स्मृति-शेष डोरिस का जाना डोरिस लेसिंग अब नहीं रहीं. 17 नवंबर को 94 साल की उम्र में ब्रिटेन के सबसे प्रभावशाली साहित्यकारों में शुमार डोरि...
स्मृति-शेष डोरिस का जाना
डोरिस लेसिंग अब नहीं रहीं. 17 नवंबर को 94 साल की उम्र में ब्रिटेन के सबसे प्रभावशाली साहित्यकारों में शुमार डोरिस लेसिंग ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. 22 अक्टूबर 1919 को ईरान में जन्मी डोरिस साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाली सबसे उम्रदराज लेखिका थी. वर्ष 2007 में जब डोरिस 88 वर्ष की थी तब उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया था. पुरस्कार की घोषणा के बाद डोरिस ने का था कि ‘‘ मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं लगभग यूरोप के सभी पुरस्कारों को जीत चुकी हॅूं. सब चीजें एक मजाक की तरह है. नोबेल पुरस्कार की एक स्वयंभू कमेटी है, वे सब खुद ही वोट करते है और विश्व की प्रकाशन उद्योग भी इसमें कूद पड़ती है. मैं बहुत से ऐसे लोगों को जानती हॅूं जिन्होंने पूरे साल कुछ खास नहीं किया फिर भी नोबेल विजेता हैं.''
सन् 1984 में डोरिस ब्रिटेन की प्रतिष्ठित उपन्यसकारों में शामिल हो चुकी थी. पांच दशक के लंबे रचनाकाल में दो दर्जन से अधिक पुस्तकें उन्होंने लिखी. सन् 1950 में ही डोरिस का पहला उपन्यास ‘द ग्रास इज सिंगिंग' प्रकाशित हो चुका था. सन् 1962 में डोरिस का दूसरा उपन्यास ‘द गोल्डन नोटबुक' प्रकाशित हुआ तथा बहुत अधिक चर्चित रहा. इस उपन्यास की लगभग दस लाख कापियां बिकी थी. यही वह समय था जब डोरिस लेसिंग के बारे में अखबारों में छपने लगा था कि वह साहित्य के क्षेत्र में नोबेल सम्मान पाने की हकदार है. बावजूद इसके उन्हें 45 साल के इंतजार के बाद र्वा 2007 में नोबेल सम्मान दिया गया.
बेहद सफल और गैर परंपरावादी लेखिका डोरिस का बहुचर्चित उपन्यास ‘द गोल्डन नोटबुक' के प्रकाशित होते ही ‘स्त्रीवादी कालजयी रचना' के कतार में आ गया था इस उपन्यास की मुख्य स्त्री पात्र अन्ना एक आधुनिक उलझी हुई महिला की कहानी है जो पुरूषों जैसी स्वतंत्रता चाहती है. अन्ना उपन्यास में एक लेखिका की भूमिका में है जिसने चार नोटबुक, क्रमशः काले कवर वाली नोटबुक, जिसमें उसके बचपन के अनुभव दर्ज है, लाल कवर वाली नोटबुक जिसमें राजनीतिक जिंदगी एवं कम्युनिस्ट विचारधारा से मोहभंग की कहानी दर्ज है, पीले कवर वाली नोटबुक में अन्ना अपने निजी अनुभवों पर एक उपन्यास लिख रही होती है तथा नीली कवर वाली नोटबुक में वह अपनी निजी डायरी लिख रही होती है. इन्ही चारों नोटबुक का संकलित रूप ‘द गोल्डन नोटबुक' के रूप में प्रकाशित होता है जिसे हाथों हाथ लिया जाता है और इस उपन्यास के लगभग दस लाख प्रतियां बिकती है जो अपने आप में एक रिकोर्ड है.
