ई-बुक: दशलक्षण धर्म - लेखक : महावीर सरन जैन - अध्याय 6 - संयम

SHARE:

6. संयम मन बार-बार इन्द्रियों के सुखों की ओर प्रवृत्त होता है। इन्द्रियों के सुख में ही जीवन का लक्ष्य मानने वाले व्यक्ति अन्दर की ओर झाँक...

6. संयम

मन बार-बार इन्द्रियों के सुखों की ओर प्रवृत्त होता है। इन्द्रियों के सुख में ही जीवन का लक्ष्य मानने वाले व्यक्ति अन्दर की ओर झाँककर नहीं देखते, आत्मा के सहज रूप का साक्षात्कार नहीं कर पाते। राग एवं द्वेष से उत्पन्न मनोविकारों के स्वच्छन्द एवं उन्मुक्त प्रवाह में बहते रहते हैं।

संयम का सामान्य अर्थ रोकथाम, प्रतिबन्ध एवं नियन्त्रण है। संयमी व्यक्ति अपनी इच्छाओं, मनोविकारों एवं प्रवृत्तियों को नियन्त्रित करता है।

आध्यात्मिक दृष्टि से संयम आत्मा का गुण है। इस कारण आत्मानुशासन संयम है। आत्मा में एकाग्र होना संयम है।

संयम एवं दमन में अन्तर है। पुराने शास्त्रों में यद्यपि संयम एवं दमन पर्याय रूप में प्रयुक्त हैं किन्तु आधुनिक मनोविज्ञान दोनों में अन्तर करता है। आज के सन्दर्भ में ये दोनों शब्द भिन्नार्थक हैं। संयम का अर्थ नियन्त्रण एवं दमन का अर्थ दबाना है। जब व्यक्ति चेतन मन में चलने वाले संघर्ष को नियंत्रित नहीं कर पाता, तो वह संघर्ष अचेतन मन में चला जाता है। वहाँ वह दमित अवस्था में परिणत हो जाता है। व्यक्ति का अहंकार जितना प्रबल होता है उसके जीवन में दमित वासनायें उतनी ही प्रबल एवं उग्र होती हैं।एक ओर वासनाओं के दमन से व्यक्तित्व का विकास रुक जाता है तो दूसरी ओर वासनाओं के स्वच्छन्द एवं उन्मुक्त व्यवहार से सामाजिक जीवन की व्यवस्था नष्ट हो जाती है। कुछ मनोवैज्ञानिक मानसिक रोगों के निराकरण के लिए दमित वासना के प्रकाशन को आवश्यक मानते हैं। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि अनेक दमित वासनायें असामाजिक एवं अनैतिक होती हैं। इनका स्वतन्त्र प्रकाशन एवं आचरण सामाजिक-व्यवस्था की दृष्टि से सम्भव नहीं होता। दमित वासनाओं का व्यवहारगत-प्रकाशन कालगत अन्तराल के कारण भी उचित नहीं होता। बाल्यकाल की दमित इच्छाओं को व्यक्ति जीवन के यौवनकाल अथवा प्रौढ़ावस्था में प्राकृतिक रूप से तृप्त नहीं कर सकता। इसके अतिरिक्त इस प्रक्रिया से मानसिक द्वन्द्व बढ़ जाता है। यदि हम दमित कामवासना को अपने आचरण में प्रकाशित होने की छूट प्रदान करते हैं तो ऐसा करने से मानसिक द्वन्द्व का निराकरण नहीं हो पाता, उसका रूपान्तरण होता है। कामवासना के दमन के समय वह शक्ति प्रायः मनुष्य की ‘अहंकार-बुद्धि’ होती है। कामवासना को अपने आचरण में प्रकाशित होने की छूट देते समय मनुष्य की अहंकार-बुद्धि का दमन हो जाता है। इससे एक प्रकार के दमन का स्थान दूसरा दमन ले लेता है।

