गेब्रिएल गर्सिया मारकेस पत्ती का तूफान (अनुवाद इंद्रमणि उपाध्याय) मैंने पहली बार किसी शव को देखा था । वह बुधवार था लेकिन मुझे वह इतवार जैसा...
गेब्रिएल गर्सिया मारकेस
पत्ती का तूफान
(अनुवाद इंद्रमणि उपाध्याय)
मैंने पहली बार किसी शव को देखा था। वह बुधवार था लेकिन मुझे वह इतवार जैसा लग रहा था क्योंकि मैं स्कूल नहीं गया था और उन्होंने मुझे हरे कॉर्टराइज़ का सूट पहनाया था, जो कुछ स्थानों पर कसा हुआ था। अम्मा का हाथ पकड़े, अपने दद्दू के पीछे चल रहा था, जो एक बेंत के सहारे चल रहे थे ताकि वे किसी वस्तु से टकराएँ नहीं ;उन्हें अँधेरे में ठीक से दिखाई नहीं देता, साथ ही वे लंगड़ाते हैं, बैठकखाने में रखे आईने के सामने पहुँच उसमें खुद को देखा, हरे कपड़ों में सफेद कलफदार कालर था, जो मेरी गर्दन के एक ओर काट रहा था। मैंने अपने आपको चितकबरे गोल आईने में देखा और सोचा : यह मैं हूँ, जैसे आज इतवार हो।
हम उस मकान में पहुँचे जहाँ मृत व्यक्ति था।
बंद कमरे में गर्मी आपको साँस भी लेने नहीं देती। तुम केवल सड़कों पर जलते सूरज की चिनचिनाहट को सुन सकते हो, बस। हवा जमी है कांक्रीट की तरह, तुम्हें लगता है कि वह स्टील की तरह मुड़ी-तुड़ी है। उस कमरे में जहाँ शव को रखा गया है, वहाँ पेटियों की गंध है, लेकिन मैं कुछ देख नहीं पा रहा। कोने में रिंग से लटका एक झूला है। कूड़े की गंध वहाँ फैली है। मुझे लगता है कि यहाँ-वहाँ रखा सामान, टूटा-फूटा है और गिरने बिखरने को है, सब मिलकर गंदगी की बू को बढ़ा रहे हैं, हालाँकि वह बू और कुछ की है।
मैं सदैव सोचा करता था कि मृतकों को हैट पहिनाए रखा जाता है। अब मैं देख रहा था कि ऐसा होता नहीं है। मैं देख रहा था कि मोम से बना सिर जिसके जबड़े पर रूमाल बांध दिया गया था। मैं देख रहा था कि मुँह कुछ खुला था और लाल ओंठों के भीतर बदरंग टूटे दाँत थे। मैं देख रहा था कि उनकी जीभ एक ओर से कटी थी, वह मोटी और गीली थी तथा उसका रंग चेहरे के रंग से गाढ़ा था, ठीक वैसा जैसा बेंत को पकड़े उंगलियों का हो जाता है। मैं देख रहा था कि उनकी आँखें साधारण आदमी से कुछ ज्य़ादा ही खुली थीं, उनमें उत्सुकता थी और बहशीपन था, और उनकी चमड़ी गीली किन्तु जमी धरती की तरह थी। मैं सोचा करता था कि मृतक को शांत और गहरी नींद में होना चाहिए लेकिन मैं इसके ठीक विपरीत देख रहा था। मैं उसे जाग्रत और लड़ाई के बाद के क्रोध से भरा देख रहा था।
अम्मा भी रविवार को पहने जाने वाले कपड़ों में थीं। उसने पुराना चटाई से बना हैट पहिना था जो उसके कानों तक को ढक लेता है और वे एक बंद गले की काली पोशाक पहिने थी जिसकी बाँहें कलाइयों तक ढँकी थीं। चूँकि आज बुधवार है वह मुझे बहुत दूर-दूर-सी लग रही है जैसे अपरिचित हों और पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि वह मुझे कुछ बतलाना चाहती हैं जब मेरे दादा उन व्यक्तियों के स्वागत में उठे जो ताबूत लेकर आए थे। अम्मा मेरे साथ में दरवाज़े की ओर पीठ किए बैठी हैं। वे ज़ोर-ज़ोर से साँसें ले रही हैं, और हैट से बार-बार बाहर निकल रहे इक्का-दुक्का बालों की लटों को बार-बार संभाल रही हैं, क्योंकि उसने हैट हड़बड़ी में पहना था। मेरे दादा ने उन व्यक्तियों को ताबूत पलंग के पास रखने को कहा है। तभी जाकर मुझे पक्का भरोसा हुआ कि वह मृतक की साइज का ही है। जब वे पेटी लाए थे तब मुझे ऐसा लगा था जैसे वह उस देह के लिए बहुत छोटा है, जो पलंग की पूरी लंबाई तक लेटी है। मुझे नहीं मालूम वे लोग मुझे अपने साथ भला लाए क्यों हैं? मैं इस मकान में इससे पहले कभी नहीं आया हूँ बल्कि मैं तो यही सोचता था कि इसमें कोई नहीं रहता। वह कोने में बना बड़ा-सा मकान है और मुझे नहीं लगता दरवाज़े कभी खोले भी गए थे। मैं हमेशा यही सोचता था कि इसमें कोई नहीं रहता। अभी-अभी जब अम्मा से 'आज तुम स्कूल नहीं जाओगे', सुनकर मुझे कोई विशेष प्रसन्नता नहीं हुई थी क्योंकि उसने यह वाक्य गंभीर और कड़ाई से कहा था, और मैंने उसे मेरे कॉर्टराइज सूट के साथ पास आते देखा और बिना एक शब्द बोले उसने मुझे यह पहना दिया और फिर हम दरवाजे़ पर दादा के पास पहुँचे। हम तीनों ने उन तीन मकानों को पार किया जो इस मकान को हमसे अलग करते हैं, वो तो अभी-अभी मुझे यह अहसास हुआ कि इस मकान में कोई रहता भी है। कोई मर गया है और इसी के बारे में अम्मा मुझे बतला रही थीं जब उसने कहा था, 'डाक्टर की अंत्येष्टि में तुम्हें उचित व्यवहार करना है।'
जब हम कमरे में गए थे तब मुझे मृतक दिखलाई नहीं दिया था। मैंने अपने दादा को दरवाजे़ पर खड़े आदमियों से बातें करता देखा और तभी मैंने उन्हें भीतर जाने को कहा। मैंने सोचा कि कमरे में कोई है, किन्तु जब हम भीतर गए तो मुझे लगा कि यहाँ अंधेरा है और यहाँ कोई नहीं है। पहिले मिनट से ही मेरे चेहरे पर गर्मी अपना असर दिखाने लगी थी और वहाँ की गंदी स्थाई बू गर्म हवा के हल्के झोंकों के साथ लगातार आ जा रही है। अंधेरे में ही अम्मा मेरा हाथ पकड़कर ले गई थीं और कोने में अपने पास बैठा लिया था। कुछ ही क्षणों के बाद मुझे साफ-साफ दिखलाई देने लगा था। मैंने अपने दादा को खिड़की खोलते देखा जो फ्रेम में जाम हो गई थी और मैंने उन्हें अपनी छड़ी से साँकल को मारते देखा, हर वार के बाद धूल उनके कोट पर बैठती जा रही थी। मैंने उस ओर सिर घुमाया जहाँ मेरे दादा थे जो कह रहे थे कि खिड़की खोलना उनके वश में नहीं है, तभी मैंने पलंग पर किसी को देखा। वहाँ एक आदमी स्थिर लेटा था। मैंने तत्काल सिर अम्मा की ओर घुमाया जो शाँत, बिना हिले, कमरे में और कहीं देख रही थी। चूँकि मेरे पैर फर्श को छू नहीं रहे थे और वे आधे फुट पर हवा में लटके थे, मैंने अपने हाथ जाँघ के नीचे कुर्सी पर रख अपने दोनों पैर बिना कुछ सोचे तब तक हिलाता रहा जब तक मुझे स्मरण नहीं आया कि अम्मा ने मुझसे कहा था, तुम्हें डाक्टर की अंत्येष्टि में सही ढंग से रहना है। तभी मुझे अपने पीछे कुछ ठंडक-सी महसूस हुई। मैंने मुड़कर देखा कि वहाँ केवल सूखी-दबी लकड़ी की दीवार थी। लेकिन मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने दीवाल में से कहा- अपने पैर मत हिलाओ। पलंग पर लेटा आदमी डाक्टर है और वह मर चुका है। और जब मैंने पलंग को देखा तो वहाँ वह वैसी स्थिति में नहीं था, जैसा मैंने पहिले देखा था। मैंने उसे लेटे हुए नहीं वरन मृत देखा।
उस क्षण से, मैंने भरसक कोशिश की कि मैं उसे न देखूँ, लेकिन मुझे लगा जैसे कोई मेरे चेहरे को उसी दिशा में रखने को बाध्य कर रहा हो। भले ही मैं कमरे के दूसरे हिस्से को देखने का सायास प्रयास करूँ मुझे उसका मृत हड़ियल चेहरा, बाहर भागती बड़ी-बड़ी आँखों के साथ ही परछाई-सा दिखता रहा।
मुझे पता नहीं कोई भी अभी तक क्यों नहीं आया है। जो वहाँ आए थे वे केवल हम लोग ही थे, मेरे दादा, अम्मा और चार गुअजिरो मूल इंडियंस जो मेरे दादा के यहाँ नौकरी करते हैं। वे एक बोरी चूना लाए और उसे उन्होंने ताबूत में डाल दिया। यदि अम्मा पास बैठी होने के बावजूद दूर होने का आभास न दे रही होती तो मैंने चूना डालने का कारण उससे पूछा होता। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि ताबूत में चूना बिछाने की आवश्यकता भला क्या थी? जब बोरा खाली हो गया तो उन्होंने उसे वहीं ताबूत में फटकारा जिससे बोरे में पड़ी चूने की धूल गिरी, वह चूने से ज्य़ादा लकड़ी के बुरादे जैसी थी। उन्होंने मृतक को कंधों और पैरों को पकड़ कर उठाया। वह सस्ता-सा पैंट पहिने था जो कमर में चौड़े काले रंग की रस्सी से बँधा था और उसके बदन पर ग्रे रंग की कमीज़ थी। उसके केवल बाएँ पैर में जूता था। जैसे एडा कहती है उसका एक पैर राजा का है और दूसरा गुलाम का। दाएँ पैर का जूता पलंग में एक ओर रखा था। बिस्तर पर लेटा मृतक ऐसा लगता था जैसे वह कुछ परेशानी में है। ताबूत में वह ज्य़ादा आराम और शांति से था। और उसका चेहरा जो पहिले जीवित तथा लड़ाई के बाद की उत्तेजना से भरा था, अब उस पर सुरक्षित और आराम करने वाले के भाव थे। उसका प्रोफाइल अब सौम्य है जैसे बाक्स में लेटते ही उसे अनुभव हुआ है कि मृत होने के बाद अब मैं सही जगह पर हूँ।
मेरे दादा कमरे में इधर-उधर घूम रहे थे। उन्होंने कुछ चीजें उठाईं और उन्हें बाक्स में रख दिया। मैंने अम्मा को इस उम्मीद से देखा कि वे संभवतः बतलावेगी कि दादा ताबूत में चीजें क्यों रख रहे हैं। लेकिन मेरी अम्मा बिना हिले-डुले अपनी काली ड्रेस में बैठी थी और सायास मृतक को न देखने की कोशिश कर रही थीं। मैं भी इसी कोशिश में था लेकिन मेरे वश में यह था ही नहीं। मैं उसे घूरे जा रहा था। मैं उसकी जाँच कर रहा था। मेरे दादा ने ताबूत में एक किताब फेंक कर अपने आदमियों की ओर इशारा किया और उनमें से तीन ने ताबूत का ढक्कन लगा दिया और तब जाकर मैं उन हाथों से मुक्त हुआ जो मेरे सिर को उसी दिशा में रखे थे और अब मैं कमरे को देखने के काबिल हो गया।
