मेंहदी [पटकथा] विश्व के दो तिहाई सलिल में तैर रही है मीन, मीन के अंदर भी जल बह रहा है, दिल और दिमाग का योग रूप मानव और विश्व है, आत्मा और प...
मेंहदी [पटकथा]
विश्व के दो तिहाई सलिल में तैर रही है मीन, मीन के अंदर भी जल बह रहा है, दिल और दिमाग का योग रूप मानव और विश्व है, आत्मा और परामात्मा का योग रूप एक है, सुख-दुःख, मान- अपमान, लाभ-हानि, संयोग-वियोग , दिन-रात सभी विश्व में हैं। मेंहदी, नारी, और निर्धन तीनों को अपने जड़ से वियोग का वेदना सहना पड़ता है, इस यातना से इनका सौन्दर्य बढ़ जाता है, ये अपने सौन्दर्य को त्यागकर विश्व को सौन्दर्य प्रदान करते हैं।
इस संवाद दृश्य के साथ पात्र परिचय शुरू होता है।
वसुन्धरा -धो डाल मेंहदी, उतार फेंक जोड़ा, बता दे ये पाशविक समाज को, नारी अबला नहीं है।
जलकुमारी - मेंहदी हाथ में नहीं मन में रचती है माँ, नारियों का श्रृंगार है मेंहदी, इसे उतार फेंकना इतना आसान नहीं है माँ।
वसुन्धरा - तुझे प्रेम पागल बना दिया है बेटी, अब वो नहीं आएगा, वो नारी के दिल से खेलने वाला राक्षस है।
जलकुमारी - नहीं वो जरूर आएगा, उन्हे गाली मत दें माँ, मेरे प्रेम को आने में देर भले ही होगा, पर वो आएगा, मेरा प्रेम उसे खींच लाएगा।
वसुन्धरा - कैसे है तू और तेरा प्रेम तू ही जाने।
जलकुमारी - तुम मेरे मन में रचाए हो, उस मेंहदी की कसम तुम्हें आना ही होगा प्रियतम।
पात्र-परिचय
मयंक- नायक
मेंहदी- नायिका
मदन- नायक का दोस्त
बिंदिया- मेंहदी की बहन
प्रेम- सहनायक
पायल- मेंहदी की बहन
चैतू और बैशाखू- सूर्यप्रताप सिंह का नौकर
चम्पी- चैतू बैशाखू की प्रेमिका
मोहरसाय- मदन के पिताजी
सुहारी- मदन की माँ
मतवार- प्रेम के पिताजी
सोहनी- प्रेम की मां
जगदीश- मयंक के नाना
जागृति- मयंक के नानी
छेरका- मेंहदी का पालक पिताजी
जलकुमारी- मेंहदी, बिन्दिया और पायल की माँ
सूर्यप्रताप सिंह- मेंहदी, बिन्दिया और पायल का पिताजी
दृश्यः1
मेंहदी जंगल में बकरी चरा रही है, वह बकरी शावक को अपने छाती में चिपकाई हुई है, चोली और घाघरा पहनी हुई है, जंगल में झरना बह रही है, पानी में उसका प्रतिबिम्ब दिख रहा है, उसको देख कर अपनी मन की बात बकरी शावक से कहती है-
बता री सखी ! तू मुँह में उंगली क्यों रखी?
मुँह में उंगली रखती है, बाल बिखरा देती है, आकाश में घटा छा जाती है, मोर नाचने लगते हैं, बरसात होने लगती है और वह भीग जाती है, इसे मयंक देख रहा है, उसकी सुन्दरता को देखकर वह मोहित हो जाता है, उसे लगता है कि पुष्प की परी इसके सामने है, सफेद साड़ी, सफेद ब्लाउज, मोंगरा पुष्प के गजरा, माँगमोती, चूड़ी, माला, करधन, पायल ,बाजूबंध सभी है, जल के बूँद इसके शरीर में पड़ रहे हैं, वह बर्फ के फूल के समान लग रही है, साड़ी के आँचल गिर जाता है, उसे देखकर शेर, बाघ, चीता, भालू, हिरण ,खरगोश, बकरी, भेंड़, तोता , मैना, कबूतर ,मोर आश्चर्य चकित होकर देख रहे हैं।
बता री सखी! उसे देखकर क्यों शरमाती है? (शरमाती है)
बता री सखी! उसे देखकर क्यों चमकती है? (चमकती है)
बता री सखी! उसे देखकर क्यों धीरे चलती है? (धीरे चलती है)
बता री सखी! उसे चुपके से क्यों देखती है? (देखती है)
बता री सखी! उसे देखकर क्यों खाना पीना छोड़ी? (छोड़ती है)
बता री सखी! उसे देखकर क्यों हँसना बोलना छोड़ी? (छोड़ती है)
बता री सखी! अपना प्रतिबिम्ब जल में क्यों निहार रही है?
(निहारती है)
बता री सखी! कैसे लगी जब तुमने प्रेमरस चखी? (चखती है)
अब तो मैं प्रेमरस में पूरा भीग गई हूँ, तो इसमें तैर लूँ, डुबकी लगा लूँ।
मेंहदी साड़ी खोलकर नहाने लगती है। मयंक उसे देखकर गाने लगता है।
साड़ी को उतार के पानी में डुबी
डुबकर वहाँ तुम मछली सा तैरी
मछली से ज्यादा सुन्दर हो तुम
जल से ज्यादा उज्ज्वल हो तुम
तेरे नयनों के काँटा में मछली सा फँसा ली
माँझी बनकर गया था, प्रेम में अपने फँसा ली
छर छर छर छर छर छर तुम तैंर रही हो
डूबक डूबक डूबक डूबकी लगा रही हो
तुम्हारे केश हैं कोहरा के समान
कोहरा में तुमने मुझको डुबा दिया है
जल से निकलती हो तो दिखती हो बर्फ का बाँटी
पिघलते पिघलते निकलता है पानी
जैसे बजता है तेरे पैर का साँटी
साड़ी को पहनी तो दिखी चंद्रमा के समान
मुझे देखकर मुस्कुराई सितारों के समान
ऐसे मुस्कुराकर मुझे चकोर बना डाला
(मेंहदी मयंक को निर्निमेष निहारते देखकर चमक जाती है)
मेंहदी :- क्या देख रहे हो?
मयंक :- तुमको।
मेंहदी :- मुझको।
मयंक :- हाँ।
मेंहदी :- किसलिए?
मयंक :- ऐसे ही।
मेंहदी :- फिर भी।
मयंक :- तुम बहुत खूबसूरत हो।
( मेंहदी नयन नीचे कर देती है, दुर्वादल को तोड़ती है और चबाती है )
मयंक :- सुनिए ना।
मेंहदी :- कहिए ना।
मयंक :- नेहागाँव किस तरफ है?
मेंहदी :- यहाँ से सीधा दो किलोमीटर जाना, फिर दाएँ तरफ एक किलोमीटर जाना, फिर दाएँ तरफ दो किलोमीटर जाना, फिर दाएँ तरफ एक किलोमीटर जाना, नेहागाँव मिल जाएँगे।
मयंक :- फिर से कहो ना।
मेंहदी :- यहाँ से सीधा दो किलोमीटर जाना, फिर दाएँ तरफ एक किलोमीटर जाना, फिर दाएँ तरफ दो किलोमीटर जाना, फिर दाएँ तरफ एक किलोमीटर जाना, नेहागाँव मिल जाएँगे।
( मयंक मोटर साइकिल चालू कर चल देता है )
मेंहदी :- फटफट भूर्रर भूर्रर ---- बुद्धूराम बड़े आराम, खाएँगे आम, पीएँगे जाम।
(मयंक सोचते हुए जा रहा है )
यहाँ से सीधा दो किलोमीटर जाना है, फिर दाएँ तरफ एक किलोमीटर जाना है, लड़की बहुत ही खूबसूरत है, नाम नहीं पूछ पाया, गड़ेरिन लड़की कानन की कली है।
गोरी नयना के मारे बाण ,
लग रहा है जाएँगे जान,
तड़फ रहा हूँ मैं तुम बिन,
जल बिन मीन के समान
(मेंहदी भी सोच रही है )
मेंहदी :- मैं कैसी हूँ, बाबू को भटका दिया, मैं कहाँ भटकाई हूँ, मैंनें तो पहेली कही थी, नहीं जान पाए तो मैं क्या करूँगी, इसमें मेरा क्या कसूर बाबू? अगर तुम सुलझा नहीं पाओगे तो।
मयंक :- सौन्दर्य एक पहेली है और प्रेम की पहेली को परमेश्वर भी नहीं जान पाते हैं तो इस लोक के मानव की औकात ही क्या?
अयं! दो किलोमीटर तो आ गया, कुछ पता ही नहीं चला, रास्ता बहुत ही जल्दी कट गया, फिर दाएँ तरफ तो कोई रास्ता नहीं है।
;सूर्यप्रताप सिंह खेत में धान का रोपा लगवा रहा है)
मयंक :- दादाजी , यहाँ से नेहागाँव कितना दूर है?
