प्रमोद यादव का व्यंग्य - तेरे मेरे सपने

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तेरे मेरे सपने / प्रमोद यादव पहले ही बता दूँ कि देवानंद साहब के ‘ तेरे मेरे सपने’ की बात नहीं कर रहा..मैं उन सपनों की बातें कर रहा हूँ जो र...

तेरे मेरे सपने / प्रमोद यादव

पहले ही बता दूँ कि देवानंद साहब के ‘ तेरे मेरे सपने’ की बात नहीं कर रहा..मैं उन सपनों की बातें कर रहा हूँ जो रात को सोने के बाद आते हैं..शायद ही ऐसा कोई इन्सान होगा जिसे सोने के बाद सपने न आते हों..जो यह कहे कि उन्हें कभी नहीं आते,वे या तो सरासर झूठ बोलते हैं या फिर ये मानिए वे सोकर उठते ही सब भूल जाते हैं...सपनों का दिखना एक स्वाभाविक घटना है..जैसे सुख और दुःख का जीवन में आते-जाते रहना.

सपने क्यों आते हैं ?..कहाँ से आते हैं ?..कैसे आते हैं ? इसे विज्ञानं अब तक बाँच ही रहा है.... सदियों से शोध करते सैकड़ों शोधकर्ता शहीद हो चुके..अतः इस शहीदी मार्ग पर न जाते हुए, सपनों का छिद्रान्वेषण न करते हुए अपनी रोजमर्रा की दुनिया में लौटते हैं जहां बस ..सपने हैं....सपने ही सपने...हसीन सपने..रंगीन सपने..दिलकश और लुभावने सपने..कभी-कभी ये ‘निगेटिव’ रोल में भी आते हैं..बुरे सपने..खौफनाक सपने..डरावने सपने..जहाँ रहस्यमय..बुरे और डरावने सपने भयभीत करते हैं..वहीँ दिलचस्प,मनोहारी और अच्छे सपने आत्मविभोर भी कर देते हैं..

सपनों का इतिहास खंगालने की मैं जरुरत नहीं समझता..जब से दुनिया बनी..स्त्री-पुरुष का पदार्पण हुआ..तभी से सपनों का भी आगाज हुआ ..सपनों का दस्तूर है कि रात को सोने के बाद ही आते हैं..पर अपवाद कहाँ नहीं होते ? कुछ लोग जागते-जागते भी सपने देख लेने में महारत रखते हैं..ऐसे शख्स को ‘ मुंगेरीलाल ‘ कहते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारी तरह पशु-पक्छी,कीड़े-मकोड़े भी सपने देखते हैं..अब उनके सपने कितने हसीन, रोमेंटिक या डरावने होते होंगे.. इस पर फिर कभी चर्चा करेंगे.

फिलहाल मैं थोडा ‘रिवर्स” में, आदिमयुग में प्रवेश करता हूँ..सोचता हूँ, उस युग के लोग कैसे सपने देखते रहे होंगे..और देखने वाला आदिमानव उसे कैसे आपस में ‘रिएक्ट’ करता रहा होगा...तब ना ही कोई संपर्क की भाषा-तेलगु-मराठी या हिन्दी-सिंधी थी सब के सब ‘मूक-बधिर ‘चैनल के जैसे थे.. बेचारे झुण्ड में रहते..दिन भर हाड -तोड़ मशक्कत कर खरगोश-हिरन का शिकार करते.. रात को खाते-पीते,नाचते और जब सोते..खुद शेर-भालू का शिकार हो जाते..होता यूँ था कि रात होने पर सभी जंगल के किसी महफूज स्थान को चुनकर सोते..एक दादा टाइप का हट्टा-कट्टा मर्द ( मुखिया ) उनकी हिफाजत के लिए रात भर पहरे देता जागता रहता..पर सुबह होने पर कभी-कभी वह भी गायब पाया जाता.. जो गायब होता उसे खोजने की वे जहमत नहीं उठाते..ना ही उसका कोई शोक मनाते..’ जो चला गया उसे भूल जा’ के तर्ज पर वे चलते..और मशीन की तरह फिर भाग-दौड़ में लग जाते..फिर वही हिरन..खरगोश..साम्भर..हादसा होने के बाद वे जंगल में सेक्टर बदल लेते..और एहतियात के तौर पर रात को एक की जगह दो बलवान आदिमानव को पहरेदारी पर लगा देते ताकि रात को कोई अनहोनी हो तो कोई एक तो कुछ बता सके. लेकिन दुर्भाग्य से कभी-कभी दोनों भी नदारत हो जाते...