मैंने अम्मा को एक बार फिर देखा। और पहली बार जब से हम इस मकान में आए थे, उसने मुझे देखा और हल्के से मुस्कराई हालाँकि वह दूर से खींच कर लाई मुस्कान थी, जिसमें भीतर का कोई भाव न था, और दूर से मैंने ट्रेन की उस आखि़री मोड़ से सीटी सुनी जहाँ से वह ग़ायब हो जाती है। जिस कोने में ताबूत रखा है वहाँ से मुझे कुछ आवाज़ सुनाई दी। मैंने एक आदमी को ताबूत केढक्कन को एक कोने से उठाते देखा और मेरे दादा ने मृतक का वह जूता उसमें डाल दिया, जिसे वे बिस्तर पर भूल गए थे। ट्रेन की सीटी मुझे दूर से आती सुनाई पड़ी और यकायक मुझे लगा ढाई बज गया है। मुझे याद आया कि यही समय है ;जब ट्रेन शहर के आखि़री मोड़ पर रहती है जब स्कूल में लड़के दोपहर बाद की क्लास के लिए लाइन लगाते हैं।
प्त्प्त्
अब्राहम, मैंने सोचा।
मुझे बच्चे को लाना ही नहीं चाहिए था। ये सारा तमाशा उसके हित में नहीं है। यहाँ तक कि मेरे लिए भी, अब तीसेक बरस की भी तो होने वाली हूँ, शव के साथ जुड़ा ये सब अच्छा नहीं है। अब हमें यहाँ से विदा हो जाना चाहिए। हमें पापा को बोल देना चाहिए कि ऐसे कमरे में जहाँ एक ऐसे आदमी की मृत देह रखी है, जो पूरी तरह से बाहरी दुनिया से कटा रहा था, भला ऐसे आदमी के प्रति आभार या संवेदना प्रकट करने का अर्थ ही क्या है। मेरे पिता अकेले हैं जिन्होंने इस व्यक्ति के प्रति किसी भी प्रकार के सद्भाव का प्रदर्शन किया है। अवर्णनीय भावना जिसके फलस्वरूप वह इस चार दीवारों में सड़ने-गलने से बच गया।
मुझे तो चिंता हो रही है, यह सब कुछ बेहूदगी से भरा है। मैंतो यही सोच कर परेशान हूँ कि जब हम ताबूत के पीछे बाहर सड़क पर निकलेंगे तो देखने वालों के मन में केवल प्रसन्नता छोड़ और कोई भाव ही नहीं उपजेगा। खिड़कियों से झाँकती मैं उन औरतों के चेहरे के भावों की कल्पना कर सकती हूँ, जो मेरे पिता को, बच्चे के साथ मुझे उस व्यक्ति के ताबूत के पीछे चलते देख आयेंगे जिसे सारा शहर बहुत पहले से मृत समझता रहा है, जिसके मरने पर पूरा शहर खुलकर प्रसन्नता व्यक्त कर रहा है उसके शव को कब्रगाह तक मात्र तीन व्यक्ति दया और उदारता के कारण पीछे चल रहे हैं, जो उसका अपना प्रतिशोध है। पापा के इस निर्णय का यह परिणाम भी हो सकता है कि कल को हममें से किसी के मरने पर एक भी व्यक्ति अंत्येष्टि में सम्मिलित न हो।
शायद, इसीलिए मैं अपने बेटे को साथ लाई हूँ, जब पापा ने कुछ देर पहले मुझसे कहा, 'तुम्हें मेरे साथ चलना होगा।' तो पहला विचार मेरे मन में बच्चे को साथ ले चलने का ही आया था ताकि मैं सुरक्षित अनुभव कर सकूँ। सितम्बर की दमघोंटू दोपहर में मुझे ऐसा अहसास हो रहा है कि यहाँ की हर वस्तु हमारे दुश्मनों के प्रतिनिधि स्वरूप उपस्थित है। पापा को चिंता करने की कोई आवश्यकतानहीं है। सच यही है कि उन्होंने अपने पूरे जीवन भर शहर को चुभलाने के लिये हमेशा इसी तरह के पत्थर दिए, परंपराओं की परवाह न करते हुए सामान्य से वायदों को हमेशा निबाहा। पच्चीस साल पहले जब यह व्यक्ति हमारे घर आया था, पापा ने अवश्य ही कल्पना कर ली होगी ;जब उन्होंने अतिथि के विचित्र व्यवहार को देखा होगाद्ध कि आज शहर में ऐसा एक भी आदमी नहीं होगा जो उसकी देह को गिद्धों के लिए भी डालने को तैयार नहीं होगा। सम्मवतः पापा को उन समस्त बाधाओं और परेशानियों का आभास पहले से ही हो गया था। और अब पच्चीस वर्षों बाद अवश्य ही यह अनुभव कर रहे होंगे कि उन्होंने इस विषय में पूर्व में ही सोच रखा था कि उन्हें यह सब किसी भी सूरत में करना ही होगा यानी माकोन्डो की सड़क पर ताबूत के पीछे अकेले ही चलना होगा।
जब वह क्षण आया तो उनमें उस असह्य वायदे को पूरा करने का साहस न था इसीलिए उन्होंने मुझे उस वायदे का सहभागी बनाया, जिसे उन्होंने बहुत पहले किया था जब मुझमें तर्क करने की क्षमता ही न थी। जब उन्होंने मुझसे कहा, ''तुम्हें मेरे साथ चलना होगा'', उन्होंने उन शब्दों को बहुत दूर तक जाने का मुझे समय नहींदिया, कितनी शर्म और कितनी घृणा मुझे इस आदमी को जमींदोज करने में झेलनी होगी, जिसे पूरा शहर उसी की गुफा में धूल में मिलते देखने का इच्छुक है, यह समझने का उन्होंने मुझे अवसर ही नहीं दिया। क्योंकि लोगों ने न केवल इसकी उम्मीद ही की थी, बल्कि उनकी मानसिक तैयारी उनकी आशाओं के अनुसार की थी, जिसे दिल की गहराइयों से बिना पश्चाताप के साथ ही नहीं अनुभव करते थे वरन एक प्रकार के अपेक्षित संतोष के साथ अनुभव करते थे, जैसा सामान्यतः हम तब करते हैं जब हम किसी वस्तु को सड़ाते हैं और उसकी गंध शहर में फैलती रहती है और उसके विषय में ना तो कोई मन में खय़ाल लाता है, न चर्चा ही करता है, न विचार ही करता है, लेकिन यहाँ तो लोग चाहते थे कि वह समय कब आयेगा और बदबू से लोगों को एक प्रकार की तुष्टि का भी अनुभव होगा।
अब हम माकोन्डो को उसके दीर्घ प्रतीक्षित प्रसन्नता से वंचित करने वाले हैं। मुझे लगा कि हमारे इस निर्णय से लोगों के मन में कुंठा निराशा के स्थान पर कार्यक्रम के मात्र स्थगित हो जाने का विचार ही आया होगा।
जो षडयंत्र दस वर्ष पूर्व डाक्टर के विरुद्ध रचा गया था अब संभवतः हम उसके केन्द्रमें होंगे, शायद यह भी एक कारण होता बच्चे को घर पर छोड़ आने के लिए। कम से कम बच्चे को तो इस सबसे दूर ही रखना उचित होता। उसे तो यह भी पता नहीं कि वह यहाँ क्यों है और हम उसे इस कबाड़ से भरे कमरे में आखिर लाए क्यों हैं? वह बिना कुछ बोले चुपचाप कुर्सी पर जांघों के नीचे हाथ रखे पैर हिलाता इस उम्मीद में बैठा है कि कोई न कोई इस डरावनी पहेली का हल उसे समझाएगा। मैं पूरी तरह निश्चिंत हो जाना चाहती हूँ कि कोई भी उसकी आयु के प्रतिकूल इन अदृश्य दरवाज़ों को न खोले।
उसने मुझे इस बीच कई बार कुछ ऐसी नज़रों से देखा है जैसे कोई अपरिचित हूँ। इस कसी ड्रेस और पुराने से हैट में वह मुझे अजनबी पा रहा है, और यही मैं चाहती भी हूँ कि मेरे निकट के लोग भी मुझे न पहचानें, इसीलिए तो मैंने इन्हें पहना है।
यदि मेमी जीवित होती और वह भी इसी घर में तो स्थिति कुछ अलग ही होती। तब वे सभी यही सोचते कि मैं उसके कारण आई हूँ। जो संभवतः उसे महसूस नहीं हो रहा है, लेकिन कुशलता से उसका अभिनय मात्र कर रही है, और शहर ने इसे अच्छी तरह समझ लिया होता। ग्यारह साल पहले मेमी गुम हुई थी।डाक्टर की मृत्यु से उसके बारे में जानने की जो भी उम्मीदें थीं, हमेशा के लिए समाप्त हो गईं। यहाँ तक कि उसकी हड्डियाँ कहाँ दफन हैं, यह उम्मीद भी जाती रही। मेमी यहाँ नहीं है, लेकिन यदि वह यहाँ होती, तो जो कुछ यहाँ घटा था और जो कभी स्पष्ट नहीं हुआ था, उसने शहरवासियों का पक्ष उस आदमी के विरुद्ध लिया होता जिसने सालों तक उसके बिस्तर को गधे की तरह प्यार और शराफत से गर्म रखा था।
आखि़ारी मोड़ पर जाती ट्रेन की सीटी मैं सुन रही हूँ। मेरे खय़ाल से इस समय ढाई बजे होंगे और मैं इस बात से परेशान हूँ कि इस पल पूरा माकाण्डो के दिमाग में बस एक ही बात होगी कि हम लोग भला यहाँ क्या करने आए हैं। छड़ी की तरह दुबली-पतली सिन्योरा रिबेका जो अपनी ड्रेस और चेहरे से पारिवारिक भूत-सी दिखती है, अपनी खिड़की के पर्दों के पीछे पंखे की हवा खाती बैठी होगी। जैसे ही उसने ट्रेन को आखि़ारी मोड़ में सीटी के साथ गुमते देखा होगा, सिन्योरा रिबेका ने अपना सिर गर्मी से घबराकर पंखे की ओर झुकाया होगा, उसके दिल में पंखे तेज़ी से ;विपरीत दिशा मेंद्ध घूम रहे होंगे और वह फुसफुसाकर 'ज़रूर इस सब में शैतान का हाथहै', कह घबराकर उसके शरीर में झुरझुरी आई होगी, और उसने अपनी जिं़दगी की बची-खुची जड़ों को अपनी घरू जिंदगी में ज़ोर से पकड़ा होगा।
और लंगड़ी अगूडा ने, स्टेशन से अपने दोस्त को छोड़कर लौटती सालिटा को वीरान सड़क पर छाता खोलते उसकी मदमादी चाल को देख अपनी पुराने जवानी के दिनों को जो अब धार्मिक बीमारी में बदल गई है, डूबकर कहा होगा 'सूअर बाड़े में गुमे सूअर की तरह तुम्हारा बिस्तर तुम्हें निगल लेगा।'
इस विचार से मैं मुक्त नहीं हो सकती। ढाई बजा है, मुझे यह भूलना ही होगा जब धूल और गर्द के गर्म बादलों के साथ गधी डाक लेकर निकली होगी और उनके पीछे बुधवार की दोपहर में नींद के झोंके लेते लोगों की नींद अख़ाबारों के बंडल उठाने के लिए टूटी होगी। पूजाघर में ऊँघते फादर ऐंजिल जो अपने तेलिहा पेट पर अधखुली धार्मिक किताब रख उन्होंने गधी को जाते सुनते हुए, नींद बरबाद करती मक्खियों को डकार निकालते हुए कहा होगा, 'तुम ज़हर भरे अन्न कणों से मुझे ज़हर दे रही हो नालायक!'
