श्री मती उषा प्रियंवदा हिन्दी के नयी पीढी के ध्यान आकर्षित कहानिकारों में एक है I उनकी एक चर्चित कहानी है -' वापसी ' I पारिवारिक ...
श्रीमती उषा प्रियंवदा हिन्दी के नयी पीढी के ध्यान आकर्षित कहानिकारों में एक है I उनकी एक चर्चित कहानी है-' वापसी ' I पारिवारिक जीवन के विडम्बनाओं के कारण उठने वाले शिथिलताएँ आजकल भयानक रूपधारण कर लिया है I इसका यथास्थित् वर्णन इस कहानी में मिलता है I वर्तमान काल में कुटुम्ब जीवन संकुचित एवं स्वार्थता से भरी हुई दिखायी पडती है I इस वक्त इस कहानी का पुनः अध्ययन हमारा दायित्व बन जाता है I
वापसी ' ललित-कोमल भाषा एवं शैली में रचि गयी, मानव जीवन की अत्यन्त सूक्षम तथा क्षण-प्रतिक्षण की क्रिया-कलापों पर दृष्टी डालने वाली मनोरम कहानी है I जिस में लेखिका की मनोवैञानिक जानकारी प्रकट होती है I
विवेच्य कहानी के केन्द्र कथापात्र गजाधर बाबु है I वे अपने जीवन के अधिकाँश समय यानि सुवर्ण काल भारतीय रेलवे में नौकरी कर, अवकाश प्राप्त करके घर लौटने वाला है I गजाधर अपने पत्नि-बच्चों से अलग होकर सुदूर पर काम करते समय उनका विचार परिवार के नाना प्रकार के विषयों से बने गये विषमों पर मिल जुलकर रहते थे I वह अपने पारिवारिक जीवन के आरंभिक दिनों में पत्नी- बच्चों सहित रेलवे क्वाटर्स पर रहते थे I
रेलवे जैसे हमारे सरकार विभाग तक कभी कभी उस पर काम करने वाले कर्मचारियों के वैयक्तिक तथा पारिवारिक जीवन पर दृष्टी नहीं डालता है I गजाधर बाबु का स्थिति भी दूसरा नहीं है I बीच बीच में होने वाला तबादला कर्मचारियों के जीवन को संघर्ष निर्भर बना देता है I वापसी ' में चित्रित पहला समस्या अधिकारी वर्ग अपने कर्मचारियों पर करने वाला यह अनीतिपरक मनोभाव है I
गजाधर बाबु को रेलवे में कितना दायित्व है, उतना या कभी कभी उससे ज़्यादा उत्तरवादित्व पत्नी और पिता होने के नाते सपरिवार से करना आवश्यक है I किन्तु अधिकारियों के अन्धापन के कारण उन्हें अपना दायित्व निभाने को नहीं होता है I हाँ, रेलवे उन्हें वेतन देता है अवश्य, किन्तु व्यक्ति को और उनके परिवार चलाने को आज़ादी नहीं देता है I मनुष्य सामाजिक जीवि है, उन्हें समाज और परिवार से पूर्णरूप में अलग होकर जीना असाध्य है I सरकारी हो या गैर सरकारी संस्था, उन्हें ऊपर कहे गये बात तनिक भी शोभा नहीं देता है I परिवार से बिछूडने के कारण गजाधर का दिन-रात मुसीबत-भरी बन सकती है I परिवार से महीने में दो तीन दिन तक सीमित मुलाकात, पारिवारिक जीवन शिथिल होने को और क्या कारण चाहिए ?