विषयान्तर हो रहा हूँ.. वापस लौटता हूँ..तो बात सपने की हो रही थी..जो लोग शारीरिक श्रम ज्यादा करते हैं..हाड -तोड़ मेहनत करते हैं..उन्हें नींद भी गहरी आती है..कहते हैं, गहरी नींद में सपने नहीं आते..तो कुछ कहते हैं-गहरी नींद में ही सपने आते हैं..मुझे तो पहली वाली बात ठीक लगती है..कई मजदूरों को घोड़े बेच सोते देखा है..जिन्दा लाश की तरह पड़े रहते हैं..सपनों से इनका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं दिखता ..आदिम युग के लोग भी इसी तरह सोते थे..पर जिंदगी इतनी बड़ी और लंबी है कि कभी न कभी तो सपने आते ही होंगे..कुछ न कुछ तो देखते ही होंगे.. वैज्ञानिकों का मानना है कि स्वप्न हमारी वे इक्छाये हैं जो किसी भी प्रकार के भय से जाग्रत अवस्था में पूर्ण नहीं हो पाती है, वे सपनों में साकार होकर हमें मानसिक संतुष्टि व तृप्ति देती है..अब भला आदिम युग के स्त्री-पुरुषों को सपने में सिवाय खरगोश-हिरन, के और क्या दिखता रहा होगा...यही तो उनकी पहली और आखिरी इक्छाये होती थी.. हसीन और रंगीन सपने तो उन्हें कभी आते ही नहीं होंगे..हम-आप किसी सेक्सी हिरोइन को सपने में नग्न-या अर्धनग्न देख लें तो उसे हम रंगीन और हसीन सपने की संज्ञा देते हैं..पर जिस दुनिया में सारे के सारे लोग..औरत-मर्द..बच्चे-बूढ़े.युवा सभी किसी ‘पोर्न साईट’ की तरह एक साथ साक्षIत नंगे खड़े हों..वहाँ किसी हसीन सपने कि क्या गुंजाइश ? चलिए आगे बढते हैं..

जहां तक मेरा ख्याल है- सपने भी व्यक्ति को उनकी हैसियत यानी पद, प्रतिष्ठा, गरिमा, व्यवसाय, जाति और तबके के अनुसार ही आते होंगे..वैसे कोई भिखारी सपने में खुद को प्रधानमन्त्री के तौर पर देख ले तो कोई उसका क्या उखाड सकता है..सपना है भाई..बनने दो..सपने में पी.एम.बनकर क्या कर लेगा ? (जब सपने से बाहर के पी.एम. की ही बोलती बंद है) वैसे ऐसे सपने कोई मंत्री-संत्री या नेता देखे तो ठीक..यह हाई लेबल का सपना है..मेरा तो विश्वास है कि इस तरह के सपने गरीब तबके के लोग नहीं देखते होंगे..पिछले दिनों मैंने समाज के विभिन्न वर्ग-विशेष के लोगों से इस विषय में बातचीत की..पेश है उसी की एक झलक –

सबसे पहले एक नेताजी से पूछा- ‘क्या रात में आपको सपने आते हैं ?’

उन्होंने जवाब दिया- ‘ भैया..मतदान के बाद तो दिन में भी आते हैं..’

‘ किस तरह का स्वप्न देखते हैं ?’

‘ यही कि असेम्बली में हम शपथ-ग्रहण कर रहे हैं..’

‘ रात को सोने के बाद कैसे सपने आते हैं ?’

‘ अरे भैय्या ..रात को नींद ही कहाँ आती है जो सपने देखें..रात तो करवटें बदलते गुजर जाती है..’

‘ नेताजी..क्या ऐसा कोई सपना है जिसे आप सिक्वल फिल्मों की तरह दो-तीन बार देखें हों ? ‘

‘ हाँ भई..एक सपना बार-बार देखें हैं कि कुछ लोग हमें एक पहाड़ की चोटी पर ले जाकर धकेल रहें हैं..इस सपने का फलादेश क्या है ? ‘

‘ बिलकुल स्पष्ट फलादेश है नेताजी..आप मंत्री बनेंगे..कुर्सी पर बैठेंगे..लेकिन बहुत जल्द ही किसी “स्टिंग आपरेशन” में धर लिए जायेंगे..’