पापा बेहद कठोर हैं इस बारे में। अब देखो न, उन्होंने बिस्तर पर पड़े एक जूते को रखने के लिए ताबूतको खोलने को कहा। ये अकेले ही हैं जो इस आदमी की नीचता में भी रुचि लेते हैं। जब हम लोग ताबूत के पीछे-पीछे निकलेंगे तो पूरा शहर वहाँ जमाने भर का मैला कूड़ा-कचरा लिए हम पर बरसाने को तैयार देख मुझे कतई आश्चर्य नहीं होगा। आखिर हम शहर की इच्छा के विरुद्ध जो जा रहे हैं। यह भी हो सकता है, पापा के कारण यह ना भी करें लेकिन इसकी भी तो पूरी संभावना है कि वे यह करें क्योंकि इतने सालों से पूरा शहर चाहे आदमी रहा हो या औरत इस मकान के पास से निकलते हुए इसी विचार के साथ गुजरा है, कि 'ये जो दुर्गन्ध है, आज, नहीं तो कल कभी न कभी हम इसका भोजन करके रहेंगे', क्योंकि यही वाक्य पहले से लेकर अंतिम आदमी ने कहा है।
कुछ ही देर में तीन बजने वाले हैं। सेनोरिटा को तो पहले से ही पता है। सिन्योरा रिबेका ने अपनी खिड़की के पर्दे के पीछे से उसे जाते हुए देखा होगा और अपने पंखे के घेरे से एक पल को बाहर निकल उसने कहा होगा, 'सेनोरिटा, तुम्हें पता है न उस शैतान के बारे में', और कल, मेरा बेटा, जो स्कूल जाता है लेकिन कोई दूसरा ही बच्चा जो बड़ा होगा, बच्चे पैदा करेगा और अंत में मरेगा और कोईभी उसके मरने पर ईसाईयत के अनुसार दफन करने को तैयार नहीं होगा।
संभवतः मैं भी अपने घर में इस समय आराम से होती यदि पच्चीस साल पहले यह आदमी मेरे पिता के घर में सिफारिशी चिट्ठी लेकर आया था। ;वह कहाँ से आया था, यह कोई नहीं जानता।द्ध घास खाता और औरतों को कुत्तों की कामुकता से भरी बड़ी आँखों के साथ घूरता, यदि वह हमारे साथ नहीं रहा होता। लेकिन सच तो यह है कि मुझे दी जाने वाली सज़ा मेरे जन्म के पूर्व ही निश्चित हो चुकी थीङ्क वह दबी-छुपी रही थी उस अधि वर्ष तक जब मैं तीस वर्षों की हुई और मेरे पापा ने मुझसे कहा, 'तुम्हें मेरे साथ चलना होगा।' और इसके पूर्व कि मैं उनसे कुछ पूछूँ, उन्होंने बेंत से फर्श को ठोंकते हुए कहा, बिटिया, हमें जैसे भी हो इसका सामना करना ही होगा। आज सुबह-सुबह डाक्टर ने फाँसी लगा ली है।'
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आदमी बाहर गए और कुछ ही देर बाद वे कमरे में कीलें और हथौड़ी लेकर लौटे। लेकिन उन्होंने ताबूत पर कीलें नहीं ठोंकी। उन्होंने सारी चीजें़ टेबिल पर रख दीं और वे उस पलंग पर बैठ गए जहाँ मृतक लेटा था। मेरे दादा शांत दिखते हैं लेकिन उनकी यह शांतिअपूर्ण और अधीरता से भरी है। वह ताबूत में लेटे शव जैसी शांति न थी, यह एक अस्थिर चित्त व्यक्ति की शांति थी जो अपने मन में चल रही उथल-पुथल को छिपाने के प्रयास में चुप था। वह कुछ कर गुजरने को उत्सुक व्यक्ति की शांति थी, मेरे दादू के पास ऐसी ही शांति थी, वे कमरे में इधर-उधर लंगड़ाते हुए टहल भी रहे थे और यहाँ-वहाँ पड़ी वस्तुओं को उठा भी रहे थे।
जब मुझे यह पता चला कि कमरे में मक्खियाँ हैं तो मैं यह सोच-सोच कर परेशान होने लगा कि ताबूत ढेरों मक्खियों से भरा है। उन्होंने अभी तक ताबूत के ढक्कन पर कीलें नहीं ठोंकी थीं और वह भनभनाहट जिसे मैं पड़ोस में चलते पंखे की आवाज़ समझ रहा था, वह वास्तव में ताबूत और मृतक से अंधों की तरह मक्खियों के टकराने से निकल रही थी। मैं सिर हिलाता हूँ, आँखें बार-बार बंद करता हूँ, मैं अपने दादू को एक ट्रंक खोल उसमें से कुछ निकालते देखता हूँ। वह क्या है, मैं नहीं बतला सकता बिस्तर पर जलते तीन अंगार तो मैं देख सकता हूँ लेकिन जलती सिगार लिए चारों व्यक्तियों को नहीं। दमघोंटू गर्मी में एक मिनिट भी गुजारना मुश्किल हो रहा है। मक्खियों कीभनभनाहट में मुझे लगता है जैसे कोई मुझसे कह रहा हैः यही स्थिति तुम्हारी भी होने वाली है। तुम मक्खियों से भरे ताबूत में होगे। तुम अभी ग्यारह साल के भी नहीं हुए हो लेकिन एक दिन तुम भी इसी तरह होगे, बंद डिब्बे में मक्खियों के साथ। और फिर मैंने अपने पैर दोनों ओर पूरी लम्बाई में ताने और अपने चमकते हुए काले जूतों को देखा। मेरे जूते का एक बंद खुल गया है, ऐसा मुझे लगता है, मैं अम्मा को फिर देखता हूँ। वह मेरी ओर देखती है और झुककर मेरे जूते के फीते को बाँध देती है।
मम्मा के सिर के ऊपर से जो भाप उठ रही है गर्म और कबर्ड की गंध भरी, सोई हुई लकड़ी की गंध मुझे बंद ताबूत की याद दिलाती है। श्वास लेना भी मेरे लिए दुश्वार हो रहा है, मैं यहाँ से बाहर जाना चाहता हूँ, मैं जलती-तपती सड़क की गर्म हवा फेफड़े में भरना चाहता हूँ, अतः मैंने अपने अंतिम रास्ते का उपयोग किया। जैसे ही मम्मा लेस बाँध कर उठी मैंने धीरे से उससे कहा, 'मम्मा?' वह मुस्कराती हुई कहती है 'ऊँऽऽऽ'। मैं उसकी तरफ और झुका उसके कच्चे और चमकदार चेहरे के पास काँपते हुए बोला, 'मैं बाहर जाना चाहता हूँ।'
मम्मा दादा कोआवाज़ देती है और उनसे कुछ कहती है। मैं उसकी छोटी-छोटी भावहीन आँखों को चश्मे के भीतर देखता हूँ, जब वे मेरे पास आ कहते हैं, 'इस समय तो बाहर जाना असंभव है।' मैं पैरों को तानता हूँ और अपनी असफलता की उपेक्षा करते हुए शांत हो जाता हूँ। अब वहाँ सब-कुछ बेहद धीमी गति से घट रहा है। फिर अचानक तेज़ी से कुछ हिलता है, एक बार और...और फिर एक बार। और तब मम्मा मेरे कंधों पर एक बार फिर झुकती है यह कहते हुए, 'क्या वह निकल गई?' उसकी आवाज़ कठोर और गंभीर है जैसे वह प्रश्न न हो वरन् डाँट हो। मेरा पेट फूला है और कड़ा है लेकिन मम्मा के प्रश्न से वह हल्का हो जाता है। पूरी तरह खाली और आराम से सब कुछ निकल जाता है, यहाँ तक कि उसकी पूरी गंभीरता आक्रामक और चैलेंज से भरी हो जाती है। 'नहीं', मैं उससे कहता हूँ 'वह अभी तक तो नहीं निकली है।' मैं अपने पेट को सिकोड़ता हूँ और पैरों से फर्श पर पटकने की कोशिश करता हूँ। ;एक और आसराद्ध लेकिन नीचे शून्य पाता हूँ जो मेरे पैरों और फर्श के बीच था।
कमरे में कोई आता है। मेरे दादा का नौकर, उसके पीछे एक पुलिस का सिपाही और उसके बाद हरे रंगके डेनिम पैंट पहिने एक आदमी। उसकी कमर में बेल्ट से बँधी रिवाल्वर है और वह हाथों में मुड़ा हुआ बड़ा-सा हैट लिए है। मेरे दादा उसके स्वागत में आगे बढ़ते हैं। हरे पैन्ट वाला व्यक्ति अंधेरे में खाँसता है, मेरे दादा से कुछ कहता है, फिर खाँसता है और खाँसते हुए ही सिपाही से खिड़की खोलने को कहता है।
लकड़ी से बनी दीवारें चिकनी हैं। ऐसा लगता है जैसे उन्हें ठंडी राख से दबा-दबाकर बनाया गया है। जब पुलिस का सिपाही अपनी राइफल के हत्थे से साँकल को मारता है तो मुझे लगता है खिड़कियाँ खुलने वाली हैं नहीं। मकान गिरेगा, दीवालें ढह जायेंगी बेआवाज़ जैसे राख से बना राजमहल तेज़ हवा में ढहता है। दूसरे वार के बाद ही मुझे लगता है हम सड़क पर सूरज की रोशनी में बैठे होंगे, हमारे सिर गर्द और कचरे से भरे होंगे। लेकिन दूसरे वार से पल्ले खुल जाते हैं और कमरे में रोशनी भर जाती है। वह इतनी तेजी से आती है जैसे बिगड़ैल जानवर के लिए, जो कूदता-फाँदता-सूँघता है ज़ोर-ज़ोर से आवाजें़ करता दीवालों से टकराता है और फिर थककर पिंजड़े के ठंडे कोने में जाकर आराम से बैठ जाता है।
