(बाल कहानी) ठिगनू की मूँछ ठि गनू आज फिर आइने के सामने खड़े हो गए। पुरानी यादें ताजा हो गईं। मन में गुदगुदी सी होने लगी। ठिगनू की मूँछ ब...
(बाल कहानी)
ठिगनू की मूँछ
ठिगनू आज फिर आइने के सामने खड़े हो गए। पुरानी यादें ताजा हो गईं। मन में गुदगुदी सी होने लगी। ठिगनू की मूँछ बहुत बड़ी थी। उन्हें अपनी मूँछों से बहुत प्यार था। किन्तु अब उनकी मूँछें सलामत नहीं थीं। उन पर खतरा मँडरा रहा था। कुछ नकाबपोश डाकू घूम रहे थे। वे मूँछें लूटते थे। मूँछ आदमी की इज्जत होती है। भला वे अपनी इज्जत कैसे लुटने देते ? मुँह छिपाए फिर रहे थे।
ठिगनू की लम्बाई सिर्फ ढाई फुट थी। उम्र पचास साल थी। वे गोल-मटोल कद्दू की तरह थे। फुदकते हुए जल्दी-जल्दी चलते। सीना हमेशा ताने रहते। लेकिन इस समय उनका सीना अन्दर हो गया था।
ठिगनू रोज आइने के सामने खड़े हो जाते। डेढ़ फुट लम्बी मूँछ को घंटों निहारते। तेल लगाते।‘‘हाय मेरी मूँछों ! अब क्या होगा ?'' कह कर सहलाते। ‘‘नहीं-नहीं......मैं तुम्हें नहीं लुटने दूँगा।'' ठिगनू भावुक हो उठते।
वे आज भी यही सब कर रहे थे। तभी पीछे से आवाज आई-‘‘ठिगनू...।'' ठिगनू ने घूम कर देखा एक नकाबपोश आदमी खड़ा था। उसके हाथ में बन्दूक थी। साथ में दस-बारह लोग थे। वे चेहरे ढके हुए थे। बन्दूक उनके सीने पर थी। नकाबपोश ने कहा-‘‘मुझे तेरी एक तरफ की मूँछ चाहिए।''
‘‘जान ले लो , मगर मूँछ मत लो।'' ठिगनू ने कहा।
नकाबपोश बोला-‘‘अच्छा ठीक है।.........इसकी गर्दन काट ले। मूँछ बाद में काट ली जाएगी।''
ठिगनू घबराए। सोचने लगे-‘मैंने यूँ ही कहा था। यह तो सचमुच तैयार हो गया। जरूर पिछले जनम में कसाई रहा होगा।'
चंडू तलवार लेकर आगे बढ़ा। कई लोगों ने ठिगनू को पकड़ लिया। ठिगनू ने सोचा-‘जान और मूँछ दोनों गँवाना कहाँ की बुद्धिमानी है ? यह तो सरासर बेवकूफी है। क्यों न सिर्फ मूँछों का ही त्याग.....?'
तलवार गर्दन तक पहुँच गई। ठिगनू बड़ी जोर से चीख पड़े-‘‘भैया , जान मत लो।''
‘‘फिर मूँछ दे दे।'' किसी एक ने डपट कर कहा। ठिगनू ने सिर झुका दिया। कहा-‘‘ले लो।''
एक दूसरे नकाब वाले ने उनकी मूँछ पकड़ ली। खींचकर रस्सी की तरह तान दी। तीसरा आदमी उस्तरा लेकर आगे बढ़ा।
ठिगनू मन ही मन प्रार्थना करने लगे। ‘शंकर जी! मेरी इज्जत बचा लो।'
उस्तरे वाला आदमी रूक गया। ठिगनू ने अपने मन में कहा-‘धन्यवाद भगवान! तुमने मुझे बचा लिया जय शंकर...........।'
‘‘ओए नाटू ! सिर ऊपर उठा ठीक से। वरना मूँछ के साथ-साथ नाक भी कतर दूँगा।'' उस्तरे वाले ने कड़ी आवाज में कहा।
ठिगनू फिर निराश हो गए। आशा की किरण धुँधली हो गई। सिर ऊपर उठा दिया। ‘दशरत सुत रामचन्द्र , अब तुम्हीं मेरी रक्षा करो। बन्दूक की नोक पर मूँछ काट रहे हैं ये दुष्ट। कुछ चमत्कार........।'
तब तक उस्तरा चल गया। मूँछ कट गई। ठिगनू सन्न रह गए। ‘हे भगवान , तुमने कर दी गड़बड़। फूलमाला चढ़ाना सब बेकार हो गया।'
ठिगनू भगवान पर दोष लगाने लगे। नकाबपोश मूँछ लेकर फरार हो गए। ठिगनू आइने के सामने खड़े थे। दूसरी तरफ की मूँछ सहला रहे थे। तभी बाहर से फिर वही नकाबपोश वाली आवाज आई। ठिगनू चौंक गए - ‘लगता है दुष्ट दूसरी तरफ की भी मूँछ लेने आए हैं।'
