(बाल कविताएँ ) राम नरेश 'उज्ज्वल' 1 सम्मान राम -सा मेले में रावण का पुतला हर साल जलाया जाता है। इस तरह पर्व विजयादशमी हर जगह मन...
(बाल कविताएँ )
राम नरेश 'उज्ज्वल'
1
सम्मान राम-सा
मेले में रावण का पुतला
हर साल जलाया जाता है।
इस तरह पर्व विजयादशमी
हर जगह मनाया जाता है।।
मम्मी कहती हैं रावण ने
जन-जन को बहुत सताया था।
इसलिए राम ने मार उसे
पापी का पाप मिटाया था।।
रावण की चिता जली थी जब
आनन्द हर तरफ छाया था।
यह पर्व दशहरा उसी समय से
बीच हमारे आया था।।
करता जो अच्छे काम सदा
सम्मान राम-सा पाता है।
औरों को सदा सताता जो
वह फल रावण सा पाता है।।
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2
बिल्ली रानी
बिल्ली रानी बड़ी सयानी
दूध रोज पी जाती है।
आहट पाकर नौ दो ग्यारह
पहले ही हो जाती है।।
बच्चे जब घर पर होते हैं
तब चुपके से आते है।
धीरे-धीरे पूँछ हिला कर
उनका मन बहलाती है।।
अपने बच्चों को लेकर जब
बिल्ली रानी आती है।।
दीदी अपने पास बुला कर
उनको दूध पिलाती है।।
इसे देखकर भगते चूहे
जल्दी से छिप जाते हैं।
बिल्ली से बच गयी जान तो
अपनी खैर मनाते हैं।।
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3
सबको नाच दिखाता
लेकर साँप, सपेरा आता
सबका मन बहलाता है।
फन के आगे हाथ दिखाता
खुद को खूब बचाता है।।
गाँव-गाँव में , शहर-शहर में
अपनी बीन बजाता है।
नाग झूमता फन फैला कर
सुन्दर नाच दिखाता है।।
खेल देख कर खुश होते जब
ताली लोग बजाते हैं ।
खेल खतम होते ही दर्शक
पैसे खूब लुटाते हैं।।
पैसे लेकर के सबसे वह
अपनी झोली भरता है।
खेल खतम कर बाँध पिटारा
अपने घर को जाता है।।
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4
नये साल की नई कहानी
बीत गया है साल पुराना
नया साल फिर आया है।
नयी उमंगे जागी मन में
नया जोश फिर छाया है।।
बीती बातें छोड़-छाड़ कर
नई डगर पर जाना है।
नये साल के साथ चलें हम
आगे कदम बढ़ाना है।
नये साल की नई कहानी
नई तरह से आयी है।
आशा की यह नई किरण बन
नई रोशनी लायी है।
सब सबको दे रहे मुबारक
बच्चों के मन भाया है।
नई जिन्दगी शुरू करें फिर
ऐसा मौका आया है।।
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5
सर्दी से सब जान बचायें
जाड़े का जब मौसम आये।
थर- थर- थर- थर बदन कँपाये ।।
गरम रजाई , कम्मल लायें
स्वेटर और कोट पहनाये
सर्दी से सब जान बचायें
मफलर टोप जल्द ही लायें
आग बार कर खूब तजाये।ं
जाड़े का मौसम आये।।
सबके दाँत कटा-कट बोलें
ठंडी अपना मुँह है खोले
पानी देख दूर हो जाते
छय-छय दिन तक नहीं नहाते
पानी से तो सब घबराये।
जाड़े का जब मौसम आये।।
रात बड़ी दिन छोटे होते
पंखे, कूलर कभी न चलते
बिस्तर पर काफी मिल जाये
और पकौड़ी भी आ जाये
सर्दी सबको खूब सताये।
जाड़े का मौसम जब आये।।
6
ला के मुझे दो
उजला उजला रूप
चाँदी जैसी धूप
सूर्य की परछाईं
सागर की गहराई
ला के मुझे दो।
बगीचे की उमंग
भँवरों की तरंग
फूलों की सुगंध
मीठा सा मकरंद
ला के मुझे दो।
काली-काली रात
तारों की बरात
हँसने वाला शूट
उड़ने वाला बूट
ला के मुझे दो।
इन्द्र का सिंहासन
विष्णु जी का आसन
अग्नि वाला बान
राम का कमान
ला के मुझे दो।
यशोदा का दुलार
नंद जी का प्यार
सोने सा संसार
राजा का दरबार
ला के मुझे दो।
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7
घर-घर हँसी ठिठोली है
होली है भई होली है।
बुरा न मानो होली है।।
गली में रंगों की बौछार,
खूब मचा है हा-हा कार,
पैंट पजामे सभी रंगे हैं,
रंगों की चल रही फुहार,
छोटू ,पप्पी, गुड़िया, पिंकू,
सबने पुड़िया घोली है।