खिड़की खुल जाने से चीजेंस्पष्ट दिखने लगती है। और वे विचित्र-सी वायवी आकार से ठोस आकार लेने लगती है। मम्मा एक लम्बी साँस ले मेरे हाथ को पकड़ कहती है, आओ हम खिड़की से अपने घर को देखें। और मैं शहर को फिर से देखता हूँ जैसे मैं कहीं बाहर से लौट कर उसे देख रहा हूँ। मैं अपने घर को देखता हूँ, धुँधला और थका लेकिन बादाम के झाड़ों की ठंडक से भरा। यहाँ से देखते हुए मुझे लगता है जैसे मैं उस हरियाली भरी ठंडक के भीतर कभी गया ही नहीं हूँ जैसे वह हमारा काल्पनिक मकान है जिसका वायदा मेरी मम्मा ने उन रातों में मुझसे किया था, जब मुझे दुःस्वप्न आया करते थे। और तभी मैं पेपी को अपने में खोए हमें बिना देखे वहाँ से जाते देखता हूँ। पड़ोसी घर का लड़का सीटी बजाता, बदला-बदला अपरिचित-सा निकलता है जैसे अभी-अभी बाल कटवाकर आया हो।
तब मेयर खड़ा होता है, उसकी खुली शर्ट पसीने से भरी है और उसके चेहरे पर परेशानी के भाव स्पष्ट हैं। वह मेरे पास आता है, उसका गला स्वयं के तर्कों की उत्तेजना से भरा हुआ है। 'हम यह निश्चित रूप से कह ही नहीं सकते कि वह मर गया है जब तक बदबू न आने लगे', कहते हुए वह शर्ट की बटन लगाकर सिगरेटजलाता है। चेहरे को ताबूत की ओर घुमा कर संभवतः वह 'अब तो वे नहीं कह सकेंगे कि मैं कानून के दायरे में रह काम नहीं करता', सोच रहा है। मैं उसकी आँखों में झाँकता हूँ। मुझे लगता है कि मैंने इतनी दृढ़ता से तो इसे देख ही लिया है कि यह समझ जाये कि मैं उसके मन में उठते विचारों को अच्छी तरह समझता हूँ। मैं उससे कहता हूँ, 'तुम कानून के दायरे के बाहर केवल दूसरों को खुश करने के लिए काम कर रहे हो।' और वह जैसे इसी वाक्य की उम्मीद कर रहा था, उत्तर देता है, 'कर्नल आप एक सम्माननीय व्यक्ति हैं आप अच्छी तरह जानते हैं कि मैं अपने अधिकारों की सीमा में ही हूँ।' मैं उससे कहता हूँ, 'आप दूसरों की अपेक्षा यह अच्छी तरह जानते हैं कि वह मर चुका है।' इस पर वह कहता है, 'सही है, लेकिन यह मत भूलिए कि मैं जनता का सेवक हूँ और कानूनी रूप से मृत्यु प्रमाणपत्र इसके लिए आवश्यक है।' इस पर मैं कहता हूँ, 'यदि आपके पक्ष में कानून है तो उसका लाभ अवश्य ही उठाइए, किसी डाक्टर को बुलाइए जो मृत्यु का प्रमाणपत्र दे सके।' इस पर उसने बिना किसी घमंड के सिर ऊँचा किया और शांति से बिना किसी दुर्बलता अथवा परेशानी से कहा, 'आप एक सम्माननीय व्यक्तिहैं और आप भली भांति जानते हैं कि यह अधिकारों का हनन होगा।' जब मैं उसके इस उत्तर को सुनता हूँ तो समझ जाता हूँ कि उसका दिल और दिमाग शराब के स्थान पर कायरता के वशीभूत है।
मुझे स्पष्ट अनुभव होने लगता है कि मेयर शहर के क्रोध में भागीदार है। यह वह भावना है जिसका जन्म दस वर्षों पूर्व एक तूफानी रात को हुआ था, जब घायल आदमियों को दरवाजे़ पर लाया गया था और चिल्लाकर लोगों ने कहा था ;क्योंकि उसने बिना दरवाज़ा खोले, भीतर से कहा था, डाक्टर कृपाकर इन घायलों की मलहम पट्टी करो क्योंकि यहाँ आसपास ज्य़ादा डाक्टर हैं ही नहीं। और बिना दरवाजा खोले ;क्योंकि दरवाज़ा बंद था और उसके सामने घायल पड़े थे, तुम अकेले डाक्टर यहाँ बचे हो और तुम्हें परोपकार का यह काम तो करना ही होगा। इस पर उसने उत्तर दिया था ;इस पर भी उसने दरवाज़ा खोला नहीं थाद्ध भीड़ की कल्पना थी कि वह अपने कमरे के बीच में खड़ा है, उसके हाथों में लैम्प है जिसकी रोशनी में उसकी पीली आँखें चमक रही थीं, 'मैं सबकुछ भूल चुका हूँ, जो मैं इस बारे में पहिले जानता था। उन्हें और कहीं ले जाओ।' उसने दरवाज़ा बंद ही रखा;उस क्षण से वह दरवाज़ा फिर कभी नहीं खुलाद्ध इधर क्रोध का ज्वार बढ़ रहा था, फैल रहा था एक सामूहिक बीमारी की तरह जिससे उसके जीवन भर, माकोन्डो को कभी चैन नहीं मिला और वह वाक्य प्रत्येक कान में उस रात से चीखता रहाङ्क डाक्टर उन आवाज़ों की गूँज के साथ दीवालों के अंदर हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त होने के लिए बंद हो गया।
दस साल तक ज़हर पड़े होने के डर से उसने कभी शहर का पानी नहीं पिया, अपने बाड़े में उगाई सब्जी से जो उसने और उसकी आदिवासी स्त्री ने बाड़ी में लगाई थी, पेट भरता रहा। और अब जाकर वह समय आया है जब शहर उस दया का प्रतिशोध ले, दस वर्ष जिससे उन्हें वंचित कर दिया गया था और माकोन्डो जो यह जानता है कि वह मर गया है। ;क्योंकि आज सुबह सभी भारहीन नींद से जागे होंगेद्ध, लंबी प्रतीक्षा के बाद उन्हें वह प्रसन्नता प्राप्त होने वाली है, जिसके वे सभी हकदार हैं। उनकी एक मात्र तीव्रतम इच्छा यही थी कि वे अंदर से सड़ने गलने की बू सूँघें, उस बंद दरवाजे़ के अंदर जो उसने उस समय नहीं खोले थे।
अब मुझे पूरा विश्वास हो गया है कि पूरे शहर के आक्रोश के सामने अपने वायदे को पूरा करना मेरे लिए संभवनहीं और मैं सामूहिक घृणा और अधैर्य के बीच में फँस गया हूँ। यहाँ तक कि चर्च ने भी मेरे निश्चय के विरुद्ध राह निकाल ली है। अभी कुछ मिनिट पहले ही फादर ऐंजिल ने मुझसे कहा था, 'मैं उन्हें पवित्र भूमि पर उस व्यक्ति को दफन नहीं करने दूँगा जिसने फाँसी लगाई और जो साठ वर्षों तक बिना ईश्वर के रहा है। मेरे प्रभु तुम्हें भी ड्डपा दृष्टि से देखेंगे यदि तुम उस कर्म को नहीं करोगे जो दया का नहीं वरन धर्म के विरुद्ध एक पाप है।' मैंने उससे कहा था, 'मृत को दफनाना, यह तो लिखा ही है कि एक उदारता का कर्म है।' इस पर फादर ऐंजिल्स ने कहा था, 'बिल्कुल ठीक लेकिन इस मामले में यह कार्य हमारा नहीं, वरन् सफाई अधिकारियों का है।'
मैं आया। मैंने अपने चार गौजीरो नौकरों को बुलाया। मैंने अपनी बेटी इसाबेल को साथ चलने के लिए तैयार किया। इस तरह कम से कम यह काम एक पारिवारिक कर्म हो जाता है, एक मानवीय ड्डत्य, विरोध और व्यक्तिगत नहीं गर मैं उसे शहर की गलियों में घसीटते हुए मरघट तक अकेले ले जाता। मेरा विचार है इस सदी में मैंने जो कुछ यहाँ होते देखा, मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि माकोण्डो कुछ भी करने में समर्थ शहर है।लेकिन यदि वे मेरा सम्मान नहीं करते हैं हालाँकि मैं वृद्ध हूँ, रिपब्लिक कर्नल हूँ और इसके ऊपर लंगड़ा हूँ। तब भी मैं यह आशा तो करता हूँ कि वे कम से कम मेरी बेटी का सम्मान करेंगे आखिर वह एक स्त्री है। यह सब कुछ मैं अपने लिए तो कर नहीं रहा हूँ। शायद मृतक की शांति के लिए भी नहीं। केवल एक पवित्र वचन के रक्षार्थ। यदि मैं इसाबेल को अपने साथ ले आया हूँ तो यह कायरता के कारण नहीं उदारता के कारण लाया हूँ। वह अपने साथ बच्चे को भी ले आई। और मेरे विचार से वह इसी कारण से उसे लेकर आई है। और अब हम यहाँ हैं, तीनों जन, इस कठोर इमरजेंसी के बोझ तले।