उन्होंने दूसरी तरफ की मूँछ भी काट दी। फिर उसे हाथ में लेकर बाहर आए। गाँव के सभी लोग इकट्ठा थे। ठिगनू हिचकिचा रहे थे। उन्हें देखकर सारे लोग हँसने लगे। ठिगनू मुँह छिपाने लगे। ठिगनू ने सबको खूब उल्लू बनाया था। किन्तु आज वे मात खा गए थे। सामने पूरी डाकुओं की पलटन खड़ी थी। सबने नकाब हटा दिया था। लेकिन कपड़े वही पहने थे। पहचानने में देर न लगी।
‘‘कहो काका , कैसी रही ?'' नन्दू ने नकाबपाश की आवाज में पूछा और आँखों से इशारा भी किया। वह हँसने लगा।
ठिगनू समझ गए थे। ज्यादा घमंड ठीक नहीं होता ,क्योंकि अब ठिगनू की मूँछ ठिकाने लग चुकी थी। ठिगनू को यह समझने में देर नहीं लगी कि ''ये शरारत इन्हीं बच्चों की है।'' वे अपना चेहरा आइने में देखकर मुस्करा रहे थे। अब छोटी-छोटी मूँछे उग आईं थीं। वे उन्हें सहला रहे थे।
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(बाल कहानी)
भुतहा जंगल
गाँव में शहर से दो लड़के आए थे। एक का नाम चन्दन , दूसरे का रोहित था। दोनों शहर के शोरगुल से ऊबकर गाँव आए थे। उनका घर खण्डहर हो गया था। अब उनका इस गाँव में कोई नहीं था। दोनों अकेले थे। उन्होंने अपने टूटे-फूटे घर को फिर बनाया। उसी में रहने लगे। उनके पास खाने-पीने का पूरा सामान मौजूद था। शहर से अपना सामान लेकर आए थे।
चंदन और रोहित को हरियाली बहुत पसन्द थी। वह रोज खेतों की तरफ टहलने जाते थे। एक दिन वे टहलते हुए दूर निकल गए। रास्ते में उन्हें रामू काका मिले। उन्होंने उन्हें उधर जाने से रोका और कहा-‘‘तुम लोग उधर टहलने मत जाया करो। वहाँ बहुत घना जंगल है। लोगों का कहना है , कि वहाँ भूत रहते हैं। इसलिए उधर कोई नहीं जाता। तुम लोग भी मत जाया करो। बस यहीं तक आया करो।''
चन्दन और रोहित दोनों बहुत हिम्मती थे। वे भूत-प्रेत , चुड़ैल कुछ नहीं मानते थे। उनका कहना था-‘‘यह सब कुछ नहीं होता। बीता हुआ समय ही भूत होता है। समय वापस नहीं आता , इसलिए भूत भी नहीं आ सकता। तुम लोग फालतू में डरते हो।''
रामू काका ने कहा-‘‘बेटा , तुम मानो या न मानो , लेकिन वहाँ नदी के किनारे जंगल में भूत रहता है। तुम जैसे पढ़े-लिखे को कौन समझाए। शहर में यह सब नहीं होता इसलिए ऐसी बातें करते हो। मेरा क्या ! मैंने तो अपना फर्ज निभा दिया। आगे तुम्हारी मरजी। जो करना हो सो करो।''
चंदन और रोहित वापस लौट आए। वे रात भर सो नहीं सके। उन्हें काका की कही बात बार-बार याद आ रही थी। वे सच्चाई जानने के लिए बेचैन थे। उन्हें काका तथा अन्य गाँव वालों की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
दूसरे दिन चंदन और रोहित जंगल की ओर चल पड़े।वैज्ञानिक युग के बच्चे थे। नई-नई खोजें करना चाहते थे। वे चलते चले जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक व्यक्ति मिला। उसने उन्हें आगे जाने से मना किया , लेकिन वे धुन के पक्के थे। उन्होंने उसकी एक न सुनीं। आगे बढ़ गए। चलते-चलते उन्हें एक नदी मिली। नदी के चारों तरफ सुन्दर वन थे। वहाँ का मौसम बड़ा ही सुहावना था। किसी को भी मदहोश कर देने वाला। चंदन और रोहित एक पेड़ के नीचे आराम करने लगे। हवा ठंडी चल रही थी। वे वहीं सो गए।