गजाधर बाबु अच्छा खाता नहीं है, पीता नहीं है और अच्छा नहीं पहनता है I वे रात- दिन मेहनत करता है, परिवार चलाने केलिए I पैसा जुडा जुडाकर मकान बनाने को, बच्चों को पढाने को, अच्छा कपडा पहनाने को और उसे खिलाने-पिलाने को खर्च कर देता है I इस प्रकार बहुत कुछ सहने के पश्चात् अपने पत्नी-बच्चों और पुत्र वधु के साथ खुशी-मज़ाक के साथ घर पर रहने का उच्च लालसा लेकर लौटता तो उन्हें ञात होता है कि अपनी सारी मोहों का स्थान मोहभंग के हिसाब से जुडा हुआ है, सब कुछ व्यर्थ है I उनका आगमन घरवालों को तनिक भी नहीं रुचता है I सारी सदस्यों की वितृष्णा पत्नी के मुँह से प्रकट होती है I बाकी
लोगों के दैनाँदिन व्यवहार भी इसकी समर्थन करती है I किसी की चेहरा और वाणी उन्हें साफ एवं उपयुक्त नहीं बन सकती Iगजाधर को सोने और बैठने केलिए एक कमरा तक नहीं मिला है I जिन लोगों के जीवन की तानाबाना बुनाने केलिए आजीवन घोर से घोरतम लडाई लडे, उन्हें अपनी उपस्थिति की आवश्यकता नहीं, अनुपस्थिति की आवश्यकता होती है I यहाँ ' वापसी ' का दूसरा समस्या प्रकट होता है I हर माता-पिता हर समय, विशेषकर बुढापे में अपने सन्तानों की सामीप्य चाहते है I हर सन्तान के मन में
अपने माँ-बाप को साथ लेकर रहने का उदात्त मनोभाव होना चाहिए I दुःख की बात है कि ' वापसी ' के अमर हो, कान्ती हो या अन्य लोग हो, उनके दृष्टी में गजाधर बाबु अनचाहा व्यक्ती है I बाबु के प्रति किसी के मन में आदर ही नहीं, तनिक भी प्यार तक नहीं है I अपनी आज़ादी भरी भौतिक जीवन जगत् पर बाधा डालने केलिए आया हुआ एक दुष्ट है यह, गजाधर का स्थान इससे बहत्तर नहीं है I वापसी ' में वर्तमान मनुष्य के ये व्यापारिक, व्यवसायिक और स्वार्थतापूर्ण चिन्ता एवं व्यवहारों का आविष्कार आरंभ से अंत तक पाया जाता है Iमाता-पिता को खिलाने पिलाने का एक यन्त्र समझकर, उनका आमदनी अच्छा और सूरत बुरा, मनोभाव के साथ व्यवहार करने वाला सन्तान वास्तव में भारतीय परम्परा के नहीं है, पाश्चात्य सभ्यता के संपर्क से आया हुआ है, और क्या ?
भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता उदात्त और अनुकरणीय है I इसमें माता- पिता को प्रम- आदर ही नहीं, ईश्वर तुल्य समझकर अर्चना-आराधना भी करता है, ऐसा एक ज़माना था Iबच्चे, जन्मदाता को आँखों का तारा मानता था I व्यवसायिक मनोभाव और स्वार्थता ने हमारी संस्कृति की कुछ सद्वृत्तियों को जड से तोड डाला I हमारी संस्कृति एवं सभ्यता की अमूल्य वरदानों को खो कर हम आगे बढ जाते है I कहाँ की ओर ? माता-पिता संतानों के अनुपयोगी चीज़ या बध्य है- ऐसा भाव नयी पीढि में पैदा होने का अनेक कारण होंगे, इस पर विचार- विमर्श करके सीधा रास्ता दिखाने का दायित्व समाज को होता है I बुढापे में अपने पत्नि तथा सन्तानों से पूरी अपमान और अवहेलना सहने वाला 'वापसी ' का गजाधर बाबु इस प्रकार के अनेक चिन्ताओं एवं सवालों को हमारे सम्मुख उठाते है I