दमन से मनुष्य की स्मृति का ह्रास होता है, चित्त की एकाग्रता समाप्त होती है, इच्छा शक्ति दुर्बल होती है। जीवन चिन्ता, भय, क्रोध आदि भावों से संत्रस्त हो जाता है।

जब मनुष्य अचेतन मन की अंधेरी कोठरी में झाँकता है, प्रतिक्रमण करता है तब अचेतन मन में नये अनुभवों का दमन होना बन्द हो जाता है। दमित वासनायें चेतन मन के स्तर पर आ जाती हैं। चेतन और अचेतन मन में समन्वय स्थापित हो जाता है। व्यक्ति चेतन मन के धरातल पर स्व-प्रयत्न से आत्म नियन्त्रण करने में समर्थ हो जाता है। अचेतन मन का कार्य दमन है, चेतन मन का कार्य आत्मनियन्त्रण है। आत्मनियन्त्रण से मनुष्य की मानसिक शक्ति बढ़ती है, उसके चरित्र का निर्माण होता है तथा व्यक्तित्व का विकास होता है। ‘आत्म-नियन्त्रण’ का अर्थ चेतन मन के भाव का अचेतन में जाकर दमित होना नहीं है। इसका अर्थ चेतन मन के धरातल पर मन के उग्रभावों को दृढ़ता के साथ जानबूझकर नियन्त्रित करना है, वश में करना है।

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से चेतन मन के धरातल पर प्रवृत्तियों के आत्म-नियन्त्रण से व्यक्तित्व का विकास होता है। आध्यात्मिक दृष्टि से इन्द्रियों के विषय-विकारों पर प्रतिबन्ध लगाये बिना साधना सम्भव नहीं है। संयमहीन साधना छलनी में पानी इकट्ठा करने के समान है। शास्त्रों में ‘संयमः खलु जीवनम्’ कहा गया है। संयम को ही जीवन का पर्याय माना गया है।

सभी आध्यात्मिक दर्शन धाराओं में संयम के महत्व का प्रतिपादन हुआ है। ‘अहिंसा संजमो तवो’ कहकर महावीर ने अहिंसा, संयम और तप को धर्म का मूलाधार माना है। (दशवैकालिक, 1/ 1)

बुद्ध ने संयम के लिए अप्रमाद शब्द का प्रयोग किया है। उन्होंने कहा कि प्रमाद ही समस्त अधःपतनों का मूल कारण है। इस कारण भिक्षु को संयम का अभ्यास करना चाहिए। प्राज्ञ-पुरुष उद्योग, अप्रमाद, संयम और नियन्त्रण द्वारा ऐसा द्वीप बनावे, जिसे बड़ी बाढ़ भी न डुबो सके।( दे0 धम्मपद, अप्पमादवग्गो – 25)

योगी लोग इन्द्रियों के विषय विकारों को रोककर अपने वश में करते हैं, उनका संयम रूपी अग्नि में हवन करते हैं। गीता में ‘आत्मसंयम योगाग्नौ जुह्यति ज्ञानदीपिते’ कहा गया है। ज्ञान से दीप्त आत्म संयम रूपी योग-अग्नि में हवन करने का परामर्श दिया गया है।

संयम के प्रकारों की भी चर्चा हुई है। स्थानांग में संयम के चार प्रकार बतलाए गए हैं-‘मण संजमे, वइ संजमे, काय संजमे, उवगरण संजमे’।

(1) मन का संयम (2) वचन का संयम (3) शरीर का संयम (4) उपाधि (सामग्री) का संयम। (स्थानांग 4/ 2)

योग सम्प्रदाय में साधक को ध्यान में रखकर संयम को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया गया है:

(1)जल का संयम - इससे योगी ब्रह्मरन्ध्र में अटल स्थिति प्राप्त करता है।

(2) अन्न का संयम - इससे योगी के हृदयाकाश में ज्योति का उन्मेष होता है।

(3) पवन का संयम - इससे योगी देह रूपी घर के 9 दरवाजों को बन्द करके यौगिक शक्तियों के स्थिरीकरण में सफलता प्राप्त करता है।