सूर्यप्रताप सिंह :- अभी जिधर से आए हो, उसी तरफ दो किलोमीटर पीछे है।
(काम करने वाली स्त्रियाँ हँसती हैं )
मयंक :- वो लड़की तो मुझे बुद्धू बना दी, और मैं बन गया बुद्धूराम
बुद्धूराम बड़े आराम, खाएँगे आम, पीएँगे जाम, अपना मंजिल मैं दो किलोमीटर पीछे छोड़ आया, जिन्दगी के मंजिल से जो आगे निकल जाते हैं, वे बुद्धू नहीं तो और क्या हैं? मंजिल ही आगे का रास्ता बता दे तो जाना तो पड़ेगा ही, मेरा मंजिल तो वही लड़की है।
मेंहदी :- उस बाबू में इतना क्या है जो कि चुंबक के समान उसकी आरे खींची जा रही हूँ,
बाबू नयना ले मारे बाण
लगता है जाएँगे जान
परदेशी तुमको छोड़कर
क्या सोचूँगी मैं आन
तुम्हारे वाणी में मधुरस घुले हुए हैं, मेरा मुँह अभी से मीठा है, मैं पगली हो रही हूँ, दिवानगी क्यों मेरे दिल में हो रही है, मैं कितनों को इस पहेली में फँसाई हूँ, फिर आज क्यों मैं दीवानी इस पहेली में फँस रही हूँ, अब्बू के कहना को नहीं मानी, बचपन से सिखाया था, ये पहेली परदेशियों को भटकाएगा, भटकाते भटकाते एक दिन तुम स्वयं इसमें भटक जाओगी, क्या मैं आज स्वयं भटक रही हूँ?
(मयंक आता है)
मयंक :- क्या सोच रही हो जी?
मेंहदी :- वापस कैसे आ गए बाबू?
मयंक :- मुझे तो अपने मंजिल के पास यहाँ आना ही था।
मेंहदी :- माफ कर देंगे बाबू, मैंने रास्ता घूमा फिराकर बताया।
मयंक :- इसमें तुम्हारी क्या गलती है, मैं पहेली को समझ नहीं पाया।
मेंहदी :- यहाँ किसके घर जाओगे बाबू?
मयंक :- फिर पहेली करने का विचार है क्या?
मेंहदी :- नहीं बाबू, पहेली करते करते स्वयं पहेली बन गई हूँ, वो क्या पहेली करेगी बाबू?
मयंक :- मैं समझा नहीं।
मेंहदी :- बाबू आप नहीं समझेंगे वही बेहतर होगा, बताइए बाबू किसके यहाँ जाना है?
मयंक :- नाना।
मेंहदी :- नाना, नाना के कुछ नाम पता भी तो होंगे।
मयंक :- हाँ है ना, जगदीश।
मेंहदी :- बस्ती पहुँचते ही पहली गली छोड़ देंगे, फिर दूसरी गली में दाएँ तरफ मुड़ जाएँगे, फिर दूसरी गली में बाएँ तरफ मुड़ जाएँगे, फिर बाएँ तरफ मुड़ जाएँगे, अंत में एक घर छोड़ देना वही आपका नाना का घर है।
मयंक :- फिर पहेली।
मेंहदी :- बाबू नेहागाँव एक पहेली है।
मयंक :- इसे तो मैं आते ही जान गया था।
मेंहदी :- अभी इसे कहाँ जान पाएँ है बाबू, कुछ दिन रूकिए फिर सब कुछ समझ जाएँगे।
मयंक :- यहाँ मैं बसने के लिए आ रहा हूँ, जहाँ पर तुम रहोगी, वह जगह तो प्रेममय होगा ही।
दृश्य :2
एक वृद्धा झाड़ू लेकर एक वृद्ध को दौड़ा रही है, वृद्ध बचाओ बचाओ कहते हुए भग रहा है, वृद्धा पत्थर से टकराकर गिर जाती है।
मयंक और जगदीश जोर जोर से हँसते हैं।
मयंक :- प्रणाम नानीजी। पत्थर से टकराकर गिर गई और अभी से दौड़ाना नहीं छोड़ी हो , नानीजी।
जागृति :- मैं दौड़ा रही हूँ कि ये भाग रहे हैं, मैंने इसे कहा बूढ़ा कि मेरी लंबाई कम है और तुम उँचे हो, थोड़े छत को झाड़ू लगा देते , तो ये सर्राटे से भागते जा रहे है।
मयंक :- नानाजी ,नानी ठीक कह रही हैं।
जगदीश :- ठीक कह रही है , बेटा , पर मैं इसे बोलता हूँ कि काम करने के लिए मजदूर बुला लेते हैं, पर यह मानती नहीं है, कहती है फोकट में क्यों दूसरों को मजदूरी देंगे, वृद्धा हो गई है , पर अभी से चक्की से गेंहू पीस लेती है, ओखली कूट लेती है, तालाब से पानी ले आती है, गोबर फेंक लेती है। कैसे बूढ़ी ठीक कह रहा हूँ कि नहीं? जागृति :- ठीक कह रहे हैं ( मुँह को मोड़ती है )
जगदीश :- हम लोग झगड़ा करते रहेंगे कि घर के अंदर चलेंगे, नाती को नाश्ता पानी देंगे कि नहीं, कितने समय घर से निकला होगा तो?
जागृति :- फटफटिया में कितने समय लगेंगे?
जगदीश :- तुम जान रही हो शहर हमारे यहाँ से कितना दूर है, आज हमारा नाती पूरा सोलह बच्छर बाद हमारे यहाँ आ रहा है।
जागृति :- बेटा तुम्हें देखने के लिए मेरे अंखियाँ तरस गई, तुम्हारे नाना से कहता चलो देखने के लिए चलते हैं, तो ये कहते थे बूढ़ी हम वहाँ नहीं जाएँगे, जाएँगे तो मयंक का पढ़ाई नहीं होगा, उसे भी यहाँ आने के लिए नहीं कहता हूँ, वो यहाँ आएगा तो अर्र तता ही तो सीखेगा।
मयंक :- मैं आ गया हूँ नानीजी, खेती करने के लिए, सभी नौकरी करेंगे तो खेती को कौन करेगा, बिना खेती किए अन्न कहाँ पैदा होगा, अन्न से ही मानव के पेट भरेंगे, अपना काम करने में अनोखा आनंद है। मैं एक टेक्टर ले रहा हूँ, फिर देखना खेत में कैसे फसल लहलहाता है, मेरा भारत महान है अन्नपूर्णा माता है सभी का पेट पालता है।
जगदीश :- तुम्हारे विचार सुनकर मेरे आँखों में पानी आ गए। पर ये पिशाचन मानेंगी तब ना।
जागृति :- मुझे पिशाचन कह रहे हो, देख रहे हो ना मेरे झाड़ू को
(झाड़ू को पकड़ती है )
मयंक :- ऐसे थोड़े ना कह रहे हैं नानीजी, वे कह रहे हैं चाँद के समान तुम्हारा चेहरा, घटा के समान तुम्हारे कुन्तल।( जागृति खुश हो जाती है )
जगदीश :- मुझे तो चेहरा उपला के समान लगते हैं और बाल पटसन के समान लगते हैं।
जागृति :- आपका मुँह तो सुअर के समान और सिर नारीयल गिरि के समान।
जगदीश :- तुम तो कैंची हो, मेरे हर बात को काट दे रही हो।
दृश्य : 3
छेरका :- मेंहदी बेटी जल्दी से तैयार हो कमला विमला राधा तुम्हें बुलाने के लिए आए हैं।
मेंहदी :- बस थोड़े से मुझे मेंहदी को धोने देना, ( उसे धोती है, हाथ का मेंहदी बहुत खूबसूरत दिखता है, फिर पाँव में महावर लगाती है, उससे धरती रंग जाती है, बरामदा में पाँव के निशान बन जाते हैं, बरामदा में दर्पण रखी है और सँवर रही है, चाँदी का झूमका, माँग मोती, बेनी फूल, पायल, करधन, तोड़ा, बनोरिया, पैसा का हार, फूली, टिकुली, बाल को बांधी हुई है, उसमें फूँदरा लगाई हुई है, पैरों के उंगलियों में बिछिया और हाथों में हाथ फूल लगाई हुई है, मदन आता है उसके रूप को देखकर ठगा सा रह जाता है, वह सोचने लगता है )
(मेंहदी :- अरे ! मदन तुम कितने समय आए?
मदन :- तुम सँवर रही थी उसी वक्त आया।
मेंहदी :- तुम ऐसे कैसे देख रहे हो?
मदन :- तुम इतनी खूबसूरत हो आज मैंने जाना। (मेंहदी शरमाकर भग जाती है, उसके पीछे पीछे मदन दौड़ता है। मेंहदी घर के भीतर सोने का नाटक करती है, ) मेंहदी ओ मेंहदी (उसे सोते देखकर उसके माथा के टिकुली को चूम लेता है, मेंहदी उठती है और अपना मुँह धोती है।) सच बताना मेंहदी। तुम्हें बुरा तो नहीं लगा।
मेंहदी :- ना रे मदन , तुम्हारा चुँबन मुझे इतना मीठा लगा कि मैं उसे सारे चेहरा में फैला दी।)
मेंहदी :- ऐ मदन तुझे क्या हो गया?
मदन :- कुछ तो नहीं।
मेंहदी :- फिर मैं इतना चिल्ला रही हूँ, सुन कैसे नहीं रहे हो?
मदन :- चल चल तुझे जल्दी बुला रहे हैं, सभी लोग आ गए हैं।
मेंहदी :- सभी आ गए, जगदीश घर का पाहुना आया है कि नहीं।
मदन :- आया है और तुझे ही पूछ रहा था।
मेंहदी :- सच्ची।
मदन :- हाँ सच्ची।
(मेंहदी उसके पीछे पीछे जाने लगती है, उधर से मयंक और जगदीश आ रहे हैं, दोनों का नयन मिलते हैं, मेंहदी के सारे गहने सोने के हो जाते हैं , उसका रूप सौन्दर्य स्वर्णमणि के समान चमक रहे हैं, उसका हाथ पकड़कर मयंक कहता है
मेंहदी मेरे प्रेम को भूल थोड़े जाओगी।
मेंहदी :- तुम्हारे प्रेम के मेंहदी तो मेरे दिल में रच गए हैं, मयंक वह मेरे जीवन के साथ ही जाएँगे। )
मेंहदी :- माँदरवाले जल्दी से माँदर बजाओ। राधा , विमला , कमला जल्दी से भोजली उठाओ।
अहो देवी गंगा ! देवी गंगा देवी गंगा लहर तुरंगा।
हमर भोजली दाई के भीगे आठों अंगा।।
भोजली विर्सजन के लिए नदी जाते हैं।
दृश्य :- 4
बिन्दिया :- प्रणाम पापा।
सूरजप्रताप सिंग :- जीते रहो बेटी, छुटकी कहाँ है?