नेताजी की बोलती बंद. मैं ख़ामोशी से खिसक आया.

फिर एक नवोदित लेकिन काफी “पहुंची हुई”अभिनेत्री के बंगले पहुंचा..उनसे पूछा तो

उसने कहा- ‘ तीन-तीन शिफ्ट में दिन-रात शूटिंग करती हूँ..तो सपने कहाँ से आये ?..अधिकतर शूटिंग रात को ही होती है ना ..बड़ी मुश्किल से दिन में एकाध घंटे की झपकी लेती हूँ..’

‘ तो झपकी में ही सही..कुछ तो देखती होंगी..’

‘ अरे भई..दिन में भी भला कोई सपने देखता है ?’

‘ पर बेलाजी..कभी न कभी तो कोई सपना आया होगा ?’

‘ हाँ..पिछले दिनों शूटिंग के सिलसिले में स्विट्जरलेंड गयी थी तो एक सपना आया था..’

‘बताइये..क्या देखा आपने ?’

‘ मैंने देखा कि मेरी दो-तीन फ़िल्में एक साथ “आस्कर” के लिए नामित हुई है..और एक बार तो खुद को “आस्कर” एवार्ड भी लेते देखा..’

‘ बधाई हो बेलाजी..बधाई..’ मैंने कहा..

‘ अरे भई..ये सपने की बात थी..बधाई सम्हाल के रखिये..जब मिले तब देना.. और हाँ..और कुछ पूछना हो तो थोडा जल्दी करें..मुझे सेट पर जाना है..’

‘ बस..आखिरी सवाल..क्या ऐसा कोई स्वप्न है जिसे आपने एक से अधिक बार देखा हो ?’

‘ हाँ..कई बार देखती हूँ कि मैं अफ्रीका के घने जंगलों में एकदम निर्वस्त्र खड़ी हूँ और मेरे चारों ओर शेर, चीते, भालू, हाथी, हिरन भी नंगे खड़े चीख-चिल्ला रहे हैं..मैं आज तक इसका अर्थ नहीं समझ सकी..’

‘ मैं समझाता हूँ बेलाजी..इसका मतलब है कि जल्द से जल्द आप हालीवुड की फिल्मों में काम करेंगी ( और हो सकता है-पोर्न फिल्मों में भी )..’

वह खुश हो मुझसे लिपट गई..मुझे एक पल के लिए लगा..मैं भी शेर-भालू की तरह हो गया.

फिर एक छोटे से कस्बे के एक छुटभय्ये कवि से मिला..वो बड़े ही नाटकीय अंदाज में बोले-‘ रात तो क्या..हम तो दिन में भी सपने देखते हैं भैय्या...और वही सब तो अपनी कविताओं में पेलते हैं...सपने न आये तो कविता कैसे फले-फूले ?’

‘ ठीक कहते हैं दिलजले जी..लेकिन मैं उन सपनों की बातें कर रहा हूँ जो रात को सोने के बाद आते हैं.. उसमें क्या-कुछ देखते हैं ?’

‘ हमारी तो पलकें बंद होते ही बड़े-बड़े कवि खड़े हो जाते हैं हमारे सामने..कभी बच्चनजी..तो कभी दिनकरजी..कभी निरालाजी तो कभी महादेवी वर्माजी..एक बार तो सुभद्रा कुमारी चौहान भी आकर हमारी पीठ थपथपा गयी थी..हमारी एक देशभक्ति की कविता पर..’

‘ कभी कोई रंगीन या हसीन सपना ?’

‘ कभी-कभार हमारी बीबी भी दिख जाती है ‘

‘ अरे कविजी..ऐसे सपनों को हसीन नहीं,बुरे सपने कहते हैं..खैर..ये बताएं..क्या कोई एक ही स्वप्न बार-बार दिखता है ?’

‘ हां जी..अक्सर हम देखते हैं कि श्मशान में हम धू-धू कर जल रहे हैं और साहित्यिक बिरादरी के लोग हमारे “कन्डोलेंस” में कवितायें पेल रहें है..इसका भला क्या अर्थ निकालें ?’

‘ अर्थ बिलकुल साफ़ है दिलजले जी ...आपको साहित्य के क्षेत्र में “पद्मश्री” मिलने वाला है..पर मृत्योपरांत ..आपकी बिरादरी ने प्रण कर रखा है कि जीतेजी आपको कुछ नहीं लेने देंगे..’