हम कुछ ही देर पहले आए हैं। मैंने सोचा था कि हमें देह सीलिंग से लटकी मिलेगी, लेकिन हमारे आदमी पहले ही आ चुके थे, उन्होंने उसे पलंग पर लिटा कर कफन इस विश्वास के साथ डाल दिया था कि सब कुछ घंटे भर में निबट जाएगा। जब मैं आया तो मुझे उम्मीद थी कि वे ताबूत ले आए होंगे। मैंने अपनी बेटी और बच्चे को कोने में बैठे देखा। मैंने कमरे के चारों ओर इस खयाल से देखा कि शायद डाक्टर कुछ छोड़ गया हो जिससे पता चले कि उसने ऐसा क्यों किया। डेस्क खुली पड़ीथी जिसमें काग़ज़ बेतरतीब पड़े थे लेकिन उसके हाथ का लिखा एक भी न था। मैंने डेस्क में वही सूची पाई जो वह पच्चीस वर्ष पहले लाया था जब उसने अपना विशाल ट्रंक खोला था जिसमें मेरे पूरे परिवार के कपड़े आ जाते। लेकिन ट्रंक में दो सस्ती-सी कमीजें, एक नकली दाँतों की बत्तीसी जो उसकी इसलिए नहीं हो सकती थी क्योंकि उसके दाँत मौजूद थे, पूरे के पूरे और मजबूत, एक पोर्टे्रट और नियमावली की सूची। मैंने दराज खोले तो मुझे प्रत्येक में प्रिंटेड काग़ज़ मिले, केवल काग़ज़, पुराने और धूल भरे अंतिम दराज में वही नकली दाँत थे जो वह पच्चीस साल पहले लाया थाङ्क धूल भरे, समय और बिना उपयोग के। इसी कारण पीले। छोटी टेबिल पर बिना जले लैम्प के अतिरिक्त बिना खुले अख़ाबारों के बंडल थे। मैंने उनको ध्यान से देखा। वे फ्रेंच में लिखे थे, सबसे ताज़ा तीन माह पुराना जुलाई 1928 का था। वहाँ और भी थे जिन्हें भी खोला नहीं गया था : जनवरी 1927, नवम्बर 1926 और सबसे पुराना था अक्टूबर 1919। मेरे विचार से नौ वर्ष पहले, सजा सुनाए जाने के एक वर्ष बाद से उसने अख़बारों को खोल कर नहीं देखा था। उसी समय से उसने अपनी मातृभूमि और देशवासियों से जो एक मात्र संबंध शेष बचा नाता पूरी तरह तोड़ लिया था।
आदमी ताबूत ले आए हैं और उन्होंने उसमें शव को रख दिया है। तभी मुझे पच्चीस वर्ष पूर्व का वह दिन याद आया जब वह मेरे घर आया था और मुझे पनामा में लिखा सिफारिशी पत्र दिया जिसे महायुद्ध के बाद अटलांटिक तट के जनरल कर्नल आंरितियानो बुनेदिया ने लिखा था। उस लम्बे-चौड़े अंतहीन गहरे ट्रंक में, अंधेरे में मैं यहाँ-वहाँ की फालतू चीज़ों को खोजता हूँ। दूसरे कोने में भी मुझे कोई सुराग नहीं मिलता, केवल वही वस्तुएँ जो पच्चीस वर्ष पहले वह लाया था। मुझे स्मरण हो आया, उसके पास दो सस्ती कमीजें थीं। एक नकली बत्तीसी, एक पोर्टे्रट और वह पुरानी जिल्दबंधी नियमावली। इन सभी को मैं इकट्ठा करता हूँ और इसके पहले कि वे ताबूत बंद करें, मैं उसके साथ रख देना चाहता हूँ। पोर्ट्रेट ट्रंक के तल में रखी है, ठीक वहीं, जहाँ वह उस समय थी। एक सम्मानित अधिकारी की यह नियमबद्धता का प्रमाण था। चित्र को मैं बॉक्स में फेंक देता हूँ। नकली बत्तीसी और अंत में नियमावली। सब रखने के बाद मैं आदमियों को ताबूत बंद करने का संकेत कर देता हूँ।मैं सोचता हूँ, अब वह नई यात्रा पर है अतः उसके लिए यह बिल्कुल स्वाभाविक होगा कि वह अपनी नई यात्रा पर अंतिम यात्रा के पूर्व की यात्रा के सामान उसके साथ ही जाएँ। कम से कम यह स्वाभाविक लगेगा। और तब पहली बार मुझे वह आराम से मरा हुआ दिखलाई देता है।
मैं कमरे के चारों ओर देखता हूँ तो मुझे पलंग पर उसका दूसरा जूता दिखलाई पड़ता है। जूते को हाथ में ले मैं अपने आदमियों को इशारा करता हूँ और ठीक उसी क्षण ढक्कन उठाते हैं, जब ट्रेन सीटी देती शहर के आखि़ारी मोड़ के बाद गुम जाती है। ढाई बजे हैं, मैं सोचता हूँ। 1926 सितम्बर के ढाई बजे, प्रायः 1903 का वह समय जब इस आदमी ने पहली बार हमारी टेबिल पर बैठकर खाने के लिए घास माँगी थी। उस समय एडिल्डा ने कहा था 'किस प्रकार की घास डॉक्टर' और उसने जुगाली करती पेरिशियन नकियाती आवाज़ में कहा था, 'साधारण घास मैडम, वही जिसे गधे खाते हैं।'
सच यह है कि मेमी घर में है नहीं और संभवतः कोई भी यह नहीं कह सकता कि कब उसने वहाँ रहना बंद किया। पिछली बार मैंने उसे ग्यारह वर्ष पहले देखा था। इसी कोने में उसकी बटिक की दूकान थी जो पड़ोसियों की मांग के अनुसार धीरे-धीरे वेरायटी स्टोर में परिवर्तित हो गई थी। हर चीज़ चाक चौबंद थी जिसे मेहनती मेमी ने विधिवत रखी थी, जो अपना दिन पड़ोसियों के कपड़े, शहर की कुल चार सिलाई मशीनों में से एक पर सिला करती थी या फिर काउंटर पर बैठ ग्राहकों से अपनी प्रसन्न आदिवासी मुद्रा में रिजर्व और खुलेपन के साथ जिसमें अविश्वास और निष्कपटता का मिश्रण होता था, व्यवहार करती थी।
मैंने मेमी को उसी समय से नहीं देखा था जबसे उसने हमारा घर छोड़ा, लेकिन मैं निश्चित रूप से नहीं कह सकती कि कब उसने डाक्टर के साथ इस कोने के मकान में रहना शुरू किया और किन स्थितियों में उसका इतना पतन हुआ कि वह उस आदमी की रखैल की हैसियत से रहना शुरू किया, वह भी ऐसे आदमी के साथ जो उसकी जरा भी परवाह नहीं करता था, जबकि वह सारा काम करती थी और वे दोनों मेरे पिता के मकान में रहा करते थे, वह गोद ली हुई थी और डाक्टर स्थायी मेहमान था। मेरी सौतेली माँ ने मुझे बतलाया था कि डाक्टर अच्छा आदमी नहीं है और उसने पापा के सामने तर्क रख उन्हें यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया था कि मेमी सीरियस नहीं है यहाँ तक कि उसका कमरा छोड़ना भी। कुछ भी हो भले ही गुजारियो लड़की को सामान्य-सी बीमारी हो, कम से कम उसकी जाँच तो करनी ही चाहिए थी, कम से कम यही सोचकर कि हमारे घर में वह आठ साल तक रहा था।
आखिर घटा क्या था, मुझे कोई अंदाज नहीं। बस मैं तो इतना ही जानती हूँ कि एक सुबह मेमी घर में नहीं थी, ना ही वह। मेरी सौतेली माँ ने वह कमरा बंद करवा दिया था और उसका नाम सालों बाद उस समय लिया था जब हम मेरी शादी का जोड़ा बना रहे थे।
हमारा घर छोड़ने के तीन-चार रविवार के बाद मेमी चर्च में आठ बजे की प्रार्थना में सिल्क की भड़कीले प्रिंट वाली ड्रेस पर नकली फूलों से सजे बदसूरत हैट में पहुँची थी। मैंने उसे अपने घर में सदैव नंगे पैर सादे कपड़ों में ही देखा था, अतः उस रविवार को चर्च में आई मेमी मुझे अपरिचित लगी। प्रार्थना में वह महिलाओं के साथ आगे बैठी थी, कपड़ों और हैट के कारण बिल्कुल सीधी तनी बैठी थी, सस्ते नए कपड़ों में वह नई-नवेली सी लेकिन घबराई लग रही थी। वह घुटने टेककर सामने बैठी थी। यहाँ तक कि वह प्रार्थनाएँ दोहरा रही थी उसमें भी नयापन था, जिस तरह वह छैल-छबीली बन कर आई थी उससे वे लोग भीपरेशान हो गए थे जो उसे हमारी नौकरानी के रूप में जानते हैं और वे आश्चर्यचकित हो देखते रहे थे, जिन्होंने उसे कभी नहीं देखा था।
