगाया, दूसरे तरफ से अंग्रेजी में आवाज आयी, हैलो राबिन्सन स्पीकिंग․ संजीत ने टूटी-फूटी अंग्रेजी में मिस्टर राबिन्सन से बात की․ राबिन्सन न जाने क्या-क्या कहा पर संजीत को इतना समझ में आ गया कि उसे एक लाख रूपए दिए गए बैक अकाउंट में पंद्रह दिनों के अंदर जमा करवाने है तभी कंपनी जैकपॉट का एक करोड़ रूपया उसे देगी․
संजीत और संगीता दोनों गहरे सोच में पड़ गए कि इतनी बड़ी रकम कहां से लायी जाए․ दूसरे दिन संजीत अपने कई मित्रों से एक-एक कर संपर्क किया और बिना जैकपॉट वाली बात बताए एक लाख रूपए उधार लेने की जुगत भिड़ाने लगा․ हालांकि संजीत के दो मित्र इतने संपन्न थे कि जो एक लाख रूपए उधार दे सकते थे पर पैसे रहने से ही कोई दानवीर नहीं हो जाता सो वे दोनों बात को टाल गए․ शेष मित्रों में सभी निम्न मध्यवर्गीय परिवार से थे पर संजीत की बातों को गंभीरता से लेते हुए अपने बचत खाते से कोई दस हजार तो कोई पंद्रह हजार देने को तैयार हो गए․ पैंतालीस हजार का इंतजाम संजीत ने अपने मित्रों से उधार लेकर कर लिया था पर अभी भी पचपन हजार का इंतजाम करना बाकी था․ दस हजार रूपए संगीता ने अपने वचत खाते से दिए․ अब पति-पत्नी दोनों इस सोच में पड़ गए कि शेष पैंतालीस हजार का इंतजाम कैसे किया जाए․ पिताजी से पैसे मांगने की हिम्मत संजीत नहीं जुटा पा रहा था․ पति की वेचैनी संगीता से देखी नहीं जा रही थी․ दो दिन ही बची थी कंपनी के अकाउंट में रूपए जमा कराने के लिए․ अंततः जो भारतीय नारी करती है ऐसे मौके पर, संगीता ने भी वही किया․ अपने ब्याह में मिले सोने के कंगन, कान की बाली और गले का हार संजीत को दिया कि इसे बेच दिजीए․ जैकपॉट के एक करोड़ जब मिल जाएंगे तब नये खरीद लूंगी․ संजीत शुरू में तो तैयार नहीं हुआ पर पत्नी के समझाने-बुझाने पर सोने के जेवरात गिरवी रखने को तैयार हो गया․ गिरवी रखने पर उसे साठ हजार मिल गए, कुल मिलाकर एक लाख पांच हजार रूपए का इंतजाम हो गया․ चौदह दिन बित चुके थे, पंद्रहवे दिन संजीत ने खुशी-खुशी बैंक जाकर दिए गए बैंक अकाउंट में एक लाख रूपए डाल आया और मिस्टर राबिन्सन को फोन कर इतिला कर दिया․ मिस्टर राबिन्सन ने संजीत को धन्यवाद दिया और कहा कि जल्द ही जैकपॉट का एक करोड़ रूपया उसके अकाउंट में डाल दिया जाएगा․
संजीत घर पहुंचा, बच्चे और उसकी पत्नी घर पर नहीं थे․ संजीत अपने कमरे में जाकर अभी बैठा ही था कि करोड़ के सपने में खो गया․ बड़ी इम्पोटेड़ कार, मेड इन अमेरिका की सूट, आलीशान बंगला, कई नौकर-चाकर के सपने देखता उसे पता ही नहीं चला कि कब शाम हो गयी और संगीता और बच्चे आकर कोलाहल मचाने लगे․ सपने से जागने के बाद संजीत ने संगीता को बताया कि बस अब कुछ दिनों की बात है उसके बाद वह संगीतापति के साथ-साथ करोड़पति भी हो जाएगा․
पंदह दिन बित जाने के बाद संजीत ने सोचा कि मिस्टर राबिन्सन से बात कर लेनी चाहिए और उसने मिस्टर राबिन्सन को फोन लगाया पर यह क्या फोन से आवाज आ रही थी कि नंबर डज नॉट एकजिस्ट, दो बार, तीन बार और लगभग दस बार फोन लगाने के बाद भी जब नंबर डज नॉट एकजिस्ट ही आता रहा था तब एक अज्ञात भय से संजीत कां पांव कांपने लगा, उसे महसूस होने लगा था कि कहीं वह छला तो नहीं गया ? बेतहाशा संजीत बैंक की ओर दौड़ा, आधे घंटे बाद संजीत बैंक पहुंचा और अपने बैंक अकाउंट का स्टेटमेंट लिया और स्टेटमेंट के एक-एक हर्फ को मंत्र की तरह पढ़ गया․ एक करोड़ की तो बात ही क्या एक रूपया भी उसके अकाउंट में नहीं भेजा गया था․ संजीत ने जिस अकाउंट नंबर पर एक लाख रूपए पंदह दिन पहले जमा करवाये थे उस अकाउंट के संबंध में जब बैंक में पता लगाया तब उसे पता चला कि उस बैंक अकाउंट का कोई अतापता नहीं चल रहा है․
संजीत की तो जैसे कमर ही टूट चुकी थी․ एक लाख रूपया उसके जैसे वकील के लिए बहुत बड़ी रकम थी․ उसे जो बात खायी जा रही थी वह थी संगीता के ब्याह के जेवरात जिसे उसने गिरवी रख छोड़ा था और फिर मित्रों से लिया गया कर्ज․ संजीत के आखों के सामने अंधेरा सा छाता जा रहा था․
बिना मेहनत के रातोंरात करोड़पति बनने की लालसा संजीत को कहीं का नहीं छोड़ा था․
मातृत्व
बजारवाद, उपभोक्तावाद और विज्ञापन की दुनिया में पल-बढ़ रहा एक स्कूली बच्चा ‘सेक्स' के बारे में जानने के लिए रेडालाइट एरिया में पहुंच गया․ अपने-अपने खिड़कियों और दरवाजे से झांकती उस बच्चे को जो सबसे खुबसूरत और प्यारी लगी, उसके पास चला गया․ उस बच्चे में टीवी और सिनेमा के कामुक स्त्रियों को देखकर सेक्स के बारे में जानने की इतनी उत्सुकता थी कि उसने 100 रूपए उस तवायफ को दिए और पूछा, मुझे सेक्स समझाओगी ?