पायल :- छुटकी आ गई, पापा प्रणाम।
सूरतप्रताप सिंग :- तुम दोनों का पेपर का क्या हाल है?
दोंनो :- फर्स्ट क्लास पापा।
सूरतप्रताप सिंग :- मुझे पूरा आशा है बेटी, तुम दोनों मेरे नाम को रोशन करोगे। जल आओ देखो कौन कौन आए हैं?
जलकुमारी :- कितने समय आए बेटी?
दोंनो :- प्रणाम मम्मी।
जलकुमारी :- खुशी रहो बेटी।
सूरतप्रताप सिंग :- अब मुझे तुम लोंगो की विवाह की चिन्ता है।
पायल :- दीदी के विवाह के चिन्ता कीजिए पापा, बहुत भोली है, किताब की दुनिया से बाहर नहीं निकलती ।
बिन्दिया :- तुम्हारी चिन्ता करने पड़ेंगे, छुटकी, तुम मेरी दीदी लग रही हो।
पायल :- तो क्या तुम मेरे से कम मोटी लग रही हो?
बिन्दिया :- तुम भी क्या तुम मुझसे कम लग रही हो?
जलकुमारी :- तुम लोग दोनों जवान हो गए हो और एक नंबर के लग रहे हो।
सूरतप्रताप सिंग :- परीक्षा में कौन ज्यादा नंबर लाएगी?
पायल :- पापा आप जान रहे हैं दीदी हमसे आगे हैं।
बिन्दिया :- किताबी कीड़ा होना सरल है, जिन्दगी का किताब पढ़ना बहुत कठिन होता है छुटकी, तुम मुझसे ज्यादा जिन्दगी की किताब पढ़ी हो।
पायल :- दीदी आज जो लोग ज्यादा डिग्री धरे हैं, उसे ही लोग जानते हैं।
सूरतप्रताप सिंग :- बेटी तुम दोनों मेरे दो आँख हो। तुम दोंनो के बिना मैं अंधा हो जाउँगा, फिर जवान बेटियों को घर में नहीं बैठाया जा सकता है।
पायल :- दीदी अपनी ससुराल जाएगी और मैं दुल्हा को अपने घर ले आउँगी। करेक्ट पापा।
सूरतप्रताप सिंग :- आज कौन आदमी घर जमाई बनना पसंद करेगा।
पायल :- यहाँ कितने आदमी ऐसे हैं जो नारियों के भरोसा जी रहे हैं। मैं विवाह अपने मन से करूँगी, दीदी के लिए वर ढ़ूढ़ों।
सूरतप्रताप सिंग :- तुम ठीक कह रही हो छुटकी, हम लोग बिन्दिया के लिए वर ढ़ूढ़ रहे हैं।
बिन्दिया :- जैसे तुम लोग उचित समझो।
दृश्य :- 5
पायल :- पापा , मैं खेत घूमने जाउँगी।
सूरतप्रताप सिंग :- जाओ बेटी , चैतू बैशाखू को भी साथ में ले लो।
पायल :- दीदी जल्दी तैयार हो, आज हम लोग खेत घूमने चलेंगे।
बिन्दिया :- रूको कपड़ा बदलने दो।
पायल :- इस कपड़ा में कम सुन्दर लग रही हो, किसी को भी घायल कर देंगे। तेरी खूबसूरती से मुझे जलन होती है।
बिन्दिया :- मेरे से क्यों जलन करती हो छुटकी, क्या तुम मुझसे कम खूबसूरत हो। छुटकी चलें। चैतू बैशाखू
चैतू बैशाखू :- क्या है दीदी?
पायल :- आज हम लोग खेत घूमना चाहते हैं।
चैतू बैशाखू :- चलो हम लोग आप लोगों को एक गाना सुनाना चाहते हैं।
पायल :- इनका गाना सुनकर मुझे नींद आती है, दीदी मैं बैलगाड़ी चलाउँगी, तुम गाना सुनो।
चैतू बैशाखू :- नहीं छुटकी दीदी, आप चलाती हैं तो हम लोग यम के द्वार पहुँच जाते हैं।
पायल :- इतना डराते हो तुम लोग मेरे चलाने से, चलो आज तुम लोगों को स्वर्ग की द्वार पहँचा देती हूँ।
तेज चलाती है
बिन्दिया :- देख छुटकी बोर्ड में क्या लिखा है?
पायल :- मुझे बोर्ड तरफ देखना अच्छा नहीं लगता।
आगे से मोटर साईकिल से मयंक आ रहा है, एकसीडेन्ट होते होते बचता है।
मयंक :- अगर चलाना नहीं आता तो चलाती क्यों हो? नहीं सुन रही हो ,बहरी हो, अगर नहीं आता तो चलाती क्यों हो।
चैतू बैशाखू :- चलिए साहब छोड़िए, शहर से आए हैं देहात में कैसे चलाना है नहीं जानते हैं।
बिन्दिया :- हमें माफ कर दें।
मयंक :- ठीक है, आगे गल्ती नहीं होना चाहिए।
मयंक चल देता है। वो लोग वापस घर आ जाते हैं।
सूरतप्रताप सिंग :- तुम लोग वापस कैसे आ गए बेटी?
बिन्दिया :- छुटकी का जी नहीं लगा पापा।
सूरतप्रताप सिंग :- क्यों छुटकी क्या बात है?
पायल :- कुछ बात नहीं है पापा।
दृश्य :- 6
सूर्यप्रतापसिंह के घर के सामने गौरा हो रहा है, कर्मावाले नाच रहे हैं, झाँझ और माँदर बज रहे हैं, जलकुमारी और बिन्दिया बरामदा में बैठकर देख रहे हैं, मयंक से बिन्दिया की आँख मिलती है, बिन्दिया मुस्कुराकर सिर नीचे कर देती है।
दृश्य :- 7
मोहरसाय सभी औरतों को गाड़ी में बिठाकर राउत नाचा दिखाने के लिए ले जा रहा है।
बिन्दिया :- वो कौन है जो कल मदन के साथ गौरा देखने के लिए आया था?
मेंहदी :- मैं नहीं जान रही हूँ बिन्दी रानी, मैं भी उसे मदन के साथ अधिकतर देख रही हूँ, शायद वो उसका भोजली मित्र हो सकता है।
(उसी समय मदन और मयंक मोटरसाईकिल में आते हैं )
बिन्दिया :- मुझे लग रहा है, वो लोग आ रहे हैं।
मेंहदी :- हां हां वही है।
(वे पास आते हैं )
मदन :- चल मेंहदी, मोटर साईकिल पर चलोगी।
मेंहदी :- हम दूसरों के मोटर साईकिल पर नहीं चढ़ती।
(मुँह को मोड़ती है और जीभ को निकाल लेती है, मदन भी वैसे करता है, मयंक चुपचाप आगे बढ़ा लेता है। उसे जाते हुए मेंहदी। और बिन्दिया एकटक देखते रहते हैं। )
सुहारी :- क्या हो गई रे मेंहदी , तुम उसे पगली जैसे देख रही हो।
मेंहदी :- कुछ नहीं चाची , मदन को देख रही हूँ।
सुहारी :- ऐसे बात है , तो गर्मी में तुम लागों का विवाह करवा देंगे।
मेंहदी :- मैं उस लँगूर से विवाह नहीं करने वाली, हाँ कहे देती हूं।
सुहारी :- फिर तुम उस सफेद साँड़ से विवाह करोगी, जान रही है वह कितना धनवान है, कितनी पढ़ी लिखी है, तुम गड़ेरिन छोकरी उसका सपना देख रही है।
मेंहदी :- न रे चाची, मैं वैसे थोड़े बोल रही हूँ, मैं तो तुम्हारा लंगूर बेटा से विवाह नहीं करूँगी।
(गाड़ी का एक पहिया गड्ढ़ा में आता है, सुहारी नितंब के भार गिर जाती है, सभी खुलकर हँसते हैं, वो अपने नितंब को पकड़ी पकड़ी हाय माँ ! हाय बाप! कहती हुई आती है )
मोहरसाय :- ए मदन के माई, पीछे बैठती है और बड़े जोर से खूँटा को पकड़ना कहता हूँ तो नहीं मानती है। पीछे तरफ ज्यादा उछलता है।
(गाड़ी को हो हो कहकर रोकता है, सुहारी आकर चढ़ती है। )
जलकुमारी :- क्या वह जगदीश का नाती है, हमारी बिन्दिया के लिए उसका रिश्ता कैसा रहेगा?
सुहारी :- इसे मैं क्या कहूँगी, ओ टेक्टर लेने वाले हैं, सभी खेती को करेंगे, हमारे भारत देश को धान से भरेंगे, किसानों को इस समय उसके धान का सही कीमत भी मिलेंगे, इतना खूबसूरत और पढ़ा लिखा लड़का बिन्दी के लिए नहीं होगा तो और किसके लिए होगा।
(बिन्दिया नीचे सिर किए हुए मुस्कुरा रही है, सभी राउत नाचा स्थल पर पहुँच जाते हैं, फिर वहाँ अपना अपना टिकुली सिन्दूर वगैरह खरीद रहे हैं, मदन मेंहदी को खोज रहा है और बिन्दिया और मेंहदी मयंक को खोज रहे हैं। )
मदन :- ए मेंहदी क्या खरीद रही है?