मैं ;उस समय मुश्किल से मैं तेरह साल की रही हूँगी, उसके इस परिवर्तन पर आश्चर्य से भर गई थी, आखिर मेमी हमारे घर से ग़ायब क्यों हो गई थी और इस इतवार को लेडी की तरह नहीं क्रिसमस ट्री की तरह भला क्यों आई थी, वह भी ईस्टर रविवार को तीन महिलाओं के बराबर कपड़े पहन कर क्यों आई थी। यह गुजारिया लड़की इतने मोती और रिबन से लदी थी कि चौथी औरत के भी कपड़े पूरे हो जाते। जब प्रार्थना ;शाम, समाप्त हुई और चर्च में उपस्थित सभी पुरुष और स्त्रियाँ चर्च के दरवाजे़ पर उसे निकलते देखने खड़े थे। वे सीढ़ियों पर दो-दो की पंक्ति में खड़े थे। मेरे विचार से कुछ गुप्त पूर्व नियोजित आलस्य किंतु पवित्र भाव से वे प्रतीक्षारत! बिना एक शब्द बोले खड़े थे। मेमी ने दरवाजे़ पर पहुँच आँखें एक लय में खोलीं और बंद कीं सतरंगी छाते की तरह। दोनों ओर खड़ी दो-दो की पंक्ति में खड़े पुरुषों-स्त्रियों के बीच से अपनी ऊँची एड़ी की सेंडिलों से चलते मोर की तरह आगे बढ़ती गईजब तक एक व्यक्ति ने घेरे को बंद करना शुरू नहीं किया। अब मेमी केन्द्र में थी डरी, विशिष्ट होने की मुस्कराहट को चेहरे पर लाने का प्रयास करती जो उतनी ही नकली और दिखावे से भरी थी जितनी कि उसकी ड्रेस। जब मेमी ने उस भीड़ से बाहर निकल अपना छाता खोल आगे चलना शुरू किया तभी पापा जो मेरे पास खड़े थे उन्हों मुझे ग्रुप की ओर खींचा। अतः जैसे ही लोग घेरा बंद करने ही वाले थे, तभी पापा ने मेमी के निकलने के लिए एक रास्ता बना दिया जो जल्दी से जल्दी वहाँ से चली जाना चाहती थी। पापा ने उसका हाथ पकड़ा और वहाँ उपस्थित लोगों को बिना देखे, वे चौराहे की ओर बढ़ते गए, उनके चेहरे पर निडरता और चैलेंज करने का भाव स्पष्ट था, ऐसा चेहरा उनका तब हो जाता है, जब दूसरे लोग उनसे सहमत नहीं होते।
कुछ समय बीत जाने के बाद ही मुझे पता चला था कि मेमी ने डाक्टर की रखैल की तरह उसके साथ रहना शुरू किया है। उन दिनों दूकान खुलती थी और वह प्रार्थना में संपन्न महिलाओं की तरह जाती थी, इस बात की परवाह किए बिना कि लोग क्या सोचते हैं या कहते हैं, जैसे वह यह भूल ही चुकी है कि उसके साथ पहले रविवार को क्या हुआ था। और फिर दो माह उपरांत वह चर्च में भी कभी नहीं दिखी।
मुझे डाक्टर की याद है जब वह हमारे घर में रहा करता था। मुझे उसकी काली ऊपर को मुड़ी मूँछें और उसकी औरतों को लालची कुत्ते-सी घूरती आँखों की याद है। लेकिन मुझे अच्छी तरह स्मरण है कि मैं उसके कभी निकट नहीं गई क्योंकि मैं उसे एक विचित्र पशु मानती थी जो डाइनिंग टेबिल पर उस समय भी बैठा रहता था, जब सभी उठ चुके होते थे और वह फिर भी घास, गधों की पसंदीदा घास खाता बैठा रहता था। तीन वर्ष पहले पापा की बीमारी में डाक्टर अपने कोने से हिला तक नहीं था, जैसे घायलों को देखने से इन्कार करने के बाद एक बार भी उसने किसी को भी नहीं देखा था, जैसे छः साल पहले उस औरत को देखने से मना कर दिया था, जो दो दिन बाद उसकी रखैल होने वाली थी। वह छोटा मकान, जिस दिन शहर ने अस्पृश्य घोषित किया, उसके पहले से ही हमेशा बंद रहा करता था। लेकिन मैं जानती हूँ कि मेमी कई माह तक अथवा कई सालों तक वहाँ रही है स्टोर बंद हो जाने के बाद भी। बहुत समय बाद लोगों को पता चला था कि वह ग़ायब है क्योंकि एक बेनाम काग़ज़ की चिट को दरवाजे़ में लोगोंने पाया था। उस नोट के अनुसार डाक्टर ने अपनी रखैल की हत्या कर उसे बगीचे में गाड़ दिया है क्योंकि डाक्टर को शक था कि शहर वाले उसके द्वारा उसे ज़हर दे सकते हैं। किंतु मैंने अपने विवाह के पूर्व मेमी को देखा था। यह ग्यारह वर्ष पहले की बात है जब मैं जयमाला के बाद लौट रही थी और गुआजिरो औरत अपनी दूकान के दरवाजे़ पर आई थी और प्रसन्नता और व्यंग भरी आवाज़ में कहा था, 'चाबेला तुम्हारी शादी होने वाली है और तुमने मुझे बतलाया तक नहीं।'
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'हाँ' मैं उससे कहता हूँ, 'बिल्कुल ऐसे ही हुआ होगा।' फिर मैं रस्सी में फंदा कसता हूँ, जहाँ रस्सी के एक छोर में रस्सी को ताजा-ताजा काटे जाने के निशान बने हैं। मैं उस रस्सी पर फिर गाँठ बाँधता हूँ, जिसे मेरे आदमियों ने देह उतारते समय काटा था, दूसरे छोर को मैं बीम पर डाल देता हूँ, जब तक फंदा लटकने नहीं लगता है उसमें इतनी मज़बूती है कि वह इस आदमी की तरह कई व्यक्तियों की मौत की सामर्थ्य रखती थी। इस बीच वह हैट से हवा कर रहा था, शराब और छोटी श्वास होने से परेशान चेहरे के साथ वह फंदे और उसकी शक्ति को परखने की कोशिश कर रहा था। उसने कहा, 'इतनीपतली रस्सी का फंदा उसकी देह के बोझ को उठाने लायक तो नहीं लगता।' इस पर मैं उससे कहता हूँ, 'यही रस्सी उसके झूले को बरसों से उठाए थी', उसने एक कुर्सी खींची अपना हैट मुझे दिया और अपने हाथों से फंदे को पकड़ लटक गया, इस प्रयास में उसका चेहरा लाल हो गया। एक बार फिर कुर्सी पर खड़ा हुआ और उसने लटकती रस्सी के छोर को देखा। वह कहता है, 'असंभव। ये फंदा तो मेरी गर्दन तक आया ही नहीं।' और तब मेरी समझ में आया कि वह जानबूझकर दफनाने को टालने के लिए अतार्किक हो रहा है।
मैंने उसके चेहरे को देखते हुए समझने का प्रयास किया। मैंने उससे कहा, 'तुमने इस बात पर ग़ौर किया ही नहीं कि वह तुम्हारे सिर से लम्बा है।' उसने मुड़कर ताबूत को देखते हुए कहा, 'फिर भी, मैं पूरी तरह निश्ंिचत होकर नहीं कह सकता कि इस फंदे से उसने जान दी है।'
इसी तरह यह हुआ था मैं पूरी तरह से आश्वस्त था। और वह भी इसे अच्छी तरह समझ रहा था लेकिन उसके पास एक योजना थी क्योंकि वह सहमत होने को तत्पर बिल्कुल भी न था। उसके निरुद्देश्य यहाँ-वहाँ घूमने से उसकी कायरता ही प्रकट हो रही थी। एक दोहरी और आत्मविरोधी कायरता। अंत्येष्टि कोरोकना और उसके लिए कारण ढूँढ़ने की। फिर वह ताबूत के पास जाता है, अपनी एड़ियों से मुड़ मेरी ओर देखकर कहता है, 'विश्वास करने के लिए मैं इसे फंदे पर लटका हुआ देखना चाहता हूँ।'
यह मैंने आराम से कर दिया होता। मुझे मात्र अपने आदमियों से ताबूत खोलकर उसे फिर लटकाना ही तो था, जैसे वह कुछ पल पूर्व था। लेकिन यह सब मेरी बेटी के लिए कष्टदायक होता। बच्चे के लिए तो और भी अधिक, दरअसल उसे बच्चे को यहाँ लाना ही नहीं चाहिए था। किसी मृतक के साथ ऐसा व्यवहार करने के विचार मात्र से मन खराब हो जाता है, रक्षा करने में असमर्थ देह को, जिस आदमी को पहली बार शांति नसीब हुई हो, उसे अकारण परेशान करना हालाँकि किसी शव को जो आराम से अपने ताबूत में लेटा है, यहाँ-वहाँ ले जाना मेरे सिद्धांतों के विरुद्ध है। लेकिन मैं अवश्य ही लटकाऊँगा यह देखने के लिए कि यह आदमी आखिर जाता कहाँ तक है। और मैं उससे यही कहता हूँ, 'आप पूर्णतः आश्वस्त रहें, मैं किसी को यह करने को नहीं कहूँगा। यदि तुम चाहते हो, तो खुद उसे फाँसी पर लटकाओ लेकिन इसके परिणाम जो भी होंगे, उनकी जिम्मेदारी भी लेनी होगी यह याद रखो हमें यहज्ञात नहीं है कि वास्तव में वह कब मरा था।'
वह स्थिर रहता है, वह वहीं ताबूत के पास खड़ा मेरी ओर देख रहा है, फिर उसने इसाबेल को देखा और फिर बच्चे को और फिर ताबूत को। अचानक उसके चेहरे पर निराशा भरा धुंधला लेकिन धमकी देने का भाव आता है। वह कहता है, 'आपको भलीभाँति इसका ज्ञान होना चाहिए कि इसके क्या परिणाम होंगे।' उसकी धमकी का अर्थ मैं अच्छी तरह समझता हूँ। मैं उससे कहता हूँ, ''अच्छी तरह समझता हूँ। मैं एक जिम्मेदार व्यक्ति हूँ'', और वह, हाथ बाँधकर पसीने से भरा मेरी ओर बढ़ता है उसकी चाल में हल्का-सा मजाकियापन है, वह धमकाने के स्वर में कहता है, ''क्या मैं आपसे पूछ सकता हूँ कि आपको यह पता कैसे चला कि पिछली रात इस आदमी ने फाँसी लगा ली है?''