अपने अफ्रीका प्रवास के दौरान रोडेशिया में बसे एक गरीब किसान की पत्नी का नौकर से संबंधों को बहुत ही दिलचस्प ढ़ंग से उकेरती डोरिस की पहली उपन्यास ‘द ग्रास इज सिंगिंग' थी जिसके सन् 1950 में प्रकाशित होने के बाद से ही यह बात साहित्यकारों के सामने आ गयी कि डोरिस में स्वाभाविकता के साथ-साथ शैलीगत एवं भाषाई प्रतिभा भी कूट-कूट कर भरी है.
डोरिस लेसिंग ने जेन सोमर्स के छदम नाम से दो उपन्यास लिख कर यह बताने की कोशिश की कि नये लेखकों के साथ दुनिया का क्या व्यवहार होता है. छदम नाम से जब उपन्यास लिख कर प्रकाशकों के पास गयी तो एक प्रकाशक ने छापने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि यह उपन्यास ‘व्यवसाय हितों को साधने में विफल' है तथा दूसरे प्रकाशक ने यह कहते हुए दूसरे उपन्सास को छापने से इंकार कर दिया कि ‘इसमें इतना अवसाद है कि कमाई मुमकिन नहीं' है. डोरिस ने बाद में संवाददाताओं को बताया था कि गुमनाम लेखकों की पीड़ा को सामने लाने के लिए यह नाटक करना पड़ा था.
डोरिस से अंतिम बार मिलने कई जाने माने लोगों में एक न्यू आर्कर से जुड़े जेम्स लैसडुन भी थे जिन्होंने ‘जेन सोमर्स' की पांडुलिपि को न प्रकाशित करने से संबंधित एक लेख को प्रकाशित किया था. इस लेख के लेखक जेम्स लैसडुन थे जो अभी एक ख्याति प्राप्त उपन्यासकार है, ने लिखा है कि उस पांडुलिपि तब न छपना बड़ी भूल थी जिसे समझने में हमें 30 वष्र्ा लग गए.
वष्र्ा 2007 में डोरिस का एक उपन्यास ‘द क्लेफट' आया जो काफी चर्चित हुआ. इस उपन्यास की खासियत यह है कि इसमें पुरूष रहित दुनिया को रचा गया है. इस उपन्यास में समुद्री किनारों पर बसे एक ऐसे प्राचीन समुदाय की महिलाओं की कहानी है जिन्हें न तो पुरूषों के बारे में कुछ पता है और न ही उन्हें पुरूषों की कोई जरूरत है. उस समुदाय में बच्चों का जन्म चंद्रमा की गति से नियंत्रित होता है और वहां सिर्फ लड़कियों का ही जन्म होता है. एक बार अचानक उस समुदाय की एक महिला ने एक लड़के को जन्म देती है जिसके पश्चात समूचे समुदाय का सामंजस्य भंग हो जाता है. इस तरह के रोचक कथानकों से भरी पड़ी है डोरिस का रचनासंसार तथा प्राय सभी रचनाओं में स्त्री की प्रधानता रही है. वैसे डोरिस ने विज्ञान पर आधारित उपन्यास भी लिखी.
‘प्रेरणा जैसे शब्द को नापंसद करने वाली डोरिस कहा करती थी कि लेखन किसी वैज्ञानिक समस्या का वैज्ञानिक विचार है जैसे कोई इंजीनियर किसी वैज्ञानिक समस्या के बारे में सोचता है. डोरिस के अफ्रीका में गुजरे बचपन, प्रथम विश्वयुद्ध का अपने माता-पिता पर पड़े प्रभाव, किशोरावस्था के अनुभव, आत्मद्वंद्व, रंगभेद से संबंधित विचार उनकी आखरी उपन्यास ‘एलु्रेड एंड एमिली' में पढ़ा जा सकता है जो वर्ष 2008 में प्रकाशित हुई थी.
एक दयालु एवं मर्मभेदी लेखिका डोरिस लेसिंग के जाने के बाद विश्व साहित्य को अपूरणीय क्षति हुई है. उनको सादर श्रद्धांजलि.
राजीव आनंद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरगंड़ा
गिरिडीह-815301
झारखंड़
COMMENTS