घर पर पहुँचते वक्त गजाधर बाबु को मालुम होता है कि पूरी पारिवारिक वातावरण पर शिथिलता है I उनकी बेटी बसंती कालेज पर पढती है I वह युवती होकर भी बूढी माँ को थोडी भी सहायता नहीं करती I यह भी नहीं, रसोई की कोई काम तक नहीं जानती है I कुछ समय मिलती तो सीधे पडोसी के घर की ओर जाती है I उधर, पडोसिन शीला के यहाँ दो नौजवान लडके है I बसन्ती की यह आज़ादी भरी हुई आना-जाना उसकी माँ रोकती तो उन्हें नहीं रुचती है I अतः वह अपनी सवारी छोड नहीं सकती है I एक दिन पिताजी गजाधर बाबु बेटी बसंती को रोकती है I उनसे भी उनकी प्रतिक्रिया दूसरी नहीं होती I यहाँ ' वापसी ' की तीसरी विस्फोटनात्मक समस्या उभर कर आती है I युवा-पीढि कभी कभी यह भूल जाती है कि बडे लोग जीवन की गति विधियों की सच्ची अनुभवी है I यहाँ भी नहीं, संसार के सब समाज पर बडे लोग छोटे के मार्गदर्शक बनकर रहता है I जिस घर या समाज पर ऐसा नहीं चलता, उस समाज का अधःपतन अवश्यंभावी है I हम यहाँ यह देखता है कि युवा-पीढि यौवन के आवेग में स्वयं अपना रास्ता खोलकर आगे जाता है I अधिकाँशतः यह निर्णय उन्हें आपत्ति पर पहूँचाती है I आजकल के युवक इस प्रकार निर्णय करता है, इसके पीछे इंटरनेट, मोबैल फोन जैसे उपकरणों की बडी प्रभाव है I हम सबों को मलुम है कि ये उपकरण हमारे बच्चों के अधिकाँश समय को काट ले जाता है I
अपना घर पराया लगना एक व्यक्ति के जीवन की कितनी दयनीय अवस्था है ? गजाधर बाबु का यह मन बदलाव अपनी पत्नी के कारण तीव्र होता है I क्योंकि उनकी पत्नी वर्षों पूर्व उसे प्यार-स्नेह से अभिषेक कर दिया था, आज भी वैसा एक उपस्थिति गजाधर चाहता, किन्तु पत्नी
आज उनके प्रति अजनबीपन का रूखा व्यवहार करती है I यह ध्यान देना योग्य है कि गजाधर किसी के भी अनुचित कार्य कलापों पर दखल नहीं दे सकते, फिर भी घर का नौकर तक उनका शत्रु बन सकता है I हर वेला में घर का अपरिचितत्व गजाधर को पीछा कर रहा है I अपमान और अकेलापन सह सहकर ज्वलते समय उन्हें दूर की रामजीलाल की चीनि मिल की याद आता है, जो रेलवे के नौकरी से छूटते समय गजाधर बाबु अपने मिल पर काम करने का आग्रह रामजी लाल ने प्रकट किया था I
वापसी ' का चौथा समस्या अर्थाभाव से बनी हुई समस्या है I गजाधर बाबु रेलवे पर काम करते समय उन्हें अच्छ वेतन मिलता था I घर के सदस्य किसी प्रकार का आर्थिक संकट नहीं झेलता था I किन्तु अवकाश पा जाने के करण अब उनकी आमदनी में भारी कमी होती है I घर की खर्च पहले के जैसे अनयंत्रित रूप में बढ जाती तो सब काम संभालने में गजाधर असर्थ बन सकता है I वे यह बात अपनी पत्नी को समझाने का प्रयास करता है I किन्तू पत्नी इस सत्य को उसी अर्थ में स्वीकार करने केलिए तैयार नहीं होती है Iगजाधर के घर पर घटित होने वाली यह स्थिति हमारे यहाँ के अवकाश पाप्त कर गये अधिकाँश लोग सामना करता है I यह भी सब समझ लेना चाहिए कि नौकरी करते वक्त कितना वेतन मिलता, उतना पेंशन नहीं मिलता है I इसलिए आगे के खर्च में सावधानी और रोक-टोक आवश्यक है I इधर गजाधर को करने को दूसरा उपाय नहीं है I घर पर नौकर है, उनका स्वभाव है कि सामान केलिए बाज़ार की ओर ले जाने वाले पैसे से चोरी करना I एक ओर चोरी, दूसरी ओर नौकरी में उदासीनता और तीसरी ओर मालिक का धनाभाव, हाँ, सब घरवालों के समान गजाधर ने उसे निकलवा देता है I उस दिन संध्या