मम्मी-डैडी या स्कूल टीचर उस बच्चे की सेक्स के प्रति उत्सुकता को अगर समझा कर शांत कर दिए होते तो उसे आज रेडलाइट एरिया में जाने की जरूरत नहीं पड़ती․ आज का बच्चा रेडियो पर सिलोन या विविध भारती नहीं सुनता है बल्कि टीवी और इंटरनेट पर कामुकता से भरे विज्ञापन और कामुक स्त्रियों को देखता है, बच्चे में सेक्स को जानने की उत्सुकता होगी ही․
उस बच्चे को देखकर तवायफ को बोर्डिंग में पढ़ते अपने बेटे की याद आयी․ अपने बेटे के उम्र के लड़के के साथ यौन संबंध बनाना उसे अच्छा नहीं लगा और उसने बच्चे को डांट कर कहा, जा अपने बाप को भेज दे, उसे सेक्स समझा दूंगी․
बच्चा हालांकि सरपट वहां से भागा सो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा․
हार की जीत
मिल्खा सिंह को अपनी प्रेरणा मानने वाला रोहित शायद ही कभी अपने स्कूल द्वारा आयोजित खेल प्रतियोगिता में द्वितीय आया हो․ रोहित की विशेषता यह थी कि वह खेल में जितना तेज था पढ़ने-लिखने में भी वो उतना ही तेज था․
रोहित के माता-पिता साहित्यकार थे इसलिए रोहित को अपने वर्ग यानी 12वीं कक्षा की पुस्तकों के अलावा कई तरह के उत्कृष्ट साहित्यिक पुस्तकें एवं पत्रिकाओं के पढ़ने का शौक जाग गया था․ रोहित की माँ अच्छी कहानियां, कविताएं, निबंध वगैरह लिखा करती थी, जिसे रोहित बड़े ध्यान से पढ़ता और रोहित के पिता उसे यदा-कदा साहित्य के उद्देश्य, साहित्य सृजन के तरीके बताते रहते थे․
जहीन होने की वजह से रोहित अपने पिता से एक दिन पूछा कि पापा हमारे जीने का मकसद क्या है ?
रोहित के पिता खुश हुए अपने बेटे के प्रश्न से, साहित्यकार तो वे थे ही, उन्होंने अपने बेटे रोहित को बताया कि एक जर्मन नाटककार वर्तोल्त ब्रेख्त हुआ करता था जिन्होंने जीने के उद्देश्य के संबंध में बड़ी अच्छी बात कही थी कि ‘‘तुम्हारा उद्देश्य यह न हो कि तुम एक बेहतर इंसान बनो बल्कि यह हो कि तुम एक बेहतर समाज से विदा लो․''
रोहित समझ गया था, उसने कहा इसका मतलब तो यही हुआ न पापा कि हम एक अच्छे समाज का निर्माण करें और शुरूआत खुद अच्छे बनने से करें․
एक्जेक्टली रोहित, पापा ने उसका हौसला अफजाई किया․
स्कूल में दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था․ स्कूल में सभी जानते थे कि रोहित तो अव्वल आएगा ही․ रोहित से दौड़ में सिर्फ उसका मित्र विवेक ही होड़ ले सकता था․ रोहित, विवेक और मंयक दौड़ में क्रमशः पहले, दूसरे और तीसरे नंबर पर आते रहे थे․ दौड़ का आयोजन नियत समय पर किया गया․ दौड़ में पूर्व की भांति रोहित सबसे आगे भाग रहा था परंतु यह क्या रोहित अचानक रूक गया․ रोहित के साये की तरह विवेक को पीछे न पाकर रोहित रूका था, विवेक गिर पड़ा था, रोहित उसके मदद के लिए रूक गया परिणाम यह हुआ कि मंयक दौड़ में प्रथम आ गया था․
स्कूल के टीचर, अभिभावक सभी अवाक थे लेकिन रोहित के पिता बहुत खुश हुए उन्होंने पुरस्कार वितरण समारोह में दो शब्द कहे कि रोहित अगर विवेक की मदद के लिए नहीं रूकता तो वह निसंदेह प्रथम पुरस्कार हासिल करता परंतु रोहित जीतने की इच्छा से अधिक विवेक के जीवन को महत्व दिया․ समारोह में रोहित के हार की जीत के लिए सबसे ज्यादा तालियां बजी․ पुरस्कार रोहित को नहीं मिला पर पुरस्कार जीतने से बड़े मकसद को रोहित हासिल कर लिया था․ रोहित के इस छोटे से कार्य ने समाज को थोड़ा और अच्छा बनाया दिया था․
राजीव आनंद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरगंड़ा
गिरिडीह-815301
झारखंड़
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