उनकी आँखें शाम को खुलीं। चारों तरफ सन्नाटा छाया था। सूरज डूबने वाला था। वे सोच रहे थे कि यहाँ तो कुछ भी नहीं है। गाँव वाले फालतू मेें घबराते हैं। पता नहीं कितने डरपोक होते हैं। जो करना चाहिए वो नहीं करते हैं। फालतू की अफवाहें फैलाया करते हैं। दोनों यह सोच ही रहे थे कि तभी उन्हें एक व्यक्ति दिखाई पड़ा। वह बहुत डरावना था। भयभीत कर देने वाला था। उसके बड़े-बड़े दाँत , उभरी आँखें , सफेद बाल , काला चेहरा और कटी नाक , सब अजीब सा लग रहा था। उसके कान भी नहीं थे। आश्चर्य की बात तो यह थी कि उसके हाथ में दो आदमियों का सिर था। वह कपड़े भी काले पहने था। रोहित यह देखकर घबरा गया।
उसने चन्दन से कहा-‘‘भैया! यह भूत ही है। हम लोगों का बच पाना मुश्किल है। चलो यहाँ से भाग चलें।''
चन्दन ने कहा-‘‘बेवकूफ ! तुम्हें अभी कुछ नहीं मालूम। यह भूत नहीं कोई और है। यह तुम्हें तब पता चलेगा , जब इनकी पोल खुलेगी।''
दोनों ने उसका पीछा करते-करते वे कहाँ पहुँच गए , उन्हें कुछ मालूम नहीं चला।
अरे ये क्या! जंगल में इतना सुन्दर बंगला। यह किसके लिए बना है ? चन्दन यह सोच ही रहा था , कि अचानक भूत उस बंगले में घुस गया। उसके घुसते ही अन्दर से एक मोटा आदमी बाहर निकला। उसकी मूँछें बड़ी-बड़ी थीं। उसकी नाक कटी तथा ओठ फटा था। देखने में भयानक था। उसके हाथ में एक बन्दूक थी। वह बंगले की चौकीदारी करने निकला था। वह गेट पर खड़ा हो गया। चन्दन और रोहित क्या करें ? उनकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वह बंगले के पीछे पहुँच गए। उन्होंने खिड़की से झाँक कर देखा तो देखते ही चौंक पड़े। वहाँ पर उसी तरह का रूप बनाए कई लोग बैठे थे। उसमें कुछ औरतें और कुछ आदमी थे। वे आपस बातें कर रहे थे।
‘‘हम लोगों ने गाँव में अपना दबदबा बना लिया है। कोई भी भूत के डर से इधर नहीं आता। अब हमें किसी से कोई खतरा नहीं। हम लोग स्वतंत्र रूप से काम कर सकते हैं। कई लोगों को हमने कैद कर रखा है। हमें होशियार रहना पड़ेगा। अगर इनमें से एक भी भाग गया , तो हमारी सारी पोल-पट्टी खुल जाएगी।'' ये बात उनका लीडर कह रहा था।
दूसरे ने कहा-इन गाँव वालों को हम कैद करके क्या करेंगे? फालतू में दो वक्त का भोजन देना पड़ता है।'' इस बात का सभी ने समर्थन किया।
उनके लीडर ने कहा-‘‘ठीक है। आज का काम होने के बाद कल हम उन्हें खत्म कर देंगे।''
यह सुन कर चन्दन और रोहित परेशान हो गए। वे उन कैदियों को छुड़ाना चाहते थे। दोनों इसी विषय में सोच रहे थे , तभी उन्होंने देखा , वे भूत अपने-अपने बाल , नाक , आँख , दाँत आदि निकाल रहे हैं। दोनों ये देखकर हैरान रह गए अचानक उन्हें एक नया चेहरा दिखाई पड़ा। वह जाना पहचाना लग रहा था। आखिर यह कौन है ? कुछ साफ दिखाई नहीं पड़ रहा था। कुछ देर बाद उन्होंने उस चेहरे को पहचान लिया। उसे देखकर वे चौंक पड़े। असल में वह उनका पिता था। उनका पिता ही सभी का लीडर था। अपने पिता को इस रूप में देखकर उन्हें बहुत दुख हुआ। उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। एक तरफ पिता , दूसरी तरफ देश और उनके गाँव वाले। वे क्या करें ? किधर जायें ? अपने पिता से मिल जाएँ या गाँव वालों से सारी बात कह दें ?