में गजाधर का बेटा अमर आकर नौकर का आवाज़ लगाता तो बहु ने बताया कि आपका पिता उसका नाता तोड डाला I अमर क्रुद्ध हो जाता है I यहाँ ' वापसी ' का एक और समस्या उठ खडा होता है I अमर अपने कमरे में पत्नी के साथ बैठकर कुछ निश्चय-निर्णय लेता है I अगले दिन बेटा एवं पतेहु घर छोडकर किराये के मकान लेकर रहने का निर्णय प्रस्तावित किया I गजाधर को मन पर तीर पडने समान लगा I मानसिक संघर्ष के कारण वह हताश हो जाता है I जिस मोह लेकर लौटाया, वह मोह मिट्टी के बर्तन के समान धरती पर गिरकर टूट पडा I परिवार की एकता, उस एकता से उपजने वाली प्यार-दुलार, सुख-दुःख आदि सब उनके आँखों के आगे घूमने लगे I परिवार की ऐक्य के जगह अनेक्य व्याप्त हुआ I गजाधर बाबु यह निष्कर्ष पर पहुँचते है कि इसका कारण और कोई नहीं, स्वयं ही है I
गजाधर बाबु सोचता है कि क्या बुढापा पाप है ? क्या दूर- विदूर के नौकरी से अवकाश ग्रहण कर अपने घर पर लौटना पाप है ? क्या आधुनिक काल में बेटा, बेटियों और पतेहु के दृष्टिकोण में हर पिता पापी है ? उनके मन पर इस प्रकार के अनेक सवाल उठते है I यह उनका ही नहीं, अनेक लोगों के समस्या का रूप धारण कर हमरे पारिवारिक जीवन समस्या बनकर चारों ओर फैलते है I
कहानी के अंत में रामजीलाल के चीनि मिल की ओर जाते समय गजाधरबाबु फिर एक बार अपने पसीने से बनाये गये घर को देखता है I अपने लोगों के बीच पराया बनकर रहने की पीडा उनकी चेहरे पर प्रतिफलित होती है I पूरे संसार में अजनबी आदमी होकर गजाधर, मन पर भरी हुई मामलों पर जूझते हुए लौटते वक्त, पाठकों के ह्रदय में एक हमदर्दी पैदा होती तो उसे मनुष्य सहज स्वभाविक प्रक्रिया समझना चाहिए I
कहानी के अंत में उनकी पत्नि, बेटा नरेन्द्र से कहती है - ' अरे नरेन्द्र, बाबुजी का चारपाई कमरे से निकल दे I उसमें चलने की जगह नहीं... ' यह वाक्य इस कहानी की मुख्य समस्या और संवेदना को पूर्ण रूप में उद्घाटित करने केलिए पर्याप्त है I बाकी सब सौर मंडल में मुख्य ग्रह के चारों ओर अन्य ग्रह घूमन के जैसा है I
Written by LEMBODHARAN PILLAI.B ,
RESEARCH SCHOLOR, UNDER THE GUIDANCE OF
PROF.(Dr.) K.P. PADMAVATHI AMMA,
KARPAGAM UNIVERSITY, COIMBATORE, TAMILNADU, INDIA.
लम्बोधरन पिल्लै. बी, तमिलनाडु कॉयम्बत्तूर करपगम विश्वविद्यालय में
प्रो.(डा.) के.पी.पद्मावती अम्मा के मार्गदर्शन में पी.एच.डी. केलिए शोधरत
लंबोधरन पिल्लै.बी का जन्म 20 मई 1965 को कोट्टारकरा, कोल्लम, केरल में हुआ। पिता- कृष्ण पिल्लै एवं माता- भगीरथि अम्म । पत्नि : श्रीलेखा नायर , घनश्याम नायर पुत्र , नक्षत्र नायर पुत्री । शिक्षा: एम.ए. हिन्दी, एम.फिल एवं करपगम विश्वविद्यालय (कोयम्बटूर) से पी.एच.डी (शोधरत) । सम्प्रति: प्रोफसर (हिंदी), एम.ए.एस. कालेज, मलप्पुरम, केरल । पिछले 15 वर्षों से हिन्दी और मलयालम में कहानी, उपन्यास, आलेख और कविता लिखकर साहित्य क्षेत्र में सक्रिय । मलयालम और हिन्दी के साप्ताहिकों में रचनाएँ प्रकाशित । मनीषि,तपस्या आदि पुरस्कारों से पुरस्कृत । ई-मेल: blpillai987@gmail.com
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