मेंहदी :- क्या खरीदूँगी? टिकली तो खरीद रही हूँ।
मयंक :- इतनी खूबसूरत चेहरा पर कहाँ लगाओगी।
बिन्दिया :- तुम्हे क्या मतलब? जाइए तुम लोग अपने अपने रास्ते।
मेंहदी :- हम लोग तो लंबू और रेखा की सिनेमा देखेंगे।
(मयंक उसके हाथ में चुड़ी और अंगूठी रूमाल में बाँधकर दे देता है। )
मयंक :- घर जाकर देखना।
( बिन्दिया कुछ नहीं जान पाती, सिनेमा में सभी पास पास बैठते हैं, मयंक अपने पैर के अगूँठा में मेंहदी के पाँव को छुआता रहता है। )
मेंहदी :- ऐसे मत कर ना, बहुत गुदगुदी हो रही है, सभी देख रहे हैं।
मयंक :- सभी सिनेमा की ओर देख रहे हैं।
मेंहदी :- मत कर ना, सच्ची अति गुदगुदी हो रही है, हँस डालूँगी।
( मयंक नहीं मानता है, मेंहदी जोर से हँसती है )
सुहारी :- क्या हुआ पगली , जोर से हँस रही है।
मेंहदी :- चाची , सिनेमा के पुतली को देखकर हँस रही हूँ।
(मयंक मेंहदी के हाथ को संवार रहा है, मेंहदी मयंक के पैर को अपने अँगूठा से छुआ रहा है, मयंक उसके हाथ को जोर से चिमट देता है )
मेंहदी :- ए माई रे, यहाँ पर मैं नहीं बैठूँगी, बिन्दिया यहाँ पर तुम आकर बैठो।
बिन्दिया :- तुम्हे क्या हो रही है?
मेंहदी :- मुझे नहीं दिख रहा है।
( बिन्दिया मेंहदी के स्थान पर बैठती है, मयंक उदास हो जाता है, बिन्दिया नीचे सिर कर मयंक को देख रही है। )
मदन :- मयंक तुमने कुछ किया, वो उस तरफ चली गई।
मयंक :- नहीं मैंने उसे कुछ नहीं किया।
सुहारी :- गौटिन देखिए , इनकी सुन्दरता कैसे दिख रहा है।
जलकुमारी :- बहुत सुन्दर दिख रहे हैं, संयोग के बात है, संयोग रहेंगे तो जूड़ जाएँगे।
सुहारी :- ठीक कह रही हो गौटिन, जोड़ी तो उपर से लिखाकर आता है।
( ये सभी बातों को बिन्दिया सुन रही है, उसकी मन में ये बाँते घूम रही है, ओ सोच रही है,बिन्दिया और मयंक नाच गा रहे हैं। )
तुम इतनी सुन्दर हो, कह नहीं सकता।
तुम्हें कहे बिना , मैं रह नहीं सकता।।
तुम्हारा चेहरा आँखों में झूलते रहते हैं।
मेरा मन भंवरा तुम्हें चुमते रहते हैं।।
मेरे तन बदन में हो रहे हैं बहुत पीड़ा।
दूर रहकर ये पीड़ा को सह नहीं सकता।
तुम इतनी सुन्दर हो, कह नहीं सकता।
तुम्हें कहे बिना , मैं रह नहीं सकता।।
चाँद सा चमक रही, मैं चकोर बन गया।
इतना किसमें खीचें मैं तेरे ओर गया।।
तुम्हारा मुख दिख रहा है फूल सरोज।
इतना मीठा जितना बच्चे पीते उरोज।।
सबेरे सबेरे सभी मनुष्य करते हैं दातुन।
आ जाना प्रिये मेरे दरवाजा तुम चुन।।
तेरे बिना बिन्दिया मैं रह नहीं सकता।
तुम इतनी सुन्दर हो,कह नहीं सकता।
तुम्हें कहे बिना , मैं रह नहीं सकता।।
दृश्य :- 8
मतवार शराब पीकर डगमगाते हुए आता है और खाट में आकर गिर जाता है, खाट टूट जाता है, मोहनी चावल पकाती रहती है , चावल को चेटवा से चलाती रहती है , उसे लेकर आती है और कहती है
सोहनी :- आपको क्या हो गया प्रेम के पापा। आज फिर शराब पीकर आए हैं।
( चेटवा को छोड़ देती है और लोटा से पानी लाती है और मुँह में पानी सींचती है और सिर को ठोंकती है ) प्रेम के पापा चेत करो, इमली खाओ, आम खाओ।
( आम इमली को लाकर खिलाती है। )
मतवार :- मेरे पास आओ, तुम्हें छोड़कर मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
गुलगुल पका महुआ के फूल सा है तुम्हारा रूप।
देखकर तुम्हें मानव देवता धरने जैसे जाते झूप।।
पहनी हो महुआ फूल के माला, तुम हो मधुबाला।
नयन तेरे छलछलाते हाला, छाती में है दो प्याला।।
देखकर तुमको सभी मानव की भुला जाता बया,
कैसे मैं नहीं डगमगाउंगा जोड़ी, तुम हो मधुबाला।।
गुलगुल पका महुआ के फूल सा है तुम्हारा रूप।
देखकर तुम्हें मानव देवता धरने जैसे जाते झूप।।
मोहनी :- आप बातचीत बंद कीजिए, चुपचाप सोइए।
मतवार :- मैं कैसे सोउँगा, मुझे नींद कैसे आएगी। जब हमारे देश में दूसरे देश के आदमी आएँगे और वो लोग राज करेंगे। मुझे मतवार कहते हैं, मैं मंत्री बनूँगा तो उनके जैसे नहीं मेरे जैसे राज चलेंगे।
मोहनी :- ठीक कह रहे हैं प्रेम के पापा। बच्चे मातृभाषा को नहीं जान पा रहे हैं और उन पर अंग्रेजी लादा जा रहा है, अंग्रेजी से हमारे संस्कार सुधरेंगे।
मतवार :- मैं कह रहा हूँ ना, मैं मंत्री बनूँगा तो अंग्रेजी के भूत को भगा दूँगा। मैं मातृभाषा में पढ़ाई शुरू कर दूँगा, जिससे अपनी मां के भाषा में उन्हें प्रेम उपजे। ये इन्हें पढ़ने को कठिन लगता है और आदमी अपने भाषा से दूर भागता है।
मोहनी :- क्या बच्चे अपने मां की ममता को नहीं जान पाएँगे।
मतवार :- खूब जानेंगे पर उन में प्रेम पैदा करना पड़ेगा, अब बिल्कुल विपरीत हो रहा है, विदेशी भाषा 66 साल से हमारे उपर शासन कर रहा है। हमारी दादी आँख टेक दी है।
मोहनी :- हमारे माँ को नहीं मान रहे हैं, उन्हें रखैल बना लिए हैं।
मतवार :- मैं मंत्री बनूँगा, तो ठीक कर दूँगा, भारती भाषा भारत देश का भाषा होगा। इसे पढ़ेंगे तो जरूर बढ़ेंगे।
मोहनी :- प्रेम की बहुत याद आ रही है, प्रेम के पापा।
मतवार :- ओ पढ़ेगा , तभी बढ़ेगा, उसे खूब पढ़ने दो मोहनी, मेरा बेटा प्रतिभावान है, पढ़ लिखकर ज्ञान को गली गली फैलाएगा।
दृश्य :- 9
कॉलेज में प्रोफेसर पढ़ा रहा है, प्रेम पायल में अपने प्रेम को पढ़ रहा है।
प्रेम :- गुमा डाला ,गुमा डाला, मेरे जीव को गुमा डाला, मेरे आँख से निकलकर तुम्हारे आँख में घूस गया, तुम्हारे आँख में घूसकर तुम्हारे दिल में घूस गया, धकधक धकधक तुम्हारा दिल कर रहा है, मुझे लग रहा है वह मर रहा है, पानी पिलाओ और उसको जिन्दा करो, फिर पानी मिलाकर मुझे मार डाले।
पायल :- चल हठ पागल, तेरी भाषा तू ही जान, मैं ऐसे वैसे लड़की नहीं हूँ, जिसे तुरंत बात में फाँस लोगे।
प्रोफेसर :- पायल क्या बात कर रही हो? अगर बात ही करना है तो क्लास से बाहर जाकर करो।
( प्रेम और पायल कक्षा से बाहर आ जाते हैं। )
पायल :- देखो प्रेम, तुम्हारे कारण मुझे कक्षा से बाहर आना पड़ा।
प्रेम :- तो क्या हो रहा है, क्या मैं तुम्हारे मन के राजा से कम हूँ?
चनावाला :- चना लो, चना लो कुरकुरा गरम गरम।
प्रेम :- ये पायल चना खा ले।
पायल मुँह को मोड़ती है और जाने को होती है। प्रेम गाना गाता है ।
प्रेम :- कुरू कुरू मैना, कुरू कुरू मैना।
मुँह को खोल, खिलाउँ तुम्हें चना।।
पायल :- खाउँगी नहीं पगला, मैं तेरा चना।
मारेगा मुझको तेरी मतवाली नैना।।
प्रेम :- मान जाओ पगली , तुम मेरा कहना।
पायल प्रेम ही है सबसे बड़ा गहना।।
पायल :- खाकर चना छीना जाएगा मेरा चैना।
पिंजरा में फँस जाएँगे मेरी प्यारी मैना।।
प्रेम :- तेरे बिना नहीं सोता हूँ दिवस न रैना।
अब तो मान जा गोरी खा ले मोर चना।।
पायल :- इतना प्रेम है तेरा, जान लिया मैना।
मुँह को खोल दिया, खिला दे मुझे चना।।
प्रेम दूसरे तरफ मुँह कर देता है, पायल फिर गाती है।
पायल :- तपत कुरू तपत कुरू तपत कुरू तपत कुरू
चलों करें प्यार शुरू, चलों करें प्यार शुरू
मैं हूँ पायल पगला कोमल कुमारी कन्या
प्रेम प्रेम कर ले मेरे संग मान जा कहना
करकर करती मूर्गी, छर छर करती मछली
दीया में तेल है भरी, बाती बिना कैसे जली
पी हूँ करती पपीहा, कुहू कुहू गाये कोयलिया
लग रहा है प्रेम तेरे बिना जाएगा मेरा जिया
प्रेम :- कुरू कुरू मैना, कुरू कुरू मैना।
मुँह को खोल, खिलाउँ तुम्हें चना।।
मध्यान्तर
दृश्य :- 10
चैतू :- यार बैशाखू आज तू इतना गुमसुम क्यों लग रहे हो ?