(4) बिन्दु का संयम - इससे योग की साधना के लिए उपयोगी शारीरिक स्थिरता प्राप्त होती है।

संयम के प्रकार एवं उनकी प्राप्ति के साधनों का वर्गीकरण इस प्रकार है:

(1) तन का संयम - यह आहार-संयम एवं आसन द्वारा सिद्ध होता है।

(2) प्राणों का संयम - यह प्राणायाम द्वारा सिद्ध होता है।

(3) इंद्रियों का संयम - यह प्रत्याहार द्वारा सिद्ध होता है।

(4) मन का संयम - यह यम-नियमों द्वारा सिद्ध होता है।

(5) बुद्धि-आत्मा का संयम - यह धारणा, ध्यान एवं समाधि द्वारा सिद्ध होता है।

व्यक्ति क्षमा द्वारा क्रोध को, मार्दव द्वारा अहंकार को, आर्जव द्वारा माया एवं कपट को तथा शौच द्वारा लोभ को जीत लेता है। अहंकार, क्रोध, माया एवं लोभ ही राग-द्वेष के कारण हैं। इस प्रकार राग-द्वेष के कारणों को दूर करके व्यक्ति ‘सत्य’ का प्रकाश प्राप्त कर आत्म ब्रह्म के मार्ग की ओर गमन करता है। यात्रा में सबसे बड़ा खतरा इन्द्रिय-लोलुपता एवं प्रमाद का है। इसका कारण यह है कि मन वस्तुतः अत्यन्त बलशाली एवं चंचल है। उसका निग्रह करना वायु की भाँति बहुत दुष्कर है। कृष्ण के द्वारा प्रतिपादित समत्व-भाव युक्त ध्यान योग की बहुत काल तक ठहरने वाली स्थिति के विषय में अर्जुन मन की चंचलता के कारण सन्देह करते हैं:

यो·यं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन।।

एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात् स्थतिं स्थिराम् ।।33।।

चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलबद् दृढम्।।

तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।34।।

(गीता, 6/ 33-34)

संयम के द्वारा व्यक्ति इन्द्रियों की विषय उन्मुखता पर प्रतिबन्ध लगाता है, उन्हें नियन्त्रित करता है। संयम की लगाम से इन्द्रियों को वश में करके व्यक्ति अपने लक्ष्य पर पहुँचता है।

संयमी जीवन की पहली शर्त ‘अप्रमाद’ है। अप्रमाद निषेधात्मक है, संयम विधानात्मक है। जैसे रात्रि बीत जाने पर वृक्ष के पत्ते पीले पड़कर झड़ जाते हैं उसी तरह आयु बीतने पर मनुष्य की पर्याय नष्ट हो जाती है। इस कारण क्षण भर भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। उसे जागरूक होकर समभाव से लोक का स्वरूप समझकर, अप्रमत्त भाव से विचरण करना चाहिए। संसारी मनुष्य विषयों के प्रवाह में ही बहते रहते हैं। इन्द्रियों के सुख को ही मानव जीव का लक्ष्य मानकर चलते हैं। सन्त पुरुषों का लक्ष्य प्रतिस्रोत है। वे मुक्त होना चाहते हैं, स्वतन्त्र होना चाहते हैं, सहज होना चाहते हैं। संयम से इन्द्रियों की परतन्त्रता से छुटकारा मिलता है। संयम आत्मा का सहज स्वभाव है। साधना काल में संयम साधन है, सिद्धिकाल में स्वभाव है। अनुस्रोत संसार है, असंयम है, आत्मा का कषायों से संयोग है। प्रतिस्रोत संसार से बाहर निकलने का उपाय-द्वार है, आत्मा की अनात्मा से दूरी है, इन्द्रियों के सुख से विरत होकर विशुद्ध चैतन्य की ओर उन्मुखता है।

