.............................................................................. मैं भी ग़ुलाम हूँ ............................ वाक फ़्री फ़ा...
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मैं भी ग़ुलाम हूँ
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वाक फ़्री फ़ाउन्डेशन ने माना
ग़ुलाम तीन करोड़ संसार में
भारत में आधे
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मुझ तक नहीं वे पहुँच पाये
गिनती से छूट गया
मैं भी ग़ुलाम हूँ
धर्माधंता / रूढ़ियां / साम्प्रदायिकता मेरे ख़ून में
अंधविश्वास का पोषक
लिंगभेद / रंगभेद
जातिप्रथा का क्रीत दास
भाती इन सबकी ग़ुलामी
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जानता हूँ आप भी हैं
और भी कई
छूट गये गल्ती से
हम सब के नाम
गुलामों की सूची में
ख़ुशी हुई मिलकर
कुछ और ग़ुलामों से
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कविता का अखबारी कोलाज
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गुजरात में सड़कों पर बहाया
सोलह करोड़ रुपयों का घीं
श्रृद्धा के नाम
भारत में घीं दूध की नदियाँ बहती हैं आज भी
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गणेशजी दूध पीयें जब चाहें
पुणे में डाक्टर डाभोलकर की गोली मारकर हत्या
'अंध श्रृद्धा उन्मूलन समीति' के अध्यंक्ष
हत्यारा पकड़ा नहीं गया
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भारत सोने की चिड़िया था
उन्नाव में हज़ार टन गढ़े सोने की खोज
साधू को सपना आया
ए पी जे कलाम ने कहा बड़े सपनें देखो
हमें महात्मा गांधी के सपनों को भी पूरा करना है
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धार ज़िले में दो प्रेमियों को कालिख पोती
निर्वस्त्र कर गाँवों में घुमाया
खजुराहो के मंदिरों में उकेरे प्रणय शिल्प अद्भुत है
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पुलिस ने पार्क से प्रेम कर रहे लड़का लड़की पकड़े
जम कर धुलाई
यहाँ हर फ़िल्म का विषय प्रेम होता है
भारत ने विश्व को प्रेमशास्त्र दिया
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खाप पंचायत का आदेश
एक गोत्र का विवाह अमान्य
विवाहित अब भाई बहन घोषित
राखी बांधेगी पत्नी
पंच न्याय करते हैं
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विजातीय युगल की पीट कर हत्या
शव पेड़ पर लटकाये गये
जाति तोड़ो सम्मेलन सफलता से सम्पन्न
जाति प्रथा अभिशाप है लोहिया ने कहा
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संत पर नाबालिग़ से योन शोषण का आरोप
गिरफ़्तार कर जेल भेजें गये
सांई पर दुष्कर्म का आरोप
पुलीस फ़रार की खोज में
डेरे से दारू अश्लील सीडी बरामद
भारत संतों महात्माओं का देश है
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महिला पर कंगन चोरी का शक
खौलते तेल में हाथ डाल परीक्षा दी
इसे खंते का न्याय कहते हैं
जहाँ नारी को पूजते हैं वहाँ देवताओं का वास होता है
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मासूम बच्चों को छत से नीचे फेंकते मौलवी
झेलते ख़ादिम चादर में सहमें बच्चे
साया न पड़े उन पर किसी जिन्नात का
बच्चे इस देश का भविष्य हैं नेहरू ने कहा
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देश में करवाचौथ की धूम बाजार सजे
पत्नियों ने पतियों के लंबे जीवन की कामना की
व्रत रखे उपवास किये
पति ने पत्नी को फिनाइल पिलाया
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भारत में डेढ़ करोड़ लोग अब भी ग़ुलाम
क्या फ़र्क़ पड़ता है
जी डी पी ग्रोथ तो देखो
हमारे आई टी सेक्टर का लोहा दुनिया मानती है
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आँगन की लौकी
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आँगन में लगी लौकी
घर की लड़की
तेज़ी से बढ़े
लौकी लौकी की तरह
लड़की मुहावरे की तरह
नाख़ून गड़ा लौकी परखी गई
वक़्त पर सब्ज़ी बनी