बैशाखू :- यार चैतू आज मेरे हाथों दो का खून हो गया।
चैतू :- कहदे मेरे यार बैशाखू तू झूठ बोल रहा है।
बैशाखू :- नहीं यार चैतू मैं सच कह रहा हूँ।
चैतू :- मुझे विश्वास ही नहीं होता कि तू किसी का खून कर सकता है।
बैशाखू :- मेरे यार चैतू मेरे हाथ मच्छर के खून से रंगे है, हाथ धोने दे फिर तंबाखू मलता हूँ।
चैतू :- हा हा हा मैं तो जानता था, तू कायर ऐसा करिश्मा कैसे कर सकता है।
चैतू और बैशाखू सूरजप्रताप सिंग के मजदूर हैं, वे लोग उनके घर के दरवाजे पर लाठी लेकर खड़े रहते हैं, चैतू खूब बिड़ी पीने वाला है तो बैशाखू खूब तंबाखू खाने वाला है, किसी भी समय एक बिड़ी पीता रहता है और दूसरा तंबाखू मलता रहता है।
सूरजप्रताप सिंग :- चैतू बैशाखू
( दोनों खड़े हो जाते हैं। )
तुम लोग रात को सोए हो कि नहीं, सभी समय सोते रहते हो, तुम लोगों को दरवाजा पर इसीलिए रखा हूँ कि पेट भर खाओ और टाँग पसार कर सोओ, तुम लोगों को हर समय चौकन्ना रहना है, होशियार रहना है समझे।
चैतू और बैशाखू :- हाँ मालिक।
सूरजप्रताप सिंग :- तुम लोगों को कुछ पता है कि नहीं आने वाले गुरूवार को मेरी बिटिया बिन्दिया की सगाई है। सगाई के दिन पंड़री दाई के लिए काला बकरा लाना पड़ेगा।
चैतू और बैशाखू :- हां मालिक।
सूरजप्रताप सिंग :- क्या हाँ मालिक हाँ मालिक का रट लगाए हुए हो कुछ समझे कि नहीं ?
चैतू और बैशाखू :- समझ गए मालिक।
सूरजप्रताप सिंग :- क्या समझे बताओ ?
चैतू और बैशाखू :- पंड़री दाई को काला बकरा देना है।
सूरजप्रताप सिंग :- जाओ कहीं से भी काला बकरा मिले उसे ले आओ।
चैतू और बैशाखू :- हाँ मालिक
दृश्य :- 11
चैतू :- यार बैशाखू लहू देने से पड़री दाई प्रसन्न होती है।
बैशाखू :- देवी तो देती है यार चैतू वो कुछ नहीं लेती है।
सभी मनुष्यों का चोचला है, आपन रसना के स्वाद के उपाय हैं, एक का जिन्दगी लेकर क्या दूसरे को जिन्दा कर सकते हो।
चैतू :- यार बैशाखू तू इतना जान रहा है फिर भी मालिक को क्यों नहीं समझाता है?
बैशाखू :- मीन न्याय, बड़ी मछली छोटी मछली को खा डालती है।
चैतू :- व्यवस्था को बदल डालो।
बैशाखू :- पेट की व्यवस्था सबसे बड़ी व्यवस्था है, हम लोग नमक तेल लकड़ी से उबर जाएँ फिर हमें कोई बंधुआ मजदूर नहीं रख सकता ।
चैतू :- पता ही नहीं चला हम लोग बहुत जल्दी, मेंहदी के घर आ गए।
बैशाखू :- मेंहदी ओ मेंहदी।
मेंहदी :- क्यों गला फाड़ रहे हो ? मैं बहरी नहीं हूँ।
चैतू :- तुम्हारे पास काला बकरा है ?
मेंहदी :- रूपया रखे हो कि ऐसे फोकट में लेने आए हो।
बैशाखू :- है मेंहदी है , हमारा मालिक रूपया देकर भेजता है।
मेहंदी :- किस बकरा को लेना है पसंद कर लो?
चैतू :- ( एक बकरा को दिखाकर ) इस बकरा का क्या कीमत है?
मेंहदी :- दस हजार रूपए ।
बैशाखू :- आठ हजार रूपए में नहीं चलेगा?
मेंहदी :- यहाँ मोल भाव नहीं होता।
चैतू :- ले पकड़ दस हजार रूपए।
( मेंहदी दस हजार रूपए लेती है, चैतू बैशाखू बकरा को लेकर चल देते हैं। )
मेंहदी :- बकरी और नारी दोनों का एक ही भाग्य होता है, दोनों को बलि होना ही पड़ता है, एक को देवी के नाम पर , एक को घर के नाम पर , परिवार के नाम पर।
दृश्य :- 12
कॉलेज के पुस्तकालय में प्रेम पुस्तक ढ़ूढ़ रहा है, उधर से पायल खोजती हुई आती है, प्रेम का तन बदन काँप रहा है, पायल की छाती धक धक कर रही है, पाँव के पायल छनछन छनछन बज रहे हैं, दोनों चुंबक के समान खींचे जा रहे हैं, रेग के अंदर परस्पर अधरों का पान कर रहे हैं।
प्रेम :- हमें ये कैसे हो जा रहा है?
पायल :- मैं क्या जानूँ, मुझे भी तो ऐसे ही हो रही है।
प्रेम :- तेरे नयनों को देखा हूँ फेंकते जाल।
उसी समय से हूँ बकरा के समान हलाल।।
पायल :- गुलाबी गालों में आए हैं घुंघराले बाल।
तुम्हारा अधर दिख रहे हैं अग्नि लाल।।
प्रेम :- जब से लगा मुझे एक दिन साल।
अब जाना हूँ आ गया मेरा काल।।
पायल :- खाने का मन लगे , न पीने का मन लगे।
तुम्हारे बिना प्रेम मुझे जीने का मन लगे।।
प्रेम :- विद्युत-सा चमकती, नयन चौंधिया गया।
तुम्हारे छूने से मुझे, 440 वॉट का झटका दिया।।
पायल :- मलिया में है गुड़ और गिलास में है पानी।
खा ले पी ले मेरे राजा रहते ये जवानी।।
प्रेम :- तुम्हारी कहने पर मुझे बोतल का नशा चढ़ गया।
तुम्हारी मुस्कुराने पर मुझे प्रेम का पीड़ा मिल गया।।
प्रेम और पायल दोनों बातचीत कर रहे हैं।
प्रेम :- इतना दिन यहाँ बड़े मजा से रहे, परीक्षा के बाद हम लोगों को गाँव जाना पड़ेगा, वहाँ में भी बहुत मजा आएगा, हमारे प्रेम को गाँव भर में फैला देंगे।
पायल :- हाँ प्रेम हम लोगों के प्रेम से सारे संसार में प्रेम होगा।
दृश्य :- 13
भैंसा पर चढ़कर मयंक और मदन गा रहे हैं।
एक दूसरे को कभी न छोड़े, वही है सच्चा प्रीत।
विपत्ति में काम आता है जो, वही है सच्चा मीत।।
मयंक :- मेरे संगवारी मेरे मितान, तेरे लिए मैं दे दूँगा जान।
मदन :- मैं मजदूर हूँ, तुम हो किसान, तेरे लिए दे दूँगा प्राण।।
मयंक :- तुम मेरी जिन्दगी के हो आधार।
तुमको मैं करता हूँ प्यार अपार।।
हमारी मित्रता को मानते हैं सियान
मयंक :- मेरे संगवारी मेरे मितान, तेरे लिए मैं दे दूँगा जान।
मदन :- मैं मजदूर हूँ, तुम हो किसान, तेरे लिए दे दूँगा प्राण।।
मदन :- तुम हो बसंत और मैं हूँ काम।
जीते तक रहेगा मित्रता का नाम ।।
तुम तीर हो तो मैं हूँ कमान
मयंक :- मेरे संगवारी मेरे मितान, तेरे लिए मैं दे दूँगा जान।
मदन :- मैं मजदूर हूँ, तुम हो किसान, तेरे लिए दे दूँगा प्राण।।
मयंक :- मैं हूँ सीधा सादा किसान।
तुम हो मदन मीत मेरी जान।।
आंख उठाए ले लूँगा मैं जान
मयंक :- मेरे संगवारी मेरे मितान, तेरे लिए मैं दे दूँगा जान।
मदन :- मैं मजदूर हूँ, तुम हो किसान, तेरे लिए दे दूँगा प्राण।।
मदन :- तेरे लिए है मेरा एक प्रण।
तेरे लिए जाउँगा मरण।।
तुम हो मेरे मयंक जान
मयंक :- मेरे संगवारी मेरे मितान, तेरे लिए मैं दे दूँगा जान।
मदन :- मैं मजदूर हूँ, तुम हो किसान, तेरे लिए दे दूँगा प्राण।।
मदन :- मित्र तुम बहुत अच्छे हो।
मयंक :- तुम भी बहुत अच्छे हो मित्र।
मदन :- इतने बड़े गौटिया घर के हो और मुझ मजदूर के बेटा को नहीं भूले।
मयंक :- फिर से बोल तो , मदन मित्र भी कहते हो और उसमें अमीरी गरीबी लाते हो, मित्रता में कोई अमीरी गरीबी नहीं होता।
मदन :- समझ गया मित्र, तुम ही मेरे सच्चे मित्र हो।
मयंक :- इतना दिन से मैं पढ़ रहा था , तो मुझे लग रहा था कि क्या है जिसके कारण मुझे सूना सूना लगता था, उसे आज समझ गया।
मदन :- समझ गए तो मुझे बता दो मित्र।
मयंक :- वो तुम हो मेरे मित्र, तुम्हारे बिना मुझे सूना सूना लगता था।
मदन :- तुम मुझे बुद्धू समझकर झूठ तो नहीं बोल रहे हो।
मयंक :- तुम्हे झूठ बोलूँगा तो खुद को ही झूठ नहीं बोलूँगा।
मदन :- अच्छा सोच कर बताओ कौन है मित्र?