चन्दन इन्हीं दोनों के बीच रात भर झूलता रहा। सुबह हो गई। वे कैदियों को मारने की तैयारी करने लगे। अभी तक चंदन कुछ निर्णय नहीं ले पाया था। उन कैदियों को मारने के लिए लाइन से खड़ा कर दिया गया। अचानक चन्दन को अपने भाई की याद आई। उसका भाई वहाँ मौजूद नहीं था। चन्दन परेशान होकर इधर-उधर देखने लगा। वह कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा था।
उसी समय उसने गाँव के लोगों को आते देखा। उसकी आँखें अपलक उस झुण्ड को निहारती रहीं। वह समझ गया कि रोहित ने ही गाँव वालों को ये सारी जानकारी दी है। देखते ही देखते गाँव वालों ने उन्हें पकड़ लिया। उसी समय रोहित पुलिस को लेकर आ गया। पुलिस ने सबको गिरफ्तार कर लिया।
रोहित और चंदन को देखकर उनके पिता चौंक पड़े। वे सोचने लगे कि इनको तो कुछ मालूम न था। ये लोग यहाँ कैसे आ गए ? उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उन्होंने रोहित से कहा-‘‘रोहित बेटा! तुम लोग यहाँ.....?''
तभी इंस्पेक्टर ने पूछा-‘‘क्या ये आपके बच्चे हैं ?''
उनके पिता ने कहा-‘‘हाँ , ये मेरे ही बच्चे हैं।'' यह सुनकर इंस्पेक्टर के कान खड़े हो गए। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि भला कोई अपने पिता को पकड़वा सकता है। लेकिन यह सच था। इंस्पेक्टर ने बच्चों से कहा-‘‘तुम लोग बहुत ही साहसी बच्चे हो। हमारे देश को तुम जैसे ही बच्चों की जरूरत है।''
यह सुनकर उनके पिता की आँखों में आँसू आ गए। वह अपने दोनों बच्चों से लिपट गए। उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। रोहित और चन्दन ने अपने पिता के आँसू पोछे।
उनके पिता ने कहा-‘‘बेटा , तुमने मुझे पकड़वा कर बहुत अच्छा काम किया है। मैं गलत काम करता था। लेकिन तुम लोग कभी ऐसा मत करना।'' यह कह कर एक बार फिर उन्होंने रोहित और चन्दन को अपनी छाती से लगा लिया।
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राम नरेश ‘उज्ज्वल'
मुंशी खेड़ा,
अमौसी एयरपोर्ट,
लखनऊ-226009
जीवन-वृत्त
नाम : राम नरेश ‘उज्ज्वल‘
पिता का नाम : श्री राम नरायन
विधा : कहानी, कविता, व्यंग्य, लेख, समीक्षा आदि
अनुभव : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगभग पाँच सौ रचनाओं का प्रकाशन
प्रकाशित पुस्तकें
1- ‘चोट्टा' (राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0 द्वारा पुरस्कृत)
2- ‘अपाहिज़' (भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत)
3- ‘घुँघरू बोला' (राज्य संसाधन केन्द्र,उ0प्र0 द्वारा पुरस्कृत)
4- ‘लम्बरदार'
5- ‘ठिगनू की मूँछ'
6- ‘बिरजू की मुस्कान'
7- ‘बिश्वास के बंधन'
8- ‘जनसंख्या एवं पर्यावरण'
सम्प्रति : ‘पैदावार‘ मासिक में उप सम्पादक के पद पर कार्यरत
सम्पर्क : उज्ज्वल सदन, मुंशी खेड़ा, पो0- अमौसी हवाई
अड्डा, लखनऊ-226009
मोबाइलः 09616586495
दोनों कहानियां बहुत अच्छी एवं प्रेरक हैं
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