परोसी गई
आंखें गड़ा लड़की तोली गई
हुई अगवा / मसली गई
बाज़ार में बिठाई गई
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वे और उनकी आंखें
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उनकी आँखें
देखती ही नहीं
आहट सुनती
नश्तर चुभोती हैं
सूंघती / स्पर्श करती
मन ही मन में
उघाड़ती / निर्वस्त्र कर देती
दुष्कर्म कर लेती
निगल जाती
समूचा बदन
अगले ही क्षण
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जब से आँखें गँवाई
उनके कानों ने संभाल लिया
नाक और आँखों का काम
अब कान ही
देखते / सूँघते / उघाड़ते हैं
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भेड़ियों का कायाकल्प
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पुरानी कहानी में
भेड़िये ने मेमने से कहा
क्यों गंदा कर रहा है वह उसका पानी
वह जानता था
मेमना नहीं कर सकता
ढलान पर है
ओर भेड़िया ऊंचाई पर
भेड़िया तब भी जानता था
वह पिछले वर्ष गाली नहीं दे सकता
मेमना जन्मा ही नहीं था
भेड़िया तर्क / कुतर्क न भी करता
गाली मेमने के बाप या बाप के बाप ने दी
खा जाता यों ही उसे
क्या ग़लत होता
आहार श्रृंखला में
उसका जायज़ भोजन था मेमना
नैतिक / प्राकृतिक रूप से
धार्मिक / विधिक / ऐतिहासिक
हर प्रकार से
भेड़िये की पहचान उजागर थी
निखालिस भेड़िया
बिना बात / तर्क भी खा सकता था
अब हिंस्र भेड़िये
बदल गये / छद्म हैं
ओढ़ लिये मुखौटे / परिवेश
मासूम मेमनों / भेड़ों के भेष
अफ़वाहों के कारख़ाने
ये चलाते हैं
समाज / मोहल्ले
गांव / गली में
बँटवारे कराते हैं
टोपी / तिलक / पगड़ी में
पहचान चिन्हों में
खैरख्वाह बनते / प्रजा को लड़ाते
नरसंहार / हिंसा
बदल गई है भूमिका
पहले हिंसा
फिर जाँच आयोग
और सारे लकड़बग्घे भी
जब / जहाँ / जितना चाहें
हंस सकते हैं
बदली भाव भंगिमा पर
अपनी सफल रणनीति पर
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रीढ़ की हड्डी
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जानते हैं हम
लड़ रहे वे
इक हारी लड़ाई
हौसला है बुलंद फिर भी
न हो दर्ज इतिहास के पन्नों में
या शिलालेखों पर
नाम उनका
किस्सों में तो ज़िक्र होगा
कि तने रहे जीवन भर
झुके नहीं
न जुहार / सलाम / समर्पण
शक्ति भर लड़े / बहुत भोगा
काफ़ी है उनकी इतनी रोशनी
नये पत्तों के लिये
ओर वे जो सालों से रेंग रहे
सीख नहीं सकते
न चाहतें हैं
क्या जानें केंचुए
और वे भी
रीढ़ क्या / क्यों होती है
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राम ही जानें क्यों
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हम उग्र हो गये हैं
खौलता रहता है ख़ून
बदल गया स्वभाव
उद्विग्न रहते हैं
हिक़ारत ओर ग़ुस्सा
चेहरे का स्थाई भाव
पहले मिलते थे
प्रेम से कहते
भैया राम राम
अब चिल्लाकर कहते हैं
जय श्री राम
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संध्या की बेला
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ता उम्र बोल कर
रहे अबोले
संध्या की बेला
आ गले लग
कुछ बोलें
कुछ रो ले
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बाँटा सुख
पीड़ा की साँझी
तराज़ू ला
हिसाब करें
अतीत में झाँके
कुछ तोलें
*
बहुत चले
क़दम दर क़दम
पैर उठते नहीं
मन भारी है
आँखें मूँदे
कुछ सो लें
*
रुमानियत में जिये
बदल देंगे ज़माना
क्रांतिवीर बनें
मुट्ठियां तानी
रहे ख़ाली
कितने भोले
*
गुनाह न हो
डर कर जिये
दिन ढल रहा
अनागत की आहट
आ कुछ पाप करें
कुछ पुण्य धो लें
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Achchi kavitayen hain poori shokhi aur bebakiyon ke saath jasbeer ji badhaiee
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ .
हटाएंआभारी हूँ
हटाएंश्री चावलाजी, बढ़िया कवितायें हैं...बहुत-बहुत बधाई.....प्रमोद यादव
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रमोदजी.
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