मयंक :- तुम ही हो मित्र।
मदन :- मैं नहीं हूँ मित्र, वो मेंहदी है।
दृश्य :- 14
मदन :- मेंहदी तुम किसकी याद में सूखी हो रही हो?
मेंहदी :- मैं किसकी याद में सूखी हो रही हूँ, तुम किसी की याद में सूखी होती होगी।
मदन :- नहीं देख रही हो सूख के काँटा हो जा रही हो। देख बोलेगी तो मित्र से कह दूँगा।
मेंहदी :- धत् तेरी की ( लजाकर भग जाती है। )
मयंक :- मुझे लग रहा है मित्र , मैं किसी दूसरे का कौंरा को छीन रहा हूँ।
मदन :- आप देवता हैं मित्र, तुम्हारे पास जो कोई भूख मरेंगे, तो तुम्हारे मुँह में अन्न कहाँ जाएँगे।
मयंक :- मुझे मनुष्य रहने दो मित्र, देवता बन जाउँगा तो मैं कितने पीड़ा को सह पाउँगा, लग रहा है किसी के प्रेम के कौर को छीन ले रहा हूँ।
मदन :- मित्र प्रेम प्रेम संग मिलता है, प्रेम प्रेम संग बहता है, इसे कोई छीन नहीं सकते।
दृश्य :-15
प्रेम कॉलेज से एक बस से घर जा रहा है, पायल एक बस से घर जा रही है, बीच रास्ते पर दोनों का बस मिलता है दोनों का नजर परस्पर पड़ती है, परस्पर बस खींचा जाता है, बस डइ्रभर परेशान हैं कि बस को क्या हो रहा है, फिर प्रेम और पायल के नजर को देखते हैं तो दोनों को नीचे उतार देते हैं और बस अपने अपने रास्ते निकल जाते हैं, परस्पर दोनों के नयन मिले रहते हैं।
दृश्य :- 16
बिन्दिया के बकरा के खून से अभिषेक करते हैं, उनका सगाई के लिए आते रहते हैं उनका एक्सीडेन्ट हो जाता है और वे मर जाते हैं।
बिन्दिया :- ये क्या हो गया माँ, कहीं मेरे भाग्य में कुँवारी तो नहीं बदा है।
जलकुमारी :-ऐसे मत बोलो बेटी, मेरे कलेजा फट रहा है।
बिन्दिया :- माँ , देवी लहू नहीं लेती है, हमें हमारा कर्म का फल मिल गया।
जलकुमारी :- तुम क्या कह रही हो, मैं नहीं जानती बेटी, हमारे भाग्य तो फूट गए।
पायल :- मां दीदी कह रही है, जैसे करेंगे, वैसे पाएँगे, हम लोग बकरा का बलि दिए, तो दीदी के मंगेतर का बलि चढ़ गया। हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, यह प्रकृति का नियम है।
जलकुमारी :- तुम लोग इतने ज्ञानी हो तो फिर रोना धोना छोड़ो और ऐसे होनेवाला ही था सोचो।
पायल :- बिन्दिया का जहाँ संयोग होगा, वहाँ उसके तार अवश्य जुड़्रेगे।
जलकुमारी :- ठीक कह रही हो बेटी, मुझे बिन्दिया के लिए मयंक बहुत अच्छा वर लग रहा है।
पायल :- देख माँ, विधाता क्या लिखा है उसको?
सूरजप्रताप सिंग :-;चिल्लाकर) बिन्दिया की माँ , एक लोटा पानी देना और संग में माचिस देना।
जलकुमारी :- पानी के संग गुड़ माँगते तो समझती, पर आप तो पानी के साथ माचिस माँग रहे हैं, गुड़ लाउँगी कि माचिस।
सूरजप्रताप सिंग :- माचिस लाना भाग्यवान, बिड़ी पीने का मन कर रहा है, पानी पीने के बाद बिड़ी पीउँगा।
जलकुमारी :- जब से दुर्घटना घटी है, इनका बिड़ी पीना ज्यादा हो गया है।
दृश्य :- 17
चैतू :- पड़री दाई में टीका लगाए , फिर वो क्यों अप्रसन्न हो गई।
बैशाखू :- मैं नहीं कहा था, एक का जिन्दगी लेकर क्या दूसरे को जिन्दा कर सकते हो।
चैतू :- तुम ठीक कह रहे हो यार , मैं जगदीश नाना यहाँ एक लड़का देखा हूँ।
बैशाखू :- देखे होगे पर वह उसका बेटा नहीं है।
चैतू :- फिर वह उसका बेटी का बेटा होगा।
बैशाखू :- वह बहुत पढ़ा लिखा है तो पर भी निर्धनों को प्यार करता है।
चैतू :- सभी शुरू शुरू में ढोंग करते हैं।
बैशाखू :- वो दोस्त बनाने लायक है। उसका विचार और हमारा विचार परस्पर मिलते हैं, वह एक मजदूर को साँड़ से बचाया था।
दृश्य :- 18
मयंक :- नानी मां प्रणाम।
जागृति :- जीते रहो बेटा।
जगदीश :- दूसरे का लहू पीते रहो।
जागृति :- नहीं जानते मैं अहिंसावादी हूँ।
जगदीश :- जान रहा हूँ सबेरे रेजा को मार रही थी।
जागृति :- इतना भी नहीं जानते दलित को हर युग में कुचला जाता है।
मयंक :- मैं आ गया हूँ नानी, शीतल करने के लिए, अब कोई दलित को नहीं दबा सकते।
जगदीश :- परम्परावादी जब अहिंसावादी बनता है तब वो हिंसावाद के उपर नकाब चढ़ाया रहता है।
जागृति :- चुपचाप रहिए, अपना भाषण बंद कीजिए।
जगदीश :- तुम्हारे चिल्लाने से तो भूतनी भी डर जाएगी।
जागृति :- क्या बोले मुझे भूतनी बोल रहे हो, देख नहीं रहे हो मेरी झाड़ू को ।
उसे मारने के लिए दौड़ाती है, मयंक बीच बचाव करता है।
मयंक :- मान जा नानी, नानाजी मुझे चलिए अपना खेत बताइए।
दोनों खेत चले जाते हैं।
जगदीश :- मयंक एक नजर इस जमीन को देखो,ये मेरे नसीब के फल हैं, इसे मैंने खून पसीना से सींचा है, पहले ये लावारिस के समान बेनाम पड़े थे, द ग्रेट गेम्बलर, नमकहराम, गहरी चाल चलके हेराफेरी करके, इसे हड़पना चाहे, मेरा मुकद्दर का सिकंदर चमक रहा था, कभी लगता मेरा मंजिल दूर है, मैं अपना परवरिश नहीं कर पाउँगा, पर मुझे गंगा की सौगंध, सात हिन्दुस्तानी, आनंद, लाल बादशाह, अमर अकबर अंथोनी, गंगा जमुना सरस्वती, राम बलराम, बंशी बिरजू, रेश्मा और शेरा, देश प्रेमी यहाँ तक हम शराबी , डॉन भी नमकहलाल, दोस्ताना, याराना का परिचय दिए और मेरे बंधे हाथ में इतनी शक्ति आ गई, सत्ते पे सत्ता, दो और दो पांच के संजोग से मुझे जुर्माना पटाना नहीं पड़ा, फिर बंजर जमीन को जंजीर से खोदने का सिलसिला जारी रखा, रास्ते के पत्थर को हटाया, काला पत्थर, जमीर, अदालत की कसौटी मुझे बार बार पुकार रहा है, मैने सोचा कभी खुशी कभी गम तो मिलते रहते हैं, मैं अक्श से एक रिश्ता जानकर जादूगर, मर्द, कुली बनकर अकेला शोले तूफान से लड़ता रहा, इंसानियत, इंकलाब, खुदागवाह, ईमानदार मेरा आखिरी रास्ता थे।
मयंक :- बरसात की एक रात, प्यार की कहानी, इंकलाब, क्रोध, ने जलवा दिखाया, गोलमाल किया और हमसे जीता कौन है ना नाना।
जगदीश :- बिल्कुल ठीक, तुमने कैसे जान लिया?
मयंक :- मैं अमिताभ के फिल्म का नाम और आप खेत के कथा कह रहे थे।
जगदीश :- हाँ मयंक, मैं भी दोनों बता रहा था, मैं बचपन में बहुत सिनेमा देखता था, पीरियड छोड़कर सिनेमा हाल में बैठे रहता था, मेरे पिताजी मुझे बहुत गुस्सा करते थे, फिर भी मैं सिनेमा देखना नहीं छोड़ा, ऐसे तैसे बी ए को गाँधी श्रेणी में पास किया, एल एल बी की पढ़ाई रास नहीं आया, विवाह के बाद तेरी नानी के गाँव चला आया।
दृश्य :- 19
चम्पी उपला थाप रही है, चैतू और बैशाखू आकर उसे छेड़ते हैं।
चैतू :- ए चम्पी तुम क्या कर रही हो?