संयम के कारण हम क्रोध को शमन कर ‘क्षमा’ का अभ्यास करने में समर्थ होते हैं, इन्द्रिय भोग की कामना का परित्याग करके चित्त को शुद्ध करते हैं तथा जीवन को सहज एवं सरल बनाते हैं।

‘संयम’ का तप एवं त्याग से घनिष्ठ सम्बन्ध है। बिना संयम के ‘तप’ सम्भव नहीं है। संयम से जीव आस्रवों का निरोध करता है। उसी के पश्चात् पापों की निर्जरा कर पाता है। नाव में जब छेद हो जाता है तो उसमें पानी भरने लगता है। नाव को डूबने से बचाने के लिए पहले हम नाव का छेद बन्द करके जल का नाव में आना रोक देते हैं। साधक संयम के द्वारा आत्मा की नाव में इन्द्रिय-सुखों की कामना रूपी जल को आने से रोकता है। पुनः तप द्वारा पूर्व-संचित जल रूपी कर्मों को सुखाता है।

परिग्रह में व्यक्ति जोड़ता है। संयम के द्वारा व्यक्ति जोड़ने की प्रवृत्ति को संयमित करता है। संचय एवं भोग की प्रवृत्तियों पर प्रतिबन्ध के बाद व्यक्ति के अन्तःकरण में त्याग की भावना उत्पन्न होती है।

सामाजिक दृष्टि से भी संयम का महत्व है। मानव जाति का अस्तित्व संयम के बिना सम्भव नहीं है। मनुष्य अपनी पाशविक वृत्तियों के नियन्त्रण के द्वारा ही सामाजिक प्राणी बन पाया है। सामाजिक संरचना एवं व्यवस्था तभी कायम रह सकती है, जब उसके सदस्य नियमों का पालन करें। नियमों का पालन करना ही सामाजिक संयम है। पाश्चात्य राजनीतिज्ञ हॉब्स ने समाज-रचना से पूर्व की स्थिति पर विचार किया है। वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि जब तक मनुष्य ने समाज नहीं बनाया था, तब तक उसे धर्म, मर्यादा, नैतिकता तथा संयम का ज्ञान नहीं था। वह मन में उठने वाली वासनाओं की पूर्ति के लिए दल बनाकर जंगलों में घूमता था। एक दल दूसरे दल पर आक्रमण कर, उसकी सम्पत्ति छीनने का प्रयास करता था। जो दल सबल होता था, वह शत्रु दल के सदस्यों को बन्दी बनाकर मार डालता था। कोई दल सुरक्षित नहीं था। सबके जीवन में असुरक्षा की भावना थी। इस जीवन से परेशान होकर सबने मिल जुलकर समाज बनाया। परस्पर आचरण के नियम निर्धारित किए। उन नियमों के पालन करने की आदत डाली। इस प्रकार सामाजिक जीवन में व्यक्ति ने अपने व्यवहार की सीमा में रहना सीखा; संयम का पालन करना सीखा। समाज की प्रत्येक इकाई जब अपने को संयम की परिधि में बाँधकर जीवन व्यतीत करती है तभी समाज में शान्ति व्यवस्था कायम रहती है। जब किसी समाज के सदस्य संयम के बंधनो को तोड़ते हैं तो उस समाज के वातावरण में जहर घुल जाता है। स्वच्छन्द, उन्मुक्त एवं कामुक प्रेम का आचरण करने वालों के जीवन में क्या होता है ? प्रेम शारीरिक वासना की तृप्ति का साधन बनकर रह जाता है। मन का मिलन नहीं हो पाता। तथाकथित आधुनिक-समाज के बहुत से व्यक्तियों के जीवन में इस तथ्य को साक्षात देखा जा सकता है। स्वच्छन्द यौनाचार के कारण उनके जीवन में अतृप्ति, वितृष्णा, कुंठा एवं संत्रास की प्रवृत्तियाँ मुखर हैं। इन्द्रिय-भोगों की तृप्ति असंख्य भोग-सामग्रियों के निर्बाध सेवन एवं संयम-शून्य कामाचार से सम्भव नहीं है। इसका कारण यह है कि मनुष्य की इच्छाओं का कोई अन्त नहीं है। आग में जितना घी डाला जाता है, आग उतनी ही अधिक उद्दीप्त होती है। इस कारण जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संयम अनिवार्य है।