वे उदास और चिंतित हो गए..मैं चुपचाप लौट आया.

अब की बार सोने-चांदी के एक व्यवसायी से बातें की तो उसने कहा- ‘ अरे भाया..हमें तो सोते-जागते सबमें केवल रोकड़ा ही दिखता है..’

मैंने कहा- ‘ बोर नहीं होते..वही सब बार-बार देखते..मैं तो अच्छी से अच्छी फिल्म को भी दुबारा नहीं झेल पाता..’

‘अजी..बोर होते है तो “उसे” देख लेते हैं..’

‘ उसे ?..कौन उसे ?’

‘ अब आपसे क्या छुपाएँ..मन बहलाने के लिए एक “बाहरवाली” रखे हैं..वहाँ चल देते हैं..कभी नहीं जा पाते तो वो ही सपने में आ जाती है..’

‘ क्या कभी आपके सपनों में “घरवाली और बाहरवाली” एक साथ आई है ?’

‘ मरवा दोगे क्या यार ..ऐसा हुआ तो मेरा तो राम नाम सत् हो जाएगा..’

‘ अच्छा बताइये..कोई ऐसा स्वप्न जो रिपीट हुआ हो..’

‘ अक्सर देखता हूँ कि मेरे दोनों लड़के मुझे किसी अंधे कुंए में धकेल रहे हैं..समझ नहीं आता क्यों ?..लड़के तो मेरे गऊ हैं..’

‘ अरे नाहटाजी..इतना भी नहीं समझे..आपके बच्चों को “बाहरवाली” का ऐड्रेस मिल गया है..अब वे सांड हो गए हैं..बेहतर होगा..घरवाली पर ध्यान कंसन्ट्रेट करें ..’

वह मेरा मुंह ताकते रहा..मैं मुंह फेर चला आया.

आखिर में एक गरीबनवाज हट्टे-कट्टे भिखारी से मिला. उसने बताया कि वह बहुत सपने देखता है..कभी खुद को सी.एम. तो कभी पी.एम. के रूप में देखता है..उसके सपनों ने मुझे आकर्षित किया..मैंने पूछा- ‘सी.एम. पी.एम. बनकर करते क्या हो यार.. ?’

उसने कहा- ‘ भिखारी भाईयों के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं बनाता हूँ..इस व्यवसाय को जल्द से जल्द “हाईटेक” करने का वादा करता हूँ..’

‘ कभी कोई दिलकश, रंगीन सपने भी देखते हो ?’

‘ एक बार देखा था..एक खूबसूरत लंगडी भिखारन मुझे “प्रपोज” कर रही थी..’

‘फिर..’

‘ फिर क्या ?..उसी से मेरी शादी हो गयी..’ वह थोडा झल्लाकर बोला.

‘ अच्छा ..बताओ..कोई एक ऐसा सपना जिसे बार-बार देखते हों..’

‘हाँ..कई बार देखता हूँ कि जहां बैठकर भीख मांगता हूँ..उसके नीचे कोई खजाना है..पर नींद खुलते ही भूल जाता हूँ..फिर व्यवसाय में इतना व्यस्त हो जाता हूँ कि फुर्सत ही नहीं मिलती कि नीचे झाँक कर देखूँ..’

मैंने कहा- ‘ अरे बुद्धू..इसे सपना नहीं हकीकत कहते हैं..चलो उठो..और नीचे के ट्रंक को खोलकर देखो..’

उसने खोला तो मैं भौंचक रह गया..सिक्कों और रुपयों से मुंह तक अटा पड़ा था ट्रंक..गिनती की तो दो लाख छियासठ हजार एक सौ दस रूपये निकले. उसमे एक का सिक्का उछालकर मैंने कहा- ‘ लो..अब दो लाख छियासठ हजार एक सौ ग्यारह हो गए..शुभ अंक..अब चलता हूँ..इस व्यवसाय के विषय में मुझे भी कुछ सोचना है ..’

वह तो हतप्रभ था ही ..उससे ज्यादा मैं हतप्रभ था कि कैसे-कैसे लोग हैं दुनिया में..कोई सपने को हकीकत मान लेता है तो कोई हकीकत को सपना..आप क्या कहते है ?

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प्रमोद यादव

दुर्ग, छत्तीसगढ़

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रचनाकार: प्रमोद यादव का व्यंग्य - तेरे मेरे सपने
प्रमोद यादव का व्यंग्य - तेरे मेरे सपने
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