बुरा न मानो होली है।।
कोई काला भूत बना है,
और कोई है लालो लाल,
पिचकारी से सबको रंगते,
खूब लगाते रंग गुलाल,
सबको ही सब गले लगाते,
माथे चन्दन रोली है।
बुरा न मानो होली है।।
कोई कमरे में छुप जाता,
कोई छत पे है चढ़ जाता,
रंग देख के कोई भागे,
कोई उल्टा है दौड़ाता,
गलियों में है भागम्-भागी,
घर-घर हँसी ठिठोली है।
बुरा न मानो होली है।।
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8
मिल जुल कर ही चलती रेल
खेलें खेल बना कर रेल।
भीड़-भड़क्का ठेलम्् ठेल।।
रेल बनेगी लम्बी चौड़ी,
स्टेशन पर पुआ-पकौड़ी,
रेल चलायेंगे सब मिल कर,
एक साथ सब कदम मिला कर,
कोई किसी को छोड़ न देना,
रेल का डिब्बा तोड़ न देना,
खूब चलायेंगे हम रेल।
भीड़-भड़क्का ठेलम् ठेल।।
चिन्टू , पप्पी, गोल्डी , आओ,
कमर पकड़ कर रेल बनाओ,
लल्लू भैया, दीदी आयें।
वे सबसे आगे लग जायें।।
सीबू , बच्चा , रिंकू , जाओ,
तुम भी तो कुछ मदद कराओ,
मिल जुल कर ही चलती रेल।
भीड़-भड़क्का ठेलम्-ठेल।।
झक-झक-झक-झक रेल चलेगी,
कहीं बीच में नहीं रूकेगी,
हिन्दू , मुस्लिम , सिक्ख , इसाई,
खर्च करे जो आना पाई।
उसको घर तक पहुंचायेगी
मंजिल फिर तो मिल जायेगी
बच्चों की यह प्यारी रेल।
भीड़-भड़क्का ठेलम्-ठेल।।
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9
छुट्टी के दिन
छुट्टी के दिन हैं मस्ताने,
झूम-झूम कर मौज मना लें।
पढ़ना-लिखना रोज-रोज का,
छुट्टी में ही गप्प लड़ा लें।।
नाना-नानी के घर जाकर,
रबड़ी, दूध, मिठाई खा लें।
मामा को कंगाल बना के,
सेहत अपनी खूब बना लें।।
बाग-बगीचों में भी खेलें,
पेड़ों पर झूला भी झूलें।
मन चाहे जो करें शरारत,
पढ़ना-लिखना सब कुछ भूलें।।
कुल्फी, बरफ, मलाई खायें,
कोका कोला भी पी जायें।
बार-बार मन कहे हमारा,
छुट्टी के दिन कभी न जायें।।
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10
बच्चों जैसे प्यारे फूल
कितने सुन्दर प्यारे फूल।
हरदम हैं मुस्काते फूल।।
लाल, बैंगनी, हरे, गुलाबी,
सबको खूब लुभाते फूल।
खुशबू सदा लुटाते रहते,
रोज सुबह खिल जाते फूल।
जाति-पाँति का भेद न जाने,
बच्चों जैसे प्यारे फूल।
झूम-झूम कर जैसे हमको,
अपने पास बुलाते फूल।
रोना नहीं सदा खुश रहना,
हँसना हमें सिखाते फूल।
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राम नरेश ‘उज्ज्वल‘
विधा : कहानी, कविता, व्यंग्य, लेख, समीक्षा आदि
अनुभव : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगभग पाँच सौ रचनाओं का प्रकाशन
प्रकाशित पुस्तकें
1- ‘चोट्टा' (राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0 द्वारा पुरस्कृत)
2- ‘अपाहिज़' (भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत)
3- ‘घुँघरू बोला' (राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0 द्वारा पुरस्कृत)
4- ‘लम्बरदार'
5- ‘ठिगनू की मूँछ'
6- ‘बिरजू की मुस्कान'
7- ‘बिश्वास के बंधन'
8- ‘जनसंख्या एवं पर्यावरण'
सम्प्रति : ‘पैदावार‘ मासिक में उप सम्पादक के पद पर कार्यरत
सम्पर्क : उज्ज्वल सदन, मुंशी खेड़ा, पो0- अमौसी हवाई
अड्डा, लखनऊ-226009
वाह... उम्दा कवितायेँ ...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंउत्साह वर्धन हेतु धन्यवाद
हटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंउत्साह वर्धन के लिए धन्याद |
हटाएंबेहतरीन कविताएं। राम नरेश जी अच्छे कवि हैं। एक साथ इतनी कविताएं पढ़वाने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंउत्साह वर्धन के लिए धन्याद |
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