चम्पी :- नहीं देख रहे हो बेर्रा, मैं क्या कर रही हूँ?
बैशाखू :- तुम हमें गाली क्यों दे रही हो चम्पी?
चम्पी :- कनटेरहा नहीं देख रहे हो।
चैतू :- देख देख चम्पी, हमें गाली मत दे।
चम्पी :- तुम्हें गाली नहीं दूँगी, तो आरती उतारूंगी।
चैतू :- आज तुम मारकेट नहीं जा रही हो।
चम्पी :- क्यों, आज क्या मंगवाना है?
चैतू :- आज मुझे आम खाने का मन कर रहा है।
बैशाखू :- आज मुझे पपीता खाने का मन कर रहा है।
चम्पी :- भागना है तो जल्दी भागो नहीं तो बापू को बुलाउँगी।
चैतू और बैशाखू भग जाते हैं।
दृश्य 20
मयंक खाई में गिर रहा होता है , तो मेंहदी उसे बचाती है।
मयंक :- आज तुम नहीं बचाती तो मेरा राम नाम सत्य हो जाता।
मेंहदी :- बाबू मरे का नाम मुँह से नहीं निकालते।
मयंक :- आज तुम बचाकर नया जन्म दी हो, लो ये तोहफा कुबूल करो।
मयंक गले से चैन निकाल कर देता है।
मेंहदी :- मेंहदी सिर्फ देती है बाबू लेती नहीं।
मयंक :- तुमने नजर उठाया, मैं जी गया।
तुमने नजर झुकाया, मैं मर गया।।
मेंहदी :- तुमने नजर उठाया, मैं जी गई।
तुमने नजर झुकाया, मैं मर गई।।
मयंक :- हाथों में मेंहदी, माथा में टिकुली।
सजनी मेरी निंदिया तुमने चुरा ली।।
मेंहदी :- नाक नीचे मुँछ, कान के पास कली।
साजन तेरे पास मेरा जीव है चली।।
मयंक :- रूप को देख तेरा, मैं जी गया।
मयंक :- तुमने नजर उठाया, मैं जी गया।
तुमने नजर झुकाया, मैं मर गया।।
मेंहदी :- तुमने नजर उठाया, मैं जी गई।
तुमने नजर झुकाया, मैं मर गई।।
मयंक :- होंठो की लाली, कान की बाली।
कब बनेगी सजनी, मेरी घरवाली।।
मेंहदी :- प्यार दोनों में क्या करेगा खाला।
कब बनेगा सजना, मेरा घरवाला।।
मयंक :- अभी कह सजनी, डोली लेकर आउँगा।
दुल्हन बनाकर अपने घर लेकर जाउँगा।।
मेंहदी :- गला में मंगल सूत्र, हाथ में मेंहदी।
बाँहों में उठा ले जा मैंने हाँ कर दी।।
मयंक :- तुझे उठाके सजनी, मैं जी गया।
मयंक :- तुमने नजर उठाया, मैं जी गया।
तुमने नजर झुकाया, मैं मर गया।।
मेंहदी :- तुमने नजर उठाया, मैं जी गई।
तुमने नजर झुकाया, मैं मर गई।
दृश्य :- 21
छेरका का घर
छेरका टूटा खाट पर सोया है, ओ बीमार पड़ा हुआ है।
छेरका :- मेहंदी बेटी मेरे पास आओ।
मेंहदी :- क्या है दादू?
छेरका :- बेटी तुम्हें एक राज का बात बता रहा हूँ।
मेंहदी :- क्या कह रहे हो दादू , नहीं समझ पा रही हूँ।
छेरका :- बेटी , तुम मेरी बेटी नहीं हो।
मेंहदी :- क्या कह रहे हो दादू?
छेरका :- मैं तुम्हें होली के रात मेंहदी के नीचे घूरा में पाया हूँ।
मेंहदी के लाली के समान थी, इसीलिए मैंने तुम्हारा नाम मेंहदी रखा है, मैं तुम्हें पाला भर है, तुम्हारा बाप सूरजप्रताप सिंग है, प्रेम में ये राज मैं नहीं खोल रहा था, कहीं तुम वहाँ न चली जाओ।
मेंहदी :- मैं तुम्हारी बेटी हूँ दादू, इस संसार में तुम्हारे छोड़ कोई मेरा बाप नहीं है।
ब्लेक फेश में
गांव में होली का त्यौहार मना रहे हैं, होली के रंग में सभी रंगे हैं, इसी समय रात में सूरजप्रताप सिंग और जलकुमारी बकरी के कोठा में हैं, जलकुमारी बच्चा पैदा कर रही हैं, गांव के लोग मस्त हैं , किसी को पता नहीं है।
सूरजप्रताप सिंग :- ये कैसे समाज की रीति है जल, हम लोग परस्पर प्रेम कर रहे हैं और हम लोगों को छिपकर पैदा करना पड़ रहा है।
जलकुमारी :- इसे मैं क्या जानूँगी, प्रेम करने में बहुत मजा आया, पर पैदा करने में बहुत पीड़ा मिल रहा है मेरे राजा।
सूरजप्रताप सिंग :- इस पीड़ा को सभी नारियों को सहनी ही पड़ती है, सृजन का पीड़ा बहुत मीठा होता है।
जलकुमारी :- ये हमारा प्रेम का प्रतीक बेटी है, ये पकड़ो।
सूरजप्रताप सिंग :- पकड़ने के लिए तो पकड़ लूँगा, फिर इसे हम घर नहीं ले जा सकते।
जलकुमारी :- आप ही बोले थे कि इसे घर ले जाएँगे , फिर आज कैसे ऐसे बोल रहे हो?
सूरजप्रताप सिंग :- इसे मैं घर ले जाउँगा, तो मेरा कुछ भी इज्जत नहीं रहेगा। विवाह के पहले प्रेम करने पर सजा समाज देता है।
जलकुमारी :- आप नहीं ले जाएँगे तो मैं ले जाउँगी।
सूरजप्रताप सिंग :- तुम भी इसे मत ले जाओ, ले जाओगी तो हमारी बहुत बदनामी होगी।
जलकुमारी :- बदनामी के डर से मेरे जीव को छोड़ दूँ।
सूरजप्रताप सिंग :- तुम नारियाँ बहुत मनचढ़ी होती हो, तुम मेरा कहना नहीं मानोगी तो तुम्हें दोनों में एक को चुनना पड़ेगा।
जलकुमारी :- क्या कसम दे डाले मेरे राजा, अब मुझे आप ही को चुनना पड़ेगा।
सूरजप्रताप सिंग :- तुम इसकी माँ हो, तो मैं भी इसका बाप हूँ, फिर हमें समाज की मर्यादा को रखना ही पड़ेगा।
जलकुमारी :- हमें माया के मर्यादा को रखना है , चाहे प्रेम की मर्यादा मर जाए, मैं नारी हूँ, तुमसे नीचे हूँ, आप मुझे तारे , चाहे डुबोएँ।
सूरजप्रताप सिंग :- चल पकड़ शिशु को और मेंहदी के नीचे घूरा में डाल दे।
जलकुमारी शिशु को मेंहदी के नीचे घूरा में डाल देती है, उसे छेरका देखता है और अपना घर ले आता है। मेंहदी बकरी के थन से दूध पीती है, बकरी यशोदा माँ बन गई है, मेंहदी को मुहल्ला के लोग बहुत प्रेम करते हैं, मेंहदी पूरे गांव भर में रच बस गई है, इस तरह छेरका के पास मेंहदी बढ़ रही है, किसी के घर से दाल रोटी, किसी के घर से दूध आता है, मेंहदी मेंहदी न होकर देवी हो गई है, पत्थर की मूर्ति को छोड़कर सभी इस बच्ची में प्राण दे रहे हैं, छेरका का घर मंदिर बन गया है।
दृश्य :- 22
मयंक :- मेंहदी।
मेंहदी :- हां।
मयंक :- क्या सोचकर तुम्हारे माता पिता ने तुम्हारा नाम मेंहदी रखा है।
मेंहदी :- मेरे जन्म के अजीब दास्तां है मयंक, मैं मेंहदी के नीचे घुरा में पाई गई थी, इसीलिए मेरा नाम मेंहदी रखा गया है।
मयंक :- मैं तुम्हें अपना दिल दिया तो लगा कि मेरा जीवन पूरा हो गया।
मेंहदी :- मैं जाती हूँ, बकरियाँ अपनी घर जा रही हैं।
मयंक :- मेंहदी, रात में तो मयंक निकलता है और अपनी ज्योत्स्ना से सारे संसार को शीतलता प्रदान करता है।
मेंहदी :- हमारे मुहल्ला को मयंक शीतलता प्रदान नहीं करता है, वह उल्टा जलाता है।
मयंक :- तुम से दूर रहकर वो नहीं जलाएगा तो और क्या करेगा।
मेंहदी :- अब मैं चलूँ।
मयंक :- जाइए, पर छोड़ने का दिल नहीं कर रहा है।
दृश्य :- 23
बरगद पेड़ के नीचे प्रेम और पायल गन्ना खा रहे हैं, पायल के गोद में प्रेम लेटा है और पायल गन्ना छीलकर प्रेम को खिला रही है।
प्रेम :- पायल को प्रेम का छोटी सी भेंट।
पेड़ से पैकेट निकालकर देता है।
पायल :- प्रेम पायल अभी मरी नहीं है।
प्रेम :- आखिर तुम अपने आप को समझते क्या हो?
पायल :- सिर्फ तुम्हारा।
प्रेम :- तो फिर क्यों नहीं ले रही हो?
