० योजनाएं ढेरों पर नहीं कम हो रहा कुपोषण पूरे विश्व में उज्जवल और विकासशील अथवा विकसित भविष्य की कल्पना यदि की जा सकती है, तो केवल और केवल ब...
० योजनाएं ढेरों पर नहीं कम हो रहा कुपोषण
पूरे विश्व में उज्जवल और विकासशील अथवा विकसित भविष्य की कल्पना यदि की जा सकती है, तो केवल और केवल बच्चों की योजनाओं केा सृजनात्मकता से जोड़ते हुये ही संभव हो सकती है। इस बात को भली भांति समझना होगा कि जिस देश में बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित मजबूत कार्यप्रणाली नहीं है, वह देश अच्छे नागरिक बनाने में असफल ही होगा। कारण यह कि आज जो बच्चा है, वही कल का किशोर, युवा और जिम्मेदार नागरिक का भूमिका अदा करेगा। हमारे अपने देश के अनेक राज्यों में बच्चे कुपोषण का शिकार है, उन्हें स्वास्थ्य वर्धक भोजन तो दूर भरपेट दाल चावल भी नहीं मिल पा रहा है। प्रतिदिन के भोजन में आवश्यक रूप से शामिल किये जाने वाले विटामिन्स और प्रोटीन के विषय में सोचना तो जैसे सपना ही हो गया है। अकेले छत्तीगसढ़ में ही 45 प्रतिशत बच्चे कुपोषण की चपेट में है। प्रदेश सरकार की योजनाएं कुपोषण से लड़ने करोड़ों का बजट प्रावधान बता रही है। बच्चों को प्रदान की जाने वाली सुविधाओं पर किस प्रकार ढाका डाला जा रहा है, इससे प्रशासन बेखबर हो ऐसा नहीं लगता। ‘अंधा बांटे रेवडी, अपने अपने को देय।’ वाली कहावत के चलते अंतिम बच्चे तक योजना का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है।
बच्चों के अधिकारों, समानता और उनके विकास के लिये प्रतिबद्धता का भारत वर्ष का लंबा इतिहास रहा है। बच्चों को उनके जीवन, व्यक्तित्व और बचपन को किसी भी तरह के वास्तविक व महसूस होने वाले खतरे अथवा जोखिम से सुरक्षा का पूर्ण अधिकार है। बच्चों के लिये सुरक्षित वातावरण का निर्माण करने के लिये एक ऐसे राष्ट्र व्यापी समग्र कार्यक्रम की जरूरत महसूस की जाने लगी है, जो उनके विकास के अनुरूप हो। इसी जरूरत को पूरा करने के लिये सन 2009-10 में एकीकृत बाल संरक्षण योजना की शुरूआत की गई। इस योजना का मुख्य उद्देश्य बच्चों के साथ किया जाने वाला दुर्व्यवहार, उपेक्षा, शोषण, त्याग दिये गये और परिवारों से बिछुड़े बच्चों की असुरक्षा में कमी लाना ही रखा गया है। इसके अलावा बच्चों के देखभाल के लिये कानूनी और प्रशासनिक ढांचा तैयार करने के साथ साथ बाल न्याय अधिनियम के क्रियान्वयन में तेजी लाना, गुणवत्तापूर्ण देखभाल मुहैय्या कराने के लिये गृहों का निर्माण करना भी योजना में शामिल किया गया है। जिस देश में बच्चों को संरक्षण देने के लिये इतनी अच्छी योजनाएं क्रियान्वियत की जा रही हो, उसी देश के विभिन्न राज्य में मध्याह्न भोजन की अव्यवस्था से बच्चे बीमार पड़े, और मौत के मुंह में समा जाये, तो कहीं न कहीं योजनाकारों की प्रतिबद्धता में कमी ही सामने आती है।
राष्ट्रीय बाल सुरक्षा आयोग ने 12 जून 2013 को ‘बाल श्रम विरोध दिवस’ के रूप में आयोजित किया। इस दिवस को विशेष महत्ता देने की सोच के साथ दिवस का थीम ‘बच्चों के लिये न्याय, बाल श्रम समाप्त करो’ बनाया गया। इस दिवस को आयोजन के रूप में मनाने के पीछे एकमात्र सोच यही थी कि बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा की जरूरत क्यों समझी जा रही है। इसे सभी के सामने लाया जा सके। साथ ही बाल श्रम तथा विभिन्न तरीकों से किये जा रहे बच्चों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को रोका जा सके। संगठन के अनुमानों के अनुसार विश्व भर में 21 करोड़ 80 लाख बाल श्रमिक कार्यरत है। बाल श्रमिकों के रूप में वे शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और नैतिक यातना से भी दुष्प्रभावित होते आ रहे है। भारत वर्ष के संदर्भ में बाल श्रमिकों की सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश में है, जो देश के कुल 25 प्रतिशत बाल श्रमिकों के रूप में दर्ज है। उत्तर प्रदेश के बाद आंधप्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में क्रमशः देश के कुल 9 प्रतिशत और 8 प्रतिशत बाल श्रमिक कार्यरत है। हालांकि हमारे संविधान में बच्चों को शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवन यापन के लिये बल पूर्वक कार्य कराने जैसे मामलों में बच्चों के हितों की रक्षा का स्पष्ट प्रावधान है। बावजूद इसके यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि हमारे अपने देश में बाल श्रम आज भी अपना अस्तित्व बनाये हुये है।