मैं उसके पास आ जाने का इंतज़ार करता हूँ। मैं स्थिर उसकी ओर तब तक देखता रहता हूँ जब तक मेरे चेहरे पर उसकी गर्म बुरी साँस महसूस नहीं होती, जब तक वह हाथों को बाँधे मेरे बिल्कुल पास आ जाता है। उसने अपने हैट को एक बाँह में फँसा रखा है। और तब मैं उससे कहता हूँ, ''यदि आप अधिकारी के नाते मुझसे यह प्रश्न कर रहे हैं, तो मुझे आपको उत्तर देने में अत्यधिक प्रसन्नता होगी।'' उसी स्थिति में वह मेरे सामने खड़ा रहता है। जब मैं उससे यह कहता हूँ तो वह जरा-सा भी परेशान या आश्चर्य व्यक्त नहीं करता। वह कहता है, ''स्वाभाविक है कर्नल, मैं आपसे अधिकारी के नाते ही पूछ रहा हूँ।''
उसे जितनी रस्सी चाहिए मैं उसे दे देता हूँ। मुझे पूरा विश्वास है कि वह भले ही कितना मरोड़े उसे एक लौह आवरण स्थिति देनी ही होगी जो शांत और धैर्यपूर्ण होगी। मैं उससे कहता हूँ, ''इन लोगों ने रस्सी को काटकर शव को उतारा क्योंकि मैं उसे आपकी प्रतीक्षा में टंगे नहीं रहने दे सकता था। दो घंटे पहले मैंने सूचना आपको दी थी और आपने इतना सारा समय दो बिल्डिंग चलकर आने में लगा दिया।''
वह अभी भी स्थिर खड़ा है। अपने बेंत पर आराम करते कुछ सामने झुक मैं उसके सामने खड़ा हूँ। मैंने कहा, ''दूसरी बात यह है कि वह मेरा दोस्त है।'' मेरे वाक्य पूरा करने के पहले ही बिना स्थिति बदले उसने व्यंग से मुस्करा कर गाढ़ी बदबू भरी साँस मेरे चेहरे पर फेंकी। वह कहता है, ''संसार में यह तो सबसे सरल है, है न?'' यकायक वह मुस्कराना बंदकर कहता है, ''तो आपको पहले से पता था कि यह आदमी स्वयं को फाँसी लगानेवाला है?''
उसे पूरा विश्वास है कि वह धैर्य और शांति के साथ स्थितियों को जटिल बना देगा। मैं उससे कहता हूँ, ''मैं दोहरा रहा हूँ, जैसे ही मुझे पता चला कि इसने फाँसी लगा ली है, मैं आपके घर दो घंटे पहले गया था।'' और जैसे मैंने वर्णन न कर प्रश्न किया हो, वह कहता है, ''मैं लंच ले रहा थ।'' और मैं उससे कहता हूँ, ''मुझे ज्ञात है। बल्कि मेरे विचार में तो उसके बाद आपने दोपहर की झपकी भी ली होगी।''
अब उसकी समझ में नहीं आता है कि वह इसका क्या उत्तर दे। वह पीछे हटता है। वह इसाबेल को बच्चे के पास बैठा देखता है। वह मेरे आदमियों को देखता है और फिर सबसे अंत में वह मुझे देखता है। लेकिन अब उसके भाव परिवर्तित हैं। ऐसा लगता है जैसे वह किसी वस्तु की तलाश में है जिस पर वह ध्यान केन्द्रित कर सके। वह मेरी ओर से मुड़कर पुलिसवाले के पास जाता है। और उससे कुछ कहता है। पुलिस वाला हामी में सिर हिला कमरे को छोड़ देता है।
तब वह वापिस लौटता है और मेरा हाथ पकड़ कर कहता है, ''मैं आपसे दूसरे कमरे में बात करना चाहता हूँ कर्नल।'' उसकी आवाज़ पूरी तरह परिवर्तित है। वह गंभीर और परेशानी से भरी है। जब मैं उसके साथ दूसरे कमरे की ओर बढ़ता हूँ तो मैं उसके हाथ का दबाव अपने हाथ पर अनुभव करता हूँ, मेरे मन में यह विचार दृढ़ हो जाता है कि वह मुझसे क्या कहने वाला है।
यह कमरा, दूसरे की अपेक्षा अधिक बड़ा और ठंडा है। आँगन से आती रोशनी से भरा है। यहाँ, मैं उसकी चिंतित आँखों को देख रहा हूँ, उसकी मुस्कराहट और आँखों के भावों में कोई समानता नहीं है। मैं उसकी आवाज़ को कहते हुए सुनता हूँ, ''कर्नल इस मामले को हम दूसरे तरीके से भी तो सुलझा सकते हैं।'' उसे वाक्य पूरा करने का अवसर दिए बिना मैं पूछता हूँ, ''कितने रुपए?'' और फिर वह पूर्णतः अलग व्यक्ति हो जाता है।
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मेमी एक प्लेट में जेली और दो नमकीन रोल्स लेकर आई है। ये वही हैं जिन्हें उसने मेरी मम्मा से बनाना सीखा है। घड़ी ने नौ बजाए हैं। मेमी मेरे सामने स्टोर के पिछवाड़े में बैठी खा रही है जैसे जेली और रोल्स इस भेंट को बनाए रखने के लिए हैं। मैं यह अच्छी तरह समझ रही हूँ, इसलिए उसे अपने बचपन की भूलभुलैया में जिए दुखद क्षणों में जाने देती हूँ। उसका चेहरा काउंटर पर रखे तेल के लैम्प की रोशनी में उस दिन की तुलना में जब वह चर्च में हाई हील और हैट पहिन कर आई थी, से थकान और झुर्रियों से भरा लग रहा था। यह तो बिलकुल स्पष्ट झलक रहा था कि उस रात मेमी अपनी ज़िंदगी के अनुभवों को याद करने की मनःस्थिति में है। जब वह इससे गुजर रही थी, तो लगता यही था कि पिछले वर्षों में उसने किसी तरह समय को बाँधे रखा था और जैसे-जैसे उस रात वह अपने विगत को स्मरण कर रही थी वैसे-वैसे वह अपने व्यक्तिगत समय को एक बार फिर से प्रारंभ कर बहुत समय से रुकी उम्र को आगे बढ़ा रही है।
मेमी महायुद्ध के पूर्व के हमारे परिवार के पिछली सदी के अंतिम वर्षों के राजसी वैभव और विशालता का विस्तार से वर्णन कर रही थी। मेमी ने मेरी मम्मी को याद किया। उस रात को उसने वह घटना सुनाई जब मैं चर्च से लौट रही थी और उसने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा था, 'चाबेला, तुम्हारी शादी होने वाली है और तुमने मुझे बताया तक नहीं।' ये वे दिन थे जब मैं अपनी माँ को अपने पास चाहती थी और पूरी शक्ति से मैं उन्हें अपनी स्मृति में लाना चाहती थी। 'वह तुम्हारा जीवित प्रतिरूप थी', उसने कहा। और मैंने उसका पूरी तरह विश्वास कर लिया। मैं उसके सामने बैठी थी, जिसकी आवाज़ में अविश्वासऔर निश्चितता का मिश्रण था, जैसे वह अविश्वसनीय कथाएँ थीं जिन्हें वह इस विश्वास के साथ सुना रही थी जैसे समय ने उन कथाओं को ऐसे यथार्थ में परिवर्तित कर दिया था जिनका विस्मरण संभव नहीं था। उसने मेरे माता-पिता की युद्ध के समय की गई यात्रा के विषय में बताया, एक ऐसी कठिन तीर्थ यात्रा जिसका अंत माकोन्डो के बसने से होना था। मेरे माता-पिता युद्ध के विनाश से भागकर सड़क के किनारे किसी उपजाऊ किन्तु शांत जगह की खोज में थे जहाँ वे रह सकें, तभी उन्होंने गोल्डन काफ का नाम सुना तो वे वहाँ पहुँचे जो एक ऐसा स्थान था जो शहर बनने की प्रक्रिया में था, जिसे कुछ शरणार्थी परिवारों ने बसाया था और जिसके सदस्य अपनी परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं की रखा के प्रति सूअर के मोटे-ताजे़ होने की तरह प्रतिबद्ध थे। माकोन्डो मेरे माता-पिता का पसंदीदा स्थान था, शांत और चर्मपत्र पर लिखी वसीयत जैसा था। यहीं उन्होंने एक स्थान चुनकर मकान बनाया जो कुछ ही वर्षों में विशाल भवन में परिवर्तित हो गया, जिसमें तीन घुड़साल और दो मेहमानों के कमरे थे। मेमी उन दिनों को एक प्रकार के पश्चाताप के साथ विस्तार से याद कर रही थी।उन संपन्न दिनों को इस तीव्रतम इच्छा से कर रही थी, जिसमें यह वेदना भी सम्मिलित थी कि वह अब इनमें नहीं रहेगी। 'यात्रा में न तो कोई कष्ट था और न ही कुछ व्यक्तिगत' उसने कहा। यहाँ तक कि घोड़े भी मच्छरदानी में सोया करते थे, इसलिए नहीं कि मेरे पापा ना तो फिजूलख़ार्च थे ना ही पागल। बल्कि इसलिए कि मेरी मम्मा में दया और मानवीयता के भाव कुछ अधिक ही थे, उसके अनुसार प्रभु की दृष्टि में यह देखकर अधिक प्रसन्न होंगी कि पशुओं को मच्छरों से बचाना उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना मनुष्यों को मच्छरों से बचाना। उनका बेहिसाब सामान हर जगह था, बड़े-बड़े कपड़ों से भरे ट्रंक जिनमें उन लोगों के कपड़े थे, जब दोनों का जन्म तक नहीं हुआ था। उनके वे पूर्वज जिन्हें ज़मीन के बीस फीट नीचे भी ढूँढ़ न पाएँ, बर्तनों की पेटियाँ थी जिनका उपयोग वर्षों से नहीं किया गया था, जो मेरे माता-पिता के दूर-दूर के रिश्तेदारों के थे ;मेरे पापा और मम्मा चचेरे थेद्ध यही नहीं एक ट्रंक तो संतों के चित्रों से भी भरा था, जहाँ भी वे रुकते, उनके लिए पूजाघर बनाया जाता था, जहाँ उनके साथ पूर्वजों के चित्रों को भी लगाया जाता। वह एक विचित्रकार्नीवाल का जुलूस जैसा था जिसमें घोड़े, मुर्गियाँ और चार गुआजिरो ;मेमी के साथीद्ध थे जो घर में ही पले-बढ़े थे और जो हमारे माता-पिता के पीछे-पीछे शिक्षित सरकस के जानवरों की तरह थे।