क्रोध पर संयम न करने के कारण हमारा जीवन संघर्षों से भर जाता है। काम पर संयम न रखने के कारण हम पशु के धरातल पर उतर आते हैं। संयम-हीन आचरण के कारण ही जीवन में अशांति, व्याकुलता, द्वेष, अमानवीयता, क्रूरता आदि भावों एवं वृत्तियों का संचार होता है।

मनुष्य ने वैज्ञानिक साधनों के कारण जीवन के काम में आनेवाली वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि की है। सुख सुविधाओं के साधनों का विस्तार किया है। प्रत्येक राज्य-शासन के आँकड़े सूचना देते हैं कि वस्तुओं का उत्पादन बढ़ रहा है। इसके बावजूद समाज में अशांति क्यों है ? वास्तव में जब तक व्यक्ति भोग की इच्छाओं पर नियन्त्रण करने की आदत विकसित नहीं करेगा, तब तक भोगवृत्ति की पिपासा शान्त नहीं होगी। आधुनिक जीवन के सबसे महत्वपूर्ण मूल्य स्वतन्त्रता एवं समानता हैं। इन दोनों के लिए संयम आवश्यक है। जब व्यक्ति अपने आप पर नियन्त्रण करता है, सामाजिक नियमों का पालन करता है; दायित्व बोध की दृष्टि से जीवन व्यतीत करता है तभी उसके अधिकार तथा उसकी स्वतन्त्रता कायम रहते हैं।

इसी प्रकार जब व्यक्ति भौतिक वस्तुओं के परिग्रह का संयम करता है, तभी आर्थिक विषमताओं का अन्तर कम होता है तथा समाज के द्वारा उत्पादित वस्तुएँ प्रत्येक इकाई तक पहुँच पाती हैं। इस दृष्टि से अहिंसा का आधार अपरिग्रह है एवं अपरिग्रह का आधार संयम है।

------ ----------------------------------------------- -------

असंजमे नियत्तिं च, संजमे य पवत्तणं।

असंयम से निवृत्ति और संयम में प्रवृत्ति करें।

तहेव हिंसं अलियं चोज्जं अवम्भसेवणं।

इच्छाकामं च लोभं च, संजओ परिवज्जए।।

संयमी आत्मा हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य-सेवन, भोग-लिप्सा एवं लोभ इन सबका परित्याग करे।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: ई-बुक: दशलक्षण धर्म - लेखक : महावीर सरन जैन - अध्याय 6 - संयम
ई-बुक: दशलक्षण धर्म - लेखक : महावीर सरन जैन - अध्याय 6 - संयम
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_7aWtd0yXI0VDc6TNh1tL1hHfXAIF6k6kvr4v-GF828kgjsIGxnPbn6gannc7eqC4fxwdzYWMGe49tyIE0d2kaVk6WyCQDWrq9slKS3Oyn_xmEdLZ4PdutvwHUouaexGINn4Y/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_7aWtd0yXI0VDc6TNh1tL1hHfXAIF6k6kvr4v-GF828kgjsIGxnPbn6gannc7eqC4fxwdzYWMGe49tyIE0d2kaVk6WyCQDWrq9slKS3Oyn_xmEdLZ4PdutvwHUouaexGINn4Y/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2013/10/6.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2013/10/6.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content