भुखमरी का सर्वे करने वाले सूचकांक ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ ने 2011-13 की अपने रिपोर्ट में भारत वर्ष को इस मामले में 63वें स्थान पर रखा है। भारत वर्ष को सर्वे टीम और इंडेक्स ने ‘अलार्मिंग केटेगरी’ में रखा है। परेशान करने वाली हैरतअंगेज बात यह है कि हमारे अपने देश में 5 वर्ष से कम उम्र के 40 प्रतिशत बच्चे अब भी कुपोषण के जकड़न में है। 14 अक्टूबर को जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में भूख से पीड़ित लोगों की कुल संख्या 84 करोड़ 20 लाख है। इनमें से 21 करोड़ लोग अर्थात एक चौथाई अकेले भारत वर्ष है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत की स्थिति पहले के तुलना में सुधरी हुई है। वर्तमान में हमारे देश में कुपोषित बच्चों की संख्या 21 प्रतिशत के मुकाबले घटकर 17.5 प्रतिशत पर आ गई है। इसी रिपोर्ट में यह बात भी खुलकर सामने आयी है कि अंडर वेट अर्थात कम वजन के बच्चों का प्रतिशत भी 43.5 प्रतिशत से घटकर 40 प्रतिशत पर आ गया है। रिपोर्ट ‘इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीड्युट दि एनजीओ हेल्थ हंगर लाईव और कंसर्न वर्ल्ड वाईट’ ने मिलकर तैयार की है।
हमारे देश में बाल श्रम और कुपोषण से निजात पाने देश की सरकारों ने बड़े बड़े सपने योजनाओं के माध्यम से दिखाये है, किंतु उन योजनाओं की क्रियान्वयन किन अंशों में हुआ है अथवा हो रहा है, उस पर चिंता की लकीरें किसी के माथे पर दिखाई नहीं पड़ रही है। ऐसी ही एक चिंता 12वीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान 27 मई और 8 जुलाई 2011 के मध्य हुई बैठकों में व्यक्त की गई और बिंदुवार सुझाव तैयार किये गये। उन सुझावों के मुख्य बिंदु पर ध्यान आकृष्ट किया जाना नितांत जरूरी है।
1. बाल श्रम निषेध एवं नियामक कानून सशक्त किया जाना।
2. पलायन करने वाले परिवारों के कामगार बच्चों की समस्याएं दूर की जानी चाहिये।
3. प्रत्येक महानगर, बड़े शहर और जिले में आवासीय विद्यालय खोले जाने चाहिये।
4. राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एनसीएलपी) स्कीम को व्यापक भू भाग में विस्तार दिया जाना चाहिये।
5. एनसीएलपी योजना का रूख शिक्षा के अधिकार कानून के अनुरूप बदला जाना चाहिये।
भारत वर्ष में बच्चों के समुचित विकास के लिये केंद्र व राज्य सरकारें कई तरह की योजना चला रहा है। जिनमें मध्याह्न भोजन योजना, किशोर न्याय अधिनियम 2000, सुरक्षा और देखभाल की जरूरत वाले श्रमिक बच्चों के लिये कल्याण योजना, बघेर बच्चों के लिये एकीकृत कार्यक्रम, बालिका समृद्धि योजना, किशोरी शक्ति योजना, किशोरियों के लिये पोषण कार्यक्रम, शिशु पोषण योजना, राजीव गांधी राष्ट्रीय कैच स्कीम, चाईल्ड लाईन सर्विस, एकीकृत बाल विकास योजना, राष्ट्रीय बाल नीति, बच्चों की राष्ट्रीय कार्यान्वयन योजना एवं उदिषा प्रमुख है। इनमें राजीव गांधी कैच स्कीम कामकाजी महिलाओं के बच्चों को सुरक्षा और पोषण देने के लिये शुरू की गई है। इसमें 0 से 6 वर्ष तक उन बच्चों के लिये सरकार की तरफ से मुफ्त सुविधाएं दी जाती है, जिनके अभिभावकों की कुल मासिक आय 12 हजार रूपये से कम होती है।
सवाल यह उठता है कि सुझावों पर हमारी संसद और विधानसभाएं कब तक अमल करेगी, और कब हमारे नौनिहाल अपने दुर्दिनों से उबर पायेंगे। छग प्रदेश सरकार ने महिला एवं बाल विकास विभाग के अंतर्गत बच्चों की देखरेख एवं पोषण आहार की उत्तमता के लिये पूरक पोषण आहार योजना को पुष्टता प्रदान करने 459 करोड़ का प्रावधान अपने 2013-14 के बजट में किया है। इसके साथ ही 6 माह से 3 वर्ष के कुपोषित बच्चों की देखभाल, उन्हें संतुलित गर्म पका आहार देने के लिये राज्य पोषित फुलवारी केंद्र संचालित करने का निर्णय लेते हुये उसे कार्य रूप प्रदान करने 10 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है। यद्यपि बाल अधिकार संरक्षण की दिशा में सरकार द्वारा काफी प्रयास किये गये है, किंतु अभी भी वह पूर्णता की स्थिति में नहीं पहुंच पाया है। बाल अधिकारों के संरक्षण के लिये कानून तो बहुत बनाये गये, किंतु उन्हें लागू करने में दृंढ इच्छा शक्ति की कमी स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रही है।
प्रस्तुतकर्ता
(डा. सूर्यकांत मिश्रा)
जूनी हटरी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
COMMENTS