मेमी उन घटनाओं को वेदना के साथ याद कर रही थी। उसे सुनते हुए ऐसा लगता था जैसे उस व्यतीत हुए समय को वह अपनी व्यक्तिगत हानि समझ रही थी जैसे उसका हृदय स्मृतियों से बिखर रहा हो, और यदि समय रुका होता तो वह आज भी उस यात्रा में होती, जो मेरे माता-पिता के लिए एक दंड थी, किन्तु बच्चों के लिए मनोरंजन से भरी थी जिसमें मच्छरदानी से ढँके घोड़ों के दृश्य थे।
और फिर एक बार समय-चक्र पीछे चलने लगा, उसने कहा। नवनिर्मित माकोन्डो गाँव में उनका सदी के अंतिम दिनों में दुर्घटनाग्रस्त परिवार का पहुँचना जो, अपने विगत वैभव से जुड़ा था जो युद्ध के परिणामस्वरूप बिखर गया था। उसने मम्मी के शहर-प्रवेश को याद कियाङ्कएक गधी पर बैठी, गर्भवती मलेरिया से ग्रस्त हरा होता चेहरा, सूजन से बेडौल पैर। संभवतः मेरे पापा की आत्मा में असंतोष के बीच पनप रहे थे, लेकिन जैसे वे यहाँ आए उन्होंने विपरीत हवाओं और ज्वार के विरुद्धजड़ें जमाना प्रारंभ कर दिया जबकि वे मेरी गर्भवती मम्मा का आने वाले शिशु के जन्म के साथ तेज़ी से आती उसकी मृत्यु को भी देख रहे थे।
लैम्प की रोशनी में उसके चेहरे की प्रोफाइल की रेखाएँ स्पष्ट दिख रही थीं। मेमी अपने मूल भावहीन चेहरे घोड़े की पूँछ या अयाल की तरह सीधे खड़े बालों के साथ एक स्टोर के पीछे गर्मी से भरे पिछले कमरे मैं बैठी मूर्ति की तरह अपने पूर्व जन्म के बारे में बतला रही हो। मैं उसके कभी बहुत निकट नहीं रही थी लेकिन उस रात, अपनेपन के यकायक प्रकट होने से मुझे अनुभव हुआ कि मेरा उससे रिश्ता रक्त संबंधों से कहीं अधिक गझिन है।
अचानक मेमी के मौन के बीच में मैंने दूसरे कमरे से इस बेडरूम से जिसमें मैं अभी अपने बच्चे और पिता के साथ हूँ, खाँसने की आवाज़ सुनी। वह एक छोटी सूखी खाँसी थी जिसके बाद गला साफ करने की आवाज सुनी और फिर मैंने वह आवाज़ सुनी जो आदमी के बिस्तर पर करवट बदलने से होती है। मेमी ने तुरंत बोलना बंद कर दिया और एक धुंधले शांत बादल का टुकड़ा उसके चेहरे पर छा गया। मैं उसके बारे में भूल ही चुकी थी। जितनी देर मैं वहाँ रही थी ;रात के दस बजे केआस-पासद्ध मुझे यही अनुभव हुआ था जैसे गुआजिरो औरत और मैं दोनों ही घर में अकेली हैं। और फिर वहाँ के वातावरण में जो तनाव था उसमें अंतर आ गया। मुझे हाथ में थकान अनुभव हुई जिसमें मैं जैली और रोल्स की प्लेट लिए थी, जिन्हें मैंने चखा तक न था। उसके पास झुककर मैंने कहा, ''वह जाग गया है।'' भावहीन, ठंडे बेपरवाह आवाज़ में उसने कहा, 'वह तो सुबह तक जगता ही रहेगा।' और अचानक मैंने मेमी के भ्रमों को समझा जिन्हें हमारे घर के बारे में बतलाती हुई उसके चेहरे पर मैं अनुभव कर रही थी। हमारी जिं़दगी बदल चुकी थी, अच्छे दिन आ चुके थे और माकोन्डो एक व्यस्त था जहाँ इतने पर्याप्त पैसे थे कि लोग शनिवार की रातों को शाहख़ार्ची कर सकें लेकिन मेमी उसी विगत की बंदनी थी जो आज से बेहतर था। जबकि वे गोल्डन काफ को अंदर-बाहर से छील रहे थे, अपने स्टोर के पीछे वह बेनामी और बंध्या का जीवन दिन में काउंटर के पीछे और रातें एक ऐसे आदमी के साथ काट रही थी जिसे नींद केवल सुबह-सुबह ही आती है और जो अपना समय घर के कमरों में घूम-घूम कर उन्हीं भूखे कुत्ते की आँखों के साथ, जिन्हें मैं कभी नहीं भूलसकती, घूमता रहता है। यह सोचकर मेरा दुख बढ़ गया कि मेमी उस व्यक्ति के साथ रह रही है जिसने बीमारी की उस रात में उसे देखने से इन्कार किया था और एक बिना दया अथवा कड़वाहट के पत्थर जैसे पशु के साथ जो पूरे दिन लगातार घूमता रहता है, ऐसे आदमी के साथ तो सबसे संतुलित व्यक्ति भी पगला जाए।
यह जानते हुए भी कि वह अपने कमरे में है, जाग रहा है और स्टोर के पिछवाड़े से हमारे शब्दों को सुनकर अपनी कामातुर कुत्तों जैसी आँखों से देख रहा है मैंने अपनी आवाज़ के स्वर को स्वाभाविक बना बातचीत को नया मोड़ देने का प्रयास किया।
''व्यापार का अनुभव तुम्हारे लिए कैसा रहा?'' मैंने पूछा।
मेमी मुस्कराई। उसकी हँसी वेदनामय किंतु स्पर्शनीय थी। किन्तु इस क्षण बिना भावना के थी, जैसे उसने उसे कमरे में बंद कर रखा हो और मात्र आवश्यकता पड़ने पर ही निकालती हो, लेकिन उसके स्वामित्व से वंचित, जैसे मुस्कराने में लंबे अंतराल होने से वह उसका सामान्य प्रयोग करना ही भूल गई हो। ''वह है जैसा भी है'', उसने यों ही सिर हिलाते हुए कहा। वह फिर चुप हो गई और अपने में खो गई। तब मेरी समझ में आया कि मेरे जाने का समय होगया है। कोई कारण बताए बिना मैंने मेमी को प्लेट बढ़ा दी। मैंने उसे खड़े होते और प्लेट को काउंटर पर रखते देखा। उसने मुझे वहाँ से देखा और दोहराया, ''तुम उनकी प्रतिछवि हो'' पहले मैं अवश्य ही रोशनी के विरुद्ध बैठी रही हूँगी और रोशनी चूँकि विपरीत दिशा से आ रही थी इसलिए मेमी ने बातें करते हुए मेरे चेहरे को नहीं देखा होगा। और जब काउंटर पर प्लेट रखने के लिए खड़ी हुई तो उसने मुझे लैंप के पीछे से देखा होगा और इसीलिए उसने कहा, 'तुम उनकी प्रतिछवि हो।' और फिर वह लौटी और आकर बैठ गई।
उसने उन दिनों के बारे में बतलाना शुरू किया जब मेरी मम्मा माकोन्डो पहुँची थीं। वह गधी से उतर सीधे राकिंग कुर्सी पर बैठी थीं, बिना हिले-डुले तीन माहों तक, वे वहीं कुर्सी पर अरुचि के साथ खाना खाया करती थीं, कभी-कभी जब लंच उनके पास आता और दोपहर तक प्लेट को हाथ में लिए बिना कुर्सी झुलाए सीधी बैठी रहती, बस अपने पैरों को आराम देने के लिए सामने रखी कुर्सी पर रख लेतीं, वे भीतर से मौत की आहट सुनती बैठी रहतीं, जब तक कोई आकर उनके हाथों से प्लेट नहीं ले लेता। जब तयशुदा दिन आया और दर्दशुरू हुए तो स्वतः खड़ी हुईं, हालाँकि पोर्च और बेडरूम के बीस कदम चलने में उन्हें सहारा देकर ले जाया गया। वे पिछले नौ माहों से पीड़ा सहते हुए भी मौन रह कर मृत्यु की प्रतीक्षा करती रही थीं। कुर्सी से पलंग के बीच की दूरी में सारी पीड़ा, कड़वाहट और सजा जो उन्होंने यात्रा के दौरान भोगी थी, अपनी पूरी शक्ति के साथ उठाकर वे वहाँ पहुँचीं जहाँ उन्हें पूर्णतया ध्यान था कि उनका पहुँचना निश्चित है, जहाँ वे अपने जीवन का अंतिम कार्य संपन्न करेंगी।
मेरी मम्मा की मृत्यु पर मेरे पापा दुःसाहसी हो गये थे। मेमी ने बतलाया, जब वे घर में अकेले थे तो उन्होंने कहा था, 'कोई भी उस घर के नैतिक मूल्यों का विश्वास नहीं करता जहाँ के पुरुष घर-स्वामी की विधिवत पत्नी बाजू में न हो।' और चूँकि उन्होंने कहीं पढ़ा था कि किसी प्रियजन की मृत्यु पर जैसमीन के फूल के पौधे लगाने चाहिए उसे हर रात याद रखने के लिए यही सोच उन्होंने बगीचे की दीवाल से लगी जैस्मीन की एक बेल लगा दी और एक साल बाद उन्होंने मेरी सौतेली माँ एडेलिडा से दूसरा विवाह कर लिया।
मुझे कई बार लगा जैसे मेमी बोलते समय संभवतः रो देगी। किंतु उसने अपने पर संयमरखा इस संतुष्टि के साथ कि एक समय वह बेहद प्रसन्न थी और प्रसन्नता की समाप्ति उसके स्वयं के चयन का परिणाम है। फिर वह मुस्कराई। कुछ ही देर में वह अपनी कुर्सी पर आराम से बैठ गई और अब वह पूरी तरह सामान्य लग रही थी जैसे अपने मन में पीड़ा का हिसाब लगाकर इस निष्कर्ष पर पहुँच गई है कि उसके पास सुखद स्मृतियों का पर्याप्त भंडार है, संभवतः यही सोच उसके चेहरे पर शैतानी भरी वही पुरानी मुस्कराहट आ गई। उसने कहा कि ''दूसरा अध्याय पाँच वर्ष बाद आरंभ हुआ जब वह डाइनिंग कमरे में जहाँ मेरे पापा लंच ले रहे थे, आई थी और उनसे कहा था, 'कर्नल, कर्नल, आफिस में कोई अजनबी आपसे मिलने आया है।'
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(यह सुखद संयोग है कि मारकेस के विश्व प्रसिद्ध उपन्यास 'लीफ स्टार्म' का हिन्दी अनुवाद हम हिन्दी में पहली बार प्रकाशित कर रहे हैं। इसका अनुवाद इंद्रमणि उपाध्याय ने किया है।)
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