फेंक देता है, चूड़ी टूट जाते हैं, नथ गुम जाता है, हार टूट जाती है।
पायल :- इसी कारण मैं नहीं लेती हूँ, नश्वर चीज को लेकर मैं क्या करूँगी? जबकि मुझे तुम्हारा अमर प्रेम मिला है।
प्रेम :- पायल ये पेड़ भी सिर्फ देता है, तुम भी देती हो लेती कुछ नहीं, फिर भी तुम्हें मुझे स्वीकार करना होगा।
दृश्य :- 24
मयंक मेंहदी को देखकर गा रहा है।
भूरी भूरी नयनों में पीली पीली पलके हैं।
तुम्हारी पतली कमर हवा से भी हल्के हैं।।
थाली जैसे मुखड़ों में भाप के जुल्फें हैं।
तुम्हारी ये रजत दंत सितारों के जलसे हैं।।
सीपी जैसे कानों में मोती के झूमके हैं।
तुम्हारे रूप को देख मेरे देवता बहके हैं।।
पान जैसे नाकों में लवंग फूल खिलते हैं।
होंठों के लाली से लाल अग्नि जलते हैं।।
सितारा अँखियों की जब जिधर चलते हैं।
तुम्हारे रूप को देखकर विधाता मरते हैं।।
दृश्य :- 25
मोहरसाय :- मयंक बेटा, तू अपने मित्र से अच्छा मित्रता निभा रहा है।
मयंक :- तुम क्या कह रहे हो पापा, मैं नहीं समझ रहा हूँ।
मोहरसाय :- मेंहदी को बचपन से छेरका मदन के बहू बनाने के लिए राजी था।
मयंक :- इस बात को मेरे मित्र ने कभी नहीं बताया है।
मोहरसाय :- नहीं बताया था, तो नहीं बताया था, आज मैं तुम्हें बता रहा हूँ।
दृश्य :- 26
मयंक :- मित्र आज तक नहीं बताए थे कि मेंहदी तुम्हारा मंगेतर है।
मदन :- इस बात को मुझे भी नहीं मालूम था, आज ही मुझे मेरे पिताजी बताए।
मयंक :- आज ही पापा मुझे बताए, मैं तो डर गया। मेंहदी तुम्हारी थी, तुम्हारी है, तुम्हारी रहेगी।
मदन :- तुम ऐसे कैसे कह रहे हो मित्र, मेंहदी तुम्हें चाहती है, तुम्हारी रहेगी, तुम्हारा प्रेम तुम्हें अवश्य मिलेगा।
दृश्य :- 27
गाँव में कबड्डी प्रतियोगिता रखी गई है, जिसमें मयंक को बहुत ज्यादा चोट लगती है, गाँव के अस्पताल में बिन्दिया डॉक्टर है।
मयंक :- मुझे कुछ भी इंजेक्शन की जरूरत नहीं है। मैं पीड़ा क्या होता है जानना चाहता हूँ।
बिन्दिया :- तुम बोल रहे हो पर मैं डॉक्टर होकर कैसे मान जाउँगी। डॉक्टर मरीजों को पीड़ा नहीं देता है, उनका पीड़ा का हरण करता है।
मयंक :- नहीं डॉक्टर ! मैं बहुत ज्यादा पीड़ा पाना चाहता हूँ।
मदन :- ये कह रही है तो मान लो न मित्र।
मयंक :- मौत आने से पहले मुझे कोई पीड़ा नहीं मार सकता है।
मदन :- तुम मेरे सभी पीड़ा को क्यों लेना चाहते हो मित्र। मुझे मित्रता का इतना कर्ज दे, जिसे मैं छूट सकूँ।
बिन्दिया बिना इंजेक्शन लगाए उसका इलाज करता है। मदन और मयंक चले जाते हैं।
पायल :- दीदी आज तुम रोग से ज्यादा रोगी को देख रही थी।
बिन्दिया :- धत् तेरी की ! मैं इसका पीड़ा सहने की ताकत को देख रही थी। कोई और रहते तो थोड़े समय में बेहोश हो जाते, हो हल्ला मचाते, घाव इतना गहरा है, तो पर भी इसके चेहरे में शिकन भी नहीं है।
पायल :- आज दीदी तुम इसका बहुत तारीफ कर रही हो।
मेंहदी ये बातें छिपकर सुन रही है।
बिन्दिया :- हाँ रे छुटकी, पर भगवान जहाँ संजोग जोड़ेगे, वहाँ जुड़ेगा।
पायल :- तुम बोलेगी तो अभी पापा के पास जाकर तुम्हारा संजोग जोड़ दूँगी।
मेंहदी अपने मन में सोच रही है, मैं कैसे दीदी हूँ, जो ये चाह रही है, उसे मैं लेना चाह रही हूँ, मुझे कुछ भी हो जाए, कुछ करके इस रिश्ते को जोड़ना है।
दृश्य :- 28
मेंहदी :- मयंक बाबू तुमसे एक बात करना था।
मयंक :- मेंहदी एक बात तो मुझे भी करना था।
मेंहदी :- क्या बात करना है, कहो न।
मयंक :- पहले तुम कहो न ।
मेंहदी :- तुम बड़े गौटिया घर के बेटा, अमीर घर में रिश्ता जोड़्रेगे तो मजा आएगा।
मयंक :- नहीं मेंहदी ऐसी बात नहीं है, मुझे गलत मत समझना, मदन तुम्हें बालपन से चाह रहा है, इसीलिए कह रहा हूँ।
मेंहदी :- ठीक कह रहे हो तो मेरी भी एक सुन लो, रिश्ता बराबर वालों से करने में मजा आता है, तुम सूरजप्रताप सिंग के बेटी से विवाह कर लो।
मयंक :- देख जो किस्मत में लिखा होगा ,वही होगा।
मेंहदी :- किस्मत में लिखा होगा मत कहो, मैं उससे विवाह करूंगा कहो, तो जरूर होगा, मैं तुम्हारा बात मान रही हूँ, तो तुम भी प्रेम के खातिर मेरी बात मान लो।
मयंक :- मानूँगा सजनी, इसीलिए तुम मेरे पास अपने हाथों में मेंहदी रचाई थीं।
मयंक और मेंहदी के आँखों से आँसू निकल रहे हैं।
दृश्य :- 29
मतवार :- प्रेम इस समय तुम्हारी शादी कर देते, तुम्हारी माँ काम नहीं कर पा रही है।
सोहनी :- तुम्हारे पापा ठीक कह रहे हैं प्रेम, मैं कितने दिन तक काम करती रहूँगी, तू भी अब काम कर रहा है।
प्रेम :- मैं थोड़े दिन नहीं करता माँ, मेरी अभी उम्र ही क्या हुआ है?
मतवार :- तू तो अपनी माँ का दूध पी रहा है।
प्रेम :- मुझे पूछने दो फिर मैं बताउँगा।
मतवार :- क्या कह रहा हूँ, मैं नहीं समझ रहा हूँ, साफ साफ बताओ।
प्रेम :- साफ साफ तो कह रहा हूँ, मुझे पूछने दो फिर बताउँगा।
सोहनी :- किसको पूछेगा बेटा?
प्रेम :- कह तो रहा हूँ माँ, पायल से पूछकर बताता हूँ।
दृश्य :- 30
प्रेम :- पायल मेरे मम्मी पापा वृद्ध हो गए हैं।
पायल :- तो मैं क्या करूँगी?
प्रेम :- तुम क्या करोगी, तुम मेरे साथ विवाह नहीं करोगी।
पायल :- मैं तुम्हारे साथ विवाह करूंगी किसने बोला तुमको?
प्रेम :- ए पायल मजाक छोड़ ,क्या कह रही है साफ साफ बोल?
पायल :- मेरे साथ विवाह तुम करोगे प्रेम।
दोनों हँसते हैं और गले मिलते हैं
पायल :- दीदी का विवाह होगा, तो घर में अकेले मम्मी पापा रह जाएँगे।
प्रेम :- तो फिर?
पायल :- मैं पहले बोल रही थी कि दुल्हा को विवाह कर मैं लाउँगी, मम्मी पापा को बेटा मिल जाएगा।
प्रेम :- मैं घर जमाई नहीं बनूँगा।
सूरतप्रताप सिंग और जलकुमारी आते हैं।
सूरतप्रताप सिंग :- ठीक कह रहे हो बेटा प्रेम, कोई भी अच्छा आदमी घर जमाई नहीं बनना चाहता।
पायल :- पापा प्रेम को मानना पड़ेगा।
जलकुमारी :- आप दोनों आते जाते रहेंगे, यही हम लोगों को बहुत खुशी होगी।
जगदीश और जागृति आते हैं।
जागृति :- लग रहा है खुशी आप लोगों के पाँव चुम रहे है, आज हम लोग भी आपके बिन्दिया बेटी के रिश्ता के लिए आए हैं।
जलकुमारी :- आज वास्तव में हम लोगों का बहुत ज्यादा किस्मत है कि बिन्दिया को भी वर मिला।
जगदीश :- अब सूरजप्रताप सिंग आपके यहाँ दो मंडप छायेंगे।
दृश्य :- 31
विवाहगीत चल रहे हैं
मदन और मेंहदी का विवाह, मयंक और बिन्दिया का विवाह और प्रेम और पायल का विवाह होता है।
दृश्य :- 32
चैतू और बैशाखू :- ऐ चम्पी सभी का विवाह हो गया, तुम दोंनो में किसके साथ विवाह करोगी।
चम्पी :- तुम दुश्मनों के साथ नहीं करूँगी।
चम्पी दोंनो अंगूठा को हिलाती है।
समाप्त
नाम - सीताराम पटेल
उपनाम -सीतेश
राज्य -छत्तीसगढ़
जन्मतिथि - 01/ 07/ 1966
मोबाइल नंबरः- 7697110731/ 9685891419
जन्मस्थान - घर पत्रघर - रेड़ा
थाना तहसील - डभरा
जिला - जाँजगीर चाँपा राज्य - छत्तीसगढ
पिन -495692
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